धरती की मूल्यवान धरोहर(2)

नंदलाल अपना परीक्षा परिणाम जानने के लिए स्कूल गया था। उसका बारहवीं कक्षा का परिणाम आने वाला था। वह मन ही मन सोच रहा था कि हे भगवान इस बार तो मुझे पास कर ही दो। यह पढ़ाई वढ़ाई मेरे बस की बात नहीं। बस इंटरव्यू देकर कहीं नौकरी कर लूंगा। उसको पढ़ने का शौक नहीं था वह अपना परिणाम जानने के लिए बड़ा आतुर था। इंटरनेट पर सूचना आ चुकी थी। उसके अध्यापकों ने कहा हमें अपना रोल नंबर दे दीजिए। हम तुम सब बच्चों का परिणाम बता देंगे।

थोड़ी देर बाद अध्यापक बच्चों के पास आए और सभी को उनके अंक बताएं। नंदलाल पास हो गया था। खुशी के मारे उसके पैर जमीन पर नहीं पड रहे थे। शाम को उसके पिता ने कहा बेटा पढ़ाई वढाई तुम्हारे बस की बात नहीं यह तो शुक्र करो पास हो गए। फॉरेस्ट ऑफिसर का पद रिक्त है तुम्हें इंटरव्यू के लिए बुलाएंगे। अगर तुम सिलेक्ट हो जाओगे तो ठीक है नंदलाल सोचनेंलगा मुझसे क्या क्या पूछेंगे। इंटरव्यू के लिए नंदलाल को बुलाया गया वह जरा भी नहीं डरा। उसने सभी प्रश्नों के उत्तर दिए। बिना सोचे समझे लिखित परीक्षा में उसने अपने दोस्त श्याम की नकल कर दी। और फॉरेस्ट गार्ड के लिए उसको लैटर आ गया। नौमहीने की ट्रेनिंग के बाद उसको चुन लिया गया। अब उसे फारेस्ट के तौर पर पहले जंगलात विभाग में गार्ड के पद पर तैनात किया गया। उसने अपने पद को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया। जंगल में कई बार लोग पेड़ों को काटने आते तो उनको कभी सजा नहीं देता था। लोग पेड़ों को बड़ी बेरहमी से काट काट देते थे। उन्हें बाहर बेच देते थे। उस काम में उसने उन सभी लोगों को कहा तुम पेड़ों को काट लो जब तक मेरी ड्यूटी इस क्षेत्र में है। तब तक तुम भरपूर आनंद उठाओ तुम इन को बाजार में बेचोगे तो उसका आधा हिस्सा मुझे भी मिलना चाहिए। लोग उसकी बात मान जाते। उसे जरा सी भी लाज नहीं आती। बस सारा दिन जंगल में ड्यूटी तो नाम मात्र को करता। वहां पर पेड़ के नीचे काफी काफी देर तक सोता रहता। उनके बॉस ने उसे क्यारियों पौधों की देखभाल का दायित्व भी सौंपा था। लोग चुपचाप फूल तोड़ कर ले जाते बागों में फल फूल सब चुरा कर ले जाते वह चुपचाप सोया रहता। उसकी पत्नी उतनी ही नेक थी। उसका स्वभाव अपने पति के बिल्कुल विपरीत था। उसने अपने घर में इतना बड़ा बगीचा लगा रखा था। उसकी देखभाल करती थी। बगीचे में तरह तरह की सब्जियां लगाई थी। उसके लिए उसनें इतने बड़े बड़े दो खेत लिए हुए थे। जिसमें दिन रात मेहनत करके सब्जियों उगाती थी। उनके सब्जियों को बाजार में बेचती। उसे काफी रुपए मिलते।

