भूल का परिणाम

खेतों की मेड़ पर और नदी के किनारे था हर रोज उसका आना-जाना।
गांव की गली गली के कूचे ही थे उसका आशियाना।।
आज सुबह सुबह ही तो वह नदी के किनारे था आया।
सुनहरी धूप और पानी की कल कल का उसने भरपूर आनन्द उठाया।।
अपनी पूंछ को हिला हिला कर खुशी से था भर्माया।
पक्षियों के अन्डों को खानें की थी उसे बड़ी ललक।
पतों की सरसराहट से उसे उनकी लग जाती थी भनक।।
टप्पू था अपनी धुन का पक्का।
जरा सी आहट पा कर वह वहीं पर था जा धमका।।
ललचाई नज़रों से ईधर उधर देखा करता था।
कब शिकार हाथ लगे हर दम अवसर तलाशता रहता था।
उसका लालच दिन प्रतिदिन बढ़ता ही था जा रहा।
अपनें साथियों को भी नजरअंदाज था वह कर रहा।

अंडों को खानें के लिए हो जाता था आतुर।
उनको पानें के लिए बन जाया करता था शातिर।।
रेत में एक छोटे से घोंघे को देख कर उस पर नज़र फिराई।।
खुशी के मारे उसकी आंखें चौंधियांइ।
झटपट चाट चाट कर खा के अपनी जिह्वा मटकाई।

सुस्ताने के लिए पेड़ के नीचे था आया।
अचानक पेट की दर्द से वह चिल्लाया।
सीप के टुकड़ों नें अपना कमाल दिखाया।
उसकी आंतों में फंस कर उसे रुलाया।।
दर्द और वेदना से टप्पू करहाने लगा।
एंठन और जकड़न से छटपटाने लगा।।

रो कर मन ही मन बुदबुदाया।
अपनी जल्दबाजी पर पछताया।।

मुझ से कंहा हो गई बड़ी भारी भूल।
बिना सोचे समझे काम करने की आदत बन गई शूल।
आज मैंने यह अन्तर जाना।
कोई भी गोल वस्तु अंडा नहीं होती यह पहचाना।।
बिना बिचारे जो काज करे वह पाछे पछताय।
भूल संवार कर जो सीखे वहीं मुकद्दर का सिकंदर कहलाए।।


नन्हा फ़रिश्ता

प्रकाश अपनी पत्नी के साथ एक छोटे से गांव में रहता था। उसके पास थोड़ी सी जमीन थी । वह रात दिन खेतों में मेहनत करके अपनी पत्नी और बेटे भानु के साथ जीवन व्यतीत कर रहा था । भानु 5 वर्ष का था। वह अपने पिता के साथ,गौशाला को साफ करना, खेतों में पशुओं को चारा खिलाना ,वह अपनें पिता को यह सब काम करते देखा करता था । उनकी छोटी सी गाय का नाम सुरभि था।।

गाय कि कभी पूंछ पकड़ता कभी सींग, गाय भी उसको बहुत प्यार किया करती थी। वह उसको कभी भी नहीं मारती थी । अपने माता पिता को गाय को चारा देते देखा करता था। फिर भी वह सब से चोरी छुप कर गौ को रोटी डालता ।

इस बात को चार पांच साल व्यतीत हो गए थे‌।कुछ समय से

वेद प्रकाश के स्वभाव में कुछ परिवर्तन आ गया था। वह बात बात पर अपनी पत्नी से लड़ने लग जाता था। कभी-कभी तो गौ पर भी लाठी से प्रहार करने लग जाता था। गौ नें भी दूध कम देना शुरू कर दिया था। प्रकाश को उसके ऊपर काफी क्रोध आने लगा था। घर में दूध पीने लायक भी नहीं है ।कई बार अपनी पत्नी को कहता कि इस गौ को बेच देते हैं। कुछ रुपये तो मिलेंगे।। एक दिन तो सुरभि बहुत ही बीमार हो गई ।पहले प्यार से सुरभि से पेश आता था।वह कभी भी पहले जैसा प्यार नहीं दिखाता था। उसके आगे घास चारा भी थोड़ा ही डालता था।उसकी पत्नी एक दिन अपनें पति से बोली आप यह अच्छा नहीं कर रहें हैं।अगर गौ दूध ज्यादा नहीं दे पा रही है तो इस में उस बेचारी का क्या कसूर।तुम तो इतनें निर्लज्ज कभी नहीं थे।इसे डाक्टर के पास क्यों नहीं ले जाते। सुरभि ने उन दोनों की बातें सुन ली थी।वह अपनी पत्नी से बोला मुझे कोई और जुगाड़ करना पड़ेगा।

