नन्हा जासूस

एक छोट सेे गांव की छोटी सी बस्ती में झुग्गी झोपड़ी वाले रहते थे। उनके छोटे-छोटे बच्चों ने भी स्कूल में दाखिला ले लिया था। उनकी बस्ती का एक लड़का था दीनू वह भी स्कूल जाने लगा था। जब बच्चे स्कूल में पढ़ते तो उसका ध्यान पढ़ने में नहीं लगता था क्योंकि उसको घर में भरपेट खाना नहीं मिलता था। वह तो इसी लालच में स्कूल में पढ़ने जाता था कि स्कूल में भर पेट भोजन मिलता है वह तो घंटी बजने का इंतजार करता रहता कि कब आधी छुट्टी हो और वह खाना खाये। खाने की घंटी बजती तो वह जल्दी ही दौड़ पडता। कई बार तो उसको मैडम से झिडकी भी पड़ती की पहले हाथ धो लो। जल्दी-जल्दी हाथ धोने लगताऔर खाने बैठ जाता। बहुत ही होशियार था। जो मैडम पढाती उसको ध्यान से सुनता। स्कूल मेंबच्चों की किताबें पेंसिल और छोटी मोटी चीजें चुरा कर ले जाता। चोरी करने पर उसकी मां उसे कभी नहीं डांटती थी और ना ही उसे सजा देती थी।

एक दिन की बात है कि छवि रोते-रोते बोली मैडम जी मेरी किताब नहीं मिल रही। सभी बच्चे कहने लगे थे किताब दीनू के थैले में ही है। मैडम ने सबके बस्तों की तलाशी ली। किताब तो सचमुच ही दीनू के बस्ते में थी। मैडम ने उसे अकेले एक कोने में बुलाया और कहा बेटा तुमने चोरी क्यों की।?मुझे बताओ मैडम ने कहा बेटा चोरी करना बहुत ही बुरी बात है। आज तो तुमने यह किताब उठाई है। धीरे-धीरे तुम बहुत ही बड़े चोर बन जाओगे। चोरी करना बहुत ही बुरी बात होती है। आज से कसम खाओ कि तुम चोरी नहीं करोगे। दीनू नें कहा जब मैं बच्चों के बस्ते से चीजें चुरा कर ले जाता हूं तो मेरे माता पिता मुझे कुछ नहीं कहते। मुझे वह मुझे डांटते नहीं है और न ही सजा देते हैं।

उसकी मैडम बच्चे की बात सुनकर हैरत में आ गई बोली कुछ नहीं। उसने कहा बेटा सब बच्चों के सामने मैं तुम्हारा अपमान नहीं करना चाहती थी। तुमने चोरी तो की है बोलो, तुम्हें क्या सजा दे दी जाए?, बच्चा सजा का नाम सुनकर डर गया बोला मैडम अब मैं कभी चोरी नहीं करूंगा। मैडम जी मुझे माफ कर दो उसकी मैडम ने बताया कि ईश्वर उन बच्चों को कभी कुछ नहीं देता जो चोरी करते हैं बल्कि उन से उनका सब कुछ छीन ले लेते हैं। दीनू नें कहा हमें भगवान तो दिखते नहीं। वह हमें कहां देख सकते हैं?मैडम ने कहा कि तुम जब चोरी करते हो तुम समझते हो कि तुम्हें कोई देख नहीं रहा है ऐसा नहीं है ईश्वर हमें दिखाई नहीं देते हुए हमें हर वक्त देखते रहते हैं।

