अच्छी आदतें भाग(2)मुहावरों का प्रयोग किया

 

10/12/2018.

रामू घर आकर बोला मां मेरे पेट में चूहे  हैं कूद रहे।

मां धमा चौकड़ी मचा कर परेशान है कर रहे।।

मां आकर बोली तू है मेरी आंख का तारा। प्यारा प्यारा राज दुलारा।।

पढ़ाई में  हमेशा ध्यान लगाना।

कक्षा में  इस बार भी अव्वल आ कर दिखाना।।

रामू बोला बहना से :-तू क्यों मुझ से झगड़ रही।

तू अपनी शेखी क्यों बघार रही।।

रेनु बोली भाई मेरे:- तू  तीन पांच मत कर। जल्दी से अपना काम कर।

झगड़ा कर अपना समय बर्बाद मत कर।।

“नौ दो ग्यारह हो जा”।

“तू काम का ना काज का दुश्मन अनाज का।।

इतनें में मां नें आवाज लगाई।

तुम दोनों की प्लेटें  मेज पर हैं लगाई।।

रामू आ कर मां से बोला जल्दी से खाना लाओ न।

इधर-उधर की बातों में मेरा समय गंवाओ न।।

मां बोली पहले साबुन से हाथ धो कर आओ। फिर खाने की प्लेट को हाथ लगाओ।।

गंदे तौलिए का इस्तेमाल मत करो।

हाथों को रगड़ रगड़ कर साफ करो।।

खाने को खुला मत छोड़ो।

ढक्कन लगाकर बीमारी से सदा के लिए रिश्ता तोड़ो।

गंदगी के कीटाणु ना फैलाएं।

डिटॉल फिनाइल का पोचा लगा कर फर्श को  खूब चमकाएं।। ़

बहना बोली भाई से :-नित्य ब्रश करने की आदत डालो

बहना का कहना कभी मत टालो।।

ना ज्यादा गर्म ना ज्यादा ठंडा खाना कभी मत खाओ।

खाना चबाकर खाने से ना हिचकिचाओ।।  ज्यादा तेल और मसाले का इस्तेमाल ना कीजिए।

जितना जरूरी है उन्हीं का उपयोग कीजिए।। कम नमक का इस्तेमाल कीजिए।

वर्ना उक्त रक्तचाप को दावत दीजिए।।

ज्यादा मीठा खाना सेहत के लिए हानिकारक गुड़ का इस्तेमाल है  हर उम्र में लाभदायक।।

जादुई जूते

  • बहुत समय पहले की बात है कि एक छोटे से गांव में राजू अपने माता पिता के साथ रहा करता था। वह छठी कक्षा का छात्र था। उसके माता-पिता मध्यम वर्गीय परिवार से संबंध रखते थे। वह बहुत ही भोला भला छात्र था। हर रोज स्कूल जाता था। अपने माता-पिता का हमेशा कहना मानता था। स्कूल में उसके दो दोस्त बन गए। वह दोनों दोस्त गुंडागर्दी में संलिप्त थे। स्कूल में हर रोज उसके साथ ही कक्षा में बैठते थे। उन्होंने राजू को भी अपना दोस्त बना लिया जो कुछ भी लाते साथ बैठते उठते बैठते शाम को वे दोनों बहुत ही दूर पैदल चल कर घर जाते थे। राजू को भी उन्होंने अपनी श्रेणी में शामिल कर लिया। दोनों दोस्त नशा अफीम के शादी के धंधे में संलिप्त थे। उन्होंने राजू को भी   नशा करना सिखाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे राजू को भी नशा करने की आदत पड़ने लगी।

    एक दिन उसके दोनों दोस्त स्कूल नहीं आए थे वह जब अड्डे पर पहुंचा जहां से वह नशे का सामान खरीदता था उन्होंने राजू को कहा कि पैसे ला कर उन्हें दिया कर उसके पिता तो उसे रुपए कभी नहीं देते थे। उन्होंने उस से कहा अगर माता-पिता तुम्हें  रुपये नहीं देते तो क्या हुआ? तुम  उनके पर्स से चोरी करके ले आना। जो भी  वस्तु मिलेअगर रुपया ना मिले तो अपनी माता के गहने भी  चलेंगें।आप की मम्मी उन रुपयों को तिजोरी में रखती होगीं। उनकी तिजोरी पर नजर रखनी चाहिए।

    वह समझ गया हर वक्त अपनी मां के पर्स को ताका करता था। वह  पर्स कहां रखती है।? वहां तिजोरी में कितने खाने हैं? मां के गहने कहां है? यह बातें घर में किसी को मत बताना नहीं तो वे तुम्हें खेलेंगे भी नहीं भेजेंगें।

    राजू नें अपनी मां का एक एक गहना ला कर उन नशाखोरी वाले गैंग को देना शुरू कर दिया वह छोटा बच्चा क्या करता? वह उसे तरह-तरह के लालच  देते। वह अभी भी सुधर सकता था। उसके माता-पिता को तो उस बात की भनक नहीं थी उनका बेटा भी इन कामों में संलिप्त हो सकता है। राजू को धीरे धीरे  नशे की लत की आदत पड़ गई।

    एक दिन उसने अपनी मां की अंगूठी चुरा ली। उसकी मां ने उसे तिजोरी खोलते  देख लिया। वह यह सब देख कर हैरान हो गई। एक दिन उसके ₹2000 उसके पर्स में से गायब थे। उसने सोचा शायद  बाजार में शॉपिंग करते करते उसने कहीं गिरा दिए होंगे। उसने घर में अपने पति को भी कुछ नहीं कहा। उनका ध्यान अपने बेटे की तरफ कभी भी नहीं गया कि वह भी कभी चोरी कर सकता है। उसने तिजोरी के बारे में अपने बेटे से बात नहीं की जैसे  ही वह अपने दोस्त के घर गया उसकी मां ने उसके बाद देखा तो उसका कलेजा बाहर को आने लगा। उसकी तिजोरी में कुछ भी नहीं था उसके सारे के सारे गहने चोरी हो गए थे। उसने सारा घर छान मारा। अचानक उसने सोचा कि कहीं मेरा बेटा तो चोरी नहीं करता होगा  देखना तो पड़ेगा  ही क्योंकि जिस  समय वह स्कूल जा रहा था वह तिजोरी को के आस पास ही खड़ा था।

    अचानक उसका बेटा घर वापिस आकर बोला मां मैं अपनी कॉपी यहीं पर छोड़ कर चला गया। जल्दी से ढूंढ दो नहीं तो आज मैडम से उसे मार पड़ेगी। वह बोली ठीक है बेटा तुम बिना खाए ही चले गए थे मैं तब तक तुम्हारी कॉपी तुम्हें दे देती हूं।। राजू खाना खाने की मेज पर बैठ कर  खाना लगा। वह बोल ठहर जा मैं ने से पानी लेकर आती हूं। वह जैसे ही बाजू के कमरे में गईउसनें राजू के बस्ते की तलाशी ली। उसके बारे में वह सोच भी नहीं सकती थी कि उसके बेटे को यह आदत कैसे लग गई। हमारे घर में तो कोई भी नहीं आता है उसने चोरी करना कहां से सीखा?शाम को जब उसके पापा  घर आए तो राजू की मां ने अपनें पति को सारी बात समझा कर कहा कि हमारा बेटा किसी गम्भीर बीमारी का शिकार हो गया है। उसे अगर अभी  से रोका नहीं गया तो वह ना जाने क्या कर बैठे? हमें अपने बेटे को प्यार से समझाना होगाह उस पर कड़ी नजर रखनी होगी। एक दिन मेरे पर्स से दो हजार रुपये गुम हो गए थे। मैंने सोचा शायद वह कहीं गिर गए होंगे लेकिन आज समझ में आ गया है कि हमारा बेटा किसी गलत संगत में पड़ गया है। उसकी मां संगीता ने अपने बेटे राजू पर निगरानी रखनी शुरू कर दी। राजू को पता चल चुका था कि उसकी मां को  उसके चोरी करनें की जानकारी  मिल गई है। इसमें सोचा वह आज घर  ही नहीं जाएगा। वह चल पड़ा चलता चलता जा रहा था उसे भूख भी बड़े जोरों की लग रही थी। अचानक उसे एक धर्मशाला दिखाई थी। वहां पर जा कर देखता हूं कि अंदर क्या है? शायद वहां पर खाना मिल जाए। उसने सुना था कि धर्मशाला में बच्चों को खाना मुफ्त में मिलता है। लेकिन वह जैसे ही अंदर घुसने लगा वहां पर बाहर उसे बहुत ही सुंदर जूते दिखाई दिए। उसने अपने मम्मी पापा से कितनी बार अच्छे जूते लेने के लिए फरमाइश की थी परंतु उसके माता-पिता ने उसे सुंदर जूते कभी भी लेकर के नहीं दिए। वह सोचने लगा क्यों ना मैं इन जूतों को पहन लूं  मुझे कोई नहीं देखेगा। सब के सब तो अंदर है। मुझे यहां कोई भी  देखें वाला नहीं है। मुझे कोई भी यहां पर चोर नहीं समझेगा। यह जूते तो बड़े हैं। थोड़े से ही बड़े होंगे  तो भी चलेगा उसने वह जूते पहन लिए। वह जूते जादू के थे वह जूते जो कोई भी व्यक्ति पहनता था उसी के नाम में वह फिट हो जाते थे। वह जूते उसे बहुत अच्छे लगे। वह झूमते गाते रास्ते से जा रहा था। कई दोस्त मिले वह उन से बातें करता जा रहा था। किसी भी दोस्त नें उसकी बातों का जबाब नहीं दिया। अचानक उसे रास्ते में उसके दोनों दोस्त आयुष और अविनाश दिखाई दिए। दोनों के पास जाकर उसका चेहरा खिल गया। राजू नें उन्हें आवाज दी लेकिन उन्होंने उसकी बात का कोई जबाब नहीं दिया। शायद वे दोनों  उस के स्कूल आने पर एतराज कर रहें होगें तुम कैसे हमारे बिना कल स्कूल चले  गए। कोई बात नही इन दोनों को मनाए बगैर मैं भी यहां से जानें वाला नहीं। चलो इन के पीछे पीछे चलता हूं। देखता हूं वे आपस में बाते करते इस वक्त किस के पास जा रहें हैं? दोनों दोस्त नशा करानें वाले गैंन्ग के पास जा कर बोले हमारे

    ₹10, 000 जल्दी ही हमें दे दो। हमने एक दोस्त को अपने गैंग में शामिल कर दिया है। उसका नाम है राजू। आपने हम से कहा था कि अगर तुम एक व्यक्ति को लाओगे तो हम तुम्हें ₹10, 000 देंगे। हमने आपके पास उस बच्चे को लाकर सौंप दिया और उसने अपने सारे गहने आपके पास लाकर दे दिए। हमने उस बच्चे को भी झांसा देकर अपने गैंग में शामिल कर दिया। वह नशे के गिरोह का आदमी बोला चले जाओ यहां से तुम दोनों को गोली मार दूंगा। तुम्हें कोई रुपये नहीं मिलने वाले। तुमने अगर हमारी बातें किसी को बताई तो तुम्हें भी मृत्यु के घाट उतार दिया जाएगा।

    राजू को अपने दोस्तों पर दया आई। अपने दोस्तों को बचाने के लिए दौड़ा। वह चिल्लाता रहा मगर उसके दोस्तों ने तो मानो कुछ सुना ही नहीं। वह हैरान रह गया।

    ऐसे दोस्त भी हो सकते हैं। दोस्तों ने उसे गलत धंधे में फंसा दिया। उसने तो अपने माता पिता के सारे गहने बेच दिए। एक दिन अपने माता पिता के पर्स से ₹2000 चुरा लिए। वह तो अपने दोस्तों पर आंख मूंदकर विश्वास करता था। आज उनका असली चेहरा उसे नजर आ गया। इनके गैंग में लिप्त हो गया। पर मैं दिखाई क्यों नहीं दे रहा हूं।

    आज वह घर में सब कुछ बता देना चाहता था वह घर की ओर दौड़ने लगा। घर पहुंच गया लेकिन घर में माता-पिता नें रो रो कर सबको इकट्ठा कर लिया था। हमारा बेटा ना जाने कहां चल गया? क्या करें? वह जोर जोर से बोल रहा था कि मैं यहां हूं। मैं यहां हूं। लेकिन उसको कोई भी देख नहीं पा रहा था। जूते जादू के थे। जिस कारण वह दिखाई नहीं दे रहा था। वह भगवान से प्रार्थना करने लगा कि हे भगवान क्या करूं? जल्दी से मुझे वापस अपने रूप में बदल दो। मैं कभी भी चोरी नहीं करुंगा तभी उसकी नजर कांच के एक टुकड़े पर पड़ी। वह कांच के टुकड़े में नजर आ गया। उसकी समझ में आ गया शायद यह जूते जादू के हैं। उसकी दादी से उसने बहुत सारी कहानियां सुनी थी। लेकिन कोई  उन जूतों को धर्मशाला में क्यों छोड़ गया?

