ब्राह्मण और ब्राहमणी की नोकझोंक

किसी गांव में एक ब्राह्मण और ब्राह्मणी रहते थे। उनके परिवार में कोई भी नहीं था। केवल एक दूर का भतीजा था। उनके पास कुछ भी नहीं था। भिक्षा मांग मांग कर अपना गुजारा किया करते थे। जो कुछ भी भिक्षा से मिलता उसे खा पीकर गुजारा किया करते थे। जब भी वे भिक्षा मांगते जो भी आटा मांगते उससे वह घर आकर उसकी रोटी बनाते हमेशा पांच ही रोटियां बनती थी। दोनों इतने बुढे थे कि बात बात पर लड़ाई झगड़ा करना उनकी आदत में शुमार था।

बुढ़िया कहती नहीं, मैं ज्यादा खाऊंगी। बूढा कहता नहीं मैं ज्यादा खाऊंगा। इस ज्यादा कम के चक्कर में दोनों लड़ पड़ते थे। किसी ने उन्हें समझाया देखो भाई लड़ना नहीं चाहिए। आपस में ढाई-ढाई रोटियां खा लो। बुढ़िया कहती नहीं तीन रोटी मैंहीं खाऊंगी। मेरे पति दो ही खाएंगे। ब्राह्मण बोला नहीं मैं ही तीन खाऊंगा। तू तो दो ही खाएगी। इस तरह नोकझोंक करते-करते लड़ाई झगड़ा इतना बढ़ जाता गांव वाले सब बूढ़ा बुढ़िया की आदत से परेशान हो जाते थे।

उन्हें समझाते मगर दोनों में से एक भी मानने के लिए तैयार नहीं था। एक दिन ब्राह्मण ने कहा क्यों ना हम इस लड़ाई झगड़े का कुछ ना कुछ हल अवश्य निकालते हैं? हम में से जो कोई सुबह जल्दी उठेगा वह ही तीन रोटियां खाएगा। बाकी दो रोटी ही खायेगा। ब्राह्मणी ब्राह्मण की बात सुनकर बहुत खुश हुई बोली। यह हुई ना काम की बात। रात को दोनों सोते सोते एक दूसरे को देखते कहीं ये मुझसे पहले न उठ जाए। ब्राह्मणी रात को उठकर जग जाती। वह जल्दी उठ जाती और वही हर रोज तीन रोटी खा लेती। बेचारा ब्राह्मण हर बार हार जाता।

एक दिन उसने सोचा आज रात को जैसे ही ब्राह्मणी सोएगी मैं जल्दी से रोटी खा जाऊंगा। उसको क्या पता चलेगा? हर रोज तो यह तीन रोटी खा जाती है। वह रात भर ब्राह्मणी के सोने का इंतजार करता रहा। रात को एक बजे के करीब ब्राह्मणी सो गई। उसने रोटियां उठाई। उसने तीन रोटियां खा ली। ब्राह्मण की पत्नी सुबह जब उठी तो ब्राह्मणी ने देखा वहां तो दो ही रोटियां थी। वह ब्राह्मण से लड़ने लगी ब्राह्मण बोला तो क्या हुआ? हर रोज तुम तो तीन रोटी खा लेती हो। आज मैंने तुमसे पहले जल्दी उठकर रोटी खा ली तो क्या हुआ।? ब्राह्मणी के पास कोई उत्तर नहीं था। ब्राह्मण बोला आज से मैं तुम्हें कहता हूं जो हम दोनों में से जो देर से उठेगा वही तीन रोटी खाएगा। हर रोज ब्राह्मणी जल्दी उठती थी। कोई बात नहीं अच्छा ही है। जितना देर से उठेंगे वही तीन रोटी खाएगा। अगले दिन ब्राह्मणी की जाग खुल गई। उसे ब्राह्मण के कहे हुए वचन याद आए। जो देर से उठेगा वही तीन रोटी खाएगा। ब्राह्मण ने सोचा मैं क्यों उठूं? ब्राह्मणी भी सोचने लगी नहीं आज वह देर से ही उठेंगी। दोनों ही नहीं उठे। दोनों ही तीनदिन तक इसी तरह पड़े रहे।