दीनू बोला मैडम जी अब मैं कभी चोरी नहीं करूंगा। मेरी कक्षा में कोई चोरी करेगा तो उसे मैं पकड़ लूंगा। मैडम ने उसके मुंह पर उंगली रख दी। दीनू के मन में यह बात घर कर गई कि हमें चोरी नहीं करनी चाहिए। इस बात को बहुत दिन व्यतीत हो गए। बच्चों की परीक्षा का समय भी नजदीक आ रहा था। सब बच्चों को मैडम ने समझा दिया था मैंने दीनू को माफ कर दिया है उसे एक मौका तो अवश्य ही मिलना चाहिए इसलिए अगर आगे से उसने कभी चोरी की तो उसे बहुत ही बड़ा दंड दिया जाएगा। सभी बच्चे परीक्षा की तैयारी में मस्त थे। स्कूल में संगीत का आयोजन भी होने वाला था। सभी बच्चे सांस्कृतिक कार्यक्रम की तैयारी में बड़े जोर शोर से जुटे हुए थे। उनके स्कूल में मुख्य अतिथि तौर पर वहां के नेतागण उपस्थित होने वाले थे। जैसे ही नेतागण आए तालियों से सारा हाल खचाखच भरा हुआ था बच्चों के अभिभावक गण भी उपस्थित थे। सभी बच्चों के माता-पिता को भी समारोह देखने के लिए आमंत्रित किया गया था। एक लड़की रोती रोती आई बोली मैडम मैडम मेरा लहंगा नहीं मिल रहा है। सभी की नजर दीनूं पर थी। वही चोरी किया करता था। उन्होंने सोचा कि दीनूं अपनी बहन के लिए उसे चुरा कर ले जा गया होगा। सभी ने चोरी का इल्जाम दीनूं पर लगा दिया। दीनू से यह सब कुछ सहन नहीं हुआ बोला मैडम आज मैंने चोरी नहीं की है। आप मेरा बस्ता देख सकती हैं। यह सारे बच्चे मुझे ही चोर समझ रहे हैं। मैं चोर नहीं हूं। यह कहते-कहते दीनू रोने लगा।

मैडम नें कहा मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि दीनू नें चोरी नहीं की। दीनू तो असली चोर को ढूंढने में लगा था। मैडम ने उसे इशारा किया और मुंह पर उंगली रखने को कहा। मैडम ने कहा कि आज से मैं चोर को ढूंढनें का काम दीनूं को सौंपती हूं। वही असली चोर का पता लगा कर देगा। दीनूं को जब यह काम सौंपा गया तो दीनूं बहुत ही गर्व महसूस कर रहा था। मैडम ने सब बच्चों में से उसे ही चोर ढूंढने को कहा था। वह फूला नहीं समा रहा था। उसे खुशी हो रही थी कि उसकी मैडम उसे चोर नहीं समझती। सारे के सारे बच्चे दीनूं के इर्द-गिर्द खड़े हो गए। सब दीनू के साथ बहुत ही प्यार से बातें करनें लगे। जो बच्चे दीनूं से नफरत करते थे वह भी दीनू के साथ अच्छे ढंग से बात करने लगते गया। वह अपनें आपको किसी नेता से कम नहीं समझ रहा था मैडम ने कहा पहले तो हम सांस्कृतिक कार्यक्रम का प्रोग्राम देखते हैं। क्योंकि अतिथि जनों के आने का समय हो चुका था। दीनूं तो चोर को ढूंढ कर पता लगाना ही चाहता था। एकाएक तालियों की गूंज से मुख्य अतिथि का स्वागत किया गया। उन्हें माला से नवाजा गया लड़के-लड़कियों ने समूह गान प्रस्तुत किया। प्रोग्राम के बाद सभी अपने घर जाने के लिए उत्सुक थे। मैडम हाल में बच्चों की एग्जामिनेशन फीस इकट्ठा कर रही थी। सभी बच्चों के माता-पिता फीस दे रहे थे।
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दीनू की मम्मी को कमरे में आते देख कर बोली तुमने फीस जमा करवा दी। दीनूं की मम्मी बोली हां अभी तो आप को दी। अच्छा कह कर मैडम ने सारे रुप्एअलमारी में रख दिए। केवल ₹100 का नोट ही बचा था। मैडम को उसी समय फोन आया। मैडम प्रधानाचार्य के कमरे में चली ग्ई। जब वापिस आई तो वहां रु100 का नोट नही था। दीनूं की मम्मी बाहर चली गई थी। मैडम सोचने लगी अभी तो मैंने 100रू का नोट मेज पर रखा था। कंही मैंने अलमारी में तो नहीं रख दिया। उसमें सौ रुपए का नोट कम था। उसमें सौ रुपए की टी सीरेज की एक गड्डी थी। उस गड्डी में से नोट् नहीं मिल रहा था। मैडम सोचने लगी कि कहीं दीनू फिर से नंहीं नहीं वह सुधर गया है। सोचने लगी कि इस कमरे में कौन-कौन आया था। उसे याद आ गया कि दीनूं की मम्मी आई थी। वह तो पहले ही चली गई थी दीनूं नें अपनें माता पिता के बारें में अपनी मां पिता के बारे में कहा था कि जब वह चोरी करता है तो वे उसे कुछ नहीं कहते हैं। शायद उसका नोट वह ही चुराकर ले गई होगी। बाद में कमरे में आ कर अकेला कमरा देखकर लेकर गई होगी। उसने देख लिया होगा की मेज पर ₹100 का नोट पड़ा है ।मैडम ने दीनू को बुलाया और कहा जो असली चोर को दंड दिलवाएगा उसको मैं ₹1000रूइनाम में दूंगी।

