भूल का परिणाम

खेतों की मेड़ पर और नदी के किनारे था हर रोज उसका आना-जाना।
गांव की गली गली के कूचे ही थे उसका आशियाना।।
आज सुबह सुबह ही तो वह नदी के किनारे था आया।
सुनहरी धूप और पानी की कल कल का उसने भरपूर आनन्द उठाया।।
अपनी पूंछ को हिला हिला कर खुशी से था भर्माया।
पक्षियों के अन्डों को खानें की थी उसे बड़ी ललक।
पतों की सरसराहट से उसे उनकी लग जाती थी भनक।।
टप्पू था अपनी धुन का पक्का।
जरा सी आहट पा कर वह वहीं पर था जा धमका।।
ललचाई नज़रों से ईधर उधर देखा करता था।
कब शिकार हाथ लगे हर दम अवसर तलाशता रहता था।
उसका लालच दिन प्रतिदिन बढ़ता ही था जा रहा।
अपनें साथियों को भी नजरअंदाज था वह कर रहा।

अंडों को खानें के लिए हो जाता था आतुर।
उनको पानें के लिए बन जाया करता था शातिर।।
रेत में एक छोटे से घोंघे को देख कर उस पर नज़र फिराई।।
खुशी के मारे उसकी आंखें चौंधियांइ।
झटपट चाट चाट कर खा के अपनी जिह्वा मटकाई।

सुस्ताने के लिए पेड़ के नीचे था आया।
अचानक पेट की दर्द से वह चिल्लाया।
सीप के टुकड़ों नें अपना कमाल दिखाया।
उसकी आंतों में फंस कर उसे रुलाया।।
दर्द और वेदना से टप्पू करहाने लगा।
एंठन और जकड़न से छटपटाने लगा।।

रो कर मन ही मन बुदबुदाया।
अपनी जल्दबाजी पर पछताया।।

मुझ से कंहा हो गई बड़ी भारी भूल।
बिना सोचे समझे काम करने की आदत बन गई शूल।
आज मैंने यह अन्तर जाना।
कोई भी गोल वस्तु अंडा नहीं होती यह पहचाना।।
बिना बिचारे जो काज करे वह पाछे पछताय।
भूल संवार कर जो सीखे वहीं मुकद्दर का सिकंदर कहलाए।।


मौसम

मां बोली तुम्हें आज मौसम के बारे में बतलाती हूं।

तुम्हारा ज्ञान बढ़ाकर मनोरंजन करवाती हूं ।।

एक  वर्ष में मौसम है चार।

आओ इन के बारे में चिन्तन मनन कर के करें विचार।।

गर्मी सर्दी पतझड़ और बरसात।

इनके सामने इन्सान कि क्या है बिसात।।

 यह मौसम बारी-बारी से हैं आते। 

फरवरी मार्च-अप्रैल और मई वातावरण में गरम हवा हैं लाते।।

दिन के समय शुष्क और गर्म लू है चलाते।

 इन्द्र के कोप से हमें है झुलसाते।

ग्रीष्म ऋतु के महीनें ये हैं कहलाते।

प्यास से हमें कुम्हलाते, और सताते।।

 वातावरण में  कीडे मकौड़े, और फंगस के कारण मक्खी , मच्छर, पैदा  कर मलेरिया,हैजा,ढिगू, चिकनगुनिया है फैलाते।।