एक दिन की बात है कि वह जंगल में एक वृक्ष के नीचे सोया हुआ था। उसको सपना दिखाई दिया। उस सपने में एक औरत दिखाई दी। वह बोली तुम एक बहुत ही बेईमान इंसान हो। रुपयों के लालच में इतना गिर जाओगे। तुम्हारे पास नौकरी नहीं थी जब तुम भगवान के मंदिर में माथा टेकने जाते थे और हर रोज प्रार्थना करते थे कि हे भगवान मुझे जब नौकरी मिल जाएगी तब मैं कभी भी लालच नहीं करूंगा। ईमानदारी का जीवन जीऊंगा। तुमने तो धरती मां का अपमान किया है। तुम कभी खुश नहीं रहोगे। जिन पेड़ों से हमें जीवन दान मिलता है तुम हर रोज ना जाने कितने पेड़ों को काटते हो। कहां तुम्हें पेड़ लगाने चाहिए। और कहा अंधाधुंध पेड़ोको कटवाकर गोश्त खाते हो। तुम्हें तो इन सभी चोरी करने वालों को सलाखों के पीछे भेजना चाहिए था। कहां तुम भी इस काम में संलिप्त हो गए। देखने में भोले और अंदर से शातिर तुझे धरती की धरोहर का अपमान किया है इसके लिए तुम्हें सजा अवश्य मिलनी चाहिए अचानक उसकी नींद टूट गई। कि वह आंखें मलता उठ बैठा। यह मैंने सपने में क्या देखा। धरती मां ने मुझे सचमुच में भी मेरी सच्चाई मुझे दिखा दी। मैं भोला-भाला दिखाई देता हूं परंतु भोला नहीं हूं।

हे भगवान आज से मैं कान पकड़ता हूं अब मैं अपने आप को सुधार कर ही दम लूंगा। मैं भटक गया था मेरी मां ने मुझे रास्ता दिखाया है। जब घर पहुंचा तो उसकी पत्नी रो रही थी वह बोला भाग्यवान क्या हुआ है। वह बोली मेरे खेत को कोई उजड़ गया है। सारी सब्जियां लगाई थी। सारी नष्ट हो चुकी है। पता नहीं किसके पशु आकर हमारे खेत को तहस-नहस कर गए। अब की बार हमारे खेत में कुछ भी फसल नहीं होगी। यह कहकर वह जोर जोर से रोने लगी। अचानक उसे भी अंदर से दर्द महसूस हुआ। अब नंदलाल को लगा जब मेरे जंगल में कोई पेड़ काटने आता था तब मैं सब को कहता था हां भाई काट लो। मुझे अंदर से दर्द महसूस नहीं होता था। जब मेरे घर की हरी-भरी खेती नष्ट हुई तब मुझे जाकर यह बात समझ में आई।

उसकी पत्नी ने 2 दिन तक खाना नहीं खाया। वह भी बहुत उदास हो गया था। दूसरे दिन जंगल चला गया। अचानक बीच-बीच में उसे जंगल में नींद आ जाती थी। उसे फिर वही सपना दिखाई दिया। धरती मां ने उसे कहा बेटा अब तो तुम्हें समझ आ ही गया होगा। जब चोट अपने ऊपर ऊपर लगती है तभी इन्सान समझता है।

अच्छा आज इस जंगल के दूसरे छोर में कुछ लोगों ने जंगल में आग लगाई है। तुम्हें उन लोगों को सलाखों के पीछे पहुंचाना है। तुम समझ गए होंगे अभी भी समय है। सुधर जाओ उसनें धरती मां के पैर पकड़ लिए। उसे जाग आ गई थी। उसने सच में धरती मां के पैर छुए और कसम खाई कि मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि आज मैं नेक काम करने जा रहा हूं। मुझे आशीर्वाद दो। वह नीचे जमीन पर लेट गया। उसने देखा कि उस वाटिका में लगा हुआ फूल उसके पांव के पास गिरा। उसने उस फूल को उठाया और अपनी जेब में भर लिया।
उसनें जंगल के दूसरे छोर में जाकर उन आग लगाने वाले लोगों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। उसने सभी अपराधियों को सजा दिलाई जो पेड़ों को काटते थे। वह समझ गया था कि धरती मां की इस मूल्यवान धरोहर को हमें बचाना होगा। अगर हम इस धरोहर को बचा नहीं पाए तब तक हम एक सच्चे अर्थों में भारत मां के सच्चे सपूत नहीं कहला सकते।

