संघर्ष करना है जरुरी

 

एक पेड़ पर कौवा, और एक कौवी का जोड़ा था रहता।

एक डाल से दूसरे डाल तक दाना चुनता रहता।।

कौवा था बहुत अभिमानी।

काम करते वक्त उसे याद आ जाती थी नानी।।

एक डाल से दूसरे डाल तक ही दाना लाने जाता।

थोड़ा सा दाना लाकर मस्त होकर सो जाता।।

कौवा हमेशा अपनें दोस्तों संग ही मस्ती करता रहता।

कोई कामधाम न कर अपनी मनमानी करता रहता।।

 

कौवी सारा दिन भोजन की तलाश में दूर तक उड़ जाती।

शाम होने तक अपने घोंसले में वापस आ जाती।।

कौवी  रहती थी हमेशा बीमार।

लेकिन कौवे से कभी ना करती थी तकरार।। वह समय पर हर रोज कौवे को खाना खिलाती।

हर रोज दाना चुगने  अकेली निकल जाती।।

एक दिन कौवी बीमार पड़ गई।

कौवे की परेशानी और भी बढ़ गई।।

कौवी ने कौवे को कहा कि जल्दी दाने का इंतजाम करवाओ।

कौवा बोला जो थोड़ा बहुत है उसी से काम चलाओ।।

कौवा अगर मगर  करने लगा।

कौवी की तरफ देख मुस्कुराने लगा।।

कौवी की आंखों से आंसू छलकनें लगे। आसपास घोंसले के पक्षी भी उसका मजाक उड़ाने लगे।।

कौवी आग बबूला होकर कौवे से बोली। तुम्हारी  तीन-पांच अब नहीं चलेगी।।

कौवा बोला तुम ही घर चलाओ ना।

मुझसे काम करवा कर अपना अपमान करवाओ न।।

कौवी बोली मिल जुल कर रहना है फर्ज हमारा।

संघर्ष करना ही है कर्तव्य हमारा।।

कौवा अपने साथियों के पास मदद मांगने चला गया।

अपना सा मुंह लेकर वापस आ गया।।

कौवी बोली तुम्हारे साथियों ने भी तुम्हें अंगूठा दिखा दिया

असफलता से सीख लेना तुम्हें सिखला दिया।। कौवा बोला आज मैं दाना चुगने जाता हूं।

जो कुछ मिलेगा वह घर मे ले कर लाता हूं।। कौवा उड़ता उड़ता दूर गगन में चला गया। लाचार होकर वह घर वापस आ गया।।

कौवी बोली संघर्ष करना है जरूरी।

विफलता से हारना नहीं है मजबूरी।।

अपने कर्तव्य से पीछे मत हटो।

अपना कर्म कर हमेशा आगे बढ़ते रहो।

कौवी की बात सुनकर कौवा फिर से दाना चुगने चला गया।

देर बाद भटकने के उसे थोड़ा सा दाना मिल गया।।

  • कौवा दाना प्राप्त कर खुशी से फूला न समाया आज उसे संघर्ष का मतलब समझ में आया।। 7/12/2018.

तीन परियां

एक बुढ़िया थी उसके एक ही बेटा था। उसने अपने बेटे को बताया था कि उसके पिता एक साहूकार थे। उन्होंने ना जाने किसी लड़की के चक्कर में पड़कर दूसरे शहर में जा कर उस लड़की के साथ शादी कर ली थी। उसके पिता शहर के मशहूर साहूकारों में से एक थे पर वे अपना सब कुछ बेच कर अपनी पत्नी को छोड़कर दूसरे शहर में चले गए थे। उसकी मां बहुत ही बूढी हो चुकी थी। गांव के लोगों ने उसकी सारी  जमीन उसे अकेला जानकर हथिया ली थी। उसके एक छोटा सा बेटा था। वह बुढ़िया थोड़ा बहुत ही कमा पाती थी।

 

वह अपने तथा अपने बेटे का पालन-पोषण बड़ी मुश्किल से कर रही थी।  एक दिन बुढ़िया ने अपने बेटे से कहा कि अब तुम कुछ कमा कर लाओ मैं भी अब बड़ी हो चुकी हूं। आलसी बनकर बैठे रहने से कुछ भी हासिल नहीं होगा।बुढ़िया का बेटा बहुत ही आलसी था। वह सोचता था मेरी मां तो कमा कर जो कुछ लाती है वह हम दोनों के लिए बहुत है। जरा भी मेहनत नहीं करता था। एक दिन बुढ़िया ने तंग आकर उससे कहा कि आज तो तुम कुछ कमा कर  लाओ। वर्ना तुम्हें खाना नहीं मिलेगा। उसके बेटे ने अपनी मां से कहा मां मुझे तीन रोटियां बना कर दे दो। रास्ते में जब मुझे भूख लगेगी तब मैं खा लूंगा। मैं काम की तलाश में जा रहा हूं।  बुढ़िया ने उसे  तीन रोटियां बना कर दे दी।बुढ़िया का बेटा पैदल चलते चलते काफी थक चुका था। एक नदी के किनारे पेड़ की छाया में बैठकर सुस्ताने का फैसला कर लिया। पहले हाथ मुंह धोया उसने खाना निकालते हुए जोर-जोर से कहा एक खांऊं कि दो खाऊं या तीनों खा  लूं। दूसरी बार फिर उसने वही दौहराया। एक खाऊं दो खाऊं या तीनों खा लूं। उस पेड़ पर तीन परियां रहती थी एक परी पेड़ से नीचे आकर उससे कहने लगी तू मुझे मत खा। बदले में तू जो कुछ चाहता है वह तुम्हें अवश्य दूंगी। बुढ़िया का बेटा उस परी की बात सुनकर हैरान रह गया। वह अपने मन में सोचने लगा यह परी समझती है कि  मैं शायद कोई बड़ा आदमी हूं जो कि उसे खा जाएगा। यह सुनकर बुढ़िया का बेटा बोला जो वस्तु मैं चाहता हूं क्या तुम मुझे दोगी।? परी ने कहा कि अगर वह उसे छोड़ देगा तो वह वस्तु तुम्हें अवश्य देगी। उसको अपनी बूढ़ी मां का ख्याल आया कैसे उसकी मां मेहनत मजदूरी करके थोड़ा बहुत ही कमा पाती है। कई बार तो भूखे ही सोना पड़ता है। क्यों ना मैं इससे जादू की थाली मांग लेता हूं? जिससे तरह तरह के पकवान जिस चीज की भी इच्छा करूंगा वह मुझे मिल जाएगी। उस ने परी से कहा कि देना ही चाहती हो तो मुझे एक  जादू की थाली  दे दो जिस किसी पकवान को मैं खाना चाहूं वह चंद मिनटों में ही मेरे पास आ जाए। परी ने कहा यह लो जादू की थाली। जादू की थाली पाकर बुढ़िया के बेटे को देते हुए बोली जब तुम इस थाली से भोजन मांगोगे और तरह तरह के पकवान मांगोगे तो तुम्हें  यहमंत्र बोलना पड़ेगा झम झम झम झमा झम झमाझम। तीन बार इस मंत्र को बोलोगे तो जो पकवान तुम खाना चाहते हो वह तुम्हारे सामने तुरंत ही आ जाएगा। बुढियाका बेटा बोला पहले मुझे मंगाकर दिखाओ। परी ने तीन बार मंत्र दोहराया। झम झम झम झमा झम झम तुरंत वहां पर पकवानों का ढेर लग गया। जादू की थाली पाकर बुढ़िया का बेटा बहुत ही खुश हुआ।

 

थाली लेकर वह जल्दी जल्दी घर की ओर जा रहा था। चलते चलते वह काफी थक गया था अचानक कुछ दूरी पर उसे एक घर दिखाई दिया। उस घर में चला गया। आज रात को मैं यहीं पर रुक जाता हूं। उसने घर देखकर दरवाजे पर दस्तक दी। एक बुढ़िया ने दरवाजा खोला बेटा कौन है? उसने बुढ़िया से कहा कि मैं आज रात आपके यहां विश्राम करना चाहता हूं? बुढ़िया ने कहा कि तुम मेरे घर पर तो रह सकते हो मेरे पास खाने को कुछ नहीं है जो कुछ था वह मैंने खा लिया है। तुम्हें आज रात को भूखे ही सोना पड़ेगा। उसने बुढ़िया से कहा कि तुम खाने की फिक्र मत करो। मेरे पास खाने के लिए बहुत कुछ है। मैं तुम्हें भी खिला सकता हूं। जैसे ही आधी रात हुई उसने अपने जादू की थाली निकाली और परी द्वारा दिया गया मंत्र  दोहराया झम झम झम झमा झम झम जल्दी से मेरे पास तरह तरह के पकवान  खाने के लिए आ जाए। मंत्र गुनगुना रहा था तो बुढ़िया उसे देख रही थी उसे मालूम हो चुका था कि इस युवक के पास जो  थाली है वह जादू की थाली है।