उस दिन के बाद चुपचाप गौ गुमसुम सी एक कोने में पड़ी रहती थी । एक दिन उसने अपने मालिक और मालकिन की बातों को सुना मालिक अपनी पत्नी से कह रहे थे भाग्यवान देखो आज मैं एक बकरी लेकर आया हूं। बकरी का दूध गौ के दूध से कहीं अच्छा होता है ।इससे बीमारियां भी नहीं लगती ।भानु अभी छोटा है कुछ दिनों बाद उसे भी बकरी का दूध अच्छा लगने लग जाएगा। उस गाय को अब अपनें घर में नहीं रखेंगे ।कल जब इसे मैं डॉक्टर के पास ले गया था तो उसने कहा कि अब वह कभी दूध नहीं देगी। ऐसी गौ को घर में रखने से क्या काम? जो दूध ही ना दे। पत्नी कुछ नहीं बोली वह बोली जैसा आप उचित समझें वैसा करें ।सुरभि नें यह बात सुन ली थी ।उसकी आंखों से आंसुओं की धारा बह रही थी।

मेरे मालिक भी अब मुझे प्यार नहीं करते। वह औरों की तरह ही स्वार्थी निकले ।मैंने तो ना जाने इस घर में आ के क्या-क्या कल्पना की थी। । मैं इनके घर में आकर बहुत खुश हो गई थी। अपनें मालिक को कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगी। आज तो यह एक बकरी को लेकर आ गए। वह अपने मन में सोचने लगी जब जीव या प्राणी बूढा हो जाता जाता है तो उसकी कोई भी कदर नहीं होती। बकरी, सुरभि की ओर देख देख कर मैं मैं कर रही थी। बकरी को भी आए हुए काफी दिन हो गए थे ।घर में बकरी का दूध इस्तेमाल होने लगा।

दिन के समय एक दिन प्रकाश सुरभि को बहुत दूर जंगल में छोड़ कर आ गया ।जहां से वह घर वापस ना लौट सके।गौ को पहले से ही पता था कि क्या होने जा रहा है? वह अंदर ही अंदर गुमसुम चुप्पी साधे थी। जब भानु स्कूल से घर आया तो सुरभि को ना कर पाकर बहुत रोया।वह अपनी मां को बोला मेरी सुरभि को वापस लाओ।काफी दिन तक स्कूल भी नहीं गया। प्रकाश बोला धीरे धीरे वह भूल जाएगा।सपनें में भी की बार सुरभि को पुकारता।मां का पल्लू पकड़ कर पूछता हमारे सुरभि कंहा चली गई? उसकी मां बोली पता नहीं बेटा कहां चली गई ?उसने भानु को कुछ भी नहीं बताया। बकरी को भी वह बहुत प्यार करता था।कुछ बड़ा हो चुका था। उसमें बकरी को नाम दिया था भूरी। भूरे रंग की थी। वह उसके सिर पर हाथ फेरा करता। उसे प्यार करता स्कूल से आते ही उस के साथ खेला करता। वह सुरभि की याद को दिल से भुला न पाया था। रात को भी सोते सोते सोते मां को कहता कि मां सुरभि भूखी होगी। वह उसकी याद में दुबला पतला हो गया था।

एक दिन जब उसकी मालकिन भूरी को जंगल में चराने ले गई तो भूरी की नजर सुरभि पर पड़ गई थी।सुरभि सूख कर कांटा हो गई थी। शाम को जब भूरी घर आई तो वह बहुत ही उदास थी। उसे पता चल चुका था कि उसके स्वामी ने सुरभि को बाहर फेंक दिया था ।भूरी अपने मन में सोचने लगी कि कल उसकी भी ऐसी ही हालत होगी ।जब उसके पास भी दूध नहीं होगा तो वह उसे भी जंगल में छोड़ कर आ जाएंगे ।वह किसी से कुछ भी नहीं कर सकती थी ।मन ही मन बहुत ही दुखी थी। वह सोच रही थी वह यहां से भाग जाएगी।

एक दिन वह चुपके से शाम के वक्त जब सभी अपने अपने कामों में व्यस्त थे वह सुरभि से मिलने जानें लगी। सुरभि को पुकारते पुकारते उसी जंगल में पहुंच गई और वहां पहुंच कर उसने सुरभि को देखा ,वह सुरभि से बोली बहन यह क्या हालत बना ली है? सुरभि बोली कि बहन इंसान जाति पर कभी भी भरोसा नहीं करना। उसके मालिक ने जब वह दूध देने लायक ना रही तो उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया।मुझे तो भानु की बड़ी याद आती है ।मैं उससे मिलने के लिए तड़प रही हूं ।भूरी बोली कि तू चिंता मत कर। एक दिन मैं तुझसे उसे अवश्य मिलाने लेकर आऊंगी। सुरभि बोली अब तो शायद मेरा आखरी वक्त आ गया है ।मुझे इतने दिन हो गए घास भी नहीं खाया है।

