गुलमोहर

शीतल अपने माता-पिता की इकलौती बेटी थी। उसके माता पिता गरीब थे उन्होंने उसे बड़ी मुश्किल से पढ़ाया। पढ़ लिखकर वह चाहती थी कि मैं अपने माता-पिता को सारी खुशियां दूंगी। उसके माता पिता ने अपनी बेटी को पढ़ाने के लिए बहुत ही कठोर परिश्रम किया। वह अपनी मां को सारी सारी रात कपड़े सिलती देखा करती थी। बारहवीं तक पढ़ी उसके बाद उसने सोचा कि मैं डांस सीख लेती हूं। उसने डांस में भाग लेना शुरू किया। उसकी एक पक्की सहेली थी प्रीति। उसके साथ वह अपने दिल की हर बात बता देती थी। प्रीति के माता-पिता भी शहर को छोड़कर दूसरे शहर में जाने वाले थे। शीतु कादिल रो रहा था वह अपनी सहेली को जाते हुए नहीं देख देना चाहती थी। एक दिन जब वह संगीत में भाग लेने जा रही थी तभी उसकी तबीयत अचानक बिगड़ गई वह नीचे गिर गई। वह अपनी सहेली के साथ अस्पताल में गई। डॉक्टर ने उसे बताया कि वह जिन्दगी और मौत के बीच झूल रही है। तुम्हारे दोनों गुर्दे खराब है। वह अचानक घबरा गई सोचने लगी न जाने मुझे क्या बीमारी लग गई? मैं अपने जीते जी तो अपने माता-पिता को खुशियां नहीं दे सकी। मैं उनके ऊपर बोझ बनना नहीं चाहती। उसके माता पिता चाहते थे कि वह किसी अच्छे से लड़के से शादी करके अपना घर बसा ले। शादी करके अपना घर बसा ले। उसके पड़ोस में एक लड़का था वह उसे बहुत प्यार करता था। वह भी उसको मन ही मन चाहनें लगी थी। एक दिन जब वह आया तो वह बहुत ही उदास थी वह बोली तुम भी यहां से चले जाओ। मेरी प्यारी सहेली भी मुझे छोड़ कर जा रही है। मैं किसके साथ बातें करूंगी। एक ही तो मेरी पक्की सहेली थी। जिससे मैं अपना सुख दुख बांट लेती थी। गौरव ने उसे कहा कि तुम दुखी क्यों होती हो? मैं तुम्हारा दोस्त हूं।

तुम अपने मन की बात मुझसे कह सकती हो वह कुछ नहीं बोल बोली। उसकी सहेली उसको छोड़ कर चली गई जिस दिन वह अस्पताल गई उसकी सहेली ने कहा अंकल आंटी को अपनी बीमारी की बात बता दो। शीतल ने अपनी सहेली को कसम दे दी कि तुमने भी मेरी बीमारी की बात मेरे माता-पिता से की तो मैं तुमसे कभी बात नहीं करूंगी। तुम्हें कभी नहीं मिलूंगी। समझूंगी तुमने मुझे सदा के लिए खो दिया। मेरे माता-पिता वैसे ही बहुत परेशान हैं। मेरी बीमारी की बात सुनकर वे और भी उदास हो जाएंगे। मेरी बीमारी की बात सुनकर उन पर ना जाने क्या गुजरेगी। इतना रुपया कहां से लाएंगे।? हम गरीबों के पास तन ढकने के लिए कपड़ा भी मुश्किल से होता है ऊपर से मेरी बीमारी इससे अच्छा होता मैं यूं ही मर जाना चाहती हूं। किसी को दुखीः नहीं करूंगी। उसकी सहेली दूसरे शहर में चली गई थी। कुछ दिनों से शीतु उदास रहने लगी थी।

उसके माता-पिता उसे पूछते तुम उदास क्यों रहती हो।? तुम्हारी और सहेलियां बन जाएगी परंतु उनसे अपनी बीमारी की बात छुपा जाया करती थी। उसके माता-पिता उस से बोले गौरव बहुत ही अच्छा लड़का है। तुम उस से शादी करके अपना घर बसा लो। तुमसे वह बिना दहेज के शादी करना चाहता है। हम तब तक तुम्हारी शादी नहीं करेंगे जब तक तुम हां नहीं करोगी। उसनें अपने माता-पिता से कहा मुझे अभी शादी नहीं करनी है। उसनें एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। वह कड़ी मेहनत करके अपने माता-पिता के लिए रुपए इकट्ठा कर रही थी। उसने ₹50000 इकट्ठे कर लिए थे। उसने एक संयुक्त खाता अपने माता पिता के नाम खोल दिया था।