दीनू पर चोर को ढूंढने का जुनून सवार था। वह हर बच्चे पर पूरी तरह नजर रख रहा था मैडम की नजर भी उस पर होती थी। लहंगा तो मिल चुका था वह तो स्कूल में ही मिल गया था। वह तो जल्दी में सामान रखते वक्त अलमारी के पीछे गिर गया था। मैडम ने बच्चों से कहा कि सी सीरीज का नोट है। और लास्ट का नंबर है 670। क्योंकि मैं सब सीरीज को अपने डायरी में नोट कर रखती हूं। किसी के पास यह नोट मिले तो मुझे बताना सब ने कोशिश की मगर वह नोट नहीं मिला।

दीनूं जब घर आया तो मां ने उसे कहा कि बाजार से आटा लेकर आओ। मेरी चुनरी से ₹100का नोट निकाल लो । उसमें से ₹50 का आटा लेकर आओ ।दीनू नें जैसे ही चुनरी की गांठ खोली उसकी नजर ₹100 के नोट पर पड़ी। सी सीरीज का नोट थाऔर उसका एंड का नंबर 670 था। वह समझ गया वह तो वही नोट है। उसने चुपचाप वह नोट चुनरी में ही रखा रहने दिया और अपनी मां को कहा मां आपको स्कूल में मैडम ने बुलाया है। दीनूं की मां बोली अच्छा कल जाएंगे। क्या कोई और फीस देनी है? मां आप अभी रुपए मत खर्च करना। उसकी मां ने अच्छा कहकर सिर हिलाया। सुबह ही जब दीनूं स्कूल आया तो उसने मैडम को कहा कि मैडम मैंने आपका चोर पकड़ लिया है। आज मैं उसे आपके सामने पेश कर दूंगा। मैडम जी आपको अलग कमरे में आना होगा।