 

बुढ़िया ने रात को उसकी जादू की थाली चुरा ली और उसकी जगह मामुली  सी थाली रख दी। बुढिया का बेटा घर पहुंचा तो उसने अपनी मां से कहा मां तुझे अब काम करने की कोई जरूरत नहीं है। मैं तुम्हें बैठे-बैठे ही सब कुछ खिला सकता हूं। आप जो भी मिठाई पकवान जो कुछ खाना चाहती हो वह तुरंत ही आपके पास आ जाएगा। मेरे पास एक जादू की थाली है। जब उसने थाली को रखकर तीन बार  परियों द्वारा दिया गया मंत्र दोहराया  तो कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ।बुढिया का बेटा सोचने लगा कि उस परी

नें उसके साथ छल कपट किया है। उसने अपनी बुढ़िया मां को एक दिन फिर कहा मुझे तीन रोटियां बना कर दे दे। काम की तलाश में  मैं फिर से जा रहा हूं। मैं कुछ  कमा कर ही लौटूंगा नहीं तो तुम्हें मैं अपनी शक्ल कभी नहीं दिखाऊंगा।

 

बुढ़िया का बेटा फिर से उस नदी के किनारे पर विश्राम करने के पश्चात खाना खाने के लिए जैसे ही तैयार हुआ बोला एक खाऊं या  दो खाऊं यातीनों खा लूं। दूसरी परी पेड से नीचे उतरी और उसने बुढ़िया के बेटे को कहा कि मुझे मत खाना। मैं तुम्हारी इच्छा को अवश्य पूरी करूंगी। बुढिया का बेटा खुश होते हुए बोला और अपने मन में विचार करने लगा कि उस से क्या मांगू। बहुत सोच विचार करने के बाद बुढ़िया के बेटे ने उस से उड़ने वाला घोड़ा मांगा। उस  उड़ने वाला घोड़ा दे दिया। घोड़े पर उड़कर बहुत ही दूर एक विशाल नगरी में पहुंच गया। अद्भुत घोड़े को जब उस नगर के राजा ने देखा तो उसने सोचा कि वह नवयुवक तो किसी देश का राजकुमार होगा। राजा ने उससे कहा कि तुम मेरे घर पर चलो। बुढ़िया का बेटा राजा के साथ उसके महल में पहुंचा महल में पहुंचकर वहां के आलीशान भवन को देखकर वह मंत्रमुग्ध होकर सोचने लगा काश उसके पास भी इतनी धन दौलत होती तो वह भी आज कहीं का राजकुमार होता।  वह राजा की बेटी को देखकर उस पर मोहित हो गया। उसने राजा की बेटी को देखकर उससे विवाह करने का फैसला कर लिया सोचने लगा कि किस तरह इस राजकुमारी के साथ विवाह करके अपने घर को लौट जाऊंगा। वह कुछ कमा कर नहीं ले जा सका तो वह अपने घर वापस नहीं जाएगा। इस तरह हर रोज उस राजकुमारी से छुप छुप कर मिलने लगा। राजकुमारी भी मन-ही-मन उसे चाहने लगी थी उसने राजकुमारी से कहा कि मैं भी एक राजकुमार हूं। मैं घूमने के इरादे से यहां आया था परंतु अब तो तुम्हें छोड़कर जाने को मन नहीं करता। इस तरह वह राजकुमारी को अपने घोड़े पर दूर-दूर तक घुमाने ले जाता राजकुमारी भी मन-ही-मन उसे चाहने लगी थी। एक दिन उसने पिताजी से कहा कि मैं इस नवयुवक से शादी करना चाहती हूं। उसके पिता ने उस नवयुवक  के सामनें शर्त रखी कि अगर वह नवयुवक अपने माता-पिता से उन्हें मिलवा आएगा तो वह उनकी उसकी शादी उस नवयुवक से कर देंगे। उस बुढ़िया के बेटे पर तो प्यार का भूत सवार था। उसने राजकुमारी के पिता से कहा कि वह जल्दी ही उन्हें अपने माता-पिता से मिलवाएगा। आपके पास रहते हुए भी काफी दिन हो चुके हैं। वह अपने माता पिता को लेकर आएगा। आप मुझे घर जाने की इजाजत दे दीजिए।

 

जब उसने अपने घोड़े को दौड़ाया वह सोचनें लगा उसने झूठ तो बोल ही दिया जब उसका झूठ पकड़ा जाएगा तब क्या होगा? यह सोचते सोचते वह एक सराय में जाकर उसने खाने के लिए तीन रोटियां पैक करवाई। उसने सोचा कि आज फिर मैं उन परियों से मिलूंगा और उनसे अपने मन की बात कहूंगा। वह उसी नदी पर विश्राम करने चला गया और वहां जाकर कहने लगा एक खाऊं कि दोखाऊं या तीनों खा लूं। यह सुनकर पेड़ पर रहने वाली परियां घबरा गई। वह तीनों सोचने लगी कि वह नवयुवक बहुत ही बहादुर है। जो हम तीनों को खाने के लिए आ रहा है। तीसरी परी ने उसे कहा कि तुम उसे नहीं खाओ तुम हमें क्यों खाना चाहते हो। हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? जो कुछ तुमने पहले मांगा वह हमने तुम्हें दे दिया। अब क्या चाहिए तीनों परियों ने कहा कि हम तीनो बहने हैं हम तुम्हारी बहादुरी से प्रसन्न है उस नवयुवक ने कहा कि तुमने मुझे जादू की थाली नहीं दी थी वह तो मामूली सी थाली थी उससे तो मंत्र पढ़ने के बाद भी कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ।

 

परी ने कहा तुम्हारी जादू की थाली तो चोरी हो गई है जहां रात को तुम रुके थे। उस बुढ़िया रस्सी है यह तुम्हारे अतिरिक्त किसी को दिखाई नहीं देगी। जब तुम मंत्र पढ़ोगे टम टम टम टम टम टम झम झम झम झमा झम झम इस मंत्र को तीन बार दौर आओगे यह मंत्र पढ़कर कहोगे बंध रस्सी और चल  डंडे  तब डंडा चोरी करने वाले पर तड़ातड़ बरसने लगेगा और जो कहोगे कि खुल रस्सी और खुल डंडे जब तुम यह कहोगे कि तो चोरी करने वाला इंसान उस रस्सी से बंध जाएगा। रस्सी और डंडा पाकर वह बहुत खुश हुआ । उड़ने वाले घोड़े पर बैठकर एक जगह पहुंच गया। वहां उसने देखा कि एक घर में चोरी करने चोर घुस गए थे घर एक बड़ी साहूकार का था  बुढिया के बेटे ने उन चोरों की बात सुन ली थी। वह कह रही थी कि यह  साहुकार किसी राजा से कम नहीं है। इसके पास इतनी धन दौलत है। इसके पास एक ही बेटी है। किसी तरह से इस के घर चोरी करने चाहिए। उसका धन-दौलत छीन कर उसे मार देंगे। बुढ़िया के बेटे ने उस घर का द्वार खटखटाया। साहूकार ने कहा मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं?