उसके माता-पिता पढ़ना लिखना नहीं जानते थे उसके माता पिता चाहते थे कि हम दोनों तो पढ़ नहीं सकें मगर हमारी बेटी पढ़ लिखकर एक दिन बड़ी अवसर अवश्य बनेगी। एक दिन गौरव उनके घर आया तो शीतु बेहद उदास बैठी थी। वह उससे बोला तुम्हारी सहेली तो चली गई है। तुम अब मुझे ही अपना दोस्त समझो। वह बोली तुम मेरे घर मत आया करो अच्छी सी लड़की देख कर शादी कर लो। मुझे शादी नहीं करनी है। कुछ दिनों से वह देख रहा था शीतु के व्यवहार में परिवर्तन आ गया था। वह सोच रहा था कि शायद अपनी सहेली के बिछड़ जाने का गम उसे अंदर ही अंदर खाए जा रहा है। शीतु को डायरी लिखने का बहुत शौक था। वह अपनी डायरी में कुछ ना कुछ लिखती रहती थी। एक दिन जब गौरव आया तो वह डायरी पर कुछ लिख रही थी। गौरव को देखकर उसने वह डायरी छुपा दी। गौरव ने घर जाकर सोचा शीतु पहले तो इतनी उदास नहीं रहती थी। आज ना जाने वह डायरी में क्या लिख रही थी।
मुझे चुपके से किसी ना किसी दिन उसकी डायरी को अवश्य पढ़ना चाहिए। शीतु को बाग में जाने का बहुत शौक था। उसके घर के पास एक गुलमोहर का पेड़ था। उस पेड़ को देखकर उसे घंटों निहारा करती थी। उस पेड़ के सारे पत्ते झड़ने लगे थे। उस पेड़ को देखकर वह सोच रही थी कि उस पेड़ को वह बचपन से देखते आ रही थी। उसके पत्ते कितने खिले-खिले से रहते थे? काफी दिनों से इसमें कम ही पत्ते दिखाई दे रहे थे। उसमें केवल अब केवल थोड़े से पत्ते बचे थे। जैसे तैसे पत्ते झड़ते जाते थे वह भी डरती जाती थी कि मैं भी एक दिन मर जाऊंगी। मेरी जिंदगी की भी चंद सांसे शेष हैं। मेरे पास भी गिने चुने ही दिन है।

उसने अपनी पास बुक के सारे रुपये जो अपने डांस से कमाए थे अपने माता-पिता के नाम पर दिए। एक दिन बाग में जब गई तो उस पेड़ पर केवल दस पत्ते ही दिखाई दिए। वह डरकर कांपनें लगी आकर उसने अपनी डायरी में लिखा मेरी जिंदगी भी शायद दस बारह दिन की हो। जब इस पेड़ पर एक भी पता नहीं बचेगा तो मैं भी मर जाऊंगी। मैं गौरव के साथ शादी नहीं करूंगी।

उसकी सहेली प्रीति से रहा नहीं गया उसने गौरव को फोन पर सारी बात बता दी कि शीतु अब केवल थोड़े दिन की ही मेहमान है। गौरव अपनी दोस्त को खोना नहीं चाहता था। वह सोचने लगा मुझे मुझे शीतु ने अपनी बीमारी की बात नहीं बताई और अपने माता-पिता से भी इसलिए छुपाई क्योंकि वह अपने माता-पिता को तंग नहीं करना चाहती थी। उनके पास उसकी बीमारी के इलाज के लिए रुपए कहां से आएंगे? गौरव अचानक उसके घर पहुंच गया अंदर जाकर दरवाजा खटखटाया। शीतु अभी तक डांस स्कूल से वापस नहीं आई थी। उसने आंटी को कहा आंटी जी क्या आज आप चाय नहीं पिलाएंगे? उसकी आंटी चाय बनाने के बाद अंदर चली गई। गौरव ने शीतु के कमरे में झांका। उसने उसके कमरे से डायरी निकाल ली। उसमें लिखा था गुलमोहर के पेड़ में केवल दस पत्ते बचे हैं। शायद मैं भी दस दिनों तक ही जिंदा बच पांच। मैं किसी को भी अपनी बीमारी के बारे में बता कर परेशान नंही करूंगी।

