ईश्वर

एक दिन गोलू अपनी मां की गोद में झूमते हुए बोला मां चलो खेलते हैं ।उसकी मां अपने बच्चे को को प्यार देना चाहती थी क्योंकि वह जानती थी कि मेरा गोलू अपने पापा के प्यार से वंचित रह जाता है ।वह अपने पापा की गोद में बैठना चाहता है । उस बच्चे के पापा के पास इतवार को भी समय नहीं होता था। उनके पास इतना अधिक काम था कि वह अपनें बच्चे को कभी भी पास बैठकर प्यार नहीं कर सकते थे। जब शाम को उसके पापा घर आते तो गोलू सो चुका होता। मासूम सा गोलू अपनी मां से कहता कि मां मेरे पापा के पास मेरे लिए समय नहीं  है। जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तब मैं भी अपने पापा से प्यार नहीं करुंगा ।उसकी मम्मी कहती कि बेटा ऐसी बात नहीं है तुम्हारे पापा तुम्हें भी प्यार करते हैं परंतु छुट्टी वाले दिन भी उन्हें काम पर जाना पड़ता है ।उसकी मां कहती थी बेटा ध्रुव के पिता भी उसे प्यार नहीं करते थे भगवान जी से मांगना पड़ता है उनकी पूजा करनी पड़ती है । उस ने अपनी मम्मी से पूछा यह भगवान जी क्या होता है ।उसकी मम्मी ने कहा भगवान का मतलब हे ईश्वर हमें ईश्वर को मनाना पड़ता है। जो  व्यक्ति ईश्वर की पूजा करता है वह हमेशा अपने मां बाप का प्यार पाता है ।छोटा सा गोलू सोचने लगा कि वह ईश्वर को ढूंढ कर ही रहेगा और उससे पूछ कर ही रहेगा  कि मेरे पापा मुझे क्यों गोद में नहीं बिठाते ।वह मुझे क्यों प्यार नहीं करते क्यों ,उनके पास मेरे लिए समय नहीं है। गोलू  जब भी खेलने जाता तब यही सोचा करता कि भगवान जी, जब मुझे मिलेंगे तब मैं उन की खूब सेवा करुंगा ।मैं उनको खाना खिलाऊंगा, अपनी चॉकलेट भी उन्हें दे दूंगा। उस छोटे सेे बच्चे के दिमाग में ना जाने क्या-क्या बातें थी जिनको वह भगवान जी   से  कुछ कहना चाहता था। उसकी मां ने उसे बताया था कि ईश्वर हमें किसी भी रुप में मिल जाते हैं ।एक दिन उसको कहीं से पता चला कि भगवान मंदिर में मिलते हैं। उसने देखा की मंदिर की सीढ़ियों के पास एक भिखारी बैठा हुआ था ।भिखारी को देखकर गोलू बोला तुम कौन हो और यहां पर सीढ़ियों पर क्यों बैठे हुए हो ?उस भिखारी ने कहा मैं ईश्वर हूं ।गोलू को उसकी मां ने कहा था कि ईश्वर तो किसी भी रुप में आ सकते है,एकदम उनको देखकर गोलू अचरज में आ गया। उसकी मां ने उसे कहा था कि ईश्वर तो किसी भी रुप में आ सकते हैं । गोलू ने कहा अंकल अंकल ,इतने दिनों तक आप कहां थे? मैं आपको ढूंढते-ढूंढते थक गया ।आज मिले हो ,मैं आपको इतनी आसानी से नहीं जाने दूंगा ।यह कहकर गोलू ने अपनी जेब से ₹5 का सिक्का निकाला और कहा यह लो भगवान जी, मेरे पास यही  पांच  रूपये है । मेरी मां ने मुझे यह रुपए चॉकलेट के लिए दिए थे ।

गोलू भिखारी से हर रोज मिलने लगा ।एक दिन उसनें  उस भिखारी को पूछा कि भगवान जी मुझे बताओ आप कहां रहते हो ?एक दिन वह भिखारी सीढ़ियों से नीच गिर गया । उसके काफी चोट लग चुकी थी। उसके सिर से खून बह रहा था । गोलू उसकी चोट  को देखकर जोर जोर से रोने लगा।   आते जाते लोगों ने गोलू से पूछा कि यह व्यक्ति कौन है? तब उसने कहा कि यह ईश्वर अंकल है ।वह अपनें  मां से फोन नम्बर लेकर अपनें पड़ोस के डॉक्टर अंकल के पास   उस भिखारी को लेकर गया और उसकी पट्टी की । गोलू ने अपनी मां से कहा कि आज ईश्वर अंकल मुझे बहुत दिनों बाद मिले है ।चार-पांच दिन तक  अब  मैं उन्हें अपने घर पर ही रखूंगा जब तक की वे पूरी तरह वह ठीक नहीं हो जाते। जब वह भिखारी ठीक हुआ तो उसने पाया कि वह बच्चा अपने पिता के प्यार से वंचित है । गोलू उनके पास आया और कहने लगा , मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूं ।उसने गोलू को   कहा  ,तुम मुझ से   पूछना चाहते हो कि तुम्हारे पापा तुम्हें कितना प्यार करते हैं।  तुम जैसे बेटे को कौन प्यार नहीं करेगा जब भिखारी जाने लगा तो गोलू ने उसको अपनी गुल्लक देते हुए कहा ,ईश्वर अंकल यह तुम रख लो  ,इनसे आप अपनी दवाइयां ले लेना । मेरी मम्मी ने मुझे बताया था कि ईश्वर से प्रार्थना करना उनकी सेवा करना तभी तुम्हें उनसे आशीर्वाद मिलेगा । भिखारी को अपने किए पर पछतावा हो रहा था ।वह एक भीखारी नहीं मगर उसका लूटने का धंधा था ।उस बच्चे की सीख से उसका हृदय पिघल गया ।वह  गोलू को अपने साथ ले जाना चाहता था ।उस छोटे से बच्चे ने तो उसे भगवान का दर्जा दे दिया था। ।उस भिखारी ने सोचा कि आज से मैं कभी कोई लूटपाट का काम नहीं करूंगा। नहीं तो कोई भी ईश्वर पर विश्वास नहीं करेगा ।उसने बच्चे को गले लगाते हुए कहा कि तुम जैसे बच्चे को पाकर कौन धन्य नहीं होगा ।उस भिखारी ने उस बच्चे के पापा से मिलकर उन से फरियाद कि आप अपने काम में इतना व्यस्त हो गए हैं कि आज आपका प्यार पाने के लिए आपका बच्चा ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है   मेरे पापा के पास मुझे प्यार करने के लिए भी समय नहीं है।उसने सारा वृत्तांत गोलूके पापा से कहा । गोलू के पापा ने महसूस किया कि आज तो मैंने   अपने बेटे को खो  ही दिया था। भिखारी ने गोलू के पापा को सारी बात बता दी थी कि आपका बेटा मुझे भगवान मानता है उसने अपनी मां से कहानी सुनी थी।  भगवान से जो कूछ  मांगो भगवान उसे अवश्य देते हैः मैं तो आपके बच्चे को चुराकर ले जाने के लिए आया था इस बच्चे ने तो मेरी सेवा करके मुझे पाप करने से बचा लिया ।  आज के बाद मैं इस बुराई के धंधे को छोड़ दूंगा और भगवान की इस दुनिया में गरीबों की मदद कर अपने जीवन को सार्थक करुंगा।

कौवा लोमड़ी ओर रोटी(कविता)

एक लोमड़ी भूखी प्यासी आई पेड़ के नीचे।

लगी देखने उस पेड़ को आंखें मींचे मींचे।।

पेड़ पर था एक कौवा बैठा।

नटखट चुलबुल  काला कौवा।।

अपनी चोंच में रोटी का टुकड़ा भींचे भींचे।

लगा देखनें लोमड़ी  को कर के नजरे नीचे।।

लोमड़ी सोच रही थी मन में, क्यों न इसे बहलाती हूं।

इस बेसूरे की तारीफें कर के क्यों न इसे फुसलाती हूं।।

बोलूंगी,  कौवे  मामा कौवे मामा।

एक सुरीला गीत सुना दो।

अपने सुरीले गीत से मेरे मन को बहला दो।।

अपनी प्रशंसा सुनकर फुल कर कुप्पा  होगा कौवा।  

जैसे ही मुंह खोलेगा गाने को।

रोटी गिरेगी नीचे, मैं भागूंगी खाने को।

यह सोच कर लोमड़ी बोली

कौवे  मामा कौवे मामा,

एक सुरीला गीत सुना दो।

अपने सुरीले गीत से मेरे मन को बहला दो।।

वह  था एक चतुर कौवा। न आया उसके झांसे  में।

सिर  हिला कर मुस्काया कौवा,

लोमड़ी नें  सोचा, लो मेरी बातों मैं आया कौवा।।

लोमड़ी के मुंह में आया पानी।

सोचा मैं हूं कितनी स्यानी।

कौवा तो था चालाक।

जल्दी से रोटी खाकर आया उसके पास।

कानों में उसके कांय कांय करके बेसुरा गीत सुनाया।

अपनी कर्कश ध्वनि से उसका होश उड़ाया।

हंस कर बोला कौवा, लोमड़ी मौसी, लोमड़ी मौसी, कैसा लगा मेरा मधुर संगीत?

रोकर लोमड़ी बोली, बहुत ही प्यारा गाना था।

कौवा बोला, हां उतना ही स्वादिष्ट मेरा खाना था।।

क लोमड़ी भूखी प्यासी आई पेड़ के नीचे।

लगी देखने उस पेड़ को आंखें मींचे मींचे।।

पेड़ पर था एक कौवा बैठा।

नटखट चुलबुल  काला कौवा।।

अपनी चोंच में रोटी का टुकड़ा भींचे भींचे।

लगा देखनें लोमड़ी  को कर के नजरे नीचे।।

लोमड़ी सोच रही थी मन में, क्यों न इसे बहलाती हूं।

इस बेसूरे की तारीफें कर के क्यों न इसे फुसलाती हूं।।

बोलूंगी,  कौवे  मामा कौवे मामा।

एक सुरीला गीत सुना दो।

अपने सुरीले गीत से मेरे मन को बहला दो।।

अपनी प्रशंसा सुनकर फुल कर कुप्पा  होगा कौवा।  

जैसे ही मुंह खोलेगा गाने को।

रोटी गिरेगी नीचे, मैं भागूंगी खाने को।

यह सोच कर लोमड़ी बोली

कौवे  मामा कौवे मामा,

एक सुरीला गीत सुना दो।

अपने सुरीले गीत से मेरे मन को बहला दो।।

वह  था एक चतुर कौवा। न आया उसके झांसे  में।

सिर  हिला कर मुस्काया कौवा,

लोमड़ी नें  सोचा, लो मेरी बातों मैं आया कौवा।।

लोमड़ी के मुंह में आया पानी।

सोचा मैं हूं कितनी स्यानी।

कौवा तो था चालाक।

जल्दी से रोटी खाकर आया उसके पास।

कानों में उसके कांय कांय करके बेसुरा गीत सुनाया।

अपनी कर्कश ध्वनि से उसका होश उड़ाया।

हंस कर बोला कौवा, लोमड़ी मौसी, लोमड़ी मौसी, कैसा लगा मेरा मधुर संगीत?