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बुराई का फल

किसी गांव में एक बुढ़िया अपने बेटे के साथ एक छोटे से गांव में रहती थी। वह बहुत ही अच्छी थी। सोचती कि जब उसे बिना मेहनत किए सब कुछ हासिल हो जाता है तो मैं क्यों मेहनत करूं? क्योंकि इसका बेटा कमा कर ले आता था। उसी से उसके दिन व्यतीत हो रहे थे। वह बुढ़िया ₹1 तक भी किसी को भी खर्च करने के लिए तैयार नहीं थी। दूर-दूर से आने वाले आदमी उसी के गांव से दूसरे गांव की ओर जाते थे। बाहर से आने वाले लोगों को अपनी चिकनी चुपड़ी बातों में फंसा कर के इंसान को भाप लेती थी कि वह इंसान मूर्ख है या चतुर बिना ₹1 भी खर्च किए बगैर वह उनके मन की बात जान लेती थी। एक बार की बात है कि एक भोला भाला नवयुवक उसी रास्ते से जा रहा था। वह बहुत ही थका हुआ था। उसने उस नवयुवक से बातों ही बातों में पूछ लिया भाई तुम कहां जा रहे हो।? वह बोला दादी अम्मा में घड़े खरीदने जा रहा हूं। गर्मी के मारे मेरा गला सूख रहा है। कृपया मुझे एक गिलास पानी पिलादो। बुढ़िया ने जैसे ही सुना वह घड़े खरीदने जा रहा है वह बोली बेटा ठीक है मैं तुम्हें पानी लेकर आती हूं। तुम बहुत ही थके लगते हो। खाना खाओगे। वह मन ही मन सोचनें लगा। यह दादी कितनी दयालु है जो खाने को पूछ रही है नहीं तो सारा लोग खाने तो क्या पानी के लिए भी नहीं पूछते। वह बोला नहीं दादी मां जब मैं घड़े खरीद कर आऊंगा तब मैं यही से होकर जाऊंगा। तब कुछ खा लूंगा। वह बोली बेटा मैं अपने आप को खुशनसीब समझूंगा अगर तुम मेरे घर पर भोजन करोगे क्योंकि आज मेरे बेटे का जन्मदिन है। वह बोला अच्छा दादी मां शाम को यहीं से होकर जाऊंगा।

बुढ़िया मन ही मन बहुत खुश हुई। अपने गांव में दो लोगों तक को एक गिलास तक पानी के लिए भी नहीं पूछती थी। वह बाहर से आने वाले लोगों को ही अपना मोहरा बनाती थी जैसे ही वह नवयुवक गया वह सोचने लगी जैसे ही वह घड़े लेकर आएगा वह उसका घडा ले लेगी और उसकी जगह अपना टूटा हुआ घड़ा रख देगी।। उस नवयुवक को पता ही नहीं चलेगा इस तरह से मेरी घड़े की कीमत वसूल हो जाएगी।

मैं काफी दिन पहले कुम्हार की दुकान से दो घड़े लाई थी। परंतु दोनों खड़े टूटे निकले। उसनें मुझे टूटे घड़े दिए थे। इन टूटे घडो का मैं क्या करूंगी?। बिल्कुल एक जैसे होंगे तो मैं आज उस नवयुवक से घड़ा चुरा कर ही रहूंगी। वह नवयुवक चलते-चलते कुम्हार की दुकान पर पहुंचा। वहां पर कुम्हारों की चार पांच दुकानें थी। एक दुकान पर पहुंचकर उसने कुम्हार को कहा मुझे एक घड़ा दिखाओ। कुम्हार से एक घड़ा खरीद कर वह नवयुवक बहुत खुश हुआ। उसने ₹250 में एक घड़ा खरीदा। वह सोच रहा था कि इस घड़े को संभाल कर रखेगा। रोज-रोज इतनी दूर आना संभव नहीं होता। घड़ा लेकर वापसी में वह उस बुढिया के घर पहुंचा। बुढ़िया ने देखा वह घड़ा तो बिल्कुल उसके घड़े की तरह ही था। बिल्कुल थोड़ा सा ही अंतर था। बहुत ध्यान से देखने पर ही अंतर दिखाई देता था। उसमें बीच में नीले रंग की धारी थी। उसके घड़े में काले रंग की धारी थी। वह सोचने लगी इस नवयुवक को बेवकूफ बनाना तो बाएं हाथ का खेल है। वह नवयुवक उस बुढिया के घर पहुंचा तो वह बहुत थका हुआ था। बुढ़िया बोली बेटा मुझे तो लगता ही नहीं है कि मेरा बेटा बाहर गया है। तुम में मुझे अपना बेटा ही दिखाई देता है। मैं तुम्हें खाना लगाती हूं। उसने उसे खाना खिलाया। खाना खाकर थोड़ी देर बाद सुस्ताने लग गया। जैसे ही वह सो गया बुढ़िया ने उसका घडाचुरा लिया। उसकी जगह उसने टूटा हुआ घड़ा रख दिया। थोड़ी देर सुस्ताने के बाद वह अपने घर चलने के लिए तैयार हो गया। घर में उसने अपनी पत्नी को कहा कि आज मैं बहुत ही थक गया हूं। इस घड़े को उठाने में मेरी गर्दन भी अकड़ गई है। कम से कम हमें गर्मियों में ठंडा पानी पीने को तो मिलेगा। उसकी पत्नी ने जैसे ही घड़ी में पानी डाला देखा घड़ा तो टूटा हुआ था। वह बहुत ही दुखी हुआ। और उस कुम्हार को कोसने लगा उसने उसे टूटा हुआ घड़ा दे दिया। कल फिर वापिस जाकर उसके मुंह पर मार के दूसरा घड़ा ले कर आ जाऊंगा।
दूसरे दिन वह उस घड़े को लेकर उस बुढिया के घर के पास से ही आया। बुढ़िया ने उसे देखते ही पहचान लिया। बोली क्या हुआ? वह बोला उस कुम्हार नें मुझे बेवकूफ बना दिया। मुझे टूटा हुआ घोड़ा बेच दिया। मैंने उस वक्त घड़े को चेक भी नहीं किया।

