गुरु तोताराम चिटकू और बरगद का पेड़

सुंदरवन में बहुत सारे जीव जंतु रहते थे। उस घने जंगल में एक नदी के पास बरगद का एक बहुत बड़ा वृक्ष था । वहां पर जंगल के जीव जंतुओं ने अपना सभा स्थल बनायाहुआ था। जंगल में सभा के आयोजन के समय जो भी निर्णय लेते थे वह सभी उस वृक्ष के नीचे ही… Continue reading गुरु तोताराम चिटकू और बरगद का पेड़

छम छम आई वर्षा रानी

छमाछम आई वर्षा रानी।रिम झीम पानी कि फ़ुहारें बरसा कर लाई पानी।।मेघों नें भी बारिश का स्वर सुन गरज गरज कर, साथी बादलों को बुला कर आनन्द का बिगुल बजाया।।वर्षा रानी को अपनें साथ नृत्य करनें के लिए बुलाया।।कोयल,मैना,कबूतर,गौरैया,चूं-चूं चिड़िया।सभी पक्षियों नें मधुर संगीत का साज सुनाया।।छमाछम आई वर्षा रानी,रिमझिम पानी कि फुहारें बरसा कर… Continue reading छम छम आई वर्षा रानी

कहा-सुनी

 कक्षा में आते ही मास्टर जी बोले  बच्चों अपना अपना पैन निकालो। अपनी अपनी डफ़ली अपना अपना राग अलाप, श्याम पट पर अनाप शनाप न लिख डालो।। तुम सबको प्रश्न लिखवा आज तुम्हारा  मूल्यांकन  करता हूं। प्रश्न जो हल कर पाएगा उसे पारितोषिक  दिलवा उसका मनोबल बढाता  हूं।। अध्यापक बोले बच्चों मैं   औफिस का… Continue reading कहा-सुनी

वास्तविकता का आभास

सलोनी और नैना दो सहेलियां थी। वह दोनों एक मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखती थी। माता पिता ने उन्हें सभी सुविधाएं दी थी जो कि एक बच्चे को मिलनी चाहिए। वह दोनों दसवीं कक्षा में आ गई थी। उनके माता-पिता ने उन्हें आगे पढ़ने के लिए दूसरे स्कूल में दाखिल करवा दिया। उनके माता पिता… Continue reading वास्तविकता का आभास

“बातचीत कि कला”

बातचीत कि कला हो जिस की निराली। जीवन में  छलके  जैसे मधु रस कि प्याली।।  कम से कम शब्दों में दूसरों के तथ्यों को समेटनें कि कला हो न्यारी। आवश्यक जानकारी   उपलब्ध  करवाने कि क्षमता हो जिसमें सारी।। मन के भावों को अभिव्यक्त करनें कि कला है सिखलाती। दुसरों के विचारों को ग्रहण करनें… Continue reading “बातचीत कि कला”

खेलखिलाड़ी खेल

खेल खिलाड़ी , खेलखिलाड़ी  खेल खिलाड़ी खेल। मुस्कुराहट के भाव लाकर , बिना संकोच, सहयोग और तालमेल से , मित्रताऔर भाईचारे का समावेश बना,  बिना हिचकिचाहट,बिना घबराहट के सावधानी और धैर्यपूर्वक खेलों में डट  कर  खेलो खेल।। एक दूसरे का हाथ थाम कर ,  मन में नमी उमंग जगा कर सभी को साथ ले कर… Continue reading खेलखिलाड़ी खेल

सोच का दायरा – भाग – 2

सौरभ सुबह सुबह जल्दी सभी कार्यों से निवृत्त हो कर स्कूल जाने के लिए तैयार हो जाया करते थे ।वह एक हाई स्कूल में मुख्याध्यापक थे । छोटा सा परिवार था। अपनी पत्नी को कह देते थे कि जल्दी से खाना बना दिया करो मुझे जल्दी स्कूल पहुंचना होता है। उनकी पत्नी रेखा सुबह उठकर… Continue reading सोच का दायरा – भाग – 2

बिल्ली मौसी

बिल्ली मौसी ,बिल्ली मौसी आई।रीनु की रसोई में दबे पांव घुस आई।। बौखला कर ‌लगी ढूंढनें दूध मलाई। कभी इधर, कभी उधर, चारों तरफ नजरें दौड़ाए।कोई रसोई में आ कर न धमक जाए।मुझे पर डंडा न बरसा जाए।।फुदक फुदक कर सैल्फ पर चढ़ लगी चक्कर लगानें।भूख के मारे निढाल बिल्ली लगी अपनी किस्मत आजमानें।।अचानक रीनू… Continue reading बिल्ली मौसी

आपसी सूझ-बूझ

एक छोटा सा गांव था।गांव के लोग ईमानदार थे।उस गांव में रामानन्द नया नया आया था।उसकी बिजली विभाग में नई नई नौकरी लगी थी।उसने अपनी पत्नी और बेटे को भी गांव में बुला लिया था।उसका बेटा छटी कक्षा में शिक्षा ग्रहण कर रहा था।वह जब अपनें बेटे के साथ गांव पहुंचा टिंकू नें बहुत से… Continue reading आपसी सूझ-बूझ

गुरु तोताराम

एक बार की बात है एक घने जंगल में एक बहुत ही सुंदर पेड़ पर चिड़ियों का झुंड रहता था। चिक्की चिड़ियों के छोटे-छोटे बच्चे भी अपने मां के साथ दाना चुगने जाते थे। कभी-कभी चिड़िया अपने बच्चों को दाना चुगने में सहायता किया करती थी। एक दिन वह अपने बच्चों को दाना चुगने अपनें… Continue reading गुरु तोताराम