अमूल्य उपहार

शेरू कुछ दिनों के लिए शहर से अपनी मालकिन के साथ गांव आया था। वहां पर उसकी मुलाकात एक गांव में रहने वाले कुते वीरू के साथ हो गई। वह अपनी पूंछ हिला हिला कर अपनी मालकिन को चकमा देकर चुपचाप अपने दोस्त वीरू के साथ खेलने खेलने चला जाता। बड़ी-बड़ी आंखें भूरी आंखों वाला देखने में इतना सुंदर उसकी मालकिन सुरभि उसे वीरुके साथ खेलने देती। उसने वीरू को अपने घर के पास ही भोंकते देखा। वीरू भी काले रंग का भूरी भूरी आंखों वालाथा। वह सोचती चलो इसको भी यहां खेलने के लिए अपने जैसे साथी मिल गया। वह जब बाग में घूमने जाती तो शेरु को भी साथ ले जाती। वहां पर जाकर सुरभि अपनी सहेलियों के साथ बातें करने लगती। गांव का कुत्ता वीरु उसका दोस्त बन गया था। वह अपने शहर वाले दोस्त से बोला अरे यार तुम्हारे तो बड़े ठाठ है। तुम तो इन रईस लोगों के साथ इनमें के घरों में ठाठ से रहते हो जैसे कि तुम उनके बेटे हो। सुबह उठते ही वह तुम्हारा ब्रश करवाते हैं। तुम्हें नहलाते हैं शैंपू करते हैं फिर पाउडर छिडकतें है। तुम्हें ना जाने क्या-क्या खाने को मिलता है? महंगी महंगी वस्तुएं पनीर पिज्जा बर्गर और ना जाने क्या-क्या। सुबह शाम तुम्हें एक बादशाह की तरह सैर कराई जाती है। तुम्हें इतना प्यार किया जाता है।। एक हम हैं जो कहीं भी पड़े रहते हैं। कभी सड़कों पर कभी एक स्थान से दूसरे स्थान पर भोजन की तलाश में। जब किसी के घर की तरफ आते हैं तो कोई लाठी लेकर आकर हमें मारने दौड़ता है। कभी-कभी तो एक दो लाठी के प्रहार पड ही जाते हैं। खाने को मिलती है तो बस सूखी सूखी रोटियां। कभी-कभी तो भूखे ही रह जाते हैं।

कभी-कभी तो हम मालिक लोंगों को बताना चाहते हैं कि तुम्हारे घर में चोर घुस गए हैं पर वह लोग अंदर घोड़े बेचकर सोते हैं जैसे की अफीम खाकर सोते हो। तब तक नहीं उठते जब तक कि उन्हें तीन चार बार चाय पीने को न मिले। मेरे यार तुम्हें भी तो सोने के लिए खूब मोटे मोटे गद्दे बिछाकर सुलाया जाता है। हम तो बर्फ के दिनों में बाहर सर्दी में ठिठुरते रहते हैं।

एक बार मैंने सोचा शायद कोई रर्ईसजादा मुझे गोद ले ले। एक बार उस सेठ की गाड़ी में उनकी डिक्की में बैठकर उनके साथ शहर चले गया। लेकिन जैसे ही उनका स्टेशन आया तो उसे रईसजादे ने अपने नौकर को कहा कि यह किसका कुत्ता है? मुझ पर एक लाठी का प्रहार किया और नौकर को कहा कि इस कुत्ते से इतनी बदबू आ रही है। इसे बाहर करो। यह गाड़ी में कैसे आया?

शेरु की मालकिन के बुलाने पर शेरु घर वापिस आ गया। उसने नें ब्रैड का टुकड़ा शेरु को खाने को दिया। उसनें थोडा ब्रैड का टुकडा खाने के बर्तन के पास छुपा कर रख दिया। सुरभि ने उसे देख लिया कि अब इसका क्या करेगा देखती हूं। थोड़ी देर बाद उसने वह ब्रेड का टुकड़ा एक जगह छुपा कर रख दिया। दरवाजे पर दस्तक हुई बाहर जाकर दरवाजा खोलने गई तो सामने वीरू को देखकर चौकी। वह दरवाजे पर दस्तक देकर अपने दोस्त शेरू को खेलने के लिए बुला रहा था। सुरभि ने शेरु को वीरु के साथ खेलने जाने दिया। वह पहले उस स्थान पर गया जहां उसने ब्रेड का टुकड़ा रखा था। वह इतनी जल्दी से भागा कि कहीं वह उस से रोटी का टुकड़ा ना छीन लो। रोटी का टुकड़ा उसनें वीरु को दे कर कहा मेरे दोस्त जब तक मैं यहां हूं तुम्हें अपनी मालकिन के यहां से खाने को देता रहूंगा। मेरे दोस्त उदास ना हो एक दिन तुम्हें भी कोई गोद ले लेगा। तुम मेरे पक्के दोस्त बन गए हो। अगली बार जब मैं शहर से आऊंगा तो तुम्हारे लिए एक नया उपहार लेकर आऊंगा।

चलो दोस्त मेरे दिमाग में एक विचार आया है मेरी मालकिन की बेटी अपनी नानी के साथ बाहर घूमनें गई है। वह तुम्हें भी बहुत प्यार करेगी। वह अपनी मां से तुम्हें अपने साथ ले जाने के लिए जिद कर सकती है। हम दोनों शहर जाकर खूब मौज मस्ती करेंगे। शेरू उसके साथ खेलने चला गया। चलो कीचड़ में खेलते हैं।कीचड़ में खेलने से मैं भी तुम्हारे जैसा हो जाऊंगा। दोनों एक जैसे हो जाएंगे। े मेरी मालकिन मुझे नहलाएगी तब नलके के पास तुम भी मेरे पास आ जाना। तुम भी साफ हो जाओगे। तुम भी सुंदर बन जाओगे। वह दोनों मिट्टी में कीचड़ में खेलने चले गए। कीचड़ में सने हुए जब वापिस आने लगे तो शेरु को उसकी मालकिन खींचकर नलके के पास लेकर गई। तभी उसकी बेटी मिनी दौड़ती हुई सड़क से आ रही थी। उसकी नानी एक पडौसन से बातें करनें लगी। मुन्नी नें अपनी नानी का हाथ छुड़ाया और दौड़कर आते आते गाड़ी से टकराने ही वाली थी तभी वीरू ने उछल करके उसे उठा लिया। शेरु की मालकिन ने उसे मुन्नी को बचाते देख लिया। जैसे ही उसने मीन्नी को बचा कर सीढीयों के पास रख दिया। इस छीनाझपटी में उसकी टांग में चोट लग गई।

शेरु को छोड़ कर सुरभि वीरू के पास आई उसने नलके के पास ले जाकर वीरू को भी नहलाया। उसके पश्चात उसकी पट्टी की। उसनें शेरु को कहा कि तुम्हारा दोस्त भी तुम्हारी तरह सुंदर बन गया है। उसकी तरफ देखकर प्यार से मुस्कुराई। वह बोली चलो इस बार इसको भी शहर ले चलते हैं अब यह भी तुम्हारा दोस्त बन जाएगा। शेरू को तो मानो सारे जहां की खुशी मिल गई हो। वह वीरू की तरफ देख कर मुस्कुराया। यार तुम्हारी पुकार भगवान ने सुन ली। मेरी योजना विफल नहीं गई। मेरी और तुम्हारी पक्की दोस्ती। अब तुम भी मेरी तरह मेरी मालकिन के साथ रहोगे। सुरभि की बेटी की जान बचाने का उसे अमूल्य उपहार मिला था। वह वीरु को भी अपनें साथ शहर ले गई।

जैसी करनी वैसी भरनी

किसी गांव में एक ठग और एक चोर रहता था। चोर का नाम था रूपदास और ठग का नाम था धर्मदास। एक बार उस ठग नें चोर को देख लिया। ठग सोचने लगा कि क्या ही अच्छा होता वह चोरी कर के लाए और मैं इससे सब कुछ ठग लिया करूं? उसको हर रोज चोरी करते ठग देखा करता था। उसे पता लग गया था कि वह चोरी करके रुपए कमाता था। वह सोचने लगा यह अच्छा है इसके साथ दोस्ती कर लेता हूं।

एक दिन जब रूपदास एक बड़े से बंगले के पास चोरी करने घुसा तभी उसके सामने एक महात्मा आकर खड़ा हो गया। रुपदास उसको देखकर हैरान होकर बोला। क्या बात है मुझे अंदर क्यों नहीं जाने दे रहे हो? महात्मा रूपी ठग बोला देखो जो मैं कह रहा हूं उसेध्यान से सुनो। तुम एक चोर हो। तुम चोरी करने के लिए अंदर जा रहे हो। मुझे पता है। रूपदास बोला तुम्हें कैसे पता कि मैं एक चोर हूं। वह बोला मुझसे मत छुपाओ। छोटी मोटी चोरी तो तुम कर लेते हो। पर आज तो तुम एक बड़े से बंगले के पास चोरी करनें जा रहे हो अगर तुम्हें इन्होंने पकड़ लिया तो तुम जेल जाओगे। मैं तुम्हें महात्मा नजर आ रहा हूं लेकिन मैं महात्मा नहीं हूं। मैं एक ठग हूं। और तुम चोर तुम्हारा काम है चोरी करना। और मेरा काम है लोगों को ठगना। हुए ना हम चोर ठग मौसेरे भाई। अब मतलब की बात पर आते हैं।

तुम्हें अगर किसी ने देख लिया तो तुम कहना कि मैं चोरी करने नहीं आया था। मुझं मेंऔर मेरे दोस्त में शर्त लगी थी मैं कह रहा था कि मैं अंदर चोरी करने जाता हूं। महात्मा ने कहा कि तुम मत जाओ। अगर विश्वास ना हो तो आप बाहर जाकर उस महात्मा को देख सकते हैं। उसने मुझे अंदर आने से रोका था। जैसे ही वह चोर चोरी करने के लिए घुसा मालिक ने उसे पकड़ लिया और बोला चोरी करनें आए हो। वह बोला मैं चोर नहीं हूं। बाहर एक महात्मा जी हैं उन्होंने मुझे कहा था कि अंदर मत जाओ मगर मैं नहीं माना शर्त जो जीतनी थी हम दोनों में शर्त लगी थी कि कौन अंदर जा सकता है? बंगले का मालिक बोला देखूं कहां है तुम्हारा महात्मा। तुम झूठ बोल रहे हो। चोरी करने आए हो। बंगले का मालिक जैसे ही बाहर आया। साधु के वेश में एक महात्मा को देख कर हैरान हो गया।वह रुपदास के पास आकर बोला तुम ठीक कह रहे थे। रुपदास बोला मैं सचमुच ही चोर हूं। वह एक महात्मा है। वह एक अंतर्यामी बाबा है उसने मुझे कहा कि तुम एक चोर हो। तुम पकड़े जाओगे। मैंने उसकी बात नहीं मानी। बंगले का मालिक बाहर आ गया। उसने देखा बाहर एक महात्मा बैठकर तपस्या कर रहेथे। बंगले का मालिक बाबा जी को देखकर बोला बाबा जी आप यहां क्यों बैठे हो? मैं थोड़ी देर यहां पर आराम करने के लिए बैठ गया। यहां पर थोड़ी ठंड है। बाहर तो ज्यादा गर्मी है। थोड़ी देर विश्राम करने के लिए यहां पर बैठ गया था। बंगले का मालिक बोला आप अंदर चलकर बैठकर विश्राम कीजिए। बंगले के मालिक के साथ साधु महात्मा अंदर चले गए। मालिक ने उसका आदर सत्कार किया उसे खाना खिलाया। रुपदास की ओर देख कर कहा इन साधू बाबा नें मुझे कहा इस को छोड़ दो उनके कहने से मै तुम्हें छोड़ रहा हूं। नहीं तो तुम्हें आज पकड़कर पुलिस थानें ले चलता। बंगले के मालिक ने चोर को छोड़ दिया। साधू महात्मा जब वापस जाने लगा तो रास्ते में उसे वही ठग मिला। वह रुपदास से बोला भाई कैसी रही? मानते हो न मुझ को आज। अगर मैंने तुम्हें बचाया नहीं होता तो तुम पकड़ लिए जाते। रुपदास बोला भाई मेरे तुम ठीक ही कहते हो। धर्मदास बोला आज से हम दोनों मित्र बन गए हैं। वह बोला भाई मेरे मुझे रुपयों से क्या काम। थोड़ा बहुत तो कमाना ही पड़ता है जिंदा रहने के लिए। रूपदास उसको एक होटल पर ले गया उसने उसे खाना खिलाया। चोर चोरी करके लाता। हुआ ठग को कभी कभी कभार कुछ दे दिया करता था। इस तरह चोर चोरी करके लाता।। ठगको पता चल जाता। उसने सब कुछ पता कर लिया। उस के घर में कौन-कौन है। घर कहां है? सारी जानकारी हासिल करने लगा। वह भाभी की अनुपस्थिति में उसके घर जाता था।

रुपदास की पत्नी एक सिलाई सेंटर में काम करती थी। एक दिन जब रुपदास बाहर गया हुआ था तो सन्यासी बन कर धर्मदास उसकी पत्नी के पास आया और बोला। बेटी जरा अपना हाथ दिखाओ। वहधार्मिक विचारों कीथी। घोर अनर्थ कर दिया। वह बोली बाबा जी आप ये क्या बोल रहे हो? तुम्हारे पति गलत धंधे में शामिल हैं। वह चोरी तो नहीं करते। वह बोली महात्मा जी यह क्या अनाप-शनाप बोल रहे हो? मेरे पति कभी बुरा काम नहीं करते। मेरी शादी को 15 साल हो गए उन्होंने तो मुझे कभी नहीं बताया कि मैं चोरी में संलिप्त हूं। तुम तो गुस्सा हो गई बीवी जी। आप शांत हो जाइए। आप चुपचाप मेरी बात सुनिए। आप यह बात अपने पति को कहेंगी तो वह आपसे नाराज हो जाएंगे। ज्यादा गुस्सा मत हो। आप उन्हें सुधार सकते हैं। इंसान तो गलतियों का पुतला होता है। जरा सी कहीं चमक दमक देखी वही उस ओर आकर्षित हो जाता है। आपके पति सुधर जाएंगे। वह बोली मैं तुम्हारी बातों में आने वाली नहीं हूं। पहले मैं खुद परख कर बताऊंगी कि तुम ठीक कह रहे हो या गलत। वह बोला यह बात मेरे और तुम्हारे हम दोनों के बीच में रहनी चाहिए। अंदर जाकर साधू महात्मा को दक्षिणा देने लगी। वह बोला अभी मुझे दक्षिणा नहीं चाहिए। उस दिन मुझे दक्षिणा देनाजब तुम गलत साबित होगी। मेरी बात याद रखना।

रुपाली उदास रहने लगी। वह सोचने लगी मेरे पति ने तो मुझे कभी नहीं बताया कि मैं चोरी करता हूं। उस साधु महात्मा की बात अगर सच हो गई मैंने तो अपने पति पर आंख मूंदकर विश्वास किया। परखनें में भी कोई बुराई नहीं है। अगर जांच नहीं करूंगी तो मुझे सकुन नहीं मिलेगा। मुझे कभी चैन नहीं मिलेगा और ना ही रात को अच्छे ढंग से नींद आएगी

उस दिन के बाद वह अपने पति पर नजर रखने लगी। उसका पति कहां जाता है? क्या करता है? एक दिन वह 4:00 बजे उठकर बोला भाग्यवान आज मैं व्यापार के सिलसिले में बाहर जाना चाहता हूं। वह बोली आज मुझे भी ले चलो। उसका पति बोला नहीं फिर कभी चलेंगे। जैसे ही रूपदास गया उसने अपने पति का पीछा किया। उसे सब कुछ पता चल गया कि वह कोई व्यापार नहीं करता। वह तो चोरी का धंधा करके अपनी आजीविका चला रहा था। उसके मन को बहुत ही ठेस लगी परंतु रोने से समस्या का हल तो नहीं निकल सकता था। वह सोचनें लगी वह भी तो पढ़ी-लिखी है। सिलाई करके कमा लेती है। कुछ ट्यूशन वगैरा पढा के गुजारा कर लेगी।

शाम को जब रुप दास घर आया तो उसकी पत्नी बोली। आप मुझे बताओ आप कहां व्यापार करते हो? वह बोली मुझे भी तो पता होना चाहिए कि आपका मालिक कौन है? आपका किस चीज का व्यापार है। पहले तो आप एक व्यापारी के पास काम करते थे। आप ने इतना बड़ा बंगला गाड़ी सब कुछ कहां से खरीदा इतनें रुपये कंहा से कमाए? वह बोला बेगम आज तुम्हें क्या हो गया? मैं कहीं भी काम करूं? तुम्हें इससे क्या मतलब। वह बोली क्यों मतलब क्यों नहीं। मैं तुम्हारी बीवी हूंव बीवी को हक होता है पूछने का। आज आपको बताना ही पड़ेगा वह बोला मेरा एक जगह का व्यापार थोड़ी है मैं तो जगह-जगह पर व्यापार करने के लिए इधर उधर जाता रहता हूं।

रुपाली उदास हो गई। दूसरे दिन वह ठग महात्मा बनकर आया। वह साधू महात्मा के पैरों पर गिर बोली बाबा जी आप ठीक कहते थे। मेरा पति चोरी का धंधा करता है। मैं ईमानदारी से काम करती रही। मेरे पति ने तो मेरी छवि को धूमिल कर दिया। वह अब भी सुधर सकते हैं। इसके लिए तुम्हें कुछ उपाय करने होंगे। तुम्हारे ऊपर शनि का प्रभाव है।तुम्हेंं 6 महीने तक पाठ करवाना होगा। रूपाली नें भी 6 महीने तक उस साधू की बातों में आकर 6 महीने तक उसने अपने घर का सारा रुपया उस महात्मा पर लुटा दिया।

एक दिन वह बैठी बैठी सोचनें लगी। आज 6 महीने हो गए मगर मेरे पति में मुझे कोई सुधार नजर नहीं आया। कहीं यह बाबा भी तो मुझे धोखा देकर ठगी करके अपनी तिजोरी को तो नहीं भर रहा है। उसने मन में दृढ़ निश्चय किया कि वह जिस तरह अपने पति की जांच कर रही है वह साधु बाबा पर भी नजर रखेगी। वह सचमुच में उसे ठग कर उसका उल्लू सीधा तो नहीं कर रहा है। एक चोर और दूसरा ठग।