मैडम ने कहा ठीक है दूसरे दिन दीनूं की मां स्कूल पहुंची उसने मैडम को कहा कि मैडम जी आपने मुझे क्यों बुलाया? मैडम हैरान हो कर बोली मैंने तो आपको नहीं बुलाया। दीनूं बोला मैडम जी आप का असली चोर आपके सामने हाजिर है। मैडम बोली बेटा मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझी। दीनू बोला मां आप अपनी चुनरी की गांठ खोलो। उसने मां की चुनरी की गांठ खोली। उसमें सौ सौ रूपए के तीन नोट थे। मैडम ने देखा वह तो वही ₹100 का नोट था और उस सीरीज का लास्ट भाग 670 था। मैडम को विश्वास हो गया था कि उस दिन दीनू की मां नें ही रु 100 का नोट चुरा लिया था। मैडम नें दीनू को कहा बेटा तुम बाहर जाकर खेलो। उसको बाहर भेज दिया। मैडम ने कहा कि आपका बच्चा झूठ नहीं बोल रहा है। यह नोट आप ही यंहा से चुरा कर लेकर गई हैं। आप अपने झूठ को कबूल करें। आपके बच्चे को तो मैंने सुधार दिया है वह कभी भी चोरी नहीं करेगा। परंतु आपको तो इस छोटे से बच्चे से शिक्षा लेनी चाहिए। आप ने चोरी क्यों की? काफी इन्कार करने के बाद वह बोली मैडम जी मुझे माफ कर देना। मेरा बेटा ठीक कहता है जब वह चोरी करता था मैंने उसे कभी नहीं डांटा और ना ही मैंने उसकी पिटाई कि आपने मेरे बच्चे को सुधार दिया। मैंने 100 रुपए देख कर लालच कर लिया था। आज के बाद मैं कभी चोरी नहीं करूंगी। मैडम आप भी मुझे एक बार माफ कर दो। आप यह बात किसी को नहीं बताएंगे उसे अब अपनी गलती का एहसास हो गया था मैडम ने कहा अगर आप इसी तरह चोरी करते रहें और आपको देखकर आपका बेटा भी एक दिन बड़ा चोर बन सकता है। ना जाने किसी दिन वह जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गया तब आप क्या करेंगे। तुम्हारे पास तो इसको छुड़वाने के लिए भी रुपए नहीं होंगे। दीनू की मां समझ चुकी थी। दीनू आकर बोला मैडम ठीक ही कहतीं हैं। मां आप भी चोर हो। आप भी कसम खाओ कभी चोरी नहीं करोगी। चोरी करना बुरी बात है अगर चोरी करोगी तो मैं भी एक दिन बड़ा चोर बन जाऊंगा। आप मुझे कभी नहीं मिल सकोगी उसने दीनूं को गले लगाया मुझे माफ कर दो तूने मुझे एहसास दिला दिया है। मैडम नें ₹1000 का नोट दीनू को देते हुए कहा मेरे नन्हे जासूस यह लो अपना इनाम। उसे वह 1000 रुपये इनाम के तौर पर दिए। सब बच्चों के सामने उसे ईनाम दिया गया।

शिवानी का सपना

शिवानी अपनी मां को लेकर 10 किलोमीटर दूर अस्पताल लेकर आई थी क्योंकि उसकी मां बहुत बीमार थी। वह अपनी मां को यूं हर रोज बीमारी से तड़पता देख नहीं सकती थी। शिवानी ने सोचा कि मैं अपनी मां को गांव के इसी अस्पताल में दाखिल करवा देती हूं। उसके पिता ने उसे कहा था कि तुम्हारी मां बहुत बीमार है। अस्पताल वालों ने उससे कह दिया था तुम्हें इन्हें हर रोज यहां लाना होगा ।उनकी हर रोज टेस्ट होने वाले थे। शिवानी के पापा को उन्हें हर रोज गांव के अस्पताल पहुंचाना कठिन हो रहा था। बीच बीच में टेस्ट करवाने अस्पताल आ जाते थे ।एक दिन तो रात को मां की तबीयत अचानक खराब हो गई। अस्पताल वालों ने उसे कहा कि उसकी माता को टीबी हो चुकी है ।शिवानी बहुत ही डर गई थी उसके पापा ने उसे बताया कि तुम्हारी मां को टीबी हो चुकी है उसे इस अस्पताल से  दूसरे अस्पताल में ले जाना होगा। वह इतनी छोटी थी कि उसे टीबी की बीमारी के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था ।उसे इतना ही मालूम था कि टीबी एक खतरनाक बीमारी होती है ।जिस से बचना बहुत ही मुश्किल होता है अगर इसका ठीक से इलाज  हो तो इससे इंसान बच सकता है।