रोकर लोमड़ी बोली, बहुत ही प्यारा गाना था।

कौवा बोला, हां उतना ही स्वादिष्ट मेरा खाना था।।

पश्चाताप (कविता)

किसी गांव में एक  बुढिया थी रहती।

अपनें दुःख दर्द गांव वालों से  बयां किया  करती।।

वह अकेले रह कर जीवन यापन किया करती। अपने बेटे बहु की रात दिन राह तका करती।। बुढापे में  सबसे ज्यादा  प्यार की थी जरुरत।

अपनो से मिलने की आस के सहारे की थी हसरत।।

एक दिन उसके बेटे  और बहुको मां की याद हो आई।

अपने मां से मिलनें की तमन्ना उन्हें उनके गांव में  खींच कर ले आई।।

बेटा अपनी मां को  देखनें गांव था आया।

वहां अपनी मां की   ऐसी हालत देख कर  था पछताया।।

एक दिन मां बेटा थे पार्क में चले गए।

वहां पर  बैठ कर इधर उधर विचरनें लगे।।

मां को बुढी होनें के कारण  ऊंचा था सुनाई देता।

बार बार जोर से  बात करनें पर ही सुनाई देता।।

मां चिडि़या को पेड़ पर बैठे देख अपने बेटे से बोली ये क्या है। ये क्या है।

बेटा बोला मां ये चिड़िया है। फिर बोली ये क्या है।।

बेटा बोला मां क्यों मजाक किया करती हो। अपने बेटे से अभी भी छल किया करती हो।। बुढिया फिर बोली बेटा ये पेड़ पर क्या है।

बेटा बोला क्यों तू बहरी हो गई है।

क्या तुझे सुनाई दिखाई नहीं देता।

ऐसी बातें करना तुझे शोभा नहीं देता।

मां बोली अच्छा- बडी सुन्दर चिड़िया।

सुन्दर सुन्दर चिड़िया।।

मां थोड़ी देर बाद फिर बेटे से बोली  बेटा यह पेड़ पर क्या है।

बेटा अपना आपा खो कर बोला।।

मां अपना मुंह सोच समझ कर  खोला करो।

मां चुप रहकर  ही अपना काम किया करो।।

तुझे भूलने की बिमारी है हो गई।

इसी कारण तुम्हारी मति मारी गई।।

मेरा दिमाग है खराब कर दिया।

मेरा भेजा खा कर सिर है घुमा दिया।।

बेटे की बात सुन कर मां का गला था भर आया।

बेटे की बात सुन कर था कलेजा मुंह को आया।।

जब तक  तू छोटा सा बच्चा था।

इसी पार्क में मेरे साथ घुमने आया करता था। यहां टहल टहल कर मुस्कुराया करता था।।

इसी पार्क में  तुम नें मुझ से बीस पच्चीस बार    प्रश्न पूछ कर  ही दम लिया।

हर बार पूछ पूछ कर तुम्हारे तरह तरह के सवालों का था उतर दिया।।

आज तीन बार  प्रश्न पूछने  पर  ही आग बबूला हो गए।

अपनी मां के अटपटे प्रश्नों से झल्ला उठे।।

बेटे को अपनी मां  के ऐसे प्रश्न सुन कर अपने आप से ग्लानि हुई।

अपनी मां की बातों में सच्चाई की अनुभूति हुई।।

वह अपनें मां के चरणों पर गिर कर रो पडा। अपनी मां को गले लगा कर था घर  की ओर चल पड़ा।।

मां आज मैं सत्य से रुबरु हो गया हूं।

अपनी भूल पर पश्चाताप कर रहा हूं।

मैनें आंखों पर फरेबी का चश्मा था चढा लिया।

आज इस अंहकार को सदा के लिए मिटा दिया।

मासूम भाग(2)

समृति को डॉक्टर ने बताया कि वह  बेहोशी में भी   बघिरा बघिरा पुकार रहा था। लगता है बघिरा का इन से कोई खास लगाव  है।  स्मृति के मानस पटल पर सारी घटना चलचित्र की भांति खीची चली बघिरा के कारण ही यह सब कुछ हुआ। बघिरा को  दोषी ठहराते हुए  उसको भला बुरा कहने लगी।

सारी घटना का दोषी  वह  बघिरा है अच्छा हुआ  बघिरा  हमारे घर से सदा के लिए चला  गया। शुक्र है मेरी सहेली का उसनें  मुझे आनें वाले  खतरे से पहले  ही सूचित  कर दिया। उसनें मेरे पति की क्या दुर्दशा  कर दी है?  काफी समय हो चुका है मेरे पति अभी तक  उस सदमें  से  बाहर नहीं आए  हैं। वह बेहोशी  की अवस्था में भी बघिरा बघिरा पुकार रहें हैं। मेरे पति जल्दी से ठीक हो जाए।

बघिरा अपने दोस्त से बिछड़ कर उस स्थान पर आकर हर रोज़ बैठ जाता और टकटकी लगाकर हर आने-जाने वाले पर नजरें गड़ाए रखता। उसे पूरा विश्वास था कि उसका दोस्त उसे लेने जरूर आएगा उस मासूम  के मन में एक बार भी ख्याल नहीं आया कि उसका दोस्त उसे यूं तन्हा छोड़ सकता है। क्या मेरे दोस्त को मेरी याद नहीं आई? वह मायूस होकर हर किसी आने जाने वाले राहगीरों के पीछे भागता। उन सभी के चेहरों में वह अपने दोस्त को ढूंडनें की कोशिश करता रहता था। वह ठंडे स्थान पर रहने वाला प्राणी था। उसे गर्मी की आदत नहीं थी। कड़ी धूप में भोजन की तलाश में इधर उधर भटकता। जूठे खाने के ढेर में से लोगों के बचे हुए जूठे खाने को खाता। किसी ना किसी तरह अपनी जिंदगी गुजार रहा था। उसकी इतनी सुंदर आंखें भोला भाला चेहरा मासूम सा। नीयति ने उसे इतनी दर्दनाक स्थिति में पहुंचा दिया कि वह सारा दिन इधर उधर भटकता। उसे कभी भी इतने ट्रैफिक के बीच में चलने की आदत नहीं थी। जैसे बच्चा अपनी मां बाप की उंगली पकड़कर चलता है वैसे ही वह अपने दोस्त के साथ हर जगह जाता था। एसी वाले कमरे में सोता था। अपने दोस्त के साथ बिस्तर पर उसके बिस्तर पर ही सो जाता। उसका दोस्त  ही उसके लिए पूरी दूनिया था।   इतनी दर्दनाक स्थिति में पहुंच गया था हर आने जाने वाले लोग सब यही कहते इसका मालिक  कितना निर्दयी होगा जिसने इतने प्यारे मासूम से कुत्ते पर जरा भी दया नहीं कि।

लोग अपने शौक के लिए ना जाने क्या-क्या करते हैं। वह कुत्ता खरीदते वक्त  यह भूल जाते हैं कि वह भी तो हमारी तरह एक जीव है। उसे भी तो महसूस होता है। उसे भी तो दर्द होता है। उसमें भी जीवन है।  उसे अपनी शौक और मनोरंजन के लिए उसे पाल तो लेते हैं मगर यह भूल जाते हैं कि   वह कोई खिलौना नहीं है। जीता जागता प्राणी है। उस के लिए उसका मालिक ही उसका परिवार  होता है। हमें उनके साथ अपने  परिवार के सदस्यों जैसा ही व्यवहार करना चाहिए।   उसे मनोरंजन की वस्तु समझ कर  नहीं   पालना  चाहिए। कुत्ते से ज्यादा वफादार कोई  हो  ही नहीं सकता। वह अपनी जान कुर्बान कर सकता है परंतु अपने मालिक पर आंच तक नहीं आने देता।

शेरभ बेचारा तो दुर्घटना का शिकार हो गया था। वह अपने दोस्त को ढूंढने निकला तो अचानक उसकी गाड़ी  एक ट्रक की चपेट से   दुर्घटनाग्रस्त हो गई। वह आज तक  बेहोशी में पड़ा पडा  जिन्दगी और मौत के बीच झूल रहा है। बेहोशी में भी वह  बघिरा   बघिरा   पुकार रहा था।

एक दिन एक नीले रंग की गाड़ी के पीछे बघिरा दौड़ा। गाड़ी के पीछे भागते भागते वह हांप चुका था। वह उस गाड़ी के पीछे इसलिए भागा था क्योंकि उसके दोस्त के पास भी उसी तरह की गाड़ी थी। भागते-भागते वह एक

बाइक सवार की चपेट में आ गया। उसकी टांग से खून निकलने लगा बाइक सवार उसे डांटते फटकारते हुए कहने लगा तुझे मरने के लिए मेरी ही गाड़ी मिली थी। वह बाइक वाला उसे गालियां दे कर वहां से भाग गया। यह सब दृश्य वह नीले रंग की गाड़ी वाला व्यक्ति देख रहा था। उसकी चोट से बेहाल  होकर बघिरा एक ओर बैठ गया। इतना सुंदर  कुता जिसको सब लोग देखकर मोहित हो जाते थे वह आज हड्डियों का ढांचा बन गया था। उसकी सांसे तो अपने दोस्त से मिलने के लिए बेचैन थी। कर्ण गाड़ी से उतरा उसने उस कुत्ते को प्यार से सहलाया। अपनी गोद में लेकर प्यार किया। बघिरा की आंखें भी अपने मालिक को ढूंढते-ढूंढते थक गई थी। उसे बहुत ही तेज बुखार था। कर्ण की शक्ल उसके दोस्त से मिलती जुलती थी।  थोड़ी सी मुस्कुराहट बघिरा के चेहरे पर दिखाई दी। उसके गले में पट्टा देखकर उसने अंदाजा लगा लिया था कि यह किसी का पालतू है। यह अपने मालिक से बिछड़ गया है या इसके मालिक ने इसे छोड़ दिया है। देखने में तो बहुत ही चतुर दिखाई देता है। कुछ भी हो जाए वह इस कुत्ते को नहीं छोड़ सकता। कुछ इंसानियत तो उस में भी बाकी है। उसको  वह पास के सिटी अस्पताल में ले गया। उसका इलाज करवाया। वह सोचने लगा जब तक वह पूरी तरह ठीक नहीं हो जाता तब तक वह इसको अपने घर  में  ही रखेगा। कर्ण को उससे प्यार हो गया। उसके पटटे पर बघिरा नाम खुदा हुआ था। जब कर्ण उसे बघिरा बुलाता तो बघिरा की आंखों से खुशी के आंसू छलक पडे।  काफी दिनों बाद उसे

किसी ने इस नाम से बुलाया?  

एक  दिन शालिनी अपनी दोस्त स्मृति से मिलने उसके घर गई शालिनी उसे देखकर चौक गई शालिनी अपनी सहेली को देख कर उसे कहती है कि तुमने यह क्या हालत बना ली है? क्या बात है, तुम ठीक ढंग से खाती पीती नहीं हो। वह बोली तुम्हें क्या बताऊं? तुम भी तो मेरी खोज खबर लेने नहीं आई। मुझ पर जो जो  बीती  मैं तुम्हें बताती हूं। शालिनी बोली कि मैं मैं अपने मायके गई हुई थी। मेरी शादी तय हो गई है मैं तुम्हारे पास आ नहीं सकी। आज भी मैं अपने शादी का कार्ड देने आई हूं। शालिनी बोली जीजा जी कहां हैं? जब शालिनी   नें उसे अपने पति शेरभ के बारे में  बताया तो वह यह सुन कर बहुत दुखी हुई  कि उसके पति बेहोशी की अवस्था में है। एक दिन जब मेरे पति बच्चे की ओर ध्यान न दे कर  बघिरा को  अपनें हाथ से खाना खिला रहे थे तो मैं गस्से में अपने पति को अनापशनाप कह गई। उसने गुस्से में अपने पति को कहा कि  बघिरा हमारे बच्चे को नुकसान पहूंचा सकता है। मेरे पति कहने लगे बघिरा तो कभी भी हमारे बच्चे को नुकसान पहुंचा ही नहीं सकता। वह अपनी जान कुर्बान कर देगा मगर हम पर कोई आंच नहीं आने देगा। बहना तुम सच ही कहती थी बघिरा नें तो मेरे पति को भी नहीं छोड़ा। मेरे पति की बघिरा के कारण ही दुर्घटना हुई।मेरे पति बघिरा को ले कर गुस्से में न जाने कहां चले गए? वे रास्ते में एक ट्रक से टकरा गए। वह लहूलुहान हो कर नीचे गिर गए। लोंगों ने किसी न किसी तरह उन्हे  बचा कर सिटी अस्पताल पहुंचाया दिया। वह आज तक बेहोशी की  अवस्था से बाहर नहीं आए। बेहोशी में भी अपनें बघिरा को पुकारते रहतें हैं।

शालिनी को यह सुन कर बड़ा बुरा लगा। मैने तो इनके हंसते खेलते परिवार में फूट डाल दी। मेरे कारण यह सब कुछ हुआ। मैंनें डर के कारण अपनी सहेली को कह दिया कि बघिरा के कारण तुम्हारा बेटा गिरा। मुझे बच्चे को सम्भालनें का अनुभव नहीं था। मेरे हाथ से प्यार करते करते  बच्चा गिर गया। अपनी सहेली के डर के कारण मैंनें बघिरा का नाम झूठमूठ में ले दिया। बघिरा तो मुझ पर भौंक रहा था। मैने बघिरा को, उसके पति को उन से दूर कर  दिया। मैं जब तक इन को मिलवा न दूं तब तक मुझे चैन नहीं मिलेगा। आज मैं सब कुछ अपनी सहेली को सच सच बता दूंगी।। वह बघिरा को ही अपनें पति की दुर्घटना का कारण समझती है। शालिनी बोली बहन मुझे माफ कर दे जब मैं उस दिन तुम्हारे घर आई थी। बच्चे को गोद में ले कर प्यार कर रही थी पालनें में रखते रखते तुम्हारा बच्चा मेरे हाथ से नीचे गिर गया। मैंने तुम्हारे डर के कारण झूठमूठ में कह दिया बच्चा बघिरा नें गिराया है। बघिरा तो बच्चे को गिरता देख कर मुझ पर भौंका था। स्मृति नें जब यह सुना वह हैरान हो गई। वह सोचने लगी आज तक मैं अपने पति की दुर्दशा का कारण बघिरा को समझती रही। उस मासूम की तरफ तनिक भी ध्यान ही नहीं दिया। वह तो हमारे पास बहुत वर्षों से रह रहा था। जब तक मेरा बेटा भी पैदा नहीं हुआ था। ओह! गुस्से में मैं आज तक उसे क्या क्या गालियां देती रही। मेरी बुद्धि भी मन्थरा जैसी बन गई।