बुढ़िया बोली यहां पर कुम्हारों की पांच दुकानें है। तुम किस कुम्हार से घड़ा लाए थे। वह बोला वह कुम्हार तो मुझे देखने में बहुत ही ईमानदार लगता था। उस कुम्हार का नाम तो मुझे पता नहीं लोग उसे शेखू कह कर पुकार रहे थे। तीन कुम्हार तो बहुत ही होशियार लगे उन्होंने तो घड़े का ₹1 भी कम नहीं किया। मगर उस कुम्हार नें ₹50 छोड़ दिए। वह नवयुवक जब कुम्हार की दुकान पर पहुंचा तो बोला भाई मेरे मैं कल तुम्हारे से एक घड़ा लेकर गया था। वह घोड़ा तो टूटा हुआ था। बोलते-बोलते वह नवयुवक रुवांसा हो कर बोला। कुम्हार बाबू इतनी कड़ी धूप में घड़े को उठा कर मेरी गर्दन अकड़ गई है। यहां पर हमारे घर को जाने के लिए कोई भी बस नहीं है। मुझे सात किलोमीटर पैदल चलना पड़ा। इतनी कड़ी गर्मी में मेरे बच्चों को गर्म पानी पीना पड़ता है।।
मैं घड़ा पाकर खुश हुआ था परंतु आपसे घड़ा ले जाकर घर में मैंने जैसे ही उसमें पानी डाला वह टूटा हुआ था। कुम्हार को उसके ऊपर दया आ गई। मैंने तो उसको घड़ा बिल्कुल जांच कर दिया था परंतु घड़ा तो टूट नहीं सकता था। कुम्हार बहुत ही दयालु था। सोचने लगा पता नहीं उसका घड़ा किसने चुरा लिया। कोई बात नहीं इसको दूसरा घड़ा दे देता हूं। मैं इस टूटे घड़े को दोबारा ठीक कर दूंगा। बेचारे को तो यह टूटा घड़ा किस काम का नहीं। कोई बात नहीं मैं सोच लूंगा कि एक घड़ा मैंने किसी को यूंही दान कर दिया। कुम्हार ने उसको दूसरा घड़ा दे दिया। शाम के समय उस बुढिया के घर से जा रहा था तो उस बुढ़िया ने पूछा कि तुम्हें कुम्हार ने घड़ा दे दिया वह बोला देता कैसे ना उसने मुझे दूसरा घड़ा दे दिया। बुढ़िया उसकी बात सुनकर बहुत ही खुश हुई। बुढ़िया ने सोचा मैं भी अपना दूसरा घड़ा उस कुम्हार के पास ले जा कर अपना टूटा घड़ा उस की दुकान पर रख दूंगी और उसका घड़ा उठाकर ले आऊंगी।

एक दिन वह बुढ़िया उस कुम्हार की दुकान पर पहुंच गई। वह उस कुम्हार से खूब चिकनी चुपड़ी बातें करने लगी। बातों ही बातों में उसने कुम्हार को कहा भाई मेरे मैं बहुत थक चुकी हूं मेरे पास बहुत सारा सामान है। मेरा बेटा मेरी राह देख रहा है। मुझे एक गिलास पानी पिला दो। कुम्हार बोला दादी मां घड़ा ले कर जाओ वह बोली भाई मेरे पास दो घड़े हैं। मैं कुछ दिन पहले एक कुम्हार की दुकान से दो घड़े ले गई थी। उस कुम्हार ने पूछा किस दुकान से लेकर गई थी। वह बोली मैं चौबे से घड़ा लेकर गई थी। कुम्हारअंदर जाकर उसे पानी लेकर आया। इतनी देर में उस बुढ़िया ने अपना घड़ा उस कुम्हार के घड़े से बदल लिया था। उस बुढ़िया ने उस कुम्हार को भी मूर्ख बना दिया था।