भीष्म गर्मी से हर तरफ त्राहीमाम है मचाते।

भारत में सौर किरणें समानांतर है होती ।

हमें गर्मी के भयंकर प्रकोप से है डराती ।

ज्यादा मात्रा में पानी को पीएंगे।

 शरीर में  विषैले तत्व  नहीं पनप पाएंगे ।

गन्ने का रस और नींबू का रस अधिक मात्रा में पिएंगे । 

सेहत में सुधार पा कर खुशी से मुस्कुराएंगे।

घर से बाहर जाते समय लस्सी छाछ को पी कर जाएंगे ।

सारा दिन चुस्ती और मस्ती से हर काम पूर्ण कर पाएंगे।।

 आम कटहल तरबूज आदि फलों को खाएंगे तो सारे दिन तरोताजा हो जाएंगे।।

 जून जुलाई-अगस्त सितंबर यह बारिश के महीने है कहलाते ।

वर्षा ऋतु के नाम से है  पहचानें जाते ।

दक्षिणी गोलार्ध में भारत की ओर हवाएं तुफान हैं मचाती ।

यह दक्षिणी पश्चिमी हवाएं है कहलाती ।

मानसून का मौसम भी है कहलाती।।

 अक्टूबर,नंवबर ,दिसंबर जनवरी सर्दियों का मौसम है कहलाते।

शीत लहर ठंडी और खुश्की ला कर हमें है डराते।।

हमारी त्वचा को नुक्सान है पहुंचाते।।

शरीर को गर्मी और ऊर्जा देने  वाले  पैदार्थ हमारे शरीर को ऊर्जा  हैं देतें । 

निश्चित मात्रा में सेवन करनें से हमें रोग से हैं बचाते।।

तिल, गुड़,मूंगफली,

बाजरे कि रोटी और साग।

उन सभी पैदार्थो को खा कर मनुष्य का दिल हो जाता है बाग बाग।

 इस मौसम में स्वास्थ्य सम्बन्धी बिमारियों का है बोलबाला।

कोताही न बरतने पर यह तो दिखाता है अपना जलवा।।

आहार में शहद  आंवला और बाजरा सेहत के हैं आधार।

प्रतिरोधक क्षमता के हैं मजबूत भंडार।।

थाली में खाना जूठा मत छोड़ो

थाली में खाना जूठा मत छोड़ो।

आवश्यकता से अधिक खानें कि आदत से पीछा छोड़ो।।

अन्न में होता है अन्न पूर्णा का निवास।

जूठन बचाना होता है बर्बादी का वास।

अन्न पूर्णा का मत करो अपमान।

नहीं तो कोई भी तुम्हारा जग में कभी नहीं करेगा सम्मान।।

अपनें छोटे भाई बहनों को भी यह बात समझाओ।

भूख से कम खानें की आदत को अपनाओ।।

अपनें भोजन का कुछ भाग जरूरत मंद को दे डालो।

अपनें मुकद्दर को नेक काम करके बदल डालो।।

थोड़ा थोड़ा करके अन्न कि बचत कर  अपने जीवन को सुखमय बनाओ।

हफ्ते में एक दिन झुग्गी झोपड़ियों का चक्कर लगाओ।।

अपनें हाथ से दान कर  अपनें जीवन को जगमगाओ।

दूसरे की पीड़ा को समझ कर उन के दुःख में काम आओ।

उनकी मदद के लिए सबसे पहले आगे आओ।।

अपनें साथियों को भी इस नेक काम में शामिल करके दिखाओ।

अपनें  परिवार और उनके जीवन में भी खुशहाली बिखराओ।

हर वस्तु की बचत करना जब तुम सीख जाओगे।

कामयाबी के शिखर तक तब तुम पहुंच जाओगे।।

पानी,बिजली,सफाई और बचत को अपनी आदत में शामिल कर डालो।

इस नेक काम को करनें कि पहल अपने मोहल्ले से कर डालो।।

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नन्हीं चिड़िया की पुकार

नन्ही चिड़िया मां से बोली।
मैं हूं तेरी प्यारी भोली।।
जल्दी से दाना देखकर मेरी भूख मिटाओ न।
कहानी सुनाकर मेरा दिल बहलाओ न।।
मां बोली ना कर शैतानी।
हर दम करती रहती मनमानी।।
नन्ही चिड़िया बोली अभी खेलने जाना है।
नन्ही चिड़ियों संग खेल खूब धमाल मचाना है।।
मां चिड़िया बोली तेरी एक नहीं चलेगी।
तू भी आज मेरे संग दाना चुगने चलेगी।।
भोली बोली मैं एक शर्त पर तेरे संग चलूंगी।
बाग में रंग बिरंगी तितलियों संग आंख मिचोली खेलूंगी।।
फूलों संग भी खेल खेल कर मन बहलाऊंगी। उनकी महक अपने मन मे जगाऊंगी।
मां बोली बेटा तुम्हारे अध्यापक अध्यापिकांए आज घर आएंगे।
तुझे खेलते देखकर मुझे समझाएंगें।।
भोली बोली मां मैं आज पढाई नहीं करुंगी।
आज तो मैं ढेर सारी मस्ती करुंगी।।
भोली बोली आज अध्यापिकांओं को बुलाओ न।
उनसे कह कर बस्ते का बोझ कुछ कम करवाओ न।।
मां बोली बेटा आज से तू पढाई लिखाई में मन लगाएगी।
तभी तेरी सारी इच्छाएं मां पूरी कर पाएगी।।
भोली खुश होकर बोली मां जल्दी से मुझे पढ़ाई करवाओ ना।
पढ़ाई करा कर मुझे और डराओ न।।
मां चिड़िया बोली शिक्षा रहित जीवन निर्थक।
शिक्षा सहित जीवन सार्थक।।
मां बोली शिक्षा बहुत जरुरी है।