ब्राह्मण ब्राह्मणी के घर में उनके दूर का भतीजा भतीजा रिश्तेदार था। वह उन दोनों की बातें सुन रहा था। उसे उन दोनों की नोकझोंक में बड़ा ही मजा आ रहा था। ब्राह्मणी नें उस रोटी में खूब घी लगाकर रोटी को रखा हुआ था जैसे ही वह दोनों सो गए उसने वह पांचों की पांचों रोटियां खा ली। सोचने लगा यह दोनों तो यूं ही लड़ते रहेंगे। आज दोनों को मजा चखाता हूं
उनके भतीजे ने सोचा मेरे तो आज वारे न्यारे हो गए। जब दोनों तीन दिनों तक नहीं उठे तो गांव वालों ने उन दोनों को उठाने की कोशिश की। मगर दोनों नहीं उठे। गांव वालों ने सोचा यह दोनों मर चुके हैं। वह उन दोनों को श्मशान घाट पर ले जाने के लिए तैयार हो गए। उनकी अर्थी को सजाने लगे। ब्राह्मण ने ब्राह्मणी को आहिस्ता से कहा कि भागवान अब तो उठ जाओ। तुमं हीतीन रोटी खा लेना। नहीं तो हमारा भी कल्याण हो जाएगा। तब ना बजेगा बांस और ना बजेगी बांसुरी। ब्राह्मणी बोली अच्छा मानते हो ना। यह कह कर उठ गई। लोग भूत भूत कह कर चिल्लाने लगे। वहां से डरकर लोग उन दोनों को छोड़कर भाग गए। ब्राह्मणी बोली हाय तौबा मेरी। आगे से मैं कभी नहीं कहूंगी मैं ज्यादा खाऊंगी। ब्राह्मण बोला मैं भी यह नहीं कहूंगा कि मैं ज्यादा खाऊंगा। चलो भागवान घर चल कर आधी आधी रोटियां आपस में मिल बांट कर खाते हैं। जब घर में वापस आए तो वहां पर अपने भतीजे को देख कर बोले अरे तुम कब आए? भतीजा बोला जब तुम दोनों आपस में लड़ रहे थे तब मैं आप दोनों की तू तू मैं सुन रहा था। गया मैं भी नहीं। मैंने तुम्हारे हाथ के बनें हुए स्वादिष्ट पंरौठो का भरपूर आनंद लिया। ऐसे ही लड़ते झगड़ते रहो और मुझे खाने का मौका दो। ब्राह्मण ब्राह्मणी हाथ मलते रह गए।

लालची धन्ना सेठ

, यह कहानी एक छोटे से गांव की है। उस गांव में सभी लोग खुश थे.।उस गांव में एक राजा था। राजा ने अपने राज्य में यह ऐलान कर दिया कि कोई भी इंसान किसी दूसरे पर अगर अत्याचार करें या उस पर हमला करेगा तो उसे मृत्युदंड दिया जाएगा। उसे उम्र भर की सजा दे दी जाएगी। राजा के डर से उस छोटे से राज्य में लोग कोई भी जुर्म करने से डरते थे। कुछ गिने चुने ही लोग ऐसे थे जो राजा की धमकियों से डरते नहीं थे। वे छिप-छिपकर लाचार व्यक्तियों को सताना नहीं छोड़ते थे।