 

अस्पताल इतनी दूर था कि मां को हर कभी  अस्पताल ले जाना संभव नहीं था ।शिवानी की आंखों में आज भी वह अपनी मां का तड़पता हुआ चेहरा नजर आ जाता था। शिवानी अपनी मां को इस भयंकर बीमारी से बचा नहीं पाई क्योंकि उस समय शिवानी केवल 10 वर्ष की थी ।शिवानी की मां सदा सदा के लिए इस दुनिया से चली गई। गांव में कोई भी टीबी का अस्पताल नहीं था जिस कारण उन्हें बचा नहीं पाई।  शिवानी ने तभी से निश्चय कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए वह डॉक्टर जरूर बनेगी।  अपने गांव में बहुत से लोग ऐसे थे जोकि गरीब थे शिवानी मे इतनी समझ तो थी ही ।

 

शिवानी ने अपने पापा को कहा कि मैं भी डॉक्टर बनूंगी और गांव में रहकर गरीबों का इलाज करुंगी ।उसके पापा मजाक में बोले बेटा हम तुम्हें डॉक्टर कैसे बना पाएंगे।?

 

हम गरीब आदमी हैं हम तुम्हें थोड़ी बहुत शिक्षा ही दिलवा सकते हैं। दसवीं कक्षा तक तो ठीक है,बारहवीं तक आगे पढ़ाना हमारे बस की बात नहीं क्योंकि तुम्हें अपने दिल से ख्याल निकाल देना होगा कि तुम डॉक्टर बनेगी। इंसान को सपने तो वही देखने चाहिए जिनको हम पूरा कर सके। तुम्हारे माता-पिता के पास तुम्हें पढ़ाने के लिए भी बड़ी मुश्किल से रुपए हैं इसलिए जितनी जल्दी तुम वास्तविकता से अवगत हो जाओ तो ठीक है वर्ना बाद में तुम कहोगी कि मेरे पापा ने मुझे नहीं   समझाया। स्कूल में जब अध्यापक  शिवानी को खड़ा करके पूछते तुम क्या बनना चाहते हो?  वह खड़ी होकर कहती मैं डॉक्टर बनना चाहती हूं। उसकी अध्यापिका बोली शाबाश डॉक्टर बनने के लिए हमें दिन-रात पढ़ाई करनी पड़ती है। उसकी साथ वाली सहेलियां खिलखिलाकर हंस पड़ती और बोलती बड़ी आई डॉक्टर बनने वाली। तुम्हारे पिता के पास डॉक्टरी पढ़ाने के लिए भी रुपए नहीं है। अध्यापिका ने उन लड़कियों को चुप करवाया और बोली जिन बच्चों में हिम्मत होती है लग्न  होती है उनके सपने अवश्य पूरे होते हैं। कहीं ना कहीं शिवानी यह बातें सुनकर खुश हो जाती थी

 

शिवानी का आठवीं कक्षा का परिणाम भी निकलने वाला था ।वह अपनी कक्षा में प्रथम आई थी उसे वजीफा भी लग गया था ।उसने अपने पापा को कहा कि मुझे वजीफा मिल जाएगा  उसके पापा ने उसे आठंवी

करवा दी ।दसवीं में भी उसने ब्लॉक में प्रथम स्थान पाया उसके पापा बोले बेटा अब मैं तुम्हें आगे और नहीं पढ़ा सकता।  शिवानी ने हिम्मत करके अपने इलाके के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अवगत कराया कि आप मेरी पढ़ाई का खर्चा उठा लो क्योंकि मैं आगे पढ़ना चाहती हूं। मेरा सपना है कि मैं डॉक्टर बनूं अगर आप मेरी मेरी मदद करेंगे तो मैं अपने आप को भाग्यवान समझूंगी  कहीं ना कहीं सबके सब लोग  मुझ पर हंसते हैं और कहतें हैं लड़कियां अपने आप कुछ नहीं कर सकती हम भी देखते हैं कि तुम डॉक्टर कैसे बनती हो।?

