दादा जी का रहस्यमयी तोहफा

जतिन के दादाजी बूढ़े हो चले थे। वह सोचनें लगे मैं इतना खुश नसीब हूं कि मैंने अपने जीवन के 90 वर्ष में प्रवेश कर लिया है। मेरी सभी इच्छाएं भगवान ने पूरी कर दी हैं। हर साल में अपने परिवार वालों को बहुत सारे उपहार  देता हूं आज भी अपना जन्मदिन मना कर सारे परिवार  को  खुश कर दूंगा। मैंनें जीवन के 90 वर्ष अच्छी ढंग से बिता दिए। मेरे परिवार के सदस्य सभी मुझसे इतना स्नेह करते हैं सभी ने मुझे इतना  भरपूर प्यार  दिया जिस कारण इस दिन तक मैं जीवित रह पाया। सबसे ज्यादा  प्यार तो  वह अपने पोते से करता हूं। मैं अपने पोते को  जब तक देखता नहीं तब तक मेरी दिनचर्या  शुरू ही नहीं होती। वह भी 15 वर्ष का हो गया है। मैं इस बार  अपना जन्मदिन बड़े धूमधाम से मनाना चाहता हूं। बाद में क्या पता मेरे जीवन की अंतिम घड़ी में अपने पोते को देख भी पाऊं  या नहीं सभी लोग कहेंगे बूढ़ा सठिया गया है। कहां अपने पोते का जन्मदिन मनाना चाहिए? और वह अपना जन्मदिन मनाने चला है। चाहे कुछ भी हो जाए अपना जन्मदिन अपनी तरीके से मनाएगा। इसके लिए उसने सब तैयारियां कर ली।

चारों तरफ जन्मदिन की धूम थी। सभी लोग सोच रहे थे कि जतिन का जन्मदिन है। परिवार के लोगों को जन्मदिन पर बुलाया गया था। परिवार के सभी सदस्यों को दादा जी ने कुछ ना कुछ उपहार के रूप में दिया। किसी को घड़ी, किसी को कैमरा, किसी को मोबाइल और बहुत सारे उपहार। जतिन की नजर अपने दादाजी पर थी। वह अपने मन में सोच रहा था सभी को दादाजी  कुछ न कुछ दे रहे मुझे तो ना जाने आज क्या मिलने वाला है? सभी लोग जन्मदिन की दादा जी को बधाई दे रहे थे। उनके बूढ़े दादा जी एक शानदार मेज पर हर आने-जाने वाले का स्वागत बड़ी धूमधाम से कर रहे थे। उन्होंने प्यार भरी आवाज में जतिन को पुकारा जतिन जल्दी से दादाजी की ओर गया। दादा जी ने एक छोटा सा मटका उसे उपहार में दिया। उसकी सारी खुशी  गम में बदल गई। मेरे लिए  बस यह छोटा सा मटका। अपने आप को संभालते हुए धीरे-धीरे दादा जी से  वह मटका ले लिया। दादा जी कहने लगे मेरे गले नहीं लगोगे। दादा जी के गले लगते ही उसके आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा।  दादा जी बोले अरे पगले ऐसे भी क्या कोई रोता है? चुपचाप अपने आंसू  रोक कर अपनें आप को सम्भाला और कहा धन्यवाद। यह तो खुशी के आंसू है। उसके दादाजी  ने कहा मैं  जन्मदिन के उपहार के रूप में  तुम्हे यह छोटा सा मटका दे रहा हूं। जब भी  तुम समस्याओं से घिरे होंगें तभी तुम इस मटके को खोलना।

यह मटका तुम्हारी हर  विपत्ति में रक्षा करेगा उस समय तक मैं तुम्हें देखने नहीं आऊंगा। यह तो मेरा सौभाग्य है कि मैं इतने लंबे जीवन का पड़ाव खुशी-खुशी पार कर गया।

दादा जी से सचमुच ही वह बहुत प्यार करता था। दादा जी को देखकर उसका गुस्सा ना जाने कहां छू मंत्र हो जाता था।   वह चुपचाप सब से नजरे बचा कर अपनें कमरे में चला आया। जैसे ही वह कमरे में आया   दादा जी उसके कमरे में आकर उसके सिर पर हाथ फेरने लगे तो उसका  सारा गुस्सा गायब हो  गया और मुस्कुराकर दादा जी से बोला चलो खाना खाने चलते हैं। मैंने आपको कुछ नहीं कहा एकदम सीधा कमरे में चला आया। मैं इस उपहार को रखने आया था। आपको बुरा लगा होगा चलो हम दोनों  चल कर खाना खाने चलते हैं। दादाजी को एक कोनें  में ले गया और अपनें दादा जी के पास बैठ गया। उसके दादाजी की आंखों से कम दिखाई देने लग गया था।

जतिन ने अपने हाथ से पकड़ कर  अपनें दादा जी को  मेज पर बिठाया। खाने की मेज पर खाना मंगवाया। खाने की मेज पर दोनों बैठकर खाना खाने लगे। पार्टी में आए मेहमान दोनों के प्यार को देखकर फूले नहीं समा रहे थे। जतिन अपने हाथों से दादाजी को अपनें हाथ से खाना खिला रहा था। उनके हाथ से केक के टुकड़े मेज पर बिखर गए। जतिन नें रुमाल से उनका मुंह पोंछा और मेज  को साफ कर उन्हें पकड़कर एक और सोफे पर बिठा दिया। सभी लोग जन्म का उत्सव ले रहे थे। जतिन नें दादा जी का हाथ पकड़ा और उनके साथ डांस किया। सब लोग हैरत भरी नजरों से उनके प्यार को देख रहे थे। जतिन नें अपने मन में विचार किया कि दादाजी ने इतने प्यार से इसे वह मटका दिया है इस मटके में उनका प्यार छुपा हुआ है। इस मटके को मैं संभाल कर रख दूंगा। वह मटके को हमेशा संभाल कर रखता था।