घर पहुंचकर बुढ़िया बहुत ही खुश हुई। मैंने दो घड़े मुफ्त में खरीद लिए। मैंने अपने दोनों टूटे घड़े कुम्हार को और उस नवयुवक को बेवकूफ बनाकर हासिल कर लिए। बुढिया बहुत ही खुश थी। उसने बिना रुपए खर्च किए दोनों घड़े हासिल कर लिए थे। कुम्हार ने देखा कि यह घड़ा तो मेरा बनाया हुआ नहीं है।

उसने देखा वह घड़ा तो कुछ दिन पहले वह नवयुवक देकर गया था। उसने देखा उसके घडे पर तो काली धारियां थी। परंतु उसमें नीली धारी थी। उसने देखा नीली धारी वाला एक और घड़ा था। कुम्हार को समझते देर नहीं लगी कि यह दोनों घड़े एक ही दुकान के खरीदे लगते हैं। कुम्हार सोचने लगा यहां पर दो ही कुम्हारों की दुकानें हैं। वहां पर चल कर देखता हूं। उस कुम्हार को याद आया कि वह बुढ़िया ही इस दुकान पर चुपके से घडा छोड़ गई। हो ना हो शायद इस बुढिया नें ही उस नवयुवक का घडा चुराया था। उसको भी इसी तरह से उसने बेवकूफ बनाकर घड़ा हासिल कर लिया था। घड़े का चोर पकड़ा जाएगा। पहले मैं चौबे की दुकान पर जाकर पता करता हूं चौबे जी की दुकान पर गया तो वह कुम्हार बोला अपने घडे तो दिखाओ। वह बोला मेरे घडों में तो हमेशा नीली धारियां होती है। वह कुम्हार बोला तुमसे क्या कोई घडा खरीद कर गया था? वह बोला याद करके बताओ। वह बोला बाबूजी यहां पर तो हर रोज अनेकों ग्राहक आते हैं। कुम्हार बोला कि तीन महीनें पहले कोई बुढ़िया औरत आई थी। वह दो घड़े खरीद कर ले गई थी। उस कुम्हार नें चौबे को सारी घटना सुनाई कि कैसे वह औरत टूटा हुआ घड़ा मेरी दुकान पर, रख गई? और मेरा घड़ा चुराकर ले गई वह बोला मैं अपने हाथ का बनाया हुआ घडा पहचान सकता हूं।मैं भी उसके घर किसी काम से आया था उसने शेखू को कहा कि मैं अपने खड़े पर नीली धारिया लगाता हूं। यह घडा मेरी ही दुकान का है। जब एक बुढ़िया मुझसे घडा खरीद रही थी उसका बेटा भी साथ में ही था। उसके बेटे के चोट लगी हुई थी। मैंने उस बुढ़िया से कहा उसे क्या हुआ तो उसने कहा यह फिसल गया था। शायद उसी वक्त उसके दोनों दोनों घड़े टूट गए होंगे। वह घडो को वापस तो करनहीं सकती थी परंतु उसने सोचा यह घड़े टूटे नहीं होंगे। घर में जाकर उसे पता लगा होगा। कुम्हार को पता चल चुका था कि वह दोनों घड़े वही बुढ़िया ही लेकर गई थी। उसने दोनों घडे यूं ही संभाल कर रख दिए। किसी दिन जाकर उस का पर्दाफाश करूंगा। एक दिन की बात है कि एकदिन फिर वही नवयुवक जिसने पहले घड़ा खरीदा था वह आ कर बोला मुझे एक घडा और दे दो क्योंकि एक घडेसे गुजारा नहीं होता है। एक घड़ा और दे दो। कुम्हार उसको देख कर खुश होते हुए बोला भाई मैंने तुम्हारे घडे के चोर को पकड़ लिया है। तुम्हारा घड़ा किसने चुराया था। वह नवयुवक आश्चर्यचकित होकर बोला। जल्दी बताओ वह कौन है वह बोला हम दोनों उस चोर को मजा चलाएंगे। हम उस चोर को उसके कई हीभाषा में उसे उसी की चाल का जवाब देंगे। नवयुवक बोला पहेलियां मत बुझाओ मुझे जल्दी बताओ। कुम्हार नें उस नवयुवक को कहा मुझे तुम बताओ जब तुम घडा खरीद कर गए थे तब तुम सीधा अपने घर गए थे या कहीं ठहरे थे। े वह नवयुवक बोला हां में एक बुढ़िया के घर पर थोड़ी देर सुस्ताने के लिए ठहरा था। वह बुढ़िया बहुत ही दयालु थी। उसने मुझे खाना खिलाया और मुझसे पूछा कहां जा रहे हो? मैंने सारी बातें उसे बताई थी। और शाम को खाना भी उसके घर पर खाया। वह बोला बुढ़िया का क्या कोई बेटा भी है।? वह बोला हां तुम्हें कैसे पता है? कुम्हार नें सारी कहानी सुना दी कि कैसे एक बुढ़िया अपना टूटा हुआ घड़ा हमारी दुकान पर रख ग्ई और वहां से दूसरा घडा ले कर भाग गई जो तुम टूटा हुआ घडा लाए थे वह भी वैसा ही था। दोनों में नीलीऔर काली धारियां बिल्कुल बारीकी से देखने पर ही पता चलती है। दोनों घडे एक ही दुकान से खरीदे हैं। उसने हम दोनों को बेवकूफ बनाया वह नवयुवक बोला मैं जब सो रहा था तब उसने घड़ा बदल दिया था कुम्हार ने कहा कि अब हम दोनों वहीं चलते हैं। तुमयहां से घड़ा ले जाना और चुपके से तुम उसके घडे से बदल देना। मैं भी ऐसा ही करूंगा मैं भी मेरा घडा बदल कर आऊंगा