    यह प्रश्न उसके दिमाग में घर कर गया। मैं इसका पता लगा करके ही रहूंगा क्या करूं? मेरा नशा करने को मन कर रहा है। नहीं मुझे इन बच्चों जैसा नहीं बनना है। इन जूतों ने मुझे सच्चाई की राह दिखाई वर्ना मैं तो भटक गया था। उसका हाथ लोहे की छड़ के ऊपर पड़ गया। अचानक वह दिखाई देनें लग गया। उसके परिवार का  एक सदस्य आकर बोला तुम्हारे माता-पिता रो रो कर परेशान हो रहे थे। तुम कहां चले गए थे? वह बोला मैं तो कहीं नहीं गया था।

    उसकी मां दौड़ते दौड़ते आई बोली बेटा तू कहां चला गया था? उसने अपने बेटे को गले लगा कर चूम लिया। सब के सब लोग अपने अपने घरों को चले गए थे। उसने अपनी मां को बताया मां पिताजी आप मुझे माफ कर दो आपसे मैं आज सच बताना चाहता हूं।

    मैं आपके पर्स चोरी करके ले जाता था। कभी कभी सौ के नोट कभी 500रु के। मुझे मेरे दोस्तों ने गलत संगत में डाल दिया।  उनके चेहरे से नकली नकाब उतर गया। उसकी मां बोली किसने तुम्हें गलत संगत में डाला? वह बोला मुझे तो अभी इस धंधे में पड़े चार-पांच महीने ही हुए हैं। आप जब तिजोरी खोल कर देख रही थी तो मुझे पता चल गया था कि आपने सब कुछ देख लिया है इसलिए मैं आज घर नहीं आना चाहता था। अचानक चलते चलते मैं इतनी दूर निकल आया मुझे भूख भी बड़े जोर की लग रही थी तभी मेरी नजर एक धर्मशाला पर पड़ी।

    मैं  धर्मशाला के अंदर चला गया। मेरी नजर उस धर्मशाला में बाहर रखे चमचमाते जूतों पर पड़ी। मुझे कोई ना देखें मैंने जल्दी से वह जूते उठा लिए। मैंने फिर चोरी कीह वह जूते पहनें। मैं जूते अपने पैर में पहन धीरे धीरे रास्ते से चला जा रहा था। कई दोस्त मिले मैं उनसे बातें करता रहा लेकिन उन्होंने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया। अचानक मेरे स्कूल के मेरे सबसे पक्के दो दोस्त अविनाश और आयुष मिले। दोनों को देखकर चेहरा खिल उठा। मैंने उनको आवाज दी लेकिन उन्होंने मेरी ओर देखा भी नहीं। मुझे बड़ा गुस्सा आया मैं उनके पीछे पीछे चलने लगा ताकि उनकी बातें सुन सकूं। वह एक अड्डे पर जाकर बोले जल्दी से हमें ₹10000 दे दो। हमने आपको एक नशा खोर फंसा कर दिया है। वह भी नशे में संलिप्त हो गया है। उसने घर से सारे अंगूठी और जेवरात लाकर आपको दे दिए। आपने हमें कहा था कि जब आप एक बच्चा लाओगे तो हम तुम्हें ₹10000 देंगे। आप जल्दी से हमें ₹10000 दे दो। गिरोह वाला व्यक्ति मिला चलो निकलो यहां से वे दोनों बोले हम यहां से नहीं जाएंगे। हम तुम्हारे ग्रुप का पर्दाफाश कर देंगे। गैन्ग का नेता पिस्तौल लेकर आया वह बोला अगर तुमने जरा भी हमारे बारे में किसी को बताया तो तुम दोनों का काम तमाम कर दूंगा। नशे में संलिप्त व्यक्ति पिस्तौल चलाने की वाला था तभी वहां पर एक ग्राहक आया। वे दोनों बच्चे अपने-अपने घरों को जान बचा कर भागे। मुझे उनकी असलियत पता चल गई। वह जादू के जूते थे जिसमें से मैं दिखाई नहीं देता था। जब मैं रास्ते से आ रहा था तो मुझे एक आदमी मिला। वह बोला बेटा जो जूते तुम्हें मिले हैं वह जादू के जूते हैं। मुझे किसी साधु महात्मा ने दिए थे। वह किसी इंसान के पास केवल दो बार ही प्रयोग किए जा सकते हैं हम इन जूतों का प्रयोग अच्छे काम के लिए करेंगे तो यह जूते करिश्मा दिखाते हैं अगर गलत उपयोग किया तो उस व्यक्ति की खबर नहीं। यह गलत उपयोग किए जाने वाले व्यक्ति के पास दो बार से ज्यादा नहीं रहते। मैंने भी लालच किया था। मुझे भी सजा भुगतनी पड़ी।मैं इन जूतों को इसलिए छोड़ कर गया था ताकि कोई इन जूतों को ले जाए लेकिन मैंने तुम्हारी सारी गतिविधियों पर नजर रखी। तुमने चोरी की। उसके पश्चात तुम्हें इन जूतों में ऐसा सबक सिखाया कि कभी भी गलत बच्चों का साथ नहीं करोगे। इस कारण तुम अपने माता-पिता से मिले मैं तुम्हें बताना चाहता था कि तुम भी इन जूतों का प्रयोग दूसरी बार उपयोग करने के पश्चात अच्छे काम के लिए करना उसके पश्चात तुम इनको समुद्र में फेंक देना नहीं तो यह जूते किसी ना किसी व्यक्ति को भटकाती रहेंगे। बच्चा सही दिशा अपनाएगा उसे यह जूते कुछ नहीं कहेंगे। यह कहकर वह साधु चले गए।

    घर आकर  राजू नें कसम खाई कि वह जीवन में कभी भी गंदे कामों में संलिप्त नहीं होगा। आज अपने माता पिता को सारा सच बता दूंगा। दोस्तों को भी उस गैन्ग के लोगों से  छूडा  कर लाऊंगा और आपके सारे गहने जब तक मैं आपके गहने लाकर आपको  नहीं  दे दूंगातब तक मैं  चैन से नहीं बैठ सकता। मैं आपका  अच्छा बेटा कहलानें  लायक नहीं हूं। पिताजी मुझे माफ कर दो। उसके मां पापा बोले इस काम में हम भी तुम्हारी मदद करेंगे।

    उसके पिता राजीव ने पुलिस इंस्पेक्टर शेखर को फोन लगाया। पुलिस इन्स्पेक्टर शेखर के दोस्त थे। शेखर आकर बोले बेटा हम तुम्हारे साथ साथ रहेंगे। वह बोला मैं इन जूतों को पहन कर गायब हो जाऊंगा। उनके अड्डे के सारे राज पता कर लूंगा। राजू ने पुलिस डॉक्टर को उन जूतों के बारे में बता दिया था।

    अंकल आप दिशांत होटल में दूसरे फ्लोर में आ जाना। वहां पर मैं  जादुई जूते पहन लूंगा और उन गैन्ग के अड्डे का पर्दाफाश करके ही आपके सामने आऊंगा। आपको सारा माजरा बताऊंगा।

    उसकी मां पिता को अपने बेटे पर विश्वास हो गया था। वह जैसे ही घर से निकला उसने मंदिर में जाकर भगवान के सामने माथा टेक कर कहा कि हे भगवान जी मुझे माफ कर दो। आज अचानक आप ने संभाल लिया। जूतों नें तो अपना कमाल दिखा दिखा दिया। उसने भी तो चोरी की है। उसे भी आज प्रयश्चित करना पड़ेगा। मैं सारा कार्य करने के पश्चात इन जूतों को समुद्र में फेंक दूंगा नहीं तो उन जूतों को कोई ना कोई पाने का प्रयत्न करेगा और कोई ना कोई गलत काम करेगा।

    राजू जैसे ही मंदिर से बाहर आया उसने अपने आप को तरो ताजा महसूस किया तभी उसने देखा कि उसके जूते किसी उस जैसे बच्चे नें पहन लिए थे। वह बच्चा गायब हो गया था राजू ने उसे देख लिया था वह उस बच्चे के पीछे भागा। इनमें जूतों की जरूरत तो उसे है। लेकिन यह क्या? वह बच्चा चला जा रहा था। राजू नें पीछे मुड़ कर देखा उसे कोई देख तो नहीं रहा था। अचानक उस बच्चे का पैर लोहे के एक टुकड़े से टकराया। वह बच्चा नीचे गिर गया और उसके जूते भी गिर गए। राजू नें तभी उन गैंन्ग के सदस्यों को जाते देखा। वह बच्चा शायद उन से बचाएं के लिए भाग रहा था। वह उस बच्चे को नशा करने के लिए प्रेरित कर रहे थे।वह भी अपनें घर से अपनी मां के गहनें चोरी करके लाया था। शायद इन गैंन्ग  के आदमियों ने उसे भी अपने धंधे में  शामिल कर लिया था। जल्दी से राजू ने वह जूते पहने और गायब हो गया वह उस बच्चे के पास जाकर खड़ा हो गया। वे गैन्ग के आदमी उस से कह रहे थे जब तुम जब तक तुम अपने घरों से और गहने लाकर नहीं दोगे तब तक हमें तुम्हें छोड़ने वाले नहीं है। यह देखकर राजू की आंखों से झर झर आंसू बहने लगे। वह बच्चा भी इनकी गलत  संगत का शिकार हो जाएगाह वह आज अच्छा काम करके ही रहेगा। इस बच्चे को भी बचाएगा और अपने दोस्तों को भी  इन से बचाएगा।

    उसने पुलिस इंस्पेक्टर को बता दिया कि इनका गिरोह दूर-दूर तक फैला है। पुलिस ने राजू को शीशे में देख लिया था। राजू कहां पर है? राजू ने उन्हें बता दिया था कि वह शीसे में ही नजर आएगा।पुलिस  ढूंढते ढूंढते वहां पर पहुंच गई। अचानक पुलिस इन्स्पेक्टर ने लोहे की चाबी से राजू को  छू लिया। राजू अपने असली वेश में आ गया। राजू ने उन चरस अफीम और नशे के गैन्ग का पर्दाफाश कर अपने दोस्तों को भी सही सलामत घर पहुंचा दिया। उसके दोस्तों ने अपने किए पर अपने दोस्त से क्षमा मांगी। वे बोले तुमने हमको भी सुधारा और अपने आप भी  भटकने से बच गए।

    हम जैसे ना जाने लाखों करोड़ों बच्चे होंगे जो छोटी सी उम्र में गलत आदत  ने का शिकार हो जाते हैं। कोई  जादुई जूते जैसा करिश्मा करके उन लाखों करोड़ों बच्चों को भटकने से बचा कर लाए तो उसकी नैया तो पार लगेगी ही बल्कि अपने आसपास उन बच्चों की दुआएं भी लेकर अपने  नसीब को वह  संवार देगा। हमें ऐसे बच्चों को प्रेरणा देनी है जो छोटी सी उम्र में इन सब नशा जैसी आदतों में पड़ जाते हैं। अपना तो नाश करते हैं बल्कि  अपने माता पिता के सुखचैन को भी सदा सदा के लिए खो देते हैं।

    आजकल की नई पीढ़ी से अगर एक भी  व्यक्ति ऐसे बच्चों को सुधारने का कोई बीड़ा उठा ले तो हमारे देश की काया ही पलट जाएगी। राजू नें आकर अपने माता पिता को कहा कि मैं अभी आता हूं। यह कहकर वह जल्दी से भाग भाग कर समुद्र की ओर गया। उसने वह जूते समुद्र में फेंक दिए।

    पुलिस इंस्पेक्टर ने उस गिरोह का पर्दाफाश कर उसके साथियों को सही सलामत बचा लिया और राजू की मां के गहने भी उसे वापस कर दिए। उन नशाखोरों  के अड्डे में संलिप्त सभी गिरोह के व्यक्तियों को जेल में डाल कर उन्हें सबक सिखाया। पुलिस इन्सपैक्टर नें राजू को कहा कि तुम छोटे से बालक अपनी सूझबूझ से रास्ता भटकनें से बच गए मैं भी तुम्हें सलाम करता हूं। ऐसी सोच सभी को दे।

जादुई तलवार और दुष्ट जादूगर (पांच दिसम्बर की कवि

परियों की राजकुमारी नैना थी बहुत ही सुंदर। सुंदर आंखों वाली थी बहुत ही चंचल।।

एक दिन नैना बाग में थी घूम रही।

फूलों के संग बाग में थी झूम रही।।

एक भंवरा उड़ कर उस बाग में आकर मंडराने लगा।

परी के आगे पीछे घूम कर उसे डराने लगा।। भंवरा आकर परी को बुलाने लगा।

उसे बुलाते देखकर परी को गुस्सा आने लगा।। परी बोली तुम कहां से आए हो?