शाम को जब सब भूरी को ढूंढने लगे तब भानु दौड़ा दौड़ा आया और भूरी से लिपट कर बोला कहीं तुम भी तो मुझे छोड़ कर नहीं जाओगी, जैसे ही भूरी गौ शाला में आई तो प्रकाश उस पर बहुत जोर से चिल्ला पड़ा और कहा तुम कहां चली गई थी?भानु उसे प्यार करते बोला तुम मुझे छोड़कर मत जाना। मेरी सुरभि भी मुझे छोड़ कर ना जाने कहां चले गई। पता नहीं वह अब जीवित भी होगी या नहीं।

गौ शाला में चुपचाप जा कर बैठ गई। जब भानु उसके पास आया तो उसे भूरी का उदास चेहरा दिखाई दिया जिसमें कोई गहरा राज छिपा था। उसने रोज की तरह उसे रोटी खिलानी चाही तो वह रोटी भूरी नें नहीं खाई। उसको ना खाता देखकर भानु बोला आज मैं भी खाना नहीं खाऊंगा। पता नहीं आज भूरी क्यों खाना नहीं खा रही है? मां क्या आप नें उसे डांटा था या पापा नें। भूरी उसकी तरफ देख कर मुस्कुराई।

भानु 7 साल का हो चुका था। उसकी अध्यापिका आज जीवों के बारे में सभी बच्चों को बता रही थी। अध्यापिका बच्चों को बोली की सभी जीव जन्तु प्राणी इन्सानों की तरह प्यार की भाषा समझतें है ।लेकिन वे मूक प्राणी मुख से बोल नहीं पातें हैं। इशारों को समझतें हैं। प्यार करोगे तो प्यार से आप की हथेली को चाटेंगें। भानु सब कुछ समझ चुका था।उस को समझ आ चुका था। वह भूरी को और भी ज्यादा प्यार करने लगा ।कभी-कभी वह भगवान के पास हाथ जोड़कर कहता कि हमारी सुरभी ना जाने कहां चली गई है ?वह वापस आ जाए। उसकी मां बोली बेटा अब वह कहां से आएगी ?जंगल में तो अब तक उसे शेर जैसे भयानक जानवर खा चुके होंगे।

मां मेरी सुरभि को पापा नें जंगल मेंछोड़ा है ।मुझे आभास हो गया है अध्यापिका कहती हैं कि जो पशु दूध नहीं देते तो कोई कोई मालिक पशुओं को बाहर फेंक देते हैं । भानु अपनें माता पिता पर नजर रखनें लगा।भानु ने दिन के समय चुपचाप जंगल की तरफ जाते भूरी को देखा उसके पास लिफाफा था ।उसमें रोटियां देखकर हैरान चुप चाप भूरी के पीछे पीछे चलनें लगा। रोटी लेकर कहां जा रही है? जंगल में अकेली थी ।एक घने जंगल के बीच झाड़ियों के पीछे भानु छिप गया। भूरी नें जोर जोर से मैं मैं करना शुरु किया।उसने रोटियां नीचे डाल दी।सुरभि बेहोश पड़ी थी।मैं मैं का शोर सुन भानु झाड़ी से निकला सुरभि को जमीन पे बेहोश देख कर जोर जोर से रोने लगा।उठो ,देखो तेरा दोस्त मुझे लेनें आया है।वह जोर जोर से उसे झिंझोड़ते हुए बोला तुझे आज घर से गए हुए एक महीना हो गया।जल्दी उठ कर मुझे से खेलो।वह गौ के मुंह में रोटी डालते हुए बोला अगर आज तू नहीं उठी तो इस पत्थर पर पटक कर मैं भी मर जाऊंगा।घर जाऊंगा तो तेरे साथ।बकरी की आंखों में आंसू थे।भानु का गला जोर जोर से रो कर बैठ गया था।प्रकृति भी उस बच्चे की प्यार भरी भावना से आहत थी।पतों पर भी गिरी गिली पानी की बूंदों से वह अपनी गौ को पानी पिला रहा था।भगवान को भी उस बच्चे पर दया आई।गौ नें अपनी आंखें खोली।भानु को देख कर उसे प्यार से पुचकारा मानों वह कितनें दिनों से उसका इन्तज़ार कर रही हो।उसने भानु के हाथों से एक टुकड़ा खाया और फिर बेहोश हो गई। सड़क के पास ही उसने एक ट्रक वाले को सामनें से जाते देखा।वह जोर से चिल्लाया अंकल भगवान के लिए ट्रक रोको।ट्रक वाला दयावान व्यक्ति था।उसने जब गौ कि हालत देखी तो अपने आप को रोक नहीं पाया बोला।लोग इतना भी गिर सकतें हैं आज मैनैं अपनी आंखों से इस गौ माता कि हालत देख कर जाना।