उस छोटे से गांव में एक किसान रहता था उसका एक बेटा था। उसकी पत्नी बीमार होकर चल बसी मरते समय उसने अपने पति को कहा कि मेरे बेटे का ध्यान रखना और मेरी गाय का भी ध्यान रखना इसको बेचना मत। मेरे चुन्नू को खूब दूध दिया करेगी। यह कहकर किसान की पत्नी ने दम तोड़ दिया। इस बात को दस साल व्यतीत हो चुके थे। चुन्नु पन्द्रह साल का हो चुका था। किसान ने अपने बेटे को कहा कि बेटा मैं काम के सिलसिले में हमेशा बाहर ही रहता हूं। तुम इस गाय को हर रोज चराने के लिए ले जाया करो और शाम के समय स्कूल से आने के बाद उसे साथ ले आया करो। तुम्हें दूध भी पीने को मिलेगा। तुम्हारी मां की इच्छा भी पूरी हो जाएगी। इस गाय को कभी मत बेचना। चुन्नी सुरभि को बहुत अधिक प्यार करता था। वह रोज उसे चराने ले जाता था। और गाय का दूध पीता था। गाय को चराने ले जाता तो उसे गाय को चराने ले जाते हुए गांव का एक दूसरा धन्नासेठ देखा करता था। वह हमेशा गाय पर नजरें गड़ाए रखता था। गाय के दूध को पीने के लिए लालायित होता था। सोचा करता था कि कि कैसे इस गाय को इस बच्चे से छीना जाए? उसनें समीप ही एक किसान को कहा कि तुम इस लड़के से दोस्ती करो। तुम्हें इस गाय को छीन कर लाना होगा। नहीं तो तुम्हें या तुम्हारे परिवार को मैं मरवा दूंगा। वह किसान डर के मारे थर थर कांपनें लगा। उसने धन्नासेठ की बात मान ली। उसने उस किसान के बेटे के साथ ही अपनी गाय को भी चराना शुरु कर दिया। वह उस गाय को चराने ले जाता और उस किसान के बेटे के साथ दोस्ती बढ़ानें लगा। धीरे-धीरे उसने किसान के बेटे के साथ इतना अपनापन दिखाना आरंभ कर दिया किसान के का बेटा सोचने लगा कि यह अंकलतो कितने अच्छे हैं। मुझे कहते हैं बेटा तू पढ़ाई कर ले। मैं तेरी गाय को भी चरा देता हूं। शायद दुनिया में गिनाचुना ही कोई ऐसा शख्स होगा जो किसी अनजान व्यक्ति की मदद के लिए आगे बढ़ेगा। यह अंकल कितने अच्छे हैं। कभी सोचता कहीं इसमें इनका कोई स्वार्थ तो नहीं छिपा है फिर अपने मन को समझा लेता नहीं ऐसा नहीं है। अगर यह अंकल जरा भी अच्छे नहीं होते तो मुझे पहले ही पता चल जाता। इस तरह दिन बीतने लगे।

जंगल में अंकल के पास पहुंचते ही गाय चराने का काम उन को सौंप दिया और स्वयं पेड़ के नीचे बैठ कर पढ़ाई करने लगा। किसान भी स्वार्थी था। एक तो वह गाय को चोरी करने की योजना बना चुका था। दूसरे वह रोज गाय का दूध निकाल लेता। और जंगल में उसने एक जगह गड्ढा खोदा हुआ था वहां पर वह बाल्टी रख देता था। बाल्टी रख देता था ताकि किसान का बेटा देख ना सके। वह रोज दूध में पानी मिलाकर बाजार में दूध बेचने का काम करता था। उसने इस तरह गाय सुरभि से ₹15000 का दूध हजम कर लिया था। किसान का बेटा चुन्नु इस बात से बिल्कुल अनभिज्ञ था। एक दो बार किसान ने कहा बेटा क्या तुम इस गाय का ख्याल नंहीं रखते हो? गाय तो सूखकर कांटा हो चुकी है। किसान का बेटा चुन्नु कहता पिताजी मैं तो रोज इसे चरानें ले जाता हूं। घास भी खिलाता हूं। इसकी सेवा भी करता हूं। मगर आजकल यह दूध भी नहीं देती है। इसका क्या कारण हो सकता है।? उसके पिता बोले बेटा मैं इसे कल जानवरों के अस्पताल ले जाऊंगा। चुन्नू के पिता ने कहा कहीं कोई जंगल में तुम्हारी गाय का दूध तो नहीं निकालता है? तुम अकेले जाते हो या तुम्हारे साथ कोई जंगल में जाता है। वह बोला नहीं बाबा मेरे साथ एक अंकल जाते हैं। भला वह क्यों दूध निकालने लगे? वह तो अपनी गाय को भी मेरी गाय के साथ चराने ले जाते हैं। किसान बोला बेटा जरा चौकस रहना आजकल किसी पर भी यकीन नहीं करना चाहिए। यह बात किसान के बेटे के अंतर्मन में घुस गई। वह सोचनें लगा आगे से मुझे उन अंकल पर भी ध्यान रखना होगा। चुन्नू बोला अच्छा पिताजी सुबह हो गई है। मैं जल्दी से अपनी गाय को चारा कर आता हूं। वापसी मैं स्कूल चला जाऊंगा।