तुम क्यों मेरे आगे पीछे मंडराए हो।।

भंवरा बोला मैं ना जाने यहां कैसे पहुंच गया? मैं तो शिकार खेलने के बहाने यहां आ कर रास्ता भटक गया।।

एक जादूगर ने मुझे भंवरा बना दिया।

मैं था एक राजकुमार मुझे भंवरा बना कर अपने महल में पहुंचा दिया।।

भंवरा बनकर अपने घर जाने की कोशिश करता रहता हूं।

हर बार विफल हो कर ही रह जाता हूं।।

परी रानी परी रानी तुम्हें देखकर मेरे मन में एक विचार है आया।

तुम्हे अपना समझ कर यह सब कहनें को मन कर गया।।

तुम्हें ही मुझे उस जादूगर से  बचा कर लाना होगा।

अपना कमाल दिखा कर उस जादूगर को सबक सिखाना होगा।।

राजकुमारी जी, मैं तुम्हें सारी बात समझाता हूं।

जादूगर को मार कर अपने देश वापस जाना चाहता हूं।।

परी बोली तुम भंवरा बन कर आए हो शायद एक बहुरूपी हो।

कैसे विश्वास करूं तुम पर तुम एक छलिए भी हो सकते हो।।

भंवरा बोला मैं था एक सुंदर देश का राजकुमार।

मैं केवल शिकार से रखता था सरोकार।।

मैं जादूगर का पीछा करता करता था दौड़ रहा। उसकी चीजों को चुराने  को मेरा मन था डोल रहा।।

उसके पास जादू की तलवार देख कर मन मेरा खुशी से झूम उठा।

तलवार की लालच में उसके पीछे चलने के लिए दिल मचल उठा।।

जादू की तलवार लेकर वह एक विशाल महल में आया।

मुझे पीछा करता देख कर उसकी समझ में सब आया।

जादूगर बोला तुम्हें पता चल गया है जादू की तलवार का।

समय आ गया है तुम्हें भंवरा बना कर अपनी भूख मिटाने का।।

जो कोई भी जादूगर की तलवार पाने की कोशिश करेगा।

वह अपनी जान से हाथ धो बैठेगा।।

तुम भंवरा बन कर  यहां  गुनगुनाते रहो। चैनसुख होकर जान अपनी गंवाते रहो।।

परी को उसकी बात में सच्चाई  थी नजर आई। वह दौड़ी दौड़ी अपनी सहेली संग बताने चली आई।।

अपनी सहेलियों को बोली हम सबको एक विशाल  जादुई महल में  जाना होगा।

वहां पर एक राज कुमार को बचा कर वापस लाना होगा।।

जादूगर ने उस राजकुमार को अपना शिकार  है  बना लिया।

भंवरा बना कर उस पर अत्याचार है किया।। चुपके से उसके महल में जाकर उसकी जादूगर की तलवार लानी होगी।

राजकुमार की जान हमें जल्दी से बचानी होगी।।

परी भंवरे के पास आकर बोली, भंवरे राजा भंवरे राजा- तुम्हें देखकर मेरा मन है डोला। तुम्ही तो हो मेरे   सपनों के सुन्दर छैला।।

 

हम  हम सब उस जादूगर को मार कर ही दम लेंगी।

जब तक वह नहीं मरेगा हम सब पीछे नहीं हटेंगी।।

भंवरा उन परियों के संग एक मिन्ट में जादूगर के देश में पहुंच गया।

राजकुमार उनकी ताकत देख कर खुश हो गया।।

वह बोला जादूगर की तलवार है चांदी के एक संदूक में ।

जिसकी खबर  का हिसाब रखता है वह जादू गर पल पल में।।

तुम्हें उस तलवार को जादूगर से लाना होगा। उसके तकिए के नीचे से चाबी को उठाना होगा।।

भंवरा बोला मैं जादूगर का पीछा करता रहूंगा। तुम्हें हर पल पल की खबरें देता रहूंगा।।

परी बोली तुम जादूगर के पास जाकर मंडराओ।

हमें भी उस जादूगर तक चुपके से पहुंचाओ।। हम जादू की बल से उस महल में आएंगी।

वहां पहुंचकर अपना कमाल दिखाएंगी।।

भंवरा उनको महल में ले गया।

परी ने उसका पीछा कर उसे जादूगर को भी खुश कर दिया।।

परी ने बिस्तर से चाबी निकालकर उस जादूगर की तलवार को प्राप्त कर लिया।

तलवार जैसे ही थी हाथ में आई।

राजकुमार की आंख  खुल आई।।

जादूगर की तलवार का स्पर्श मुझसे करवाओ। भंवरे से मुझे इंसान बनाओ।।

राजकुमारी ने जल्दी से जादू की तलवार भंवरे पर थी घुमाई।

देखते ही देखते भंवरे को भी बेहोशी छाई।। परियां यह देखकर घबराई।

थोड़ी देर बाद नौजवान राजकुमार को  इन्सान बना देख कर मुस्कुराई।।

राजकुमार बोला प्यारी प्यारी परी तुमने मेरी जान बचाकर मेरी दुनिया संवारी।

मुझे नई खुशियाँ दे कर मेरी खुशी बढाई।।

मैं उस जादूगर को जल्दी से मौत के घाट  पहुंचाऊंगा।

तुम्हें अपने रानी बनाकर अपने महल में ले जाऊंगा।।

परी ने़ राजकुमार संग की सगाई।

उसकी सखियों ने उसे सगाई की  दी बधाई।। खुशी खुशी राजकुमार परी को लेकर घर आ गया।

परी के संग ब्याह कर सुखचैन  सारा पानी गया।।

नन्हें शिक्षक

स्कूल में सभी बच्चे पिकनिक पर जाने का आयोजन कर रहे थे। सोनाली पिंकू राजू और रवि यह अपने ग्रुप के लीडर थे। वे सब साथ-साथ चल रहे थे। मैडम ने उन्हें हिदायत दी थी कि सब बच्चे एक साथ घूमने चलेंगे। कोई भी बच्चा अकेला कहीं बाहर नहीं जाएगा सारे बच्चे छोटी छोटी उम्र के थे।

वे सभी पिकनिक स्थल पर चलकर खाना खाने के लिए बैठ गए। एक बाग में विश्राम कर रहे थे वहां पर एक ओर बैठ कर खाना खा रहे थे। पिंक और  राजू बहुत ही शरारती थे पिंकू ने देखा कि उनकी बगल में एक दंपत्ति परिवार बैठा हुआ था। वह लोग भी खाना खा रहे थे। पिंकू ने देखा उन में से एक महाशय जी ने खाना खाने के बाद खाने का डिब्बा और कागज वहीं के वंही पड़े रहने दिए। यह सब पिंकू देख रहा था बोला मैडम एक मिनट  के लिए मैं वहां जा सकता हूं क्या? मैडम ने सोचा वह लघुशंका जाने की बात कर रहा है।?

वह दौड़ कर उस परिवार के निकट जाकर बोला आप बड़े लोग हैं। जब  तक खाना खाने के बाद कागजों को और  खाना खाने की प्लेट को  नहीं  उठाओगे  तो बच्चे भी आपसे यही सीखेंगे। अंकल जल्दी से आप इन फेंके हुए कागजों को अपने थैले में भर दो। राजू भी पास चला आया बोला मैडम’ मैं अपने दोस्त को लेने जाऊं। मैडम ने पिंकू की सारी बातें सुन ली थी।

राजू के पास  अचानक तेजी से एक गाड़ी आकर रुकी। राजू ने अपने आप को संभाला बोला अंकल आप गाड़ी इधर उधर देख कर चलाया करो,। आपने क्या मुझे नहीं देखा? आपने तो मुझे आज मार  ही दिया होता उसने पिंकू को डांटते हुए कहा चल हट मुझे सिखाता है। वह आदमी तेजी से गाड़ी को भगाकर ले गया और सामने  आगे खंभे में उसकी गाड़ी टकरा गई। उसको लोगों ने पकड़कर अस्पताल पहुंचाया।

सोनाली  ने मैडम से शौचालय जाने को कहा। मैं शौचालय जाना चाहती हूं। मैडम ने कहा बेटा हमें शौचालय करने के लिए-बाहर नहीं जाना चाहिए। पास में ही साथ साथ  चलना होगा। मैडम उन सभी बच्चों के साथ पैदल चलने लगी। पगडंडी वाले रास्ते से सभी बच्चे चले गए। उन सब बच्चों ने देखा कि पास ही बाहर दो-तीन लोग एक होटल के बाहर शौचालय जा रहे थे जब वे उठे तो बच्चों को अचानक देखकर शर्म से पानी-पानी हो गए।  सोनाली बोली  अंकल आपको पता नहीं बाहर शौच करना कितना हानिकारक है? आपने शौच करने के उपरांत उस पर मिट्टी नहीं डाली। हमारी मैडम हमें बताती है कि खुले में अगर   शौच जाना ही पड़ जाए तो उस पर मिट्टी डाल देनी चाहिए। अंकल आप वहां जा कर उस पर मिट्टी डाल कर आओ नहीं तो मैं आपकी यह बातें सबको बता दूंगी। मैडम जी नें  सोनाली की सारी बातें सुन ली थी.। रवि को कहा तुम उन तीनों को बुला कर लाओ। रवि उन के पास जा कर बोला तुम्हें मैडम बुला रही है।

मैडम ने तीनों बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा हम घर पहुंचने ही वाले हैं।

पास में ही सोनाली का घर है उसके घर में जाकर चाय पीते हैं। नानी के घर पर उसकी मम्मी  की सहेलियां  चाय पीने का मजा ले रही थी। मैडम ने कहा मुझे भी बड़ी जोरों की भूख लगी है। हम सब भी उसके घर ही चाय पीएंगे।  सोनाली बोली  चलो सब मेरे घर खाना खा कर भी जाना। वे सब बच्चे धीरे धीरे चलते हुए सोनाली के घर पर  पंहुच गए।

 

सोनाली की ममी की सहेली ने कहा मुझे अपने बच्चे को दूध पिलाना है। सोनाली की मां ने कहा किचन में चली जाओ। अपने बच्चे को दूध पिलाने के बाद वह कमरे में आ गई थी उसने दूध को हीटर पर गर्म किया और उसने हीटर को बंद नहीं किया। पानी का नल भी खुला रखा। सभी सहेलियों ने चाय पीने के बाद वही कागज के टुकड़े फेंक दिए थे।  सोनाली का घर एकदम कूड़े कचरे का डिब्बा लग रहा था।

सोनाली अन्दर आ कर बोली आपने अंदर हीटर बंद नहीं किया। वह भी खुला रहने दिया और सभी आंटियों को  कहा कि आपने खाने की मेज पर अच्छे ढंग से पकौड़े नहीं खाए। पेपर प्लेट रोल करके एक कोने में फैला दिए। । आप सब तो हमसे बड़े हैं। आप लोग हमें नहीं सिखाएंगे तो हम कैसे सीख पाएंगे? आप अपने घर को भी क्या ऐसा ही रखती हैं? दूसरे के घर को भी अपने घर जैसा समझना चाहिए।

 

हमारी मैडम ने हमें सिखाया है।   हमें अपने घर को साफ सुथरा रखना चाहिए। सारी सहेलियों को बच्चे की बातों में सच्चाई नजर आई। वह बोली एक छोटी सी बच्ची की सीख ने उन्हें सही कदम उठाने को मजबूर कर दिया है। मैडम नें सोनाली की ममी को चाय के लिए धन्यवाद कहा।  मैडम ने बच्चों को चलने के लिए कहा।

हम सब पगडंडी के रास्ते से चलते हैं क्योंकि वहां पर ज्यादा ट्रैफिक है। बच्चे पगडंडी के रास्ते से चलने लगे। जगह-जगह पेड़ गिरे थे पास बिजली की तारे नीचे गिरी  थी।

मैडम ने बच्चों को कहा कि मेरी बात ध्यान से सुनो। शायद वहां कोई बच्चा गिरा है।  चलो चल कर देखतें हैं। शायद  उस बच्चे को बिजली की तार से करंट लग गया  हो।  उसनें बिजली की नंगी तार को छू लिया हो। मैडम बोली पहले उसे अस्पताल पहुंचाते हैं अभी इसकी सांसे बाकी है। जल्दी से उन्होंने उस बच्चे को अस्पताल पहुंचाया। मैडम ने बच्चों को बताया हमें कभी भी रास्ते में गिरी हुई बिजली की तारों को नहीं छूना चाहिए। उसमें करंट होता है इस बच्चे ने भी शायद इसे छू लिया होगा।  बच्चें को तो बचा लिया गया।  वह बच्चा बहुत बुरी तरह डर गया था।