ट्रक वाले को बोला मेरी सुरभि आज मुझे मिल गई आज मैं आप को मालामाल कर दूंगा।आप को फीस जरूर दूंगा आप मेरी गौ को अस्पताल ले कर चलो।फीस की चिन्ता मत करना।ट्रक ड्राइवर बोला हो न हो तुम्हारे घर वाले इसे जंगल में छोड़ गए होंगें उसने जब दूध नहीं दिया होगा।भानु बोला नहीं मेरे मातापिता कभी भी ऐसा काम नहीं कर सकते।मैं जब उन्हें बताऊंगा कि हमारी सुरभि घर वापिस आ गई है तो वे बहुत खुश होंगें।

ट्रक वाला बोला अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर क्या करोगे वह बोला अगर यह बात सच्ची नहीं होगी तो इस गाय को आप ले ले जाना।मैं इस गाय को ठीक देखना चाहता हूं। बड़ा हो कर जब मैं कमानें लग जाऊंगा तब इस गौ को आप से ले जाऊंगा।अंकल आप तो सचमुच में आज भगवान के फरिश्ते बन कर आए हैं।समय व्यतीत नहीं करना चाहिए।जल्दी से गौ को अस्पताल पहुंचाया।डाक्टर बोला फीस भी लाए हो या नहीं।भानु बोला आप विश्वास रखिए आप की फीस मैं दे दूंगा।डाक्टर बोला मैं तुम पर कैसे विश्वास करु।भानु ने कहा अभी तो आप मेरी ये चेन रख लो।डाक्टर उस छोटे से बच्चे से बहुत ही प्रभावित हुआ।वह भानु से बोला जरा दिखाओ ये चेन असली है या नकली।डाक्टर नें देखा उस में एक लौकेट था।उस फोटो को देख कर बहुत खुश हो कर बोला जल्दी से गाय को इनजैकश्न लगाता हूं।डाक्टर बोला इस चेन में ये कौन है? भानु बोला ये मेरी मां की तस्वीर है। साथ में मेरे मामु हैं। मां नें बताया था।डाक्टर भी उस के साथ घर आ गए थे।

अपनें पिता के पास आ कर बोला पापा हमारी सुरभि कहीं नहीं गईं थीं।वह आज मुझे मिल गई है।उसके पिता उस पर चिल्लाते हुए बोले तुम्हें शर्म नहीं आई जंगल की ओर जाते हुए उसे मैं जंगल में छोड़ कर आ गया था।वह मर ही जाती तो अच्छा था।दूध ही नहीं देती थी तब उसे घर में रखनें से क्या लाभ?भानु अपनें पिता की बात सुन कर रो दिया।भानु बोला आप मेरे पिता नहीं हो सकते।भानु नें देखा भूरी की आंखों में भी आंसू थे।वह भूरी की ओर देख कर बोला तू मत रो।मैं तेरा इन्तजार करूंगा। भानू बोला पापा जब मां बूढ़ी हो जाएंगी तब आप उन्हें अनाथालय भेज देंगें।मैं आप को बूढ़ा होनें पर अनाथालय छोड़ दूंगा।आप भी किसी काम के नहीं रहेंगे। डाक्टर अपने भांजे कि बातें सुन कर हक्का बक्का रह गया था।उसने भी तो अपनी प्यारी बहना को घर छोड़ने को विवश कर दिया था।गाय को बचानें के चक्कर में अपने भांजे से उसकी चेन रख ली थी।

हम कितने स्वार्थी हो जातें हैं मूक प्राणियों कि भाषा समझ ही नहीं सकते।भानु दौड़ा दौड़ा सुरभि के पास आया बोला आज मैं तुम्हें ऐसे इन्सान को सौंपनें जा रहा हूं जो तुम्हारे प्यार की कद्र करेगा। तुम्हें खुश रखेगा।मैं जब बड़ा हो कर कमानें लग जाऊंगा तो तुम्हारी जैसी अनेक गौवों के संरक्षण की संस्था खोलूंगा, ताकि कोई भी व्यक्ति गौ को जंगल में या राह में भटकने न के लिए न छोड़ दें।भानु नें देखा ट्रक ड्राइवर भानु कि तरफ देख कर मुस्कुरा रहा था।भानू बोला आप जीत गए हैं ,मैं आज हार गया।आज से सुरभि आप की हुई।वह रोते रोते सुरभि से बोला तू निराश न होना कभी कभी तुझ से मिलनें आ जाया करुंगा।