चुन्नू की दसवीं की परीक्षा भी पास ही थी इसलिए वह जंगल में पढ़ाई करता था। दूसरे अंकल रास्ते में मिल गए। बेटा तुम तो अपनी पढ़ाई किया करो। गाय की चिंता मत करो मैंने कोई खास काम तो नहीं करना है। तुम्हारी गाय को भी देख लूंगा। आप कितने अच्छे हो? चुन्नु चुपचाप पेड़ के नीचे बैठ पढ़ाई करने लग गया। शाम को चुन्नू जब गाय को चरानें आया तो वह जल्दी जल्दी जंगल की ओर कदम बढा रहा था। उसे जोर कि ठोकर लगी उसका पैर एक लकड़ी के फटे से टकराया। अचानक लकड़ी का फटा अपनी जगह से थोड़ा खिसक गया। उसने देखा उसके नीचे दूध से भरी बाल्टी थी। यहां पर यह क्यों रखी है। ? इस तरह बाल्टी छिपानें का क्या मतलब हो सकता है।? उसनें वह बाल्टी पहचान ली।यह बाल्टी तो उस किसान अंकल की थी। जो उसके साथ गाय चराने आता था।

वह सोचनें लगा कि हर रोज कहीं यह किसान अंकल ही तो मेरी गाय का दूध नहीं निकलते है। अचानक उसने देखा कि एक बड़ा मोटे पेट वाला आदमी चला आ रहा था। उसको देख कर चुन्नु झाड़ियों के पीछे छिप कर उनकी बातें सुनने लगा। धन्ना सेठ बोला तुम को आज दूध बेचते हुए छः महीने हो चुके हैं। तुमने उस बच्चे की गौ का दूध हमें हर रोज पिलाया है। तुम्हारा एहसान मैं कभी नहीं भूलूंगा। तुम जल्दी से इस गाय को उससे छीन लेना। यह बच्चा बेवकूफ है उसे आज तक यह बात पता नहीं चली कि चुपचाप हम उसकी गौ का दूध निकाल कर पीते हैं और बाजार में बेच देते हैं।उसनें चुपचाप बाल्टी उठाई और चल पड़ा।

जब वे दोनों उसकी आंखों से ओझल हो गए उसने चुपचाप आकर अपने गौ को जल्दी से वहां से निकाला और उसे खूब प्यार किया और कहा कि हे गौ माता मुझसे गलती हो गई। मुझे अभी तक सच्चाई का पता नहीं था। अगर मेरे पिता ने मुझे सचेत नहीं किया होता तो वह बेवकूफ ही बना रहता।

अपने गांव गाय को लेकर घर पहुंचा। उसने अपने पिता से सारी बातें कही और कहा पिताजी आप सच कहते थे आज मैंने अपनी गाय के दूध चुराने वाले को पकड़ लिया। उसने सारा वृत्तांत कह सुनाया। उसके पिता ने कहा बेटा तुम अपनी परीक्षा की तैयारी करो। मैं कुछ दिन घर पर ही रहकर गाय को पास के जंगल में चराने ले जाऊंगा। किसान स्वंयं जंगल में गाय को चराने ले गया। वहां पर भी वही किसान अपनी गाय को चराने आने लगा। आजकल तुम्हारा बेटा कहां है।? उसनें चुन्नु के पिता से कहा। उन्होंने कहा मेरे बेटे की परीक्षा है। उसके पिता दूसरे किसान पर नजर रखने लगे। उन्होंने उस पर निगरानी के लिए कैमरा भी रख लिया था ताकि वह उसे चोरी करते रंगे हाथों पकड़ सके। दूसरे किसान नें कहा आपको गाय को चरानें की क्या जरूरत? आप पेड़ के नीचे आराम करो। मैं ही आप की गाय को चरा देता हूं। उसके पिता ने कहा ठीक है।

चुन्नु के पिता नें देखा कि दूसरे किसान नें गाय का दूध निकाला। धन्ना सेठ को बाल्टी पकड़ाते हुए कहा। आज मैं बैंक से दूध के जमा किए हुए रुपए निकालने जा रहा हूं। तुम दूध को अपने घर ले जाओ। धन्ना सेठ नें उसे गाय को बेहोश करनें की सुई चुभो दी। बेहोश करने की दवा के इन्जैक्शन से यह गाय थोड़ी ही देर में बेहोश हो जाएगी। तुम चुपचाप गाय ला कर मुझे सौंप देंना। किसान अपनी गाय को ले कर पशुओं के अस्पताल ले कर गया और अपनी गाय को बचा लिया।