मैं अपने बघिरा के प्रती इतनी निष्ठुर कैसे हो गई। मेरी जीभ जल क्यों नहीं गई। यह मैने क्या अनर्थ कर डाला। स्मृति को शालिनी नें बताया कि डाक्टरों नें उसे बताया अगर एक महीनें तक बघिरा को ढूंढकर नहीं लाओगे तो वह कभी भी ठीक नहीं हो सकते। इससे पहले कुछ अनर्थ हो जाए मुझे बघिरा को ढूंढ कर लाना ही होगा। बघिरा जिन्दा भी होगा या नहीं।  एक दिन शालिनी जब कर्ण से मिलनें गई तो उसने वहां पर एक कुते को देखा।शालिनी को देख कर वह जोर जोर से उस पर भौंकनें लगा। कर्ण बोला न जाने यह किस का  पालतू कुत्ता था। वह एक व्यक्ति की बाइक से टकरा गया था। उसे की टांग में चोट लग गई।मैं उसे अपनें घर ले आया। मैंनें सोचा था कि मैं उसे ठीक होनें के बाद छोड़ दूंगा परन्तु अब मैं उसे नहीं छोड़ सकता। मुझे इसके साथ प्यार हो गया है।  बघिरा शालिनी पर  भौंकता जा रहा था। वह उसके गले में पट्टा देख, ओर कर्ण नें जब उसे बघिरा पुकारा, वह दौडता दौडता उस के पास जा कर उसे चाटनें लगा। शालिनी अपनें मन में सोचने लगी कहीं वह ही तो बघिरा नहीं। वह तो बहुत ही सुन्दर बडी बड़ी आंखो वाला था। यह तो कमजोर हड्डियों का ढांचा है। उस के पास जा कर जब उसने पट्टा देखा वह तो वही पट्टा था जो उसनें और उसकी सहेली नें बघिरा के लिए खरीदा था। उसने बघिरा को खूब प्यार किया। उस की आंखो में खुशी के आंसू चमकने लगे। शालिनी ने अपने पति को बताया कि यह कुता तो मेरी सहेली का है। उसने सारा वृतान्त कर्ण को कह सुनाया। स्मृति के पति को डाक्टरों ने बताया कि अगर तुम अपने पति को बचाना चाहती हो तो जल्दी से जल्दी बघिरा को ढूड कर ले आओ। आज भी मेरी सहेली नें मुझे कहा कि अपने पति से कहना हमारे बघिरा को ढूंढने में हमारी मदद करे।एक दिन जब मैं अपनी सहेली के घर शादी का कार्ड देनें उस के घर गई तब मुझे मालूम पड़ा कि एक साल से उसके पति  बेहोश  है। वह जब कभी बेहोशी से उठते हैं तो बघिरा को ही पुकारतें हैं।

शालिनी बोली  एक दिन जब मैं उसके बच्चे से खेल रही थी। बच्चे को उठाने का मुझे अनुभव नहीं था बच्चे को पालनें में रखते रखते स्मृति का बच्चा मुझ से नीचे गिर गया। यह देख कर बघिरा आया और मुझ पर भौंकनें लगा। मैंने अपनी सहेली के डर के कारण अपनी सहेली को कहा बघिरा नें तुम्हारे बच्चे को गिराया है। वह सच मान बैठी। वह अपने पति पर हर रोज दबाब डालती रही कि बघिरा को कंही छोड़ आओ। अपनी पत्नी से परेशान हो कर गुस्से में वह घर से निकल गए। सारी रात घर नहीं आए तो दूसरे दिन स्मृति नें  उसे  पास के सिटी अस्पताल में उन्हे जिन्दगी और मौत के बीच जूझते पाया। सारी कहानी सुनाने के बाद शालिनी बोली आप ही मेरी सहेली के पति को बचा सकतें हैं।कर्ण बोला बघिरा मुझ से घुल मिल गया है। एक शर्त पर मैं  सिटी अस्पताल चलनें के लिए तैयार हूं।  शेरभ के ठीक होनें के बाद मैं बघिरा को अपने पास ही रखूंगा। शालिनी बोली इस वक्त तो किसी की जान बचाना हमारा पहला कर्तव्य है। बाकि बाद में देखा जाएगा।

शालिनी अपने पति कर्ण और बघिरा के साथसिटी अस्पताल में पहुंच गया। बघिरा शेरभ के बिस्तर के पास जा कर भौंकनें लगा। शेरभ के चारों ओर डाक्टर खडे थे।  वे उसे आक्सीजन चढा रहे थे। बघिरा। उसके  बिस्तर के पास चक्कर काट रहा था।   और वह  मायूस सा आंसूओं के सैलाब को रोके हुए जोर जोर से भौंकने लगा मानो कह रहा हो उठो दोस्त, जल्दी से मुझे गले लगा लो।।  काफी समय तक जब शेरभ नहीं उठा  तो उसी वक्त बघिरा भी बेहोश हो कर नीचे गिर गया। डाक्टरों नें उसे इनजैक्शन दे कर ठीक कर दिया। बघिरा उठा और दौड़ दौड़ा अपनें दोस्त के पास जा कर फिर एक बार फिर भौंका। शेरभ की आंख खुल गई। बघिरा उसे चाटने लगा। शेरभ नें उसे  कस कर गले से लगा लिया। तूझे मुझ से कोई अलग नहीं कर सकता मेरे दोस्त। उन दोनों की दोस्ती देख कर हर आने जाने वाले लोग और डाक्टर भी दंग रह गए। शेरभ को ठीक होते होते एक महीना लगा। बघिरा तो अपने दोस्त को छोड़नें का नाम  ही नही ले रहा था। शालिनी को कर्ण ने बताया कि जैसे ही शेरभ ठीक हो जाएगा वह अपने बघिरा को अपने पास ही  रखेगा।एक दिन कर्ण नें शेरभ को पूछा तुम कैसे दुर्घटना  के शिकार हुए। शेरभ नें सारा वृतान्त कह सुनाया कैसे अपनी पत्नी के बार बार परेशान करनें पर वह अपने बघिरा को छोड़नें के लिए राजी हो गया। उस दिन बारिश बहुत तेज हो रही थी। बघिरा खुश हो रहा था मेरा दोस्त मुझे खेलने ले जा रहा है। वह बारिश के मौसम में बघिरा को दूर दूर तक घुमाने ले जाता था।उस दिन जैसे ही उसे एक स्थान पर छोड़ कर वापिस आ रहा था। एक दम उसनें दोबारा बघिरा को  घर वापिस लाने के लिए गाड़ी  मोड़ दी। यह मैने क्या कर दिया। मैं अपने बघिरा को  ऐसे कैसे अकेला छोड़ सकता हूं। यही सोचता हुआ गाड़ी चला रहा था। अचानक उसने सामने एक खतरनाक मोड़ को भी नहीं देखा। उसकी गाड़ी एक ट्रक के साथ जा टकराई। उसके बाद   आज जा कर उसे होश आया। कर्ण बोला मैं तुम्हारी दोस्ती देख कर तुम्हे तुम्हारा दोस्त लौटानें आया था। मैं अब बघिरा को तुम्हे वापिस नहीं करूंगा।आज तो मैं तुम्हें तुम्हारा बघिरा वापिस भी कर दू। तुम अपनी पत्नी की बातों में आ कर बघिरा को फिर कहीं छोड़कर आ गए इस बात कि क्या गारन्टी है? अब कहीं जा कर   यह कुछ ठीक हुआ है। इसकी क्या हालत हो गई थी?  तुम इस बात का अन्दाजा भी नहीं लगा सकते।

शेरभ बोला ऐसा कभी नहीं होगा। शेरभ जोर जोर से अपनी पत्नी को डांटने लगा। बघिरा को यह बात बहुत ही बुरी लगी। वह शेरभ और उसकी पत्नी के बीच आ कर जोर जोर से भौंकनें लगा। शेरभ की पत्नी बोली मैंने आप की दोस्ती में दरार डाली आज इस के लिए मैं आप से हाथ जोड़कर माफी मांगती हूं। शेरभ गुस्से में बोला मुझे शादी ही नही करनी चाहिए थी। स्मृति बोली तुम खुश रहो।वह इतना कह कर अपना सामान  समेटने लगी।  शेरभ जब ऊंची आवाज में कह रहा था बघिरा उन दोनों के बीच में आ गया। जोर जोर से शेरभ पर भौंकनें लगा। शालिनी और उसका पति यह देख कर दंग रह गए।  वह स्मृति के दुपट्टे को खींच कर  उसे जानें से मना कर रहा था। शेरभ बोला अब देखो मेरा दोस्त कितना समझदार है? वह तुम्हे भी जानें से रोक रहा है। कर्ण बोला आया तो मैं इस इरादे से था कि आज मैं बघिरा को तुम से वापिस ले जाने मगर तुम्हारी इतनी गहरी दोस्ती देख कर मेरी भी आंखें नम हो गईं। यह तुम्हारे साथ ही ज्यादा खुश रहेगा। तुम्हारा बघिरा है ही इतना प्यारा कोई भी इसे देख कर अपना बनाना चाहेगा। मैं इस शर्त पर तुम्हारा बघिरा तुम्हें लौटा रहा हूं जब मेरी इच्छा होगी मैं अपने दोस्त  से मिलनें आ जाया करूगा। शेरभ बोला हां यार तुम कभी कभी इसे अपनें पास भी रख सकते हो। शालिनी खुश हो कर बोली मैंनें आज एक दोस्त को दूसरे दोस्त से मिला दिया। आज वह असली मित्रता का मतलब समझी है।

मासूम भाग(1)

शेरभ अपने मम्मी पापा के साथ शिमला की वादियों में घूमने गया था। वह  केवल 10 साल का  मासूम सा, प्यारा सा बच्चा था। बड़ी बड़ी आंखें, गोल मटोल,  भोला-भाला चेहरा, अपने माता-पिता का  हाथ थामे कुफरी की बर्फीली वादियों का लुत्फ उठा रहा था।  वह गर्म इलाके का रहने वाला था। ठंडी ठंडी हवा के झौकों को देख कर और प्रकृति के हरे भरे मनोहर दृश्यों को  देख कर मन ही मन मुस्कुरा रहा था। ऐसे अद्भूत दृश्य उसनें कभी भी नहीं देखे थे। चारों तरफ लोंगों की भीड़ थी। कुछ लोग पैदल चल रहे थे। बच्चे बूढे और सभी घूम घूम कर प्रकृति के उन नजारों का आन्नद उठा रहे थे।। कुछ लोग याक को देख कर डर गए।  शेरभ ने भी याक पहली बार देखा था। गाईड नें उन्हें बताया कि  यह एक पशु है जो तिब्बत के ठंडे तथा वीरान पठार, नेपाल और भारत के उतरी  क्षेत्रों में पाया जाता है। यह  घने लम्बे  बालों वाला एक प्रकार की गाय जाति का पशु है। लोग इसका दूध पीनें के लिए इस्तेमाल करतें हैं। जैसे गाय का दूध पीनें के लिए प्रयोग में लाया जाता है। याक के लम्बे लम्बे बाल देख कर वह हैरान हो गया। वहां से खूब सारी खरीददारी करनें के बाद पापा नें स्केटिंग करनें के लिए बुलाया

स्केटिंग करनें के लिए अलग स्थान था, शाम का वक्त  था। उसके मम्मी पापा ने  उसे सख्त हिदायत दी थी कि बेटा हमारा हाथ मत छोड़ना मगर उसे तो स्केटिंग में इतना आनंद आ रहा था उसने अपने मम्मी पापा की उंगली छुड़ा ली। वह स्केटिंग करते अपनें ममी पापा से काफी दूर निकल गया। उसनें जैसे ही पीछे मुड़कर देखा उसका संतुलन बिगड़ा और वह एक गहरी खाई में  गिर गया। उसनें अपनें चारों ओर देखा वहां आसपास कोई नहीं था। वह एक सुनसान स्थान पर पहुंच चुका था। अंधेरा होनें ही वाला था। उसे अंधेरे से बहुत ही डर लगता था। वह अपनें मन में सोचने लगा वो कहां आ गया। डर  के कारण वह कांप रहा था। उसके पैर में भी थोड़ी सी चोट लग गई थी। उसनें अपनें मम्मी पापा को जोर जोर से आवाज लगाई पर वंहा उसे कोई नजर नहीं आया। उसे वहां एक छोटी सी  गुफा  दिखाई दी। उसनें देखा कि उस गुफा में कोई जानवर तो नहीं है। किसी को भी वहां न देख कर वह  उस गुफा में चल कर  एक कोने में बैठ गया। वह ठंड से कांप रहा था।   उसे ध्यान आया कि उसके पास अपने पापा का लाइटर था। उसने वह लाइटर जलाया। थोड़ी सी रोशनी से उसका डर कुछ कम हुआ उसने अपने सामने देखा उसके पास किसी की बड़ी-बड़ी आंखें चमक रही थी।  वहां से  जोर जोर  की सांस  लेंनें की आवाज़ आ रही थी। उसे मालूम पड़ गया था कि  उसके समीप ही कोई जानवर है। उसने अपने मन में सोचा कि अगर शेर हुआ तो वह तो  उसे कच्चा ही  निगल जाएगा। डर के मारे उसके दिल की धड़कन  और भी तेज हो गई। अपनी मैडम की आवाज उसके कानों में गूंजने लगी। बहादुर बच्चे डरते नहीं। इंसान का सबसे बड़ा शत्रु होता है उसका डर। वह डर गया तो सचमुच ही वह उसे खा जाएगा। वह आईस्ता आईस्ता वहां से  चलने लगा पर वह लंगड़ा  कर चल  रहा था। वह जानवर भी उसके पीछे पीछे चलनें लगा। डर के मारे उसका बुरा हाल था।  हिम्मत  जुटा कर  के  शेरभ नें पीछे मुड़कर देखा।  वहां बहुत अंधेरा था। उसने लाइटर  जलाया।  अरे! कोई शेर नहीं यह तो  एक मासूम सा  कुते का  पिल्ला था जो अपनी प्यारी प्यारी आंखों से उसे निहार रहा था। वह  काले घने बालों वाला छोटा सा कुते का पिल्ला था। उसने उसे अपने पास बुला लिया और प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा। उसका डर  कुछ कम हो गया था।  शेरभ उसके साथ चिपक कर एक जगह बैठ गया।शायद वह भी अपनें परिवार  से बिछुड़ गया हो। उसने कहा कि तुम्हें मैं  बघिरा बुलाऊंगा।  शेरभ  को भूख  प्यास भी बड़े जोरों की लग रही थी। वह गले को बार-बार साफ कर रहा था। कुत्ते बड़े ही समझदार होते हैं। वह समझ गया कि इसको प्यास लगी है।