गौरव तो एक अच्छा लड़का है वह कहीं भी शादी कर सकता है। जिसके पास धन दौलत है। सब कुछ है मैं तो किसी के काम नहीं आ सकी। न ही एक अच्छी बेटी साबित हुई। गौरव ने बाग में जाकर गुलमोहर के पेड़ को निहारा। उस पर दस पत्ते बचे थे। वह सोचने लगा शायद मैं अपने दोस्त को,,,, बचा पांऊ। गौरव नें आंटी अंकल को कहा आप मेरी बात ध्यान से सुनो। आपकी बेटी नें आपसे अपनी बीमारी के बारे में छुपाया था। वह आपको इसलिए नहीं बताना चाहती थी क्योंकि आप उसकी बीमारी की खबर सुनकर इतना रुपया नहीं जुटा पाएंगे। शीतु के पापा बोले मैं अपना सब कुछ बेच कर अपनी बेटी को बताऊंगा। गौरव बोला आप चिंता मत करो आप अपनी बेटी को कुछ मत बताना। जैसा मैं कहूंगा वैसा ही करते रहना। गौरव नें अंकल आंटी को कहा कि आप दोनों से किसी पर्वतीय स्थल पर एक हफ्ते के लिए जाओ। उसके पापा ममी अपनी बेटी को ले कर कुल्लू मनाली ले गए। शीतु का दिल वहां पर भी नहीं लगा। गौरव नें अपने आदमियों को बुलाकर कहा कि तुम इस गुलमोहर के पेड़ पर उसी तरह के पत्ते लगा देना देखने में लगे कि वह असली पत्ते हैं। इसके लिए मैं तुम्हें बहुत सारे रुपए दूंगा। गुलमोहर के पेड़ पर उन लोगों ने उसी तरह के इतने पत्ते लगा दिए जिससे ऐसा लगता था कि वह खिल गई हों। शीतु जब कुल्लू मनाली से वापस लौटी तो बाग में घूमने गई। उसने देखा गुलमोहर के पेड़ पर चालीस पचास पते आ गए। उसे खुशी महसूस हुई वह सोचने लगी मेरी बीमारी ठीक भी तो हो सकती है। वह भी तो ठीक हो सकती है। उसमें जीने की तमन्ना जाग गई। वह खानपान का विशेष ध्यान रखने लगी। डॉक्टर ने उसे अस्पताल में बुलाया। जब हौसला कर के अस्पताल तक पहुंची तो डॉक्टर ने उसकी रिपोर्ट देकर कहा कि जो रिपोर्ट हमने तुम्हें दी थी वह तुम्हारी रिपोर्ट नहीं थी। वह किसी और लड़की की रिपोर्ट थी। तुम्हारी रिपोर्ट तो बिल्कुल नॉर्मल आई है। गौरव ने अपनी दोस्त का ध्यान रखा हवह अपनी दोस्त को अकेले नहीं छोड़ता था। उसे वक्त पर दवाइयां खिलाता था। वह उससे कहता तुम एक दिन तुम पहले वाली शीतु बन जाओगी। तुम्हें कुछ नहीं होगा। गुलमोहर के पेड़ पर खूब सारे फूल खिल गए थे। उन फूलों को देखकर उसका मन खुश होनें लगा। एक दिन उसके स्वास्थ्य में सुधार हो गया। गौरव ने उसकी जिंदगी में आ कर उसे नया जीवनदान दिया था। खुशी खुशी उसनें गौरव के साथ शादी करनें का फैसला कर लिया। सभी की खुशीयां लौट आई थी।

सबक

संगीता और वीरू की जिंदगी बहुत ही खुशहाल थी। वह दोनों अपनी बेटी के साथ बहुत ही खुश थे। वीरू कॉलेज में एक सुपरिंटेंडेंट के पद पर आसीन थे। दिन इसी तरह व्यतीत हो रहे थे कॉलेज में वीरु के दोस्त की बेटी ने प्रवेश लेना था। उसे वहां प्रवेश नहीं मिल रहा था तभी वीरू के दोस्त ने सोचा क्यों ना वीरु से अपनी बेटी के कॉलेज में प्रवेश लेने के लिए सिफारिश की जाए। वह दोनों पति-पत्नी वीरु के पास अपनी बेटी के दाखिले के लिए कार्यालय में पहुंचे। कॉलेज में वीरू को ऑफिस का एक कमरा मिला था। जहां पर कॉलेज के विद्यार्थी कॉलेज के प्रवक्ता और प्रिंसिपल सभी वीरों की खूब प्रशंसा किया करते थे। वह घर आकर अपनी बेटी और पत्नी को बहुत खुश रखता था। उनके लिए कभी-कभी उपहार भी ले जाता था और कभी-कभी महीने के एकदिन तीनों मिलकर किसी रेस्टोरेंट में बैठकर खाना खाते थे। वह घर आकर अपनी पत्नी और बेटी के साथ थोड़ी देर बैठ कर उनके साथ मौज मस्ती भी करता था,। इसी तरह दिन गुजर रहे थे।

एक दिन वीरू के दोस्त ने वीरु को और उसकी पत्नी को घर पर खाने के लिए बुलाया तभी खाना खाने के पश्चात वीरू के दोस्त ने वीरू को कहा कि कृपा करके मेरी बेटी को अपने कॉलेज में किसी भी तरह दाखिला दिलवा दो। उसके कुछ कम अंक आए हैं कृपया आप किसी ना किसी तरह मेरी बेटी को कॉलेज में प्रवेश दिला दो इसके लिए मैं डोनेशन देने के लिए भी तैयार हूं। वीरू ने कहा देखो भाई अगर प्रिंसिपल तुम्हारी बेटी को प्रवेश देने के लिए राजी हुए तो ठीक है परंतु मैं डोनेशन वगैरा के चक्कर में नहीं पड़ता। मैंने अपनी बेटी के दाखिले के लिए भी किसी को घूस नहीं दी थी ना मैं रिश्वत लेता हूं और ना देता हूं। मैं प्रधानाचार्य जी से तुम्हारी बेटी के दाखिले के लिए बात अवश्य करूंगा अगर वह राजी हो गए तो ठीक है वर्ना तुम बुरा मत मानना।