भानु के पिता बोले बेटा मुझे मौफ कर दे ।आज तूनें मेरी आंखें खोल दी हैं। मेरी आंखों पर अंधकार की परत पड़ी थी।मैं भटक गया था आज मैं सच्चाई जान गया।भानु बोला पापा अब काफी देर हो चुकी है मैनें किसी से वायदा किया था वह निभाने का समय आ गया है।भानु नें गौ को दीनदयाल को सौंप दिया।डाक्टर नें भी अपनी बहन से क्षमा मांगी और कहा बहन मुझे मौफ कर दे।सुमन तो अपनें भाई को मौफ कर चुकी थी।सभी की आंखों में ख़ुशी के आंसू थे। भाई नें अपनी बहन को कहा कि गाय रूपी तोहफा तुम्हें इस लिए सौंप कर जा रहा हूं क्यों कि इस में भानु की जान बसती है।आप सभी को अपनी गल्ती का एहसास हो गया होगा। इस नन्हें से बालक नें हमें सीख दी है।भानु की आंखों में ख़ुशी के आंसू थे उसकी सुरभि और भूरी उस से कभी जुदा नहीं होंगी। आज उसे कई दिनों बाद गहरी नींद आई थी।

शादी की दावत

बंदर मामा, दोस्तों संग

शादी की दावत खाने के लिए लगे जानें।

कोट पैन्ट, टाई और हैट लगा कर

सभी पर अपनी धाक लगे आजमाने।।

बार बार अपने नए जूतों को देख देख लगे खुशी से मुस्कूरानें।

तरह तरह की पोशाकें पहन कर उन के दोस्त थे आए।

दर्पण में बार बार अपना चेहरा देख कर थे शर्माए।।

इत्र की खुशबू से ,सभी को अपनी तरफ लगे लुभानें।

अपनें पर इतरा कर , बड़ी बड़ी मूछों को लगे मटकानें।।

झूम झूम कर,मस्ती भरे मन से

मन ही मन लगे गुनगुनानें।

बंदर मामा,ठुमक ठुमक कर

शादी की दावत खानें के लिए लगे जानें।।

बाजे की धुन सुन कर नृत्य के लिए आगे आए।

थिरक थिरक कर खुशी से नृत्य कर खुशी से चिल्लाए।।

तुफान मेल की तरह सभी को लगे नचाने।

सभी को रिझा कर अपनी बात लगे मनवानें।।

तरह तरह के स्वादिष्ट व्यंजनों को देख

जिह्वा से लगे लार टपकाने।

इधर उधर थाली पर ही नजरें लगे टिकानें।

बंदर मामा ठुमक ठुमक कर

सभी दोस्तों को खानें के लिए लगे बुलानें।

चाट पकौड़ी गोल गप्पे डट कर लगे खाने।

प्लेट पर हाथ साफ कर धमाचौकड़ी लगे मचानें।

वेटर को आइस्क्रीम लाता देख दौड़ कर खानें को आए।

भीड़ भाड़ में धक्का मुक्की से जरा भी न घबराए।।

पांडाल के पास गिरे धड़ाम से तो फिर उठ न पाए।

हाय मैं मरा!हाय मैं मरा! यह कह कर जोर जोर से चिल्लाए।

दावत का सारा मजा किरकिरा देख अपनी करनी पर पछताए।

अस्पताल पहुंच लम्बी चौड़ी दवाईयों की लिस्ट देख हाय तौबा मचाए।

आगे से ऐसा न करने की कसम खा कर अपनी बात दोहराए।।

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लालच के फेर में पड़ कर व्यक्ति अपना ही करता है नुकसान।

लालच को अपना कर व्यक्ति हो जाता है मृत समान।।

अनमोल वचन

भज सके तो भज ले राम नाम प्यारा।
पाछे फिर पछताएगा जब छुटेगा घर द्वारा।।
दाता इतना दिजीए,जितना निर्वाह होई जाए।
घर पे आया कोई पाहुना, भूखा न रहे जाए।।
कुटिल वचन न बोलिए,जो काया को करे तार तार।
मृदुल वचन जल रुप है ,बरसे अमृत धार।।
राम राम भज ले बन्दे,राम नाम अनमोल।
सियाराम भज कर ही तो ,जीवन में अमृतरस घोल।।जीवन में अमृत रस घोल।
आए हैं सो जाएंगे,राजा,रंक,फकीर।
अपनी अपनी करनी का फल भुगतेंगे सभी,
ये पत्थर की लकीर।ये पत्थर की लकीर।।