 

खाने तक के लिए तो बड़ी मुश्किल से रुपए हासिल होते हैं और तुम आगे पढने  की बात करती हो ,अब हम देखते हैं तुम  रुपए कहां से मिलते हैं।? उसने अपने गांव में सभी से फरियाद की मगर किसी ने भी उस बच्ची की सहायता नहीं की ।घर आकर निराश होकर उसे उसे यह कदम उठाना पड़ा। वह अब तो शाम को ट्यूशन भी पढ़ाने लगी थी ।अचानक उसका खत माननीय मुख्यमंत्री तक पहुंच ही गया। छोटी सी बच्ची के इस बुलंद हौसले को देखकर उन्होंने इस बच्चीे के स्कूल जाकर उसकी शिक्षा का जिम्मा सरकार पर दे दिया और उसे रुपए भिजवा दिए ।सब लोग शिवानी की चतुराई की दाद देने लगे लड़की हो तो शिवानी जैसी ।उसने फैसला कर लिया था कि चाहे कैसी भी परिस्थितियां हो वह अपने कदम पीछे नहीं हटाएगी ।उसने अपने इलाके के पंचायत अधिकारी महोदय और बड़े-बड़े नेताओं के द्वारा अपना ख़त भिजवाया जिससे उसने उसने लिखा था कि हमारे मुख्यमंत्री जी ने मेरी पढ़ाई का खर्चा उठाने का निश्चय कर लिया है इस प्रोत्साहन में अब तो आप  सभी लोंगों को मेरा साथ देना होगा ।अगर आज आप के गांव की लड़की डॉक्टर बन जाएगी तो कहीं ना कहीं हमारे ही गांव का भला होगा  

 

सारे के सारे गांव के अधिकारी वर्ग उसकी सहायता करने के लिए आगे आ गए थे।   उसका डॉक्टरी में सलेक्शन हो चुका था। गांव वालों ने उसके घर की ओर ध्यान भी देना शुरु कर दिया था ।उन्हें हर चीज उपलब्ध करवाने की कोशिश की थी ।वहां एक कमरे में सारी सारी रात बैठकर तैयारी करती थी ।उसकी मेहनत और लग्न कापरिणाम  उसकी सफलता से दिखता था  उसका सिलेक्शन हो चुका था। उसने मुख्यमंत्री को पत्र लिख दिया था कि मैं डॉक्टरी में सलेक्शन हो चुकी हू। आपने जो मुझे इस काबिल बनाया आज मैं आप से और अपने गांव वालों के आगे कसम खाती हूं कि मैं भी किसी गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए उस का खर्चा उठाउंगी  जब मैं डॉक्टर बन कर अपने गांव  आऊंगी तब मैं किसी न किसी गरीब बच्चों को पढ़ा कर अपना फर्ज निभाउगीं अपने ही गांव में अस्पताल  खोल कर कैंसर और टीवी से पीड़ित मरीजों को देखूंगी और गरीब लोगों का मुफ्त में इलाज करूंगी ।

 

