अंधा और कुबड़ा

दो मित्र एक अंधा और कुबड़ा दोनों एक मोहल्ले में थे रहते।
मिल बांट कर खाते तथा इकट्ठे जीवन यापन करते।।
अंधे को लोग ज्यादा भीख थे दे दिया करते।
कूबडे को लोग कम थे पसंद किया करते।।

अंधे और कुबडे दोनों में ईर्ष्या की आग भड़की ।
एक दिन वह आग शोला बनकर थी पनपी।।
कूबडे ने अंधे से कहा कि भाई तुम तो बहुत ही होशियार।
मैं तुम्हारी तरह होशियार तो नहीं बल्कि हूं समझदार।।
कुबड़े को अंधा बोला भाई मैं भी तुम्हारे साथ ही रहा करूंगा।
तुम्हारे घर के सारे काम कर दिया करूंगा ।।
अंधे ने कुंबडे पर दया दिखलाई।
कुंबडे की चाल उसे समझ ना आई।।
दोनों खुशी खुशी एक साथ रहनें लगे।
मिल बांट और कमा कर खानें लगे।।
कुबड़ा घर के सारे काम था कर दिया करता।
अंधे को पका कर खिला दिया करता।।
कुबडे के मन में एक दिन फिर ईर्ष्या का आवेश था आया।
वह मन ही मन अंधे को मारने की योजना का विचार मन में लाया।।
एक दिन रात के समय वापिस आते वक्त पहाड़ी के पास से चलते वक्त कुबडे नें अंधे को जानबूझकर नीचे था गिराया।
अंधा नीचे गिर कर एक कंटीली झाड़ी से था जा टकराया।।
झाड़ी को पकड़ कर अंधा सहायता के लिए जोर से चिल्लाया।
कुंबडे ने न चाहते हुए भी अंधे को बाहों से खींच कर ऊपर उठाया।।
अंधे ने कुबडे पर आक्रोष जताया।
तुम नें मुझे जानबूझ कर नीचे था गिराया।।
कुबड़ा बोला भला मैंने ऐसा क्यों करूंगा?
अपने दोस्त से भला छल क्यों करूंगा?
कुबड़े ने अपनें दोस्त को प्यार से सहलाया।
अपने पैर में कांटा चुभ जानें का नाटक रचाया।।
मेरे पैर में कांटा था चुभ गया।
जिस कारण तुम्हारा हाथ था छूट गया।।
अंधा मौन रह कर सारी बात था समझ जाता।
वह कुंबडे से बच कर काम पर था निकला करता।।
एक दिन कुबड़ा बोला भाई तुम्हारे जन्मदिन का तोहफा लाया हूं।
एक स्वादिष्ट मछली पकड़ कर तुम्हारे लिए लाया हूं।।
इसे तुम्हें मैं अपनें हाथों से पका कर खिलाऊंगा।
तुम्हारे प्रति अपना प्यार जाहिर कर पाऊंगा।।
तुम केवल इसको बार बार कड़छी से हिलाते रहना।
हम दोनों को तुम ही अपनें हाथों से पेश करना।।
अंधे नें बार बार कढ़ाई में कड़छी चलाई।
कुंबडे की चाल उसे समझ न आई।।

उसकी आंखों से लगातार पानी था बहार आया।
पानी अंधे की आंखों की रौशनी ठीक कर पाया।।
अंधे नें कढ़ाई में सांप के मरे टूकडे देख कर हैरानी जताई।
उसे तब कुबडे की सारी चाल समझ में आई।।
कुबड़ा जैसे ही घर के अन्दर आया।
अपनें क्रोध का बाण उस पर चलाया।।
अंधे नें उस पर डंडे का प्रहार कर उसे मार गिराया।
डंडे के प्रहार से कुबड़ा ऊपर उठ कर अंधे पर जोर जोर से चिल्लाया।।
वह उसको मारनें के लिए नहीं बल्कि उसकी आंखें ठीक करनें के लिए ही सांप था लाया।
अंधा भी मुस्करा कर बोला म़ैंनें भी तुम्हारा कुबड़ ठीक करनें के लिए ही तो डंडा था उठाया।।
मैंने भी तुम्हारा कुबड़ ठीक कर डाला।
कुबड़ा बोला मैंने भी तो तुम्हारी आंखों में अंधेरे से उजाला कर डाला।।
कुबड़ा भी सीधा चल कर खुश हो कर बोला।
आओ भाई एक दुसरे के गले लग जाएं।।
अंधा बोला हां एक दूसरे से वैर भाव मिटा कर इस कहानी से कुछ सीख लें पांए।
अंधा बोला हम दोनों हैं नहले पर दहला।
आओ एक दूसरे की गलतियों से सीख लें कर मन न करें मैला।।