सीता ही राम राम,सीता ही भवानी।
भवानी ही रामराम,न समझे वो अज्ञानी।।
जनक सुता जग जानकी।
प्रिया प्राण “जान”की।
प्रिया प्राण जान की,
मधुर वचन है औशधि सब गुणों की खान।
पर को भी अपना बनाए यही सद्गुणों की पहचान।।
यही सद्गुणों कि पहचान।।
तिनका तिनका जोड़ कर मानव महल बनाएं।
तिनके कि महानता को हर कोई समझ न पावे।।
माला फेरते जुग भया फिरा न लालच का फेर।
जो लालच न करें,वहीं चखे अमृत बेल।।
वहीं चखे अमृत बेल।।
यश,वैभव, समृद्धि पाना चाहे हर कोई।
पुरुषार्थ करने को ,कोई न तत्पर होई ,कोई न तत्पर होई।।

गाय माता

गाय जगत माता कामधेनु है कहलाती।
गाय की सेवा घरों में खुशहाली को बढ़ाती।।

धर्म,अर्थ,मोक्ष का आधार है गौ माता।।
सकल जग उदधारिणी है गौ माता।
समन सकल भव रोग हारिणी है गौ माता।।


पृथ्वी पर रहनें वाले जीवों से करती है प्यार।
हर प्राणी,जीवों पर इसके हैं असंख्य उपकार।।
गाय की सेवा,पालन पोषण करना है धर्म हमारा।
इस से बढ़ कर नहीं है कुछ भी दायित्व हमारा।।
गाय में है सभी देवी देवताओं का वास।
यह तो हैं सभी तीर्थों में सब से खास।।

सोलह संस्कार गौ के साथ ही पूर्ण कहलाते।
इन संस्कारों के बिना हम अपूर्ण ही रह जाते।
पुराणों में गाय है मोक्ष का द्वारा।
सेवा कर समस्त पापों,संतापों से पातें हैं छुटकारा।।

गाय का गोबर है लाभकारी।
उपले, किटाणुओं और रोगों को मिटानें में है चमत्कारी।।
गोबर में है अद्भुत शक्ति।
मलेरिया, मच्छरों को भगानें की है शानदार युक्ति।।
गाय के गोबर के प्रयोग से बंजर भूमि की भी उपजाऊ क्षमता बढ़ती।
फसलों को हरा भरा कर किसानों में दुगुना उत्साह है बढ़ाती।।
गाय के दूध से बनी वस्तुएं सभी जनो को है भाता
दूध,दही, मक्खन,भी सभी जनों को है सुहाता।।

गाय हमारे आत्मसम्मान का है गौरव।
प्रेम और संस्कृति का है सौरभ।।
गौ हत्या करना है महापाप।
गौ को बूढ़ा होनें पर बाहर कर देना है अभिशाप ।।
गौ हत्या करनें वालों को बख्सा नहीं जाएगा।
उनके दुष्कर्मों का परिणाम प्रकृति से स्वयं मिल जाएगा।।
गाय का अपने माता पिता कि तरह हमेशा करो सम्मान।
जग में उनकी सेवा कर पा जाओगे मनोइच्छित वरदान।।




मौसम

मां बोली तुम्हें आज मौसम के बारे में बतलाती हूं।

तुम्हारा ज्ञान बढ़ाकर मनोरंजन करवाती हूं ।।

एक  वर्ष में मौसम है चार।

आओ इन के बारे में चिन्तन मनन कर के करें विचार।।

गर्मी सर्दी पतझड़ और बरसात।

इनके सामने इन्सान कि क्या है बिसात।।

 यह मौसम बारी-बारी से हैं आते। 

फरवरी मार्च-अप्रैल और मई वातावरण में गरम हवा हैं लाते।।

दिन के समय शुष्क और गर्म लू है चलाते।

 इन्द्र के कोप से हमें है झुलसाते।

ग्रीष्म ऋतु के महीनें ये हैं कहलाते।

प्यास से हमें कुम्हलाते, और सताते।।

 वातावरण में  कीडे मकौड़े, और फंगस के कारण मक्खी , मच्छर, पैदा  कर मलेरिया,हैजा,ढिगू, चिकनगुनिया है फैलाते।।