अपने कमरे के पास ही एक उसकी एक छोटी सी अलमारी थी जिसमें उसकी किताबे पड़ी रहती थी। वह उन किताबों को किसी को भी हाथ नहीं लगाने देता था। उसने वह मटका अपनी अलमारी के पीछे रख दिया। उनका परिवार रर्ईस खान दान था। नौकर चाकर गाड़ी बंगला सब कुछ था। एशोआराम से दिन व्यतीत हो रहे थे। जतिन भी अपनें पिता के साथ व्यापार करनें लग गया था। पच्चीस साल का हो चुका था। उसके माता पिता का व्यापार भी अच्छा चल रहा था। धीरे धीरे समय पंख लगा कर उड़ गया। एक दिन उनको व्यापार में बहुत घाटा हुआ। जतिन के पिता को बहुत गहरा सदमा लगा। वह इसी गम में बिमार हो गए। जतिन पर दुःखों का पहाड़ टूट गया।  किसी तरह  उसने अपनें आप को सम्भाला। अपनें पिता को इस सदमें से बाहर निकाला। वह धीरे धीरे ठीक हो गए

 

काफी साल गुजर गए। वह तो दादा जी के द्वारा दिए गए उपहार को भूल ही गया था। उसके दादाजी भी अब इस दुनिया से अलविदा कर चुके थे। उसके माता-पिता ने उसकी शादी एक रईस खानदान में तय कर दी थी। धीरे-धीरे समय बीतने लगा था। वह भी एक कंपनी में काम करने लग गया था। उसके पिता भी उसकी व्यापार में देखभाल किया करते थे। कभी कभी उसका हाथ  बंटा दिया करते थे। उसके माता-पिता ने उसकी शादी एक रईस खानदान में तय कर दी थी जतिन जिस लड़की से शादी करना चाहता था वह भी रईस खानदान की बेटी थी पल्लवी ने घर में जतिन के बारे में कभी किसी को कुछ भी नहीं बताया था। जतिन को व्यापार में घाटा हुआ। उनका व्यापार सफाचट हो गया। सिवाय एक घर के  इलावा उनके पास कुछ भी नहीं बचा। उनका सब कुछ बिक गया। पल्लवी ने घर में बताया कि वह एक लड़के से प्यार करती है। उसके माता-पिता ने कहा रिश्ते के लिए तभी हां करेंगे यदि वह अपने बराबरी का होगा।  जतिन एक रईस खानदान का बेटा है ऐसा पल्लवी नें अपनें माता पिता को बता दिया। उनकी इच्छा थी कि हम तो रिश्ता अपने बराबर बालों में ही करेंगे। जतिन सोचनें लगा उसके साथ पल्लवी अब शादी नहीं  करेगी। उसके माता-पिता उसकी शादी कभी भी नहीं होने देंगे। वह बहुत चिंतित रहने लगा। उसके पिताजी भी उसकी मदद नहीं कर पा रहे थे। पल्लवी जतिन को बोली कोई बात नहीं मैं तुम्हारे साथ ही शादी करुंगी। तुम्हे अपने जीवन साथी के रूप में ही स्वीकार करूंगी। मेरे माता-पिता मेरी शादी के लिए मना करेंगें  तो भी मैं तुमसे ही शादी करूंगी वर्ना कुंवारी रहूंगी। समय बीतता चला गया परंतु फिर भी उनका व्यापार अच्छे ढंग से नहीं जमा।

पल्लवी के माता पिता ने शादी के लिए रिश्ता भेजा। जतिन सोच रहा था कि जब उनको सारी असलियत का पता चलेगा तो वह शादी के लिए कभी भी तैयार नहीं होंगे मैं क्या करूं, पल्लवी उसके घर आकर बोली की मैं घर जाकर क्या कहूं? जतिन बोला कि मैं शादी ही नहीं करुंगा। आज अगर दादाजी जिंदा होते तो वह भी मेरी शादी होते देखते। वह कितने खुश होते? आज तो मेरे पास तुम्हें देने के लिए भी कुछ नहीं है इसलिए तो मैं तुमसे शादी के लिए इंकार करता हूं। तुम घर  जाकर साफ साफ मना कर दो कि वह अभी शादी के लिए तैयार ही नहीं है। जाकर सारा वृतान्त  पल्लवी नें अपनें घर में कह दिया। पल्लवी नें अपनें माता पिता को कहा कि मैं भी अभी शादी नहीं करना चाहती। मैं तो जतिन से ही शादी करूंगी। वह  जब शादी के लिए तैयार होगा तभी मैं शादी करूंगी वर्ना मैं कुंवारी ही रहूंगी। उसके पिता बोले नहीं हम तुम्हारी शादी कहीं और तय कर देते हैं। तुम्हें हमारी बात अवश्य माननी होगी।