उसने उस साधू पर कड़ी नजर रखनी शुरू कर दी। एक दिन जब रुपाली बैंक से रुपये निकलवा कर आई तो थोड़ी देर बाद ही वह साधू महात्मा आए वह आकर बोले। बेटी क्या तुम मुझे बैठनें के लिए नहीं कहोगी? मैं यहां से गुजर रहा था सोचा मिलता चलूं। वह बोली इस वक्त तो मैं बाहर जा रही हूं। उसने जल्दी से रुपयों की पोटली अलमारी में रख दी। धर्मदास बोला घर में आई लक्ष्मी का अपमान नहीं करते। वह बोली मैं कुछ समझी नहीं। साधु महात्मा बोले बेटी मैं तुम्हें समझा रहा था कि घर में हर रोज इतनी धन-दौलत तुम कमाते हो। आप पर तो प्रभु की इतनी कृपा है। कभी साधु महात्माओं को भी दान पुण्य करा देना चाहिए। वह जल्दी में अंदर गई और ₹60 का नोट बाबाजी के हाथ में थमा कर बोली यह लो बाबा जी। बाबा जी ने मुस्कुराते हुए वह नोट पकड़ लिया। वह बोला कि मैं इस वक्त इसलिए आया था कि मैं तुम्हें बताया दूं कि इस गुरुवार को पूजा पाठ का बड़ा ही शुभ दिन है। उस दिन तुम पूजा-पाठ करवा सकती हो।

शाम को रूपाली जब घर आई तो वह सोचने लगी कि मुझे अब इस साधु महात्मा पर कुछ कुछ शक होने लगा है। जिस दिन वह दोबारा एटीएम से रुपए लेकर लौटी शाम को फिर साधू महात्मा आ कर बोला परसों वीरवार को पूजा का शुभ मुहूर्त है। थोड़ी देर के लिए पूजा में गहनों भी रख देना। एक गहने का ही दान करना। ज्यादा नहीं। थोड़ी देर तक गहनों पूजा में रखने हीं पड़ते हैं। उसने कहा ठीक है बाबा जी।

जो कुछ उसका पति कमा कर लाता वह बाबा जी को दे देती। वह सोचती चोरी का पैसा है। वह साधू बाबा भी फ्रॉड होगा चलो आज उसकी परीक्षा ले ही लेती हूं। शाम को जब बाबा आए वह बोली बाबाजी बाबाजी। मैंने पूजा की सामग्री रख दी है। मैंने अपनें गहनों भी थाली में रख दिए हैं। इनमें से केवल एक गहना ही आप को दान करेंगी। आपतो जानते ही हैं। मंहगाई का जमाना है। साधू महात्मा बोले कि तुम घबराओ मत।

रूपाली बोली मैं आपको चाय बना कर लाती हूं। वह चाय बनाने के लिए अंन्दर चली गई। बाबा ने देखा कोई उसे देख तो नहीं रहा है? उसने जल्दी से उन गहनों की मोबाइल से फोटो ले ली। और गिन गिन कर देखनें लगा। वह सब रुपाली देख रही थी। जब बाबा जी चले गए तो उसने सोचा मैं तो उस बाबा परयूं ही शक कर रही थी। यह तो सचमुच में ही देवता है सारे के सारे गहने तो यहीं पर है।

उसे याद आया कि बाबाजी तो उस दिन ही रुपए लेने आते हैं जिस दिन मैं एटीएम से रुपए निकालती हूं। उसने कैलेंडर में देखा। जिस दिन बैंक ग्ई उस दिन ही बाबाजी मांगने आए। उसके दिमाग में आ गया इस बाबा जी ने मोबाइल से इन गहनों की फोटो क्यों ली? बाबा जी नकली गहने यहां रख जाएंगे। उसे समझ में आ गया। और असली गहनें ले जाएंगे।

वह जल्दी ही तैयार होकर एक ज्वेलरी की दुकान पर गई। उसने ठीक वैसे ही नकली गहने ला कर पूजा के स्थान पर रख दिए। दूसरे दिन जब साधु महात्मा आए वह बोली बाबा जी आप इतने बड़े बाबा। आप से तो मैंने पूछा ही नहीं कि आप कहां रहते हो? कभी आपके घर आना हो। उस महात्मा जी नें बताया कि वह गांव से 4 किलोमीटर की दूरी पर एक नदी के पास एक छोटी सी कुटिया में रहता हूं। मेरा इस दुनिया में और कोई नहीं है। रुपाली बोली बोली बाबा जी कल तो आप पूजा करना रहने ही दो। मैं अगले वीरवार को आपको पूजा के लिए कहूंगी। तब तक मैं अपना जरूरी काम निपटा लेती हूं। आजकल सिलाई सेंटर में भी बहुत काम है। वह बोला कोई बात नहीं बीवी जी। जितनी जल्दी आप पूजा करवाएंगे उतनी जल्दी आपके पति पर से शनि की दशा समाप्त होगी।

दो-तीन दिन बाद वह चुपके से उस साधू महात्मा का पीछा करती गई। वह महात्मा के भेष में एक होटल में घुस गया। रूपाली ने साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढक लिया। वहां जाकर वह एक कोनें में बैठ गई। यह देख कर हैरान हो गई कि चाय की टेबल पर उस महात्मा के साथ उसका पति बैठा था। उस साधू महात्मा से बहुत ही हंस हंस कर बातें कर रहा था। वह उन दोनों की बातें सुनने लगी।

रूपदास बोला तुम तो मुझसे कभी रुपया नहीं लेते। वह बोला बाबूजी आपको क्या ठगना। मैं तो उधर का माल इधर करता ही रहता हूं। आप चिंता ना करें। आप जैसा नेक इंसान मैंने कभी नहीं देखा। मैं भला आप को क्यों ठगनें लगा? धर्मदास बोला मेरा काम है लोगों से ठगी करना। और तुम्हारा काम है चोरी करना। तुम अपना काम करते जाओ और मैं अपना काम। मैं ठग विद्या में कुशल हूं। चाय पीकर दोनों ने एक-दूसरे से हाथ मिलाया। रूपाली को अब सारी बात समझ में आ गई थी रुपाली के सामने उस ठग बनें साधू की सारी सच्चाई सामनें आ गई। शाम को जब उसका पति घर आया तो रुपाली अपने पति से बोली कि आप भी एक चोर हो। इस बात का पता मुझे आज लगा। जब मैंने आप दोनों को रंगे हाथ पकड़ा। एक चोर और दूसरा ठग। ठग आप को चूना लगाता रहा। आप को चोरी के लिए उकसाता रहा। वह सारे घर का भेद मालूम करके एक महात्मा का वेश धारण करके चोरी करने की नियत से यहां घुसा था। उसने मुझे बताया कि आपके पति चोर हैं। आपके पति पर शनि ग्रह है। उसको उतारने के लिए दान पुण्य करना पड़ेगा। मैं 6 महीने तक पूजा पाठ करवाती रही। एक दिन मैंने सोचा कि आज इस महात्मा साधू को चलकर देखती हूं कि वह कहां जाता है? कहीं वह मुझे धोखा तो नहीं दे रहा। वह इस होटल में आया और साथ में आप भी थे। तो मैंने आप दोनों को रंगे हाथों पकड़ लिया। आप दोनों की असलियत मुझे मालूम हो गई। आप अपने आपको जब तक पुलिस के हवाले नहीं करोगे तो मैं चल कर आप को जेल में डलवा दूंगी। रुपदास बोला मुझे माफ कर दो। मुझसे गलती हो गई। उसकी पत्नी बोली चोरी तो चोरी होती है। साथ में उस बहुरुपिए को भी मैं सबक सिखाऊंगी। वह घर के सारे गहने लूटने आया था। रुपाली को ठग की सारी असलियत साफ नजर आ गई थी।रुपदास पुलिस थाने में जा कर बोला। इन्सपैक्टर साहब आप मुझे गिरफ्तार कर लो। मैं चोरी कर के रुपया कमाता रहा। मैं अपनी देवी तुल्य पत्नी को धोखा देता रहा। मैं आप को सारा चोरी किया रुपया लौटा दूंगा।कृपया मुझे माफ कर दो। मै अपना गुनाह कबूल करता हूं।

रुपाली साधु की कुटिया के पास जाकर बोली बाबा जी आप तो ठहरे अकेले। आज देखो मैं किन्हें लाई हूं। अंदर आ जाओ बेटी। रुपाली बोली आप जैसे साधु महात्मा लोग तो दयालु होते हैं। मैं एक समाज सेविका भी हूं। यह मेरे साथ गरीब बच्चे हैं। इनके पास फीस देने के लिए रुपए नहीं है। उनकी मैडम ने कहा है कि जब तक यह ₹10000 नहीं लाते तब तक वह उन्हें स्कूल में प्रवेश नहीं देगी। मेरा दिल पिघल गया मैं तो इनकी सहायता करना ही चाहती थी। मैंने आप जैसा दयालु इंसान भी कभी नहीं देता देखा। मैंनें सोचा आप इन बच्चों को ₹10000 दे ही देंगे। साधू बोला मेरे पास ₹10000 कहां से आएंगे? रुपाली बोली पहले आप हमें कुछ खाना खिला दो। बड़े जोरों की भूख लग रही है। महात्मा बोला मैं तो मांग मांग कर गुजारा करता हूं। खाना कहां से लाऊं?

रुपाली बोली आपके घर में कुछ तो होगा ही। आप आदमी लोग किसी काम के नहीं होते। आओ बच्चों अंदर चले आओ। उसने सब बच्चों को सिखाया हुआ था कि उस बाबा के घर के अंदर सारी चीजों को उलट पलट कर देखना और खूब धमाचौकड़ी मचाना।

रूपाली बोली बाबा जी कोई बात नहीं मैं ढूंढ लेती हूं। अंदर गई तो हैरान हुई कि इतनी बड़ी पेटी में अनाज भरा हुआ था। बाबा जी आप लाते हो आपको पता ही नहीं होता। उसने खाना बनाया और बच्चों को भी भरपेट खाना खिलाया। बच्चों ने उसका संदूक खोला उसमें इतने सारे रुपये देखकर हैरान हो गए । साधु महात्मा ने एकदम ट्रंक को बंद कर दिया। उसकी तरफ देख कर बोला याद आ गया मैं तुम्हें ₹10000 देता हूं। रूपाली ने सब कुछ देख लिया।

वह बोली ठीक है बाबा जी उसने बाबा जी से ₹10000 ले लिए और बोली इधर का माल उधर तो करना ही पड़ेगा। वह उसकी तरफ देख कर बोले बेटी तुम क्या बोली? वह बोली मेरा मतलब है कि आपके पास भगवान का दिया सब कुछ है। अगर आप थोड़ा सा बच्चों को दे देंगे इसमें आपका क्या जाएगा? वह चुप हो गया। बच्चों को लेकर वह चली गई। वह हाथ मलता रह गया। सोचने लगा कोई बात नहीं कल उससे उसके सारे गहने लेकर आऊंगी।

दूसरे दिन रुपाली के घर पहुंचा। बीवी जी क्या आप पूजा के लिए तैयार हैं? रुपाली बोली क्यों नहीं मैं तैयार हूं। आप पूजा शुरू करो। वह उसकी तरफ देख रहा था कि कहीं उसे कल सब कुछ मालूम तो नहीं पड़ गया। नहीं उसने मेरे रुपये नहीं देखे। बच्चों ने ही देखे थे। रूपाली ने ऐसा महसूस करवाया जैसे कुछ हुआ ही ना हो। वह पूजा करने लगा। रूपाली ने असली गहनों की जगह सब नकली गहनें रख दिए थे। उसने वह सब नकली जेवरात अपने बैग में डालें और उसकी जगह उस साधु महात्मा ने भी नकली गहने वहां रख दिए। पूजा समाप्त करने के पश्चात वह साधू बोला आपके पति पर से सदा के लिए शनि ग्रह खत्म हो गया है। वह भी व्यंग्य कस कर बोली यह ग्रह महात्मा जी अब आपके ऊपर चढ़ गया। वह बोला यह क्या बोल रही हो? वह बोली सच महात्मा जी मैंने सुना है जिस पर से यह ग्रह उतरता है दूसरे व्यक्ति पर चढ़ जाता है। मैं भी एक पंडित की बेटी हूं। मेरा भी कथन असत्य नहीं होगा। वह चौक और उसकी तरफ देखने लगा।

वह बोली साधू महात्मा जी आप तो ऐसे डर गए जैसे मैंने सच ही कहा हो। मैं तो झूठ बोल रही थी। वह हंस कर बात टाल गई। बाबा जी आप का भगवान भला करे आज तो मैं आपको दक्षिणा भी जरूर दूंगी उसने ₹2000 का नकली नोट उस ठग महात्मा को पकडा कर बोली धन्यवाद। आप जैसा परोपकारी महात्मा मैंने कभी नहीं देखा। जो आप ने मुझ गरीब पर इतनी दया की।
आप थोड़ी देर बैठ कर टीवी देखो। मैं चाय बना कर लाती हूं। उसने फोन करके पुलिस इंस्पेक्टर को घर पर ही बुला लिया था। उसने पुलिस इंस्पेक्टर को कहा था कि आप साधारण वेशभूषा में हमारे यहां पर आइए। वह पुलिस इंस्पेक्टर जब रूपाली के घर पहुंचे तो वह बोली साहब धन्यवाद। चाय पीने के पश्चात साधु महात्मा बोले बेटी अब मैं अब चलता हूं। जो साहब आए थे वह बोले बाबा जी आपको मेरे घर पर भी पूजा करने चलना ही पड़ेगा। मेरा घर यहां से 3 किलोमीटर की दूरी पर है। मैं तो आपको अपने घर में ही एक छोटा सा कमरा दे दूंगा। आप वहां पर आराम से इधर का माल उधर करना। ठग महात्मा फिर भी नहीं समझा। महात्मा को लेकर जब पुलिस थाने पहुंचा तो उसे अंदर हवालात में बंद कर दिया और बोला इंस्पेक्टर बोला कहो कैसी रही। ठगी करनें वालों को हमेशा दन्ड मिलता है। रुपाली के पति को 1 साल की कैद हुई उसने अपना गुनाह कबूल कर लिया था। इसलिए पुलिस ने उसे 1 साल की सजा दे कर छोड़ दिया। उसके बाद उसने कभी चोरी नहीं की।

कौवी की सूझबूझ

एक नदी के किनारे पर बहुत दूर से एक संपेरा सांप पकड़ने आया हुआ था। उस संपेरे नें तालाब पर खाना खाया पानी पिया। उसे वहां पर तभी एक सांप आता दिखाई दिया। उसने सांप को पकड़ने के लिए जैसे ही वह उछला पानी के दलदल में वह नीचे गिर गया। उस ने सांप को वृक्ष की कोटर में जाते देख लिया। वह सहायता के लिए चिल्लाने लगा। मगर उसे बचाने वाला वहां पर कोई नहीं था।

संपेरा जोर-जोर से चिल्लाने लगा। मुझे बचाओ मुझे बचाओ। उसके चिल्लाने की आवाज एक किसान ने सुनी जो कि वहां से जा रहा था। वह किसान नदी में कूद गया और उसने संपेरे को बचा लिया। संपेरे ने कहा कि आज तुमने मेरी जान बचाई है मैं भी तुम्हारी सहायता करूंगा। जब भी तुम मुझे पुकारोगे मैं तुम्हारी सहायता करने अवश्य आऊंगा। उसने किसान को अपने घर का पता दे दिया। वह सांप उस तालाब के पास एक पीपल के पेड़ पर रहता था। उस पेड़ पर कौवा और कौवी का जोड़ा भी रहता था। सांप बड़ा ही दुष्ट था वह कौवी के अंडो को खाने के लिए उस वृक्ष की कोटर में आ जाया करता था। और पानी में मछलियों को पकड़ने के लिए चला जाता था। कौवा और कौवी यह देखकर बड़े ही दुखी होते थे। कौवे सोचने लगी कि इस सांप से कैसे बचा जाए। इस सांप से मैं अपने बच्चों की रक्षा कैसे करूं? एक दिन की बात है कि राजा अपने बेटे के साथ वहीं पर तालाब पर नहाने आया हुआ था। शाम का समय था। राजा जल्दी से नहा कर चलने ही लगा था उसके बेटे ने कहा पिताजी आप घर चलो। मैं थोड़ी देर बाद अपने दोस्तों के साथ खेल कर आता हूं। राजा घर वापिस आ गया उसके दोस्त दौड़ते-दौड़ते आए उन्होंने देखा पानी में सूरज की परछाई पड़ रही थी। उसके दोस्त बोले देख राजू सूरज तालाब में गिर गया है। वह दौड़ लगाने लगा। सचमुच में ही सूरज पानी में डूबा हुआ है। सबके सब बोले हमें सूरज को पानी से निकालना चाहिए। सब ने बहुत अधिक उपाय किये मगर उसको निकाल ही नही पाये।

बच्चों को भूख भी बड़े जोरों की लग रही थी तभी उन्होंने खेत में अपने पिता को खाना दे कर वापिस आते हुए अपनें दोस्त रघु को देख लिया बोले। हमें बड़ी जोंरों की भूख लगी है। उसके पास कुछ खाना बचा था। उसने वह खाना सब बच्चों में बांट दिया। बच्चे बोले चलो पानी पीते हैं। उसके दोस्त के पास एक छोटी सी बाल्टी थी उन्होंनें उस बाल्टी से पानी निकाला और पीने लगे। सारे के सारे दोस्त बोले हमें देरी हो रही है घर ना पहुंचने पर अमा हमें मारेगी। रामू ने अपने दोस्त को कहा कि इस बाल्टी को मुझे दे दो। मैं तुम्हारे घर पर यह बाल्टी दे दूंगा। बच्चे उस तालाब के पास ही एक मैदान था वहां पर रस्सा कस्सी खेलते थे। राजू नें देखा रोहित अपनी रस्सी वही भूल गया था। रस्सी मिलते ही उसके दिमाग में एक विचार आया क्यों न मैं बाल्टी में रस्सी डाल कर सूरज को निकाल लूंगा। उसनें जैसे ही बाल्टी मे रस्सी बांध कर उपर खींचा बाल्टी किसी चीज में फंस गई थी। वह जोर लगा कर खींचने लगा तभी सूरज भी डूब चुका था। वह पानी में देख कर मुस्कुराया वाह मैंने तो आज सूरज को निकाल ही लिया। बाल्टी को खींचा बाल्टी तो एक ओर गिर गई। वह दलदल में फंस चुका था। वह बिल्कुल तालाब मे गिरने वाला था। उसने बहुत ही कोशिश की मगर उपर नहीं निकल पाया। वह तालाब में गिर गया।