अगले दिन वीरू ने प्रधानाचार्य जी को सारी बातें कहीं। प्रधानाचार्य ने कहा हमारे कॉलेज में रिश्वत नहीं ली जाती यहां पर दाखिला उन्हीं को मिलता है जिन्होंने टॉप किया हो मैं प्रवेश दिलाने के लिए असमर्थ हूं। वीरु ने अपने दोस्त को कहा कि प्रधानाचार्य जी ने रिश्वत लेने से इन्कार किया है तो उसके दोस्त नें वीरू को कहा कि कृपा करके मेरी बेटी को दाखिला दिलवा दो। वीरु नें साफ शब्दों में इंकार कर दिया। उसका दोस्त उससे बहुत ही नाराज हो गया। वह किसी ना किसी बहनें उसको नीचा दिखाने की कोशिश करने लगा। कोई भी ऐसा मौका नहीं छोड़ता था। उस को नीचा दिखाने की भरपूर कोशिश करता रहता था। उसके कार्यालय में तीन चार कर्मचारी ऐसे थे जिन्हें पीने की लत थी हवह खाना खाने के समय लंच का समय जब होता था खाना खाने के बाद थोड़ी सी पी लेते थे। वीरू के दोस्त ने उन कर्मचारियों के साथ मिलकर योजना बनाई। उसने उन तीनों कर्मचारियों को कहा कि अगर तुम तीनों वीरु को पीने की लत लगा दोगे तब मैं उन्हें अपना सच्चा दोस्त मानूंगा। मैं तुम्हें इसके लिए ₹20000 भी दूंगा। इसने मेरी बेटी को इस कॉलेज में दाखिला नहीं करवाया इसके लिए मैं इसके लिए कभी माफ नहीं करूंगा इसकी नौकरी पर ऐसी लात मारूंगा कि इसको खुद ही नौकरी छोड़ कर यहां से जाना पड़ेगा। इस को नीचा दिखाने की भरपूर कोशिश करूंगा।

वे तीनों कर्मचारी मिलकर वीरु कोअपने जाल में फंसानें की कोशिश करने लगे। किसी ना किसी बहाने से खाना खाने के लिए अपने साथ ले जाते। जब वह खाने के लिए मना करता तो उसे कहते कि वह उसे अपनी मित्रता के काबिल नहीं समझते। इसलिए उनके पास खाना खाने में अपनाअपमान समझते हैं। उन्हें भी मना नहीं कर सकता था वह उनके साथ खाना खाने लगा। धीरे-धीरे उन्होंने उसे थोड़ा-थोड़ा पिलाना भी शुरू कर दिया। धीरे-धीरे उसे भी नशे की आदत लग गई थी। घर आता तो बेहद उदास नजर आता अपनी पत्नी और बेटी के साथ खुलकर बात भी नहीं करता था।

संगीता उसे देख कर कहती कि तुम उदास क्यों हो? हमें बताओ वह कभी भी अपनी पत्नी और बेटी को कुछ नहीं बता पाता था था। पूछने पर वह अपनी पत्नी और बेटी पर गुस्सा करने लगता था। एक दिन जब वह अपने कार्यालय में आया तो उसने सारे बच्चों की फीस और सारे रुपयों को अलमारी में रखा उसने गिने पूरे ₹50000 थे। उसके साथ वाले दोस्तों ने उसे इतनी अधिक पिला दी कि उसे अलमारी की चाबी का ध्यान भी नहीं रहा। उसके दोस्तों ने ₹50000 निकाल लिए और चोरी का इल्जाम भी उस के ऊपर लग गया।

कॉलेज के प्रधानाचार्य ने उसे अपने पास बुलाया और कहा कि रुपए कहां है? उसने कहा मुझे नहीं पता उन्होंने उसे इतना अधिक नशा करवा दिया था कि वह कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं था। उसके अन्य दोस्त कर्मचारीयों नें उसके पर्स में ₹50000 निकाल लिए। प्रधानाचार्य ने उसे नौकरी से निष्कासित कर दिया। संगीता ने जब अपने पति को नशे की हालत में देखा तो वह बहुत ही बेचैन हो गई उस ने उसे समझाया प्रस्तुत उसका पति नशे के दलदल मे इतना अधिक फंस चुका था कि उस से निकलना आसान नहीं था। संगीता सोचने लगी कि ऐसा क्या हुआ हमारे पास किस चीज की कमी भी नहीं थी। फिर क्यों उन्होंने नशे की प्रवृति को अपना लिया। उसकी बेटी ने भी अपने पापा को बहुत समझाने की कोशिश की परंतु उसने उन दोनों की बात नहीं मानी। एक तो नौकरी गंवा दी और दूसरी सारी सारी रात घर नहीं आना। वीरू का दोस्त अपने दोस्त को दलदल में फंसा देखकर फूला नहीं समा रहा था। संगीता ने और उसकी बेटी ने सोचा कि उसे इस दलदल से बाहर निकालना हमारा फर्ज है ह हम दोनों एक होकर इस फर्ज को अवश्य पूरा करेंगे। एक दिन जब वह पीकर घर आकर अपनी पत्नी और बेटी पर चिल्लाने लगा तो उसकी पत्नी ने जोर देकर कहा कि आज मैंने भी अपने ऑफिस में अपना त्यागपत्र दे दिया है। अब मैं भी कल से नौकरी पर नहीं जाऊंगी। उसकी बेटी बोली मां मैंने भी अपना कॉलेज जाना आज से बंद कर दिया है। मैं भी कॉलेज नहीं जाऊंगी। आज हम तीनों बैठकर पीते हैं। आओ बेटा आज हम तीनों बैठकर ड्रिंक करते हैं। बेटी तीन गिलास ले आई और अपने पापा को देती हुई बोली पापा चलो पीते हैं।