उसनें शेरभ की कमीज को  खींचा। वह बघिरा के साथ चलने लगा।  वह उसे एक पानी के झरनें के पास ले गया। उसने  झरनें से पानी पिया और अपनी प्यास बुझाई। वह उसका दोस्त बन गया था।। बघिरा के साथ सारी रात चिपक कर सोया रहा। सुबह के वक्त उसकी आंख खुली। वह  आईस्ता आईस्ता  चलने लगा। वह उस जगह पहुंच गया  जिस स्थान से वह  नीचे गिरा था। उस ने पुकारा मम्मी पापा। वहां पर खड़े लोगों में से एक आदमी आकर बोला  वह पुलिस स्टेशन गए हैं।  मेरे पास उनका नंबर है। उस आदमी ने शेरभ के  पापा को फोन कर दिया शेरभ के मम्मी पापा दौड़े-दौड़े अपने बेटे के पास पहुंचे।  उस आदमी ने शेरभ को वही ठहरा दिया था। उसके मम्मी पापा दौड़े दौड़े  आए उन्होंनें उसे गले से लगा लिया।। बेटा  हमने तुम्हें कितना समझाया था?  हमारा हाथ मत छोड़ो! मगर तुमने हमारी बात की ओर ध्यान ही नहीं दिया। अच्छा हुआ तुम सही सलामत  हो। बेटा बताओ, तुम सारी रात कहां थे? तुम नें तो हमारी जान ही निकाल ली थी। हमनें तुम्हें सारी जगह ढूंढा मगर निराशा ही हाथ लगी। वह बोला मैं  सारी रात अपने दोस्त बघिरा के साथ था। उसने बघिरा को पुकारा। वह दौडता दौडता उसके पास आ गया। उसने रात की सारी घटना अपनें मम्मी पापा को सुना दी। उसके मम्मी पापा हैरान हो गए। वह  बोला यह मेरी जान है यह मेरा पक्का दोस्त है। मैं इसे यहां से ले चलूंगा। उसके पापा बोले बेटे इस का भी किराया लगेगा। उसके साथ इतनी परेशानियां होगी सो अलग। तुम बच्चे हो तुम इस बात को नहीं समझोगे। वह बोला पापा आप इस की चिंता मत करो। मैंने अपनी गुल्लक में इतनें सारे नोट किस दिन के लिए जमा किए हैं? मेरे प्यारे दोस्त के लिए, मैं आपको  इसका ट्रेन का किराया दे दूंगा। उसनें अपने पापा को कहा कि आप मुझे जो खाना देंगे उस खाने में से आधा मैं बघिरा को दे दिया करूंगा।  उसके पापा के पास कोई जवाब नहीं था। शेरभ की जिद के आगे उसके मम्मी पापा की भी नहीं चली। उन्होंने  बघिरा का भी टिकेट  ले लिया। वह बघिरा को पा कर बहुत ही खुश था।  इतना खुश तो उसके पापा ने उसे कभी नहीं देखा था। गाड़ी स्टेशन से चल रही थी। रात का समय था। शेरभ के पापा ने  उसे खाना खाने बुलाया। वह बोला पापा मेरा खाना दे दो। उसके पापा ने  अनजानें में उसे दो ही चपाती दी। अपने आप खाना खाने में मस्त हो गए। उसके  बघिरा की ओर  किसी   का भी   ध्यान नहीं  गया। शेरभ नें दोनों रोटियां उसे  दे दी। उसके मम्मी पापा को ध्यान तब आया जब रात को बघिरा अपने दोस्त को चाट रहा था। उसके पिता को याद आया उसने तो शेरभ को दो ही रोटियां दी थी। उन्होंने एक रोटी वंहा पर पड़ी देखी।  बघिरा नें एक रोटी शेरभ को बचा दी थी। उनकी आंखों से आंसू छलक आए। अपने बेटे को जगाते हुए बोले बेटा तुम तो भूखे ही रह गए। तुमने दोनों रोटियां  अपनें दोस्त को डाल दी।  वह तो तुम से भी ज्यादा समझदार है। उसने केवल एक ही रोटी खाई वह तुम्हारी रोटी कैसे खा सकता था? उन्होंनें शेरभ को उठाकर अपने हाथ से खाना खिलाया।

वे महाराष्ट्र के रहने वाले थे। उसके मम्मी पापा ने कहा था कि अपने दोस्त का ध्यान तुम्हें स्वयं ही रखना होगा। शेरभ  अपने दोस्त को अपने कमरे में ही  रखता था। वह दोनों खाते, खेलते सारे काम एक साथ करते थे। ।वह अपनें दोस्त को अपनें बिस्तर पर ही सुलाता था। बघिरा बहुत ही समझदार कुता था। वह बहुत सारे काम  जल्दी सीख जाता था। छुट्टी वाले दिन उसके साथ खूब सारी मस्ती करता।  वह अपने दोस्त बघिरा को काफी दूर तक घुमाने ले जाता। इस तरह अपने दोस्त के साथ रहते-रहते अधिक समय बीत गया।

शेरभ एक बड़ा समझदार इन्सान बन चुका था। उसके घर में उसकी शादी की चर्चा हो रही थी। उसने सबसे पहले यही शर्त रखी कि अगर उस के दोस्त को साथ रखने में उस की होनें वाली पत्नी को कोई ऐतराज नहीं होगा  तभी वह खुशी-खुशी शादी करेगा। वह उसका सच्चा दोस्त ही नहीं उसका एक पक्का साथी था। जहां भी जाता वह बघिरा को भी अपने साथ ले  जाता। बघिरा उसके बहुत सारे काम करता। रात को जब शेरभ देर से घर आता वह तब तक सोता नहीं था। वह उसे टकटकी लगाकर एकटक नजरों से दरवाजे की ओर देखता रहता। वह तब तक सोता नहीं था जब तक कि अपने दोस्त को देख ना ले।

उसके कार्यलय में काम करनें वाली सहकर्मी स्मृति से  उसकी मुलाकात हुई। वह उसे मन ही मन में चाहने लगी। एक बार डरते डरते उसने शेरभ से कह दिया कि मैं तुम से शादी करना चाहती हूं। शेरभ ने कहा मैं तुम्हे अपने सबसे खास दोस्त से मिलाना चाहता हूं। वह बोली तुम्हारा दोस्त है कौन? वह जब शेरभ  के घर आई तो सामने बघिरा को देख कर डर कर पीछे हट गई। शेरभ नें अपने दोस्त का परिचय  स्मृति से करवाया।शेरभ नें कहा  मैं भी तुम से शादी करना चाहता हूं लेकिन तुम्हें मेरे दोस्त  को भी अपनाना होगा।

वह बोली मुझे इस को साथ रखनें में कोई ऐतराज नहीं है।थोड़ा डर लगता है। शेरभ बोला वह तुम से बहुत जल्दी  ही घुलमिल जाएगा।

घर वाले भी शादी के लिए मान गए। शेरभ का तबादला दूर हो गया था।उन दोनों की शादी धूमधाम से हो गई। वह अपनी जिंदगी में खुश थे। धीरे-धीरे समय बीतने लगा। वह दिन भी आ गया जब उनके घर में बच्चे की किलकारियां  गूंजनें लगी। उनके घर में नन्हे  से सदस्य ने जगह ले ली थी। *

छोटा सा अंशुल उनकी गोद में आ चुका था। वह केवल एक ही महीने का था। स्मृति की सहेलियां उसे बार-बार कहती कि अगर तुम्हारे बच्चे को कुत्ते  नें कोई नुकसान पहुंचाया तब क्या होगा? उसे भी लगने लगा कि मेरी सहेलियां ठीक ही कहती है। एक दिन जब बघिरा को शेरभ  अपने हाथों से खाना खिलानें  लगा उसकी पत्नी को अपने पति की यह बात बहुत ही बुरी लगी। वह बोली मानती हूं तुम अपने  दोस्त के साथ बहुत ज्यादा प्यार करते हो।  इतना प्यार ठीक नहीं होता। वह बोला यह मेरा  सबसे अच्छा दोस्त ही नहीं मेरा भाई भी है। मैं तो इसे अपने हाथों से ही खाना खिलाऊंगा। तुम चाहे जो भी कहो। मैंने तुम्हें पहले ही सारी बातें समझाई थी। उसकी पत्नी गुस्से में तिलमिला कर बोली मुझे तुम से शादी ही नहीं करनी चाहिए थी।

बघिरा को शेरभ ए-सी वाले कमरे में सुलाता था। वह एक ठंडे स्थान पर रहने वाला प्राणी था क्यों कि उसे वहां पर बहुत ही गर्मी लगती थी। जब शेरभ  ऑफिस चला जाता तो शेरभ की पत्नी  बघिरा को कभी भी अपने हाथ से खाना नहीं खिलाती थी। वह बघिरा को ए-सी वाले कमरे से बाहर कर देती थी। अपने बच्चे को भी उससे दूर ही रखती थी कि कहीं वह उस को नुकसान ना पहुंचाए।  वह  कभी कभी बघिरा को एक कमरे में बंद  कर  देती। वह  उस का खास ध्यान नहीं रखती थी। वह कभी कभी उसे समय से खाना देना भी भूल जाती थी। उसकी सहेलियां उसे कहती थी कि कुत्ते  से तुम्हारे बच्चे को बहुत सारी भयानक बीमारियां लग सकती हैं इसलिए वह हमेशा उसको छूने से डरती थी।   

एक दिन उसकी सहेली विभा उसके घर आई हुई थी। वह उसके बच्चे को पालने से उठाने लगी। पालने से उठाते वक्त उसका बच्चा नीचे गिर गया। वह जोर जोर से रोने लगा। यह देख कर बघिरा दौड़ा दौड़ा आया और उसकी सहेली पर बुरी तरह से भौंकने लगा तभी वहां पर अचानक स्मृति आ गई। स्मृति को देख कर उसकी सहेली  अचानक से घबरा गई और डर के मारे उसने झूठमूठ  कह  दिया मैं तो तुम्हारे बच्चे को पकड़ रही थी। बघिरा ने  ही आ कर इस बच्चे को गिराया। ऐसे कुत्तों को अपने घर में नहीं रखना चाहिए। वह तुम्हारे बच्चे को एक दिन नुकसान पहुंचा सकता है।  स्मृति और भी डर गई और उसने सोचा कि आज जैसे-तैसे करके वह शेरभ को मना ही लेगी। शेरभ यदि उस कुत्ते को कहीं छोड़ने पर राजी नहीं हुआ तो इस घर को छोड़कर वह हमेशा हमेंशा के लिए चली जाएगी।  

शेरभ जैसे ही घर पहुंचा तो स्मृति उदास होकर बैठी हुई थी। उसने अपने पति को कहा कि  बघिरा को सदा के लिए यहां से ले जाओ वर्ना मैं अपने मायके चली जाऊंगी। बघिरा नें आज  मेरे बेटे को गिरा दिया। शुक्र करो भगवान का आज मेरी सहेली वहां  थी। नहीं, तो यह बघिरा  मेंरे बच्चे को मार ही डालता। यह बातें  बघिरा  सुन रहा था। वह मूक प्राणी कैसे उसे विश्वास दिलाता कि यह सब कुछ किया धरा तो उसकी सहेली विभा का है। उस का पति शेरभ बोला मैं कभी भी मान नहीं सकता कि मेरा बघिरा  हमारे बच्चे को नुकसान पंहूंचानें की सोच भी सकता है। यह तुम्हारी गलत धारणा है। जब उसकी पत्नी नें उसे खूब परेशान किया और वह मायके जाने को तैयार हो गई तो उस के सब्र का बांध टूट गया। बघिरा भौंक भौक कर बताना चाहता था कि उसनें कुछ नहीं किया है।स्मृति का रोना चिल्लाना, बघिरा का भौंकना, बच्चे का रोना और  औफिस की थकान सब  के सब  के कारण वह अपना आपा खो बैठा। वह गुस्से में एक दम तिलमिला उठा और बिना सोचे समझे  बघिरा को ले कर गाड़ी में  बिठा कर ले गया।