मैंनें भी उसका घर देख लिया है। वह घर सोमवार को घडाधोकर उल्टा करके रख देती है । हम सोमवार वाले दिन जब उसने घड़े उल्टे घड़े सुखाने के लिए रखे होंगे हम चुपचाप वंहा टूटा घडा रख लेंगेऔर उसका घडा ले कर आ जाएंगें। वह नवयुवक और कुम्हार एक लोहार बन कर उसके घर पर पहुंच गए। बुढ़िया को देख वह बोले हम दोनों दूर से आए हैं। इसके पास तो बहुत सामान है। हमें खाना खिला दो। बुढ़िया ने उन दोनों को कहा कि मेरे पास खाने के लिए कुछ नहीं है। मैं तुम्हें चाय बनाकर देती हूं। चाय बनाने चली गई । एक आदमी उसके पीछे आया। दादी अम्मा मैं भी तुम्हारी रसोई देखता हूं। उतनी देर में कुम्हार ने दोनों घडे चुरा लिये। उसकी जगह दोनों टूटे हुए रख दिए। दोनों नें बुढिया को धन्यवाद दिया। और दोनों चलने लगे रास्ते में उन दोनों ने एक-दूसरे से हाथ मिलाया। आज हमने बुढ़िया को उसी की भाषा में करारा जवाब दिया। जो इंसान किसी के साथ बुरा करता है उसे वैसा ही फल मिलता है। वह नवयुवक अपना घडा पा कर खुश हो गया। उस कुम्हार को भी अपना घडा वापिस मिल गया था। बुढ़िया जब शाम को पानी भरने लगी तो दोनों घरों में से पानी टपकने लगा वह बुढ़िया समझ गई। बुरा करनें वालों के साथ हमेशा बुरा ही होता है।

प्यारा दोस्त बांकू

जंगल के सारे जानवरों ने मिलकर सभा बुलाई उन्होंने मिलकर मशवरा लिया कि हम सब जानवर मिलकर एक टूर्नामेंट का आयोजन करेंगे। टूर्नामेंट में जो भी जीतेगा उसको हम ₹5000 देंगे। सब के सब जानवरों के नामों की लिस्ट इतवार से बहुत पहले पहुंच जानी चाहिए। शेर को राजा बनाया गया। शेरनी को रानी। भालू को मंत्री। चीते को उपमंत्री। हाथी को मुख्यमंत्री। और हाथी को एक और कर्तव्य पूरा करने के लिए कहा गया।

तुम्हें बाहर से आने वाले जानवरों को लाना होगा। इस काम के लिए तुम अपने दोस्तों घोड़े और ऊंट की मदद भी ले सकते हो। इतवार का दिन आ चुका था। पांडाल सजाया हुआ था। शेर अपनें सिहासन पर बैठा हुआ था। पास में शेरनी भी बैठी हुई थी। भालू मंत्री आने जाने वालों पर नजर रखे जा रहा था ताकि बाहर से कोई शत्रु आकर हमला कर दे तो उस से बचाव किया जा सके। चीते को भी काम सौंप दिया गया था। हाथी सभी जानवरों को ला रहा था। उसके साथ घोड़ा और ऊंट भी उसकी मदद कर रहे थे।