अपनी बेटी और पत्नी के शब्द उसे एक नश्तर की की तरह दिल में चुभनें लगे। ं जिन्होंने उसे अंदर तक झकझोर कर रख दिया। उस समय तो वह अपनी पत्नी को बोला प्रिये तुमने अपनी नौकरी से त्यागपत्र क्यों दिया।? उसकी पत्नी बोली जब आप ही वापस अपनी नौकरी पर नहीं गए और जब तक आप नें पीना नहीं छोड़ा तब तक हम दोनों भी अपने काम पर नहीं जाएंगे। चाहे हम आपके साथ भूखे मर जाएंगे परंतु हम कभी भी उफ तक नहीं करेंगी। वीरू को अपने किए पर पछतावा हुआ उसने उन्हें विश्वास दिलाया कि वह अवश्य शराब को कभी भी हाथ नहीं लगाएगा और ना ही कभी शराब पिएगा। कुछ दिन तक तो उसने शराब को हाथ नहीं लगाया मगर फिर वह शराब फिर पीने लगा। संगीता ने सोचा कि अपने पति को किस तरह इस नशे से बचाया जाए। उसने अपनी दोस्त के बेटे के साथ मिलकर योजना बनाई कि अपने पति को सुधारा जाए। संगीता की दोस्त का बेटा शौर्य संगीता के घर में पहुंच गया। संगीता और उसकी बेटी उसके साथ ड्रिंक करने लगी। वह ड्रिंक नहीं कर रही थी वह तो सेब का जूस था जो उन्होंने अपने तीनों गिलासों में मिलाया था। अपने पति को सबक सिखाने के लिए वह अपने दोस्त की सहेली के बेटे के साथ खूब घुल घुल मिलकर शराब पीने का नाटक कर रही थी। कभी-कभी अनजाने में वह संगीता का हाथ पकड़ने लगता। जब शौर्य ने एक बार फिर संगीता का हाथ पकड़ा तो वीरू से नहीं रहा गया उसने एक जोरदार तमाचा अपनी पत्नी और अपनी बेटी पर जड दिया। उसकी बेटी जोर जोर से रोने लगी बोली पापा अगर आप सुधर नहीं सकते तो हम भी आपकी राह अपनाएंगे। जब आप हमारी एक भी बात नहीं मान सकते तो हम भी आपकी कोई बात नहीं मानेंगे। आज से हम दोनों भी आजाद हैं।

हमारा जो मन करेगा हम वही करेंगे। आप कौन होते हो हमें रोकने वाले? वीरू की आंखों से नशा उतर गया था। उसे अपने किए पर पछतावा हुआ। उसने उन दोनों को विश्वास दिलाया कि तुम दोनों अगर नशा नहीं करोगी तो वह भी इस दलदल से निकलनें की कोशिश करेगा। उसने सारी बोतल फेंक दी और उस लड़के को धक्का देकर कहा यह मेरा घर है तुम यहां कैसे आए? धीरे-धीरे वीरू में सुधार आ रहा था। उसने अपने पीने की आदत को छोड़ दिया था जब उसका पीने का मन करता तो वह अपने आपको किसी और कार्य में लगा देता।