सारे के सारे बच्चे अपने घरों को वापस चलने लगे। रामू भी मानने वाला नहीं था। उसने बाल्टी में रस्सी बांधी और अपने हाथों से बाल्टी को खैंचनें लगा। एक बार उसे धक्का लगा। उसने देखा की बाल्टी ऊपर आ रही थी वह खुशी से उछल पड़ा उसमें सूरज को पानी से निकाल दिया है वह खुशी के मारे चिल्ला उठा था अंधेरे में सूरज डूबने वाला था सूरज दिखाई नहीं दे रहा था। राजू ने सोचा कि उसने सूरज को निकाल दिया है परंतु अचानक ही वह पानी के तालाब में गिर गया। उस तालाब में सांप मछलियों को पकड़ने के लिए आया हुआ था। सांप ने रामू को डस लिया। जब राम घर नहीं पहुंचा तो उसके सारे दोस्त और उसके पिता नें उसे ढूंढने की कोशिश की। तब उन्हें याद आया कि वह तो तालाब पर उनके साथगया था।

अपने बेटे को बहुत देर तक आते ना देखकर राजा उसी तालाब पर पहुंच गया। वहां पर पंहुच कर उसनें अपनें बेटे को तालाब में गिरे देखा। राजा जोर जोर से रोने लगा। मेरे बच्चे को कोई बचाए। वहां से एक किसान गुजर रहा था किसान ने देखा कि कोई व्यक्ति जोर जोर से रो रहा है। उसने उससे पूछा तुम क्यों रो रहे हो? उसने कहा मेरे बेटे को तालाब से बाहर निकालो। किसान नें जल्दी से पानी में से उसके बेटे को बाहर निकाला। उसने देखा कि इस बच्चे को सांप ने काट खाया है। उसने किसान को कहा मैं यंहा का राजा हूं। मेरे बच्चे को जो बचा देगा उसे ढेर सारे इनाम दूंगा। उसके चिल्रानें पर बहुत से लोग ईकटटठा हो गए थे। किसान को याद आ गया कि उसने एक सपेरे को उस तालाब से बचाया था। उस पर के पास मणि है। किसान नें राजा को कहा कि मैं एक सपेरे को जानता हूं। वह आपके बच्चे की जान बचा सकता है। वह किसान सपेरे के घर पहुंचा। किसान को देखकर सपेरा बोला मेरे दोस्त तूने मुझे एक बार बचाया था तेरे लिए मैं अपने प्राणों की बाजी भी लगा सकता हूं। किसान बोला आज मुझे तेरी जरूरत है। राजा के बेटे को सांप ने डस लिया है। उसे जल्दी बजाओ। सपेरा उसके साथ चलने के लिए तैयार हो गया।

सपेरा राजा के दरबार में पहुंचा। कौवी भी उड़ती उड़ती वहां पर पहुंच गई थी। कौवी भी सांप से बदला लेना चाहती थी। कौवे ने सूझबूझ से काम लिया जैसे ही संपेरे ने अपना थैला नीचे रखा कौवे उसका थैला लेकर उड़ गई। संपेरा चिल्लाया मेरी मणि मेरी मणि। राजा चिल्रानें लगा आज तो मैं अपने बच्चे को बचा नहीं पाऊंगा। उन्होंने कौवी को वृक्ष की कोटर में उड़ते देख लिया था। कौवे नें वह थैला उस पेड़ की शाखा पर रख दिया। राजा के सैनिक उस वृक्ष की शाखा पर चढ़ गए। जैसे ही थैला निकालने लगे वहां पर एक भयानक सांप को देखा। उन्होंनें लाठी से सांप को मार दिया। जल्दी से राजा के सैनिकों ने अपना थैला उस कोटर में से निकाल लिया और देखा मणि उसमें सुरक्षित थी।

संपेरा उस बच्चे को वहीं तालाब के किनारे पर ले आया था। उसने वहां पर मणि बच्चे के शरीर से लगाई जहां सांप नें काटा था। मणि ने सारा का सारा जहर चूस लिया। राजा का बेटा बच गया। कौवी ने अपनी सूझबूझ से अपनें बच्चों की रक्षा की।

सच्चा न्याय

बहुत पुरानी बात है कि एक छोटे से राज्य में एक राजा रहता था। वह राजा बहुत ही निर्दयी था। वह अपनी प्रजा को बहुत ही तंग करता था। लोग उसकी बात नहीं मानते थे
तो वह अपनी प्रजा के लोगों के साथ बूरा बर्ताव करता था। राजा का एक मंत्री था। मंत्री भी उसी की तरह चालाक था।

राजा को शिकार खेलने का बहुत ही शौक था वह जंगल में जा कर तीर कमान चला कर किसी ना किसी जानवर को मारकर खा जाता था। उसे उन बेजुबान प्राणियों पर जरा भी दया नहीं आती थी। एक दिन जब वह जंगल में शिकार को गया हुआ था तो उसने अपने मंत्री को कहा कि हमें बड़ी जोर की प्यास लगी है चलो अपने घोड़े को हम यही छोड़ जाते हैं। उन्होंने अपना घोड़ा एक वृक्ष के पास जाकर खड़ा कर दिया। दोनों पानी की तलाश में पैदल ही निकल पड़े। उन्हें कहीं भी पानी नहीं दिखाई दिया तभी उन्हें झाड़ियों में सरसराहट सुनाई दी। उन्होंने सोचा शायद शेर या जंगली जानवर होगा। वह दोनों बचाव के लिए झाड़ियों में छुप गए। उन्होंने वहां से देखा कुछ लोग पेड़ काटने आए हुए थे। वह पेड़ों को काटने ही लगे थे तभी वहां से गुजरते हुए एक साधु महात्मा ने उन पेड़ काटनें वाले लोंगों को देखा। उन्होंने पेड़ काटने वाले लोगों को कहा तुम्हें पेड़ों को काटना नहीं चाहिए। तुम बेवजह पेड़ों को काटते हो। जहां तो तुम्हें पेड़ लगाने चाहिए तुम वहां पेड़ो को काटने का घिनौना कार्य कर रहे हो? पेड़ हमारे वातावरण को स्वच्छ रखते हैं अगर पेड़ नहीं होंगे तो हमें भी शुद्ध वायु नहीं मिलेगी। यह हमारे पर्यावरण सरंक्षण है। हम नहीं सुधरेंगे तो हमारी आने वाली पीढ़ी भी हमसे यही सीख लेगी। सारे के सारे जंगली जीव जंतुओं का यह वृक्ष आवास स्थान स्थान है। तुम्हारे घर को कोई अगर नुकसान पहुंचाएंगा तो तुम्हें कैसा महसूस होगा? जंगली जीव जंतु भी नष्ट हो जाएंगे। पेड़ो को काटने से शुद्ध ताजा हवा भी नहीं मिलेगी। हम अपने बच्चों को समझाना चाहिए कि जिस प्रकार हम अपनें जन्म दिन पर बहुत सारी मिठाइयाँ व फल अपने दोस्तों को बांटते हो अगर हम अपने बच्चों को यह ज्ञान बांट दें कि अपने जन्मदिन पर एक-एक बच्चा एक-एक घर से एक भी पौधा लगा दे तो कितना पुण्य का काम होगा। हमारे पूर्वज भी हमें आशीर्वाद देंगे और हमारे ना रहने पर भी यह पेड़ सुरक्षित रहेंगे। कहीं ना कहीं हम ही पेड़ काटने के लिए जिम्मेवार हैं।।।

राजा ने यह शब्द सुने तो उसकी आंखों से आंसू आ गए मैं भी तो न जाने कितने जीव जंतु को यूं ही मारकर खाता रहा हूं। मुझे इन प्राणियों से सीख लेनी चाहिए आगे से मैं भी इन जंगल के जानवरों को नहीं मारूंगा। और किसी बेकसूर मनुष्य को भी सजा नहीं दूंगा उसने अपने राज्य में घोषणा कर दी कि कल अपने राज्य में एक सभा का आयोजन किया जाएगा। जिसमें सभी दूर दूर दराज आसपास से आए हुए लोग शामिल होंगे। राजा की सभा में सारे के सारे सभा जन उपस्थित हुए राजा ने कहा कि आज तक मैं तुम पर और जंगली जानवरों पर अत्याचार करता रहा। मैं किसी बेकसूर प्राणी या जीव को सजा नहीं दूंगा
। आज मैं अपने राज्य में घोषणा करता हूं कि मेरे राज्य में सभी लोगों को सूरज निकलने से पहले उठना होगा। जो देर तक सोता रहेगा और जो नहीं उठेगा उसे दंड दिया जाएगा। तुम भी जंगल में किसी भी जानवर को नहीं मारोगे या जंगलों को काटोगे जो मेरे राज्य में जंगलों को काटेगा उसको मैं कड़ी से कड़ी सजा दूंगा सभी लोगों ने कहा कि राजा जी हमें आपकी आज्ञा मंजूर है। उन्हें पता था कि राजा की आज्ञा तो पत्थर की लकीर होती है। माननी ही पड़ेगी नहीं तो राजा से सजा भूगतनें के लिए तैयार रहना पड़ेगा। राजा से सारी प्रजा के लोग थरथर कांपते थे ।

राजा जब अपने महल में आया तो उसने अपने बेटे को बुलाया बेटा एक दिन तुम ने हमें सलाह दी थी कि हमें जानवरों को नहीं मारना चाहिए बेटा तुम तो बहुत ही होशियार हो। मैंने उस दिन तुम्हारी बात नहीं मानी थी आज मैं तुम्हें आज्ञा देता हूं कि जो मेरा बेटा न्याय करेगा वह पत्थर की लकीर होगी। मेरे बाद तो तुम्हें ही राज पाट सम्भावना है। मैं तो वैसे ही बूढ़ा हो चुका हूं। सारे के सारे प्रजाजनों के सामने राजा ने यह बात कही थी । सब के सब लोग अपने घरों को जा चुके थे।

दूसरे दिन राजा का बेटा अपने दोस्त के साथ खेलते हुए बहुत ही दूर निकल गया। उनके स्कूल में छुट्टी होने की वजह से वह बहुत ही दूर निकल गए। उसका दोस्त एक गरीब लड़का था वह एक शिकारी का बेटा था। उसका घर समीप ही था। गप्पे मारते मारते हुए बहुत दूर निकल गए। उन्होंने अपने आगे जाते दो आदमियों की बातें सुनी। वह कह रहे थे कि बडा आया हम पर हुकुम चलाने वाला। सूरज निकलने के बाद उठेंगे तो हमें दंड देगा। हम क्यों उठे जल्दी? दूसरा बोला आहिस्ता बोल किसी ने सुन लिया तो क्या होगा? पहला आदमी बोला मैं कोई राजा वाला से नहीं डरता ऐसा डरपोक राजा और अत्याचारी राजा बिना वजह सभी को दंड देता रहता है। राजा के बेटे ने सुन लिया। धीरे धीरे चलने लगा। अचानक उस व्यक्ति को ठोकर लगी। उसने पीछे मुड़कर देखा और दूसरे आदमी को कहा यह तो राजा का बेटा है। दूसरे व्यक्ति ने अपने दोस्त को इशारा किया राजा के बेटे को आज मार ही देतें हैं। इसको मार कर भाग जाएंगे।

राजा को क्या पता चलेगा? शिकारी के बेटे नें राजकुमार की सारी बातें सुन ली थी। उसने राजकुमार को कहा कि इस रास्ते से जाना खतरे से खाली नहीं है। राजकुमार बोला कि मैं भी देखता हूं मेरे पिता को गाली देने वालों से मैं बदला लेकर रहूंगा।

उन दोनों आदमीयों ने राजकुमार को पकड़ लिया और उसकी खूब पिटाई की। उसके शिकारी दोस्त को एक विचार आया उसने तीर कमान एक आदमी की बाजू में मार दिया। दूसरा आदमी जैसे ही अपने साथी की बाजू से तीर निकालने लगा तो तभी राजकुमार को शिकारी के बेटे ने कहा कि यहां से जल्दी भागते हैं। दोनों जान बचा कर वहां से भाग आए।

दूसरे दिन राजकुमार का दोस्त सूरज निकलने से पहले नहीं जागा। उन्हीं आदमीयों नें राजा के पास शिकायत कर दी कि एक शिकारी का बेटा है जो सुबह सूरज निकलने से पहले नहीं जागा। राजा ने उसे पकड़कर लाने को कहा। उसे राजा के सामने पकड़ कर लाया गया। राजा ने उससे कहा कि तुमने हमारी आज्ञा का उल्लंघन किया है। इसका दंड भुगतना ही पड़ेगा। तुम सुबह क्यों नहीं उठे?

राजा शिकारी के बेटे को दन्ड देना ही चाहता था।, सारी की सारी प्रजा के लोग महल में उपस्थित थे। यह देखें लिए कई राजा क्या न्याय करता है? राजा ने शिकारी के बेटे को बीस कोड़े लगाए तभी वहां पर राजा का बेटा आ कर बोला पिता जी आपने उचित न्याय नहीं किया। आज फिर आपने बिना वजह किसी बेकसूर को सजा दी है। उसका पिता हैरान होकर उसकी तरफ देख कर बोला। उसने गुनाह किया है? इसने मेरी आज्ञा नहीं मानी है। वह बोला पिता जी आपने इस से एक बार भी पूछा कि इसको उठने में क्यों देरी हुई? वह बताने ही वाला था आपने उसे रोक दिया। मैं आपको बताता हूं कि कल मैं इस शिकारी के बेटे के साथ काफी दूर निकल गया था। तभी मैंने दो व्यक्तियों को बातें करते सुना वे दोनों व्यक्ति आपकी निंदा कर रहे थे। वह आपके बारे में ना जाने क्या-क्या कह रहे थे। वह कह रहे थे कि बड़ा आया सूरज निकलनें से पहले उठाने वाला। उसी समय एक आदमी का पैर फिसला वह गिरने ही वाला था। उसने पिछे मुड़ कर मुझे देखकर अपने दोस्त को कहा कि यह तो राजा का बेटा है। अगर इसने घर जाकर अपने पिता को सारी बात बता दी तो हमें फांसी हो जाएगी। इससे पहले कि राजा हमें सजा दे हम ही इसके बेटे को मार देते हैं। वे मुझे ही मार डालते लेकिन इस शिकारी के बेटे ने तीर चला कर उन दोनों को पीटने से हटा दिया। आदमी की बाजू में तीर लगा दूसरा व्यक्ति जैसे ही अपने साथी की बाजू से तीर निकालने लगा हम दोनों वहां से भाग आये।

राजा अपनी करनी पर पछता रहा था। मैंनें आज फिर गल्ती न्याय कर दिया। उसका बेटा बोला आज मैं सच्चा न्याय करना चाहता हूं आपने मुझे राजा बनाया। उसने अपने पहरेदारों को बीस कोड़े अपने पिता को लगानें का आदेश दिया। आज सही मायनों में असली न्याय हुआ। सारी प्रजाजन उसे देखने लगी। राजा ने कहा शाबाश बेटा। आज तुमने सचमुच ही मेरी आंखें खोल दी है। मैं आगे से हमेंशा सच्चा न्याय करूंगा। ं

संस्कार

मान्या 12वीं कक्षा की छात्रा थी। वह दौड़ते दौड़ते अपने पापा के पास आकर बोली पापा पापा। उसके पापा उसे हैरान होकर देख रहे थे। वह बोली पापा मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूं। वह बोले बेटी बोलो। क्या कहना चाहती हो? , वह बोली पापा हमारे पास सब कुछ है। मैं चाहती हूं आप इस बार मेरे जन्मदिन पर मुझे गाड़ी उपहार में दो। वह बोले बेटी नहीं, मैं तुम्हें गाड़ी ले कर दूंगा लेकिन एक शर्त पर। उसके पापा बोले बेटी अगर तुम इस बार अपनी कक्षा में टॉप करोगी तो मैं तुम्हें गाड़ी अवश्य लेकर दूंगा। वह बोली पापा मेरी सारी सहेलियां सभी के पास गाड़ी है। सभी अपनी अपनी गाड़ी में कॉलेज जाती है मगर मेरे पास गाड़ी नहीं है। मैं चाहती हूं आप मुझे इस बार गाड़ी अवश्य भेंट करें। इसके अलावा मुझे कोई गिफ्ट नहीं चाहिए। उसके पापा बोले बेटा मैंने तो तुम्हें कह दिया कि इस बार अगर तुम टॉप करोगी तभी मैं तुम्हें गाड़ी ले कर दूंगा।

मान्य गुस्सा होकर बाहर निकल गई। सबके पापा उनकी उनकी इच्छा को पूरी करते हैं। लेकिन मेरे पापा जो मुझे एक गाड़ी भी लेकर नहीं दे सकते। मान्या के पापा ऑफिस जाने की तैयारी कर रहे थे। उनके जहन में अभी तक अपनी बेटी मान्या की बातें गूंज रही थी पापा मुझे इस बार गाड़ी चाहिए। वो ऑफिस जाते जाते सोच रहे थे ठीक ही तो है हमारा जमाना कुछ और था।