टूर्नामेंट में दौड़ का आयोजन किया गया था जो कोई भी 400 मीटर की दौड़ में जीतेगा वह आज का विजेता घोषित किया जाएगा। सभी दूर-दूर से इस दौड़ में भाग लेने के लिए जानवर आए हुए थे। खरगोश हिरण लोमड़ी कछुआ। सभी जानवरों में कछुआ और खरगोश भी चले आ रहे थे। उन दोनों को साथ आते देख कर सारे के सारे जानवर हंसने लगे। यह देखो दोनों की दोस्ती। एक तेज भागने वाला और एक सुस्त प्राणी कछुआ। इन दोनों को हम साथ-साथ देखते हैं। हरदम दोनों जहां जाते हैं साथ जाते हैं। भालू बोला तुम दोनों दौड़ में अपना नाम क्यों नहीं लिखवा देते।? तुम दोनों में कौन जीतेगा? तेजु खरगोश बोला क्यों नहीं?। मैं तो बहुत तेज दौड़ता हूं। बेचारा मेरा दोस्त बांकू कछुआ यह तो मेरा मुकाबला नहीं कर पाएगा। इतना सुस्त चलने वाला मैं तो अगर दिन भर सोता भी रहूं फिर भी मैं अपने दोस्त बांकू कछुए से बाजी मार ही जाऊंगा। कछुए को तो मेरे सामने इस प्रतियोगिता में नाम नहीं लिखना चाहिए था। तेजू खरगोश कछुए के पास आकर बोला अभी भी समय है अपना नाम इस टूर्नामेंट से कटवा दो तुम्हें सारे जानवरों के सामने शर्मिंदा होना पड़ेगा। बांकू कछुआ बोला भाई मेरे कोई बात नहीं हार जीत तो दोस्ती में लगी ही रहती है। कभी कोई जीतता है कभी कोई हारता है। हो सकता है मैं ही तुमसे जीत जाऊं। टूर्नामेंट शुरू होने में अभी समय था हाल खचाखच भरा था। सभी जानवर अकड़ कर बैठे हुए टूर्नामेंट शुरू होने का इंतजार कर रहे थे। आज तो कुछ अनोखा होने वाला है। एक तरफ तेजू कछुआ और दूसरी तरफ बांकू खरगोश। दोनों बैठ गए वे दोनों आपस में मित्र थे। उन दोनों में हमेशा खरगोश ही जीतता था। दौड़ने के लिए नाम पुकारे गए। सब के सब जानवर अपना नाम लिखवाने के लिए चले गए। दौड़ने से पहले बांकू ने तेजू से हाथ मिलाया। सीटी जैसे ही बजी सबके साथ जानवर भागे। भागते-भागते वेे भी बहुत दूर आ गए। बांकू कछुआ आहिस्ता आहिस्ता चल रहा था। रास्ते में तेजू ने सोचा थोड़ी देर विश्राम ले लिया जाए। वह सुस्ताने लगा। इतने में बांकू कछुआ भी वहां पहुंच चुका था। बांकू को देखकर तेजू जग गया उसने अपने दोस्त को कहा भाई बांकू तुम आहिस्ता-आहिस्ता आओ। तुम मेरा मुकाबला नहीं कर सकते हो। अभी आधा ही रास्ता तय किया गया है। बांकू बोला तेजू भाई तेजू भाई यह तेज धार वाला नुकीला हथियार है। इसमें रस्सी बंधी हुई है। शायद यह हमारे काम आ जाए। तेजू बोला मुझे तो दौड़ की पड़ी है। तुम ही ले लो। बांकू बोला भाई मेरे मैं इसको कैसे लूं। अपने आप चलूं या इसे उठाऊं। तुम्हारी मर्जी उसने वह नुकीला तेज धार वाला रस्सी वाला नुकीला चाकू वंही रख दिया। तेजू जल्दी से भाग गया। भागते-भागते वह बहुत ही दूर आ गया। वह अपने गंतव्य स्थान पर पहुंचने ही वाला था उसको एक तेज झटका लगा। उसका पैर फिसल गया और वह गहरी खाई में लटक गया और जोर-जोर से चिल्लाने लगा बचाओ बचाओ बचाओ।