वह एक दिन कॉलेज के प्रधानाचार्य जी से मिला। उसने प्रधानाचार्य जी को सारी बात बताई कि पता नहीं उसे शराब की लत कैसे लगी? जिस कारण उस से ऐसी गलती हुई आप मेरी गलती को माफ कर दीजिए। एक बार तो आप मुझे माफ कर ही सकते हैं। स्कूल के प्रधानाचार्य जब चाय पीने कैंटीन गए हुए थे तो उन्हें संगीता मिली और उसने अपने पति की सारी बातें उनसे कही मेरे पति कभी भी कोई गलत काम नहीं करते थे। उन्हें आपके ऑफिस में ही किसी कर्मचारी ने इतनी अधिक पिला दी और उन्हें इतना पिलाते गए कि उन्हें इस नशे के दलदल से निकलना मुश्किल हो गया। कृपया करके आप अगर पता लगाएंगे तो मैं समझूंगी कि आपने हम पर दया करके बहुत ही बड़ा उपकार किया है। कॉलेज के प्रधानाचार्य बहुत ही अच्छे इंसान थे। उन्होंने सोचा शायद वीरू की पत्नी ठीक कर रही है। उन्होंने सच्चाई को पता लगाने की कोशिश की अब हर समय कॉलेज के कर्मचारियों पर नजर रखने लगे। एक दिन वे तीनो कर्मचारी जिन्होंने उसे शराब के दलदल में घसीटा था उन तीनों को बात करते प्रधानाचार्य जी ने सुना। तीनों कह रहे थे बेचारा वीरू भोला-भाला जो कभी नशे को हाथ तक नहीं लगाता था हमने उसे नशा करने को प्रेरित किया और वह अलमारी की चाबी प्राप्त करके हमने उसकी जेब में ₹50000 रख दिए थे। चोरी का इल्जाम वीरु पर लग सके। ऐसा करने के लिए आज उन्हें मल्होत्रा जी ने ₹20000 देने का वादा किया था। वादे के मुताबिक मल्होत्रा जी ने आज उन्हें ₹20000 दे दिए थे। आज तीनों जश्न मनाने आए थे उन तीनों ने शराब की तीनों बोतलें मंगाई। उन्होंने शराब पीकर सारी बातें उगल दी थी। प्रिंसिपल साहब को वीरु की बेगुनाही का सबूत मिल चुका था ह वह अपने आप को कोसने लगे कि बेचारे वीरु का क्या दोष? उन तीनों ने उसे नशे के दलदल में अग्रसर कर दिया था। वे तीनों अगर उसे दलदल में नहीं घसीटते तो वह कभी ऐसा नहीं करता। प्रधानाचार्य जी समझ गए कि बीनू की पत्नी सच ही बोल रही थी। दूसरे दिन प्रधानाचार्य जी ने वीरू को अपने कार्यालय में बुलाया और उसे कहा कि जाओ मैंने तुम्हें माफ किया। कल से तुम काम पर आ सकते हो मुझे आज पता चल चुका है कि यह काम किसने किया था?और क्यों करवाया गया? प्रधानाचार्य ने तीनों कर्मचारियों को अपने पास बुलाया और कहा कि अगर तुम्हें अपनी नौकरी प्यारी है तो तुम सच-सच बताओ तुम्हें बिंदु को उकसाने के लिए चोरी के रुपए रखने के लिए और नशा करने के लिए किसने कहा था।? तीनों कर्मचारियों ने कहा कि हम तीनों को मल्होत्रा जी ने कहा था। इस वीरु को नशे के दलदल में इतना गिरा दो वह चैन से कभी जी ना सके। उसने हम से कहा था इसने मेरी बेटी को कॉलेज में दाखिला दिलवाने का प्रयत्न नहीं किया। वीरू यह सुनकर हक्का-बक्का रह गया। उसे तो मानो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसका चहेता दोस्त उसके साथ इतना बुरा बर्ताव कर सकता है। संगीता ने अपने पति को कहा की वे दोनों भी आपके साथ अपनी सहेली के बेटे के साथ मिलकर शराब पीने की एक्टिंग कर रहे थे । वह सब आपको सबक सिखाने के लिए संगीता ने अपने पति को कहा कि उसने अपने कार्यालय से त्यागपत्र नहीं दिया था और ना ही आपकी बेटी ने कॉलेज छोड़ा था । यह सुनकर वीरू बहुत खुश हुआ। उसने अपनी बेटी और पत्नी को विश्वास दिलाया वह कभी भी किसी के बहकावे में नहीं आएगा। वह शराब को कभी हाथ भी नहीं लगाएगा। यह कहकर उसने अपनी बेटी और पत्नी को गले से लगा दिया।

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एक भूल का पश्चाताप

पहाड़ की तलहटी पर एक छोटा सा गांव था वहां पर एक औरत रहती थी उसका नाम था पारो। उसका छोटा सा बेटा था किशन। पारो और उसका पति अपने बच्चे किशन के साथ एक छोटे से गांव में रहते थे। उनके पास एक छोटा सा खेत था जिसमें दिन रात मेहनत करके वह अपने बच्चे का पेट भर रहे थे। एक दिन किशन अपनी मां के साथ मेला देख कर वापस आ रहा था उसे बड़ी जोर की प्यास लगी रास्ते में एक घर था वहां पर उन्होंने दरवाजा खटखटाया और कहा कृपया मेरे बेटे को पानी पिला दो। गांव की गृहणि ने एक महिला को देखा। जो अपने बच्चे को साथ लिए आई और पानी के लिए गुहार लगाई। घर की मालकिन बोली ठहरो अभी मैं अपने बच्चे को दूध पिला रही हूं। वह अपने बच्चे को दूध पिला रही थी। उसने दूध का गिलास अपने बच्चे को दे दिया और कहा बेटा तुम बैठ कर दूध पिओ। उसका बेटा चारपाई पर बैठ गया और दूध पीने लगा। गांव की औरत एक छोटे से गिलास में दूध लेकर आई और बोली तुम इसे अपने बच्चे को दे दो। उसने वह दूध का गिलास उस बच्चे को दे दिया। किशन एक ही घूंट में वह दूध पी गया उसे दूध बहुत ही स्वाद लगा। किशन की मां ने कहा भगवान तुम्हारा भला करे।
अपने बेटे को लेकर घर आ गई लेकिन किशन ने अपनी मां को कहा मां हमारे घर में दूध क्यों नहीं है? मुझे दूध बहुत अच्छा लगता है। वह बोली बेटा दूध पीने के लिए गाय होनी चाहिए। किशन बोला गाय ले आओ। बेटा हम गरीब आदमी हैं हम गाय नहीं ले सकते। गाय के लिए तो ईश्वर की पूजा करनी पड़ती है। ईश्वर के पैर पकड़ने पड़ते हैं। तब कहीं जाकर गाय मिलती है। इस बात को बहुत दिन व्यतीत हो गये। किशन छोटा सा नन्ना सा मासूम तीन साल का था। उसे क्या पता ईश्वर क्या होता है?
5 साल का हो चुका था स्कूल जाने लग गया था। वह सच में ईश्वर को ढूंढ कर ही छोड़ेगा। मेरे साथ स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के घर में गौवें हुए हैं। सब कुछ उनके घर में ही दे दिया हमारे घर में तो कुछ भी नहीं है। मैं दूध पीने के लिए भी तरस गया। मेरी मां मुझे दूध तो क्या सूखी रोटी खिला खिला कर स्कूल भेजती है। कभी-कभी तो नमक के साथ गुजारा करना पड़ता है। किशन नें स्कूल से आकर घर जाकर ईश्वर को ढूंढना शुरू कर दिया। एक साल बीत चुका था उसे ईश्वर नहीं मिला। वह सोचनें लगा अब तो वह छुट्टी वाले दिन ईश्वर को खोजने जाएगा।