जब सारे बच्चे उस बच्चे को देखने आए पास में ही

एक बिस्तर पर  उस इंसान को देखकर राजू चौका  बोला अंकल मैंने आपको कहा था कि गाड़ी ध्यान से चलाओ। आपने मेरी बात की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। अंकल ने उसकी ओर देखते हुए कहा  बेटा आज मैंने तुम्हारी बातें गांठ में बांध ली है। तुम्हारी बात को पहले ही समझ लेना चाहिए था। जब इंसान के   स्वयं पर गुजरती है  तब उसे सही जानकारी होती है । बेटा ‘“धन्यवाद,, नन्हे  शिक्षकों! तुम्हीं में हमारे देश का भविष्य सुरक्षित है।

 

ट्रैफिक के नियमों का पालन

आओ हम एक गीत बनाए ट्रैफिक के नियमों का पालन करना सबको सिखाएं।

लाल बत्ती कहती थम – थम- थम।

हर बच्चा ताली बजाकर कहता बम बम बम।।

पीली बत्ती कहती   होशियार- होशियार होशियार।।

आपस में ना करो तकरार।।

चलने को हो जाओ तैयार।

सड़क पर ना करो इन्कार।

हरी बती कहती बस चलते जाओ चलते जाओ चलते जाओ।

झूमते गाते बस आगे बढ़ते जाओ आगे बढ़ते जाओ आगे बढते जाओ।।

लाल बत्ती पर वाहन को रोको।

बात करने से सबको टोको।।

पीली बत्ती पर चलना शुरू करो। फिजूल बातें करना बंद करो।।  

हरी बत्ती पर वाहन चलाओ।

दुर्घटना के नियमों का पालन करके खुशी खुशी अपनी यात्रा पूरी कर पाओ।।

(इन बातों का हमेंशा पालन करो) ।______________________

(1) सदा सड़क के बांई ओर चलें।

(2)सड़क पार करनें से पहले बांए दांए देखे)।

(3)जेब्रा क्रॉसिंग का प्रयोग करें

(4)फुटपाथ पर चलें।

अनुशासन का पालन

अनुशासन का पाठ बच्चे को माता पिता है सीखलाते।

माता-पिता बच्चे का नियम बद्ध तरीके से पालन है करते।।

विद्यालय जाकर बच्चा गुरु के संपर्क में रहकर शिक्षा ग्रहण है करता।

गुरु दीपक के समान जलकर ज्ञान का प्रकाश उनमें है जगाता।।

अनुशासन करने वाला बच्चा बड़ों का सम्मान है करता।

अनुशासित होकर औरों को भी ज्ञान से सराबोर है करता।।

अनुशासन का पालन करने के लिए विद्यालय है जरूरी।

जहां पर हर छोटे और बड़े को  सम्पूर्ण शिक्षा प्राप्त करना है जरूरी।।

अनुशासन बच्चे के जीवन को सुखमय है बनाता।

उनके जीवन को लक्ष्य की ओर है पहुंचाता।। अनुशासनहीनता के लिए हमारी शिक्षा पद्धति भी है जिम्मेवार।

बच्चों को मनपसंद रोजगार न मिलना, अपने भविष्य की अनिश्चितता उसे आक्रोशित है बनाती।

छात्र पथभ्रष्ट की ओर बढ़ावा  है देती।।

सूर्य, प्रकृति, वृक्ष समय पर ही अपना अपना काम हैं करते।

अनुशासित हो जाने पर देश में प्रलय हैं मचाते।।

अनुशासन में रहकर बच्चा अपना सर्वांगीण  विकास  है करता।

एक छोटा सा बच्चा देश का कुशल नागरिक बनकर कमाल है दिखाता।।

सुंदर और स्वस्थ राष्ट्र की कल्पना हम अनुशासन में रहकर ही  हैं करते।

हम तभी स्वच्छ और सुंदर भारत का  निर्माण हैं करते।।

अनुशासन हीनता को समाप्त करनें के लिए बच्चे में अच्छे संस्कार और शिक्षा में उचित सुधार करना है आवश्यक।

तभी अनुशासन मानवीय चरित्र में मील का पत्थर साबित होगा।।

 

नई दिशा भाग(2)

हेम शरन के परिवार में उसकी पत्नी और उसकी एक बेटा बेटी थे। हेमशरन इतना अमीर नहीं था गांव में उसकी थोड़ी बहुत जमीन थी। जिस में वह खेती-बाड़ी करता था। उसकी बेटी नौ साल की थी और  बेटा बीनू से चार साल बड़ा था। उसका भाई आठवी कक्षा में था। हेमशरन अपनी  पत्नी से कहने लगा हम अपनी बेटी को पांच कक्षा तक ही पढ़ाएंगे उसके बाद उसकी शादी कर देते हैं। यह बात  हेमशरन की बेटी बीनू सुनरही थी वह दौड़ दौड़ी आई और बोली पापा आप मेरी शादी क्यों करना चाहते हैं। मैं तो पढ़ना चाहती हूं। हेम शरण बोला बेटी तुम पढ लिखकर क्या करोगी। तुझे पढ लिखकर दूसरे घर ही तो जाना है। आपने भी तो विक्की को अंग्रेजी स्कूल में डाला। मैंने आपको कुछ नहीं कहा ‘मैं शादी नहीं करुंगी मैं भी पढ़ना चाहती हूं। हेम शरण बोला तू पढ़ लिख कर क्या करेगी। तुझे दूसरे के घर ही तो जाना है बिनु बोली पापा आपने भी विकी को अंग्रेजी स्कूल में डाला मैंने आपको कुछ नहीं कहा मैं शादी नहीं करुंगी। मैं पढ़ना चाहती हूं वीनू बोली अच्छा आप विकी की भी शादी कर दो। अगर आप मेरी शादी कर रहे तो आपको भाई की भी शादी करनी होगी वरना मै भी शादी नहीं करुंगी। उसके पिता ने कहा बेटी तुम पढ लिख कर क्या करोगी। तुम्हें विवाह कर दूसरे घर  ही तो जाना है। विककी तो हमारे पास ही रहेगा वह हमें कमा कर  देगा। बोली पापा मैं भी कमा कर लूंगी। उसके पापा नें एक जोरदार चांटा मार कर अपनी बेटी को चुप करा दिया। तुम अपने पापा के सामने जुबान चलाती हो बीनू रोते-रोते अपनी मां के पास जा कर बोली

मां मुझे शादी नहीं करनी। उसके पिता गांव के जंमिदार के बेटे के उसका रिश्ता पक्का कर आए थे। जमीदार का बेटा उसके साथ ही स्कूल में पढ़ता था। उन्होंने 2’000’00 रुदहेज  के पहले ही एडवांस में मांग लिए थे। घर आने पर हेमशरन ने अपनी पत्नी को कहा कि मैं भी आज रिश्ता पक्का कर आया हूं। आज शाम को लड़की वाले हमारी बेटी को देखने आ रहे हैं। वीनू बड़ी तेज थी।  शाम को  जैसे ही लड़की वाले देखने आए तो उसने दरवाजे के पास ही तेल गिरा दिया ताकि जो कोई उस के कमरे में  उसे देखने आए वह गिर कर वही ढेर हो जाए। शाम को जमीदार का लड़का उसे देखने आया बिनु चाय बगैरा लेकर आई। बिनु की मां ने कहा तुमने लड़की से अकेले में बातें  कीं। कैसी है बिनु की मां ने कहा यह है हमारी बीनू का कमरा विनु तो पहले ही जाकर अपने कमरे में बैठी थी जैसी वह उसकी कमरे की ओर जाने लगा वह धडाम से नीचे गिर पड़ा उसके पांव में फ्रैक्चर हो गया था। किसी ना किसी तरह लड़के वालों ने मंगनी निश्चित कर दी।  वे शादी को टालना नहीं चाहते थे क्योंकि इसके बदले में वीनू के पिता ने उन्हें दो लाख की मूंह मांगी रकम दी थी। वह भी बिनु के पिता ने किसीसे उधार ले कर दिए थे। बिनु को अपने माता-पिता पर गुस्सा आ रहा था। बिनु बहुत ही चुस्त थी। गुरुजी ने उसे कहा था कि बेटा आजकल पढ़ाई करना बहुत जरुरी होता है। बिना ज्ञान के मनुष्य का जीवन कुछ नहीं होता। बेटी को भी पढ़ाना बहुत जरुरी होता है। किसी भी परिवार की बेटी पढ़ लिख  गई तो मानो वह अपने पूरे परिवार को शिक्षित कर सकती है इसलिए तुम सब बच्चे आज कसम खाओ खास  कर लड़कियां तुम कभी भी कमजोर नहीं होंगी। तुम्हारे मां बाप अगर तुम्हारी शादी छोटी उम्र में करें तो तुम पुलिस को इसकी सूचना दी सकती हो। मैं आज तुम को पुलिस वालों का नंबर देता हूं। वह भी न मिले तो हर कभी मुझसे से  संपर्क करसकती हो।  मैं लड़कियों की शिक्षा के पक्ष मैं हूं। बिनू नें सोचा कि वह गुरु जी को अवश्य सारी बात बताएगी। वह दूसरे दिन अपनी सहेली मीतू से मिली उसने मीतू को कहा कि मेरे मां बाप मुझे पढ़ाना नहीं चाहते। आज से  पांच  दिन बाद मेरी शादी है। उससे पहले अगर हमने पुलिस को फोन नहीं किया तो मेरे मां बाप  मेरी शादी जबरदस्ती उस जंमीदार के लड़के से कर देंगें। उसकी सहेली ने जल्दी  से पुलिस वालों को फोन लगा दिया। इस गांव के ठाकुर साहब अपनी बेटी की जबरदस्ती शादी करने जा रहे हैं। वहलड़की नाबालिक है

छोटी उम्र में विवाह करना गुनाह है। बीनू ने अपने पिता को कुछ नहीं कहा। उसके पिता ने कहा कि आज से तुम स्कूल भी नहीं जाओगी जाओ विवाह की तैयारी करो। पांच दिनों  बाद तो तुम ऐसे ही तुम दूसरे घर बहू बन कर चली जाओगी। विनु ने अपने पापा को कुछ नहीं कहा। शादी के फेरे होने ही वाले थे पुलिस वालों ने आकर ठाकुर साहब को पकड लिया और बोले तुम्हें अपनी बेटी की छोटी उम्र में शादी करते शर्म नहीं आती। इस प्रकार पुलिस वालों ने जमीदार को और बीनू के पापा को जेल में डाल दिया। बीनू के पिता को  जबमालूम हुआ कि मेरी बेटी ने ही पुलिस बुलाई है तो वे अपनी पत्नी से बोले और पाओ  अपनी बेटी को स्कूल में। स्कूल में शिक्षा देने का यह नतीजा है ठकुराइन कुछ नहीं बोली। ं

 