उनके मानस पटल पर सारी घटनाएं सारी यादें ताजा हो गई। वह एक छोटे से गांव में अपने पिता और माता के साथ छोटे से घर में रहते थे। 7भाई बहन और कमाने वाला एक। उनके पापा वह भी सुबह से शाम तक खेतों में काम करते। सुबह सुबह मां चौका करने के बाद सब को चाय के लिए पूछती। पहले गोबर से चूल्हे को लिप पोत कर फिर गाय का दूध निकाल कर तब कहीं जाकर चाय पीने को मिलती। हमारे बच्चे तो जब तक बैड टी नहीं मिलती आंखे ही नहीं खोलते। सुबह सुबह 4 किलोमीटर चलकर कुएं से पानी भर कर लाना पड़ता था। पापा सुबह कुएं पर पानी भरने के लिए बाहर जाते। हम सब भाई बहन सूखे पत्तों और सूखी लकड़ियां इकट्ठे करते फिर हमाम जलाते बारी-बारी पंक्ति बनाकर नहाने के लिए लाइन लगाते। हम सब भाई बहनों को छः किलोमीटर पैदल चल कर घराट से आटा लाने जाना पड़ता था। तब कंही जा कर रोटी मिलती थी। रास्ते में खूब मौज मस्ती करते। बेरी के बेर खा कर अपना पेट भरते। खाना तो तब मिलता जब आटा घर आता। चूल्हे के पास सारे परिवार के लोग और बच्चे बैठ कर आग सेकने का लुत्फ उठाते। गोबर के उपले बना कर उन कोसुखानें के लिए रखते थे ताकि आग जलाने में काम आए। घर के सारे लोग मेहनत करके कमाते। शादी में भी जाना होता तो 6 किलोमीटर पैदल चलकर। जो खातिर होती। पतलो पर खाना खाने में जो आनंद आता था वैसा तो होटल के खाने में गैस और चूल्हो पर भी खाने में भी नहीं आता। आज तो नहाने के लिए गिजर का बटन ऑन किया। सब काम बैठे-बिठाए हो गया। इंसान तो बैठा बिठाए सुस्त ही बनेंगा। वह कहां से मेहनत करने की सोचेगा। रेडियो पर विविध भारती प्रोग्राम सुनते। 8:00 बजे सारे परिवार के लोग बैठकर हवा महल नाटक सुनते। रेडियो पर इन्तक्षारी सुनते। आजकल अपनें परिवार की तरफ देखो सबकुछ पीछे छूटता जा रहा है
किसी के पास एक दूसरे के पास बात करने के लिए भी वक़्त नहीं है। नाश्ते के लिए भी सौ बार आवाज उठानी पड़ती है। हम सब परिवार के लोग चटाई लगाकर एक साथ खाने का आनंद लेते थे। आज तो सब परिवार के लोगों के पास इकट्ठा खाना खाने के लिए भी वक़्त नहीं है। सब के सब लोग हर घर घर में जब मन किया चाय पीने के लिए भी इकट्ठे नहीं बैठेंगे। बैठेंगे तो चाय की चुस्की लेते हुए कोई अखबार लेकर बैठ जाएगा या मोबाइल। आजकल इस मोबाइल नें तो सब का बेड़ा गर्क कर दिया है।

सुबह को खाना या नाश्ते के लिए बुलाओ तो हाथ में मोबाइल। शाम को खाने के वक्त भी मोबाइल। बच्चे भी पीछे नंही हटते। चुपके चुपके मोबाइल पर गेम खेलने लग जाते हैं।छोटे छोटे बच्चो के माता पिता के पास अपने बच्चों से बात करने के लिए भी समय नहीं। पति पत्नी के पास अपने बच्चे के साथ बैठकर बातें करने के लिए भी वक़्त नहीं। वह कहता है पापा एक मिनट मेरे साथ खेलो मगर उस बच्चे के पापा कहते हैं आया इसे ले कर जाओ। मेरा बहुत ही जरूरी काम है। पत्नी कहती है नौकर को मुझे भी आज जल्दी जाना है। तू ही बच्चे के साथ खेलो। मुझे खाना बनाना है। बच्चा दुखी होकर नौकर के साथ खेल कर अपना समय व्यतीत करता है।

सब कुछ पीछे छूटता जा रहा है हमें अपने बूढ़े माता-पिता के संस्कारों को नहीं भूलना है। हम अगर अपने माता-पिता के संस्कारों को भूल गए तो हम आगे नहीं बढ़ सकेंगे। कुछ ना कुछ उनके बनाए गए नियम हमें तरक्की के रास्ते जुटाने में हमारी मदद अवश्य करेंगे। मगर हमारा सोचने का नजरिया बदल गया है।

नहीं नहीं मैं अब पहले मैं अपने में सुधार करूंगा तभी मैं अपनी बेटी को कुछ करने के लिए कह पाऊंगा। कार्यालय पहुंचते ही शेखर थोड़ा उदास था मगर उसने हिम्मत नहीं हारी। चपरासी को आवाज दी इधर आओ। आज का क्या क्या काम है? चपरासी आकर बोला साहब जी एक बात आज मैं आपका काम ठीक ढंग से नहीं कर पाया। वह बोला साहब मेरा बच्चा बीमार है। उसे अस्पताल लेकर जाना था। मेरी पत्नी के पास भी छुट्टी नहीं थी आया के पास छोड़ा था। अगर मैं छुट्टी ले लेता तो आप मेरी छुट्टी कर देते। मेरी पगार मे से काट देते। उस दिन मुझे महसूस हुआ कि कर्मचारी की आंखों में सचमुच का दर्द था जो मुझे नजर आया।

शेखर बोले जाओ तुम आज छुट्टी ले लो काम मैं देख लूंगा। चाय की चुस्की लेते हुए महसूस किया आज मुझे कहीं इसका दर्द महसूस हुआ है। चलो कोई बात नहीं। इस ऑफिस की एक एक ईंट और अपनें कारोबार को जो मैंने मेहनत करके खड़ा किया है। पैसा प्राप्त होने पर थोड़े से अहंकार की भावना कहीं ना कहीं मेरे अंदर भी पनप गई थी। मैंने अपने पास तीन तीन गाड़ियां रख दी थी। मेरी बेटी मुझे गाड़ी में जाते देखती होगी। अपनी मम्मी को भी गाडी मे औफिस जाते देखती होगी। तो उसके मन में भी अभी आया। मैं भी गाडी लूंगी।

नहीं, आज मैं इन गाड़ियों को बेच दूंगा। चाहे मेरे पास काफी धन दौलत ईकटटठी हो गई है। आने वाली पीढी को अपने बच्चों को भी मैं अपनी मेहनत के बल पर शौहरत अर्जित करना देखना चाहता हूं। मैं केवल अपने घर में एक ही गाड़ी रखूंगा। वह भी आवश्यकता पड़ने पर इस्तेमाल करूंगा।

आज से मैं एक साइकिल लूंगा। इतने बड़े व्यापारी को जब लोग साइकिल चलाते देखेंगे तो सैंकड़ों लोग मन में कटाक्ष करेंगे। मगर नहीं मुझे अपने आने वाली पीढ़ी को अपने संस्कारों के मूल्य आदर्श को सिखाना है कि मेहनत के दम पर सफलता अर्जित करने में जो मजा होता है वह बैठ बैठ कर यूं ही किसी की दौलत पर अधिकार जमाने से खुशी हासिल नहीं होती जीवन में कामयाबी हासिल करने के लिए अनेक समस्याओं संघर्षों का सामना करना पड़ता है। तभी सफलता मिलती है।

शेखर घर पहुंचे तो उसकी पत्नी सुचेता बोली आज आप जल्दी घर आ गए। वह बोले आज मैं अपने परिवार के साथ वक्त गुजारना चाहता हूं। उसकी पत्नी श्वेता अपने पति की तरफ देख कर बोली क्या बात है? आप उदास क्यों हो? मुझे बताओ साथ में मिलकर समस्या का हल निकालते हैं। आज सचमुच में ही उसने अपनी पत्नी की बात को ध्यान से सुना। शेखर ने मुस्कुराकर अपनी पत्नी की तरफ देखा उसकी पत्नी भी हैरान होकर अपने पति की ओर देख रही थी।
मान्या भी स्कूल से आ गई थी वह सुबह से अपने पापा से नाराज थी। वह कुछ नहीं बोली। चुपचाप कमरे में चली गई। उसके पापा ने मान्या के कमरे में जा कर कहा बेटा क्या थोड़ी देर में मैं तुम्हारे पास बैठ सकता हूं? उसे अपने पिता का आज एक अलग सा रूप देखने को मिला। उसने पापा को कहा क्यों नहीं पापा? उसका गुस्सा तो मानो ना जाने कहां फुर्र से उड़ गया। वह भी मुस्कुरा कर अपने पापा के साथ बातें कर रही थी।

उसके पापा बोले सुबह जल्दी उठा करो। वह बोली पापा मैं रात को 3:00 बजे सोती हूं इसलिए मैं सुबह जल्दी नहीं उठ सकती। उसके पापा बोले बेटी तुम अपने उठने और सोने के समय में बदलाव लाओ। सुबह जब तुम जल्दी उठोगी तब तुम्हें पता चलेगा सुबह सुबह जब तुम सैरकरने चलोगी मैं और तुम्हारी मम्मी भी सैर करनें जाया करेंगे। आकर तुम अपनी मम्मी के साथ चाय बनाने में मदद करोगी। कभी तुम और कभी अंकित। दोनों मिलकर। कुछ दिन तो मान्या को उठने में समस्या हुई। उसनें अपने उठने और सोने के समय में बदलाव लाया। वह सुबह जल्दी जल्दी उठने लगी। जिस बात को याद करने में इतना समय लगता था उसको याद करने में कम समय लगने लगा। रात को जल्दी सोने लगी।

टेलीविजन और मोबाइल का समय निश्चित कर दिया। पढ़ने के समय मोबाइल पर बात नंही करती थी और ना कोई और बात। धीरे-धीरे सब कुछ ठीक होने लगा।

एक दिन सभी परिवार वालों को शेखर नें चौंका दिया। जिस दिन वह एक साइकिल लेकर घर आ गया। वह बोला मैं साइकिल में बैठकर ऑफिस जाया करूंगा। इससे व्यायाम भी होगा और पेट्रोल की बचत भी होगी। शेखर के दोस्त घर पर आए बोले। शर्मा जी क्या आपको व्यापार में घाटा हो गया है? क्या आपका शेयर मार्केटिंग में सब कुछ समाप्त हो गया? वह कैसे समझाएं लोगों को कि अभी तो उसे समझ आई है। हमें अपनी सोच के नजरिए में परिवर्तन लाना है। गाड़ी से भी हमने ऑफिस या घर ही पहुंचना है। पहुंचेंगे तो हम साइकिल से भी। पैसों की बचत भी होगी और पेट्रोल की बचत होगी।

जब हमारे देश के लोगों में जब यह समझ आ जाएगी। ना तो प्रदूषण की समस्या होगी। और हमारे आसपास का वातावरण भी खुशनुमा होगा। हमारी सेहत में भी सुधार होगा। ना कोई उच्च रक्तचाप का शिकार होगा ना कोई हार्ट अटैक का खतरा जैसी बीमारियां। हमारे आने वाली पीढ़ियों को हमें ही यह समझाना होगा। कुछ एक दोस्तों ने तो शेखर की आदत को अच्छा माना। उनकी उसकी पत्नी श्वेता ने भी पैदल जाना स्वीकार कर लिया।

शेखर ने अपने ऑफिस में कहा कि मैंने अपने ऑफिस में कुछ बदलाव लाने की सोची है। अगर मेरे सारे कर्मचारी मेरा साथ देंगे तो इस नेक काम में सब कहीं ना कहीं इसमें हमारी सब की ही भलाई होगी। सारे कर्मचारी बोले साहब जी बताओ। शेखर ने कहा कि मैं अपने ऑफिस में एक दिन ऐसा निश्चित करेंगे जब हम अपने हाथों से बनाए हुए खाने का आनंद लिया करेंगे। सारे सारे मेरे कर्मचारी अपने अपने घर से एक एक चीज खुद अपने हाथ से बना कर लाएंगे और हम सब यहां इकट्ठा बैठकर खाया करेंगे। और हमारे कार्यालय की कुछ दूरी पर एक बावड़ी है वहां जाकर उसकी सफाई करेंगे। और बावली का साफ पानी पीने को मंगवाया करेंगे। अगर मेरे कार्यालय में किसी भी कर्मचारी का बच्चा बीमार होता है तो मैं उस बच्चे के लिए हमारे इतने सारे कार्यकर्ताओं की गाड़ी उपलब्ध होगी। उसकी सहायता करने के लिए मेरे ऑफिस में इतनी औरतें काम करती है जिनके बच्चे स्कूल जाते हैं जब किसी बच्चे को जल्दी पहुंचना है तो सारे बच्चे इकट्ठे होकर एक एक कार्यकर्ता की गाड़ी का इस्तेमाल करेंगे। सबको शेखर की राय बहुत ही अच्छी लगी।

कुछ ही दिनों में उसने इतनी सफलता अर्जित की। उसके कार्यालय के कर्मचारी उस से इतने खुश हो गए। उनको मेहनत करने का उसने गुर सिखा दिया था।

आन्य का परीक्षा परिणाम आया तो उसने अपनी कक्षा में ही नहीं सारे जिले में प्रथम स्थान प्राप्त किया। उसके पापा बोले बेटी मुझे तुम पर गर्व है तुमने दिखा दिया कि हम अभी भी हमें अपने संस्कार नहीं भूले हैं। हमने अपने बुजुर्गों की सीख को मिटने नहीं दिया। आज सचमुच में ही मैं गर्व से कहता हूं कि तुम मेरी होनहार बेटी हो। मैं तुम्हें गाड़ी ले कर दूंगा वह भी तुम्हारी पसंद से। मान्या बोली पापा मेरी सिलेक्शन एक अच्छे से कॉलेज में हो गई है। मुझे गाड़ी नहीं चाहिए। आज मुझे पता चल गया है कि मेहनत से बढ़कर जिंदगी में कोई भी चीज नहीं है। मेहनत के बल पर सफलता अर्जित की जा सकती है। आगे चल कर वह एक आई एस औफिसर बनी।

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तीन जासूस

आरुषि अर्चना और अभि तीनों पक्के दोस्त थे उनकी दोस्ती इतनी मशहूर थी कि वह अपने कस्बे में भी अपनी जासूसी के कारण अलग ही पहचाने जाते थे। उनके कस्बे में आए दिन किसी ना किसी बच्चे को मारा जाना या बच्चों के नर कंकाल मिलना तो एक आम बात थी। पुलिस कभी पता नहीं कर सकी कि इसके पीछे किसका हाथ है?
आए दिन कुछ न कुछ अखबार में सुनने को मिलता था। उनके घर वाले काफी परेशान आ चुके थे। उन्होंनें अपने बच्चों को घरों से बाहर निकलना भी बंद कर दिया था। हर एक बच्चे के माता-पिता उनके साथ जाते थे। यह दोनों दोस्त आरुषि और अर्चना सातवीं कक्षा में पढ़ते थे। अभिषेक आठवीं कक्षा में पढ़ता था। उनके माता पिता उसे अभि अरु और अर्चु कह कर बुलाते थे। वे जब भी मिलते तीनों एक दूसरे को बताते आज उन्होंने क्या देखा?।

एक दिन इसी तरह सैर करने निकले थे कि अभि नें देखा कि तीन लंबे लंबे व्यक्ति एक बच्चे को कंही लिए जा रहे थे। उन्होंने उस बच्चे का चेहरा देखा। उस बच्चे ने उस अजनबी व्यक्ति की गर्दन को जोर से पकड़ा हुआ था। जब यह तीनों शाम को इकट्ठे मिले तो आरुषि ने कहा कि मैंने आज 3 आदमियों को एक बच्चे को ले जाते हुए देखा। अर्चना नें अभिऔर अरु को कहा कि हमने तीन आदमियों को एक बच्चे को ले जाते हुए देखा। हमारे मन में हर समय जासूसी का ख्वाब छाया रहता है। हो सकता है वह उनका अपना बच्चा हो। अगर वह बच्चा किसी और का होता तो वह शोर मचा रहा होता। आरुषि ने अपने दोस्त से कहा कि उसने एक ऐसे आदमी को देखा जिसनेंअपने हाथ में चांदी का कड़ा पहन रखा था। अर्चना ने कहा मैंने भी एक ऐसे आदमी को देखा जिस आदमी की 6 उंगलिया थी। अभि बोला मैंने देखा कि एक आदमी की आंखें गहरे नीले रंग की थी। और उसकी आंख में एक तिल का निशान था। वह तीनों कहने लगे कि अगर हमें पता चला कि वह चोरी करने के लिए आए हैं तो हमें इन आदमियों के बारे में काफी कुछ पता लग चुका है। तीनों काफी थक चुके थे एक रेस्टोरेंट में चाय पीने लगे। उन्होंने अखबार में पढ़ा कि एक बच्चा जिसकी उम्र 11 साल है उस बच्चे की फोटो भी अखबार में दी हुई थी वह 3 दिन से अपनें घर से गायब है। उन तीनों को समझ आ चुका था कि उन तीनों ने उस आदमी को एक बच्चे को ले जाते हुए देखा था। उस बच्चे की शक्ल उस अख़बार वाले बच्चे से काफी मिलती जुलती थी।। तीनों ने फैसला कर लिया कि वह तीनों युवकों को ढूंढ निकालेंगे। जिन्होंने उस बच्चे को अगवा किया है। अभी तक उन्होंने किसी को कुछ भी नहीं बताया क्योंकि उनके पास पूरा सबूत नहीं था। तीनों ने योजना बनाई कि हम आज स्कूल नहीं जाएंगे। वे तीनों अजनबीयों को ढूंढने निकल पड़े। उन्हें निराशा ही हाथ लगी।

एक दिन जब वह तीनों पार्क में टहलने गए थे उन्होंने उन तीनों अजनबी लोंगों को जाते देखा इस बार भी उनकी गाड़ी में तीन बच्चे थे। वे तीन बच्चे भी चिल्ला नहीं रहे थे। उन्हें मालूम हो गया था कि उन अजनबी लोंगों नें उन तीनों बच्चों को कुछ सूंघा दिया था। वह बच्चे मुश्किल से 6 साल के थे। तीनों लड़के थे। तीनों ने योजना बनाई कि उन बच्चों को अवश्य ही उन गुन्डों से छुडा लेंगें। उन्होंनें एक बाइक किराए पर ली। वे सभी बाइक पर बैठकर उन का पीछा करने लगे। काफी दूर जाकर उन अजनबीयों नें अपनी गाड़ी रोक दी।उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो उनको अपनें पीछे एक बाईकआती दिखाई दी। उन्हें यह मालूम नंही हुआ कि कोई उनका पीछा कर रहा था। उन तीनों अजनबीयों नें एक दूसरे को कुछ कहा फिर उन्होंने तीनों बच्चों को अपने पास बुलाया और पूछा तुम यहां क्या कर रहे हो? उन्होंने कहा कि वह सैर करते-करते बहुत दूर आ गए हैं। और रास्ता भटक गए हैं। तीनों अजनबीयों नें एक जोरदार तमाचा अभि को मारा। और उन दोनों लड़कियों को एक रस्सी से बांध दिया। उन तीनों को कहा तुम हमें बुद्धू बनाते हो। हमारी नजर तुम तीनों पर थी। हमने तुम्हें बहुत दूर से आते हुए देख लिया था। तुम हमारा पीछा क्यों कर रहे थे।? उन तीनों ने कुछ नहीं कहा। उन्होंने अभि को मारकर उसकी खूब पिटाई की और बेहोश करनें के पश्चात उसे एक बोरे में भरकर ले गए। आरुषि अर्चना उन दोनों सहेलियों को भी कुछ सूंघा कर बेहोश कर दिया। उन्होंने अभिषेक को बोरे में डालकर नदी में फेंक दिया। नदी में फेंक कर जब वापस आए तो उन्होंने आपस में कहा कि यह दोनों सहेलियाँ अभि तक बेहोश है। चलो अंदर चल कर देखते हैं। उन 3 बच्चों को होश आया कि नहीं। यह तीनों अंदर चले गए।