एक दिन इतवार की छुट्टी थी वह घर से चला गया मां ने पूछा तुम कहां जा रहे हो।? वह बोला मैं ईश्वर को ढूंढने जा रहा हूं ताकि वह जल्दी से मुझे गाय दे दे। मैं भी गाय का ताजा दूध पी सकूंगा। वह उसे ना करने जा ही रही थी परंतु किशन तो भाग चुका था। चलते-चलते उसे शाम हो चुकी थी। उसे ईश्वर का घर नहीं मिला। वह काफी चल चुका था। अचानक किसी व्यक्ति ने पूछा क्या यह ईश्वर जी का घर है? उस व्यक्ति ने कहा हमें उनके घर कुछ संदेश देना है। यह बात किशन नें भी सुनी उसने सोचा जब वह आदमी अपनी बात करके आएगा तभी मैं अंदर जाऊंगा। जैसे ही वह अंदर गया तब किशन मन ही मन बड़ा खुश हुआ। आज ईश्वर के पैर पकड़कर मैं उनसे अपने लिए गाय मांग लूंगा। जैसे ही वह व्यक्ति बाहर आया किशन जल्दी से दौड़ करअंदर चला गया। अंदर जाकर उसने घर के नौकर से कहा। मैं ईश्वर जी से मिलना चाहता हूं। आज मुझे ढूंढते-ढूंढते एक साल हो चुका है। आज कहीं जा कर मुझे ईश्वर मिले। तभी ईश्वर आकर बोले बेटा मुझे बताओ क्या काम है? ईश्वर जी जैसे ही आए किशन नें उनके पैर पकड़ लिए। आपको पता नहीं कहां कहां ढूंढा? कृपया आप अब मत जाना। पहले मेरी बात सुन लो आपने तो किसी को पांच पांच गायें दी हैं। किसी के पास एक गाय भी नहीं है। मेरी मां ने मुझे कहा था कि अगर तुमने दूध पीना है तो ईश्वर के पैर पकड़ लेना। उनकी पूजा करना मेरे पास पूजा करने के लिए धूप नहीं है। मेरी जेब में एक टॉफी है। यह खाइए भगवान जी। आपको मेरे हाथ से टॉफी तो खानी ही पड़ेगी। उनकी समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि यह बच्चा क्या कह रहा है? तभी उसकी पत्नी ने समझाया कि इसकी मां ने इसी विश्वास दिलाया होगा कि ईश्वर यानी भगवान की पूजा करनी पड़ती है। आप को यह बच्चा भगवान समझ रहा है। इस बच्चे को क्या पता ईश्वर क्या होता है।? वह तो आपको ही ईश्वर समझता है।

आज तो आपने अपने बेटे का जन्मदिन मनाया है। आपके घर में तो दस दस गौंवें हैं। हम ग्वाला जाति के हैं अगर तुम इस बच्चे को एक गाय दे दोगे तब हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। उस नन्हें बच्चे की बात सुनकर उस नन्हे से बालक को कहा बेटा हम तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करेंगे। तुम हर रोज गाय का दूध पीना। मैं तुम्हें आज ही एक गाय देता हूं। उसने अपने नौकर के हाथ किशन के घर गाय भिजवा दी। किशन की मां ने रो-रो कर अपना हाल बुरा कर लिया था। मेरा बेटा कहां चला गया। तभी किशन को वापिस आया देखकर किशन की मां बहुत ही खुश हुई किशन के गले लिपट कर बोली बेटा तुम कंहा चले गए थे? तुम क्यों चले गए थे? वह बोला मुझे आज ईश्वर मिले। उसने कहा ईश्वर के आदमी यहां गाय को छोड़कर चले गये किशन की मां भी हैरान थी यह चमत्कार किसी भगवान से कम नहीं था। वह अपने बेटे को गाय का दूध हर रोज पीनें को देने लगी।वह हर रोज दूध पीता और स्कूल जाता। किशन जो कुछ खाता वह गाय को पहले देता गाय को बहुत ही प्यार करता था। गाय को घास खिलाना चारा खिलाना यह काम किशन की मां करती थी। वह गाय का दूध भी घरों में बेचने लगी थी। एक बार उसकी गाय ने दूध कम देना शुरु कर दिया।