बीनू की शादी टल  चुकी थी। जंमिदार को जेल से रिहा किया गया तो  वहआगबबूला हो उठा बोला ठाकुर साहब। तुमने हमसे दुश्मनी लेकर  कर अच्छा नहीं किया। ं तुम्हें इसकी लिए पछताना पड़ेगा। ठाकुर भी अपनी बेटी से नाराज ही रहने लग गया। वह कभी उससे सीधे मुंह बात नहीं करता था। बिनु  भी हार मानने वाली नहीं थी। उसने गुरुजी को कहा कि गुरुजी मैंने तो पढ़ना जरूर है। मेरे  माता पिता मुझे पढ़ाई के लिए रुपया नहीं देते कृप्या मुझे आगे पढ़ना है। उसने पांचवी की परीक्षा भी पास कर ली थी। उसने छोटे बच्चों को पढ़ा पर उनसे वह कापी पैंसिल  ले लेती थी गुरुजी ने भी उसको पढ़ाने में उसकी काफी मदद की। ठाकुर साहब नें अपने बेटे को पढ़ाई की लिए उसकी टूशन भी रख दी थी। वे चाहते थे कि मेरे बेटे की पढ़ाई में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए। इस बात से बीनू बहुत ही नाराज होती थी उसके पापा बीरू पर ही सब रुपया खर्च करना चाहते थे। उसे पढ़ाई तो दूर की बात उसकी मां उसे कहती नहीं बेटा ऐसी बात नहीं है तुमसे भी तुम्हारे पापा बहुत प्यार करते हैं मगर वह कहते हैं। दोनों बच्चे बड़े हो चुके थे लड़के को ठाकुर साहब ने पढ़ने लीजिए विदेश भेज दिया था। बिनु बेचारी  घर पर  ही  बैठ कर बारहवीं की परीक्षा पास कर चुकी थी। वह कॉलेज की पढ़ाई प्राइवेट कर रही थी। जमीदार अपनी बेइज्जती को भुला नहीं था। उसने सोचा कि ठाकुर से  एक दिनअपने अपमान का बदला जरुर लेगा।उसने सोचा कि  इसके लिए पहले ठाकुर से मित्रता का हाथ बढ़ाना आवश्यक है। उसने फिर से ठाकुर से मित्रता करना आरंभ कर दिया और आकर बोला  हम छोटे-छोटे बच्चों की शादियां करवाना चाहते थे।  जमाना  भीबदल चुका है अब तो हमारे बच्चे भी बड़े हो चुके हैं। हम दोनों तो पहले ही समधी बन चुके थे। हम  इसशादी को करवानें के लिए क्यों ना फिर एक बार तैयार हो जाएं। आपकी बेटी भी बड़ी हो चुकी है और मेरा बेटा भी वह हमारे घर में बहू बनकर आ जाएगी तो बहुत ही अच्छा होगा। ठाकुर साहब आश्चर्य से जमीदार की ओर देखते हुए बोला पहले मुझे बीनू से पूछना होगा। बिनू बोली अगर विरेंद्र को ऐतराज़ ना हो तो मैं शादी के लिए तैयार हूं। जंमिदार बोला वह तो तैयार है। उसकी कोई चिंता नहीं। ठाकुर को मिठाई खिलाते बोला   तो क्या मैं रिश्ता पक्का समझूं। उन दोनों नें मिल कर बिनु का रिश्ता पक्का कर दिया।

 

जंमिदार के घर में उसके दोस्त का बेटा रहता था। उसका दोस्त मर चुका था। वह उस बच्चे को सदा के लिए जमीदार की गोद में डालकर मर गया था। जंमिदार उससे जी भरकर काम लेता था। उसकी दुकान पर नौकरों की तरह काम करता था। बेटा भी उसको अपने पिता जैसा ही प्यार  देता  था।   विनय सोचता था कि उसका परिवार तो अभी यहीं है। घर आकर जमीदार अपनी पत्नी से बोला हम ठाकुर साहब से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहते हैं। हम अपनें दोस्त के बेटे से   बीनू की शादी करेंगे। उसे क्या पता चलेगा। सेहरे से क्या मालूम  होगा? ठाकुर साहब के घर पर बारात आ  चुकी थी। घर में सब खुश थे वीनू ने जमीदार जी से शर्त रखी थी वह शादी के लिए तभी हां करेगी जब वह  मेरी एक बात मानेंगें। बीनू नें कहा   शादी के  बाद भी मैं अपने माता-पिता को अकेला नहीं छोडूंगी। इन्हें देखनें अवश्य आऊंगी। तुम्हें यह मेरी बातें माननी ही होगी। जमीदार नें कहां बेटी तुम अपनी मां बाबा को मिलने आ सकती हो। विकी विदेश में पड़ लिखकर बड़ा ऑफिसर बन चुका था।वह एक बार भी अपने माता-पिता को देखने नहीं आया था।

एक बार विकी के पिता ने कहा कि मुझे रुपयों की आवश्यकता है तोउसने कह दिया कि अभी मेरे पास रुपए नही है। जब मेरे पास बहुत सारे रुपए होंगें  मैं आपको अवश्य रूपए भेजा करुंगा। यहां पर मैंने एक लड़की पसंद कर ली है उसकी भी जिम्मेवारी अब मुझ पर हमें। मुझे उसकी भी देखभाल करनी है। ठाकुर साहब नें जब अपने बेटे का खत पड़ा तो रूंधे गले से अपनी पत्नी को बोले हमने बेटे को पढ़ने विदेश इसलिए भेजा था ताकि बुढ़ापे में हम दोनों को देख सके। उस बेटे से तो मेरी बीनू ही अच्छी है। वह हमारी कितनी देखभाल करती है। उसनें   कभी  हमें तंगी महसूस होने नहीं दी। प्राइवेट स्कूल में नौकरी करके जो कुछ उसके पास रुपए  इकट्ठे होते थी वे भी हमारी दवाईयों के लिए खर्च कर दिया करती थी। आज हमें एहसास हुआ कि हमारे मन में बेटी को लेकर कितनी गलत धारणा थी बेटी तो पराया धन होती है।

बेटी ने तो आज विदा होते हुए भी अपनी ससुर से वादा कर लिया कि वह अपनी मम्मी पापा को कभी भीअकेला नंही छोड़ेगी। हमारी सोच कितनी गलत  थी। अच्छा हुआ हम हमारी बेटी ने पढ़कर हमें सीख दे डाली। वह दोनों रोते-रोते अपनी जान से प्यारी  बेटी को रोते रोते विदा कर रहे थे।  उन्हें अपनी  बेटी के जाने का एहसास हो रहा था। विदेश में विकी ने जिस लड़की से शादी की थी वह कोई और नहीं वह जमीदार की बेटी थी। जंमिदार दार नें भीउसे बाहर पढ़ने भेजा। और उसे समझा बुझा कर कहा कि तू  वंहां जा कर ठाकुर साहब के बेटे से शादी के जाल में उसे फंसा देनाऔर उसे ऐसा मोहर बनाना ताकि वहअपने मां बाप को कभी देखने ना आए। अपने मां बाप को तडफनें के लिए छोड़ दे। और उन्हें कोई भी रुपया ना भेजे। जंमिदार की लड़की ने विदेश में जाकर विकी को अपने प्यार के जाल में फंसा दिया उसने कभी भी अपनें बारें में विक्की को नहीं बताया कि वह जमीदार की बेटी है। उन दोनों ने शादी भी कर ली। जंमिदार अपनी बेटी की शादी से खुश था वह ठाकुर साहब से अपने अपमान का बदला लेना चाहता था। बीनू जैसे ही अपने ससुराल में आई उसने अपने पति का  देखा तो एकदम चौकी और बोली आप कौन है।? जमीदार नें आकर  कहायह तुम्हारे  पति हैं। यह मेरे दोस्त का बेटा है इसी से तो तुम्हारी शादी के लिए तुम्हारे पिता को कहा था बीनू अपने आंसू रोक न सकी। उसने सोचा कोई बात नहीं अब तो विनय ही मेरा पति है। उसने अपनी सास को बातें करते सुन लिया था कि आज हमारा बदला पुरा हुआ। आज मैं सचमुच ही खुश हूं।  इस लड़की को हम मजा  चखाते हैं। विनय को पाकर वीनू बहुत खुश थी। जब ठाकुर साहब को पता चला कि जो लड़का  उन्हेंदिखाया था उस से उनकी बेटी की शादी नहीं  हुई। उसने बदला लेवें के लिएं अपने दोस्त के बेटे को दूल्हा  बना के उसके  घर भेज दिया था। अब क्या किया जासकता था। शादी तो हो चुकी थी। ठाकुर साहब को पता चल चुका था कि जमीदार ने उस से अपने अपमान का बदला ले लिया था। हेमशरन ने कहा बेटा तू अपने घर आ। जा। ं हम अभी जिंदा है। बीनू बोली मैंने इन्हें ही तन मन और धन से अपना पति स्वीकार किया है। वही अब मेरे पति हैं। विनय को सारे दिन दुकान में काम करते देख वह अपने पति की बहुत मदद किया करती थी। वीरेंद्र भी कहीं ना कहीं उस से नाराज था उसके पिता ने उसकी शादी उसके मुंह बोले भाई से कर दी थी। वह उसे भाभी कहता था। वह अंदर ही अंदर उस से नफरत करता था। वह उस से काम करवाता था। मेरे जूते पॉलिश करो। मुझे खाने के लिए पूरीयां  बनाओ। मेरे कपड़े धो  डालो। उतना कान तो उसका पति भी उससे नहीं करवाता था। बिनु सब कुछ सहन करती जा रही थी। वह कुछ नहीं कहती थी। एक  दिनविरेंद्र काफी  देर तक घर नहीं आया। उसके मां बाप तो उसकी चिंता नहीं करते थे। परंतु वह तो उसका दोस्त बन चुका था। वह सोचने लगी की कंही मेरा देवर किसी मुसीबत में तो नहीं फंस गया। वह रात को अकेली ही उसे देखने निकल पड़ी। उसके साथियों ने उसे इतनी अधिक पिला दी थी कि उन्होंने उस के देवर के सारे रुपए छीनकर उसको चाकू मार दिया था। विनु ने जैसे ही उसको अधमरा पडा देखाउसको अस्पताल ले कर ग ई और तुरंत मौके पर जा कर उसको बचा लिया। डॉक्टर्स को उसे बचाने के लिए खून की जरुरत पड़ी तो उस ने अपना ब्लड उसे दे दिया क्योंकि उसका   खून विरेंद्र से मिल गया था। उसने उसे मौत के मुंह से बचा लिया था। विरेंद्र की जान बचा कर उसने अपने भाभी होने का कर्तव्य पूरा किया। उसका पति अपनी पत्नी की अपनी परिवार वालों की इतना चिंता करते देख बहुत ही खुश था। मेरी पत्नी बहुत ही अच्छी है। उसकी पत्नी ने भी शादी के वक्त उस से कहा कि आप मुझसे आज एक वादा करो कि आप सुख दुःख में सदा मेरा साथ दोगे और मुझ पर कभी शक नहीं करोगे। विनयने उससे वादा किया कि चाहे जो भी हो जाए मैं तुम पर कभी भी शक नहीं करूंगा। बिनु को पता चल गया था कि इन्होंने धोखे से मेरी शादी भी विनय से   कि है। वे चाहते हैं कि किसी तरह से वीनू को विनय की नजरों से गिरा कर अपमानित किया जाए। वीनू ने अपने पति  को बताया कि मैंने अपनी सास की सारी बातें सुनी थी। वह चाहती है कि किस तरह से मुझे यातना दे। तुम अगर सच्च मुँह में ही मुझे अपनी पत्नी के रुप में स्वीकार ते हो तो मैं भी तुम्हें अपने पति के रूप में स्वीकार करती हूं वरना मैं यहां से आज ही चली जाती हूं। शादी वाले दिन भी बीनू नें विनय से कहा था। एक दिन दिन वीनू के माता पिता को जन्मदिन की पार्टी पर बुलाया गया। समारोह में उसकी माता पिता आ चुके थे। बीनूंं ने खुद अपनें हाथों से तरह-तरह के पकवान बनाए उसकी सास नें जल्दी ही खीर में विशैला  पैदार्थ मिला दिया यह सब विरेन्द्र देख रहा था अपनी भाभी के पास आकर बोला भाभी भाभी जल्दी इधर आ ओ। उस खीर को जल्दी ही फेक दो नहीं तो आज आपके मां बाप यहां से जिंदा वापिस नहीं जाएंगे। वह अपने  देवर