 

उसने साहूकार को बताया कि मैं एक ज्योतिष कार हूं मैं अपनी ज्योतिष विद्या से बता सकता हूं कि क्या होने वाला है।? साहूकार कहने लगा बड़े आए ज्योतिष कार निकलो यहां से। साहूकार की बेटी  यह सब देख रही थी उसने अपने पिता से कहा कि पिताजी शायद यह ज्योतिष कार ठीक ही कह रहे हैं।  बुढ़िया के बेटे ने साहूकार की बेटी को कहा  तुम मेरी बहन जैसी हो । तुम्हारे घर पर विपत्ति आने वाली है। आज रात तुम्हारे घर पर चोरी होने वाली है। तुम सतर्क रहना।

 

साहूकार की बेटी ने कहा कि अगर तुम्हारी बात सच निकली तो वह तुम्हें अपने पिता से बहुत धन-दौलत दिलवाएगी । साहुकार की बेटी  अपने पिता के पास जाकर बोली पिताजी आप एक बार ज्योतिषी की बात पर  एक बार विचार करके देखो। साहूकार ने  बुढ़िया के बेटे को कहा कि तुम मुझे अपना परिचय दो। तुम कहां के रहने वाले हो।?

वह बुढ़िया का  बेटा बोला  मैं सूरतगढ़ का रहने वाला हूं मेरे पिता भी एक साहूकार थे। उनका नाम था दीनानाथ  वह बहुत  ही बड़े साहूकार थे।  वह अपना सब कुछ बेच कर दूसरे शहर में रहने चले गए। मेरी मां का नाम देवकी है। साहूकार चौंका। वह वही साहूकार था जो उस बदनसीब नवयुवक का बाप था।

 

वह अपने परिवार को छोड़कर दूसरे शहर में बस चुका था। उसने वहां पर एक लड़की से शादी कर ली थी। उसकी पत्नी तो काफी पहले ही मर चुकी थी। उससे उसे एक बेटी थी। ने छल कपट करके दोबारा तुम्हारी जादू की थाली तुमसे ले ली और उसकी जगह नकली थाली रख दी। उस परी ने कहा मैं तुम्हें एक रस्सी और एक डंडा देती हूं। यह एक जादू कीबाद में अपने पत्नी को ढूंढने वह सूरतगढ़ गया था उसे मालूम हुआ था कि उसकी पत्नी अपने बेटे को लेकर कहीं दूसरी जगह जा चुकी थी। उसकी आंखों से झर झर आंसू बहने लगे  उसने अपने बेटे को गले लगाया और कहा कि तुम ही मेरे बेटे हो यह तुम्हारी बहन है। मैं ही तुम्हारा अभागा पिता हूं जो तुम्हें छोड़कर चला गया था। तुम्हारी मां कैसी है?

साहूकार ने अपनी बेटी को कहा कि जल्दी तुम पुलिस को सूचना दे दो  ताकि चोरों को पकड़ा कर उनका पर्दाफाश किया जा सके। चोर जैसे ही उनके घर पहुंचे पुलिस ने उन्हें दबोच लिया। एक चोर चुप चुपके से एक गोदाम में घुस गया।  बाकी चोरों को तो पुलिस पकड़ कर ले गई। वह चोर जो गोदाम में छुपा हुआ था  उसके हाथ में तेज हथियार था। वह जैसे ही उस साहूकार को मारने आया  बुढ़िया के बेटे ने पति द्वारा दिया गया मंत्र दोहराया। टम टम टम  टमाटमटम टम टम।  झम झम झम  झमा झम झम झम झम।बंध रस्सीऔर चल डंडे।  देखते ही  देखते वह  चोर रस्सी से बंध गया।  डंडे ने तडातड  उस चोर की पिटाई करनी शुरू कर दी। उसके हाथ से चाकू नीचे गिर गया था। उस चोर को पुलिस के हवाले कर दिया गया। साहूकार ने  अपनी बेटी को बताया कि वही उसका भाई है। मेरी पहली पत्नी का बेटा  है। साहूकार के बेटे नें कहा कि बहन मैंने आप सब लोगों की जान बचाई है। आपको भी मेरा  एक काम करना होगा। क्योंकि जिस लड़की को मैं प्यार करता हूं उसके माता-पिता ने यह शर्त रखी है कि अगर वह अपने माता-पिता से उन्हें मिलवाएगा  तभी उसकी शादी वह अपनी बेटी से करेंगे। जिससे वह प्यार करती है। साहूकार की बेटी बोली तुम तो मेरे ही भाई निकले वह तुम्हारे ही पिता है। तुम्हारे पिता और मैं अवश्य ही तुम्हारे साथ उस राजा के घर जरूर चलेंगे। साहूकार को लेकर वह बुढ़िया का बेटा उस राजकुमारी के घर पहुंचा। उसने राजा से अपने पिता  और बहन को मिलवाया। उनसे कहा कि मेरी मां बीमार होने के कारण यहां नहीं आ सकी। अच्छा रिश्ता पाकर राजा उस बुढ़िया के बेटे को इन्कार नहीं कर सका। अपनी बेटी को उनके साथ विदा कर दिया। सबसे पहले वह साहूकार के घर गए।  साहूकार ने कहा बेटा अब तुम भी गांव को छोड़कर अपनी मां को भी यहां लेकर आओ। वह अपने पिता से बोला पिताजी आज तो मुझे किसी से अपना हिसाब किताब चुकाने जाना है।  वहां से वापस आकर सबको लेकर गांव चलूंगा। उसने अपनी पत्नी राजकुमारी से कहा कि मुझे जाने की इजाजत दे दो। मैं जल्दी से काम निपटा कर तुम्हें लेने आऊंगा। राजकुमारी ने उसे कहा जल्दी आना। उस जादुई उड़ने वाले घोड़े पर बैठकर उस बुढ़िया के यहां पहुंचा।  जिसने उसकी जादू की थाली चुरा ली थी। उसने बुढिया को  कहा  मैं आज रात को  यहां रुक सकता हूं।

बुढ़िया ने कहा कि बेटा तुम यहां बड़ी खुशी से मेरे घर पर रुक सकते हो। बुढ़िया जैसे ही सोने जाने लगी उस बुढ़िया के बेटे ने कहा  परी द्वारा दिया गया मंत्र दोहराया  टम टम टम टमाटम  टम टम टम। झम झम झम झमा झम झम झमाझम। बुढ़िया के बेटे ने कहा बंध रस्सी और चल  डंडे।  बुढ़िया रस्सी से बंधी और तड़ातड़ बुढ़िया की पिटाई होने लगी।  बुढ़िया जोर-जोर से चिल्लाने लगी बचाओ बचाओ बचाओ। बुढिया के बेटे ने कहा जब तक तुम  मेरी चोरी की गई जादू की थाली  नहीं दोगी तब तक तुम्हारी डंडे से पिटाई होती रहेगी। बुढ़िया ने उस नवयुवक से कहा कि इस डंडे को रुकने को बोलो नहीं तो मैं मर जाऊंगी।

 

उस नवयुवक ने कहा तुम अगर जादू की थाली वापिस लाने का वादा करती हो  तो तुम्हें यह डंडा छोड़ देगा। वर्ना  तुम मार खा खाकर यूं ही मर जाओगी। बुढ़िया ने उससे माफी मांगी  बुढिया नें साहुकार के  बेटे की थाली वापस कर दी।  साहुकार के बेटे ने बुढ़िया को करवाता देखा उसने वही मंत्र दोहराया खुल रस्सी और रुक डंडे। उसने खुल रस्सी जैसे ही कहा बुढ़िया की रस्सी खुल गई और बुढ़िया मूर्छित होकर गिर पड़ी। थाली पाकर साहूकार का बेटा बहुत खुश हुआ। वह उड़ने वाले घोड़े पर पहले अपने पिता के घर आया और अपने पिता बहन और अपनी राजकुमारी को लेकर गांव वापस आया। उसकी बूढ़ी मां यह देख कर खुश हुई की उसका बेटा न केवल अपनी राजकुमारी को बल्कि उसके पिता को भी वापस लाया था। बहन को भी साथ लाया था। बुढ़िया अपने परिवार की वापसी  पर बहुत खुश थी। अपनी बेटी बेटे और बहू को लेकर साहूकार अपनी नगरी में लौट गया। साहुकार की पत्नी नें अपने पति को माफ कर दिया था। वे खुशहाल  और सुखी  हो गए।