भीष्म गर्मी से हर तरफ त्राहीमाम है मचाते।

भारत में सौर किरणें समानांतर है होती ।

हमें गर्मी के भयंकर प्रकोप से है डराती ।

ज्यादा मात्रा में पानी को पीएंगे।

 शरीर में  विषैले तत्व  नहीं पनप पाएंगे ।

गन्ने का रस और नींबू का रस अधिक मात्रा में पिएंगे । 

सेहत में सुधार पा कर खुशी से मुस्कुराएंगे।

घर से बाहर जाते समय लस्सी छाछ को पी कर जाएंगे ।

सारा दिन चुस्ती और मस्ती से हर काम पूर्ण कर पाएंगे।।

 आम कटहल तरबूज आदि फलों को खाएंगे तो सारे दिन तरोताजा हो जाएंगे।।

 जून जुलाई-अगस्त सितंबर यह बारिश के महीने है कहलाते ।

वर्षा ऋतु के नाम से है  पहचानें जाते ।

दक्षिणी गोलार्ध में भारत की ओर हवाएं तुफान हैं मचाती ।

यह दक्षिणी पश्चिमी हवाएं है कहलाती ।

मानसून का मौसम भी है कहलाती।।

 अक्टूबर,नंवबर ,दिसंबर जनवरी सर्दियों का मौसम है कहलाते।

शीत लहर ठंडी और खुश्की ला कर हमें है डराते।।

हमारी त्वचा को नुक्सान है पहुंचाते।।

शरीर को गर्मी और ऊर्जा देने  वाले  पैदार्थ हमारे शरीर को ऊर्जा  हैं देतें । 

निश्चित मात्रा में सेवन करनें से हमें रोग से हैं बचाते।।

तिल, गुड़,मूंगफली,

बाजरे कि रोटी और साग।

उन सभी पैदार्थो को खा कर मनुष्य का दिल हो जाता है बाग बाग।

 इस मौसम में स्वास्थ्य सम्बन्धी बिमारियों का है बोलबाला।

कोताही न बरतने पर यह तो दिखाता है अपना जलवा।।

आहार में शहद  आंवला और बाजरा सेहत के हैं आधार।

प्रतिरोधक क्षमता के हैं मजबूत भंडार।।

स्वच्छंदता से मुस्कुरानें दो।

स्वच्छंदता से मुस्कुरानें दो।

बचपन के अद्भुत क्षणों का आनन्द उठानें दो।

मां मुझे खेल खेलनें जानें दो।

खेल खेलनें जानें दो।।

रोक टोक छोड़ छाड़ कर ,

सपनों के हिंडोलों  में खो जानें दो।

मन्द मन्द मुस्कान होंठों पर आने दो।।

मुझे पर काम का बोझ मत बढ़ाओ।

पढाई में अभी से मत उलझाओ।।

 नन्हे कोमल,भावुक,सुकुमार को यूं और न सताओ।

मुझ पर शब्द भेदी बाण मत चलाओ।

अपनें तीक्ष्ण प्रहारों से मुझे मत कुम्हलाओ।

मुझे खेल खेलनें जानें दो।।

धूल मिट्टी में खेलनें से मत रोको।

मेरे मन में उठते आवेगों को मत टोको।

मुझे निर्भय हो कर स्वच्छंद वातावरण  का लुत्फ उठानें दो।।

खेल खेलनें जानें दो

बसंत के  बाद ग्रीष्म तो आएगा   ही।

नासमझी के बाद समझ तो आएगा ही।।

बचपन के बाद योवन तो बहार लाएगा ही।

हर क्षण हर पल को मस्ती से जीनें दो।

खेल खेलनें जानें दो।

मुझ पर अपने स्नेह वात्सल्य का भरपूर प्रेम  बरसने दो।

प्यार भरे हाथ के स्पर्श को हृदय के  हर कोनें में बिखरनें दो।।

प्रकृति की मधुर छटा का आनन्द उठाने दो।

गिर कर सम्भलनें का मौका दो।।

 हर रात के बाद प्रातः को खिलनें का मौका दो।

नदी तट  पर बालू की रेत पर घर बनानें दो।

कल्पनाओं में मधुर स्मृति चिन्हों को उपजानें दो।

बचपन के मासूमियत का आनन्द उठाने दो।।

खेल खेलनें जानें से मत रोको।

पाबंदी भरा अंकूश मत थोपो।।

नन्हे नन्हे हाथों से चित्र कारी का भरपूर उत्सव मनानें दो।

दोस्तों संग शरारत का मजा उठाने दो।

खुले वातावरण में खिलखिलानें दो।

वृक्षों पर बेरी के पेड़ों को चखनें का स्वाद लेनें दो।।

मुक्त कंठ से खेलकूद का जश्न  मनानें दो।

मां बस  अब खेल खेलनें जानें भी दो ।।

शिक्षक


शिक्षक हैं हमारी आन,बान और शान।
हम दिल से सदा करते हैं उन का सम्मान।।
वे हमें देतें हैं सत्बुद्धि,शिक्षा और ज्ञान।
हमारे शिक्षक सभ्य और संस्कारी।
नम्रता की मुर्त और हितकारी।
उन की संगत हमें लगती है प्यारी।।