किशन की मां ने सोचा वह अपने बेटे को दूध नहीं देगी। अपने बेटे को कह देगी की गाय ने दूध नहीं दिया। उस तरह से उसने किशन को कह दिया कि गाय अब दूध नहीं देती है। वह चुपके-चुपके जो दूध मिलता उसे वह बाजार में बेच देती थी। स्कूल में किशन पढ़ने जाने लगा था। स्कूल में जो कुछ भी सीखता वह अपने मन में उतार लेता था। उसकी मैडम ने उसे समझाया बेटा जो झूठ बोलते हैं उन्हें ईश्वर माफ नहीं करते। उसने कसम खाई कि वह कभी झूठ नहीं बोलेगा। क्योंकि ईश्वर ने ही तो उसे गाय दी है। जिसका दूध पीकर वह रोज स्कूल जाता है। बेचारी गाय आजकल दूध भी नहीं देती।
जब वह घर आया तो उसने देखा एक आदमी उसके घर पर दूध लेने आए थे। उन्होंने रुपए मां के हाथ में पकड़ाए और कहा आज ₹50 का आपका दूध बिका। किशन देख रहा था जब अंकल चले गए तो उसने अपनी मां को पूछा मां क्या आज भी गाय ने दूध नहीं दिया? उसकी मां बोली बेटा आजकल यह गाय दूध ही नहीं देती है। छोटे से बच्चे ने सुना वह हैरान रह गया उसकी मां झूठ बोल रही है पर पता नहीं क्यों मेरी मां झूठ क्यों बोल रही है?
उसने अपनी आंखों से दूसरे दिन भी दूध ले जाते देखा उसने अपनी मां से पूछा। अंकल क्यों आए थे।? वह बोली तुम्हारे पिता से मिलने आए थे। किशन को यह बात बहुत ही बुरी लगी। मेरी मां गाय का दूध बाजार में बेच दी है। ईश्वर से मैंने गाय इसलिए मांगी थी ताकि मुझे दूध पीने के लिए मिले परंतु मेरी मां को दूध प्राप्त कर लालच आ गया है। मैं इस गाय को ईश्वर को वापस लौटा दूंगा। इतवार का दिन था। उसने गाय को लिया और अपने एक अंकल की सहायता से उस गाय को लेकर ईश्वर के घर पहुंचा। वह तो वही बच्चा है जो मुझसे गाय लेकर गया था। उसने पूछा बेटा तुम क्यों आए हो।? वह बोला ईश्वर जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद इतने दिनों तक आपने मुझे गाय का दूध पीने को दिया। मैं आपका हृदय से अभिनंदन करता हूं। और मुझे इस गाय की आवश्यकता नहीं है मेरी मां को अब लालच आ गया है। मैंने यह अपनी आंखों से देखा है। वह गाय का दूध मुझे पीने को नहीं देती। गाय का दूध बाजार में बेच देती है। इसलिए अगर मैं आपको वापस करना चाहता हूं ताकि मेरी मां लालच ना करें। जब उनके पास गाय नहीं होगी तो वह मेहनत से कमाकर खाएगी इसलिए आपसे मेरी विनती है कि आप हमारी गाय वापस ले लो।

बच्चे की इमानदारी सुनकर ईश्वर हैरान हो गए वह सोचनें लगे ऐसा बेटा सबको दे। यह बच्चा बहुत ही होनहार है। कुछ दिनों बाद ईश्वर किशन के घर आकर उनसे मिलने आए। आपके बेटे ने मुझे आपकी सारी बात बताई कि आप गाय का दूध बाहर बेचती हो और अपने बेटे को कहते हो कि गाय ने दूध नहीं दिया। किशन की मां को अपनी गलती का पछतावा हुआ। मेरे बेटे ने मुझ पर विश्वास कर ईश्वर को ढूंढा मगर मैंने तो उसके विश्वास को ठेस पहुंचाई। मुझे सारी सच्चाई का पता चल चुका है वह बोली मेरा बेटा बहुत ही खुद्दार है अब मैं भी समझ चुकी हूं मैं खूब मेहनत करके अपने बच्चे के लिए गाय लेकर आऊंगी। ईश्वर ने कहा कि तुम एक शर्त पर गाय रख सकती हो आगे से तुम कभी भी झूठ नहीं बोलोगी। किशन की मां नें अपनी भूल के लिए ईश्वर जी से क्षमा मांगी। वह बोली वह तो आपको भगवान समझता है। किशन आकर बोला यदि आपको ईश्वर जी माफ कर दे तो ठीक है मैं भी आपको माफ कर दूंगा। उसने अपने बेटे को बुलाकर कहा बेटा मुझे अपनी भूल के लिए क्षमा कर दो। ईश्वर जी ने कहा चलो आज मैं तुम्हारी मां को माफ करता हूं। उन्होंने गाय किशन की मां को वापस कर दी।