सपनों का स्कूल

एक छोटी सी नन्ही गुड़िया प्यारी प्यारी।
सपनों का स्कूल बनाने में जुटी रहती वह बेचारी।।
स्कूल में अध्यापकों से प्रश्न पूछ पूछ कर उन्हें सदा सताती रहती।
घर में दादा-दादी नाना-नानी चाचा- चाची सभी से प्रश्न पूछ पूछ कर उन्हें डराती रहती।।
बस की सीटों में पढ़ा पढ़ा कर अपना मन बहलाती।
कभी अध्यापिका बनकर बच्चों को खूब मन लगा कर पढ़ाती।
बस के सीटों पर कक्षाएं लगाकर उन्हें तरह-तरह के सवाल पूछा करती।
बच्चों के उत्तर ना देने पर स्वयं ही उन्हें उतर समझाती।।
वह बच्चों की कक्षा ध्यापिका बन जाती।
कभी बच्चों की उपस्थिति लगाकर उन्हें बुलाती।।
कभी वह आईएएस अफसर बनने का सपना देखती।
एक औफिसर की तरह अकड़ अकड़ कर उन पर रौब जमाती।
कभी मिठाई वाली बनकर बच्चों को मिठाई बेचा करती।
रुपया अदा न करनें पर उन्हें ठैंगा दिखाती।

कभी पुलिस ऑफिसर बनने का स्वपन देखा करती।
पुलिस औफिसर की तरह बन उन्हें डन्डा दिखाती।
कभी राजनैतिक नेता बनकर अधिकारियों पर रौब झाड़ती रहती।
कभी नेता जैसा भाषण दे कर सब को चौंकाती।।
एक छोटी सी नन्ही गुड़िया प्यारी प्यारी।
सपनों का स्कूल बनाने में जुटी रहती वह बेचारी।।

कभी छोटे छोटे पेड़ों पर बच्चों को बिठा कर मस्ती से उनकी परीक्षा लेती।
कभी शिक्षा निदेशक बन कर बच्चों का हौसला बढाती।।
बच्चों को खेल खेल के माध्यम से पढाई करना सिखाती।
उन्हे पढाई से सम्बन्धित प्रश्न पूछती।
बच्चों के उतर न देनें पर प्यार से उन्हें समझाती।।

संघर्ष करना है जरुरी

एक पेड़ पर कौवा, और एक कौवी का जोड़ा था रहता।

एक डाल से दूसरे डाल तक दाना चुनता रहता।।

कौवा था बहुत अभिमानी।

काम करते वक्त उसे याद आ जाती थी नानी।।

एक डाल से दूसरे डाल तक ही दाना लाने जाता।

थोड़ा सा दाना लाकर मस्त होकर सो जाता।।

कौवा हमेशा अपनें दोस्तों संग ही मस्ती करता रहता।

कोई कामधाम न कर अपनी मनमानी करता रहता।।

 

कौवी सारा दिन भोजन की तलाश में दूर तक उड़ जाती।

शाम होने तक अपने घोंसले में वापस आ जाती।।

कौवी  रहती थी हमेशा बीमार।

लेकिन कौवे से कभी ना करती थी तकरार।। वह समय पर हर रोज कौवे को खाना खिलाती।

हर रोज दाना चुगने  अकेली निकल जाती।।

एक दिन कौवी बीमार पड़ गई।

कौवे की परेशानी और भी बढ़ गई।।

कौवी ने कौवे को कहा कि जल्दी दाने का इंतजाम करवाओ।

कौवा बोला जो थोड़ा बहुत है उसी से काम चलाओ।।

कौवा अगर मगर  करने लगा।

कौवी की तरफ देख मुस्कुराने लगा।।

कौवी की आंखों से आंसू छलकनें लगे। आसपास घोंसले के पक्षी भी उसका मजाक उड़ाने लगे।।

कौवी आग बबूला होकर कौवे से बोली। तुम्हारी  तीन-पांच अब नहीं चलेगी।।

कौवा बोला तुम ही घर चलाओ ना।

मुझसे काम करवा कर अपना अपमान करवाओ न।।

कौवी बोली मिल जुल कर रहना है फर्ज हमारा।

संघर्ष करना ही है कर्तव्य हमारा।।

कौवा अपने साथियों के पास मदद मांगने चला गया।

अपना सा मुंह लेकर वापस आ गया।।

कौवी बोली तुम्हारे साथियों ने भी तुम्हें अंगूठा दिखा दिया

असफलता से सीख लेना तुम्हें सिखला दिया।। कौवा बोला आज मैं दाना चुगने जाता हूं।

जो कुछ मिलेगा वह घर मे ले कर लाता हूं।। कौवा उड़ता उड़ता दूर गगन में चला गया। लाचार होकर वह घर वापस आ गया।।

कौवी बोली संघर्ष करना है जरूरी।

विफलता से हारना नहीं है मजबूरी।।

अपने कर्तव्य से पीछे मत हटो।

अपना कर्म कर हमेशा आगे बढ़ते रहो।

कौवी की बात सुनकर कौवा फिर से दाना चुगने चला गया।

देर बाद भटकने के उसे थोड़ा सा दाना मिल गया।।

कौवा दाना प्राप्त कर खुशी से फूला न समाया आज उसे संघर्ष का मतलब समझ में आया।। 7/12/2018.

शिक्षा के साथ साथ खेलों का महत्व

एक स्वस्थ दिमाग में स्वस्थ शरीर है रहता।
यह हमारे मस्तिष्क को सेहतमंद है करता।।
मनुष्य को जो पाठ शिक्षा नहीं दे पाती।
वह शिक्षा बच्चों को खेल का मैदान है सिखलाती।।
खेल शारीरिक विकास की है धुरी।।
शिक्षा चिंतन मनन से है होती पूरी।।
पढ़ने के साथ जो छात्र खेलों में हैं भाग लेते।
वह चुस्त और आलस्य रहित होकर खुशियां है पाते।।
व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास के लिए तन और मन रथ शरीर रुपी ये हैं दो धूरे।
इन दोनों को सार्थक किए बिना ये हैं अधूरे।।
जो बच्चे शारीरिक गतिविधियों से हैं कतराते। वे कभी भी जीवन में उन्नति नहीं कर पाते।।

खेल खेलने से दोस्ती, दूसरे देशों के रीति-रिवाजों का भी पता है चलता।
पढ़ाई के साथ साथ बच्चे का सर्वांगीण विकास भी है करता।।
खेलने से बच्चों की शारीरिक क्रियाओं में वृद्धि है होती।
बच्चों के हौसले को बढ़ाकर बच्चों के चेहरे पर खुशी है झलकाती।।
हार को मुस्कुरा कर खेलना है सिखाती।
जीत के बाद भी अंतर का पता चलने पर पुनः प्रयास करना है सिखाती।।
खेलने के समय में खेलना और पढ़ाई करना यह दोनों है जरूरी।
इस पर अमल करके बच्चों का सर्वांगीण विकास करना है जरूरी।।
बच्चों के पाठ्यक्रम में शिक्षा के साथ साथ खेलों को भी शामिल करना है जरुरी।
खेलें व्यक्ति के चरित्र और व्यक्तित्व का निर्माण करना है सिखाती।
ये अनुशासन और जीतने की ललक भी है दिखलाती।।