  • शिक्षा बिना जीवन अधूरा तुम्हे समझाना जरूरी है।।

चंदा मामा भाग-२



प्यारे प्यारे चंदा मामा।
न्यारे न्यारे चंदा मामा।
तुम हो सब के राजदुलारे मामा।

मां कहती हैं तुम अपनी किरणों की प्रखरता से सारे जग को चमकाते हो।
किरणों की चकाचौंध से सभी के मनों को लुभाते हो।।
कभी गोल-मटोल बन कर दिखाते हो।
कभी तिरछी कलाओं का जाल दिखाते हो।
कभी आधी, कभी पुरी आकृति बनाते हो।

आमावस की रात को तुम कहां छिप जाते हो?
अंधियारे बादलों के संग न जानें कहां दौड़ लगाते हो।।
अपना राज़ मुझे से छिपाओ न।
बच्चा समझ कर मुझ पर रोब चलाओ न।।
मुझे बहुत अधिक चिढाओ न।
अपना अंदाज मुझे भी सीखाओ न।।
मेरे गोल मटोल चंदा मामा।
आप तो खुबसुरती का हो अनमोल खजाना।।
प्यारे प्यारे चंदा मामा।
सब के मनभावन मामा।।
एक बात आज तक मेरे समझ में नहीं आई।
घटनें और बढनें की कला तुम नें कहां से पाई?
क्या तुम सचमुच में कोई जादुगर हो?
क्या तुम सपनों के सौदागर हो?
चुपके से मुझे बता दो न।
अपनी कला का बडपन्न मुझे भी सीखा दो न।।
मैं भी छोटा और बड़ा हो कर सभी को हर्षाऊंगा।
आपकी तरह का मुखौटा पहन कर सभी को ललचाऊंगा।
सर्कस के जोकर की तरह बन कर सभी को हंसाऊंगा।।




“हे नारी!तुझे शत शत नमन”

सुसभ्य संस्कृति कि नव चेतना का आधार जननी

कर्मधात्री, पवित्रता स्वरुपिणी,

वात्सलयमयी,ममता का आधार जननी।।

सर्वस्व न्योछावर करने वाली,

तन मन धन समर्पित करनें वाली।।

अपनें हुनर से घर को साज संवारने में निपुणता लानें वाली।

अपनी सूझबूझ के दम पर परिवार पर जान छिड़कनें वाली ।।

त्याग,तप और सौम्यता कि मूर्ति बन

अपनें परिवार में एकता बनाए रखनें में सक्षम।

कड़ी को जोडनें में विश्वास रखनें वाली।

दया ममता और जान लुटाने वाली।।

बड़े बूढों और बूजूर्गो का सम्मान करनें वाली।

बच्चों पर स्नेह ममता और प्यार लुटाने वाली।

कमजोर को बल प्रदान करनें वाली ,

हर क्षेत्र में रानी झांसी कि तरह शक्तिशाली।।

  करुणा स्वरुप जननी को शत शत नमन।

दाम्पत्य जीवन में मधुरता का रस घोल ,

रिश्तों को और भी मधुर बनाने कि सामर्थ्य जुटानें में सक्षम

हे !नारी तुझे शत शत नमन।

मेरे देश की माटी

इस देश की माटी है चन्दन,
हम नित्य इसको करतें हैं वन्दन।।
ग्राम ग्राम तपोवन का है धाम ।
सत्य,शाश्वत,परमात्मा का है स्थान।।