की बातों को सुनकर कर बहुत ही खुश हुई कि उसका देवर सुधर चुका था। उसने चुपचाप उस खीर को फैंक दिया। उसके माता-पिता जब पार्टी समाप्त हुई तो घर जा चुके थे। वे खुश थे कि उनकी बेटी खुश है। विरेन्द्र  अपनी मां के पास आकर बोला मां आप कब सुधरोगी। आज तो आपने भाभी के परिवार को ऊपर पहचाने कि योजना बना दी थी। यह तो शुक्र है मैं देख रहा था वर्ना आपने तो आज इतना अनर्थ कर डाला होता मैं आपको कभी भी माफ नहीं करूंगा। आप लोग ही भाभी को हर कभी नीचा दिखाना चाहतें हैं। मैं पुलिस वालों को सूचित कर दूंगा अगर आपने आगे से कोई ऐसी हरकत की तो मैं आपको बक्शूंगा नहीं। उसकी ननंद भी कुछ दिन के लिए अपनी मम्मी पापा के पास विदेश से आई थी। घर आकर उसने अपनी भाभी के साथ बहुत ही अच्छा महसूस किया। उसके स्कूल  काफी घुल मिल गई। उसको पछतावा हुआ कि बेचारी  बीनू नें विनय को अपनी पति की के रूप में  स्वीकार कर दिया। मेरे भाई की जान भी बचाई।  मेरे माता पिता ने विकी के साथ कितना बुरा बर्ताव करने के लिए उसे भड़काया था कि तू विदेश में जाकर विकी को अपनेप्रेम के प्यार में फंसा कर उस से शादी कर लेना और उसके सारे वेतन पर अपना अधिकार जमा लेना।  घर में कुछ भी ना भिजवाना। बिनु को समझते देर नहीं लगी कि जमीदार ने तो मेरे भाई को भी नहीं छोड़ा अपना बदला लेने के लिए अपनी बेटी को विदेश में भैया को फंसाने के लिए भेज दिया ताकि वह अपने अपमान का बदला ले सके। एक दिन बीनू अपने देवर के साथ हंसकर बातें कर रही थी उसकी सास आई और बोली विनय देख तेरी पत्नी की हरकतें अच्छी नहीं है। विनय को तो अपनी पत्नी पर पूरा विश्वास था। शाम को विनय नेंअपनी पत्नी को सारी बातें बताई। विनय ने कहा कि तुम्हारी ंसासं तुम्हारी शिकायत कर  रही थी तुम्हारी पत्नी की हरकतें ठीक नहीं है। विनु ने वीरेंद्र को बुलाया और कहां कि मैं तुमसे क्या कर रही थी।।? तुम्हें मेरी सहेली का  रिश्ता पसंद है या नहीं वह एक प्रवक्ता के पद पर काम   कर रही है तुम  भीअपनी पढ़ाई पूरी कर के उसके साथ विवाह सूत्र में बंध जाओ। तुम्हें अगर मेरी सहेली विभा पसंद  है तो मैं आगे बात चला सकती हूं।  विरेन्द्र नें हां में सिर हिला कर भाभी को कहा मैं तुम्हारी पसन्द को कैसे टाल सकता हूं। विनय बहुत ही खुश  हुआ। बाबा के पास आकर वीनू ने अपने पिता को बताया कि हमारे भाई ने विदेश में जिस लड़की से शादी की है वह कोई और नहीं जमीदार की लड़की है। जमीदार नें ही उसे विदेश में पढ़ने भेजा था। भैया को शादी के चक्कर में फसाने के लिए जमीदार नें ही उसे सिखाया था।इस कारण वह रुपयानहीं भेज रहा था क्योंकि जमीदार की बेटी उसे रुपया नहीं भेजने देती थी। वह रुपा देने से इंकार करती थी। जंमिदार हमसे अपने अपमान का बदला लेना चाहता था। परंतु अब सब कुछ ठीक हो चुका है। उसके माता-पिता यह बात  सुनकर  हैरान हो गए। शाम को अपनी बहू को घर आया देख कर ठाकुर साहब खुश हुए और बोले बेटा आओ हम अपने बेटे और बहुत को देखने के लिए तरस गए थे।

  • विभा नेअपने  व्यवहार के लिए अपने सांस ससुर से क्षमा मांगी और कहा कि मेरे पिता ने ही मुझे ऐसा करने के लिए कहा था।  विक्कू को अपने घर में एक भी रूपया पैसा मत भेजना। वे आपके साथ बहुत ही बुरा करना चाहते थे। हमें अपने किए पर पछतावा है मैं जल्दी ही अपने पति के साथ अवश्य आऊंगी उसने अपनी सास ससुर के पैर छुए और उनसे आशीर्वाद लिया। उस के सास ससुर ने अपने बेटे और बहुत की गल्तियों को माफ कर दिया और कहा बेटी गले लगता जाओ। उनके दिलों से सारा मलाल हट गया था।

नई दिशा भाग (2)

 

हेम शरन के परिवार में उसकी पत्नी और उसकी एक बेटा बेटी थे। हेमशरन इतना अमीर नहीं था गांव में उसकी थोड़ी बहुत जमीन थी। जिस में वह खेती-बाड़ी करता था। उसकी बेटी नौ साल की थी और  बेटा बीनू से चार साल बड़ा था। उसका भाई आठवी कक्षा में था। हेमशरन अपनी  पत्नी से कहने लगा हम अपनी बेटी को पांच कक्षा तक ही पढ़ाएंगे उसके बाद उसकी शादी कर देते हैं। यह बात  हेमशरन की बेटी बीनू सुनरही थी वह दौड़ दौड़ी आई और बोली पापा आप मेरी शादी क्यों करना चाहते हैं। मैं तो पढ़ना चाहती हूं। हेम शरण बोला बेटी तुम पढ लिखकर क्या करोगी। तुझे पढ लिखकर दूसरे घर ही तो जाना है। आपने भी तो विक्की को अंग्रेजी स्कूल में डाला। मैंने आपको कुछ नहीं कहा ‘मैं शादी नहीं करुंगी मैं भी पढ़ना चाहती हूं। हेम शरण बोला तू पढ़ लिख कर क्या करेगी। तुझे दूसरे के घर ही तो जाना है बिनु बोली पापा आपने भी विकी को अंग्रेजी स्कूल में डाला मैंने आपको कुछ नहीं कहा मैं शादी नहीं करुंगी। मैं पढ़ना चाहती हूं वीनू बोली अच्छा आप विकी की भी शादी कर दो। अगर आप मेरी शादी कर रहे तो आपको भाई की भी शादी करनी होगी वरना मै भी शादी नहीं करुंगी। उसके पिता ने कहा बेटी तुम पढ लिख कर क्या करोगी। तुम्हें विवाह कर दूसरे घर  ही तो जाना है। विककी तो हमारे पास ही रहेगा वह हमें कमा कर  देगा। बोली पापा मैं भी कमा कर लूंगी। उसके पापा नें एक जोरदार चांटा मार कर अपनी बेटी को चुप करा दिया। तुम अपने पापा के सामने जुबान चलाती हो बीनू रोते-रोते अपनी मां के पास जा कर बोली

मां मुझे शादी नहीं करनी। उसके पिता गांव के जंमिदार के बेटे के उसका रिश्ता पक्का कर आए थे। जमीदार का बेटा उसके साथ ही स्कूल में पढ़ता था। उन्होंने 2’000’00 रुदहेज  के पहले ही एडवांस में मांग लिए थे। घर आने पर हेमशरन ने अपनी पत्नी को कहा कि मैं भी आज रिश्ता पक्का कर आया हूं। आज शाम को लड़की वाले हमारी बेटी को देखने आ रहे हैं। वीनू बड़ी तेज थी।  शाम को  जैसे ही लड़की वाले देखने आए तो उसने दरवाजे के पास ही तेल गिरा दिया ताकि जो कोई उस के कमरे में  उसे देखने आए वह गिर कर वही ढेर हो जाए। शाम को जमीदार का लड़का उसे देखने आया बिनु चाय बगैरा लेकर आई। बिनु की मां ने कहा तुमने लड़की से अकेले में बातें  कीं। कैसी है बिनु की मां ने कहा यह है हमारी बीनू का कमरा विनु तो पहले ही जाकर अपने कमरे में बैठी थी जैसी वह उसकी कमरे की ओर जाने लगा वह धडाम से नीचे गिर पड़ा उसके पांव में फ्रैक्चर हो गया था। किसी ना किसी तरह लड़के वालों ने मंगनी निश्चित कर दी।  वे शादी को टालना नहीं चाहते थे क्योंकि इसके बदले में वीनू के पिता ने उन्हें दो लाख की मूंह मांगी रकम दी थी। वह भी बिनु के पिता ने किसीसे उधार ले कर दिए थे। बिनु को अपने माता-पिता पर गुस्सा आ रहा था। बिनु बहुत ही चुस्त थी। गुरुजी ने उसे कहा था कि बेटा आजकल पढ़ाई करना बहुत जरुरी होता है। बिना ज्ञान के मनुष्य का जीवन कुछ नहीं होता। बेटी को भी पढ़ाना बहुत जरुरी होता है। किसी भी परिवार की बेटी पढ़ लिख  गई तो मानो वह अपने पूरे परिवार को शिक्षित कर सकती है इसलिए तुम सब बच्चे आज कसम खाओ खास  कर लड़कियां तुम कभी भी कमजोर नहीं होंगी। तुम्हारे मां बाप अगर तुम्हारी शादी छोटी उम्र में करें तो तुम पुलिस को इसकी सूचना दी सकती हो। मैं आज तुम को पुलिस वालों का नंबर देता हूं। वह भी न मिले तो हर कभी मुझसे से  संपर्क करसकती हो।  मैं लड़कियों की शिक्षा के पक्ष मैं हूं। बिनू नें सोचा कि वह गुरु जी को अवश्य सारी बात बताएगी। वह दूसरे दिन अपनी सहेली मीतू से मिली उसने मीतू को कहा कि मेरे मां बाप मुझे पढ़ाना नहीं चाहते। आज से  पांच  दिन बाद मेरी शादी है। उससे पहले अगर हमने पुलिस को फोन नहीं किया तो मेरे मां बाप  मेरी शादी जबरदस्ती उस जंमीदार के लड़के से कर देंगें। उसकी सहेली ने जल्दी  से पुलिस वालों को फोन लगा दिया। इस गांव के ठाकुर साहब अपनी बेटी की जबरदस्ती शादी करने जा रहे हैं। वहलड़की नाबालिक है

छोटी उम्र में विवाह करना गुनाह है। बीनू ने अपने पिता को कुछ नहीं कहा। उसके पिता ने कहा कि आज से तुम स्कूल भी नहीं जाओगी जाओ विवाह की तैयारी करो। पांच दिनों  बाद तो तुम ऐसे ही तुम दूसरे घर बहू बन कर चली जाओगी। विनु ने अपने पापा को कुछ नहीं कहा। शादी के फेरे होने ही वाले थे पुलिस वालों ने आकर ठाकुर साहब को पकड लिया और बोले तुम्हें अपनी बेटी की छोटी उम्र में शादी करते शर्म नहीं आती। इस प्रकार पुलिस वालों ने जमीदार को और बीनू के पापा को जेल में डाल दिया। बीनू के पिता को  जबमालूम हुआ कि मेरी बेटी ने ही पुलिस बुलाई है तो वे अपनी पत्नी से बोले और पाओ  अपनी बेटी को स्कूल में। स्कूल में शिक्षा देने का यह नतीजा है ठकुराइन कुछ नहीं बोली। ं

 

बीनू की शादी टल  चुकी थी। जंमिदार को जेल से रिहा किया गया तो  वहआगबबूला हो उठा बोला ठाकुर साहब। तुमने हमसे दुश्मनी लेकर  कर अच्छा नहीं किया। ं तुम्हें इसकी लिए पछताना पड़ेगा। ठाकुर भी अपनी बेटी से नाराज ही रहने लग गया। वह कभी उससे सीधे मुंह बात नहीं करता था। बिनु  भी हार मानने वाली नहीं थी। उसने गुरुजी को कहा कि गुरुजी मैंने तो पढ़ना जरूर है। मेरे  माता पिता मुझे पढ़ाई के लिए रुपया नहीं देते कृप्या मुझे आगे पढ़ना है। उसने पांचवी की परीक्षा भी पास कर ली थी। उसने छोटे बच्चों को पढ़ा पर उनसे वह कापी पैंसिल  ले लेती थी गुरुजी ने भी उसको पढ़ाने में उसकी काफी मदद की। ठाकुर साहब नें अपने बेटे को पढ़ाई की लिए उसकी टूशन भी रख दी थी। वे चाहते थे कि मेरे बेटे की पढ़ाई में कोई कमी नहीं रहनी चाहिए। इस बात से बीनू बहुत ही नाराज होती थी उसके पापा बीरू पर ही सब रुपया खर्च करना चाहते थे। उसे पढ़ाई तो दूर की बात उसकी मां उसे कहती नहीं बेटा ऐसी बात नहीं है तुमसे भी तुम्हारे पापा बहुत प्यार करते हैं मगर वह कहते हैं। दोनों बच्चे बड़े हो चुके थे लड़के को ठाकुर साहब ने पढ़ने लीजिए विदेश भेज दिया था। बिनु बेचारी  घर पर  ही  बैठ कर बारहवीं की परीक्षा पास कर चुकी थी। वह कॉलेज की पढ़ाई प्राइवेट कर रही थी। जमीदार अपनी बेइज्जती को भुला नहीं था। उसने सोचा कि ठाकुर से  एक दिनअपने अपमान का बदला जरुर लेगा।उसने सोचा कि  इसके लिए पहले ठाकुर से मित्रता का हाथ बढ़ाना आवश्यक है। उसने फिर से ठाकुर से मित्रता करना आरंभ कर दिया और आकर बोला  हम छोटे-छोटे बच्चों की शादियां करवाना चाहते थे।  जमाना  भीबदल चुका है अब तो हमारे बच्चे भी बड़े हो चुके हैं। हम दोनों तो पहले ही समधी बन चुके थे। हम  इसशादी को करवानें के लिए क्यों ना फिर एक बार तैयार हो जाएं। आपकी बेटी भी बड़ी हो चुकी है और मेरा बेटा भी वह हमारे घर में बहू बनकर आ जाएगी तो बहुत ही अच्छा होगा। ठाकुर साहब आश्चर्य से जमीदार की ओर देखते हुए बोला पहले मुझे बीनू से पूछना होगा। बिनू बोली अगर विरेंद्र को ऐतराज़ ना हो तो मैं शादी के लिए तैयार हूं। जंमिदार बोला वह तो तैयार है। उसकी कोई चिंता नहीं। ठाकुर को मिठाई खिलाते बोला   तो क्या मैं रिश्ता पक्का समझूं। उन दोनों नें मिल कर बिनु का रिश्ता पक्का कर दिया।