चीनू का नन्हा दोस्त

  • बहुत समय पहले की बात है कि एक गांव में चीनू अपने माता पिता के साथ रहा करती थी उसका स्कूल  गांव से बहुत दूर पड़ता था। उसको पैदल ही स्कूल जाना पड़ता था। हर रोज़ दो-तीन किलोमीटर पैदल जाती थी।  हर रोज जब स्कूल जाती अपनी सहेली के साथ जाती। उसकी सहेली मीनू का घर भी उसके घर से पांच किलोमीटर की दूरी पर था। दोनों सहेलियां आपस में गप्पे लड़ाते लडा़ते स्कूल जाती थी। काफी देर तक  चीनूं उनके घर खेलती रहती थी। मीनू की मां ज्योति अपनी बेटी को बहुत ही प्यार करती थी। ज्योति की मां को जानवरों से बहुत ही लगाव था। उसने अपने घर में तीन खरगोश पाले हुए थे। वह उनको पिंजरे में रखती थी। समय-समय पर उनको दाना डालना  उनकी साफ सफाई करना  सब ज्योति किया करती थी। ज्योति भी अपनी मां को देखकर ऐसा ही किया करती थी। उसे भी जानवरों से लगाव हो गया था। जब भी मीनू के घर आती खरगोश के साथ खेलकर अपना दिल बहला  लेती थी। एक दिन खेल खेल में उस नें देखा कि  घर के बाहर बरामदे में एक वैसा ही खरगोश अकेला खेल रहा था। उसको देख कर चीनू नें उस खरगोश को उठा लिया। देखने में वह खरगोश बिल्कुल ही वैसा था मगर वह  भूरे काले रंग का था।  उसको उठाते देख  मीनू ने  अपनी सहेली चीनू को कहा मेरी मां नें इसको यहां रख दिया है। मां को यह अच्छा नहीं लगता। चीनू की आंखों से आंसू छलक पड़े इसलिए कि यह काला है। मीनू बोली कि इसका तो मुझे पता। नहीं। यहअपने  साथियों के बिना अपनें आप को अकेला महसूस करता है। चीनू बोली तुमने अपनी मां को क्यों नहीं कहा कि इस बेचारे ने क्या बिगाड़ा है? इसे भी वहीं पर रखो जहां उसके साथी हैं। मैं तो आंटी को एक अच्छा इंसान समझती थी। मीनू बोली नहीं उनमें दया भाव है?  वे इसे भी खाने को देती है परन्तु उसे अंदर कमरे में नहीं रखना चाहती हैं। चीनू बीच में बात काट कर बोली इसलिए कि इस का रगं काला है मीनू बोली मेरे भाई या बहन आने वाला है। पता नहीं भाई आएगा या बहन। इस कारण मां सब  से चिढी-चिढीरहती हैं। चीनूं बोली मैं  आंटी से  जा कर कहती हूँ आप नें इस सन्तु को  कमरे  से बाहर क्यों रखा है? वह आंटी को बोली आप नें सन्तु को कमरे से बाहर क्यों रखा है? । मीनू की मां ज्योति बोली बेटा यह मुझे भी अच्छा नहीं लगता। इसका रंग भी मुझे पसंद नहीं है। इसलिए मैंने उसे वहां पर रख दिया है। जाओ बेटा  तुम दोनों जाकर अपना काम करो। बाहर जाकर खेलो।

    चीनू और मीनू ने उसका नाम संतु रख दिया था। वह दोनों उसके साथ ढेर सारी मस्ती करती थी। एक दिन वह दोनों बोली अगर हम से कोई पूछेगा तुम्हारा सन्तु कितना पढा है तो हम कह देंगी इसने m. a किया है। मीनू की मां के वाक्य सुनकर चीनू बहुत ही दुःखी हुई। मीनू की मां जानवरों से प्यार ही नहीं करती अगर ऐसा होता तो वह उसको भी अपने घर में जगह दे सकती थी। चीनूं हर रोज घर में  से सन्तु को  खाने को ले आती थी।

    वह उस खरगोश के साथ खेलती।  वह भी   उन  से प्यार करता था। चीनू पढाई में बहुत ही होशियार थी। हर बार कक्षा में प्रथम  आती थी। सन्तू के साथ वह काफी घुलमिल गई थी। वह भी उसे पहचानता था। एक दिन चुपके से वह खरगोश  उस के पीछे पीछे हो लिया। लेकिन अंधेरा होने के कारण रास्ता भटक गया। उसे चीनूं दिखाई नहीं दी।

    चीनूं की मां उस से पूछती तुम इतनी देर कहां खेलती हो तो चीनूं कहती मां मेरा  एक दोस्त है उसके साथ खेलती हूं। उसकी मां  नें पूछा सन्तु कितने तक पढ़ा  है वह तो एम ए पास है। यह कहकर वहां हंस पड़ी बोली मां मुझे बातों में मत मत उलझा। स्कूल जाने दो उसकी मां बोली चलो फिर किसी दिन उसके संतु के बारे में पूछूंगी। देखने में कैसा है? जल्दी से चीनूं स्कूल को भाग  गई। चीनू जब मीनू के स्कूल पंहूंची मीनू नें उसे बताया सन्तू कल रात से न जानें कहां चला गया है? मिल ही नहीं रहा। चीनू सचमुच ही सन्तु को बहुत ही प्यार करती थी। स्कूल में भी सारा दिन उसका मन नहीं लगा। उसनें मीनूं  को भी कुछ नहीं बताया चुपचाप चीनूं    स्कूल से सीधे   सन्तू को देखने निकल पड़ी। रास्ते में ढूंढते ढूंढते थक गई मगर उसे उसके संतु का कोई सुराग नहीं मिला। उसके अध्यापकों ने बताया कि किसी का कुछ भी गुम हो जाए  तो पुलिस थानें जा कर पता करते हैं। वह एक दिन अपनें पापा के साथ पुलिस थाने  आई थी।

    पुलिस थानें में पहुंचकर वह पुलीस इन्सपैक्टर के पास जाकर  बोली इंस्पेक्टर साहब आप मेरी रिपोर्ट दर्ज कीजिए। मेरा संतु खो गया है। वह बोल सन्तू नाम के तो हजारों होंगे। तुम अपने घर का  पता लिख कर दे दो। उसने अपना पता लिखकर दे दिया। इन्सपैक्टर बोला घर से पहले बड़ों को लेकर आना तभी हम तुम्हारी रिपोर्ट लिखेंगे। बच्चों के कहने पर हम कोई रिपोर्ट नहीं लिखते। वह रोते-रोते बोली पुलिस  अंकल आपको अपनी बेटी की कसम। मेरी रिपोर्ट लिखो। पुलिस इन्सपैक्टर के भी उसी की उम्र की बेटी थी। वह बोला ठहरो मैं फाईल लेकर आता हूं। तुम कुर्सी पर बैठो। चीनूं ने संतु की फोटो मेज पर रख दी। उसने  उसी वक्त एक जानवर को दौड़ते देखा। उसने सोचा यही मेरा सन्तु होगा। वह तो एक हिरण का बच्चा था। उसनें हिरण के बच्चे को पुचकारा। उसको  प्यार करते देख कर हिरण का बच्चा भी मानों  मुस्कुरा कर उसकी तरफ निहार रहा था।

    वह जब भी स्कूल जाती रास्ते में घने जंगल को पार कर के जाना पड़ता था। पेड़ों से बातें करती थी। उनको कहती थी पेड़ राजा तुम मेरे दोस्त हो पेड़ राजा। पेड़ से ऐसे लिपट जाती थी जैसे एक बच्चा अपनें पिता से लिपट जाता है। उसको दानें डालती कभी अपनें डिब्बे से बिस्किट नमकीन डाल देती थी। उस की हरकतों को वन के हर प्राणी देखा करते थे। पेड भी उस की तरफ मुस्कुराहट भरी नजरों से कहता कि मैंने खा लिया है। चीनूं को उदास देखकर पेड़  बोला बेटा इतनी उदास क्यों हो?वह रोते रोते बोली मेरा संतु कहीं खो गया है। मेरे मम्मी पापा भी मुझे ढूंढ रहे होंगे।पेड़ बोला तुम चिंता मत करो। जाओ बेटा, अंधेरा हो रहा है। अपने घर वापिस जाओ। तुम्हारे माता-पिता तुम्हारी राह देख रहे होंगे।

    वह बोली नहीं मैं जब तक मेरा संतू मुझे नहीं मिलेगा मैं यहां से नहीं जाऊंगी।

    चीनू जब घर नहीं पहुंची तो उस की मां चम्पा कोबहुत ही चिंता होनें लगी। मेरी बेटी कभी भी ऐसा नहीं करती थी। । कहीं वह अपने दोस्त संतु के घर तो नहीं चले गई। परंतु वह  सन्तु  कौन है? शायद वो किसी अमीर परिवार का बेटा होगा जो हमारी प्यारी प्यारी सी बेटी को फुसलाकर ले गया है। भगवान अब मैं क्या करूं? आज तक तो कभी ऐसा नहीं हुआ। मेरी बेटी तो हमेशा पढ़ाई करती थी। दो-तीन दिन से देख रही थी वह बहुत ही उदास थी। खाना भी ठीक ढंग से नहीं खा रही थी।