नई भोर

राधा चौथी कक्षा की छात्रा थी। वह एक छोटे से गांव में एक सरकारी स्कूल में पढ़ती थी। वह बहुत ही होनहार थी। वह पढ़ाई में तो अच्छी थी ही साथ ही साथ वह अपनी मां का घर के कामों मैं भी हाथ बंटाती थी। एक दिन विद्यालय में अध्यापिका शहर के जीवन की जानकारी बच्चों को दे रही थी।
शहर बड़ी और स्थायी मानव बस्ती होती है। शहर होने के बहुत से फायदे पर बहुत से नुकसान भी है। बच्चों शहर में चौड़ी चौड़ी सड़कें होती हैं। बड़ी बड़ी इमारतें और बहुत से उद्योग, बहुत सारे घर, और हां साथ ही साथ बहुत सारा प्रदूषण। चारों तरफ बस,रिक्शा,स्कूटर कार और सैंकड़ों गाड़ियों के चलें से शहर में पौंपौ का शोर और सड़क को पार करना भी मुश्किल हो जाता है। चारों ओर प्रदुषित वातावरण होता है। बच्चे भी वहां सड़क पर खेल-कूद नहीं सकते। तुम यहां जैसे मौज-मस्ती से खेलते हो वहां ऐसा नहीं कर सकते।बच्चों को अन्दर ही कैद हो कर रह जाना पड़ता है। राधा ने अपने सोचा कि यह शहर कैसा होता है?
शाम को घर आकर उसने अपनी मां से पूछा कि मां मां शहर क्या होता है? शहर में कितने लोग रहते हैं? उसकी मां बोली कि बेटा जब तुम शहर जाओगी तब वहीं पर जाकर तुम्हें पता लगेगा।
उसकी मां बोली की अबकी बार जब तुम्हारे मामा जी गांव आएंगे तब तुम्हें छुट्टियों में उनके साथ शहर भेज दूंगी। शहर जाने की बात सुनकर राधा बहुत ही खुश हुई । अपने मामा के आने का इंतजार करने लगी । उसे स्कूल से कब छुट्टियां होंगी और वह शहर जाएगी। राधा को गर्मियों स्कूल में गर्मियों की छुट्टियां होने ही वाली थी इस बार उसने अपने मामा जी के घर शहर जाने का मन बना रखा था उसने अपनी मां से अनुमति भी ले ली थी। राधा की मां ने उसके मामा को‌ गर्मियों की छुट्टियों में राधा को शहर ले जाने के लिए बुला लिया था। आज उसकी छुट्टियां आ गई थी।उसके मामा जी उसे गांव लेने आ गए थे ।वह अपने मामा के साथ शहर जाने के लिए तैयार हो गई। आज उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे।
गाड़ी में बैठ कर उसे बहुत ही अच्छा लगा। सफर बहुत लंबा था अगले दिन सुबह ही शहर पहुंचे। शहर पंहुचने पर शहर में सुंदर-सुंदर जगहों को देखकर हैरान हो गई। कहीं भी जाना हो तो रिक्शा या औटो करो ।इतना बड़ा अड्डा देखकर हैरान रह गई। वह अपने मामा की उंगली पकड़ कर बोली कि मामू मेरी उंगली मत छोड़ना उसने कसकर अपनें मामू का हाथ पकड़ लिया ।उसे शांति तब मिली जब उसके मामा ने ओटो ले कर अपनें घर के पास रुकवाया।आज उसका शहर देखनें का सपना अब सच मुच ही पूरा होनें जा रहा था। दोपहर होते-होते वह अपने मामू के घर पहुंच गई थी ।

उनके दो बच्चे रानी और चिंटटू उनको देखते ही भाग कर मिलने आए? चिंटटू और रानी राधा से दो साल छोटे थे। कि अपनी बड़ी बहन से बहुत प्यार करते थे। यह दोनों राधा को देखकर बहुत ही खुश हुए। वह दोनों बच्चे सीधा बिस्तर से ही उठकर आए थे। बोले मां मां जल्दी से चाय लाओ।। नाश्ता लाओ। दीदी इतने लंबे सफर से थक कर आई है उन्हें बहुत जोर से भूख लगी होगी हमें भी बहुत भूख लगी है।
वह दोनों बिना कुर्ला किए ही चाय पीने लगे।उसकी मां ने नाश्ते में ब्रेड कटलेट बनाया था।। वह बोली मामी जी पहले मैं नहा लूंगी उसके बाद ब्रश करके खाऊंगी ।
वह दोनों तो चाय और कटलेट पर टूट पड़े मानो आज ही उन्हें कटलेट खाने को मिल रहा हो। उसकी मां रानी को बोली बेटा खाने के बाद प्लेट उठाने में मेरी मदद करना। अंदर से ही रानी चिल्लाई, मां अपने आप उठा लो ,और अपने भाई के साथ टीवी देखने लगी। राधा को यह बहुत ही बुरा लग रहा था । जब वह नहा कर निकली तो तरोताजा महसूस कर रही थी। उसने नाश्ता किया और सारे के सारे बर्तन मामी की रसोई में रख दिए वह बोली लाओ मामी मैं साफ कर देती हूं ।उसकी मामी उसे मुस्कुराकर देखने लगी, वह बोली तुम्हारी मां ने तुम तुम्हें संस्कार अच्छे दिए हैं। पर बेटा तुम आज ही इतने लंबे सफर से आई हो थक गई होगी रहने दो मैं कर लूंगी।
दिन में तीनों बच्चों मिलकर खूब मस्ती की। शाम को वह अपने भाई बहनों के साथ खेलने पार्क में गई। वहां उसे खेलने में बहुत मज़ा आया। पार्क में बड़े-बड़े झूले थे। कोई बच्चा अपनी मां के साथ तो कुछ बच्चे 2- 3 बच्चों का ग्रुप बनाकर खेल रहे थे कोई भी मिलकर नहीं खेल रहा था।
अगले दिन‌ दोनों बच्चों का स्कूल था। उसने देखा कि दोनों बच्चे अपनी मां पर चिल्ला रहे थे। रानी बोली मां मां जल्दी आओ मेरी चोटी बना दो। चीन्टू बोला मां मेरा बस्ता पैक कर दो वह उन दोनों का मुंह देखती रह गई । चीनू को उसकी मां पकड़ पकड़ कर खाना खिला रही थी रानी बोली मुझे भी खिलाओ। उसकी मां दोनों को खाना मुंह में डालती जा रही थी उन दोनों को इस तरह देखकर राधा को महसूस हो रहा था कि वह दोनों बच्चे उसकी मामी को कितना परेशान करते है। शाम को जब स्कूल से घर वापस आए तो दोनों ने अपना बस्ता बाहर ऐसे ही कहीं पटक दिया। उनके कमरे की हालत देखने वाली थी । बस्ता कहीं, जूते कहीं ,कपड़े कहीं।
बिना हाथ मुंह धोए ही वह दोनों रसोई घर में घुस गए।
रात में रानी अपनी मां के पास आ कर बोली मां आज शाम खेल खेलते हुए बहुत ही देर हो गई। याद ही नहीं रहा कल मेरा अंग्रेजी का टैस्ट भी है। आप मुझे पाठ याद करवानें में मेरी सहायता करना। उसकी मां बोली कि मैं तुम्हें पाठ याद करवाती जाती हूं। रानी बोली पहले मुझे खाना खिलाओ।उसकी मां उसे खाना भी खिलाती जा रही थी और पाठ याद भी करवाती जा रही थी ।
राधा को अपने मामी की हालत देखकर बहुत ही रोना आ रहा था। उन बच्चों ने तो मामी की नाक में दम कर दिया है । बेचारी किस तरह सहन करती हैं?अगर मैं भी इसी तरह अपनी मां को तंग किया करती तो मेरी मां बेचारी क्या करती।
उसकी मामी जब उसको पढ़ा चुकी तो राधा बोली मामी जी आप उनके पीछे क्यों पड़ती हो ?वह दोनों अगर अपना काम करने की आदत नहीं डालेंगे तो यह बड़ा होने पर भी आपको परेशान करते रहेंगें। मैं तो सब कुछ अपने आप याद कर स्कूल जाती हूं। यदि काम करके न ले जाऊं तो उस दिन मार पड़ जाती है ,लेकिन अब मैं अपने आप सभी काम करती हूं । आप इन की आदत को जल्दी से बदल डालो नहीं तो एक दिन आपको दुःखी होना पड़ेगा। इतनी छोटी सी बच्ची के मुंह से यह बात सुनकर पूनम बहुत ही दुःखी हुई । पूनम सोच रही थी कि वह बच्ची उसे ठीक ही तो कह रही है । उसने अगर आपने बच्चों में खुद छोटे-मोटे काम करने की आदत डाली होती तो आज उसे इस हालत से नहीं गुजरना पड़ता। पुनम ने राधा से कहा कि इस बार छुट्टियों में इन दोनों को तुम्हारे गांव भेज दूंगी शायद वहां पर चलकर तुमसे कुछ सीख लेंगे।
छुट्टी वाले दिन राधा के मामा मामी उसे और उसके छोटे भाई बहनों को घुमाने शहर के बाजार में ले गए। राधा को बहुत अजीब लग रहा था। घूमने के लिए कुछ खास था ही नहीं। हां शॉपिंग करने के लिए बड़ी-बड़ी दुकानें शॉपिंग मॉल्स और रेस्टोरेंट्स थे। बच्चों के लिए खेलने के लिए जगह भी शॉपिंग मॉल्स के अंदर ही थी। कहां बच्चे वीडियो गेम्स और कंप्यूटर गेम्स खेलते थे। शहर का खाना और मिठाइयां काफी स्वादिष्ट थी और साथ ही साथ बहुत महंगी भी थी।राधा ने पहली बार केक खाया था। उसे बहुत ही स्वादिष्ट लगा।घर आ कर पूनम नें कहा तुम तीनों मिल कर कोई गेम खेलों।कल तुम्हारी छुटटी है ।सुबह सुबह जल्दी भी नहीं उठना है। तुम खेलों तब तक मैं पडौस की आंटी के पास किसी काम से जा रही हूं।तीनों बच्चे काफी देर तक इन्ताश्क्षरी खेलनें लगे।थक गए तो वे एक दूसरे को कहानीयां सुनाने लगे।तीनों को बहुत ही अच्छा लग रहा था।राधा बोली यंहा शहर में तो सारा दिन गाड़ियों की आवाजों से शोर होता रहता है।गांव का वातावरण तो बहुत ही शांत और , चौड़ी खुली खुली सड़कें ।जितनी देर तक खेलना हो खुले वातावरण में खेल सकतें हैं।तुम जब कुछ दिनों के लिए गांव आओगे तो तुम्हें भी बहुत ही मजा आएगा।रानी बोली हम दोनों जरुर आएंगे।जंगलों की तो अद्भूत शोभा है।जंगल में बेर,अमरुद,काफल,और। बहुत सारे खानें योग्य पैदार्थ,विभिन्न प्रकार की सामाग्रियां मिल जाती है।खीरे तो इतनें होतें हैंकि तुम खाते खाते थक जाओगी।