उन दोनों सहेलियों को होश आ चुका था परंतु उन दोनों ने बेहोश होने का नाटक किया था। वह तीनों साथ वाले कमरे में थे। वे दोनों जब अंदर गए तो उन्होंने एक व्यक्ति से कहा कि हम तीन बच्चों को लेकर आए हैं। एक और बच्चे ने हमारी सारी हरकतें नोट कर ली थी। इसलिए उस बच्चे को मारकर हमने उसेनदी में फेंक दिया है। और उसके साथ दो लड़कियां भी थी उसको भी जब होश आ जाएगा तब उनके साथ क्या करना है तब सोचेंगे। पहले हम इन तीनों बच्चों की किडनी निकाल लेंगे। इसके लिए हमने सैन्ट्रल हॉस्पिटल के डॉक्टर के साथ मिलकर इनकी किडनियां बेचने का फैसला कर लिया है। हमें अब जरा भी देर नहीं करनी चाहिए इससे पहले कि इन दोनों सहेलियों को होश आ जाए तब तक हमें अस्पताल जाकर इन बच्चों की किडनीयां निकालनी होगी। तीसरे व्यक्ति ने कहा चलो उन्होंने एक डॉक्टर को फोन किया। उसका क्लीनिक उनके अड्डे में से पांच किलोमीटर की दूरी पर था। यह सारी की सारी बातें वह दोनों सहेलियाँ सुन रही थी। वह तीनों अजनबी जल्दी से बाहर निकले और और ताला लगाने ही वाले थे उन्होंने आपस में कहा कि हम ताला लगा देते हैं। उन्हें याद आया कि ऑफिस की खिड़कियां तो खुली ही रह गई हैं। उन्होंने सोचा कि जल्दी से इन्हें भी बंद कर देतें हैं तीनों खिड़कियां बंद करनें लगे। वे दोनों सखियां बहुत ही होशियार थी। उनके पास कैंची थी। उन्होंने कैंची से रस्सी को काट दिया और चुपचाप बाहर निकल गई। वे तीनों अजनबी दरवाजे के बाहर चुपके से निकले उन्होंने आपस में कहा कि अंदर से ताला लगा देते हैं। जिससे वे दोनों सखियां बाहर ना निकल सके। दरवाजा बंद करके जाने लगे तो वे दोनों सहेलियां पीछा करती करती उनके साथ उस क्लीनिक तक पहुंच गई। उन दोनों सहेलियों ने अपने मुंह पर रुमाल बांधे थे ताकि कोई देख ना सके। उन्होंने सबसे पहले एक टेलिफोन बूथ के ऑफिस के पास पहुंच कर पुलिस को सूचना दे दी थी। वे तीनोंअजनबी इन तीनों बच्चों की किडनी को निकालने वाले हैं। इसके लिए इन्हें पांच ₹500000 मिलते थे। उन्होंने उस पिटारा हॉस्पिटल का हवाला दिया और कहा कि आप इस हॉस्पिटल में जाकर उन शातिरों को जल्दी से पकड़ लो। ना जाने आज फिर तीन अबोध बालकोंं को मौत के मुंह में जाने से कोई नहीं रोक सकेगा। पुलिस वालों ने उस अस्पताल में समय पर पहुंच कर सभी डाक्टरों को ऑपरेशन करने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि आज इस अस्पताल की चैकिन्ग होनी है। उन अजनबीयों ने सुना तो उन्होंने अपनी गाड़ी की नेम प्लेट निकाल दी। तीनों बच्चों को उन दोनों सहेलियों ने बचा लिया था। इस काम के लिए पुलिस वालों ने उन दोनों सहेलियों को ईनाम की घोषणा कर दी। उन दोनों नें ईनाम लेनें से मना कर दिया और कहा कि अगर आप हमें ईनाम देना ही चाहते हैं तो हमारे दोस्त अभिषेक को जल्दी से जल्दी हमें ढूंढ कर लौटा दो। तब हम समझेगें कि सचमुच में ही आपने हमारा इनाम हमें दे दिया है। तीनों अजनबी वहां से खिसक चुके थे। उन को पुलिस पकड़ नहीं पाई।

वे तीनों अजनबी आपस में कहनें लगे ऐसा कौन व्यक्ति है जिस नें पुलिस वालों को हमें पकड़वाने की सूचना दी। यह सूचना किसने दी होगी। यह तो शुक्र है जो आज हम बाल-बाल बच गए वर्ना आज तो पुलिस वालों ने उन्हें हवालात में बंद कर दिया होता। चुपचाप दूसरी गाड़ी में बैठकर अपने अड्डे पर पहुंचे।

जब उन्होंने ताला खोला तो उन्होंने देखा कि वे दोनों सहेलियाँ वहां से गायब थी। जल्दी में उन दोनों के आईकार्ड वंही पर ही छूट गए थे। उनको समझ आ गया कि वे दोनों सहेलियाँ उन दोनों को चकमा देकर वहां से फरार हो गई थी।। उन्होंने ही पुलिस वालों को इसकी सूचना दी होगी।

वे सोचने लगे कि इन दोनों को ढूंढ कर इन दोंनों सहेलियों का काम तमाम कर देंगें। इसलिए उन तीनों ने उन दोनों के नाम भी याद कर लिए थे। उनके आई कार्ड संभाल कर रख लिए थे।

नदी में बहता बहता अभि बहुत ही दूर निकल चुका था। एक मछुआरे नें एक बोरे को बहते आते देखकर जब उस बोरे को खोला तो बच्चे को देखकर उसने उस बच्चे को होश में लानें का यत्न किया। उसकी खूब सेवा किऔर अपने मालिक को बच्चा देते हुए बोला कि यह बच्चा मुझे नदी में बहता मिला है। अगर आप इस बच्चे को रखना चाहते हैं तो ठीक है वर्ना इस बच्चे को मैं पाल लूंगा। यह बच्चा अब खतरे से बाहर है। ना जाने यह किसका बच्चा है? ना जाने कहां से आया है।

उस मछुआरे के मालिक नें उस को बहुत सारा रुपए देकर कहा तुमने हमें एक बच्चे को लाकर हमारी गोद में डाला है। हम इसे गंगा मैया की अमानत समझकर इसका पालन पोषण करेंगे। हम इसे इतना प्यार करेंगे कि वह कभी अपने घर जाने का नाम नहीं लेगा।

मछुआरे का मालिक एक बहुत बड़ा होटल का मालिक था। होटल के मालिक ने उस बच्चे से पूछने की कोशिश की कि तुम कौन हो? और कहां से आए हो? मगर वह बच्चा कुछ बोल नहीं सकता था। उन्होंने डॉक्टर को दिखाया तो डॉक्टर ने कहा कि इस बच्चे को किसी ने खूब मार-मार कर इस को नदी में फेंका था। उसकी पीठ पर मार के निशान थे।मालकिन ने उस बच्चे को खूब प्यार किया और कहा कि इसके मां-बाप कितने निर्दयी होंगे जिन्होंने ना जाने किस कारण इस बच्चे को मारकर नदी में फेंक दिया। डॉक्टर ने यह भी कहा कि पिटाई के कारण यह अपनी यादाश्त खो बैठा है। इसे कुछ भी याद नहीं है। और कुछ बोल पाने में भी असमर्थ है। इसका आई कार्ड हमें मिला है। इसमें एक सैन्ट्रल स्कूल सीतागढ का नाम लिखा है। और कक्षा आठवीं का छात्र है। इस बच्चे का नाम अभि है। हम इसे अभि नाम से ही पुकारेंगे।

होटल का मालिक बोला जो भी हो आज से यह हमारा बेटा है।हम अब इसे खोना नहीं चाहते। वह अभि को बहुत प्यार करते। अभि भी उनसे काफी घुल मिल गया था। पुलिस वाले अभि को ढूंढने में नाकाम हो चुके थे। वह तो अपने शहर से दूर किसी दूसरे देश में पहुंच गया था। अभि के माता-पिता अपनें बेटे के सदमे को बर्दाश्त नहीं कर सके। बहुत ही उदास रहने लगे। उसको याद करते करते थक चुके थे। उनकी आंखें रो रो कर थक चुकी थी उन्होंने समझ लिया था कि हमारा बच्चा मर चुका है।

एक दिन जब अभि होटल में अपने होटल के मालिक के साथ बैठा था तो उसने तीन अजनबी यों को खाना खाने के लिए अपनें होटल में आते देखा। वह तीनों अजनबीयों को देखकर चौका। उसे कुछ कुछ याद आ रहा था। वह चक्कर खा कर नीचे गिर गया। होटल की मालकिन दौड़ी दौड़ी आई और उसे पलंग पर लिटाया। उसने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेर कर कहा क्या हुआ? अभि-अभि ने उन्हें कुछ कहा। बोलने की कोशिश करते करते फिर बेहोश हो गया।

तीनों अजनबी उस क्षेत्र के निवासी थे। वे वंहा पर दिन के समय उसी होटल में खाना खाने आते थे। वह उस शहर के निवासी थे। वह अभी के शहर में तो सिर्फ चोरी करने के इरादे से वहां गए थे। बच्चों की किडनी बेचकर जो रुपया मिलता था वह अपने देश में आकर खर्च करते थे। अगली बार जब यह तीनों अजनबी होटल में खाना खाने आए तो अभि वंहा टहल रहा था तभी उन तीनों को देखकर वह चौका। उसे सब कुछ याद आ गया था।

वह तीनों अजनबी जिन्होंने उसे पिटाई कर के बेहोश करके नदी में फैकनें के लिए एक बोरे में डाल दिया था। सब कुछ याद आ गया था वह बहुत होशियार था उसने जल्दी से एक हैट पहन लिया। अजनबी उसे पहचान नहीं सके उन्होंने होटल के मालिक से कहा कि यह बच्चा कौन है? उस होटल के मालिक ने कहा कि यह मेरा बेटा है। यह गूंगा है। वह बोलता नहीं है। एक दुर्घटना में इसकी यादाश्त चली गली थी। उन तीनों अजनबीयों ने कहा कि कुछ दिन के लिए आपअपने बेटे को हमारे साथ भेज दें। क्योंकि हमारे साथ काम करने वाला एक आदमी अपने घर गया है। वह हमारे छोटे-मोटे काम कर दे देता था। अगर आपको मंजूर हो तो हम इस बच्चे को थोड़े दिन के लिए अपने साथ ले जाते हैं। हम आपको आपके बेटे को सही सलामत वापस आपके घर छोड़ने आएंगे। हमें एक एसे ही नव युवक की तलाश थी जो गूंगा हो। कृपया आप हमारे साथ इसे भेज दे इसके लिए हम आपको ₹100000 देंगे।

होटल का मालिक मान गया। उसने उन तीनों अजनबीयों को कहा कि अगर तुमने हमारे बेटे को जरा भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश की तो हम तुम्हे छोड़ेंगे नहीं। तीनों अजनबीयों ने कहा कि यह केवल हमारी गाड़ी की देखरेख किया करेगा। और हम इस से कोई काम नहीं करवाएंगे। यह हमारे ऑफिस में हमारे साथ रहेगा। होटल के मालिक ने अभि को ईशारे से अपने पास बुलाया उससे पूछा क्या तुम इन तीनों के साथ काम करना पसंद करोगे।? इसलिए यह सारी बातें उसनें पर्ची पर लिख दी थी। क्योंकि वह सोचता था कि जो व्यक्ति गूंगा होता है वह सुन भी नहीं सकता। उसने अभि को लिख कर कहा कि क्या तुम इनके साथ जाना पसंद करोगे? अभिने भी पर्ची पर हां लिख कर दे दिया। ं उन तीनों अजनबीयों के साथ अभि उनके अड्डे पर पहुंच गया। उसने वहां पर पंहुंच उनके बारे में पता लगा लिया वे कैसे-कैसे बच्चों के लीवर किडनी बाहर निकालकर उन्हें अस्पतालों में बेच दिया करते थे।

अभि उनके सामने गूंगे होने का नाटक करता था। उनकी गतिविधियों पर वह हर समय नजर रखता था। एक दिन उसने दूरभाष पर उनमें से एक अजनबी को फोन पर बात करते सुना। वह आपस में बातें कर रहे थे। वह किसी दूसरे व्यक्ति को कह रहा था कि हम जल्दी से दूसरे शहर जा रहे हैं। इस बार आरुषि और अर्चना को ही सबसे पहले अपना शिकार बनाएंगे। क्योंकि वह दोनों लड़कियां उन्हें चकमा देकर फरार हो गई थी। एक का नाम आरुषि और दूसरी का अर्चना है। वह दोनों सातवीं कक्षा की छात्रा हैं। उनका स्कूल एक खूबसूरत चर्च के पास है। वे दोनों लड़कियां बहुत ही शातिर हैं। हमनें किसी ना किसी तरह उनके दोस्त को तो मार कर नदी में फेंक दिया। शायद वह तो मर भी गया होगा। अच्छा होता अगर उन दोनों को भी उस नदी में फेंक दिया होता। हम तुम्हें इन दोनों लड़कियों की फोटो भेज रहे हैं। हम जल्दी से जल्दी इन लड़कियों को पकड़ना चाहते हैं। अबकी बार हमारा मोहरा यह दोनों सहेलियाँ है। जब अभि नें उस अजनबी को फोन पर यह कहते सुना तो समझ आ चुका था कि अबकी बार वह उनकी दोस्तों को नुकसान पहुंचाने की योजना बना रहे हैं ।

जब अभि मालकिन के घर से आ रहा था तब उसने चुपके से एक मोबाइल भी उसनें अपनी जेब में रख दिया था। जब वह तीनों अजनबी बाहर गए तो उसने अपनी दोनों दोस्तों को फोन लगाया। अभि की दोनों दोस्त साथ ही रहती थी। उन्होंने फोन सुना तो उन्हें आवाज से मालूम हो गया कि यह तो हमारा दोस्त अभि है। उनकी आंखों से खुशी के आंसू छलक रहे थे। अभी नें उन्हें बताया कि किस तरह उन अजनबीयों ने उन्हें मारकर बोरे में बेहोश कर नदी में फेंक दिया था। शायद भगवान को भी मेरा मरना मंजूर नहीं था। मुझे एक मछुआरे ने बचाया। उसनें मुझे बोरे से निकाल कर अपनें घर ले गया। मेरी बहुत सेवा कि। उसनें अपनें जाकर एक होटल के मालिक को मुझे सौंप दिया। वह ना जाने कौन से देश में पहुंच गया है? और वह अब तकअपनी यादाश्त खो बैठा था। लेकिन जब यह तीनों अजनबी उस होटल पर खाना खाने आए तो इन तीनों अजनबी यों को देखकर मेरी याददाश्त लौट आई।

मैंने यह सब बातअपने मालिक को नहीं बताई। मैं उन तीनों अजनबीयों के साथ काम करने के लिए आ गया। मैंने अपने बाल खूब लंबे-लंबे कर लिए जिस कारण वे अजनबी उसे पहचान नहीं सके। मैं तुम्हें इसलिए यह सब कह रहा हूं कि आज मैंने इन तीनों की बातें सुनी। तुम तीनों को मारने के लिए तुम्हें अगवा करने की योजना बना रहे हैं। तुम होशियार रहना । और पुलिस वालों को भी इन्फॉर्म कर देना ताकि तुम दोनों की जान बच सके। जब वह आएंगे तो मैं भी उनके साथ आऊंगा। तब तक तुम मेरे माता-पिता को भी बता देना कि मैं जिंदा हूं। मुझे से कांटेक्ट करने की कोशिश मत करना क्योंकि मैंने किसी को भी यह बात नहीं बताई है कि मुझे होश आ चुका है।

तीनों अजनबीयों ने अपना भेष बदला और गाड़ी में बैठ गए। अभि नें तो उन्हें कड़ा ,छःऊंगलियों और भूरी आंखों द्वारा उन्हें पहचान लिया था। उसी शहर में वापिस आकर अभि को एक कमरे में ठहराया और उसे पर्ची पर लिखकर दिया कि हम किसी काम से गेटवे चर्च के पास जा रहे हैं। वहां हमें काम है। तब तक तुम हमारा यही इंतजार करना। वह तीनों अजनबी गाड़ी में बैठकर चले गए अभी ने उन्हें जाते देखा।

उसने अपने घर फोन किया। उसकी आवाज सुनने के लिए उसके माता-पिता तरस गए थे अभि की मम्मी तो अभि की आवाज सुन कर बहुत खुश हुई बोली बेटा तू कहां है? हम तुमसे मिलने आ रहे हैं। अभि ने अपनी मम्मी को कहा कि भूलकर भी अभी यहां फोन मत करना वर्ना आप अपने बेटे को नहीं देख सकोगी।
तीनों अजनबीयों को किसी ने बताया था कि वह दोनों लड़कियां तो बहुत ही चालाक है। उन को पकड़ना बहुत ही मुश्किल है। इसलिए उन तीनों अजनबीयों नें अर्चना और अरु के घर फोन किया हम तुम्हारे स्कूल से तुम्हारे अध्यापक बोल रहे हैं। तुम्हारे स्कूल का सांस्कृतिक कार्यक्रम कल होना है। जिसके लिए तुम दोनों को सिलेक्ट किया गया है। इसलिए हम तुम्हें चर्च के पास लेने आ रहे हैं। उन तीनों अजनबीयों ने स्कूल से पता कर लिया था कि उनके स्कूल के टीचर्स ने सचमुच फोन किया था या कोई उन्हे झूठमूठ में गुमराह कर रहा है। इसलिए उन्होंने वह फोन नहीं उठाया था।