    एक दिन जब मैंने पूछा तो बोली मां मुझे अपनी सहेली की मां बिल्कुल अच्छी नहीं लगती कि वह अपने दो बच्चों को प्यार करती है। एक को नहीं इसलिए कि वह एक काला है। उसकी मां बोली ऐसी बात नहीं है काला है तो क्या हुआ? काला और गोरा दो ही तो रंग होते हैं। वे दोनों उसके भाई हैं। अगर तुम्हारा भाई काला होता है या मेरा बेटा काला होता तो क्या मैं उसे बाहर फेंक देती। चीनूं बोली नहीं मां काला या गोरा से कुछ नहीं होता। मैं तो दोनों  को एक समान प्यार करती। उसकी मां इस बात से डर गई होगी कि कहीं उसके भी ऐसा ही काला बच्चा पैदा ना हो जाए? इसलिए शायद डरती हो। चीनू की मां को याद आया चलो रास्ते में उसके सहपाठियों से पूछती हूं। रोहित उनके कक्षा में ही पढ़ता था। चीनूं की मां चम्पा रोहित की मां के पास जाकर बोली हमारी चीनूं घर नहीं लौटी है। तुम्हें पता है कि वह कहां गई है? रोहित बोला वह तो स्कूल से जल्दी ही निकल गई। वह कह रही थी कि मैं संतु को ढूंढने जा रही हूं। उसकी मां की तो मानो मुंह में जबान ही नहीं रही।

    मेरी बेटी किसी लड़के के प्यार के चक्कर में पड़ गई है। अभी तो वह छठी कक्षा में ही पढती है। वह कह रही थी कि सन्तु m.a. पास है। यह मेरी बेटी ने क्या गुनाह गुनाह कर दिया? इतनी होशियार बेटी कैसे प्रेम के चक्कर में पड़ गई? कोई बात नहीं मीनूं के घर जाकर पता करती हूं। जल्दी-जल्दी पूछ पूछ कर मीनूं के घर की ओर कदम बढ़ा दिए। मीनूं के घर जाकर पता किया। मीनूं की मां अस्पताल में दाखिल हो गई थी। उसके घर में नन्ना सा चिराग आने वाला था।

    मीनूं बोली आंटी संतु हमारे खरगोश का बच्चा था। दो छोटे छोटे खरगोश के बच्चे यहां है। मां उन को अपना बेटा कहती है। उसकी मां को पता चल चुका था कि संतु कोई इंसान नहीं बल्कि एक खरगोश का बच्चा है।

    चीनू के माता-पिता पुलिस थाने के पुलिस इंस्पेक्टरके पास जा कर बोले हमारी बेटी गुम हो गई है। पुलिस इन्स्पेक्टर बोला कंही वह छोटी सी बच्ची तो नहीं। हां हां आपको कैसे पता चला? वह यहां पर  एक छोटी सी बच्ची-रिपोर्ट लिखाने आई थी। उसने मुझे कहा मेरा संतु गायब हो गया है। पहले तो मैंने उस से कहा कि अपने माता पिता को बुला कर लाओ लेकिन जब उसने मुझे अपनी बेटी की कसम दी तो मैं मान गया लेकिन जब मैं बाहर आया तो वह वहां से जा चुकी थी। आप फिक्र मत करो हम आपकी बेटी को सही सलामत  आप के घर पहुंचा देंगे।

    चीनू भटकते भटकते थक चुकी थी। अचानक उसी वृक्ष के नीचे उसे नींद आ गई। पेड़ ने उस पर बहुत सारे अपने पत्ते गिरा दिए। सपनों में ही नदी के पास जाकर  बोली  नदी रानी रानी तुमने मेरे संतू को तो नहीं देखा। नदी बोली पहले मेरा पानी पियो तब तुम्हें हम संतु के बारे में बताएंगे। चीनू ने चुपचाप पानी पिया। नदी बोली हम तुम्हारे संतू को ढूंढ कर तुम्हें वापस कर देंगे। फिर वह आगे बढ़ गई। बाग में  पंहूंची गई। वहां सुन्दर सुन्दर पक्षियों  फूलों और उडते भंवरो  के पास जा जाकर चीनू बोली तुमने भी  मेरे संतू को तो नहीं देखा। बाग कहने लगा बेटी हमने तुम्हारे संतु को नहीं देखा परंतु हम तुम्हारी सहायता करेंगे। तुम हमें हर रोज कुछ ना कुछ देती हो। फूलों को कभी तोड़ती नहीं हो बल्कि अपनें साथ हर बच्चे को भी समझाती हो कि बिना वजह हमें फूल और पौधे नहीं तोडनें चाहिए।  पेड़ ने सभी जानवरों को बताया कि यह बच्ची बहुत ही प्यारी है। इस की सहायता करना हमारा फर्ज है। जब काफी दिनों तक हमें खाने को नही मिला था तो उसके बच्ची नें हमारी मुसीबत के समय में सहायता की है। वह हमें हर रोज कुछ ना कुछ फेंक देती थी।

    जंगल के सारे जानवरों ने उसके आसपास घेरा लगा दिया। नदी  चीनू से  बोली तुम कभी भी पानी में कूड़ा कर्कट नहीं डालती थी इसलिए हम तुम्हारी सहायता करेंगे। वह सपनों  में सब देख रही थी। अचानक उस की नींद खुल गई रात को थक जाने के कारण उसे उसी वृक्ष के नीचे नींद आ गई थी।  पेड़ नें सभी जानवरों को हिदायत दी थी कि इस लड़की को कुछ नहीं होना चाहिए। वह अब हमारी शरण में है।

    सारे जंगली जानवरों ने उसके आसपास  पहरा लगा दिया  था। जब उसकी आंख खुली तो बहुत सारे जानवरों को देखकर बहुत खुश हुई सब के साथ वह बड़े बड़े प्यार से खेल रही थी अचानक उसे अपने संतु का ध्यान आया। मेरा संतू, मेरा संतु  सिसकती बोली

    पेड़ बोला  तुम  यहां के वन अधिकारी के पास जा कर कहना तुम यहां के बड़े अधिकारी हो।  कहना कि पेड़ों को काटना नहीं चाहिए जो कोई भी पेड़ काटेगा उस पर सख्त कार्यवाही की जाएगी अगर पेड़ काटने  भी पड़ जाए तो ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए। नदी बोली कि स्वास्थ्य अधिकारी और पानी के बड़े अधिकारी के पास जा कर कहना तुम्हारे इलाके के जितने भी यहां के लोग हैं बावड़ी में लोग गंदा कूड़ा करकट डालते हैं। वह सब साफ करना होगा। स्कूलों में भी बावड़ी को हर महीने जाकर साफ करवाना होगा। जो जलाशय में कूड़ा कर्कट डालेगा उस पर कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए।  बाग बोला कि तुम्हें बाग अधिकारी  के पास  जाकर कहना होगा कि सभी लोग इधर-उधर  रास्ते से जाते हुए और पार्क आदि में फूलों को तहस-नहस कर डालते हो। फूलों को तोड़ देते हैं। हम बेजुबान  प्राणी मुंह से कुछ कह नहीं सकते। इंसान को तो भगवान ने सब कुछ दिया है। वह  सुन भी सकता है। वह फिर भी हम प्रकृति की जीवों के साथ खिलवाड़  करता है।  ऐसा नहीं होना चाहिए।

    चीनूं बोली मैं सभी अधिकारी महोदय के पास जाकर आप की फरियाद करूंगी।  सभी जानवरों ने कहा कि चलो इसके संतु को ढूंढने चलते हैं। चीनूं खुश होकर बोली आप सभी का धन्यवाद।

    पुलिस इंस्पेक्टर उस घने जंगल में पहुंच चुका था। उसे पता था कि चीनूं इसी जंगल के रास्ते  चीनूं स्कूल जाती है। उसके माता द्वारा मालूम कर लिया था। हो ना हो उसे किसी पेड़ के नीचे  नींद आ गई होगी। वह उसे ढूंढ के ही रहेगा। वह भी तो मेरी बच्ची जैसी है।  उसे तभी झाड़ियों में काले  भूरे- रंग का खरगोश दिखाई दिया। पुलिस इस्पेक्टर का चेहरा खिल उठा जो तस्वीर चीनू  नें उसे दी थी उसी फोटो से उसके संतु का चेहरा काफी मिलता था। वह  सोचनें लगा कि अगर उसे चीनू नें  संतू की तस्वीर नहीं दी गई होती तो मैं कभी भी उसके संतु को ढूंढ कर नहीं ला सकता था।