कुछ दिन के बाद राधा जब आपने गांव वापिस पहुंची तो वह अपने मां के गले लग कर बोली कि मां मुझे आपकी बहुत याद आई ।परंतु मुझे शहर के बारे में भी बहुत कुछ सीखने को मिला। वहां पर लंबी लंबी चौड़ी सड़के देखकर मैं बहुत ही घबरा गई थी। परंतु धीरे-धीरे मेरे मन से डर दूर हो गया।वहां पर तो खेल भी नहीं सकते । हर जगह मोटर गाड़ियों का शोर गांव जैसा खुला वातावरण वहां पर नहीं मिलता।श्रेया अपनी मां को बोली कि मां मामी की हालत तो बहुत ही खराब हो गई है। उनके बच्चे उन पर बात बात पर चिल्लाते हैं।उनका कहना नहीं मानते । होमवर्क भी याद करना हो तो मामी को कहते हैं कि याद करवाओ। जूते तक अपने आप नहीं पहनते । राधा की मां बोली बेटा जैसा बीज हम बचपन में बो देते हैं वैसे उसमें संस्कार पैदा होते हैं। हम अगर अपने बचपन में ही बच्चों में अच्छे संस्कार नहीं डालेंगे तो वह बड़ा बनकर भी अच्छे संस्कारों वाला बच्चा नहीं बनेगा। यह सब कुछ माता पिता के ऊपर निर्भर करता है। घर के सदस्य यदि बात बात पर लड़ाई झगड़ा करेंगे तो बच्चा भी झगड़ालू बनेगा।जिस घर में शांति का माहौल नहीं होगा उस घर का बच्चा कभी भी उन्नति के पथ पर कभी अग्रसर नहीं होगा।

राधा सर्दी की छुट्टियों में चिंटू और रानी के आने का इंतजार कर रही थी। मामा को पता चला कि राधा को सर्दियों की छुट्टियां पड़ गई हैं।कुछ दिनों के लिए उसके मामा जी अपनें दोनों बच्चों को गांव छोड़ गए थे। गांव में पहुंच कर दोनों बच्चे जोर जोर से चिल्लाने लगे गांव आ गया गांव आ गया। वे दोनों आपस में किसी बात को ले कर झगड़ा करनें लगे थे।राधा नें अपनी मां को उनके बारे में सब कुछ बता दिया था। वह उन्हें प्यार से समझाते हुए बोली बेटा ज़िद नहीं करते। अच्छे बच्चे हमेशा बड़ों का कहना मानते हैं । उनका इस प्रकार प्यार से कहने पर वे दोनों चुपचाप कमरे में चले गए। राधा ने उस समय तो उन दोनों को कुछ नहीं कहा परंतु वह अपने मन में विचार करने लगी कि इन दोनों को कैसे सुधारा जाए?। मैं इन दोनों को सुधार कर ही रहूंगी। राधा को उनका साथ बहुत ही अच्छा लग रहा था क्योंकि वह अकेले ही सारा दिन घर में रहती थी। उसकी मां जब काम पर चली जाती वह उन दोनों के साथ खेलनें में मस्त हो जाती।