वह दोनों बहुत ही दूर निकल आए थे।उस दिन  बहुत ही तेज वर्षा हो रही थी। शेरभ नें एक सूनसान जगह पर  गाड़ी रोक दी। दोनों गाड़ी से बाहर निकले। उसने बघिरा की  गेंद निकाल कर दूर फेंक दी। बघिरा खुश हो रहा था कि मेरा मित्र मुझे अपनें साथ खेल खेलने के लिए यहां ले कर आया है। वह गेंद को पकड़ने के लिए जैसे ही दौड़ा शेरभ जल्दी से गाड़ी में बैठ कर वहां से निकल गया। बघिरा जैसे गेंद मुंह में पकड़ कर लाया उसनें गाड़ी को दूर जाते हुए देखा। उसके मूंह से गेंद छूट गई और वह गाड़ी के पीछे तेजी से भागनें लगा। कुछ ही देर में गाड़ी उसकी आंखों से ओझल हो चुकी थी।वह थक हार कर एक कोनें में बैठ कर अपनें दोस्त का इन्तजार करनें लगा। बघिरा के मन में एक बार भी ख्याल ही नहीं आया कि उसका दोस्त  कभी उस ऐसे अकेला छोड़ कर भी जा सकता है। यही सोच कर  कि  शेरभ अभी लौट आएगा  वह अपने दोस्त का वहीं बैठ कर इन्तजार करनें लगा।

शेरभ बघिरा से बहुत दूर निकल आया था। अचानक ही उसे एहसास हुआ कि यह मैंनें गस्से में आ कर क्या अनर्थ कर डाला? मैंने अपने दोस्त को इतनी बड़ी सजा कैसे दे डाली? वह तो बचपन से ही मेरे साथ है। मेरा भाई है। मैं उसे कैसे छोड़ सकता हूं? मुझ से एसी गल्ती कैसे हो गई? मैं उसे अभी वापिस ले कर आता हूं।  यही सोचते सोचते शेरभ नें  जल्दी से गाड़ी वापिस मोड़ दी। वह जल्द से जल्द अपनें दोस्त के पास पहुंचना  चाहता था। वह अपनें आप को कोस रहा था वह कैसी मनहूस घड़ी थी वह क्यों अपनी बीवी की बातों में आ    गया? वह इतनी निष्ठुर कैसे हो गई? मेरी पत्नी इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती  है? वह यही सब सोचता हुआ वह  बघिरा की ओर तेजी से  गाड़ी चलाता हुआ जा  रहा था तभी अचानक एक खतरनाक मोड़ की तरफ उसका ध्यान ही नहीं गया। उसकी गाड़ी तेजी से आ रहे  एक ट्रक से जा टकराई। वह लहूलुहान हो कर गाड़ी से बाहर गिर पड़ा। लोगों की भीड़ वहां इकट्ठी हो गई थी। उसे बहुत गहरी चोटें आई थी। ट्रक ड्राइवर नें उसे जल्दी से अस्पताल पहुंचाया। खबर मिलते ही उसकी पत्नी पास के सिटी अस्पताल पहुंच गई। वह बेहोशी की अवस्था में भी वह बघिरा बघिरा पुकार रहा था।

एक महीने तक उसे होश ही नहीं आया। होश में आते ही उसने बघिरा को ही पुकारा। उसनें और किसी का भी नाम नहीं पुकारा। डाक्टर नें स्मृति से पूछा कि वह बेहोशी की अवस्था में भी  बघिरा का नाम ही  पुकार रहे थे। लगता है इनका बघिरा से काफी गहरा रिश्ता है।  आप के पति के ठीक होनें के लिए बघिरा का यहां होना जरूरी है।

 —-—_–———– कहानी का शेष भाग अगले अंक में  ।

                         लेखिका की कलम से

                                    मीना शर्मा

बुरी संगत का परिणाम

यह कहानी एक मध्यम वर्गीय परिवार की है। राज के परिवार में उनका एक बेटा था। उसका नाम था अंकित। अंकित बहुत सी प्यारा बच्चा था। बाबा की आंखों का तारा था। बाबा उसकी हर इच्छा को पूरी किया करते थे। वह भी अपनी मां बाबूजी को कभी क्रोधित होने का अवसर नहीं देता था। उसकी एक ही आदत थी वह हरदम पढ़ाई किया करता था। वह स्कूल से आते  ही पढ़ाई करने बैठ जाता। खेलने भी बहुत थी कम जाता। हर वक्त पढ़ाई किया करता। जितनी वह पढ़ाई करता उतने  उसके इतनी अच्छे  अंक नहीं आते थे। उसकेअध्यापक उसकी प्रशंसा किया करते थे। वह पढ़ाई में ठीक ठाक था।  वह कक्षा में कभी भी फेल नहीं होता था। उसके मां पिता चाहते थे कि हमारा बेटा पढ़ लिखकर एक अच्छा औफिसर बन जाए।वे उसे आई ए एस अफसर बनाना चाहते थे। उसके पापा ने उसे पहले ही कह दिया था कि बेटा आईएएस बनने के लिए हमेशा हमें खेल खेलना सब छोड़ने पड़ते हैं। आगे परीक्षा की तैयारी के लिए समय ही नहीं मिल पाता अगर अभी से तुम ज्यादा समय पढ़ाई में दिया करोगे तो तुम्हें आगेआई एस अफसर बनने से कोई नहीं रोक सकता। वह अपने पापा की सीख के  अनुसार अपना ज्यादा से ज्यादा समय पढ़ाई में व्यतीत करनें लगा। उसके दोस्त   जब  उसे  खेलनें बुलाते तो वह सबको इंकार कर देता। मेरे पास अभी समय नहीं है। तुम ही खेलो। उसकी इसी आदत से सभी दोस्तों ने उससे किनारा कर लिया।

उसके गिनेचुने  दोस्त  ही ऐसे थे जो अभी भी उसे खेल  के लिए बुलाते थे। इस तरह समय  व्यतीत  होता रहा था।अंकित दसवीं कक्षा में आ चुका था।  स्कूल में मास्टरजी बच्चों को प्रश्न करवाते वह हल कर देता क्यों कि वह हर रोज पाठ याद करके ले जाता था। इस बार उसकी अर्धवार्षिक परीक्षा आने वाली थी। हर बार  जब उसके अंक आते अपनें अंको की तुलना अपने दोस्तों से करता। उसके अपने दोस्तों से कितने अंक ज्यादा आए हैं। इस बार जब परिणाम आया तो उसके दो दोस्त पुनीत और सुमित दोनों के केवल 15 अंक ही कम थे वह मन ही मन सोचनें लगा  यह तो सारा दिन खेलते रहतें हैं। जब मैडम कक्षा में प्रश्न लिखवाती है तो मेरी नकल  मार लेते हैं। ऐसे कैसे इनके इतनें अंक आ जाते हैं। मैंने तो परीक्षा में इन्हें कुछ भी नहीं बताया। कोई बात नहीं अब मैं भी उनके साथ खेलने जाया करूंगा।  पढ़ने के साथ साथ खेलना भी जरूरी होता है। मैंने तो इस बात को कभी गंभीरता से लिया ही नहीं। अब थोड़ी देर इनके साथ खेल लिया करूंगा।

एक दिन जब पुनीत उस बुलाने आया तो अंकित बोला क्यों नहीं? में भी तुम्हारे साथ खेलनें चलूंगा। वह खेलने जाने के लिए तैयार हो गया। उनके साथ खेलनें में उसे बड़ा ही मजा आया। उस दिन उसे पढ़ाई किया हुआ जल्दी याद हो गया।

अंकित सोचने लगा अच्छा हुआ मुझे जल्दी ही समझ में यह बात आ गई। मैं तो बाहर खुले में खेलों के मनोरंजन खेल खेलनें से वंचित ही रह जाता।  एक दिन उसकी कापी पुनीत के घर पर  रह गई। उसकी परीक्षा आने ही वाली थी वह कॉपी लेने सुमित के घर की ओर चला। वहां पर चलकर दरवाजे पर  दस्तक देने  ही लगा उसे  सुमित की हंसने की आवाज सुनाई देने लगी। पुनीत सुमीत को    कह रहा था कि पढ कर क्या होगा। इस बार भी पहले की तरह पेपर ले लेंगें। अंकित अपनें मन में सोचने लगा यह किन प्रश्न पत्रों की बात कर रहें हैं। अन्दर चल कर पता करता हूं।  पुनीत बोला कैसे आना हुआ

अंकित बोला मैं अपनी कॉपी तुम्हारे पास ही भूल गया था। पढ़ाई कहां से करता? सुमित बोला बैठो। अंकित बोला तुम किस पेपर की बात करने वाले थे।  वो बोला कुछ भी तो नहीं। अंकित समझ चुका था दाल में कुछ काला अवश्यक है।अंकित के दिमाग से यह बात मिटाए नहीं मिट रही थी।  वह सोचनें लगा मैं  इस बात का अवश्य ही   पता करके रहूंगा। यह कैसे पेपर की बात कर रहे? और यह माजरा क्या है? अंकित  अपनें दोनों दोस्तों पर नजर रखने लगा। अंकित नें उन दोनों को कभी पढ़ते नहीं देखा था। अर्धवार्षिक परीक्षा आने वाली थी। मैडम ने  कहा जो बच्चे इस परीक्षा में निकलेंगे उन्ही बच्चों के  दाखिले  भरे जाएंगे। बाकी बच्चे अगले साल परीक्षा की तैयारी करना। बोर्ड की परीक्षा के लिए तो सब कुछ पढ़ा हुआ होना चाहिए।

अंकित  उन पर  कड़ी नजर रखने लगा। उनकी  अर्द्ध वार्षिक परीक्षा के केवल दो दिन शेष थे। ।अंकित नें देखा सुमित और पुनीत  कक्षा अध्यापक के घर केचारों ओर    चक्कर काट रहे थे।   उन के कक्षा अध्यापक का घर स्कूल के पास ही था। छुटकी उन की बेटी थी। छुटकी उनको देखकर बोली   तुम शिक्षा के दिनों में  ही   यहां पर आते हो। आगे पीछे तो अपनी दोस्त का ख्याल ही नहीं आता। वह बोले गुरुजी से महत्वपूर्ण प्रश्न पूछने हैं। वह उन से महत्वपूर्ण प्रश्न पूछकर चुपके से चले जाते थे। उन्हें पता लग जाता था कि गुरु जी ने परीक्षा पत्र कहां रखा है? वे उन की गतिविधियों पर ध्यान रखते थे जब वे दोनों उन के पास पहुंचे तो गुरुजी को चिकनी चुपड़ी बातें कर कहने लगे कृपया हमें महत्वपूर्ण प्रश्न बता दीजिए।  उन्हें डांट फटकार कर  उनके अध्यापक कहते कि तुम इन  पाठों को पूरा-पूरा याद कर लेना। गुरु जी अलमारी में देखकर  बता दिया करते। तुम यह पाठ याद कर लेना। उस दिन भी ऎसा ही हुआ।   गुरुजी से अलविदा होकर अपने घर जा रहे थे तो अध्यापक महोदय को बुलाने  एक आदमी आया। उनके अध्यापक उनके साथ हो लिए।  वे छुटकी के साथ दोनों झूठमूठ खेल खेलने का बहाना करनें लगे। छुटकी की मां इतनी पढ़ी-लिखी नहीं थी उन्होंने देखा कि कोई उन्हें देख तो नहीं रहा है। वह जल्दी से अपने अध्यापक के कमरे में गए उन्होंने मेज पर से चाबी उठाई और आलमारी को खोल कर सारे प्रश्न पत्र अपने मोबाइल में डाल लिए। खेल कर घर जाने लगे तो रास्ते में उन्हें अंकित दिखाई दिया अंकित को सामने देखकर सुमित ने वह पर्चा छुपाने की कोशिश की। अंकित की आंखों से कैसे बच सकते थे? उसने देखा उनके हाथ में सारे के सारे बनाए गए विषयों का  बंडल था। अंकित बोला तुम गुरु जी के घर के बाहर क्या कर रहे हो? मुझसे कहो वर्ना मैं गुरु जी को सारी शिकायत लगा दूंगा। डरते डरते हम हर बार गुरु जी के घर से चोरी छिपे छुपे प्रश्न पत्र ले जाकर उसकी तैयारी करते हैं। वही प्रश्न पत्र परीक्षा में आ जाते हैं और हम पास हो जाते हैं। अंकित को मालुम हो गया था अच्छा तो यह माजरा है। उसने भी शाम को वही प्रश्न याद कर लिए। दूसरे दिन वही प्रश्न पत्र देख कर अंकित फूला नहीं समाया। इस बार तो उसके परीक्षा में 95% अंक आए। वह दोनों भी अच्छे अंकों में उतीर्ण हो गए थे।