    मैंने भी उसकी मां की तरह ही सोचा था कि अभी छोटी सी लड़की ना जाने इतनी छोटी सी लड़की लड़कों के चक्कर में कैसे फंस गई?  पुलिस इंस्पेक्टर थोड़ी दूर गए वहां पर सारे  के सारे जानवरों के बीच चीनू को  बैठे पाया। चीनूं के साथ सारे के सारे  जानवर प्यार से खेल रहे थे। शेर भी चुपचाप उसके पास बैठा था। पुलिस इन्स्पेक्टर की आंखें फटी की फटी रह गई। वह बोला बेटा हमने तुम्हें कहां-कहां नहीं ढूंढा यह लो तुम्हारा  संन्तु। चीनू को तो जैसे सब कुछ मिल गया हो। सारे के सारे जानवरों  उसे हैरत भरी नजरों से देख रहे थे। अब वह उनका काम नहीं करेगी।

    चीनू पुलिस इंस्पेक्टर से बोली यह सब मेरे साथी हैं। इन सब ने मेरी सहायता की है। आप विश्वास नहीं करेंगे मैं जब रात को यहां इस वृक्ष के पेड़ के नीचे सो गई तो पेड़ों ने अपने सारे पत्ते मेरे ऊपर गिरा कर  मेरे लिए बिस्तर बना दिया। उसने मुझसे फरियाद की की  इंसान जाति को समझाएं कि पेड़ों को काटना नहीं चाहिए। इस तरह पेड़ कटते रहे तो पेड़ पौधे जंगली जीव जंतु और सभी  वन्य प्राणी नष्ट हो जाएंगे और हमें शुद्ध हवा  भी नहीं मिलेगी। सांस लेना दुभूर हो जाएगा। पानी में कूड़ा कर्कट नहीं डालना चाहिए। पानी को गंदा नहीं करना चाहिए। पानी की एक एक बूंद कीमती होती है। फूलों  से लदे  पेड़ों को भी तोड़ कर नष्ट नहीं करना चाहिए। जब आपके घर का कोई सदस्य बीमार होता है या मर जाता तो आपको दुःख होता है उसी प्रकार पेड़ पौधों में लगे हुए फूल पौधों का भी यही परिवार होता है। हमें उन्हें नहीं तोड़ना चाहिए। इस्पेक्टर  साहब उस छोटी सी बच्ची के मुंह से ऐसी बातें सुनकर हैरान हो गए। ठीक है बेटा हम इस गांव में कड़ी हिदायत दे देंगे कि पेड़ों को कोई नहीं काटेगा। पानी को भी कोई गंदा नहीं करेगा। फूलों को भी कोई  नष्ट-नहीं करेगा जो ऐसा करेगा उस पर सख्त कार्यवाही की जाएगी।

    चीनू खुश होकर बोली अलविदा मेरे दोस्तों। अपनें संतू को लेकर अपने घर की ओर आ रही थी तो रास्ते में उसे मीनू मिल गई बोली मेरे भैया हुआ है। तुम क्या देखने  अस्पताल नहीं चलोगी? पुलिस इन्सपैक्टर नें चीनू के माता पिता को फोन कर के बता दिया कि आपकी चीनू सही सलामत है। उसके माता पिता भी वहां पंहूंच चुके थे।  अपनें माता-पिता के साथ नन्हे  चिराग को देखने अस्पताल गई।

    चीनू की नजर जैसे ही  छोटे से बच्चे पर पड़ी वह तो बिल्कुल काले रंग का प्यारा सा बच्चा था। मीनू की मां उसे कलेजे से लगा कर प्यार कर रही थी। चीनू को सामने आते देखकर वह  बोली तुम भी क्या नन्हे  चिराग को देखने आई हो।

    ज्योति आंटी यह भी तो काले रंग का है। आप इसको भी फैेंक दो। उसका इतना कहना था कि मीनू की मां ज्योति को ख्याल आया कि उसने भी तो खरगोश के एक बच्चे को बाहर कर दिया था इसलिए कि वह काले रंग से नफरत करती थी। उसे मन ही मन पछतावा हुआ। वह बोली बेटी तुम ठीक ही कहती हो मैंने तो उस बच्चे के साथ बहुत ही बेइंसाफी की। उसके साथियों के साथ उसे खेलने नहीं दिया इसलिए से बाहर कर दिया कि वह काला भूरे रंग का था। मुझे माफ कर दो बेटी मेरी आंखें खुल चुकी है। एक छोटी सी बच्ची ने मुझे सही मार्ग दिखाया है। जब मैंने अपने बच्चे को पाया तब मुझे एहसास हुआ कि मैं कितनी गलत थी बेटा मुझे माफ कर दो।  मानव का असली गहना तो उसका सदाचार है। इन्सान चाहे तो छोटे बच्चों से भी  बहुत कुछ सीख सकता है।।

    चीनू बोली आंटी आपको अपने किए पर पछतावा है यही बहुत है। आपके संतु को लेकर वह यहां से सदा सदा के लिए जा रही है। अब यह मेरा दोस्त है। मेरी मां नें भी मुझे इसे अपने घर में रखने के लिए इजाजत दे दी है। वह खुशी खुशी अपनें माता-पिता के साथ घर वापिस आ गई।