एक दिन राधा नें सोचा आज अच्छा मौका है। इन दोनों से ही काम करवाया जाए।उसकी मां ने सुबह ही कह दिया था कि आज उसे घर आने में देर हो जाएगी। तुम अपने आप गर्म करके खाना खा लेना। जब काफी देर तक राधा की मां घर नहीं पहुंची तो बच्चे भूख से चिल्लाने लगे। वह राधा को बोले कि हमें खाना लाओ। राधा बोली की रसोई में अपने आप चूल्हे में गर्म कर लो ।रानी ने आज से पहले कभी भी खाना गर्म नहीं किया था। काफी देर तक वह दोनों भूखे रहे। परंतु जब भूख से रहा नहीं गया तो वह उठ कर रसोई में आई। राधा नें उन्हें कहा कि घर में लकड़ियां नहीं है। बाहर चल कर लकड़ियां ले कर आंतें है। रानी और चीनू बोले लकड़ियां लाना हमारा काम नहीं। राधा बोली हम तीनों मिल कर लकड़ियां इकट्ठी करें तो काम जल्दी हो जाएगा। तुम अगर मेरे साथ चलना चाहते तो तो देरी मत करो। यह कह कर राधा दूसरे कमरे में चले गई। काफी देर तक तो वे को कुछ नहीं बोले जब बड़े जोर की भूख लगी तो बोले हम ठंडा दूध ही पी लेंगें।राधा बोली दूध पीना है तो गाय को दूहना पड़ेगा। चिंटू गुस्से से बोला मुझे यह पता होता कि यहां पर सब कुछ करना पड़ेगा तो मैं कभी गांव नहीं आता। रानी बोली चिंटू चलो गाय को दूहनें की कोशिश करतें हैं। अब यहां आ ही गए हैं तो खाने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा। सबसे पहले रानी कोशिश करती है। रानी कहनें लगी कि गाय तो मुझे रात मार रही है। राधा बोली इस को पहले थोड़ा सा घास खिलाना पड़ता है। उसे प्यार से सहलाना पड़ता है। वह तभी दूध देगी। मां भी ऐसा ही करती है। ठीक उसी प्रकार जैसे तुम थोड़ी देर पहले एक दूसरे से लड़ते हो तुम्हें गुस्सा आता है परन्तु जब गुस्सा छोड़ कर तुम दोनों एक दूसरे को मनाते हो तो मान जाते हो उसी प्रकार यह गाय भी ममता चाहती है।तुम इस के साथ जोर-जबरदस्ती करोगे तो वह तुम्हें अपनें सींगों से मार भी सकती है। राधा ने तभी देखा चिंटू थोड़ी सी घास ले कर गाय के सामने रख गया था। वह गाय को प्यार कर रहा था। गाय भी बड़े चाव से घास खा रही थी।रानी ने थोड़ी सी घास उसके नन्हें से बछड़े को ।डाल दी।
उन तीनों को बड़ा मज़ा आ रहा था।गाय का दूध राधा नें निकाला तो थोड़ा सा दूध गाए नें दे दिया था। वह उन तीनों को काफी नहीं था। राधा बोली कि पास में ही एक खेत है। वहां पर चलतें है।तीनों आईस्ता आईस्ता चलनें लगे।

रास्ते में पगडंडियों से चलते हुए उनके पैर दुःख गए।रास्ते में एक झाड़ी में बहुत सारी रसभरियां देख कर राधा बोली चलो रसभरियां खाते हैं।राधा बोली तुम्हें रसभरियां खानें के लिए अपनें आप कांटों से इन्हें निकालना पड़ेगा।रानी और चिंटूं कांटों भरे रास्ते से चलते हुए रसभरियां खानें लगे ।वे थक भी गए थे। उन को इस प्रकार रसभरियां तोड़ते देख, गांव के बहुत से बच्चे वहां आ गए थे।वे भी रसभरियां खानें लगे।सभी बच्चे खेलते भी जा रहे थे और मौज मस्ती भी कर रहे थे।रानी को भी उनके साथ अच्छा लगा।राधा ने अपनें दोस्तों से उन्हें मिलवाया।