वह दिन भी आ चुका था जब वह डॉक्टर शिवानी बनकर अपने गांव में आ चुकी थी। गांव के लोग फूल लेकर उसका स्वागत कर रहे थे। क्योंकि उनके गांव की एक बालिका वह भी एक गरीब घर की जिसको देखकर लोग मजाक उड़ाते थे। उसने अपने सपने को पूरा कर सबको मिसाल दे दी थी ।कि मनुष्य में लग्नऔर ईमानदारी से मेहनत करने का जज्बा हो तो हर इंसान ऊंचाइयों की शिखर तक पहुंच ही जाता है। जिस प्रकार शिवानी ने कर दिखाया था उसके गांव के पास एक छोटा सा अस्पताल भी खुल गया था। जिसमें वह लोगों को देखती थी गरीब लोगों का इलाज वह मुफ्त में करती थी अगर कोई व्यक्ति बहुत बीमार हो जाता था तो उसके घर में उसे देखने जरूर जाती थी । वह अपनी मां को तो वह बचा नहीं पाई लोगों की सेवा करके वह अपने आप को अंदर से आनंदित महसूस करती थी।  दस सालों में उसका अस्पताल इतना बड़ा हो चुका था कि वहां पर बीमार लोगों के लिए बिस्तर और दवाईयां और बहुत सारी वस्तुएं मुफ्त दी जाती थी । शिवानी की खुशियों को कहीं ना कहीं ग्रहण लग चुका था  ।

 

कुछ एक शरारती तत्वों ने मिलकर उस अस्पताल  के साथ खिलवाड़ करना शुरु कर दिया क्योंकि जब वहां पर अब कोई पर्ची बनाने जाता तो लोग पर्ची के साथ पहले तो थोड़े से व्यक्तियो को ही थोड़े से रुपयों में देखा जाता परंतु आधे से अधिक व्यक्तियों के पर्ची बनाने के लिए सौ रुपये पहल लेे लेते और अस्पताल के समीप ही केमिस्ट की दुकान दुकानें खुल चुकी थी। अगर कोई बीमार होता जो दवाई उसे डॉक्टर लिख देते अगर वह वहां उपलब्ध नहीं होती तो केमिस्ट वाले डॉक्टरों से मिलकर अपनी दवाईयां लिखवाने के लिए मजबूर कर देते अगर किसी बच्चे को चोट लग जाती उसके प्लास्टर चढ़ा ना होता तो आने वाले व्यक्ति से पूरे प्लास्टर और दवाइयों के अधिक रुपए लिए जाते। सारे के सारे डॉक्टर लोग  कैमिस्ट क्लर्क एक दूसरे वर्ग के सभी लोग ज्यादा रुपए एंठते थे  ।इस बात से शिवानी बिल्कुल अनभिज्ञ थी क्योंकि उसे इस बारे में बताया ही नहीं गया था ।उसके अस्पताल में सबसे ज्यादा डॉक्टर काम कर रहे थे ।वह अस्पताल तो शिवानी का था क्योंकि शिवानी ने इस संसार को अपने खून से सींचा था । इस अस्पताल के सारे पैसे चुका दिए थे

 

एक दिन एक व्यक्ति बहुत बीमार था वह अपनी मां को दिखाने आया था । परंतु अंदर आने के लिए पहले उसे अलग लाइन में लगना पड़ा। उसकी मां बुढी थी परंतु फिर भी उन्होंने उस आदमी की बात नहीं सुनी उसकी बारी पूरे आठ घंटे बाद आई जैसे तैसे करके उसने अपनी मां को दिखाया ।  जब उसकी मां ठीक हो चुकी तब उसने अपनी शिकायत डा शिवानी से की । शिवानी नेें उस आदमी को विश्वास दिलाया आपने मुझे इस बात का को बता कर मुझे एहसास दिला दिया है कि मैं अपने फर्ज के क्षेत्र  मैंनेें अपने आपको इतना व्यस्त कर दिया था कि अपने अधिकार वर्गों और उनकी चैकिंग  करना भूल ही गई । आपकी मां को जो कष्ट  हुआ उसके लिए मुझे बेहद अफसोस है । यह बातें आप किसी को मत कहना क्योंकि मैं सच्चाई का अपने तरीके से पता लगा लूंगी । मैं एक बार फिर आप से क्षमा चाहती हूं।

 