एक दिन जतिन उदास होकर अपने दादाजी की याद कर रहा था। मेरे दादाजी ने कहा था कि जब तुम समस्याओं से घिरे होंगे तो मुझे याद करना। उसे अचानक  अपनें दादा जी द्वारा दिए मटके की याद आई। उसने जल्दी से अलमारी खोली और उसमें से मटका निकाला। मटकी को जैसे ही खोला तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं छोटे से मटके में ना जाने कितने हीरे थे। उसकी आंखों से   आंसूंओं की झड़ी लगता गई। इतने हीरे देख कर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। उसकी पिता की भी आंखों में आंसू थे। जल्दी से जतिन तैयार होकर पल्लवी के घर पहुंचा। पल्लवी के माता-पिता उसे देखकर बहुत ही खुश हुए बोले बेटा तुमने इतने दिनों तक हमें कोई खबर नहीं दी। क्या तुम पलवी से शादी नहीं करना चाहते हो? वह बोला नहीं मैं तो सिर्फ पल्लवी से ही शादी करूंगा। आप शादी की तारीख तय कीजिए। पल्लवी भी खुश होकर अपने कमरे में भाग गई। उन हीरो के बदले में उसे काफी रुपए मिल गए थे जिससे उसकी शादी का सारा खर्चा निकल गया था और बाकी रुपयों को उसने अपने व्यापार में लगा दिया।

बारात दरवाजे पर पहुंच चुकी थी उसकी मां आकर बोली बेटा जल्दी करो फेरों का समय होने वाला है। जल्दी ही जतिन अपने में कमरे में गया वहां पर दादाजी की तस्वीर के सामने उन्हें मुस्कुराता देखकर बोला। दादाजी आज मेरी शादी होने जा रही है। एक दिन   आप नें सच ही कहा था  कि जब तुम समस्याओं से घिरे होंगे तब तुम इस मटके को खोलना। सचमुच में ही मैंने जब इस मटके को खोल कर देखा मुझे आप का ढेर सारा आशीर्वाद मिला। आप के बारे में अपनें मन में ना जाने कितनी गल्त धारणा  बनाई थी कि आप नें मुझे  छोटा सा उपहार दिया। इतना मूल्यवान तोहफा आज  मुश्किल की घड़ी में हमारे काम आया। मैं तो इस मटके को तोड़ कर फेंकना चाहता था और सारा गुस्सा आप पर निकालना चाहता था। मगर आपने तो अपनी महानता का उदाहरण आज भी आशीर्वाद के रूप में उपहार देखकर चुका दिया। मेरी बिखरी  नैया को संवार दिया। पल्लवी की शादी जतिन से हो गई थी। पल्लवी को जतिन ने बताया कि उसके दादाजी उसे मूल्यवान तोहफा देकर गए हैं जिसका कि कभी भी मूल्य नहीं चुकाया जा सकता। आज अगर वह जिंदा होते तो अपनी आंखों के सामने  अपने पोते की शादी होते देखते। जहां कहीं भी हो उनकी आत्मा को शांति  मिले। वह पल्लवी को दादा जी की फोटो के सामने ले कर गया और बोला तुम भी उनके चरण छू कर आशीर्वाद ग्रहण करो। वह हमें  आशीर्वाद दे कर हमारी जिंदगी खुशियों से भर चुके हैं। पल्लवी नें देखा तभी एक फूल उन दोनों की झोली में आ कर गिरा। दोनों बहुत ही खुश थे उन को दादा जी का आशीर्वाद भी मिल गया था। वे अपनें परिवार सहित खुशी खुशी रहने लगे।  Continue reading “दादा जी का रहस्यमयी तोहफा”

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एक बनिया था। वह बहुत ही कंजूस था। एक छोटे से कस्बे में रहता था। उसका काम था रुपयों को इकट्ठा कर के संजो कर रखना। हरदम इसी ताक में रहता था कि मैं जितना भी  कमाऊं  वह सब का सब मेरी तिजोरी  में भरा रहे एक भी रुपया इधर उधर न हो। वह इसी धुन में  उन जमा किए रुपयों को  पोटली में इकट्ठा करता रहता था। उस बनिए का नाम था चिंतामणि। जैसा नाम था  वैसी ही उस की बुद्धि थी। वह  हमेशा चिंता में  घिरा रहता था। वह हमेशा सोचता था कि ज्यादा से ज्यादा अपने धन को इकट्ठा कर सकूं। समय पडनें पर उनको खर्च कर सकूं।  उसको रुपयों का ऐसा लालच था तथा कि कभी भी बड़ी से बड़ी मुसीबत आनें पर अपनें परिवार  के इलावा किसी को उधार नहीं देता था और ना ही खर्च करता था। अपनें घर वालों पर भी खर्च करता तो बहुत ही ज्यादा जरुरत पड़ने पर।  अपनी   पत्नी पर रोब झाड़ना उसकी आदत सी बन गई थी। वह अपने पति से कहती कि मुझे ₹500 दे दो तो वह कहता अभी नहीं। तुम्हें क्या खरीदना है? उसकी पत्नी अगर कहती कि मुझे कपड़े खरीदने हैं तो पहले वह कहता अपने सभी कपड़े मुझे दिखाओ। उसके पास तीन सूट से ज्यादा होते तो वह उसे कभी खरीदने नहीं देता था। उसकी मर्जी के बिना वह रुपयों को हाथ भी नहीं लगा सकती थी। वह हर दम अपने पति से परेशान रहती थी। वह अपने पति को कहती थी कृपया आप क्या रुपयों को कब्र में अपने साथ लेकर जाओगे। ऐसा कहने पर वह अपनी पत्नी के साथ दो-तीन दिन तक बात नहीं करता था। उसके घर का माहौल हर वक्त गंभीर रहता था। कोई किसी से खुलकर बात नहीं करता था। उसका बेटा भी अपने पिता से परेशान था। वह भी अपने पिता से जब भी रुपए मांगता तो उसे कभी भी रुपया नहीं देता रुपया देते वक्त प्रश्नों की बौछार लगा देता। तुम्हें किस लिए चाहिए? इनका क्या करना है? थोड़े दिन पहले ही तो तुम्हें रुपए दिए थे। उनका क्या करोगे? अपने बेटे को भी अच्छे कपड़े लेकर नहीं देता था। एक दिन स्कूल की अध्यापिका ने अंशुल से कहा कि बेटा अपने घर से इस बार 5000 रुपये डोनेशन लानी है। स्कूल में तुम ही एक बड़े व्यापारी के बेटे हो। घर में कहना मैडम ने मंगवाए हैं।