रानी बोली कि चुल्हे में आग जलाना तो मुश्किल काम है। राधा रानी को बोली यह सफेद रंग की लकड़ी जो तुम देख रही हो यह सेल की सूखी लकड़ी होती है।इससे आग आसानी से जल जाती है।और देखो खेतों में गाय के गोबर को हाथ से गोल गोल बना कर और सूखा कर उपले बनाएं जातें हैं। इन के धूएं से मक्खी मच्छर भाग जातें हैं।इन को सुलगा कर आग जल जाती है।। उन दोनों को बहुत सारे बच्चों के साथ मिल कर अच्छा लगा वे खेलते खेलते काम भी करते जा रहे थे। सब बच्चों नें‌ रानी और चिन्टू को बताया कि वे सभी अपना काम स्वयं करतें हैं।किसी पर निर्भर नहीं रहते। रानी सोचनें लगी कि वह भी अपना काम खुद करेगी। वह तो हर बात के लिए अपनें माता पर निर्भर है।
उसनें घर आ कर खाना गर्म करने के लिए आग जलाना चाहा। काफी प्रयास के बाद आग जली तो मगर फिर धुंआ उठनें लगा। उसनें चपाती चूल्हे में डाली ।वह सारी की सारी जल गई अब तो रानी जोर जोर से रोने लगी उसको रोता देखकर राधा उसे बोली तुम भी तो अपनी मम्मी पर जोर जोर से चिल्लाती हो ।बेचारी अपना काम छोड़कर तुम्हारे लिए खाना बनाती है ।कपड़े प्रेस करती है। तुम दोनों को पढ़ाती भी हैं।
आज तुमसे इतनी सी रोटी गरम नहीं हो रही है । रानी भूखी आकर पलंग पर सो गई। उसे राधा पर बहुत ही गुस्सा आ रहा था ।वह अपनी मां को फोन करने के लिए दौड़ी ।राधा ने उसके फोन में बैटरी पहले ही निकाल दी थी। वह अपनी मां को फोन नहीं कर सकी ।चुपचाप कमरे में जब रानी सोने चले गई।
चिंटू और रानी को आज कहीं जा कर अपनी मां की बातें याद आई। सचमुच हमारी मां कितनी अच्छी है? हमारे सब नखरे सहन करती है।हम तो दोनों उन्हें बात बात पर हर मिन्ट बात किसी न किसी चीज की फरमाइश करतें रहें हैं। हमारी मां ममता की सच्ची मूर्त है। घर पहुंच कर हम दोनों अपनी मां से अपने किए पर पश्चाताप करेंगे हम दोनों स्वयं में सुधार कर अपनी मां का जीवन खुशियों से भर देंगें।
थोड़ी देर बाद जब उन्हें तेज भूख लगी तो रानी, राधा के पास आकर बोली आप आग कैसे जलाते हो?राधा बोली
चलो तीनों मिल कर कोशिश करतें हैं। थोड़ी देर में ही चूल्हे में आग जल गई। राधा ने दोनों को चूल्हे में खाना गर्म करना सिखाया। तीनों ने मिलकर गरम गरम खाना खाया।
राधा बोली की बहन मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हें और चिंट्टू को बहुत ही परेशान किया हालांकि में उम्र में तुम से 2 साल बड़ी हूं परंतु, मैंने तुम्हें सुधारने का बीड़ा उठा लिया था । मुझे अपनी मामी का रोता हुआ चेहरा सामने आ गया। मैं तुम्हें सुधार कर ही दम लूंगी ।यह मैंने निश्चय कर लिया था कि मेरे भाई बहन होकर तुम बिगड़ नहीं सकते।
रानी बोली दीदी आप तो हमें सुधारना चाहती थी। हम तो अपने आप पर बहुत ही शर्मिंदा है। हम शहर जाकर अपनी मां को कभी भी तंग नहीं करेंगे। उनके साथ उनका हाथ बंटाया करेंगे और पढ़ाई भी स्वयं ही कर लिया करेंगे ।आज हमें अपनी गलती का एहसास हो गया है ।
राधा बोली की आज मुझे गर्व है कि मैंने अपनें दोनों भाई बहन को सुधार कर एक अच्छा काम किया है।
रानी और चिंटू गांव में दोस्तों संग काफी घुल मिल गए थे। वह जब रानी को अपनी माता के चरण स्पर्श करते देखते तो वह भी अपनें बुआ के चरण स्पर्श करनें लगे। हर छोटे छोटे काम करनें में उन्हें मजा आनें लगा।।
छुट्टियां समाप्त हो गई थी। चिंटू और रानी के पापा उन्हें लेने आ गए थे । उन दोनों का गांव से जानें का मन ही नहीं कर रहा था। चिंन्टू के पापा जैसे ही गांव पहुंचे रानी और चिंटू ने अपने पापा के चरण स्पर्श किए । उनके पापा को अपनें बच्चों में बदलाव नजर आया। यह सब राधा का ही कमाल है। वह बोले श्रेया बेटा तुम धन्य हो जो तुमने मेरे बच्चों को सुधार दिया।जो काम हम इतनें दिनों से नहीं कर तुमनें वह चुटकी में कर डाला। तुम शाबाशी की हकदार हो। शहर पहुंचकर रानी और श्रेया अपनी मां के गले लग कर बोले मां हमने आपको बहुत ही तंग किया।
हम आपको कभी भी तंग नहीं करेंगे ।हम दोनों भाई बहन आपका हमेशा कहना माना करेंगे। और हमेशा आप की मदद किया करेंगे। रानी और चिंट्टू में आए हुए बर्ताव को देखकर पुनम भी दंग रह गई । आज हमारे जीवन में नई सुबह की किरणें उजाला लेकर आई हैं। भगवान उस जैसी बेटी सब को दे। जिसने मेरे बच्चों को सुधार कर हमारा आनें वाला भविष्य उजागर कर दिया।

आज्ञाकारी बालक श्रवण

त्रेता युग में एक वीर बालक ने था जन्म लिया ।

माता पिता ने श्रवण कुमार नाम रखकर उसका लालन पालन किया।

वह बालक अपने माता पिता पर  स्नेह सुधा बरसाता था।।

श्रद्धा भाव अर्पित कर उन पर जान न्योछावर करता था। ‌

श्रवण कुमार ने अपने माता पिता की सेवा को अपना परम सुख जाना। 

पुण्य  रुपी कर्म का सुनहरा अवसर पा कर अपना फ़र्ज़ निभानें का सौभाग्य माना।

अपने माता पिता को तीर्थ करवानें का मन में विचार जगाया।   

उसमें दो टोकरीयों  रखवा कर,उन्हें कांधे पे बिठा तीर्थस्थल का दर्शन करवाया।। 

डंन्डे के सहारे से एक में माता दूसरे में पिता को बिठा कर जगह जगह घुमाया।

सभी  तीर्थ स्थानों पर ले जाकर उनका मनोरथ पूरा कर दिखाया।।

अपनी कर्तव्यनिष्ठा निभाकर अपना अद्भुत परिचय  करवाया।

एक साहसी और  वीर बालक की अद्भुत मिसाल  दे कर सभी को अवगत करवाया।। 

एक दिन वे अपनें माता-पिता सहित भ्रमण करते करते अयोध्या नगरी सरयू नदी के पास आए।

वहां की शीतलता देखकर आराम करने का विचार मन में लाए।।

श्रवण के माता-पिता को प्यास ने सताया ।

उन्होंने अपने बेटे श्रवण से पानी मंगवाया।।

श्रवण पानी लेने एक समीप के सरोवर पर था गया।

पानी में बर्तन डालनें के लिए था थोड़ा  सा झुक गया।।

अयोध्या का राजा दशरथ जानवरों का शिकार करने था जंगल में आया।

सर सर की आवाज नें राजा को चौंकाया ।।

राजा नें कोई जानवर समझकर शब्दभेदी बाण उस पर चला डाला।

तीर  नें श्रवण के सीने को छेद  कर उसे  लहूलुहान कर डाला।।

हाय मां बाबा! कह कर जोर से श्रवण नें आवाज लगाई।। शोर सुन कर राजा नें उस दिशा में दौड़ लगाई।।

उसे तड़फता देख कर राजा की आंखें भर आईं।

हाय!होनी नें यह कैसी लीला रचाई।।

राजा ने पास जाकर श्रवण से क्षमा की गुहार लगाई ।

हाय! यह घिनौना कार्य करनें की भनक क्यों मुझे नहीं थी दी सुनाई?।

मुझे तो बस पक्षियों की आवाज ही थी दी सुनाई ।।

बिना सोचे समझे मैनैं ये क्या कुकृत्य कर डाला? 