हर बाला में है सीता।
हर बालक में है राम।।

अरूणोदय की वेला में सुरज सबसे पहले आए।
मधुर स्वरों में पक्षी गूंजन कर चहचहाए।
कृषकों कि आवाजाही से खेतों में,
हरी भरी फसलें लहराए।।

घर घर मन्दिर हैं,मन में बसतें हैं श्री राम।
हम उनको कहतें हैं पतित पावन सीताराम।।

प्रकृति की छटा निराली,जैसे सूर्योदय की लाली।।
नदियां प्रेम का संचार है करती,कल-कल का राग सुनाती।
हर आनें जानें वालों को कुछ न कुछ सीख है दिलाती।।

कर्म ही मानव की पूजा ,इसके सिवा न कोई दूजा।
मेहनत है सब को प्यारी,
इससे घर कि महकती है फुलवारी।।
ज्ञान की निर्मल धारा है सुहाती।
हर एक व्यक्ति के जीवन को महकाती।।

बांके छैल छबीले नर-नारी।
भोली भाली सूरत प्यारी।।
हर मानव दयालु और परोपकारी।
संस्कारी,विनम्र और प्रतिभाशाली।।
अदम्य साहस और वीरता की मूर्ति।
नेकी और ईमानदारी की प्रति मूर्ति।।

आलस्य का नहीं है कोई नामोनिशान।
सुबह शाम करतें हैं,सभी प्रभु का गुण गान।।
जीवन के सच्चे आदर्श हैं यहां पर
और यहीं हैं चारों धाम।
हर बाला में है सीता,हर बालक में है राम।
युगों-युगों तक मानव के मन मन्दिर में बसतें हैं श्री सीया राम ।।

हर नारी पवित्रता की सूचक।
मां शारदा,सीता,सरस्वती जैसी पवित्रता की मूर्त।।
कोमल और मृदुल स्वभाव से करती हैं मां का गुणगान।
सुबह सुबह नित्य कर्म निपटा करती हैं मां का ध्यान।।

गौ को समझतें हैं ममता की मूरत।
उसमें दिखती है मां की सूरत।।
बच्चे गाय को चारा खिलानें दौड़े दौड़े हैं जातें।
उनको खिला कर मंद मंद है मुस्कुराते।।
पते पते बूटे बूटे पर श्री राम का है नाम।
हर ग्राम तपोवन का है परम धाम ।।
हर बाला में है सीता, हर बालक में है राम।
युगों युगों तक हर मानव मन में बसतें हैं सीताराम।।

ढोलक मृदंग की थाप पर थिरक थिरक कर, ठूमका हैं लगाती।।
गोपियों कि तरह प्यारे राम और कृष्ण को हैं लुभाती ।
सीता राम की छवि मन में बसा उनको माखन का भोग हैं लगाती ।।
सैनिक देश के लिए कुर्बान हैं हो जाते।।

अपनें प्राणों को न्योछावर करनें से भी नहीं घबराते।।
जीवन के उच्च आदर्श यहीं पर
और यहीं हैं चारों धाम।
परम पिता परमेश्वर का है धाम।
परम पिता परमेश्वर का है धाम।।

सुबह सवेरे मानव है रटता ,
पतित पावन राम का नाम।
जनक जननी सीता माता का नाम।
जनक जननी सीता माता का नाम।।
इस देश की माटी है चन्दन।
हम नित्य करते हैं इसको वन्दन।।