मास्टर जी को उनकी करतूतों का पता भी नहीं चला। अंकित  सोचने लगा कि मैं इतनी पढ़ाई किया करता हूं। मुझे भी हर बार इसी तरह प्रश्न पत्र मिल जाए तो मेरे तो वारे न्यारे हो जाएंगे। चाहे मुझे अपने दोस्तों को कुछ कुछ ना कुछ  क्यों ही ना देना पड़े मैं भी वही प्रश्न पत्र याद करके जाया करूंगा और पास हो जाया करूंगा। सारे दिन खेलूंगा भी। मां बाबूजी को कभी पता नहीं चलेगा। इस बार अंकित के माता-पिता यह देख कर प्रसन्न हो गए उनके बेटे के 95% अंक आए थे। वह अपने साथियों को अपने बच्चों की प्रगति की तारीफ किए बिना पीछे नहीं हटे। इस बार तो हमारे बेटे ने इतनी मेहनत की। हम तो गल्त साबित हो गए हम सोचते थे जितनी अधिक यह पढाई करता है उतरेंगे उसके कभी भी अंक नहीं आते हैं। 95%प्रतिशत अंक कम नहीं होते ।हम अपने बेटे की मेहनत पर खुश हैं ।हमारे बेटे को आईएएस अफसर बनने से कोई नहीं रोक सकता। वह औफिसर बन कर ही दिखाएगा। हमें अपने बच्चे को खेलने भी अवश्य भेजना चाहिए।

अंकित ने मेहनत करना बंद कर दिया। वह अपनें दोस्तों  के साथ खेलने चले जाता और आकर चुपचाप सो जाता। अंदर से दरवाजा बंद कर लेता था। जब  उसकी मां कुंडी खटखटा  कर उसे देखनें आती तो सुबह जल्दी जल्दी आंखों को  मल कर उठ बैठता। अंकित बहुत ही खुश हो रहा था। उसके हाथ में तो जादुई चिराग लग गया है। उसकी अर्धवार्षिक परीक्षाएं आने वाली थी। उसके गुरुजी ने प्रश्न पत्र बनाकर तैयार कर लिए थे। उनके गुरु जी बहुत ही सीनियर थे, जिस वजह से उन्हें ही दसवीं के प्रश्न पत्र बनाने थे। उन्होंने प्रश्न पत्र बनाकर रख दिए थे। छुटकी  घर में खेला करती थी। इस बार भी पुनीत और सुमित प्रश्न चोरी कर रहे थे तो छुटकीनें उन्हें देख लिया। छुटकी के मुंह पर हाथ रख कर  बोले तुम  गुरु जी से तो नहीं  कहोगी। हम देख लेते हैं किस तरह के प्रश्न पत्र हैं। उन्होंने सारे के सारे प्रश्न अपने मोबाइल में  सुरक्षित जमा कर लिए। वे घर से मोबाइल लेकर आए थे।  छुटकी डर रही थी उस के पापा नें उन पेपरों को छपवानें के लिए भेजना था। उसके पिता ने कहा कि शाम को 7:00 बजे तक वह पेपर वापस ले जायेंगे। जरा ध्यान रखना।  छुटकी बोली बाबा आप निश्चिंत होकर जाओ। यहां कोई नहीं आता है। उनकी बेटी छठी कक्षा की छात्रा थी।

उनके पिता किसी काम से बाहर चले गए थे। उन्होंने छुटकी को तरह-तरह के लालच देकर सारे के सारे प्रश्न पत्रों को अपने मोबाइल में सेव कर लिया।  अचानक गुरु जी नें उन छात्रों को घर के बाहर घूमते देख लिया था। उन्हें जिस बात की आशंका थी वही हुआ। उन्होंने अपनी आंखों से सुमित और पुनीत को उन प्रश्न पत्रों को सेव करते देख लिया था। वह चुपचाप कमरे में गए और गुस्से भरी नजरों से छुटकी की तरफ देखा। दोनों बच्चे चुपके से दूसरे दरवाजे से   वापिस घर आ चुके थे। उन्होंनें गुरु जी को नहीं देखा। छुटकी को कुछ ना कुछ इनाम देने का बहाना कर दिया था और वह प्रश्न पत्र उस से  ले लिया था। खुश हो रहे थे इस बार भी वही परीक्षा में प्रश्न पत्र आएगा।

छुटकी की नजर अपनें पिता पर थी। उसनें अपनें पिता को बोलते सुन लिया था कि मेरे स्कूल में पढ़ने वाले 2 विद्यार्थियों ने यह प्रश्न पत्र देख लिया है।यह  प्रश्न पत्र  अगर लीक हो गया तो में कहीं का नहीं रहूंगा। मैं आपके पास आ रहा हूं।  छुटकी की आंखों में आंसू थे। उसके दोनों दोस्त इस बार फेल हो जाएंगे। वह तो बच्ची थी उस वक्त उस की समझ  में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए।  वह सोचनें लगी कि मैं अपने दोस्तों को फोन करके बता देती हूं। मेरे पास तो मोबाइल भी नहीं है। क्या करूं? वह दौड़ी दौड़ी उन दोस्तों के घर पर पहुंची हबोली मेरे पापा नें  उन प्रश्नपत्रों को बदल दिया है। उन्होंने तुम दोनों को पेपर सेव करते देख लिया था। वह दोनों रोते रोते बोले अब तो हम इस बार  हम फेल हो जाएंगे। क्या करें।? मां बाबूजी घर में नहीं आने देंगे। हम तो मर ही जाएंगे। सुमित बोल लगा मैं तो यहां से छलांग लगा कर कूद  ही जाता हूं।। अच्छा होगा मैं मर  जाता। वे दोनों छुटकी को डरा रहे थे ताकि वह दूसरा पेपर लाकर उन्हें दे दी। े वह बोली तुम क्या कहते हो?  तुम कुदो मत। तुम  सचमुच मर जाओगे तो क्या  होगा? मैं अपने सामने किसी को मरते नहीं देख सकती। मेरे पापा शायद प्रश्न पत्र की दो कौपियां बना कर  रखतें हैं। वे उन्हें अपनों मोबाईल में तो अवश्य सुरक्षित रखतें हैं। वह  घर जाकर कर देखती हूं। तुम दोनों मेरे साथ मेरे घर चलो। वे दोनों दोस्त उसके घर पर चल पड़े। उन्हें वहां पर कोई भी पेपर नहीं मिला। अचानक छुटकी ने देखा कि उसके पिता मोबाइल घर पर ही भूल गए थे। जल्दी से उसने मोबाइल में देखा उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा उसके पिता ने पेपर मोबाइल में सेव किए हुए थे। उसनें उन दोनों को सारे पेपर व्हाट्सएप पर भेज दिए। दोनों नें  छुटकी को धन्यवाद दे कर कहा तुम नें हमें फेल होनें से बचा लिया। लेकिन हमारा तीसरा दोस्त अंकित तो घर जा चुका है। उसके पास तो मोबाइल भी नहीं है। सुमित बोला तुम उसकी चिन्ता मत करो। वह तो बहुत ही  होशियार है। उसे तो सब कुछ याद होता है। कोई बात नहीं हम इस वक्त उसको कैसे सूचित कर सकते हैं?

स्कूल में परीक्षा चल रही थी। सुमित और पुनीत  तो खुशी-खुशी परीक्षा में पूछे गए सवालों के उत्तर दे रहे थे। उन्होंने तो सारे के सारे प्रश्न याद किए थे।  अंकित अपने दोस्तों को देखकर हैरान था। उसके  दोनों दोस्त मजे से पेपर कर रहे थे। वह चुपचाप पानी पी कर काम चला रहा था। उसने तो कुछ भी याद नहीं किया था। उसके सारे के सारे परीक्षा के पेपर बहुत ही खराब हुए। उसके दोस्तों ने उसे नहीं बताया कि गुरु जी ने प्रश्न पत्र बदल दिए थे। जब परीक्षा परिणाम आया तो अंकित फेल हो गया था। उसके दोनों दोस्त पास हो गए थे। परीक्षा परिणाम देखकर अंकित अपनी करनी पर बहुत ही पछता  रहा था। हर बार पढ़ाई करने वाला बच्चा अपने गंदे दोस्तों की संगत में आकर एक नालायक बच्चा बन गया था। वह सोचने लगा कि मैं तो आईएएस अफसर बनने का स्वपन देख रहा था। इस बार तो पास भी नहीं हुआ। जब परीक्षा परिणाम घोषित किया गया अंकित को फेल घोषित किया गया।

वह घर की ओर जाने के बजाय नदी की तरफ दौड़ता जा रहा था। छुटकी को सारा किस्सा पता चल चुका था कि उस के दोस्तों नें उसे प्रश्न पत्र बदलनें वाली बात नहीं बताई थी। वह तो पुराना वाला प्रश्न पत्र ही याद कर के परीक्षा देंनें गया। उसको नदी की तरफ दौड़ता देख कर छुटकी ने देख लिया। उसके दोस्तों ने छुटकी को सब कुछ बता दिया था कि वह अपने दोस्त को पेपर नहीं दे पाए। छुटकी भी उसके पीछे-पीछे दौड़ी। छुटकी ने देखा कि वह नदी में कूदने  ही वाला था। उस समय एक अधेड़ अवस्था के सज्जन व्यक्ति उधर से गुजर रहे थे। छुटकी ने अंकित की सारी कहानी उन्हें बताई। अंकल पहले आप अंकित को बताइए। अंकित ने नदी में छलांग लगा दी थी। उसने जल्दी ही  अंकित को पानी से निकालकर उसके घर पहुंचा दिया। उसके माता पिता उसकी इस तरह के बर्ताव को देख कर  दुःखी थे। उनके बच्चे ने यह क्या किया। वह तो उस से न जाने कितनी अपेक्षाएं लगा कर बैठे थे। अंकित के माता पिता को भी सारी सच्चाई पता चल चुकी थी। उन्होंनें उसे प्यार प्यार से समझाया बेटा अभी भी कुछ नहीं बिगाड़ है। तुम सुधर सकते हो। भूल जाओ। बच्चों से गल्तियां हो ही जाया करती है। संगत का असर तो तुम नें देख ही लिया होगा। ़

गुरु जी को भी पता चल गया था कि यह सब उनके द्वारा बनाए गए प्रश्न पत्र का परिणाम है। अंकित के दोस्तों को तो वही परीक्षा पत्र हाथ लग गया था मगर अंकित के हाथ वह वह प्रश्न पत्र नहीं लगा था। वह पुराना पेपर याद करके चला गया। वहं इसी भरोसे पर  परीक्षा दे रहा था कि वही  पेपर परीक्षा में आ जाएगा लेकिन गुरु जी ने असलियत पता लगने पर वह प्रश्न पत्र ही बदल दिया था। छुटकी ने जब देखा कि पापा ने प्रश्न पत्र बदल दिया है तो वह अपने दोनों दोस्तों को बताने उनके घर पर गई। उन्होंने मोबाइल द्वारा दूसरा पेपर सेव कर लिया लेकिन अंकित के हाथ तो पुराना पेपर ही हाथ लगा। उसके दोस्तों को भी शाम को ही प्रश्न पत्र मिला था। उन्होंने सोचा अंकित  तो होशियार है। वह तो परीक्षा उत्तीर्ण कर ही लेगा। उन्हें क्या पता था कि वह तो पढ़ाई लिखाई छोड़ कर मिले हुए पेपरों के सहारे ही आस लगाए बैठा था। वह कब से मेहनत करना छोड़ चुका था। उसने सोचा मेरे दोस्तों के तो बिना पढ़ाई किए ही इतने अच्छे अंक आ जाते हैं। मैं तो सारे के सारे दिन पढ़कर भी इतने अच्छे अंक नहीं ले सकता। मैं भी वही याद किया करूंगा जो प्रश्न पेपर में आएंगे ज्यादा याद करने की कोई जरूरत नहीं होती।

उसके माता-पिता नें अपनें बच्चे के ऊपर निगरानी नहीं रखी। वहां भटक चुका था।

संगत का असर देखने को मिला। अंकित ने मरने के लिए कदम उठाया। छुटकी ने सब कहानी अपने पिता को कहीं। उसके पिता ने बोर्ड से दरख्वास्त कर उसको आगे बढ़ने के लिए एक अवसर प्रदान करवा दिया। उसकी सारी प्रगति रिपोर्ट को देख कर उसको एक अवसर दिया गया। अंकित को समझ में आ गया था खेलना तो जरूरी होता है लेकिन संगत का भी बच्चों पर बहुत असर पड़ता है अच्छी संगत ना मिले तो अच्छा बच्चा भी बुरा बन जाता है और उसका भविष्य धूमिल हो जाता है।

उसके माता-पिता द्वारा समझाने पर वह सुधर गया उसने स्वीकारा की संगत बच्चों को कहां से कहां पहुंचा देती है। उसने फिर से मन लगाकर मेहनत करना शुरू कर दिया और एक दिन अपने सपनों को साकार कर दिखाया।

गुरु जी ने अपने सभी शिष्यों को कहा बेटा नकल करना बुरी बात है। नकल करने से भी बढ़कर यह  जान लेना जरूरी है कि नकल करते देख कर उसे नकल करने पर कुछ ना कहना। नकल करने से इंसान पास तो हो सकता है लेकिन भविष्य में नकल करके पास होने वाला इंसान आगे चलकर कुछ भी नहीं बन पाता।

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि संगत का बच्चों पर बहुत ही अच्छा या बुरा असर पड़ता  है। हमें बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए आपका बच्चा गलत संगत में तो नहीं पड़ गया। उन्हें प्यार से और एक मित्र बन कर उसे समझाना चाहिए तभी उसका भविष्य उज्जवल होगा।