तुम जैसे आज्ञाकारी बालक को बेमौत ही मार डाला।।

श्रवण कुमार ने अपने माता-पिता का परिचय राजा से करवाया ।

उनसे विनती मांग अपने माता पिता की सहायता करने के लिए मनवाया।।

श्रवण कुमार तड़फ कर राजा से बोला, अपने अंधे माता पिता का था इकलौता सहारा !

मेरे बिना उनका कैसे चलेगा गुजारा?।

अपने माता-पिता की प्यास बूझानें हेतू पानी लेने  था यहां आया ।

होनी नें यह कैसा अजब गजब खेल ढाया।।

पानी ले जाकर देने के लिए राजा ने जैसे ही हाथ आगे बढ़ाया ।

बुढ़े माता पिता ने स्पर्श न पहचान कर अपना हाथ पिछे हटाया।।

श्रवण के माता पिता अपनें बेटे  के शब्द सुननें को थे आतुर।

वे अपनें बेटे को इतनी देर तक आता न देख प्यास से थे व्याकुल।।

माता पिता ने कहा बेटा तुमने इतनी देर कहां लगाई ?

राजा ने चुप रहने में ही समझी भलाई।

हमारे बेटे ने पानी लाने में इतनी देर कहां लगाई ?

राजा ने शोक भरे शब्दों में सारी कहानी सुनाई।

उनके बेटे की मौत की खबर थी जा कर  सुनाई।।

वे जोर-जोर से विलाप कर राजा पर चिल्लाए। 

अपने दुःखी मुखड़े से थे वे कहराए।।

श्रवण कुमार के माता-पिता ने उसे श्राप दे डाला।

हाय! अभिमानी राजा तूने हमारा घर संसार सब कुछ नष्ट कर डाला।। 

वे बोले हम पानी को हाथ तक नहीं लगाएंगे ।

अपने बेटे के पास ही  प्यासे ही तड़फ तड़फ कर मर जाएंगे।।

तूने  हमें बेटे के लिए तड़फाया।

बेटे के विरह में सैंकडों आसूं रुलाया।।

हमारे श्रापसे तुम भी न बच पाओगे।

हमारे जैसे ही अपने बेटे के वियोग को सहन न कर पाओगे।।

तू भी एक दिन बेटे के वियोग में मारा जाएगा।

यूं ही तड़फ तड़फ कर प्यासे ही मर जाएगा।।

होनी सच ही साबित हुई। 

राजा दशरथ की मृत्यु भी पुत्र वियोग में हुई।।

श्रवण नें आज्ञाकारी बालक का कर्त्तव्य निभाया।

अपनी!शहादत दे कर अपना जीवन कृतार्थ कर दिखलाया।।

जैकी और उसके दोस्त

पूंछ हिलाता जैकी आया ।

आकर अपने दोस्तों को बुलवाया।।

 जैकी बोला चूहे भाई चूहे भाई इधर तो आओ।

 मुझसे हमदर्दी तो जताओ।।

चूहा बोला जैकी भाई जैकी भाई तुमने मुझे यहां क्यों बुलाया?

 क्या तुम्हें किसी ने धमकाया?