अंशुल नें घर आ कर अपने पापा से कहा पापा मैडम ने आपसे डोनेशन मांगी है। उसके पापा ने ना जाने उस दिन अंशुल को बहुत ही खरी खोटी सुना दिया। क्या रुपया  पेड़ो पर उगता है जो डोनेशन दे दूं। अपनी जेब को फाड़ कर या अपना गला घोटकर मेहनत से कमाई गई दौलत एक मिनट में  तुम्हें दे डालूं। मैं कभी ऐसा नहीं कर सकता। बहुत जोर जोर से गर्ज कर  अपने बेटे से कहा। कह देना हमारे पास कोई फालतू रुपया नहीं है।रुपया  बडी़ ही मुश्किल से कमाया जाता है इसके लिए बहुत ही संघर्ष करना पड़ता है। तुम क्या जानो? तुम तो बस रुपया खर्च करना जानते हो। इसके सिवा तुम्हें और क्या आता है? अंशुल अपनी करनी पर पछता रहा था। उसने क्यों इतना बड़ा अपराध कर डाला जो पापा से रुपए मांगने चला। आज के बाद अपने पापा से कभी  पाई भी उधार में नहीं दूंगा। जितना नया घुमाऊंगा वहीं खर्च करुंगा घर आकर अंशुल को अपने पापा के तेवर अच्छे नहीं लगे। उसका मन भी बहुत उदास हो गया था। उसकी मां ने जब उसका उदास चेहरा देखा तो बोली अंशुल बेटा तुम्हें ऐसा क्या हो गया है तुम हर दम  बुझे बुझे से रहते हो क्या कारण है?  वह बोली  मां कोई बात नहीं है। मां से कोई बात नहीं छुपाई जाती। मां  मैं अपने अपने पिता के व्यवहार से परेशान हूं। मेरी मैडम  ना जाने क्या क्या कहेगी? वह तो मुझको सदा प्यार ही करती है। अंशुल की मम्मी बोली  बेटा तुम्हें जिस वस्तु की भी जरूरत हो मुझसे मांग लिया करो। अपने पापा की आदत को तुम जानते ही होंगे। उनसे रुपया कभी मत मांगना। अंशुल बोला ठीक है मां।  अंशुल अपने दोस्त अक्षय के घर चला गया था। उस सें अक्षय उम्र में उस से एक साल बड़ा था। उसका पक्का दोस्त था। अक्षय की मां गरीब घर से थी। कभी भी अपने बच्चों को अच्छी चीजें उपलब्ध नहीं करवाती सकती थी। अक्षय इस बात की कभी परवाह नहीं करता था। उसकी इसी आदत के कारण वह  अपनें दोस्त से बहुत ही प्यार करता था । अपने दोस्त  से हर बात कहता था। उसका दोस्त भी उससे कोई बात नहीं छुपाता था। स्कूल में मैडम ने आते ही अंशुल को कहा कि तुमने अपने पिता से सारी बातें कह दी  होंगी। वह मैडम से छुपाना चाहता था कि उसके पापा ने उसे रुपए नहीं दिए मगर उसने कहा वह हो मैं भूल ही गया। मैडम ने अंशुल  को बिठा दिया। अंशुल डर तो गया मगर आज उसने पहली बार झूठ बोला था। वह झूठ बोलना नहीं चाहता था। वह अपने मन में सोच रहा था कि इस बार उसने मैडम की बात नहीं मानी तो शायद मैडम मुझे माफ  नहीं करेगी। मुझे डांट फटकार करेगी।  अगर ऐसा कुछ नहीं हुआ मैडम ने उसे अपने पास बुलाया और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा बेटा क्या बात है? तुम उदास क्यों हो? तुम्हें क्या हुआ है? वह बोला मैडम आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है। मैडम प्यार भरे शब्दों में बोली। तुम आज स्कूल क्यों आए हो? घर पर ही आराम कर सकते थे। अंशुल ने तो सपने में भी ऐसी बात नहीं सोची थी कि उसकी मैडम उसकी बातों को सुनकर डांटे कि नहीं बल्कि प्यार करेगी वह अपने मन में सोच लगा चलो एक दिन और सही आज तो बच गया। कब तक बचता रहेगा। एक झूठ के पीछे ना जाने इंसान को कितने झूठ बोलने पड़ते हैं। इन्सान को कभी भी झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए। झूठ बोल कर वह अपने आप को भी चिंता में डालता है। और अपनी रही सही  जिन्दगी भी बर्बाद करता है।  सच का सामना करने के लिए संघर्ष तो करना पड़ेगा। सच बोलकर उसे चाहे कोई जो कुछ समझे उस पर किसी का दबाब  नहीं रहता। स्कूल में फिर आज  झूठ का सहारा लिया। घर में माता पिता को क्या कहेगा? उसके दोस्त का घर आ गया था। उसके दोस्त का घर अंशुल के घर के बिल्कुल विपरीत था। वह छोटे से घर में रहता था। उसकी मां बहुत ही नेक थी। उसके घर पहुंच कर अंशुल थोड़ा मुस्कुराया आंटी इसके सिर पर हाथ रख कर उसे बैठने को कह रही थी। आंटी की मुस्कुराहट  को देख कर वह  भी अपने आप को रोक नहीं पाया चेहरे पर नकली हंसी होठों पर लाकर बोला। आप कितनी अच्छी हो। आप कैसे किसी के चेहरे को पढ लेती हो।