डॉक्टर शिवानी की बात सुनकर वह व्यक्ति बोला ।आप जैसी डॉक्टर हर गांव में हो तो हर गांव का बेड़ा ही पार हो जाए। आपको वास्तविकता से अवगत करवाना मेरा फर्ज था। वह व्यक्ति वहां से चला गया शिवानी उस व्यक्ति की बात सुनकर हैरान हो चुकी थी जिस अस्पताल के लिए उसने इतनी मेहनत की थी वहां के डॉक्टर वर्ग इतने कमजोर हो चुके थे जो थोड़े से रुपयों के लालच में अपना फर्ज भूल चुके थे और लोगों से रुपए लेना शुरू कर दिया था ।शिवानी ने अपने  कुछ साथियों को इस सच्चाई का पता लगाने के लिए भेजा। एक को पर्ची काउंटर पर एक को एक  एक्सरे विभाग में ‘और एक को दवाइयों के दफ्तर में हर जगह अपने कर्मचारी वर्गों को भेजा। उस व्यक्ति की बात सच निकली सभी के सभी कर्मचारी मिले हुए थे ।उनके पास 600, 000 रुपए इकट्ठा हो चुके थे ।वह उन रुपयों को आपस में बांट लेते थे  ।एक दिन शिवानी ने अपने स्वास्थ्य विभाग में पार्टी का आयोजन किया अपने सभी कर्मचारी विभाग को आमंत्रित किया और उन्हें कहा की आप सभी को यहां से जाना होगा क्योंकि अब तो आप लोगों का पर्दाफाश हो चुका है ।मैंने तो यहां इसलिए अस्पताल खोला था ताकि गांव के लोगों को दूर अस्पताल में ना जाना पड़े। तुम सभी तो बुजुर्गों का सम्मान करना ही नहीं जानते हो अगर तुम्हारे बूढ़े मां बाप कल को बीमार पड़ जाए और तुम्हारे पास अपने माता पिता के पास इलाज करवाने के लिए रुपया ना हो तो क्या तुम अपने मां बाप को बचा पाओगे मैंने तो गांव की भलाई के लिए अस्पताल खोलने का निर्णय लिया था । मैं बाहर जा कर डॉक्टर भी बन सकती थी ।मेरे दिल में अपने गांव के लोगों के प्रति अपनत्व की भावना थी। तुमने  इस गंदी हरकत को करके मुझे भी शर्मशार कर दिया अब मैं अपने गांव वाले लोगों को क्या मुंह दिखाऊंगी ।आज से जो भी कर्मचारी वर्ग या डॉक्टर किसी बीमारी से ज्यादा रुपए लेंगे वह मेरी संस्था छोड़कर किसी और अस्पताल में काम कर सकते हैं क्योंकि मैं अपने अस्पताल में घूस के रुपयों से इस इमारत का नाम बर्बाद नहीं कर सकती ।कहीं ना कहीं मैं भी इसके लिए अपने आपको दोषी ठहराती हूं। मैंने काम में सभी को चेक नहीं किया अचानक सब लोगों ने सभी डॉक्टरों ने यह महसूस किया कि शहर में तो हर कोई डॉक्टर आसानी से मिल जाता है परंतु हमने तो गांव वालों के साथ भी खिलवाड़ करना शुरू कर दिया । सभी कर्मचारी वर्ग ने और डॉक्टरों ने शिवानी से क्षमा मांगी और कहा कि हम आज यह कसम खाते हैं हम में से कोई डॉक्टर विदेश चला गया  तो इन गरीबों के इलाज के लिए वहां से रुपए भिजवाएंगे। आप हमें माफ कर देना कहीं ना कहीं हम अपने बुजुर्गों का सम्मान करना भूल गए थे । डॉक्टरों ने उस व्यक्ति से अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी और थोड़े दिनों के बाद उनके अस्पताल में इतने अधिक मरीज थे वहां पर हर किसी को बड़े प्यार से देखा जाता था जहां भी जाते सब लोग डॉक्टर शिवानी की प्रशंसा करना नहीं भूलते थे ।