ऊंगली पकड़ कर लिखना सिखलाते।
मां की ममता जैसा आभास करवाते।।
बार बार अभ्यास की राह सुझाते।
हर शब्द,वाक्य,स्वर,वर्णों का क्रम है सिखलाते।
श्रूतलेख का हर रोज अभ्यास है करवाते।
बारंबार लिखनें का आभास है करवाते।।
वे लिखनें का सही तरीका हमें समझाते।।
आनाकानी करनें पर हल्का रोब है दिखलाते।
अपनत्व भरा व्यवहार हम से अपनाते।।

हमारे शिक्षक जन तो हैं गुणोंकी है दिव्य खान।।
वे तो हैं शालीनता की अद्भुत पहचान।।
हम शिक्षकों का दिल से करतें हैं सम्मान।।

शिक्षक जनों की छत्र छाया में रह कर हम सीख पातें हैं ज्ञान।
चिन्तन,मनन,और श्रवण के सभी सोपान।।

शिक्षक जन हैं हमारी आन,बान और शान।
हम दिल से करतें हैं उनका आदर सम्मान।।
वे तो हैं गुणों की खान।
शिक्षक जनों से है हमारा रिश्ता प्यारा।
माता पिता की तरह न्यारा।।
चरणों का स्पर्श कर हम उन्हें करतें हैं प्रणाम।
हमारे शिक्षक अति सभ्य और महान।।










थाली में खाना जूठा मत छोड़ो

थाली में खाना जूठा मत छोड़ो।

आवश्यकता से अधिक खानें कि आदत से पीछा छोड़ो।।

अन्न में होता है अन्न पूर्णा का निवास।

जूठन बचाना होता है बर्बादी का वास।

अन्न पूर्णा का मत करो अपमान।

नहीं तो कोई भी तुम्हारा जग में कभी नहीं करेगा सम्मान।।

अपनें छोटे भाई बहनों को भी यह बात समझाओ।

भूख से कम खानें की आदत को अपनाओ।।

अपनें भोजन का कुछ भाग जरूरत मंद को दे डालो।

अपनें मुकद्दर को नेक काम करके बदल डालो।।

थोड़ा थोड़ा करके अन्न कि बचत कर  अपने जीवन को सुखमय बनाओ।

हफ्ते में एक दिन झुग्गी झोपड़ियों का चक्कर लगाओ।।

अपनें हाथ से दान कर  अपनें जीवन को जगमगाओ।

दूसरे की पीड़ा को समझ कर उन के दुःख में काम आओ।

उनकी मदद के लिए सबसे पहले आगे आओ।।

अपनें साथियों को भी इस नेक काम में शामिल करके दिखाओ।

अपनें  परिवार और उनके जीवन में भी खुशहाली बिखराओ।

हर वस्तु की बचत करना जब तुम सीख जाओगे।

कामयाबी के शिखर तक तब तुम पहुंच जाओगे।।

पानी,बिजली,सफाई और बचत को अपनी आदत में शामिल कर डालो।

इस नेक काम को करनें कि पहल अपने मोहल्ले से कर डालो।।

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नई सदी का भारत

नई सदी का मानव बनेगा महान।

शान्ति दूत बन कर  सभी का करेगा कल्याण।

भ्रष्टाचार कि राजनीति करनें वालों पर  कड़ा रुख अपनाएगा।

भाई भतीजावाद, चापलूसी से मुक्ति दिलवाएगा।।

आंतकवाद फैलानें वालों को अपनें देश से बाहर करवाएगा।

कर्मयोग की राह पर चलने वाला ही मां भारती का सच्चा सपूत कहलाएगा।

अपनें प्राणों का उत्सर्जन करनें पर भी नहीं हिचकिचाएगा।।

अशिक्षा और ग़रीबी से समाज को वहीं मुक्त करवाएगा।।

वहीं सच्चे लोकतंत्र को स्थापित कर पाएगा।

जन जन को तनाव से मुक्ति दिलवा पाएगा।।

भ्रष्टाचार रुपी रावण का वध कर पाएगा।

आतंकवाद, नस्लवाद को खत्म कर पाएगा।।

देश को विश्व का ताज पहनाएगा।

अपनी पहचान स्वर्णिम अक्षरों में लिखवाएगा।