 

अक्षय अपनी मां से बोला यह मेरा पक्का दोस्त है। उसके पापा एक व्यापारी है। उनकी एक बहुत ही बड़ी दुकान है। अक्षय की मां बोली बेटा तुम्हें कहां बैठाऊं?  तुम तो एक बड़े घर के बेटे हो। हमारे घर पर तो बैठने के लिए कुर्सी तक  भी नहीं है। उसने उसेे एक पटना  ला कर दिया। अंशुल सोचने लगा इस पर बैठकर बैठकर सकुन तो मिल रहा है। घर में तो पापा ना जाने क्या  बखेड़ा खड़ा कर देंगे। उसने सारी बातें अपने दोस्त को बताई। मेरे पिता के पास ढेर सारे रुपये हैं  मगर वह तो मरते वक्त गांठ बांधकर अपने साथ ले जाएंगे। इतना धन होते हुए भी हम उस धन का सही इस्तेमाल नहीं कर सकते। कल की ही बात है मैडम ने मुझसे कहा कि बेटा तुम साफ-सुथरी वर्दी पहन कर क्यों नहीं आते? मेरे पिता ने मुझे वर्दी सिला  तो दी वह भी केवल एक। हर रोज उसे ही पहन कर ही स्कूल आना पड़ता है। मेरी वर्दी से तो तुम्हारी वर्दी ज्यादा अच्छी है हम तो तुम गरीब लोगों से भी गए गुजरे हैं मां बेचारी पापा को कभी कुछ नहीं कहती। उसे साड़ी खरीदनी व थी। पिछले हफ्ते की बात है मैंने और मां ने पिता को कहा कि आज हम आपके साथ बाजार चलेंगे। आज तो बहुत ही बढ़िया दिन है। हमें कुछ ना कुछ दिला देंगे।अंशुल बोला पापा हमें आज  खाने को कुछ दिला दो। वे बोले बेटा बाजार की चीजें अच्छी नहीं होती। घर की बनी चीजें खानी चाहिए। आज  पिज्जा बनाने का सामान ले कर चलतें हैं।   पिता जी बोले ऐसी चीजें खाकर अपना पेट नहीं भरते। ऐसी चीजें पाचन क्षमता को कमजोर करती है। जब मैंने छाता खरीदने की फरमाइश की तो वे एक छाता ठीक कराने वाले की दुकान पर जाकर रुक गए। वहां  पर जाकर छाता ठीक करनें वाले को बोले तुम्हें कल ही किसी कबाड़ी नें छाता बेचा था। मैं वह छाता खरीदना चाहता हूं। बोलो कितने का दोगे? छाता ठीक करने वाला बोला। सेठजी क्यों मजाक करते हो? मैं आपको जानता हूं। आप चिंतामणि बनिए हो। आप मुफ्त में यह छाता ले ले जाइए। आप से रुपया क्या लेना। उन्होंने छाता बनाने वाले को धन्यवाद दिया और कहा कि मैं अपने बेटे को यह छाता दिलवाना चाहता हूं। नया छाता दिला कर क्या करूंगा? नया छाता यह गुम करके आ जाएगा। इसके लिए तो यह छाता ठीक है। उस दिन से मेरा मन खट्टा हो गया। मां को भी एक भी साड़ी दिला कर नहीं दी।

अक्षय की मां आकर बोली बेटा मायूस नहीं होते। लगता है घर में तुम  झगड़ा कर आए हो। बच्चों को गुस्से की तरफ ध्यान नहीं देना चाहिए। तुम्हें तो बस पढ़ाई की तरफ ध्यान देना चाहिए। वह बोला अच्छा आंटी। आंटी को अलविदा कह कर वह घर की ओर चल पड़ा।

 

उसका दोस्त अक्षय बहुत ही चतुर था। वह कहने लगा मैं तुम्हें एक योजना बताता हूं। जिससे तुम्हारे पापा को शायद सही दिशा मिल सके। अंशुल बोला   दोस्त तुम ने मुझसे इस बार   फीस की फरमाइश की थी। तुम्हें फीस भरने के लिए ₹500 चाहिए थे। तुम्हारे पिता तो इतने कंजूस है कि वह तुम्हें क्या देंगे?