तीनों अजनबीयों को पता चल चुका था कि किस टीचर ने उन दोनों को फोन किया? जब दोबारा फोन आया तब आरुषि और अर्चना ने पूछा कि आप कौन बोल रहे हैं? उन्होंने उनके टीचर का नाम बता दिया मैं तुम्हारा अंग्रेजी का अध्यापक वास्तव बोल रहा हूं। वह दोनों समझी कि उनके अध्यापक ही उन्हें फोन कर रहे हैं। वह दोनों उनसे मिलने चल पड़ी। उन्होंने अपना सांस्कृतिक कार्यक्रम का सारा सामान लिया और जल्दी-जल्दी चर्च पहुंचने का प्रयत्न करनें लगी। उन्हें तभी एक गाड़ी दिखाई दी। उस गाड़ी में से उतर कर एक आदमी ने कहा कि तुम्हारे सर जल्दी में निकल गए क्यों कि उन्हें वहा पर जल्दी पहुंचना है इसलिए उन्होंने हमें कहा है कि तुम चर्च के सामने गेट पर मिलना। वही तुम्हारे स्कूल का प्रोग्राम एक हॉल में होने वाला है। वह दोनों जल्दी से गाड़ी में बैठ गई।

जब काफी देर तक चर्च नहीं आया तो उनकी आंखें उनका माथा ठनका। वे दोनों कंहीं धोखे में आ गई थी। उन्हें समझ आ गया कि एक बार फिर वह पकड़ी गई। जब आरुषि की नजर उस व्यक्ति के हाथ पर गई जिसके हाथ में उसनें कड़ा देखा था। अचानक उन्होंनें कहा सर हमने इस शो रुम से साड़ी लेनी है। उन्होंनें साथ बैठे युवक को साड़ी की स्लिप पकड़ा दी। दो नव युवकों ने उन से कहा कि तुम दोनों इसी गाड़ी में बैठी रहो । हम तुम्हारी पास की दुकान से साड़ियां ले करआते हैं। उन्होंने जल्दी से गाड़ी का दरवाजा बंद कर दिया। जल्दी में वह गाड़ी को लॉक करना भूल गये। वह दोनों नवयुवक साड़ी लेने इंपोरियम में गए तभी वह वह दोनों जल्दी से खिड़की से कूद गई। जल्दी से जाकर पुलिस को इसकी सूचना दे दी।

प्लीज जल्दी से उन दोनों नव युवकों को पकड़ लो। एक बार फिर किडनी गैंग के लोग हमारे शहर में पहुंच चुके हैं। उन्होंने एक बार फिर हमें पकड़ लिया था। आप जल्दी से हमारे साथ चल कर एंपोरियम में दो लंबे हट्टे-कट्टे नौजवान जो साड़ी लेने गए हैं उन्हें आप जल्दी से पकड़ लो। पुलिस तो पहले ही उन गैन्ग की तलाश में थी जो मासूम बच्चों को कुछ सूंघा कर और बेहोश कर के उनके किडनी लिवर निकाल कर दूसरे देशों को भेज देती थी। जैसे उन्होंने अर्चना और आरुषि की आवाज सुनी जल्दी से पुलिसवालों को अलग-अलग स्थानों पर तैनात कर दिया। इंपोरियम से जैसे ही वे दोनों अजनबी वापिस आ रहे थे उन्होंने उन को पकड़ लिया। अभि भी पुलिस वालों के पास पहले ही पंहुच चुका था। उसने भी उन दोनों की सूचना पुलिस वालों को दे दी थी। अभि ने अपना सारा हाल कह दिया कि किस प्रकार उन्होंने उसे नदी में भरकर बोरे में भरकर एक नदी में फेंक दिया था। फिर एक मछुआरे ने दया करके उसे बचाया और होटल के मालिक ने उसे बच्चे की तरह प्यार किया। उसने अपनी सारी कहानी पुलिसवालों को सुना दी और उन्होंनें उसे अपने बच्चे से भी बढ़कर प्यार किया। उसने अपनी सारी कहानी पुलिस वालों को बताई किस तरह उसने सारे गैंग वालों का पर्दाफाश किया और पुलिस वालों ने किडनी निकालने वाले गैंग को पकड़कर अपना फर्ज पूरा किया। और उन तीनों बच्चों को ईनाम देकर 26 जनवरी के मौके पर उनको सम्मानित किया।उन तीनों को उस गैन्ग को पकडवाने के लिए तीन लाख की राशि ईनामस्वरुप दी गई।
अभि नें होटल के मालिक को फोन किया और उनको सच्चाई से अवगत कराया। आप जैसे मां बाप पाया कर में फूला नहीं समाया। आप दोनों जहां भी रहो खुश रहो।

उसने सारी कहानी होटल के मालिक को सुनाई कैसे उसको उन अजनबी युवकों ने उसे मारकर बोरी में फेंक दिया था। परंतु आपके होटल में जब वे तीनों खाना खाने के लिए आए। जिन लोगों नें उसे नदी में फैंक दिया था उन्हें देखकर मेरी याददाश्त वापस आ गई। परंतु मैंने आप को कुछ नहीं बताया इसलिए मैंनें उनके साथ जाना स्वीकार कर लिया क्योंकि मैं उनसे सच्चाई उगलवा कर उनका पर्दाफाश करना चाहता था।

उन्होंने न जानें कितने अबोध बच्चों को पकड़कर उनके किडनी लीवर निकाल कर मार दिया था। मैंने उनके अड्डे का पता लगा कर उन तीनों अजनबी यों को पुलिस के हवाले कर दिया। हमारे शहर में तो वे दो ही आए थे। परंतु तीसरे को भी रंगे हाथ पकड़ लिया गया। उनके शहर में ही उसे पकड़ लिया गया। अब वे तीनों सलाखों के पीछे हैं। मैं मार के कारण अपनी यादाश्त खो बैठा था परंतु इन तीनों को देखकर मुझे सब कुछ याद आ गया। मैंने अगर आपको सच्चाई बता दी होती तो आप मुझे उनके साथ नहीं भेजते। कभी आपसे मिलने जरूर आऊंगा। आपका अभि।

अभि आरुषि और अर्चना तीनो दोस्त मिलकर बहुत ही खुश हुए। तीनों की आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे। अभि के माता पिता भी अपने बेटे को गले से लगाकर बोले बेटा हम तो निराश ही हो चुके थे। तुम तो हमारे होनहार बेटे हो। हमें तुम तीनों पर गर्व है। आज सचमुच में ही हमारी खुशियां लौट आई है।

हमशक्ल

चीनू को उसकी मम्मी ने हॉस्टल में दाखिल करवा दिया था क्योंकि वह घर में ज्यादा पढ़ाई में ध्यान नहीं दे पाती थी। उसकी मम्मी ने इसलिए दाखिल करवाया था ताकि वह अपना पूरा ध्यान अपनी पढ़ाई में केंद्रित करें। घर पर उसे पढ़ाना मुश्किल था। वह आगे हॉस्टल से कोचिंग भी ले रही थी। हॉस्टल में उसकी सहेली बीनू बन गई थी। दोनों ही रूम पार्टनर थी। एक ही कमरे में उन्हें रहने को मिला था दोनों के चेहरे इतना आपस में मिलते थे कि कोई यह नहीं बता सकता है कि यह दोनों सहेलियां हैं। ऐसा लगता था मानो वे दोनों सगी बहनें हो। परंतु उन में फर्क इतना था कि एक के बाल लंबे एक के छोटे। चीनूं के बाल छोटे-छोटे थे। उसकी सहेली अभी उसको देखकर दंग रह जाती थी। अगर एक अपने बालों को ढक ले तो सब यही समझते थे कि वे दोनों जुड़वा बहने हैं।

कई बार तो उनकी अध्यापिकाएं भी चीनू और बीनूं को नहीं पहचान पाती थी। चीनू को बीनू और बिन्नू को चीनू कह देती थी।

बरसात की छुट्टियां होने वाली थी। दोनों को एक एक महीने की छुट्टियां हो रही थी। दोनों हॉस्टल के वातावरण से निकलकर घर जाना चाहती थी। वीनू के दिमाग में एक विचार आया क्यों ना इस बार चीनूं तुम मेरे घर जाना और मैं तुम्हारे घर पर जाऊंगी। क्योंकि हम दोनों ने अपनी मम्मी और पापा के बारे में एक दूसरे से काफी कुछ बताया है। चीनूं के पापा नहीं थे। और बीनूं की मम्मी। चीनू कह रही थे कि वीनू मैं पापा का प्यार पाना चाहती हूं। मैंने तो अपने पापा का प्यार कभी नहीं देखा। मुझे तो यह भी नहीं पता कि पापा कैसे होते हैं? मुझे मेरी मां ने पाल पोस कर बड़ा किया है। मेरी मम्मी ने मुझे खाना बनाना सिखाया। मैं तो घर का खाना खा खाकर पली-बढ़ी हूं। मेरे नाना नानी हमारे साथ रहते हैं। मेरे दादाजी जब मैं पैदा हुई थी उनके कुछ दिनों बाद दुनिया से जा चुके थे। मैंनें तो अपनें दादा जी को कभी नहीं देखा। तुम वंहा पर जा कर नाना नानी के पैर छूना। और उनका कहना मानना। जो कुछ मैनें तुम्हे समझाया तुम वैसा ही करना। उन्हें पता ही नहीं चलेगा कि तुम बीनू हो। इस तरह से तुम्हें मां का प्यार भी मिल जाएगा। तुम सदा कहती रहती हो मेरी मां पता नंही कैसी दिखती होगी? तू मेरी मां में हीअपनी मम्मी को देख लेना। इस तरह से तुम्हारा दिल भी लग जाएगा। और तुम नया शहर भी देख लोगी। इसके लिए तुम्हेअपने बाल छोटे करवाने होंगे। चीनूं बोली तुम्हे नकली बाल लगाने होंगे। तुम पापा को देख कर चौक मत जाना। तुम ब्रेड पकौड़ा पनीर इडली डोसा पसंद करती हो। वह तुम्हें मिल जाएगा क्योंकि मेरे पापा इन चीजों को पसन्द करतें हैं। कहीं ना कहीं यह चीज खाने में अच्छी लगती है।

दोनों एक दूसरे के घर पहुंच गई थी। जैसे घर आई उसकी मां ने कहाअपने नाना नानी के पैर नहीं छूएंगी। बीनू को ध्यान आया मैंने यह गल्ती कैसे कर दी। उसनें नाना नानी के पैर छू। उसकी ममी नें कहा तुम बहुत दिन बाद आई हो। तुम जब बोलना शुरु करती हो तुम चुप हीं नंही होती। उसनें चीनूं की मां को एहसास नहीं होने दिया कि वह चीनूं नहीं है। वह तोअपनी मां के गले लग कर रोना चाहती थी। वह सोच रही थी कि चीनूं कितनी भाग्यवान है? उसे कितना प्यार करने वाली मां मिली है? अपनी बेटी का इतना ख्याल रखती है। मेरे पापा ने तो मुझे मेरी मां के बारे में कुछ भी नहीं बताया।

वीनू भी अपने पापा के पास पहुंच गई थी। वीनू नें अपनें पापा के गले लगा कर कहा पापा मैं आपको छोड़कर नहीं जाना चाहती। तभी उसने देखा कि उसके पापा की आंखों से आंसू आ चुके थे। उन्होंने अपने आंसुओं को छिपाने की कोशिश की थी ताकि उन की बेटी देख न ले। इसलिए बात बदल कर बोले इतने दिन बाद आई हो चलो किसी रैस्टोरैन्ट में चल कर बर्गर खाते हैं। आज हम दोनों बाहर ही खाना खाएंगे। चीनूं बहुत ही खुश हो गई थी। क्योंकि उसे अभी उसके मनपसंद की वस्तुएं खाने को मिल गई थी। पापा का प्यार पा कर उसे महसूस हो रहा था जैसे कि उसे उस के बिछड़े हुए पापा मिल गये। उसकी मम्मी ने उसे बताया था कि जब वह पैदा हुई थी तब उसके पापा बिना बताए कहीं चले गए थे। उन्होंने कहा था कि पता नहीं क्या कारण था परंतु मैं इतना जानती हूं कि तुम्हारे पापा के यहां जाने पीछे कोई ना कोई कारण तो अवश्य होगा। अभी तक इसी विश्वास पर कायम है कि वह एक न एक दिन आकर तुम्हें भी अपना प्यार देंगे। और तुम जैसी मासूम बच्ची को अपने गले से लगा लेंगे।

छुट्टियां समाप्त होने पर दोनों अपने अपने हॉस्टल में वापस आ चुकी थी। चीनूं आ कर बोली तुम्हारे घर जाकर तो मुझे पापा का इतना प्यार मिला। उन्होंने मुझे इतना घुमाया और मेरी मनपसंद वस्तुएं मुझे दिलवाई। मुझे भी मां का प्यार बरसों बाद मिला और इतने दिनों बाद अपने नाना नानी का प्यार पाकर मैनें इतना अच्छा महसूस किया कि मेरा मन वापिस आने को ही नहीं कर रहा था ।

चीनू मीनू दोनों अपनी पढ़ाई में इतनी व्यस्त हो गई अब तो अगले महीने चीनू की मम्मी का जन्मदिन आने वाला था। चीनूं नें बीनू को कहा इस बार मैं उनके जन्मदिन पर अपनी मम्मी को यहां बुलाऊंगी। और यहां के किसी रेस्टोरेंट में उन्हें ढेर सारा केक खिलाऊंगी और एक बड़ी सी पार्टी दूंगी। तभी बीनू बोली मेरे पापा का जन्मदिन भी इसी महीनें आता है। तो क्यों ना हम अपने मम्मी पापा का जन्मदिन एक ही दिन मनाते हैं। मेरे पापा का जन्मदिन 7 अक्टूबर को है। चीनी बोली मेरी ममी का जन्मदिन भी 7 अक्टूबर को आता है। एक ही जगह अपने मम्मी पापा का जन्मदिन आयोजित करते हैं। और हम दोनों एक साथ जन्मदिन मनाएंगे। हम एक दूसरे को अपने अपने मम्मी पापा से मिलवाएंगे। सोनू ने जन्मदिन की पार्टी के लिए पहले से ही तैयारियां कर डाली थी। दोनों ने अपने मम्मी पापा को एक स्पेशल केक भी मंगवा लिया था। और अपने मम्मी पापा के आने का इंतजार कर रही थी। बाहर गाड़ी का हॉर्न सुना दिया। उन्होंने अपनी मम्मी और पापा के लिए मुंबई के एक खास होटल ताज में बुलाया था और उन्हें पहले बता दिया था कि इस जगह पर आपने आकर ठहरना है।

गाड़ी से एक लंबा सा इंसान उतरा। उसने वेटर को कहा कि 5 नंबर मेज कहां है? वेटर ने दूसरी तरफ इशारा किया। वह जल्दी से बैग लेकर वहां जाकर टेबल के पास वंहा बैठ गया। कमरे को खूब सजाया था। तभी पीछे से एक महिला ने वेटर को पूछा पांच नंबर टेबल कहां है। उसे भी वेटर ने कहा दूसरी तरफ। पांच नंबर टेबल के पास जाकर जैसी ही बैठने लगी वह एकदम सौरभ को देख कर चौंक गई। और जोर जोर से रोने लगी। तुम क्यों मुझे छोड़ कर चले गए थे। तुम्हें क्या पता तुम्हारे जाने के बाद मैंने कैसे 18 साल गुजारे है। तुम्हारी याद को सीने में लगाए जीती रही। मेरे मम्मी पापा ने मुझे कहा कि तुम दूसरी शादी कर लो और कहा कि तुम्हें सौरभ सदा सदा के लिए छोड़ कर चला गया है। परंतु मैंने विश्वास ही नहीं किया क्योंकि मुझे विश्वास था कि किसी ना किसी दिन तो मुझे और मेरी बेटी को लेने तुम जरूर आओगे। तुमने मुझसे किनारा क्यों कर लिया? अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं था तो तुमने मुझसे शादी क्यों की? और शादी के एकदम जब चीनूं होनें वाली थी तुम मुझे बताए बगैर वहां से क्यों चले गए? आज तो बताना ही पड़ेगा कि तुम तुझे छोड़कर क्यों गए। सौरभ चौंक कर बोला कौन चीनू? तुम्हारी बेटी तुम्हारे पिता ने तो कहा था कि तुम्हें मरी हुई बेटी पैदा हुई थी। अचानक विभा यह सुन कर हैरान हो गई। मेरे पापा ने सौरभ को इतना बड़ा झूठ कहा था। सौरभ बोला कहां है मेरी बेटी। मैं उससे मिलने के लिए आतुर हूं। विभा बोली वह यही है हॉस्टल में पढ़ती है। उसने मेरा जन्मदिन मनाने के लिए मुझे यहां बुलाया था। विभा बोली मेरे पापा ने कहा कि सौरभ तुम्हे छोड़कर चला गया है। परंतु मुझे विश्वास ही नहीं हुआ मुझे अपने प्यार पर विश्वास था तभी तो मैंने आज तक किसी और से शादी नहीं की। मेरे मम्मी पापा ने मेरी शादी के लिए काफी जोर लगाया परंतु मैंने उन्हें कहा कि आप मुझसे जबरदस्ती नहीं कर सकते।

सुभाष बोला तुम्हारे पापा तो पहले ही मुझे नापसंद करते थे। वह चाहते थे कि तुम्हारी शादी किसी उच्च खानदान में हो। उन्होंने तुम्हारे लिए एक उच्च घरानें का लड़का भी देख रखा था।मैं एक गरीब परिवार का लड़का तुम्हें इतनी खुशियां कैसे दे सकता था? जब हमने भाग कर शादी कर ली और जब चीनू पैदा होने वाली थी तब उन्होंने मुझसे जबरदस्ती कागजात पर हस्ताक्षर करवा लिए कि मैं तुमसे अलग होना चाहता हूं और उन्होंने तुम्हें आज तक नहीं बताया होगा हमारे एक नहीं दो बेटियां पैदा हुई थी। एक बेटी को उन्होंने मुझे सौंप दिया था और मुझे भी उन्होंने झूठ कहा था कि विभा नें एक लड़की को जन्म दिया है। मैंने कहा था कि कृपया करके मेरी बेटी मुझे दे दो। उन्होंने मेरी बेटी मुझे सौंप कर कहा कि तुम अपने बेटी को ले जाकर कहीं दूर चले जाओ। अगर तुम यंहा रहे तो हम तुम्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं। क्योंकि तुमने हमारे खिलाफ जाकर शादी की थी। तब मैं बीनू को लेकर तुम से कहीं दूर चला गया।