आज़ादी का जय घोष

आओ आज़ादी दिवस का जयघोष मिल कर मनाएं ।

अपनी अपनी दुनिया में न खो कर ,सब एक रस हो  जाएं।

छोटे और बड़े का भेदभाव भूल कर खुशी से जगमगाएं।।

तेरे मेरे कि सोच बाहर फैंक आपस में मैत्री पूर्ण भाव  अपनाएं।।

भाई बहन,साथी,दोस्त,युवा और वृद्ध जन।

कोरोना जैसी बिमारी से छुटकारा पानें का करें प्रयत्न।।

नकाब  में रह कर भी आज़ादी का देखें स्वप्न।

इस बिमारी से मुक्त हो कर हम सभी आज़ाद हो कर मुस्कुराएंगे।

अपनों को खोने के एहसास को न कभी भूल पाएंगे।

आनें वाले कल कि सुन्दर तस्वीर होगी।

कोरोना के भय से मुक्ति पा कर  सभी के चेहरों पर खुशी होगी।

मस्ती में ढोल नगाड़े बजा कर आज़ादी का गीत गुनगुनाएं।

कोरोना जैसी बिमारी से निजात पानें का एहसास सभी में जगाएं।

अस्पतालों में कोरोना से जूझ रहे व्यक्तियों का मनोबल बढ़ाएं।

उन की सहायता कर उन का मनोरंजन कर उन के बुझे चेहरों पर रौनक जगाएं।

सेवाएं दे रहे डाक्टर  और सारे कार्य कर्ताओं के प्रति सम्मान का हाथ बढ़ाएं।

उन को सम्मानित कर कोराना से आज़ादी  पानें का जश्न मनाएं।।

अंहकार को छोड़,हंसी किलकारी का मौहोल बनाएं

 उल्लास पूर्ण वातावरण के भाव जगा कर बेहद सकून से

अव्यवस्थित जीवन शैली से बाहर निकल,कोरोना के डर को दूर भगाएं।।

नई उम्मीदों का दीया जला कर,बुद्धि,चेतना, को जगाए।

संकुचित विचारों को छोड़ छाड़ कर सकारात्मक सोच अपनाएं।

आओ संसार को एकता के बंधन में जोड़ों।

सब जग के लोगों को साथ में जोड़ो। 

आपस में बैर भाव रख कर  मुंह न  मोड़ों।।

नई दिशा कि ओर अग्रसर हो कर अपनें देश का गौरव बढ़ा कर नाता जोड़ों।।

 सरदार भक्तसिंह, राजगुरु,सुखदेव, चन्द्र शेखर नेताओं कि शहादत को भुलाया नहीं जा सकता।

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस  कि आज़ाद हिन्द फोज कि सेना और उनके संघर्षों का परिणाम आजादी,