कोई बात नहीं मैं तुमसे नाराज नहीं होता। तुम्हारे लिए दुआ करूंगा। मेरे मन में एक योजना आई है। तुम्हें उस योजना के अनुसार काम करना होगा। वह बोला यार जल्दी बता वह योजना क्या है? अक्षय  बोला  तुम मुझे अपने घर ले चलो और कहना कि यह मेरा दोस्त  है। यह एक रईस बाप का बेटा है।  अंशुल बोला मैं समझ गया। ऐसे कहूंगा यह बहुत ही साधारण सा इंसान है। इतना रईस होते हुए भी वह बहुत ही सादे कपड़े पहनता है उसका दोस्त बोला तुम कहना  वह  एक व्यापारी केएन दुग्गल का बेटा है। केएन दुग्गल वह बहुत ही बड़े व्यापारी हैं। उनसे ज्यादा बड़ा व्यापारी तो इस कस्बे में कोई  और नहीं होगा तुम कस्बे का नाम नहीं बताना। तुम पूरा नाम भी नहीं बताना।  सिर्फ कहना के एंन दुग्गल। वह अपने साथ अक्षय को घर ले आया। घर आकर   बोला पापा मुझे आज देर हो गई। आज मैं अपने दोस्त की कार में घर आ गया। उसके पिता बोले किस की कार में। वह बोला यह मेरा दोस्त अक्षय है। इसके पापा के एंन दुग्गल हैं। अक्षय ने उसको बता दिया था कि इस कस्बे में दुग्गल नाम के  6-7 व्यापारी हैं। उन सब के पूरे नाम अलग-अलग हैं।अंशुल के पापा चौंक पर बोले। कौन दुग्गल?? वह बात को टाल कर बोला। पापा मैं अपने दोस्त को अपना कमरा दिखाता हूं। वह जल्दी में अपने दोस्त को अपना कमरा दिखाने चल पड़ा। उसके पिता बोले बेटा अपने दोस्त की खातिरदारी करो। उन्होंने अपनी पत्नी को कहा कि शानदार खाना बनाया जाए। उनकी पत्नी हैरान होकर अपने पति की तरफ देखकर अपने बेटे से। बोली आज चांद कहीं उल्टा तो नहीं निकल आया।  मां उस के लिए  खाना बनाओ। वह मन ही मन खुश हो रहा था। उसकी मां खाना बनाने  रसोई में चली गई।  अंशुल अक्षय को बोला तुम्हारा भी जवाब नहीं। आज तो झूठ बोल दिया। मगर झूठ बोलकर नींद चैन सब गायब हो जाता है। अगर मेरे पापा को पता चला कि  तो और  हमारा यह झूठ पकड़ा गया तो पापा मुझे भी घर से निकाल देंगे।

मुझ एक बात आज पता चल गई है कि रुपए की इस दुनिया में कितनी कीमत है। जिसके पास रुपया पैसा है उसकी सब इज्जत करते हैं। जिसके पास कुछ नहीं होता उसे तो बड़े लोग इज्जत ही नहीं देते। उसे दीमक की तरह बाहर निकालकर फैंक देतें हैं।  अक्षय बोला आज मैं तुम्हारे साथ गरीब बनकर पेश आता हूं तो  तुम्हारे पिता  मुझे घर से निकाल देगें। वह कैसे।

मेरी  फीस अपने पापा से ले  कर देख।  अक्षय बोला यह नाटक फिर कभी कर लेगे। ंअंशुल बोला शायद मेरे पापा तुम्हारी जरूर सहायता कर दे। हो सकता है हम घर के लोगों की सहायता नहीं करते हों।

एक दिन अंशुल  अपने दोस्त अक्षय को लेकर आया बोला पापा यह मेरा दोस्त बहुत ही गरीब है। इसके पास फीस के लिए रुपए नहीं है। आप इसकी फीस के रुपए दे दो। अंशुल के पापा बोले मैंने क्या कोई रेस्टोरेंट खोल रखा है। जो भिखारियों को रुपए बांटता फिरुं ।  निकल जाओ, जल्दी निकलो यहां से। उसकी  मैडम भी घर पहुंच गई थी। घर आकर बोली मैंने तुम्हारे बेटे से डोनेशन मांगी थी। वह घर आकर बोली आपके बेटे ने कहा था कि आप घर आकर डोनेशन ले जाना। मैं घर आ गई। अंशुल के पैरों तले जमीन खिसक गई। आज तो भयंकर तूफान आने ही वाला है। मेरे पिता तो उन्हें डांटने  ही ना लगे। उसके पिता बोले आप लोगों का कहना डोनेशन नहीं मिलेगी। यहां क्या आप नें हर रोज ठगने का धंधा बना रखा है। मेरे पास कोई डोनेशन नहीं है। हमने अच्छा स्कूल देखकर अपने बेटे को इसलिए दाखिल करवाया था कि हमारा बेटा एक  नेक इंसान बनेगा। यहां भी ठगी का धंधा है। मैं जल्दी ही अपने बेटे को आपके स्कूल से निकाल ही लूंगा। मेरे पास कोई डोनेशन नहीं है।

मैडम का चेहरा फीका पड़ गया था। वह दबे पांव वहां से चली गई।अंशुल  घूर  कर अपने पिता की तरफ देख रहा था। उसे अपने पिता एक क्रूर सिंह की तरह नजर आ रहे थे। आज तो उसके पिता ने उसकी स्कूल से छुट्टी करवा दी ही समझो।