मैंने सोचा कि मैं तुम्हें इतनी खुशी नहीं दे सकता जितना की एक अमीर परिवार वाले। मैं तुम्हारी जिंदगी से चला गया। विभा बोली हमारी बेटी कंहा है? मैं अपनी बेटी को गले लगाना चाहती हूं। दोनों की आंखों में खुशी के आंसू थे। वे दोनों इतने दिनों बाद आज इकट्ठा अपना जन्मदिन मना रहे थे। उन्हें क्या पता था कि उनका जन्मदिन उनके लिए कितनी खुशियां लेकर आया था। उनकी बेटियों ने उन दोनों को आज मिलवा दिया था।

उन्हें कमरे के बाहर चीख सुनाई दी। बीनू दौड़ते-दौड़ते आई और बोली पापा चीनू के घुटने में चोट लग गई है। तभी मीनू के पापा बोले चलो पास एक अस्पताल है वहां चलते हैं। वह गाड़ी में अस्पताल पहुंचे। चीनू की मां ने वीनू को प्यार किया और बोली बेटा तुम तो कितनी प्यारी हो? तभी चीनू बोली पापा भी तो प्यारे है। चीनू की मम्मी बीनू से बोली बेटा आज तुमने हमें जो उपहार दिया है वह कोई भी बेटी अपनी मां को नहीं दे सकती। क्योंकि इतने वर्षों के बाद मुझे तुम्हारे पापा मिल गए हैं।

चीनूं को उसकी मां ने कहा कि तुम्हारी बहन बीनूं तुम्हारी सगी बहन है। और यह भी उनके पापा ही नहीं तुम्हारे भी पापा है क्योंकि यही तुम्हें तुम्हारे बिछड़े हुए पापा हैं। चारों एक दूसरे के गले लग कर रो रहे थे। डॉक्टर ने नर्स को कहा कि तुम चीनूं को पट्टी कर दो। उसी समय एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया और बोला डॉक्टर तीन नंबर वाले वार्ड में जो बूढ़ा बीमार व्यकित 18 साल से कोमा में था आज उसे होश आ गया है। वह विभा विभा कर रहा है। विभा को कहां से लाएं? विभा सुन कर अचानक चीनूं बोली डॉक्टर साहब मेरी मां का नाम भी विभा है। आप इसे ही विभा बनाकर उसे बूढ़े के पास ले जाइए। शायद वह बूढा इंसान उनकी आवाज सुनकर होश में आ जाए।

डॉक्टर साहब बोले मैं इस बूढ़े आदमी को हर रोज विभा विभाकहते हुए सुनता हूं। इसके बाद वह आदमी बेहोश हो जाता है। शायद यह विभा कहीं ना कहीं उसकी कुछ लगती होगी। जो कि वह विभा को कुछ बताना चाहता है। डॉक्टर साहब चीनूं की बात सुनकर बोले बेटी तुम तो बहुत ही होशियार हो। शायद तुम ठीक ही कहती हो। डॉक्टर ने विभा को कहा कि कृपया थोड़ी देर के लिए उस बूढ़े आदमी के पास जाकर कहो मैं विभा हूं।

विभा और सुभाष दोनों उस वार्ड में गए जहां बूढ़ा व्यक्ति बिस्तर पर पड़ा हुआ था। उसकी आंखें बंद थी। वह बार-बार विभा विभा कह कर बेहोश हो रहा था। डॉक्टर ने जाकर उस बूढ़े आदमी मरीज को कहा कि तुम्हारी विभा आ गई है। आश्चर्यचकित होकर बूढ़ा उठ कर खड़ा हो गया बोला बेटा ना जाने कितने दिनों से तुम्हारी राह देख रहा था? मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूं। विभा अपने बूढ़े दादा जी को देखकर चौक गई। क्योंकि सचमुच में ही उसके दादा जी इतने वर्षों बाद उसे मिले। उन्होंने तो सोचा था कि उसके दादा जी मर गए हैं क्योंकि 18 वर्ष पहले वह एक ट्रक की चपेट में आ गए थे। उनको ढूंढने की बहुत कोशिश की लेकिन उनके मम्मी पापा ने कहा कि ट्रक के टुकड़े टुकड़े हो गए थे। सारे के सारे लोग उस दुर्घटना में मारे गए थे। इतने वर्षों बाद अपने दादाजी को जिंदा देख कर विभा ने अपने दादाजी को गले से लगाया। उसके दादा जी ने सुभाष को भी साथ देखा तो उन्हें खुशी हुई वह बोले बेटा मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूं। जिस दिन तुम्हें मेरे बेटे ने घर से चले जाने के लिए कहा था और तुमसे झूठ कहा था कि विभा ने एक बेटी को जन्म दिया है परंतु मेरे सामने उसने दो बेटियों को जन्म दिया था। मैं यह बात बताने के लिए उस दिन तुम्हारे पीछे आ रहा था कि तुम विभा को छोड़कर मत जाओ। परंतु तुम्हारे ससुर ने मुझे भी धमकी दी और कहा कि वह लड़का हमारे घरानें लायक नहीं परंतु मैंने तो तुम्हें स्वीकार कर लिया था। जब मैं सड़क में तुमसे मिलने ही वाला था मैंने तुम्हें देख लिया था तभी ट्रक वाले ने आकर मुझे टक्कर मार दी। उसके बाद मुझे कुछ पता नहीं है मैं 18 वर्षों तक अस्पताल में बेहोशी की अवस्था में पड़ा रहा। विभा ने चीनू और मीनू को दादाजी से मिलवाया। वह भी दादाजी के गले लग कर बोली दादा जी आप भी हमारे साथ ही रहोगे।

शाम को आकर विभा अपने मां पापा से बोली आपने मुझे सच्चाई से हमेशा दूर रखा। आपने तो अपने बच्चों के प्यार के काबिल भी नहीं समझा और मेरी जिंदगी में खुशियां देने से पहले ही मुझे वीराने में जीने के लिए मजबूर कर दिया। आप दोनों अब खुश रहो। आज मैं अपने पति के साथ अपनी बेटियों को लेकर सदा के लिए जा रही हूं। दादाजी भी जिंदा है वह भी हमारे साथ ही रहेंगे। विभा के माता-पिता ने सौरभ से कहा कि हमें अपने किए पर पछतावा है। हमने तुम दोनों को दूर कर दिया था इसके लिए भगवान भी हमें माफ नहीं करेंगे मेरी बेटी समझदार थी। इसने शादी का फैसला नहीं किया। बेटा हमें अपनी गलती का आज सचमुच में ही अफसोस है। हमें माफ कर देना सौरभ बोला बड़े माफी नहीं मांगा करते। हम बच्चों को तो आपका आशीर्वाद मिल जाए वही अच्छा है। अब सबके चेहरों पर खुशी के आंसू थे।

कौवे और लोमड़ी की सूझबूझ

एक पेड़ की डाल पर पर बहुत से कौवे हुए रहते थे। उस पर पर उनके छोटे-छोटे बच्चे भी रहते थे। पास ही वृक्ष की खोल में बहुत सारे कबूतर भी रहते थे। कौवे हर रोज अपने बच्चों के लिए दाना रखकर जाते थे। उन को दाना रखते हुए एक लोमड़ी देखा करती थी। वह लोमड़ी खाने के लिए तरसती रहती थी। उसे खाने को कुछ भी नहीं मिलता था। वह जानवरों को मारकर खाती थी। वह बूढ़ी हो चुकी थी वह भाग नहीं सकती थी इसलिए वह इसी ताक में रहती थी कि कौवे कहां जैसे अपने बच्चों के लिए दाना रखते हैं। वह छुप छुप कर उन्हें देखा करती थी। हर रोज उस स्थान पर जाकर पहले ही खाना प्राप्त कर लेती थी। कुछ दिनों से लोमड़ी को खाने के लिए कुछ भी नहीं मिल रहा था। इसलिए वह रोज कौवों के घोंसलों से रोटी चुराकर खा जाती थी। जहां पर कौवे दाना छुपा कर रख देते थे। एक दिन जब वह वापस घौंसलें में आए उनके बच्चे भूख के कारण बिना रोटी खाए ही सो गए थे। क्योंकि उन्हें वहां पर उन्हें खाने को कुछ भी नहीं मिला था। जब वह वापस आए तो उन्होंने अपने बच्चों को जगाया तो बच्चों ने कहा कि हमें कुछ दिन से कुछ भी खाने को नहीं मिल रहा है। हमारा खाना ना जाने कौन खाजाता है? वह बोले कि हमें उस पर नजर रखनी पड़ेगी कौन हमारे बच्चों का खाना चुरा कर खा रहा है? लोमड़ी आकर बोली कौवे भाई कौवे भाई आजकल आपके बच्चों का खाना कबूतर खा जाते हैं। तुम्हें उन कबूतरों को सबक सिखाना ही पड़ेगा। यह तुम्हारे बच्चों को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। वह बोल कर चुप हो गई।कौवे सोचने लगे यह लोमड़ी ठीक ही कहती है न जाने मारे हमारे बच्चों का खाना कौन खा जाता है। इस लोमड़ी नें जरुर देखा होगा इसलिए वह हमें बता रही है।

लोमड़ी बोली कौवे भाई अब तुम दूसरी जगह खाना रखा करो। कौवा बोला ठीक है। तभी कौवे का एक दूसरा दोस्त कौवा आकर बोला चलो भोजन की तलाश में चलते हैं। कौवा बोला हम ना जाने सुबह से शाम और एक स्थान से दूसरे स्थान तक उड करअपने बच्चों के लिए दाना पानी का प्रबंध करते हैं मगर यहां पर तो कबूतर हमारे बच्चों का खाना चुरा लेते हैं। ना जाने वह हमारे बच्चों का खाना क्यों चुराते हैं? हम तो कभी भी इनका दाना नहीं छीनते। लगता है इन्हें सबक सिखाना ही पड़ेगा।

दूसरा कौवा बोला तुम्हें किसने कहा? कबूतर खाना खा जाते हैं। वह बोला लोमड़ी नें मुझे बताया। दूसरा कौवा बोला तुम्हारे बच्चों का खाना कबूतर नहीं वह चालाक लोमड़ी खा रही है और इल्जाम कबूतरो पर लगा रही है। वह बोला तुम्हें कैसे पता है? वह खाना चुरा कर खा जाती है। वह तुम्हें धोखा दे रही है। पता लगाना कल जब वह तुमसे पूछेगी कि तुम खाना कहां रखते हो तो तुम मुझे बता देना कि मैं वृक्ष की शाखा के पास खाना रखता हूं।

दूसरे दिन जब लोमड़ी आई बोली कौवे भाई
कौवे भाई तुम बहुत ही भोले हो। मुझे बताओ कि तुमअपने बच्चों को खाना तुम कहां पर रहते हो?। मैं देखती रहूंगी तुम्हारे बच्चों का खाना कोई चुरा कर ना ले जाए। वह बोला ठीक है। कौवे नें उस पेड़ की शाखा के एक ओर इशारा किया मैं उस पेड़ की शाखा पर अपने बच्चों का खाना रखता हूं। यहां पर वह आसानी से खाना खा जाते हैं। क्योंकि यह स्थान ऊंचाई पर भी नहीं है। लोमड़ी नें उस स्थान को देख लिया। दूसरे दिन कौवा भोजन की तलाश में उड़ गया। कौवे ने चुपके से उड़ने का बहाना किया और खाने की तलाश में उड़ गया, लेकिन 2 मिनट बाद दूर से देखनें लगा। लोमड़ी आई उसने जल्दी से खाना खाया और लौटने ही लगी थी कौवे को पता चल गया कि यही हमारे बच्चों का खाना चुरा कर खाती है। कौवे ने उसे उस दिनकुछ नहीं कहा। वह इसी तलाश में हर रोज रहता था कि किस प्रकार लोमड़ी से इसका बदला लिया जाए।

एक दिन लोमड़ी मांस का एक टुकड़ा लाई। वह भी उसको खाना लाते देखा करता था। लोमड़ी जैसे ही मांस का टुकड़ा अपने मुंह में दबाकर लाई तो कौवा बोला बहन लोमड़ी बहन लोमड़ी। वह उससे कुछ भी नहीं बोली। क्योंकि उसके मुंह में मांस का टुकड़ा था? कौवां बोला बहन मुझे पता चल गया है कि मेरे बच्चों का खाना चुरा कर कौन खाता था?वह कबूतर नहीं थे। लोमड़ी सोचने लगी उसको पता चल गया है। मैं उसे ऐसा मजा चखाऊंगा कि वह भी याद करेगी। आज तो मुझे असली चोर का पता लग गया है। जैसे ही कौवे नें यह कहा लोमड़ी के मूंह से डर के मारे मांस का टुकड़ा नीचे गिर गया। कौवे नें वह मांस का टुकड़ा उठाया और बोला। मैंने उस से भोजन भी प्राप्त कर लिया। किसी पर भी चोरी का इल्जाम लगाने से पहले सौ बार सोच लेते हैं। तभी मुंह खोलते हैं।
कुआं मांस का टुकड़ा प्राप्त कर खुशी-खुशी उड़ गया। लोमड़ी हाथ मलती रह गई और वहां से मायूस हो कर चली गई।

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परिवर्तन भाग2

सविता और शशांक के परिवार में दो प्यारे प्यारे छोटे बच्चे मिष्टी और मयंक। एक दिन मिष्टि और मयंक दोनों भाई बहन दौड़ते-दौड़ते स्कूल से आए। आते ही मयंक नें अपना बस्ता कमरे में फेंका और चुपचाप दौड कर मां के गले लग कर बोला मां जल्दी खाना दो। भूख लगी है। मां उसको लाड प्यार करती हुई बोली आ बेटा मैं तुम्हें खाना खिला दूं। मां अपने हाथों से उसे खाना खिलाने लगी। पास में ही मिष्टि बैठी थी। वह बोली मेरे मुंह में भी डाल दोगी तो आपका क्या जाएगा? उसकी मां बोली बेटा ऐसा नहीं सोचते। वह छोटा है इसलिए उसे ज्यादा लाड़ प्यार करती हूं। मां कहती है कि लड़का और लड़की दोनों में अंतर नहीं करना चाहिए। यहीं पर तो अंतर साफ नजर आ गया। मीष्टि का मन हुआ की सबके सामने जोर से कह दे परंतु चुप हो गई। इसको तो कुछ नहीं कहती है। चाहे बस्ता पटके। मुझे ही कहती है। बस्ता ठीक ढंग से रखो।

एक दिन जब मयंक स्कूल से आया तो बोला मां मैं खेलने जाऊं उसकी मां बोली। हां बेटा जा। मीष्टी बोली मैं खेलने जाऊं। मां बोली अभी नहीं। उसको गुस्सा आ गया अपने लाडले बेटे को बाहर जाने पर कुछ नहीं कहती मुझे बाहर खेलने को भी मना करती हो। मुझे तो शायद प्यार ही नहीं करती। यह सब दिखावा है। सबके सामने दिखाने को तो कह देती है बेटी बेटा बराबर है। अगर बेटी बेटा बराबर है तो मुझे क्यों मना करती है? एक दिन बुआ घर पर आई हुई थी। उसकी बुआ सविता अहमदाबाद की रहने वाली थी। उसके एक बेटा और एक बेटी थी। बेटा एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था। और बेटी कॉलेज में पढ़ रही थी। वह अपने बेटे की शादी का निमंत्रण कार्ड देने के लिए आई थी। बुआ कुछ दिनों के लिए घर पर आई हुई थी। पापा से मिलने कभी-कभी महीने में एक चक्कर लगा लेती थी।

उसकी बीना बुआ मयंक को प्यार करते हुए बोली बेटा इधर आ मैं तुझे बर्फी लाई हूं। उसने बर्फी के दो टुकड़े मयंक के हाथ में रख दिए उसके बाद मिष्ठी को बुलाया। ले बेटा एक ही टुकड़ा बचा है। यह तू खा ले। मीष्टी बोली बुआ मयंक को दो टुकड़े और मुझे एक ऐसा क्यों? वह बोली बेटा यह छोटा है इसलिए। मीष्टी बोली ऐसा नहीं है। आपकी और मां की सोच एक ही जैसी है। बेटी और बेटे में अंतर करते हैं। मैं आप दोनों को समझाना चाहती हूं कि बेटा और बेटी दोनों समान होते हैं। बेटे को उतना ही प्यार करो जितना बेटी को करते हो। बीना अपनी भाभी सविता से बोली भाभी तुमने अपनी बेटी को यह क्या शिक्षा दी है? उसे समझाएं बड़ों के सामने जुबान नहीं खोलते।मिष्टी दौड़ती हुई आई बुआ क्या कहा? क्यों जुबान नहीं खोलते? मैं तो कहूंगी। आप लोगों को सत्य सुनना कड़वा लगता है मैं बच्ची नहीं हूं मां। मैं आठवीं कक्षा में आ चुकी हूं। अच्छा बुरा दोनों पहचान सकती हूं। मैं अब बच्ची नहीं हूं।

उसकी बुआ बीना बोली मीष्टी चाय बना दे। चाय पीने का मन कर रहा है। वह बोली मां भैया से कहो। आज वही आप दोनों को चाय बना कर देगा। उसकी मां बोली रहने दे तू नहीं बनाना चाहती तो ना सही। मैं ही बना देती हूं। वह बोली नहीं मां आज तो मयंक ही चाय बनाएगा। वाकई तुम मुझसे चाय बनाने वाली हो। मुझे तो चाय बनानी आती ही नहीं। मीष्टी बोली नहीं आती तो सीख ले। मैं तुम्हें बताती हूं कि चाय कैसे बनती है? जल्दी चल। मिट्टी की बुआ बोली मुझे चाय नहीं पीनी है। मीष्टी बोली वह देखो अंतर। आप समझते नहीं हो यही तो अंतर है।