ऐसी महान हस्तियों कि याद को मिटाया नहीं जा  सकता।

आओ इस पावन दिवस पर सब सौहार्द्रपूर्ण मित्रता का हाथ बढ़ा,

इस दिन को और भी खूबसूरत बनाएं।

तिरंगे के जश्न में अपने शहीद भाईयों को नमन कर,

उनका मनोबल बढ़ाएं।।

सबका साथ,सबका विश्वास।

हो सब का भरपूर विकास।।

कर्त्तव्य पालन और परमार्थ  कि आक्षांओं को,

जागृत करने का स्वप्न हो हमारा।।

देश कि सुरक्षा और उत्कर्ष में प्रयत्न शील रहे युवा जन हमारा।।  

राष्ट्र कि नींव  तभी मजबूत बन पाएगी।।

हमारे दिलों में जब  समर्पण कि भावना, 

आत्मबलिदान कि प्रेरणा जग जाएगी।

निर्भय बन कर गुलामी, अत्याचार,

और शोषण के विरुद्ध आवाज उठा पाएगी।।

जन जन फूले फले,हो सब में आत्म विश्वास का भाव।

हो न कभी किसी को  रोटी, कपड़े और मकान का अभाव।

समृद्धि सम्पन्न ,धन धान्य से फले-फूले।

देश विकास कर खुशी से  झूमें,झूले।।

पर हित के यन्त्र को कभी न भूलें।

एकता कि मिसाल कायम कर,

बुलन्दी के शिखर को छू ले।

तिरंगे के जश्न में अपनत्व के एहसास को संजो लें।।

जय हिन्द के नारों से झूमे यह धरती माता।

हम सब को आशीर्वाद का उपहार दे यह विश्वविधाता।

नतमस्तक हो कर गाएं विश्व विजयी तिरंगा प्यारा।।

झंडा ऊंचा रहे हमारा।

झंडा ऊंचा। रहे हमारा।।

ल‌क्ष्मी बाई की वीर गाथा

स्वतंत्रता कि बलिवेदी पर मिटनें वाली वह तो झांसी वाली रानी थी।
मणिकर्णिका के नाम से विख्यात , बचपन कि पहचान पुरानी थी।।
प्यार से बाबा मनु कह कर उसे बुलाते थे।
बाजीराव उसे छबीली कह कर चिढ़ाते थे।।
विठूर में मल्लविद्या, घूडसवारी, और शास्त्र विद्याओं को सीख अपनी एक पहचान बनाई।
तीर,बर्छी,ढाल कृपाण , तलवार चला कर अपनें हुनर कि कौशलता सभी को दिखलाई।।

पिता मोरोपंत के घर काशी में जन्मी,
माता भागिरथी कि संतान निराली थी।।
वह तो सर्वगुणसंपन्न,विलक्षण बुद्धि,और प्रतिभाशाली थी।।

छोटी सी उम्र में व्याह कर झांसी में दुल्हन बन कर आई।
गंगाधर राव से विवाह कर झांसी कि रानी लक्ष्मीबाई कहलाई।।

विवाह के बाद ही एक प्यारे से बेटे को जन्म देनें का सौभाग्य पाया।
नियती के कालचक्र नें उस के बेटे को छीन उस के भाग्य को पलटाया।।
रानी बेटे के वियोग से छुट भी न थी पाई ।
अंग्रेजों ने झांसी को हथियानें कि साजिश रचाई।।
झांसी के लोगों ने उसे दतक पुत्र गोद लेने कि बात सुझाई।
दतक पुत्र को गोद लेकर रानी के चेहरे पर थोड़ी सी रौनक आई।।

नियती को कुछ और ही था मंजूर।
उसके पति को भी छीन रानी से किया दूर।।
पति का निधन हो जानें पर रानी टूट कर बिखर गई।
रानी कि कमजोरी को अंग्रेजी सेना भांप गई।।

दतक पुत्र को गोद लेना लार्ड डलहौजी नें नहीं स्वीकारा।
रानी को संग्राम भूमी में युद्ध के लिए ललकारा।।

झांसी को किसी भी किस्मत पर अंग्रेजों को नही सौपूंगी।
मर जाऊंगी या मिट जाऊंगी लेकिन युद्ध किए बिना नहीं छोडूंगी।

युद्ध का शंखनाद कर रानी ने उन्हें रणभेरी में ललकारा।
दतक पुत्र को पीठ पिछे बांध कर फिरंगियों को दुत्कारा।।
अंग्रेजो के साथ युद्ध के करने का साहस मन में जगाया।।
सेना पति हयूरोज नें अंग्रेजों के साथ मिल कर रानी के साहस को छिन्न-भिन्न कर डाला।
दक्षिणी द्वार को खुलवा कर उस के मनसुबे पर पानी फिरा डाला।।
ग्वालियर कि इस वीरांगना के संग्राम कि अद्भुत कहानी थी।
खूब लडी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।
अपने घोड़े को साथ लेकर संग्राम भूमि में आई।
गौस खां और खुदाबख्श को साथ लेकर एक सैनिक टुकड़ी बनाई।।
अपने घोड़े को ले कर युद्ध भूमि में दौड़ी आई।
शत्रुओं को युद्ध भूमि मे ललकारनें आई।।
रण भूमि में ज्वाला,चन्डी,मां दुर्गा बन आई।
अकेली ही शत्रु पर भारी पड़ कर जोर की हूंकार लगाई।।

नदी,नालों, गहरी खाई को भी पार कर अपनी अद्भुत क्षमता दिखाई।।
एक जगह नदी नाले को पार करता हुआ रानी का घोड़ा घायल हुआ।
रानी का शरीर भी लहू से लथपथ हो कर झाड़ियों के पीछे था जा टकराया।।
रानी नें भी पीठ न दिखानें का संकल्प अपने मन में दोहराया।
मर जाऊंगी मिट जाऊंगी कभी शत्रु ओं के हाथ नहीं आऊंगी।
अपनें लहू का कतरा कतरा देकर अपनी झांसी को बचाऊंगी।।