 

जंमिदार के घर में उसके दोस्त का बेटा रहता था। उसका दोस्त मर चुका था। वह उस बच्चे को सदा के लिए जमीदार की गोद में डालकर मर गया था। जंमिदार उससे जी भरकर काम लेता था। उसकी दुकान पर नौकरों की तरह काम करता था। बेटा भी उसको अपने पिता जैसा ही प्यार  देता  था।   विनय सोचता था कि उसका परिवार तो अभी यहीं है। घर आकर जमीदार अपनी पत्नी से बोला हम ठाकुर साहब से अपनी बेइज्जती का बदला लेना चाहते हैं। हम अपनें दोस्त के बेटे से   बीनू की शादी करेंगे। उसे क्या पता चलेगा। सेहरे से क्या मालूम  होगा? ठाकुर साहब के घर पर बारात आ  चुकी थी। घर में सब खुश थे वीनू ने जमीदार जी से शर्त रखी थी वह शादी के लिए तभी हां करेगी जब वह  मेरी एक बात मानेंगें। बीनू नें कहा   शादी के  बाद भी मैं अपने माता-पिता को अकेला नहीं छोडूंगी। इन्हें देखनें अवश्य आऊंगी। तुम्हें यह मेरी बातें माननी ही होगी। जमीदार नें कहां बेटी तुम अपनी मां बाबा को मिलने आ सकती हो। विकी विदेश में पड़ लिखकर बड़ा ऑफिसर बन चुका था।वह एक बार भी अपने माता-पिता को देखने नहीं आया था।

एक बार विकी के पिता ने कहा कि मुझे रुपयों की आवश्यकता है तोउसने कह दिया कि अभी मेरे पास रुपए नही है। जब मेरे पास बहुत सारे रुपए होंगें  मैं आपको अवश्य रूपए भेजा करुंगा। यहां पर मैंने एक लड़की पसंद कर ली है उसकी भी जिम्मेवारी अब मुझ पर हमें। मुझे उसकी भी देखभाल करनी है। ठाकुर साहब नें जब अपने बेटे का खत पड़ा तो रूंधे गले से अपनी पत्नी को बोले हमने बेटे को पढ़ने विदेश इसलिए भेजा था ताकि बुढ़ापे में हम दोनों को देख सके। उस बेटे से तो मेरी बीनू ही अच्छी है। वह हमारी कितनी देखभाल करती है। उसनें   कभी  हमें तंगी महसूस होने नहीं दी। प्राइवेट स्कूल में नौकरी करके जो कुछ उसके पास रुपए  इकट्ठे होते थी वे भी हमारी दवाईयों के लिए खर्च कर दिया करती थी। आज हमें एहसास हुआ कि हमारे मन में बेटी को लेकर कितनी गलत धारणा थी बेटी तो पराया धन होती है।

बेटी ने तो आज विदा होते हुए भी अपनी ससुर से वादा कर लिया कि वह अपनी मम्मी पापा को कभी भीअकेला नंही छोड़ेगी। हमारी सोच कितनी गलत  थी। अच्छा हुआ हम हमारी बेटी ने पढ़कर हमें सीख दे डाली। वह दोनों रोते-रोते अपनी जान से प्यारी  बेटी को रोते रोते विदा कर रहे थे।  उन्हें अपनी  बेटी के जाने का एहसास हो रहा था। विदेश में विकी ने जिस लड़की से शादी की थी वह कोई और नहीं वह जमीदार की बेटी थी। जंमिदार दार नें भीउसे बाहर पढ़ने भेजा। और उसे समझा बुझा कर कहा कि तू  वंहां जा कर ठाकुर साहब के बेटे से शादी के जाल में उसे फंसा देनाऔर उसे ऐसा मोहर बनाना ताकि वहअपने मां बाप को कभी देखने ना आए। अपने मां बाप को तडफनें के लिए छोड़ दे। और उन्हें कोई भी रुपया ना भेजे। जंमिदार की लड़की ने विदेश में जाकर विकी को अपने प्यार के जाल में फंसा दिया उसने कभी भी अपनें बारें में विक्की को नहीं बताया कि वह जमीदार की बेटी है। उन दोनों ने शादी भी कर ली। जंमिदार अपनी बेटी की शादी से खुश था वह ठाकुर साहब से अपने अपमान का बदला लेना चाहता था। बीनू जैसे ही अपने ससुराल में आई उसने अपने पति का  देखा तो एकदम चौकी और बोली आप कौन है।? जमीदार नें आकर  कहायह तुम्हारे  पति हैं। यह मेरे दोस्त का बेटा है इसी से तो तुम्हारी शादी के लिए तुम्हारे पिता को कहा था बीनू अपने आंसू रोक न सकी। उसने सोचा कोई बात नहीं अब तो विनय ही मेरा पति है। उसने अपनी सास को बातें करते सुन लिया था कि आज हमारा बदला पुरा हुआ। आज मैं सचमुच ही खुश हूं।  इस लड़की को हम मजा  चखाते हैं। विनय को पाकर वीनू बहुत खुश थी। जब ठाकुर साहब को पता चला कि जो लड़का  उन्हेंदिखाया था उस से उनकी बेटी की शादी नहीं  हुई। उसने बदला लेवें के लिएं अपने दोस्त के बेटे को दूल्हा  बना के उसके  घर भेज दिया था। अब क्या किया जासकता था। शादी तो हो चुकी थी। ठाकुर साहब को पता चल चुका था कि जमीदार ने उस से अपने अपमान का बदला ले लिया था। हेमशरन ने कहा बेटा तू अपने घर आ। जा। ं हम अभी जिंदा है। बीनू बोली मैंने इन्हें ही तन मन और धन से अपना पति स्वीकार किया है। वही अब मेरे पति हैं। विनय को सारे दिन दुकान में काम करते देख वह अपने पति की बहुत मदद किया करती थी। वीरेंद्र भी कहीं ना कहीं उस से नाराज था उसके पिता ने उसकी शादी उसके मुंह बोले भाई से कर दी थी। वह उसे भाभी कहता था। वह अंदर ही अंदर उस से नफरत करता था। वह उस से काम करवाता था। मेरे जूते पॉलिश करो। मुझे खाने के लिए पूरीयां  बनाओ। मेरे कपड़े धो  डालो। उतना कान तो उसका पति भी उससे नहीं करवाता था। बिनु सब कुछ सहन करती जा रही थी। वह कुछ नहीं कहती थी। एक  दिनविरेंद्र काफी  देर तक घर नहीं आया। उसके मां बाप तो उसकी चिंता नहीं करते थे। परंतु वह तो उसका दोस्त बन चुका था। वह सोचने लगी की कंही मेरा देवर किसी मुसीबत में तो नहीं फंस गया। वह रात को अकेली ही उसे देखने निकल पड़ी। उसके साथियों ने उसे इतनी अधिक पिला दी थी कि उन्होंने उस के देवर के सारे रुपए छीनकर उसको चाकू मार दिया था। विनु ने जैसे ही उसको अधमरा पडा देखाउसको अस्पताल ले कर ग ई और तुरंत मौके पर जा कर उसको बचा लिया। डॉक्टर्स को उसे बचाने के लिए खून की जरुरत पड़ी तो उस ने अपना ब्लड उसे दे दिया क्योंकि उसका   खून विरेंद्र से मिल गया था। उसने उसे मौत के मुंह से बचा लिया था। विरेंद्र की जान बचा कर उसने अपने भाभी होने का कर्तव्य पूरा किया। उसका पति अपनी पत्नी की अपनी परिवार वालों की इतना चिंता करते देख बहुत ही खुश था। मेरी पत्नी बहुत ही अच्छी है। उसकी पत्नी ने भी शादी के वक्त उस से कहा कि आप मुझसे आज एक वादा करो कि आप सुख दुःख में सदा मेरा साथ दोगे और मुझ पर कभी शक नहीं करोगे। विनयने उससे वादा किया कि चाहे जो भी हो जाए मैं तुम पर कभी भी शक नहीं करूंगा। बिनु को पता चल गया था कि इन्होंने धोखे से मेरी शादी भी विनय से   कि है। वे चाहते हैं कि किसी तरह से वीनू को विनय की नजरों से गिरा कर अपमानित किया जाए। वीनू ने अपने पति  को बताया कि मैंने अपनी सास की सारी बातें सुनी थी। वह चाहती है कि किस तरह से मुझे यातना दे। तुम अगर सच्च मुँह में ही मुझे अपनी पत्नी के रुप में स्वीकार ते हो तो मैं भी तुम्हें अपने पति के रूप में स्वीकार करती हूं वरना मैं यहां से आज ही चली जाती हूं। शादी वाले दिन भी बीनू नें विनय से कहा था। एक दिन दिन वीनू के माता पिता को जन्मदिन की पार्टी पर बुलाया गया। समारोह में उसकी माता पिता आ चुके थे। बीनूंं ने खुद अपनें हाथों से तरह-तरह के पकवान बनाए उसकी सास नें जल्दी ही खीर में विशैला  पैदार्थ मिला दिया यह सब विरेन्द्र देख रहा था अपनी भाभी के पास आकर बोला भाभी भाभी जल्दी इधर आ ओ। उस खीर को जल्दी ही फेक दो नहीं तो आज आपके मां बाप यहां से जिंदा वापिस नहीं जाएंगे। वह अपने  देवर

की बातों को सुनकर कर बहुत ही खुश हुई कि उसका देवर सुधर चुका था। उसने चुपचाप उस खीर को फैंक दिया। उसके माता-पिता जब पार्टी समाप्त हुई तो घर जा चुके थे। वे खुश थे कि उनकी बेटी खुश है। विरेन्द्र  अपनी मां के पास आकर बोला मां आप कब सुधरोगी। आज तो आपने भाभी के परिवार को ऊपर पहचाने कि योजना बना दी थी। यह तो शुक्र है मैं देख रहा था वर्ना आपने तो आज इतना अनर्थ कर डाला होता मैं आपको कभी भी माफ नहीं करूंगा। आप लोग ही भाभी को हर कभी नीचा दिखाना चाहतें हैं। मैं पुलिस वालों को सूचित कर दूंगा अगर आपने आगे से कोई ऐसी हरकत की तो मैं आपको बक्शूंगा नहीं। उसकी ननंद भी कुछ दिन के लिए अपनी मम्मी पापा के पास विदेश से आई थी। घर आकर उसने अपनी भाभी के साथ बहुत ही अच्छा महसूस किया। उसके स्कूल  काफी घुल मिल गई। उसको पछतावा हुआ कि बेचारी  बीनू नें विनय को अपनी पति की के रूप में  स्वीकार कर दिया। मेरे भाई की जान भी बचाई।  मेरे माता पिता ने विकी के साथ कितना बुरा बर्ताव करने के लिए उसे भड़काया था कि तू विदेश में जाकर विकी को अपनेप्रेम के प्यार में फंसा कर उस से शादी कर लेना और उसके सारे वेतन पर अपना अधिकार जमा लेना।  घर में कुछ भी ना भिजवाना। बिनु को समझते देर नहीं लगी कि जमीदार ने तो मेरे भाई को भी नहीं छोड़ा अपना बदला लेने के लिए अपनी बेटी को विदेश में भैया को फंसाने के लिए भेज दिया ताकि वह अपने अपमान का बदला ले सके। एक दिन बीनू अपने देवर के साथ हंसकर बातें कर रही थी उसकी सास आई और बोली विनय देख तेरी पत्नी की हरकतें अच्छी नहीं है। विनय को तो अपनी पत्नी पर पूरा विश्वास था। शाम को विनय नेंअपनी पत्नी को सारी बातें बताई। विनय ने कहा कि तुम्हारी ंसासं तुम्हारी शिकायत कर  रही थी तुम्हारी पत्नी की हरकतें ठीक नहीं है। विनु ने वीरेंद्र को बुलाया और कहां कि मैं तुमसे क्या कर रही थी।।? तुम्हें मेरी सहेली का  रिश्ता पसंद है या नहीं वह एक प्रवक्ता के पद पर काम   कर रही है तुम  भीअपनी पढ़ाई पूरी कर के उसके साथ विवाह सूत्र में बंध जाओ। तुम्हें अगर मेरी सहेली विभा पसंद  है तो मैं आगे बात चला सकती हूं।  विरेन्द्र नें हां में सिर हिला कर भाभी को कहा मैं तुम्हारी पसन्द को कैसे टाल सकता हूं। विनय बहुत ही खुश  हुआ। बाबा के पास आकर वीनू ने अपने पिता को बताया कि हमारे भाई ने विदेश में जिस लड़की से शादी की है वह कोई और नहीं जमीदार की लड़की है। जमीदार नें ही उसे विदेश में पढ़ने भेजा था। भैया को शादी के चक्कर में फसाने के लिए जमीदार नें ही उसे सिखाया था।इस कारण वह रुपयानहीं भेज रहा था क्योंकि जमीदार की बेटी उसे रुपया नहीं भेजने देती थी। वह रुपा देने से इंकार करती थी। जंमिदार हमसे अपने अपमान का बदला लेना चाहता था। परंतु अब सब कुछ ठीक हो चुका है। उसके माता-पिता यह बात  सुनकर  हैरान हो गए। शाम को अपनी बहू को घर आया देख कर ठाकुर साहब खुश हुए और बोले बेटा आओ हम अपने बेटे और बहुत को देखने के लिए तरस गए थे।