 जैकी बोला भाई मेरे सभी दोस्तों को बुलाओ ।

जल्दी से मालिक की सहायता के लिए सभी को ले कर आओ।।

मालिक के घर चोर घुस आए।

आओ इन सभी को मिल कर भगाएं।।

चुहे नें सभी दोस्तों को बुलाया।

बुला कर सभी दोस्तों को समझाया।।

सभी जानवर  एक पेड़ की विशाल शाखा पर थे रहते।

बिल्ली और चूहा भी , समीप  ही पेड़ के नीचे थे रहते।।

,

पेड़ के पास जा कर अपनें मित्र जैकी का हाल सुनाया।

तोता,कौवा कबूतर,मैना,कोयल, बिल्ली,मधुमक्खी,

 तुम सब भी  जल्दी आओ जल्दी आओ।

आनें में न तुम देर लगाओ।।

जल्दी आ कर अपनें मित्र का साहस बढ़ाओ।

सभी के सभी जैकी के मालिक के घर  आए।।

आ कर जोर जोर से चिल्लाए,

कौवा बोला कांव कांव,

तोता बोला राम राम,

कबूतर बोला गुटर- गूं,

कोयल बोली कूहकूह,

बिल्ली बोली म्याऊं म्याऊं 

मधुमक्खी आ कर जोर जोर से जैकी के पास आ कर बोली ।

धावा बोलनें आ गई है हम दोस्तों की टोली।।

सभी जानवर जोर जोर से चिल्लाए।

उन की आवाज़ सुन कर चोर भी थे डगमगाए।।

मालिक तो घोड़े बेच कर था सो रहा।

उस पर चिल्लानें का कुछ भी असर न था हो रहा।।

जैकी नें जोर से चोर को काट खाया। 

उसके काटनें की मार से चोर  जोर जोर से अपने दोस्तों से मदद के लिए चिल्लाया।। 

 बिल्ली मधुमक्खी से 

बोली ,जल्दी से चोर के कान में घुस जाओ।

अपनें डंक के जादू का असर चोर पर दिखलाओ।

मधुमक्खी नें जोर से चोर के कान में काट खाया।

चोर बोला हाय!मैं मरा,मैं मरा कह कर जोर से चिल्लाया।।

उस के शोर की आवाज सुन कर मालिक  नें अपनी पत्नी को जगाया।

चोर को अपनें घर की ओर घुसता देख कर फोन के रिसिवर को उठाया।

चोर चोर चिल्लाया और अपनी पत्नी को सारा किस्सा सुनाया।।

बालकनी में चुपचाप दबे पांव आया।

जोर से डंडा मार कर चोर को भगाया।।

 वंहा अपनें बहादुर जैकी की मंडली को देख कर मन ही मन मुस्कुराया।

तुम्हारी एकता के आगे  मैं भी नतमस्तक हो  कर गुनगुनाया।।

मिल जुल कर रहनें में ही है सभी की भलाई।

आज नेकी की मिसाल कायम करके मुझे सारी बात समझ में आई।।

उन्मुक्त गगन के पंछी

  उन मुक्त गगन के हम पंछी

 नभ में विचरण करने वाले।

हम खग , नभचर , और विहग हैं कहलाते।

दिखनें में हैं हम अति सुन्दर,मनभाते।

,तभी तो अपनी जान हैं गंवाते।।

कभी शिकारी पकड़ कर हमें ले जातें हैं। 

हमें कठपूतली बना कर अपनें इशारों पे नचातें हैं।

पक्षी विक्रेता को बेच कर हमें पिंजरों में कैद करवाते हैं।।

हमारी वेदना  की चित्कार कहां कोई सुनने वाला?

हमारी व्यथा का दुखड़ा कहां कोई सुनने वाला?

वही विक्रेता तो हमारे भाग्य का फैंसला करने वाला होता।

हमें न जाने कैसे कैसे नाच है  नचवाता।

हमें बेच कर ग्राहकों को  अच्छा दाम है कमाता ।।

हमें पिंजरों में कैद करवा के  हमारे सुख चैन खोता है।

हमारे सुखों में आग लगा कर खुद चैन की नींद लेता है।।

 अपनों से बिछुडने का ग़म हमें हर पल सताता है।

अपनों की वेदना का अनुमान कौन लगा सकता है?

परिवार का दर्द हमें तडफाता है। हम उन्मुक्त गगन के पंछी।।

हम अपनी उड़ान भूल चुके।हम अपनी व्यथा भूल चुके। 

हम बंद  पिंजरे के पंछी हो कर अपना घर बार भूल चुके। 

हम बंद पिंजरे को ही अपना परिवार समझ बैठे।।

हम उन्मुक्त गगन के थे पंछी।

हम सुख चैन से थे जीनें वाले पक्षी।।

अपनें उड़ान की क्षमता को हम खो बैठे।

हम खुशी  के वातावरण में विचरना खो बैठै।

गगन में उड़ना हम भूल चुके। 

साथियों के संग चहकना भूल चुके।।

पिंजरे में कैद हो कर ही रह गए। 

हम पिंजरें में रहने को ही विवश हो गए।

हम इस पिंजरे को ही अपना घर समझ बैठे।

घर के परिवार वालों के साथ ही नाता लगा बैठे।

हम उन्मुक्त गगन के थे पंछी।। 

हम स्वच्छ्न्द वातावरण में थे विचरण करने वाले।

हम नभ में थे विचरण करनें वाले।

अपनें अधरों की मुस्कान भूल गए।

हम चहचहाट की सुखद अनूभूति  भूल गए।   

हम अपना घर बार भूल चुके।। 

पिंजरे को ही अपना घर मान चुके।

इससे ही है नाता हमारा ।

अब इसको हम पहचान चुके।।

हम इन के साथ ही जीना सीख चुके।

हम बंद पिंजरों में रह कर दिल लगाना सीख चुके।। 

मधुमक्खी और तितली की दोस्ती

मधुमक्खी और तितली की है यह कहानी।
एक थी सुंदर एक थी स्वाभिमानी।।

एक पेड़ पर मधुमक्खी और तितली साथ साथ थी रहती।
दोनों साथ साथ रहकर सदा थी मुस्कुराती रहती।।
साथ साथ रहने पर भोजन की तलाश में थी जाती ।
शाम को अपने पेड़ पर इकट्ठे थी वापिस आती।।

अपने बच्चों के संग रहकर अपना समय थी बिताती।
एक दूसरे के सुख-दुख में सदा साथ थी निभाती।।

बरसात ने एक बार अपना कहर बरसाया।
सारे नदी नालों में था पानी भर आया।।
तितली को उदास देखकर मधुमक्खी बोली इतने सुहावने मौसम में तुम्हारे मुखड़े पर ये कैसी उदासी छाई?
तुम पर ऐसी कौन सी विपदा आई ?
यूं उदास रहकर किसी भी समस्या का हल नहीं होता।
समस्याओं में भी जो खिल कर मुस्कुराए वही तो मुकद्दर का सिकंदर है होता।।
तितली बोली:— इस मौसम में भोजन सामग्री कहां से जुटाऊंगी?
इस तरह पानी बरसता रहा तो बच्चों को क्या खिलाऊंगी?
इस मौसम में भोजन लेने बाहर जा नहीं सकती ।
बच्चों को भूखा रखकर चैन की नींद सो नहीं सकती।।
सुहावने मौसम से कहीं ज्यादा भूख है प्यारी ।
भोजन न जुटा पाई तो करनी पड़ेगी मौत की तैयारी।।
मधुमक्खी बोली:– तुमने भोजन सामग्री को पहले क्यों नहीं जुटाया?
आलस में अपना समय यूं क्यों गंवाया?
कल पर विचार न करनें वाले यूं ही निराश रहते हैं ।
यूं ही घुट घुट कर निराशा में हमेंशा हताश रहतें हैं।।

पहले से बचत करने वाले जीवन भर मुस्कुराते हैं।
अपनें बच्चों संग खुशी-खुशी खिलखिलातें हैं।।

आज तो मैं तुम्हारी मदद कर पाऊंगी ।
तुम्हें आवश्यक सामग्री दिलवाकर तुम्हारे बच्चों की जान बचाऊंगी।।
आलस करने वाले जीवन भर यूं ही पछताते हैं।
परेशान रह कर अपनें परिवार के लिए भी विपदा लातें हैं।।

कमाई में से कुछ ना कुछ तो बचाना चाहिए।
सही समय पर उसका उपयोग कर जीवन में किसी के आगे यूं हाथ फैलाना नहीं चाहिए।।