आखिर कार ग्वालियर के पास एक कुटिया तक थी ही पहुंच पाई।
अपनें विश्वसनीय सैनिकों को उसनेंअपनें प्रण कि दी दुहाई।।

कुटिया में पहुंच कर अपने प्राणों का बलिदान दे जरा भी न घबराई।
ईंट का जबाव पत्थर से दे कर जरा भी विचलित न हो पाई।
उन के सैनिकों ने कुटिया को जला कर रानी का दाह संस्कार किया।
उसकी अटल प्रतिज्ञा का मान रख कर उस के शरीर को अग्नि के हवाले किया।।
उसकी लाश अंग्रेजों के हाथ भी न आ पाई थी।
वह अपनी मर्यादा कि लाज रख कर सचमुच जीत पाई थी।।
उसकी गौरवगाथा ग्वालियर आज भी हमें रानी लक्ष्मी का स्मरण करवाती है।
स्मारक स्थल की पहचान बन उसकी वीरता कि सच्ची झलक हमें दिखलाती है।।

खेलखिलाड़ी खेल

खेल खिलाड़ी , खेलखिलाड़ी  खेल खिलाड़ी खेल।

मुस्कुराहट के भाव लाकर ,

बिना संकोच, सहयोग और तालमेल से ,

मित्रताऔर भाईचारे का समावेश बना, 

बिना हिचकिचाहट,बिना घबराहट के

सावधानी और धैर्यपूर्वक खेलों में डट  कर 

खेलो खेल।।

एक दूसरे का हाथ थाम कर , 

मन में नमी उमंग जगा कर

सभी को साथ ले कर खेलो खेल।।

खेल खिलाड़ी, खेल खिलाड़ी, खेल खिलाड़ी,

शतरंज, कैरम,वॉलीबॉल,

रग्बी, बैडमिंटन, खो-खो

तैराकी, क्रिकेट, फुटबाल 

हर क्षेत्र में अपनी धाक जमा कर खेलो खेल।।

प्रतिस्पर्धा के क्षेत्र में  

सबसे आगे बढ़  कर मुस्कुराहट से खेलो खेल।

विजय श्री को गले लगा कर खुशी से  आगे बढ़ कर खेलों खेल।

विजय पराजय  का हाथ थाम कर ,हृदय को मजबूत बना,

लज्जा भय और ग्लानि को त्याग कर,सावधानी से खेल- खेल कर जोश जगा कर खेलो खेल।

एकाग्रता और आश्रत्मविश्वास का जज्बा चेहरे पर झलका 

हिम्मत जुटा कर खेलो खेल।

पराजय को भी स्वीकार कर,हंसी का समावेश बना कर खेलों खेल।

निर्णय लेनें कि क्षमता का एहसास  खुद में जगा कर खेलो खेल।

खेल खिलाड़ी ,खेल खिलाड़ी,खेल खिलाड़ी खेलो खेल। 

खिलाड़ियों के प्रशंसक बन कर उनका मनोबल बढ़ा खेलो खेल।

हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा दिखानें का अवसर पा कर खेलो खेल।

राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर  अपनें देश का गौरव बढ़ा कर खेलो खेल।

सुमन रावत पीटी ऊषा, सचिन तेंदुलकर , 

विश्वनाथन आंनद जैसा  खिलाड़ी बन कर

लग्न,दृढ़संकल्प,और प्रेरणा शक्ति का हौंसला सभी में जगा खेलो खेल।

खिलाड़ियों की श्रेणी में सब से आगे आनें का साहस जुटा कर खेलो खेल।

आपसी में ममता और अपनत्व से,एक दुसरे को गले लगा कर खेलों खेल।

एक दूसरे के रितीरिवाजों को अपनानें का तौर तरीका सीख  खेलों खेल।

शरीर को स्वस्थ,चुस्त और बलशाली बना कर अच्छे खिलाड़ी बन कर अपनें देश का सम्मान बढ़ा कर खेलों खेल।।

काकचेष्टा वकोध्यानं का यन्त्र अपना कर खेलो खेल।

निरन्तर प्रयास और अभ्यास के द्वारा   खेलो खेल।

खेल खिलाड़ी,खेल खिलाड़ी,खेल खिलाड़ी खेलो खेल।।