दूसरा जन्म

किसी गांव में एक औरत रहती थी।उसका नाम था जमुना। वह बहुत ही नेक इंसान औरत थी। कोई भी उसके घर में आता था उसको भी बिना खिलाए घर से जाने नहीं देती थी। मेहमानों का सत्कार इतने अच्छे ढंग से करती उसे अगर खाने को ना भी मिले तो वह भूखे पेट ही सो जाती थी। मगर अपने घर से किसी को भी भूखे जाने नहीं दिया करती थी।उसनें जीवन के 75 साल पार कर लिए थे। वह दिखने में सुंदर मोटे-मोटे चश्मा वाली लाठी टेक-टेक कर अपने आसपास के घरों का चक्कर लगा कर आ जाती थी। घर में आकर अपने पोते पोतियो के साथ अपना समय खुशी खुशी बिता रही थी। बूढ़ी हो गई थी उससे काम ठीक ढंग से नहीं होता था। उसके दो बेटे जो कुछ खाने को दे देते वही खाकर अपना गुजारा करती थी। वहां दान देने में भी असमर्थ थी। कभी-कभी अपने आसपास के घरों का चक्कर लगाती थी। बीमार भी रहने लग गई थी। एक दिन इतनी बीमार पड़ी कि उसने खटिया पकड़ ली। उसके बहू बेटे उसे वैद्य के पास लेकर चले गए। डॉक्टर ने उस की नब्ज को टटोला और कहा कि तुम्हारी माताजी अब इस दुनिया में नहीं है।
उन्हीं के घर के उपर की पहाड़ी पर एक गांव था। उस गांव का नाम भी उनके गांव के नाम जैसा ही था फर्क इतना था कि जमुना का ब्राह्मण परिवार था और पास के गांव का नाम भी वैसा ही था। वह गांव राजपूतों का था। हर आने-जाने वाले पता करते करते उस गांव में आते थे तो कभी भूल कर दूसरे गांव में पहुंच जाते थे। जब ब्राह्मण परिवार का नाम लेते थे तब उस व्यक्ति को लोग सही स्थान पर पहुंचा देते थे। उनके मानें की खबर सुनकर परिवार के सदस्य रोने लगे। उन्होंने अपने मन को समझाया चलो कोई बात नहीं मां नें जितनी जिंदगी जी वह खुशी के साथ जी। हमारी तरफ से उनको कोई भी कमी नहीं थी। हम उनका अंतिम संस्कार का कार्य भी अच्छे ढंग से करेंगें। उसकी दो बेटियां थी। वह आपस में कहने लगी कि हम तो यहां आती जाती थी हमारी मां तो बिल्कुल ठीक थी। वह नहीं मर सकती। उसके पिता उन्हें सांत्वना देते हुए कहने लगे कि भगवान को जो मंजूर था वह हो चुका होनी को कोई नहीं टाल सकता। अपनी तरफ से हमने उनकी देखभाल में कोई कमी नहीं की। उन्होंने परिवार में सबको सूचित कर दिया।
सारे के सारे परिवार वाले अंतिम संस्कार पर पहुंच चुके थे। जमुना को अच्छे ढंग से वस्त्र पहनाकर सजाया गया। मांग में टीका लगाया गया। वह इतनी खूबसूरत नजर आ रही थी लड़कियां अपनी मां को सीने से लगाए रोए जा रही थी। घर में सन्नाटा था। खामोशी थी। घर के सभी सदस्यों के चेहरे उदास थे। बच्चों को तो वह बड़े अच्छे ढंग से रखा करती थी। उसका इतना रोआब था कि सभी उसी की आज्ञा का पालन करते थे।। उसकी आज्ञा का उल्लंघन, कोई नहीं करता था। गांव वाली औरतों की तो वह जान थी। जब भी पानी भरने गांव की औरतें आ जाती जमुना के घर में उस से गप्पे लड़ाने बैठ जाती। सभी को अपना बना लेने की आदत उसमें थी। गांव की औरतों को जब कोई मुश्किल आती तो जमुना से सलाह लेना नहीं भूलती थी। अंतिम संस्कार की घड़ी में ना जाने कितने लोग आए थे। घर में कहीं भी जगह नहीं बची थी। सारा घर उदासी में डूबा था। जब अंतिम संस्कार के लिए जमुना को ले जाने लगे तो सभी लोगों की आंखें नम थी।
जमुना की लाश को कंधे पर उठाने लगे तब परिवार के सदस्य जोर से रोने लगे। मृत्यु हो जाने पर जो शंख बजाया जाता है वह जब बजा रहे थे तभी अचानक जमुना ने उठाएं की कोशिश की। राम-राम करके मुंह से राम-राम कहा। लोग इधर-उधर देखने लगे। कुछ लोग कहें लगे कि आवाज तो शैया से आ रही है। लोगों ने देखा कि फिर से राम-राम की आवाज आ रही है।
लोगों ने देखा वह औरत तो मरी नहीं थी। वह तो जिंदा थी। लोग अचंभित होकर एक दूसरे को देख रहे थे। घर में उसे वापिस पहुंचाया गया। घर आने पर लोग उसके सारे परिवार के सदस्य हैरान रह गए। लोगों ने उसे शैया से उठा कर बिस्तर पर रख दिया। वह तो बिल्कुल ठीक हो चुकी थी।
लोगों ने उसे कहा कि माता जी हम आपसे क्षमा मांगते हैं। हम आप को मरा समझकर आप का अंतिम संस्कार करने चले थे। हम से ना जाने इतनी बड़ी भूल कैसे हो गई। जमुना बोली भाइयों तुम सब क्षमा क्यों मांगते हो? मैं तो सचमुच ही मर गई थी। मैं तुमको अपनी कहानी सुनाती हूं। मर जाने के बाद रास्ते में वैतरणी नदी को पार करना पड़ता है। ना जाने कितने बड़े बड़े पहाड़ पार करने पड़ते हैं। यह सब देखकर रोंगटे खड़े हो गए। रास्ते में भटक गई थी। भूखी प्यासी थी तो भूख लग रही थी। तभी सामने से इतने सारे जानवर आकर मुझे खाना खाने को देने लगे। गाय को मैं रोटी खिला या करती थी। गाय नें कहा तुम मुझे रोटी खिलाती थी। पक्षियों ने मुझे सारा रास्ता बताया। मुझे आग के दरिया को भी हंसते-हंसते मैंने प्यार करा दिया। पार ले जाते जाते चार दिन हो चुके थे। यहां केवल एक पहर ही बीता होगा। जानवरों ने उस से कहा कि तुमने हमारी सहायता की थी इसलिए हम तुम्हारी सहायता करने के लिए आ गए हैं। दूत उसे यमपुरीके राजा यमराज के पास लेकर गए थे। यमदूत ने अपने दूतों को फटकार ते हुए कहा कि तुम इसे क्यों उठाकर ले आए हो इसका तो अभी मरना निश्चित नहीं था। वह उसी गांव की पहाड़ी में जमुनानाम नाम की इसी की हम उम्र औरत है। लेकिन वह राजपूत परिवार की है। उसका नाम भी जमुना है। उसे लाना था। यह तो ब्राह्मण परिवार की है। गलती से जमुना समझ कर दूसरी औरत को लेकर आ गए हो। दूतों नें यमराज से क्षमा याचना की और कहा कि हम इस औरत को आदर के साथ ही के गांव में सही सलामत पहुंचा देंगे। अभी इसका मरने का समय नहीं आया है। अचानक जब जमुना की आंख खुली तो उसे शंखनाद सुनाई दिया। उसनें सोचा यह मंदिर की घंटी का शब्द है। लोग उसकी बातें सुनकर स्तब्ध रह गए।
लोगों ने सुना उसी गांव की राजपूत औरत उसी वक्त मर गई तब कहीं जाकर जमुना पर विश्वास हुआ। सब के सब राम-राम कहकर अपने घरों को चले गए। जमुना भी अपने घर आकर अपने परिवार के लोगों के साथ सुख चैन से रहने लगी।

एक मासूम कली

  • मां मैं हूं तुम्हारी कोख में पल रही कली प्यारी।
    जिसको जन्म ना देने की तुमने कर दी तैयारी।।

    तुम इन दुनिया वालों से क्यों डर गई।
    तुम इतनी भी बेरुख सी क्यों हो गई।।
    अपनें गर्भ में ही मुझे क्यों मार देना चाहती हो।
    मुझे मार कर क्या हासिल करना चाहती हो।।
    दुनिया वालों के दबाव में क्या आपने यह कदम उठाया।

    फिर ऐसा घिनौना कृत्य करने का ख्वाब तुम्हें किस नें दिखलाया।।
    मैं तुम्हारी कोख में पल रही हूं एक अजन्मी मासूम सी कली।
    जिस को मारकर तुम रह जाओगी हाड मांस की डली।।
    यह दुनिया वाले तुम्हें फिर भी डराएंगे।
    तुम्हें ताने दे देखकर तुम्हारे पीछे लग जाएंगे।।
  • ऐसा है तो मुझे जन्म देकर अपना कर्तव्य पूरा करो।
    जन्म दे कर अपना और मेरा जीवन सार्थक करो।।
    मैं तुम्हारी डूबती नैया को पार लगाऊंगी।
    हर मुसीबत की घड़ी में आपको मुसीबत से बचाऊंगी।।
    अपने हक के लिए मां तुम्हें लड़ना ही होगा।
  • मुझे जन्म देख कर इस संसार में लाना ही होगा।।
    बड़ी होकर मैं तुम्हारे सपनों को कामयाब कर दिखाऊंगी।
    पापियों को सजा दिला कर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंच जाऊंगी।।
    मैं हूं तुम्हारी अजन्मी अभिलाषा।
    एक प्यारी सी सपनों की आशा।।

कोशिश


कोशिश करो कोशिश करो।

कोशिश करने से ना टलो।।

एक कोशिश इंसान को कहां से कहां पहुंचाएगी।

यह बात अभी तुम्हारी समझ में ना आएगी।। कोशिश करने से पीछे मत हटो।

संघर्षों से घबराकर  मत डरो।।

एक चिन्टी  भी कोशिश से अपनी मंजिल पा गई।

उसकी एक छोटी सी कोशिश उसे कहां से कहां पहुंचा गई।।

कोशिश के मार्ग में हार भी मिलती है।

हार से पीछे हट कर खुशी कहां हासिल होती है।।

रात दिन कोशिश करने में जुट जाओ।

एक दिन सभी को अपनी कोशिश से सफल हो कर दिखाओ।।

कोशिश करने से हर असंभव काम को संभव बना सकते हो।

अपने अधूरे ख्वाब पूरे कर दिखा सकते हो।। कोशिश की राह में मुश्किलें ही मुश्किलें आड़े आएंगी।

दृढ़ निश्चय और विश्वास ही तुम्हें अपनी मंजिल तक पहुंच जाएगी।।

बार-बार प्रयास ही जिंदगी का मकसद हो तुम्हारा।

इससे बड़ा नहीं है कुछ भी, यही है यथार्थ तुम्हारा।।

कोशिश से तुम हर मुकाम खुशी खुशी हासिल कर पाओगे।

अपने मकसद में सफल हो कामयाब हो जाओगे।।

कोशिश एक जड़ हीन व्यक्ति को भी ज्ञान से सराबोर करती है।

ज्ञान का अलौकिक प्रकाश जगा कर उसे तरक्की की सीढी तक पहुंचा देती है।। 4/12/2018