गोलू की फरियाद

गोलू मां से बोला मां मां मुझे कुछ ढेर सारे महंगे खिलौनें दिला दो ना।
मेरे मन की ईच्छा को पूर्ण कर मुझे खुशी दिला दो ना।
मां बोली बेटा हर जरूरत की चीज ही तुम्हें दिलवांऊंगी।
अपने घर का बजट देखकर ही तुम्हारा कहना पूरा कर पाऊंगी।
गोलू बोला मां तू है बड़ी ज्ञानी ।
तेरी अब कोई नहीं चलेगी मनमानी ।
ज्ञान की बात मेरे समझ में नहीं आती।
खिलौनौं के सिवा और कोई बात मुझे नहीं भाती।
गोलू मां से बोला मेरे दोस्तों के पास बहुत सारे खिलौने कहां से आते हैं ?
आप मुझे ढेर सारे खिलौने क्यों नहीं दिलवातें हैं? ।
मां गोलू से बोली पहले तुम्हारे पापा से अनुमति ले कर आऊंगी।
मैं तभी तुम्हारी इच्छा पूरी कर पाऊंगी ।।
रानी राघव से बोली तुम मेरी बात आज सुन ही लो।
गोलू की इच्छा पूरी कर ही दो।।
राघव बोला बच्चे को अच्छे और बुरे में फर्क करना सिखाओ ?।
उसकी इस आदत में जल्दी ही बदलाव करवाओ।।
बेटी की पढ़ाई का खर्चा कैसे चल पायेगा?
हमारा तो सारा बजट भी बिगड़ जायेगा।।
हमारे लिए तो बेटा और बेटी दोनों ही समान है।
आवश्यकता से ज्यादा दिलाना करता नुकसान है।।

बच्चे की हर इच्छा पूरी करना नहीं है फर्ज हमारा ।
जरूरत के मुताबिक ही वस्तु को दिलाना है कर्तव्य हमारा।।
दूसरों की वस्तु को देखकर वह भी लालच में आ जाएगा ।
सच्चाई को अनुभव कर ही समझ पाएगा।।
रानी से बोले हमारी कमजोरी को जानकर वह हमारा विरोध कर जाएगा हमारे हालात को समझकर वह अपनें कदम पीछे हटा पाएगा।।

मां गोलू से बोली तुम अपने आप को खास समझना छोड़ ही डालो। सच्चाई से परिचित हो कर ही अपना इरादा बदल डालो।।
मीनु बोली भैया, यह गुल्लक तुम्हें खिलौनें न दिलवा पाई तो यह मेरे किस काम आएगी?
तुम्हारें प्रति बहन का प्यार- कैसे दर्शा पाएगी?
छोटी बहन के इस प्रकार कहने पर गोलू की आंख भर आई।
बहन की पीठ थपथपा कर बोला हां अब कहीं जाकर यह बात मेरी समझ मेंआई।।

आज के बाद कभी भी मैं खिलौनों की जिद नहीं करूंगा ।
आप तीनों सलामत रहे यही दुआ करूंगा।।

फूलों संग खेल

रंग बिरंगे फूलों संग आओ खेलें खेल हम।
उनकी सुहानी खुशबू में खोकर खुशी से झूमें हम।
रंग बिरंगे फूलों संग खेल खेल कर, खुब मौज मनाएं हम।
मिलजुल कर सारे गाएं ..

ओ फूल राजा,ओ फूल राजा
यह तो बताओ कहां छुपे हो तुम? कहां छुपे हो तुम
बाग के कोनो कोनो में झांक कर देखा,कहां हो तुम?
क्या धूप में मौज मस्ती का लुफ्त उठा रहे हो तुम।
या वर्षा में भीग भीग कर वर्षा की बौछारों का आनन्द उठा रहे हो तुम।।
ओ फूल राजा ओ फूल राजा यह तो बताओ कहां छुपे हो तुम?

रंग बिरंगे फूलों संग आओ आंख मिचोली खेले हम।
ताजे फूलों की खुशबू से लुकाछिपी का मज़ा मनाएं हम।
ओ फूल राजा ओ फूल राजा यह तो बताओ कहां छुपे हो तुम?

क्या धरती मां के आंचल में जाकर छुप गए हो तुम?
क्या मां के मधुर वात्सालय का आनन्द उठा कर मां को मना रहे हो तुम?
रंग बिरंगे फूलों संग ,आओ खेले खेल हम।
सुहानी खुशबू में खोकर, उनकी महक में रम जाएं हम।।

ओ फूल राजा, ओ राजा, यह तो बताओ कहां छुपे हो?
तितलियों और भौंरो के संग खेल खेल कर गुंजन का आनंद मना रहे हो?
क्या उन के मधुर स्वर की लय पर थिरक थिरक कर नृत्य दिखा रहे हो?
या ठंडी ठंडी हवा के झोंकों के संग खेल रहे हो तुम।
ओ फूल राजा राजा,ओ फूल राजा यह तो सच सच बताओ,
कहां छुपे हो तुम कहां छुपे हो तुम?

आओ खेल खेल कर फूलों को लुभाएं हम ।
रंग बिरंगे फूलों संग स्वयं भी फूल बनकर एक हो जाएं हम।।
आओ खेल खेलकर फूलों को मनाएं हम।
बिस्किट नमकीन और मिठाइयां देकर उन्हें लुभाएं हम।।
ओ फूल राजा, ओ फूल राजा कहां छुपे हो तुम?
यह तो सच सच बताओ कहां छुपे हो तुम ?

क्या झाड़ियों के पीछे छुप कर हमें ढूंढ रहे हो तुम ?
या हमें चकमा देकर हम से शायद छल कर रहे हो तुम।
ओ फूल राजा ओ फूल राजा सच सच बताओ कहां छुपे हो तुम ?

क्या मां की डांट से रुठ कर भिगी बिल्ली बन एक कोनें में छिपा कर बैठे हो तुम।
ओ फूल राजा,ओ फूल राजा जल्दी से दौड़ कर आओ तुम।
मौज मस्ती मना कर हमारे संग खेल में भी शामिल हो जाओ तुम।।
ओ फूल,ओ फूल राजा हमारे साथ धूमचौकडी भी मनाओ तुम
चारों ओर खेल खेल कर खुशी का जश्नमना कर दिखलाओ तुम।।
ओ फूल राजा ओ फूल राजा ये बताओ कहां जा छिपे हो तुम ?