किसान नें सारी तस्वीरें कैमरे में कैद कर ली। धन्ना सेठ वहां से खिसक गया था। किसान ने कहा पास में ही बैंक है मैं आज दूध के रुपए निकालने बैंक जा रहा हूं। तुम मेरे बैग की रखवाली करना। चुन्नू के पिता ने कहा ठीक है। दूसरा किसान रुपए निकलवाने बैंक गए। चुन्नु के पिता नें उसके बैग की तलाशी ले ली। देखूं तो उसने इस बैग में क्या छुपाया है?? उसने देखा उसमें जहरीली दवाई थी। उसने चुपचाप दवाई की शीशी में से दवाई निकाली और डॉक्टर के पास जाकर कहा यह गोली किस काम आती है? डॉक्टर ने कहा इस गोली को खाते ही कोई पशु मर सकता है या बेहोश हो सकता है। अचानक चुन्नू के पिता को पता चल चुका था कि यह योजना दूसरे किसान ने उस गाय को हथियाने की साजिश में की होगी। अच्छा हुआ उसे सही वक्त पर उनकी साजिश का पता चल गया। किसान नें अपनी गाय को बचा लिया। दूसरे दिन किसान की गाय को जब चरानें आया तो चुन्नु के पिता ने कहा देखो भाई तुम्हें देखकर कोई भी यह नहीं कह सकता कि तुम किसी से बेईमानी भी कर सकते हो। जल्दी से बता दो वर्ना तुम्हें राजा के पास भेज दूंगा। राजा ही तुम्हें सजा देंगे। किसान बोला मैं समझा नहीं। चुन्नू के पिता ने कहा तुमने मेरे बेटे को उल्लू बनाकर उसे बेवकूफ समझ कर मेरी गाय का दूध बाजार में बेचा। छः महीने से लगातार करते आ रहे हो। मेरे पास भी बुद्धि है जल्दी से मुझे गाय के दूध के रुप्ए मुझे दे दो वर्ना गाय को बेहोश करनें और चुराने के इल्जाम में और गाय को मारने की साजिश में जेल की हवा खाना चाहते हो। वह बोला नहीं कृपया करके मुझे माफ कर दो मैं तो एक गरीब किसान हूं। मुझे तो यह सब कुछ करनें के लिए धन्ना सेठ ने और तुम्हारे गौ को छीनने के लिए कहा था। उसने मुझे धमकी दी थी कि यदि वह तुम्हारी गाय को मुझे लाकर नहीं देगा तो वह मेरे सारे परिवार को मार देगा।

चुन्नू के पिता दूसरे किसान को पकड़ करराजा के पास ले जाकर बोले ए राजा जी आपके राज्य में ऐसे गुनाहगार मौजूद है। राजा ने कहा उसने क्या किया।? चुन्नू के पिता ने सारा हाल कह सुनाया कैसे धन्ना सेठ ने उस के बेटे से गाय छिनने के लिए अपनें गांव के दूसरे किसान से कहा कि तू इस गाय को चुन्नु से छीन ले वर्ना मैं तेरे सारे परिवार को मार दूंगा। धन्ना सेठ बाद में मेरे बेटे को भी कोई नुकसान ना पहुंचाए इसलिए इस गवाह को आपके पास लाया हूं। राजा ने कहा ठीक है वह तुम्हारे बेटे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा। किसान बोला अगर वह धन्नासेठ मुझे मार देगा तो आप मेरे बेटे को अच्छी शिक्षा दिलवा कर उसका ध्यान रखना।

राजा को सच्चाई का पता चल चुका था। राजा ने अपने सैनिकों को आज्ञा दी कि धन्ना सेठ को पकड़कर उसे फांसी तक पहुंचाया जाए। धन्ना सेठ बड़ा ही जालिम था। उसने सोचा मैंने मरना तो है ही। क्योंकि उस का पर्दाफाश हो चुका था। उसने चुन्नु के पिता को मारने की योजना बनाई। उसने रातोरात उसके पिता को मरवा डाला।
चुन्नु अपने पिता की लाश को देखकर जोर जोर से रोने लगा। राजा नें स्वंय चुन्नु के घर जाकर कर कहा बेटा तुम्हें डरने की कोई जरूरत नहीं। तुम्हारे पिता ने सच्चाई से मुझे अवगत करवा दिया था। मैंने सोचा वह तुम्हारे पिता को कुछ नहीं करेगा। मैं गल्त था। तुम्हें डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। तुम्हारी पढ़ाई का खर्चा मैं उठाऊंगा। तुम्हारी सुरभि गाय को भी उस धन्ना सेठ के आदमीयों नें कैद कर लिया था। तुम्हारी गाय को उन से छीन लिया है। धन्ना सेठ को फांसी की सजा सुना दी। और दूसरे किसान को छःमहीने की सजा देकर छोड़ दिया।