नन्ही बालिका की फरियाद

हे भगवान मुझे फेल मत करना।
मुझे अगली कक्षा में आगे बढ़ने से मत रोकना।।
माता पिता भला बुरा कह कर मेरा उपहास उड़ाएंगे।
मुझे प्यार करने से सभी परिवार जन कतराएंगे।।
मेरे दोस्त संगी साथी मुझसे बात करने से हिचकिचाएंगे।
मुझे फिसड्डी कह कर मेरा नाक भौं चिढाएंगे।। हे भगवान! एक साल की जेल मत करना।
मुझे इतनी बड़ी सजा देखकर मेरी जग हंसाई मत करना।।
प्रण करती हूं मैं हर रोज खूब मन लगाकर पढाई किया करूंगी।
कभी भी अच्छे अंक लाने से पीछे नहीं हटूंगी।। थोड़ा खेल कूद कर अपना मन पढ़ाई में लगाऊंगी।
एक दिन कक्षा में प्रथम स्थान पाकर दिखाऊंगी।।
हवाई किले बनाने के बजाय किताबों को अपना मित्र बनाऊंगी।
किताबों में लिखी गई बातों पर चिंतन मनन कर के अपना सपना पूरा कर दिखाऊंगी।।
मैं परिवार की अच्छी बेटी बनकर दिखाऊंगी। अपने माता-पिता के सपनों को साकार कर दिखाऊंगी।।
तैयारी करते समय समय सारणी के अनुसार अपने काम किया करूंगी।
अनुकूल समय और समर्पण भावना से पढ़ाई योजनाबद्ध तरीके से पूरी कर पाऊंगी।।
हे भगवान मुझे फेल मत करना।
मुझे अगली कक्षा में आगे बढ़ने से मत रोकना।
मैं अपने मां पिता की जांच की कसौटी पे सही उतर कर दिखाऊंगी।

सच्चा सुख

किसी नगर में एक राजा राज करता था ।वह अपने आप को बहुत ही अमीर समझता था ।वह समझता था कि मुझसे अमीर दुनिया में कोई नहीं है ।।मैं इस नगर का सुखी इंसान हूं ।मेरे पास धन दौलत ठाठ-बाठ सभी कुछ मेरे पास है। मैं अपने हाथों से भी बहुत दान करता हूं मैं जरुरतमंदों की सहायता भी करत हू।मुझसे ज्यादा दानी नगर में कोई नहीं होगा। एक दिन उसने अपने महल में घोषणा कर दी कि जो कोई मुझे गलत साबित कर देगा कि मुझ जैसा सच्चा सुख किसे प्राप्त है ?मेरे सिवा शायद ही कोई ऐसा हो जिस के पास इतनी धन दौलत है ।महल में सारे लोग उपस्थित हुए राजा ने अपनी बेटी को भी महल में बुला लिया था। वह भी देख रही थी कि मेरे पिता की बातों को कौन सा ऐसा व्यक्ति है जो मेरे मेरे पिता को गलत साबित कर सकता है ।वह सोचने लगी कि अगर आज किसी व्यक्ति ने मेरे पिता को गलत साबित कर दिया तो      अगर वह जवान  व्यक्ति हुआ तो मैं उस व्यक्ति के साथ में सारे जीवन भर के लिए बंध जाऊंगी ।

एक माली का काम करनेवाला माली भी वहां आकर बैठ गया ।।वह एक आंख से काना था सभी दूर दूर से लोग आए हुए थे। परंतु राजा के सामने सब की बोलती बंद हो गई ।शाम होने को आई थी अभी थोड़ा सा समय  शेष था ।कोई व्यक्ति  भी राजा को गलत साबित नहीं कर सकता था कि  ।कोई भी  इतना  धनवान नहीं है जितना कि इस नगर का राजा वीरसेन उसके सामने तो सभी लोग अपने आपको तुच्छ  महसूस करते थे ।उसी महल में काम करने वाले माली ने राजा को कहा राजा जी छोटा मुंह बड़ी बात ।राजा जी मैं आपकी बात को काटता हू। आप कहते हैं कि मुझसे ज्यादा सुखी इंसान इस नगर में कोई नहीं है और मगर आपकी सोच गलत है आप इस नगर में सुखी इंसान ही है। इस संसार में कोई एक ही सुखी इंसान होगा कोई एक बिरला इंसान ही होगा। यह तो आज आपको स्वयं ही खोजना होगा यह तुम कैसे कह सकते हो ।माली बोला में यह एक सच्चे अनुभव से कह रहा हूं ।वहां से साधुओं का झुंड भिक्षा मांगने आ गया था। राजा ने उन साधुओं को बिठाया उन्हें भिक्षा दी उनको आदर से विदा किया ।जाते-जाते उन्होंने वही सवाल उस साधु महोदय से  कहा। साधु बाबा जी आप मुझे बताओ कि इस संसार में सच्चा सुख किस इंसान के पास है। साधु बोले यह सवाल तो तुमने बड़ा अच्छा किया है। इस संसार में जिस इंसान ने सच्चा सुख प्राप्त कर लिया उसके पास किसी धन दौलत की जरूरत नहीं होती। वह इंसान संसार का सबसे धनी इंसान होता है। राजा बोले वह धनी इंसान कौन है? तुम सच्चे सुखी इंसान हो राजा ने कहा  । यह साधु महात्मा उस से कहेंगे कि तुम सच्चे सुखी  इन्सान हो। बाबा बोले यह तो तुम्हें ही पता करना पड़ेगा आज से ठीक  एक महीने बाद तुम्हें इस प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा ।तुम स्वयं इस प्रश्न को खोजो। गांव-गांव में और इस नगर के सारे हिस्सों में घूम घूम कर स्वयं पता करो। इसके लिए तुम्हें स्वयं ही मेहनत करनी पड़ेगी ।

राजा हर रोज अपने नगर में घूम घूम कर सारे ढूंढता था मगर कोई भी ऐसा व्यक्ति नजर नहीं आता था। कई लोगों के पास इतनी धन दौलत होते हुए भी कोई खुश नहीं था किसी ना किसी को कोई ना कोई दुख था कोई कह रहा था मेरे पास दौलत नहीं है कोई कह रहा था मेरे पास भी नहीं है ।हर एक व्यक्ति को यही कहते सुना कि हम गरीब हैं ।काश हमारे पास घर होता ,काश मेरे पास गाड़ी होती, अंदर से कही ना कहीं हम गरीब है । खुश होने का तो कोई नाम ही नहीं था। वह सोचने लगा मेरे पास भी इतनी धन दौलत है परंतु अंदर से तो मैं भी मायूस हूं।इस धन दौलत को कंही  कोई चुरा कर ना ले जाए।  माली ने यह बात तो कहीं ना कहीं ठीक ही कही है ।उसने माली को साथ लिया और एक छोटी सी झोपड़ी के पास जाकर रुक गए ।जब जहां पर जाकर राजा ने दरवाजा खटखटाया ।वहां पर एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी आपस में कुछ कह रहे थे ।ब्राह्मण ने ने दरवाजा खोला उनको कहा बैठ जाओ टूटी हुई चारपाई पर बैठने के लिए कहा। दोनों उस चारपाई पर बैठ गए ।ब्राह्मण ने मुंह पर उंगली रखने के लिए कहा। ठहरो !अभी हम बहुत ही जरुरी काम कर रहे हैं ।उसके बाद हम तुम्हारी बात सुनेंगे।राजा ने कहा तुम नहीं जानते मैं कौन हूं? पहले मेरी बात सुनो वह ब्राह्मण बोला होंगे आप राजा परंतु पहले हमें अपना काम करने दीजिए फिर मैं आपकी बात सुनूंगा राजा ने माली को चुपके से कहा यह ब्राह्मण तो अपने आप को बड़ा आदमी समझ रहा है ।इसको पता नहीं है किससे बात कर रहा है मै अगर ं चाहूं तो उसको सजा दे सकता हूं ।माली ने राजा से कहा चुप करो मुंह पर उंगली रखने को कहा राजा चुप हो गया राजा ने देखा ब्राह्मण और ब्राह्मणी ने एक चारपाई वहां पर रखी ।उन्होंने देखा वे दोनों एक एक बूढ़े आदमी को पकड़ कर लाए और अपने सहारे से बिस्तर पर बिठाया ।  वे दोनों  एक बुढ़िया को पकड़कर लाए ।उसे भी बिस्तर पर बिठाया । व्राहम्णी  अंदर से पानी लेकर आई ।उसने तसले में पानी डाला अपने सास-ससुर के पैर छुए। उनके पैर तोलिए से पहुंचे फिर उनके चरण स्पर्श करके उन से आशीर्वाद लिया। बूढ़े और बुढ़िया ने अपना हाथ हिलाया मानो वे दोनों उन दोनों को आशीर्वाद दे रहे थे । उन दोनों के बच्चे आकर बोले हम भी दादा दादी जी की सेवा करेंगे ।लड़का बोला पहले मैं सेवा करुंगा ।लड़की बोली नहीं पहले मैं करूंगी । ब्राह्मण और ब्राह्मण बोले तुम दोनों भी सेवा करना चलो, टोनी तुम अपने दादाजी को पंखा झलो ।और मुन्नी तू प्लेट में गर्म-गर्म ।रोटी रखी है उसको लाकर  अपनें  दादा दादी को दे दे तभी ब्राह्मणी ने कहा आज घर में सब्जी भी नहीं थी केवल रोटी में नमक लगाया है। ब्राह्मण बोला कोई बात नहीं रोटी तो है ना, यह भी बहुत  बड़ी बात है। मुन्नी रोटी लेकर आ गई । उसने एक टुकड़ा अपने हाथों से दादा  और दादी दोनों को खिलाने लगी ।ब्राह्मणी बोली मैं आज बहुत ख़ुश हूं मेरे दोनों बच्चे भी अपने दादाजी की इसी तरह से सेवा कर रहे हैं। आज तो खाने को एक ही रोटी है। कोई बात नहीं तुम खुश हो जाओ आज तो हमारे पास एक रोटी तो है हम सब इसी में खुश है ।मेहनत से और अपने बूढ़े माता पिता के आशीर्वाद से हमारे पास सब कुछ प्राप्त है ।बस यह सुखी रहे इन से बढ़कर सबसे सच्चा सुख हमें कहीं नहीं मिल सकता। इनका आशीर्वाद पाकर हम अपने आप को बहुत ही खुशनसीब समझते हैं ।यह दृश्य देखकर राजा की आंखों में आंसू छलक आए उसको आज  समझ में आ गया था कि वह आज तक अपने आप आप से अनजान था ।वह अपने आप को बड़ा ही धन दौलत वाला इंसान समझता था ।आज मैं अपने आप को बहुत ही तुच्छ इंसान समझता हूं ।मैं महल मैं ठाठ-बाट सेरहता हूं मैंने कभी अपने बूढ़े माता पिता से कभी यह नहीं पूछा ,कि तुमने खाना खाया कि नहीं ?कभी उनके चरण स्पर्श नहीं किए ?आज इन दोनों का ऐसा प्यार इतना सच्चा इंसान मैंने कभी जिंदगी में नहीं देखा। इनके पास केवल एक झोपड़ी है खाने के लिए भी एक चपाती वह भी नमक के साथ ,और भी फिर भी कितने प्यार से अपने बड़े बूढ़े मां बाप की सेवा में लगे थे ?आज मैंने महसूस किया कि मनुष्य की सच्ची धन-दौलत तो उनके माता-पिता और उनके बुजुर्ग है हमें हमें अपने बुजुर्गों का सम्मान करना नहीं भूलना  चाहिए ।उन बच्चों को जब राजा ने अपने पास बुलाया तो बेटी बोली मेरे दादा दादी मुझे जान से ज्यादा प्यारे हैं ।जब मेरे पास बहुत सारे रुपए होंगे तब मैं अपने दादाजी को दांतो का सेट लेकर आऊंगी ।उनको खाना खाने में बड़ी मुश्किल होती है।तभी लड़का बोला मैं तो अपने दादा जी के लिए एक लाठी ले कर आउंगा ।जिस से रात को लाठी ले कर चले तो वह गिरे नंही। जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तब उन की लाठी मै बनूंगा। यह सुन कर राजा अपना सा मुंह ले कर वंहा से चला गया।राजा उनके सामने अपने आप को बहुत ही तुच्छ महसुस कर रहा था।वह तो कभी भी उनकी सेवा नंही कर सका।घर आ कर राजा ने खुद अपने बूढ़े माता पिता के पास जा कर उनके चरण स्पर्श किए और नौकरों को कहा आज से मेरे माता पिता की सेवा तुम नंही करोगे।मेरी जिन्दगी की जो चंद सांसे बची हैं मैं अपने बूढ़े माता पिता की सेवा करूंगा।आज.इनकी सेवा कर मुझे जो सुखद अनुभूति हुई है वह जीवन में मुझे कभी भी नहीं हुई ।आज मानो दुनिया की सबसे सच्ची दौलत हासिल कर ली है ।उसने माली को बुलाया तुमने मुझे सच ही कहा था उसने अपनी बेटी को बताया कि वह माली सच ही कहता था तुम भी अपने दादा दादी की सेवा करो वह बोली मैं तो अपने दादा दादी के पास हर रोज आती हूं ।मैं तो उनकी उनका ध्यान रखती हूं। वह बोला पिता जी अाज मैं आपसे कुछ मांगना चाहती हूं आप माली को ईनाम तो देना चाहते हो परंतु आज मैं यह कहना चाहती हूं कि मैं इस माली को अपना जीवन साथी के रूप में स्वीकार करना चाहती हूं ।जिसने आप को नई दिशा प्रदान की है ।मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि  वह एक आंख से काना है मुझे उससे बेहद प्यार है। मैं तो वह जैसा है उसी तरह अपनाना चाहती हूं ।तब माली बोला आप मुझे ईनाम तो दे दो परंतु मैं आपकी बेटी से शादी नहीं कर सकता ।भला मैं तुम्हारी क्या सेवा कर सकता हूं । मैं  तो काना हूं। मेरी एक आंख नहीं है तुम अगर मुझे एक आंख से स्वीकार करोगी तब तो ठीक है ।मैं इस दूसरी आंख को लगवाना नहीं चाहता क्योंकि मुझे यह किसी की याद दिलाता है ।मैं बहुत ही अमीर आदमी था ।मैं अपने माता पिता के साथ रहता था ।मेरे माता-पिता ने मुझे सब कुछ दिया था धन-दौलत मैंने गलत संगत में पड़ कर उसकी धन-दौलत को एक ही झटके में उड़ा दिया। उनकी कभी सेवा नहीं की ।और उनकी धन दौलत को लुटा दिया ।और मै बिल्कुल बेघर हो गया परंतु जब वे  मुझे छोड़ कर चले गए और जब मेरे पास कुछ नहीं बचा , एक दुर्घटना में मेरी आंखें भी चली गई। तब कंही जा कर  मुझे अक्ल आई पर  तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मैंने सोचा अब मैं हमेशा ईमानदारी की जिंदगी बिताऊंगा। मेरे मां बाप मुझे सीख देकर गए थे उनकी याद अभी भी मेरे दिल में है जब भी मैं किसी वृद्ध व्यक्ति को देखता हूं तो मेरी आंखें नम हो जाती है ।पश्चाताप की आग में मेरा खून खौल उठता है। उस दिन जब आपने मुझसे पूछा तो मेरे मन में जो कुछ था मैंने आपको कह डाला परंतु अब मैं ईमानदारी  का जीवन व्यतीत कर रहा हूं। तुम जैसी भी हो मैं तुम्हें अपना जीवनसाथी चाहती  मानती हूं ।मैंने अपने चुनाव में कोई गलती नहीं की उसने मालिक के साथ शादी कर ली राजा ने भी अपना राजपाट त्याग कर अपना सारा जीवन अपने बूढ़े मां बाप की सेवा में लगा दिया।