विभा नेअपने  व्यवहार के लिए अपने सांस ससुर से क्षमा मांगी और कहा कि मेरे पिता ने ही मुझे ऐसा करने के लिए कहा था।  विक्कू को अपने घर में एक भी रूपया पैसा मत भेजना। वे आपके साथ बहुत ही बुरा करना चाहते थे। हमें अपने किए पर पछतावा है मैं जल्दी ही अपने पति के साथ अवश्य आऊंगी उसने अपनी सास ससुर के पैर छुए और उनसे आशीर्वाद लिया। उस के सास ससुर ने अपने बेटे और बहुत की गल्तियों को माफ कर दिया और कहा बेटी गले लगता जाओ। उनके दिलों से सारा मलाल हट गया था।

नई उमंग

स्कूल में बच्चे मैडम भारती के आने का इंतजार कर रहे थे। बच्चों को अपनी मैडम भारती बहुत ही अच्छी लगती थी। वह उन्हें बहुत ही प्यार से पढ़ाती थी।

हर बच्चे को खेल खेल में पढ़ाना उसका शौक था। इसी कारण उसकी कक्षा में बच्चे पाठ को बड़े ध्यान से सुनते थे ।उसकी कक्षा में बच्चों के सबसे अच्छे अंक आते थे। हर बार भारती को उनकी अच्छी प्रतिभा के कारण उन्हें हर साल बैस्ट टीचर का खिताब दिया जाता था।

 आज उनके  स्कूल में एक ऐसा बच्चा आया था। जिसको देखकर मैडम भारती   बहुत ही परेशान हो गई। उस बच्चे को कुछ भी नहीं आता था वह कोरा कागज था और पांचवी में पढ़ने आया था। उसे तो अक्षरों की भी पहचान नहीं थी।। उसे 100 तक गिनती भी नहीं आती थी। मैडम ने उस बच्चे का जायजा लिया उन्होंनें पाया  कि वह तो पहली कक्षा में ही बैठने लायक है। वह क्या करती? परेशान रहने लगी। वह बच्चा भोला-भाला और उम्र 12 साल मैडम ने उस से पूछा तुम पहले कहां पढ़ते थे? वह बोला। सरकारी स्कूल में। वह बहुत सारे स्कूलों में कभी इधर कभी उधर। वह बोला मैडम जी हम एक जगह पर 2 साल से ज्यादा नहीं ठहरते। जहां पर मेरे  पिता जी को काम मिलता है हम वहीं पर चले जाते हैं।। मुझे स्कूल में कोई भी अध्यापक भी अच्छे ढंग से नहीं पढ़ाते। वह मुझ से परेशान हो जातें हैं जब वह उन के किसी भी प्रश्न को न लिख कर और न बोल कर समझा पाता है। हर बार प्रताड़ित होना पड़ता है। कुछ दिन पढ़ाने के बाद मुझे कोई भी मुझे पढ़ाना पसन्द नहीं करता।  क्योंकि मैं अब बड़ा हो गया हूं? 

   मैडम भारती   उस बच्चे की कहानी सुनकर रो पड़ी। वह अपने मन में सोचने लगी आज से मैं केवल इसी बच्चे की ओर  ही ध्यान दूंगी चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़ेगा। सारे बच्चे तो पढ़ाया हुआ याद कर ही लेते हैं लेकिन इस बच्चे को पढ़ाना मेरा  सबसे बढा फर्ज है। निरक्षर को ज्ञान देना मेरा दृढ़ कर्तव्य है। मैं एक छोटे बच्चे की तरह इस पर अधिक ध्यान दूंगी। भारती ने उस बच्चे को पढ़ाना शुरु कर दिया। पहली कक्षा के बच्चों के साथ   पढ़ाते पढ़ाते बच्चा कुछ-कुछ पढ़ने लग गया था। यह भारती के लिए किसी भी चमत्कार से कम नहीं था। 

   स्कूल में आज परीक्षा का परिणाम घोषित होने वाला था। सभी अध्यापक मैडम भारती को देखकर कह रहे थे। मैडम हर बार आप ईनाम की हकदार होती है इस बार आप को ईनाम नहीं मिलेगा। इस बार बच्चों के इतने अच्छे अंक नहीं आए हैं। 

    प्रधानाचार्य जी भी हैरान थे ईनाम लेने वाली भारती मैडम का परिणाम इस बार कम रहा था।। 80% से कम अंक लेने वाले बच्चों की श्रेणी में मैडम भारती  का नाम था। कम अंक लेनें का कारण स्कूल के निरिक्षण कर्ता को जांच करना था।   

  अधिकारी वर्ग    बच्चे को जांच की की कसौटी पर खरा उतरने के बाद बच्चे की रिपोर्ट हर महीने  अध्यापिकाओं से मांगते थे। हर बच्चे का निरीक्षण करने के पश्चात बड़े बड़े अधिकारियों को भेज देते थे।  स्कूल के वार्षिक परीक्षा परिणाम का समारोह आयोजित किया गया था। 

आज स्कूल में पारितोषिक  समारोह था। 

  पारितोषिक के लिए नाम पुकारा गया।उसमें ं केवल दो-तीन  अध्यापक अध्यापिकाओं के नाम दिए गए। सब आपस में कानाफूसी कर कह रहे थे कि इस बार तो मैडम भारती को कुछ नहीं मिलेगा। प्रधानाचार्य जी ने तीनों अध्यापक-अध्यापिकाओं  को उनके नाम से पुकारा। सोनाली भारतीऔर पुनीत। तीनों ने में से एक- को ही ईनाम दिया जाना था। सभी बच्चों की अध्यापकों से रिपोर्ट मांगी गई थी कि वह किस वजह से बच्चों के कम अंक आए ।  

मैडम भारती अपनें मन में सोच रही थी तो क्या हुआ उसे आज ईनाम नहीं मिलेगा न सही आज वह अपनें दिल से इतनी खुश हे कि वह एक ऐसे बच्चे को शिक्षा दिला पाई जिस के मां बाप दोनों निरक्षर हैं। वह अपनें माता पिता को भी अक्षर ज्ञान दे सकता है। मेरा असली इनाम तो वह होगा जब वह बच्चा अच्छे ढंग से पढ़नें लिखनें के काबिल बन पायेगा। वह जल्दी जल्दी समारोह में  आ कर अपनी कुर्सी पर बैठ गई। 

  सभी अध्यापक  वर्ग मैडम                     भारती के आने का इंतजार कर रहे थे।  वह समारोह में पहुंच चुकी थी। बच्चों को अपनी मैडम भारती बहुत अच्छी लगती थी। वह सभी बच्चों को बहुत ही प्यार से पढ़ाती थी। हर बच्चे को खेल खेल में पढ़ाना उत्साहित हो कर कक्षा में  बच्चे बड़े ध्यान से उनके लैक्चर को सुनते थे। उसकी कक्षा में बच्चों के सबसे अच्छा अंक आया करते थे। हर बार भारती को ही उसकी अच्छी प्रतिभा के कारण उसे हर साल बैस्ट टीचर का खिताब दिया जाता था।

आज उस के स्कूल में एक ऐसा बच्चा आया था जिसको देखकर मैडम भारती परेशान हो गई। उस बच्चे को कुछ भी नहीं आता था। वह पूरा कागज था और पांचवीं में पढ़ने आया था उसे तो अक्षरों की भी पहचान नहीं थी। सौ तक गिनती भी नहीं आती थी। मैडम ने उस बच्चे का जायजा लिया उसने पाया वह तो पहली कक्षा में ही शामिल करने लायक है। वह क्या करती? परेशान रहने लगी वह बच्चा भोला भाला और उम्र 12 साल मैडम ने उसे पूछा तुम पहले कहां पढ़ते थे।?   वह बोला सरकारी स्कूल। मैडम जी हम एक जगह पर 2 साल से ज्यादा नहीं ठहरा करते हैं जहां पर मेरे पापा को काम मिलता है हम वहीं चले जातें हैं। उस बच्चे की कहानी सुनकर मैडम भारती का दिल रो पड़ा वह अपने मन में सोचने लगी 

आज से मैं केवल इसी बच्चे की ओर अधिक ध्यान दूंगी चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़ेगा सारे बच्चे तो पढ़ा हुआ याद कर ही लेते हैं लेकिन इस बच्चे को पढ़ाना पहला मेरा कर्तव्य है। निरक्षर को ज्ञान देना मेरा दृढ़ कर्तव्य है। मैं इस बच्चे की तरफ ही अधिक ध्यान दूंगी। मैडम भारती ने उस बच्चे को पढ़ाना शुरू किया बच्चे को शुरू से पढ़ाते पढ़ाते वह बच्चा कुछ कुछ पढ़ने लग गया था। यह भारती मैडम के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था। स्कूल में आज परीक्षा परिणाम घोषित होने वाला था सभी अध्यापक मैडम भारती को देखकर कह रहे थे हर बार आप  ही ईनाम की हकदार होती हैं। इस बार आप को ईनाम नहीं मिलेगा। इस बार बच्चों के इतने अच्छे अंक नहीं आए हैं। 

प्रधानाचार्य जी भी हैरान थे कि हर बार इनाम लेने वाले भारती मैडम का परिणाम इस बार कम ही रहा था 80% से कम अंक लेने वाले बच्चों की श्रेणी में मैडम का नाम था। ईनाम देने का काम स्कूल के निरीक्षक महोदय का था वह हर बच्चे की रिपोर्ट हर महीने मांगते थे हर बच्चे का निरीक्षण करने के बाद बड़े बड़े अधिकारियों को भेज देते थे सामने पारितोषिक के लिए नाम पुकारा गया पारितोषिक में तीन मेडम के नाम लिए गए प्रधानाचार्य जी ने तीनों अध्यापक-अध्यापिकाओं के नाम पुकारे सोनाली भारती और पुनीत तीनों में से एक को ही ईनाम दिया जाना था। सभी बच्चों की मैडम से रिपोर्ट मांगी गई थी कि किस वजह से बच्चों के कम अंक आए हैं मैडम ने अपनी रिपोर्ट जमा करवा दी थी जब ईनाम के लिए मैडम भारती को इस बार  इनाम भारती को नहीं मिलना था। इनकी कक्षा में तो बच्चों के अच्छे अंक नहीं आए हैं 

प्रधानाचार्य ने कहा कि आप यह नहीं जानते होंगे कि इनकी कक्षा में एक ऐसा बच्चा आया था जिसको कुछ भी नहीं आता था। मैडम ने दिन रात करके उसको पढ़ाने के काबिल बनाया किसी निरक्षर को ज्ञान देकर  उसका जीवन सफल बनाना सबसे बड़े पुण्य का काम है। उसके लिए एक बच्चा ही एसा था जिसको कुछ नहीं आता था। उन्होंने उसे पढ़ा कर अपनी योग्यता का सबूत दे दिया।। 

असली ईनाम की हकदार तो यही अध्यापिका है भारती की आंखें नम हो गईं। आज उसकी जीत हुई थी। अपने आप को वह बहुत ही भाग्यशाली महसूस कर रही थी। जिसने एक ऐसे बच्चे को पढ़ने के काबिल बनाया था जिस बच्चे के मां-बाप दोनों को पढ़ना लिखना नहीं आता था। बच्चे के मां-बाप ने आकर मैडम को कहा भगवान आपको सदा खुश रखे। आपने हमारे बच्चों को ज्ञान देकर एक नई  उमंग नई दिशा प्रदान की है।