अक्षय बोला हम एक योजना बनाते हैं। हम तुम्हारे पापा को सुधार कर ही रहेंगे। एक दिन जब  अंशुल के पापा घर आए तो देखा  घर में उनका बेटा गणेश की मूर्ति के सामने खड़ा होकर प्रार्थना कर रहा था। हे भगवान! मेरे पिता को सद्बुद्धि दे! तुम्हें मेरे हाथ से आज दूध पीना ही पड़ेगा। उसके पिता हैरान होकर उसकी तरफ देख रहे थे। गणेश की मूर्ति को दूध पीते देखकर दंग रह गए। उसने गणेश की मूर्ति को दूध पिलाना शुरू किया। देखते ही देखते मूर्ति सारा का सारा दूध पी गई।। थोड़ी देर बाद उसके पिता अंशुल को बोले बेटा तुम तो भगवान के बहुत ही बड़े उपासक हो। तुम्हारे हाथ से तो सचमुच  ही गणेश जी ने दूध पी लिया। यह तो बड़ा चमत्कार है। वह बोला पापा आप  भी पिला कर देखिए। वह बोला आप तो रहने ही दीजिए। आपके हाथ से गणेश जी कभी दूध नहीं पाएंगे। जो कभी भी किसी की फरमाइश को पूरा नहीं करते। कंजूस लोगों की तरह भगवान कभी भी नहीं देखता। वह बोला बेटा तू ऐसा क्यों बोल रहा है? देखना मेरे हाथ से भी भगवान दूध पिएंगे। उसने ना जाने कितनी बार दूध पिलाने की कोशिश की मगर गणेश जी ने दूध नहीं पिया। वह चिंता में पड़ कर बोला कल फिर कोशिश करूंगा। जैसे ही  उसके पिता वहां से गए उसका दोस्त पलंग के नीचे से कमरे में आकर बोला। देखा मेरा कमाल। अंशुल अक्षय से बोला तूने यह किया कैसे? अक्षय बोला यह सब कैपिलरी एक्शन केशिका क्रिया का कमाल है। मैंने मूर्ति में ऐसा पत्थर रखा था जिसमें कैपिलरी एक्शन क्रिया द्वारा मैंने यह सब किया। जिससे दूध पिया जा रहा था और मूर्ति दूध पी रही थी। तुम उस इस पत्थर को निकाल दो तो यह  मूर्ति कभी भी दूध नहीं पी सकती। कभी सीधी उंगली से घी नहीं निकलता तो उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है। दूसरे दिन फिर उसके पापा आकर बोले आज मैं नहा धो कर आया हूं। खाना भी नहीं खाया है। आज मेरा व्रत है। उसने मूर्ति को दूध पिलाना शुरू किया ही था तो अचानक आवाज आई। अरे मूर्ख! मेरी पूजा करने चला है। जब तू अपने घर वालों की कोई भी इच्छा पूर्ण नहीं कर पाया वह मेरी क्या इच्छा पूरी करेगा? वह  नहीं भगवान जी ऐसा नहीं है मैं बहुत सारा धन कमाना चाहता हूं इसलिए धन इकट्ठा कर रहा हूं ताकि मैं अपने परिवार वालों को खुशियां दे सकूं  भगवान बोले ऐसी खुशियों का तुम क्या करोगे, जिससे घर वाले खुश नहीं होंगे। हो सकता है जब तुम्हारे पास बहुत सारा धन इकट्ठा हो तुम्हारे पति और बच्चे अपनी इच्छाओं का गला घुट कर मर ही जाएं।

धन कमाना बुरी बात नहीं होती। धन का सदुपयोग सही ढंग से करना चाहिए। यह नहीं कि घर में किसी के पास कोई वस्तु नहीं है फिर भी तुम उसे दिला भी नहीं सकते तुमने अपने बच्चे को भी छाता लेकर नहीं दिया। वह भी कबाड़ी से छाता दिलवा दिया। तुमसे तुम्हारा बेटा लाख दर्जे अच्छा है। जिसके दिल में दूसरों के लिए दर्द है। वह  किसी गरीब बच्चे की मदद करना चाहता था। तुमने तो उसको भी रुपए नहीं दिलाने दिए। तुम्हारे बच्चे ने अपनी साइकल बेचकर उसकी फीस भरी। धन्य हो तुम्हारे बेटे को। तुमने अपनी पत्नी को भी नजरअंदाज किया। तुम्हें उस दिन पता चलेगा जिस दिन तुम रुपयों की पोटली अकेले ही गिनते रह जाओगे। तुम्हें पता भी नहीं चलेगा तुम्हें प्यार करने वाला कोई भी नहीं होगा। भगवान जी बोले रुपए पाकर इंसान को घमंड नहीं करना चाहिए। रुपया कमा कर अपनी जरूरत की  चीजें भी अवश्य खरीदनी चाहिए। और दूसरे गरीब लोगों की सहायता भी करनी चाहिए। बनिया बोला भगवान जी आज तो मेरे हाथ से दूध पी लो। वह घुटने टेककर गणेश जी की मूर्ति के सामने बैठ कर उन्हें दूध पिलानें का प्रयत्न करनें लगा। जल्दी से   अक्षय ने चार पाई के पास से अपने दोस्त को वह पत्थर का टुकड़ा उस मूर्ति में फिट करने को कहा। अंशुल ने वह मूर्ति का टुकड़ा टुकड़ा चिपका दिया। एक शर्त पर मैं तुम्हारे हाथ से दूध पी लेता हूं जब  तक तुम कंजूसी करना नहीं छोड़ोगे तब तक मैं तुम्हारे हाथ से दूध नहीं पीऊंगा।  अपनी जरूरत की वस्तुएं अपने बेटे और अपनी पत्नी को दिलवानी होगी। किसी भी गरीब व्यक्ति को अपने घर से निराश होकर जाने नहीं देगा।