ऐ राही चला चल(कविता)

ए राही अपने पथ पर आगे बढ़ता चल। मत डर।

निर्भीक होकर अपना काम करता चल।।

पर्वत की तरह स्थिर।

वायु की तरह द्रुतगति।

झरने की तरह निर्मल बन कर सबके दिलों में अपनी जगह बनाता चल।

हर खुशी सब पर लुटाता चल।।

दुर्गम पथ पर आगे बढ़ता चल मत डर। निर्भीक होकर अपना काम करता चल।।

कठिन रास्तों पर चलकर संघर्षों से मत घबरा फूलों के साथ कांटों को भी गले लगाना सीख।।

ए राही चलता चल चला चल मत  घबरा।

देश के लिए कुछ करके दिखा।

सपनों को धूमिल मत होने दे।

अपने सपनों को साकार होने दे।।

स्वेच्छा से शुद्ध मन से काम करता चल।

ऐ राही अपने पथ पर आगे बढ़ता चल। मत डर निर्भीक होकर अपना काम करता चल। बुलंद हौसलों से अपने देश की नैया को पार लगा।

देश से भ्रष्टाचार को समाप्त करने का बीड़ा उठा।

एक अच्छा किया काम देश के लिए एक मिसाल बन जाएगा।

तेरे दिली विश्वास से भारत का उज्जवल भविष्य बन जाएगा।

ऐ राही  अपने पथ पर आगे बढ़ता चल मत डर।

निर्भीक होकर अपना काम करता चल।

अपनें पथ पर चलता चल। चलता चल।।

किसी गरीब के आंसू पोंछ कर तो देख।

किसी असहाय अबला का दर्द बांट कर तो देख।

ऐे राही चला चल, अपनें पथ पर आगे बढता चल।

निर्भीक हो कर अपना काम करता चल।।

नटखट चम्पू

मम्मी ने चंपू को बुलाया और कहा बेटा आज मैं तुम्हें एक कहानी सुनाऊगी। कहानी सुनने के लिए तो चंपू खाना पीना भी छोड़ देता था। चंपू को उसकी मम्मी ने बताया बेटा एक बच्चा था वह बहुत ही स्वार्थी था। वह बिल्कुल तुम्हारी तरह आलसी भी था। वही कोई भी काम समय पर नहीं करता था। वह अपने माता-पिता का आदर भी नहीं करता था। ना ब्रश करना बिना नहाए हुए स्कूल जाना और झूठ बोलना इसलिए कोई उसे प्यार नहीं करता था। एक दिन भगवान उसके सपने में आए और कहनें लगे  मैं गंदे बच्चों को प्यार नहीं करता जो देर से उठते हैं और अपनों से बड़ों का सम्मान नहीं करते। और पढ़ाई भी नहीं करते। चम्पू  नें अपनी मां से कहा था कि क्या भगवान सच में छोटे बच्चों को प्यार नहीं करते क्या मुझे भी प्यार नहीं करते हैं? भगवान नें उसकी मां से कहा नहीं ऐसा नहीं। तुम सारा काम समय पर करोगे स्कूल में समय पर पहुंचोगे और अपनों से बड़ों का सम्मान करोगे तो भगवान अवश्य तुम्हें प्यार करेंगे। तुम्हें हर कोई प्यार करेगा भगवान इतनेः निष्ठुर नहीं है।  कोई बच्चा या बड़ा अच्छा आदमी कोई भी अच्छा काम करता है उसे उनके जन्मदिन पर इनाम भी देते हैं। वो खुश होते हुए बोला मां अगर मैं अच्छा बच्चा बन जाऊं तो भगवान उसे भी इनाम देगा? बेटा तुम्हारे स्कूल में विक्की है जो अपनी कक्षा में हमेशा प्रथम आता है वह  हर एक काम को बड़े ध्यान से करता है। सुबह जल्दी उठता है। बड़ों का सम्मान करता है इसलिए सब उसे प्यार करते हैं। भगवान भी उसे अच्छे काम करनें के लिए ईनाम देते हैं। चंपू के दिमाग में यह बात बैठ गई। जल्दी ही चंपू सो गया और उसे सपने में भगवान दिखाई दिए। उन्होंने चंपू को कहा कि तुम्हारी मां ठीक ही कहती है जो बच्चे समय पर सारा काम करते हैं और बड़ों का सम्मान करना अपना काम समय पर  करतें हैं मैं उनकि सारी इच्छाएं पूरी करता हूं। चम्पू नें भगवान से कहा कि मैं अच्छा लड़का बन जाऊं तो आप मुझे मेरे जन्मदिन पर उपहार देंगे। भगवान ने कहा बेटा इनाम पाने के लिए तुम्हें अपने आप को बदलना होगा।

चंपू ने भगवान जी से वादा किया कि मैं हर एक काम को समय पर क्या करूंगा। और बड़ों का आदर करूंगा और अपने  घर के कामों के इलावा कार्यों में  पेड़ पौधों को भी पानी दिया करूंगा और कूड़ा करकट कूड़ेदान में ही डाला करूंगा। मां नें चंपू को आवाज देकर जगा दिया। उसने अपनी मां को  कहा वह तो बहुत मधुर सपना देख रहा था। सपने में यह सब कुछ देख रहा थाह उसने अपनी मां को सारी बात बताई उसने अपने मम्मी को कहा कि मैं आज भगवान मेरे सपने में आए थे उन्होंने मुझसे कहा था कि अगर तुम अच्छे बच्चे बन जाओगे तो वह मेरे जन्मदिन पर मुझे इनाम देंगे। चंपू हर रोज सुबह जल्दी उठने लगा। अपने दादा जी के साथ सारे काम समय पर करने लगा उस में आए बदलाव को देखकर उसके मम्मी पापा भी खुश थे। उनकी मम्मी जी को समझते नहीं लगी कि यह चमत्कार तो  उसकी सुनाई कहानी का है।

एक दिन वह स्कूल जा रहा था तो उसे रास्ते में एक अंधा दिखाई दिया। उसने उस अंधे का हाथ पकड़कर सड़क पार करवा दी। इस कारण उसे स्कूल पहुंचने में देरी हो गई। वह अपनी अध्यापिका  को कहने लगा आज मुझे इस कारण देरी गई क्योंकि रास्ते में  मैं एक अंधे को सड़क पार करवा कर आया इसलिए आज देर हो गई परंतु आगे से ऐसा नहीं होगा। उसकी अध्यापकों ने कहा कि तुम झूठ बोल रहे हो। आज तुम कौन सा बहाना बना कर आए हो।? चंपू ने कुछ नहीं कहा परंतु वह चुपचाप खड़ा रहा वह सजा भुगतने के लिए तैयार था उसने अपने आप को बदल लिया है। हर काम अच्छे ढंग से करने लगा और मेहनत करने लगा। उसके अध्यापक यह देखकर दंग रह गए कि चंपू ने अपनी कक्षा में द्वितीय स्थान प्राप्त किया था।

अध्यापकों ने सब बच्चों के सामने उसको ईनाम दिया।  इनाम पर कर चंपू इतना खुश था कि उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। चंपू का जन्मदिन आने वाला था। वह रोज अपनी मां को कहता था कि मां क्या भगवान जी मुझे भी इनाम देंगे। मैं भी अच्छा लड़का बन चुका हूं। उसकी मम्मी ने सोचा कि अगर आज उसके जन्मदिन पर उसे कोई इनाम नहीं दिया गया तो वह मायूस हो जाएगा। इसलिए कुछ तो कुछ तो करना ही होगा। उसकी मां नें बगीचे में जहां   हर रोज फूलों को पानी देता था वहां  गोड्डा खोद  दिया ऊपर से मिट्टी से ढक दिया। स्कूल से जब  चम्पू आया तो  उसनें सारी जगह अपना ईनाम ढूंढा भगवान नें मेरे लिए कहां ईनाम रखा होगा। अपनी मां से बोला मैंने सरीखे जगह ढूंढा मगर मेरे जन्मदिन का उपहार भगवान जी ने अभी तक मुझे नहीं दिया। उसकी मम्मी ने कहा कि तुम्हारा इनाम  कहीं ना कहीं  तो है। सारे नहीं है तो शायद बगीचे में ना हो। चलो वहां खुदाई करके देखते हैं। खुदाई खुदाई करते  चम्पू को बहुत समय हो गया था। वह बोला  शायद मुझसे भगवान खुश नहीं हुए। शायद मुझ जैसे बच्चे पर वह कभी प्रसन्न नहीं होंगे। क्योंकि मैंने  आप को और पापा को बहुत सताया है। उसकी मां बोली निराश नहीं होते।क्यारी का एक कोना अभी भी बाकी है। चंपू अपनी मम्मी को बोला मां आप थक चुकी होगी। आप जाकर आराम करो मैं ही इस कोने को खोद कर आता हूं। वह खुदाई करने लगा। वहां पर खोदते  खोदते उसे वहां   उसे एक पैकेट दिखाई दिया। उसने खुशी से चिल्लाते हुए अपनी मम्मी को आवाज दी। मां आओ वहां पर एक पैकेट है। शायद इसी बक्से में भगवान जी नें उसे ईनाम रख छोड़ा है। उसने उस  बक्से को खोल कर देखा वो एक बहुत ही सुंदर सी घड़ी थी। घड़ी पाकर वह बहुत ही खुशी का अनुभव कर रहा था। उसने इतना सुंदर उपहार देने के लिए भगवान को धन्यवाद कहा। और अपनी मम्मी को सारी बात बताई। उसकी मां ने कहा बेटा आज तो तुम्हारी समझ में आ चुका होगा कि मैंने तुम्हें झूठ नहीं कहा था। वह अपनी मां को बोला मां यह उपहार तो मेरे लिए बहुत ही किमती है। यह ईनाम मेरे लिए वरदान साबित होगा। मैं हर काम समय पर ही किया करुंगा। यह घड़ी मुझे समय के अनुसार काम करना सिखाएगी।

समय का हमारे जीवन में बहुत ही किमती महत्व है। समय  पर हर काम किया जाए तो वह कभी भी असफलता नहीं होता। आ हमारी कक्षा में मैडम नें यह बात समझाई। आज भगवान नें मुझे इतना मूल्यवान उपहार दे कर मुझे एहसास दिला दिया कि वह भी बच्चों की बात सुनतें हैं। वह हमेशा समय पर ही सारे काम किया करेगा।

आज तो मां आप घर में पार्टी दे ही डालो क्योंकि आज मैं अपने घर को सजाकर अपने दोस्तों को अपने जन्मदिन पर बुला लेता हूं।