सारे के सारे जानवर उसको बचाने के बजाए अपने स्थान पर पहुंचने का प्रयास कर रहे थे। उन जानवरों में से किसी ने भी उसे नहीं बताया तभी उसे सामने से आता बांकू दिखाई दिया बांकू दौड़ लगा ही रहा था तभी तेजु चिल्लाया मेरे दोस्त मुझे बचाओ। बांकू ने उसे देखा और उसकी तरफ आकर बोला भाई मेरे तुम कहां फंस गए।? बांकू रुक गया। उसको खींचता तो वह भी खाई में गिर पड़ता। बहुत ही मोटी टहनी थी। बांकू ने कहा यार मेरे मैंने तुम्हें कहा था ना कि इस नुकीले धार वाले चाकू को ले चलो परंतु तुमने मेरी बात नहीं मानी। मैंने तुम्हें कहा था कि शायद यह हमारे काम आ जाए। उसकी सहायता से मैं तुम्हें ऊपर खैंच सकता था। अगर हम उस नुकीले चाकू को ले आते तो रस्सी को बांधकर तुम्हें ऊपर खैंच सकते थे। नुकीले चाकू से टहनी तो टूट ही जाती मैं उसे ऊपर खींच लेता। तुम्हारी टांग बुरी तरह उस में फंसी हुई है। उससे हम उस पेड़ की शाखा को तो काट ही सकते थे। तेजू भाई तुम तो दौड़ में भाग लेने वाले थे। तुम मुझे बचाने आ गए मगर वह तेज धार वाला नूकिला चाकू जिसमें रस्सी बंधी हुई थी। वह तो वहीं रह गया। बांकू बोला तो क्या हुआ? अपने दोस्त को बचाने के लिए मुझे फिर वापस भी जाना पड़े तो मैं उस वस्तु को लेने अवश्य जाऊंगा और किसी ना किसी तरह उस पेड़ की टहनियों को काटकर तुम्हें बचा लूंगा। बांकू वापिस जाकर तेज धार वाला चाकू ले आया था। उसने पेड़ की टहनियों में फंसे तेजी को बाहर निकाला और उसे सही सलामत बचा कर ले आया। तेजू पछता रहा था इसने आज फिर अपनी दोस्ती निभा दी। मैंने तो दो बार उसे धोखा दिया। एक बार तो मैं उसे बीच रास्ते में छोड़कर भाग गया था। फिर भी बांकू कछुए ने मेरा साथ नहीं छोड़ा अपनी दोस्ती निभाई और मैंने सब सभा जनों के सामने इसका अपमान किया फिर भी उसने हंस कर टाल दिया मेरा दोस्त कितना महान है

आज तो मुझे इसे दौड़ में जीताना ही होगा। सारे के सारे जानवर मुझे बीच रास्ते में छोड़ कर आगे बढ़ गए। बांकू ने रस्सी फेंक कर मुझे ऊपर खींच लिया। तेजू की टांग से खून बह रहा था। उसने अपने खून की परवाह नहीं की बांकू ने अपने दोस्त को कहा यार तुमने आज तक मेरी सहायता की आज मुझे अपना फर्ज निभाने दो। जैसा मैं कहूं तुम वैसा ही करो। अभी गंतव्य स्थान में पहुंचने में सिर्फ एक घंटा है। मैं तुम्हें अवश्य ही जीताऊंगा।

मेरे दोस्त तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। उसने बांकू कछुए को अपनी पीठ पर बिठा लिया और बहुत तेज दौड़ लगाई। सब के सब जानवरों को पीछे छोड़ दिया। जब उस स्थान पर पहुंचने ही वाले थे तो तेजू नें उसे नीचे उतारा और कहा जाओ भाई मेरे और दौड़ कर अपना इनाम ले लो। मैं पीछे-पीछे आता हूं। बांकू बोला नहीं भाई मेरे।

तेजू बोला इससे पहले कि और जानवर बाजी मार जाए तुम जल्दी जा कर इनाम ले लो। तुम इनाम के असली हकदार हो। तुमने आज मेरी जान बचाकर हमारी दोस्ती को और भी गहरा कर दिया है। हमारी दोस्ती को किसी की नजर ना लगे। बांकू कछुए को विजेता घोषित किया गया। उसे ₹5000 दिए गए। सारे के सारे जानवर हैरान होकर कछुए को देख रहे थे। तभी तेजू आकर बोला मेरे दोस्त आओ दोस्त मेरे गले लग जाओ। आज मेरा दोस्त मुझे नहीं बचाता तो मैं मर ही गया होता। उसने अपनी सारी कहानी राजा को सुना दी। राजा ने कहा हमें इन दोस्तों की दोस्ती पर नाज है।

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