आज तुम्हें एक बात कह रहा हूं। तुम्हारी पत्नी सिटी हॉस्पिटल में अपना चेकअप करवाने जाती है। शायद उसे कोई भयंकर बीमारी है। उसकी बीमारी के बारे में पता करो और उसकी तरफ ध्यान दो। नहीं तो तुम्हारा पैसा रूपया सब यंही धरा का धरा रह जाएगाह अकेले तुम भी इस संसार से रुखसत हो जाओगे। वह पैर पकड़कर बोला हे भगवान जी! आज तो मैं आप को दूध पिला कर ही मानूंगा। अंशुल अपने पिता की तरफ देख रहा था। अचानक मूर्ति ने दूध पीना शुरू कर दिया। अंशुल के पिता ने अपनी पत्नी को आवाज देकर बुलाया देखो भाग्यवान आज मेरे घर भगवान आए हैं। देखो मेरे हाथ से दूध पी रहे हैं। आज मैं हार गया। मुझे  तुम  दोनों मुझे माफ कर दो। रुपया कमाने के लालच में तुम दोनों को भूल ही गया था। ऐसा नहीं है कि मैं तुम दोनों को प्यार नहीं करता आज मुझे समझ आया कि ज्यादा रुपया पैसा इकट्ठा करके क्या करना है। जहां जरूरत हो वहां तो रुपया खर्च कर नहीं पड़ता है। मैं यह सब कर्तव्य भूल गया था। मैं यंहा से रुपया ले जा कर क्या करुंगा?। देखो भगवान जी ने आज मुझे मेरा कर्तव्य  याद दिला दिया। उसके घर पर तभी एक भिखारी ने आकर दस्तक दी। बाबा मुझे खाना खिला दो। चिंतामणि आकर बोले ठहरो। उसने भिखारी को बैठने को कहा और उसे खाना भी खिलाया और दक्षिणा भी दे कर कहा। जाओ खुश रहो। भिखारी उसको आशीर्वाद देकर चला गया। अंशुल को हजार रुपए का नोट देकर कहा बेटा जाओ अपने उस दोस्त को ₹500 फीस देकर के आना।500 रुपये तुम अपनें लिए खर्च कर लेना। उसी वक्त अंशुल के स्कूल की कक्षा अध्यापिका को फोन लगाकर कहा कि मैडम मैंने ₹5000 का चैक स्कूल के खाते में जमा करवा दिया है। मैंने आपको बहुत भला बुरा कहा। मैं तो आपकी परीक्षा ले रहा था। आप मुझे माफ कर देना। अंशुल  के पिता जैसे ही कमरे से गए वह अपने दोस्त के गले लग कर बोला तुमने मेरे पिता को सुधार कर ही दम लिया। तुम सचमुच में ही महान हो। मां को सारी बात अंशुल ने बता दी। अपने पति में आए परिवर्तन से वह हैरान थी। अक्षय को धन्यवाद देते हुए बोली बेटा धन्यवाद। तुमने एक कंजूस व्यक्ति को सुधार कर उनमें आस्था की ज्योत जगाई है।

राष्ट्रीय ध्वज

प्रत्येक राष्ट्र संघ का ध्वज है होता।
यह गौरव और सम्मान का प्रतीक है होता।।
राष्ट्रीय ध्वज केसरिया श्वेत और हरे रंग से है बना हुआ।
इस के मध्य में अशोक चक्र है लगा हुआ।।
हमारी धार्मिक स्वतन्त्रता का है प्रतीक।
इस तिरंगें में 24 शलाघाएं है लगी हुई।।
विभिन्न धर्मों में एकता और समभाव है दिखाती हुई।
तिरंगे के तीन रंग विशेष गुणों के है प्रतीक।।
ये तीनों अपनी अपनी जगह हैं सटीक।
केसरिया रंग उत्साह और वीरता को है दिखाता।।
यह हम मे उत्साह है जगाता। ।
श्वेत रंग उज्जवला सत्य और सांस्कृतिक श्रेष्ठता को है दिखलाता।।
यह शांति का वातावरण पैदा कर भाईचारे का संदेश है देता।
हरा रंग हरियाली वैभव श्री और संपन्नता का है प्रतीक।।
लहलाती फसलों के रंग और सम्पन्नता का है प्रतीक।
स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर राष्ट्र ध्वज फहराया जाता है।।
झंडा फहरा कर झंडे का मान बढ़ाया जाता है।
दोनों अवसरों पर इक्कतीस तोपों की सलामी है दी जाती।।
सेना की टुकड़ी या ध्वज का अभिवादन कर सम्मान है बढ़ाती।
देश के मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों द्वारा झंडे का अभिवादन है किया जाता।।
हर एक स्कूलों के बच्चों द्वारा भी परेड में शामिल हो कर करतब है दिखाया जाता।
विभिन्न देशों के राजदूत ध्वजारोहण करते हैं। राष्ट्रध्वज के नीचे दिवंगत स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि है दी जाती।।
उन्हें सलामी देकर उनको याद करने की रीतोंरीत निभाई जाती।
हमें ध्वज की आन बान और शान कायम रखनी चाहिए।
इसके प्रति सदैव आदर तथा श्रद्धा व्यक्त करनी चाहिए।।
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सूर्योदय के वक्त ही झंडा फहराना चाहिए।सूर्यास्त के समय झंडा उतार देना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज को जमीन से स्पर्श नहीं करवाना चाहिये। जुलूस में ले जाते वक राष्ट्र ध्वज ले जानें वाले व्यक्ति के दाहिनें कन्धे पर ले जाया जाता है।महापुरुषों के निधन पर या सरकारी तथा गैर सरकारी भवनों पर राष्ट्रीय ध्वज झूका कर शोक व्यक्त किया जाता है।