आप मुझे कहते हो कि बर्तन साफ कर दो कभी आपने मयंक को कहा है बर्तन साफ कर दो। क्योंकि यह एक बेटा है? इसलिए इसके अंहम को ठेस पहुंचेगी तो बेटी के क्यों नहीं? जो काम बेटा कर सकता है वह बेटी क्यों नहीं? आज से आप जो कहते हो वही करा करो। कथनी और करनी में बड़ा अंतर होता है।

एक दिन जब उसकी शादी होगी उसकी बहू आकर बोलेगी किआज मयंक चाय बनाएंगे तब आप क्या करेंगे? अगर वह मयंक को काम करने के लिए कहेगी? उसकी मां बोली ऐसा कभी नहीं होगा। ऐसी बहू मैं ले कर ही नंहीं आऊंगी। नहीं मीष्टी बोली आप तो नहीं लाएंगे। मगर बड़ा होकर वह अपने मनपसंद की लड़की को लेकर घर आ गया तो क्या होगा? सविता सोचनें लगी यह बात तो ठीक ही कह रही है। अगर ऐसा होगा तो क्या होगा? उसकी बुआ भी सोचनें लगी आज तक मैंने भी अपने बेटे से कोई काम नहीं करवाया। मेरी मेघना सारे घर का काम संभालती है। उसकी भी शादी होने वाली है। वह तो ट्रेनिंग करने गई है। अगर मेरी बहू ऐसी आई जो काम मेरे बेटे से करवाएगी तो क्या होगा? वह सोचने लगी।

मां को याद आ गया कि एक दिन शशांक घर पर नहीं थे। मिष्टी भी कैंप में गई हुई थी और मेरी तबीयत भी ठीक नहीं थी। उस दिन मैं तो भूखी ही रह गई थी। खाना बिना खाए ही सो गई थी। मयंक को तो उसने कुछ भी सिखाया नहीं था। शशांक से भी कभी काम करनें को कभी भी नहीं कहा। सब कुछ अपनें आप करती रही। मिष्टी अपनी मां से बोली मां मेरी बात सुनो आप मयंक से कभी भी काम नहीं करवाती। आप उस सेभी थोड़ा थोड़ा काम करवाया करो।

मां कल को मेरी शादी होगी कभी मेरा अपने ससुराल में काम करने को मन नहीं कर करेगा तो अगर मेरा पति मेरा काम में हाथ बटाएं तो इसमें क्या बुराई है? कोई बुराई नहीं है? ना अगर मेरे परिवार में सभी काम करने वाले होंगे तब कितना अच्छा होगा। उन्हें मिष्टी की बातों में सच्चाई नजर आई।

उसकी बुआ बीना अपने घर अहमदाबाद चली गई थी। सविता और शशांक वह भी अहमदाबाद जाने की तैयारी करने लगे। मिष्ठी और मयंक भी खुश थे वह इतने दिनों बाद शादी में जाएंगे। सब के सब अहमदाबाद जाने वाली ट्रेन में चढ़ गए। ट्रेन आने में अभी दे रही थी। मयंक बोला मैं जा कर देखता हूं ट्रेन कहां लगी है? इतने में मीष्टि बोली में भी जाकर देखती हूं। मां नें उसका हाथ पकड़ लिया। नहीं तू नहीं जाएगी। वह बोली मां मैं कोई छोटी बच्ची थोड़ी हूं जो मैं गुम हो जाऊंगी। उसकी मां बोली नहीं तू नहीं जाएगी। मिष्टी को बड़ा गुस्सा आया। वह अपनी मां से बोली भी नहीं। यह अंतर नहीं तो क्या है?

वे अहमदाबाद पहुंच गए थे। उसकी बुआ बीना बोली आने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई। शशांक बोला नहीं बहना। चारों तरफ शादी की शहनाइयां गुंज रही थी। लोग रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर इधर उधर घूम रहे थे।मिष्टी सोचने लगी शादी में तो बहुत ही मजा आएगा। मैं शादी में खूब मौज मस्ती करूंगी। उसने जींस और टीशर्ट पहन ली। उसकी मां बोली बेटा यह कुर्ता तुमने छोटा क्यों पहना? कमीज तो थोड़ा लंबा सिलवाती। आजकल की लड़कियों को दिखता ही नहीं ऐसे कपड़े पहनेंगे तो तुम पर लड़के छींटाकशी करेंगे नहीं तो और क्या? वह बोली मां आप कौन सी सदी में जीती हो। आजकल के रीति रिवाज के मुताबिक इंसान को वेशभूषा भी वैसे ही पहननी चाहिए। इसको पहनने में क्या बुराई है? मां बोली नहीं बेटा तुझे समझा रही हूं छोटा कमीज़ नहीं पहनी थी। वह बोली नहीं मैं तो पहनूंगी।। वह अपनी मां से बहस करनें लगी। मां मैं आप से बहस नहीं करना चाहती।

जमाने के मुताबिक इंसान को बदलना ही पड़ता है। मुझे मेरे संस्कार अच्छे ढंग से पता है। मैं सारे कार्य मर्यादा में रहकर ही करूंगी। इंसान को खाना पीना पहना तो अपने पसंद का होता है। मुझे भी अच्छा बुरा पता है। मांं कुछ नहीं बोली। चुपचाप चली गई। उसकी बुआ बीना बोली पता नहीं आप ने अपनी बेटी को कैसे संस्कार दिए हैं। यह तो आपकी बात मानती ही नहीं। मीष्टि बोली मां आप लोग दोनों समझती ही नहीं है मां बुआ मैं कोई गलत काम थोड़ी कर रही हूं। अगर मैं किसी लड़के से बात कर लूं तो आप तो यही सोचेंगे कि शायद यह मेरा मित्र होगा। आप मित्र का मतलब भी ठीक ढंग से नहीं जानती। यह सब पुराने रीति रिवाज का परिणाम है। उसकी बुआ कहने लगी कि जब हम बाहर जाते थे तो हमारे माता पिता हमें बाहर जाने से भी रोकते थे। अगर किसी लड़के से बात भी कर ली तो ना जाने घर में क्या हंगामा हो जाता था। पढ़ाई भी नहीं करने दी जाती थी। एकदम हाथ पीले कर दिए जाते थे। मिष्टी बोली मां आप दोनों अपनी जगह ठीक हो। मगर आज जमाना बदल गया है। आप लोगों को भी जमाने के अनुसार बदलना चाहिए। अगर अपनी सोच को इस नए युग में नए नहीं ढालेंगे तो आप कहीं ना कहीं दुखी रहेंगे। ना आप सुखी रहेंगे और ना ही आपके आसपास के लोग सुखी रहेंगे। उसकी बुआ बोली मैं तुमसे झगड़ा नहीं करना चाहती। जो तेरा दिल करता है कर। शादी के फेरे हो चुके थे। शादी करके घर में नई नवेली दुल्हन आ गई थी। सविता और उसके दोनों बच्चों की छुट्टियां समाप्त हो गई थी।

नई बहू को आए आए हुए एक हफ्ता हो गया था स्वेतलाना ने अपनी सासू मां के चरण छू कर उनसे आशीर्वाद लिया। उसकी सासू मां ने उसे कहा कि तुम मुझसे सब कुछ बोल सकती हो जैसे तुम अपने घर में रहती थी वैसे ही तुम यहां रहना। स्वेतलाना बोली मां जी मैं आज की पढ़ी-लिखी लड़की हूं। मैं स्वच्छंद वातावरण में पली-बढ़ी हूं। सुबह जब बीना उठी तो उसका सिर भारी था। वह कुछ बोली नहीं अपने मन में सोचने लगी कि क्या करूं? मिष्टी के मम्मी पापा दोनों वापस घर चले गए थे। मिष्टी वहां अकेली रह गई थी। बीना की बेटी भी अपनी ट्रेनिंग पर वापिस चली गई थी। घर पर बहू बेटा रह गए थे। बेटा भी ऑफिस चला गया था। शाम को थक कर जब आया तो उसकी पत्नी स्वेतलाना बोली आज तुमको ही काम करना पडेगा। आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है। आज मैं खाना नहीं बनाऊंगी। तुम ही खाना बना दो। बर्तन भी तुम ही साफ कर देना। बीना यह सब सुन रही थी। बीना की तबीयत भी ठीक नहीं थी। उसके बेटे पंकज ने खाना बनाया। उसे खाना बनाना आता नहीं था। उस दिन बीना ने महसूस किया ठीक ही तो है औरत का भी तो अधिकार है आराम करने का। यह थोड़ी कि वह सारे घर का काम करती रहेगी। उसका भी मन करता होगा आराम करने का। मिष्टी ठीक ही कहती थी बेटा बेटी दोनों बराबर होते हैं। हम यहां अंतर क्यों करते हैं।? बेटे को भी तो काम करना आना चाहिए। आज मैंने महसूस किया कि बेटे को भी सभी काम करने चाहिए जो एक बेटी करती है। उसे अच्छे ढंग से संस्कार देने चाहिए उस पर बंदिश लगानी नहीं चाहिए। उसे अच्छे बुरे का फर्क समझाना चाहिए। सुबह जब बीना उठी तो बहुत ही खुश थी। वह अपनी बहू से बोली बेटी आज मैंने तुम्हारी सोच को अपना लिया है। ठीक है हमें पुराने रीति-रिवाजों को तोड़कर नई पीढ़ी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिए। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।

मयंक मिष्टी को लेने आया था। सविता बोली चल मयंक रसोई में हमको चाय बनाकर पिला। आज तो चाय तुम्हीं पिलाओगे। मैं मयंक बोला बुआ मुझे चाय बनानी नहीं आती। वह बोली कोई बात नहीं मैं तुम्हें सिखाती हूं। मिष्ठी आज बहुत खुश थी। मेरी बुआ को मेरी बात समझ में आ गई। अब कुछ भी गड़बड़ नहीं होगा। स्वेतलाना बोली चलो मां जी आज फिल्म देखने चलते हैं। वह बोली चल बेटी। मीष्टी बोली बुआ क्या मैं जींस पहनकर चलूं। उसकी बुआ बोली मैंने तुझे एक जींन्स खरीदी है। वह तुझ पर अच्छी लगेगी। छोटा कुर्ता भी चलेगा। स्वेतलाना बोली हां हां हां तुझ पर जीन बहुत ही अच्छी लगती है। मैं भी तुझे एक दिन खरीद कर दूंगी। बीना बोली अब तो मुझे भी मार्डन बनना पडेगा। मैं भी साडी पहनना शुरु कर दूंगी। सारे के सारे हंसने लगे।

समझी

समझी के पति का तबादला आसाम के एक छोटे से क्षेत्र में हुआ था। वह अपनी पत्नी के साथ कुछ दिन अपने घर छुट्टी बिताने आया था। उनकी नई-नई शादी हुई थी। उसके पति ने अपनी पत्नी को समझाया कि तुम्हें यहां पर रहने के लिए कोई परेशानी नहीं होगी। तुम अकेली भी बड़े अच्छे ढंग से यहां पर रह सकती हो। तुम यहां आस-पास की औरतों के साथ भी दोस्ती कर लेना। यहां पर सारे लोग बहुत ही अच्छे हैं। मैं तुम्हें हर हफ्ते मिलने आ जाया करूंगा। उसके माता-पिता नहीं थे। वह अकेला ही रहता था।

उसका एक छोटा सा घर था। समझी बड़ी बड़ी आंखों वाली देखने में सुंदर लंबी थी। हर रोज सैर करना उसकी आदत में शुमार था। सुबह सुबह जल्दी उठकर सैर करने चली जाती थी। वह बन ठनकर जब हर रोज घर से निकलती मोहल्ले वाले लोग उसको देखने लाइन लगाकर खड़े हो जाते।वह अभी तक किसी से भी घुली-मिली नहीं थी। मोहल्ले वाले लोगों को उसका नाम भी मालूम नहीं था। गांव की औरतें दूर से ही देख कर उसे कहती तुम तो बड़ी खूबसूरत लग रही हो। अपनी प्रशंसा सुनकर वह फूली नहीं समाती थी। वह अभी तक किसी के भी घर नहीं गई थी। उसकी कोई भी सहेली वहां पर नहीं बनी थी। उसको गहने पहनने का बहुत शौक था।

मौहल्ले वाली औरतें उसकी ओर इशारा करके उससे कहती थी अरी बहन तुम हर रोज बंन संवर  कर जेवरात  पहन कर  कंहा निकलती हो? तुम्हें अकेला देखकर कोई ना कोई तुम्हारे गहनें तुमसे छीनने की कोशिश करेगा। तुम्हारे आभूषण चोरी कर ले जाएगा।

वह शाम को 5:30 से 6:30 बजे के बीच हर रोज घर से निकलती। गांव वाले मोहल्लों  वालों को कभी उसने नहीं बताया था कि वह कहां जाती है?  मोहल्ले वाली औरतों ने उसे  पूछ ही डाला। क्यातुम कहीं नौकरी करती हो? आज तो तुम्हें बताना ही पड़ेगा। वह बोली बहन में बहुत ही कम पढ़ी लिखी हूं मेरे माता पिता ने मुझे आठवीं तक ही पढ़ाया है। मुझे सजना- संवरना बहुत ही अच्छा लगता है। मैं अगर बाहर निकलती हूं तो इसका मतलब यह नहीं कि मैं किसी को रिझाने के लिए ऐसा करती हूं। मुझे गहने पहनने अच्छे लगते हैं। उसकी मोहल्ले  वाली औरतें बोली यह  बात तो ठीक है पर हम तुम्हें समझा रहे हैं। आभूषण पहनकर बाहर मत जाया करो। एक तो तुम्हारे पति भी यहां नहीं रहते। अगर किसी दिन तुम्हारे घर में चोरी हो गई तो क्या करोगी?  नकली जेवरात भी आजकल दुकान में मिलते हैं। वह पहन लिया करो। उसने कहा ठीक है मैं तुम्हारी बात को जरूर मानेंगी। उन्होंने कहा कि तुमने आज तक हमें अपना नाम भी नहीं बताया है।

वह बोली मेरा नाम समझी है। मेरे माता पिता बहुत ही पिछड़ी जाति के हैं। मेरे माता-पिता ने मेरी शादी कर तो दी। मेरे पति मुझे यहां पर लेकर आ गए। यहां पर इस घर में कोई भी शौचालय नहीं बनाया। बहन क्या करूं? शाम के समय भी जाना पड़ता है। सुबह के समय भी। तुम मुझे समझती होगी कि मैं नौकरी करती हूं। मौहल्ले कि औरतें  उसकी बात सुनकर हंसनें लगी। तू  अपनें  पति को कहकर शौचालय क्यों नहीं बनाती। कल को कहीं कुछ ऊंच-नीच हो गया तो  क्या करोगी?

वह बोली लगता है अब तो मुझे उन्हें समझाना ही पड़ेगा। एक दिन वह बन संवर कर सारे आभूषण पहनकर बाहर शौचालय के लिए गई थी। रास्ते में उसे चोर मिल गए। उस के आभूषण देखकर उन्होंने उस के आभूषण लूटने की योजना बनाई। वह बोले तुम कहां रहती हो? वह बोली मेरा घर पास ही में है। मैं वहां पर रहती हूं। वह बोले घर में कौन-कौन है? वह बोली मेरे पति हैं। वह ज्यादातर टूर पर ही रहते हैं। चोर आपस में बातें करने लगे आज तो इसके गहने लूट कर ही दम लेंगे। वह आगे आगे चल रहे थे समझी को समझ आ गया था हो सकता है वह चोर हो। वह बिल्कुल भी नहीं डरी। चोरों को देखकर उसने सोचा यह तो मुझे शायद  मुझ से मेरे गहनों न छीन ना ले। उनसे मित्रता बढ़ानी चाहिए।

बातों ही बातों में   समझी  ने उन से पूछ लिया तुम कहां रहते हो? वह बोले हम यहां पर काम के सिलसिले में आए हैं। हम क्या आप  के घर चाय पीने  आ जाएं। वह बोली बड़ी खुशी से आ जाओ। मेरे घर मेरा घर तो बहुत ही बड़ा है। मैं तुम्हें वहां पर खाना भी खिलाऊंगी। चाय भी पिलाऊंगी। वह बड़े ही खुश हुए।

उसने अपने घर का पता उन चोरों को दे दिया वह जल्दी-जल्दी अपने घर की ओर कदम बढ़ानें लगी। क्योंकि  उसने उनको बोलते हुए सुन लिया था अभी नहीं इसके घर जाकर इसके गहनों इससे छीन लेंगे। यहां तो हमें थोड़ी से गहने ही प्राप्त होंगे। यह कह रही है वह घर में अकेली रहती है। इसलिए  आज शाम को इसके घर ही चलते हैं। वह बोले  अच्छा आज शाम को हम तुम्हारे घर आते हैं। परंतु तुमने  हमें अपना नाम तो बताया ही नहीं। हम तुम्हें क्या कह कर पुकारें। चोरों ने उससे पूछा वह बोली मेरा नाम समझी है। तुम इस नाम को लेकर पुकारना। चोर बोले अच्छा। वह भाग भाग कर घर पहुंच गई। उसने पड़ोस की औरतों को बता दिया था कि चोर गुंडों से मैं पीछा छुड़ा कर आई हूं।

मैं रात को आपको फोन करूं तब तुम मेरा फोन उठा लेना।  उसके मौहल्ले वाली औरतो नें पुलिस को भी बुलवा लिया था। वह भी अन्दर थे। जब रात को चोर आए उन्होंने  समझी समझी कह कर  दरवाजा खटखटाया। उन्होंनें फिर आवाज लगाई। ओ समझी। ओ समझी समझी। वह अंदर से बोली मैं खूब समझी। मैं खूब समझी। मैं ना रात को ज्यादा खाऊं और ना आज के बाद बाहर शौच करने जाऊं। जल्दी से अपने घर में ही शौचालय बनाऊंगी। उसने पुलिस वालों को कहा कि इन चोरों को पकड़ लो। उस दिन के बाद समझी ने अपने पति को कहा कि मेरे गहनों को बेच कर घर में ही शौचालय बना दो। मैं आज खूब समझी। मैं आज कुछ समझी। खूब समझी। समझी। ना मैं  सुबह को ज्यादा खाऊं न रात को  ज्यादा खांऊं और ना आज के बाद बाहर शौच करने जाऊं। जल्दी से अपने घर में ही शौचालय बनाऊंगी। मैं खूब समझी। मैं खूब समझी।