होनहार मेताली

मेंताली एक सीधी-साधी और होनहार बालिका थी। दसवीं कक्षा में वह प्रथम आई। गणित में तो उसके 100 में से 98 अंक आए। उसके पिता एक मध्यमवर्गीय परिवार के थे। उनके पिता के पास अपनी बेटी को पढानें के लिए रुपए नहीं थे। उन्होंने कहा बेटा मैं तुम्हें आगे नहीं पढ़ा सकता क्योंकि घर में तुम्हारी बूढ़ी दादी है। तुम्हारी मां है। सब की जिम्मेदारी मुझ पर है। वह बोली कोई बात नहीं पिता जी अगर आप मुझे पढ़ा नहीं सकते तो मुझे एक साल सिलाई अवश्य दिखा देना। वह बोला बेटा सिलाई की शिक्षा में तुम्हें दिला ही सकता हूं। उसके बाद ही तुम्हारे हाथ पीले कर दूंगा।

मेताली शरमा कर चली गई। उसे सिलाई का बहुत शौक था। वह पढ़ाई के साथ-साथ अपना शौक पूरा नहीं कर सकती थी। उसके पड़ोस में एक आंटी थी। उसका नाम था श्रुति। वह सिलाई की शिक्षिका थी। कभी-कभी मेताली श्रुति आंटी के घर चली जाती। वह कहती आंटी मुझे भी सिलाई करना सिखा दिया करो मैं आपकी किचन के कामों में हाथ बंटा दिया करूंगी। श्रुति उसको हर बार टाल ही दिया करती कहती तुम्हें तो मैं किसी दिन सिखा दूंगी। मेताली को कभी कभी लगता कि यह कैसी शिक्षिका है जो दूसरों को ज्ञान देना ही नहीं चाहती। वह कुछ कहती नहीं थी।श्रुती बहुत ही घमंडी थी।
वह दसवीं की परीक्षा में निकल गई थी। मेताली श्रुति के घर गई बोली अब तो मैं दसवीं कक्षा पास कर चुकी हूं। मैं भी सिलाई सीखना चाहती हूं। आप घर पर ही मुझे सिखा दिया करें। अगले साल से मैं आपका कोर्स अटेंड कर लूंगी। श्रुति बोली मेरी फीस ₹200 है। क्या तुम्हारे पिता मेरी फीस दे पाएंगे? मेताली ने जब यह सुना तो वह हैरान रह गई। उसने कहा आंटी आप ऐसा क्यों बोलती है? मेरे पिता ₹200 दे दिया करेंगे। थोड़े दिनों के लिए तो आप मुझे घर पर सिखा ही सकती हैं। वह बोली घर पर भी ₹200 देने पड़ेंगे। मेताली ने मन में संकल्प कर लिया कि वह तो सिलाई सीख कर ही दम लेगी।

श्रुति के एक बेटा था। वह गणित में कमजोर था उसके स्कूल में गणित में सबसे कम अंक आए थे। उस को ट्यूशन पढ़ाने वाला कोई नहीं मिल रहा था। उसका घर गांव के बीच में था घर आकर उसे मेताली के पास आना ही पड़ा वह हाथ जोड़कर मेताली से बोली मेरे बेटे को गणित में बहुत ही कम आता है। क्या तू मेरे बेटे को गणित पढ़ा देगी? इसके लिए मैं तुम्हें फीस भी दे दूंगी।

मेताली बोली आंटी जी आप अपने बेटे को मेरे पास भेज दिया करो। मैं उसे पढ़ा दिया करूंगी ज्ञान को तो जितना बांटो उतना ही बढ़ता है। मैं उससे कोई फीस नहीं लूंगी। आप मुझे शर्मिंदा कर रही है। पड़ोसी होने के नाते मैं उससे कोई फीस नहीं लूंगी। उस श्रुती का बेटा गणित में सबसे अच्छे अंक लाया। बच्चों ने उससे पूछा तुम किससे ट्यूशन पढी। श्रुति के बेटे ने सब बच्चों को मेताली का नाम बता दिया। बहुत सारे बच्चे मेताली के पास घर पर ट्यूशन पढ़ने आने लगे। वह सिलाई के लिए रुपये इकट्ठे कर रही थी। स्कूल में गणित का वार्षिक परिणाम सौ प्रतिशत रहा। सभी बच्चों ने कहा हम मेताली दीदी के पास पढ़ते हैं। स्कूल में प्राइवेट शिक्षिका का पद रिक्त था। मैडम ने उसे स्कूल में बुला लिया। वह स्कूल में शिक्षिका के पद पर नियुक्त हो गई। उसे स्कूल में प्राइवेट नौकरी मिल गई। उसकी स्कूल में बहुत सारी अध्यापक अध्यापिकाएं सहेलियां बन गई।

इस तरह अपने मेहनत के दम पर उसने बहुत सारे रुपए इकट्ठे कर लिए। एक दिन उसके चाचा जी उसके घर पर आए उन्होंने उसे बताया कि हम इंटरनेट के माध्यम से सभी जानकारियां हासिल कर सकते हैं। जो व्यक्ति पढ़ा लिखा होगा वह तो बहुत ही जल्दी सब कुछ ज्ञान हासिल कर सकता है। उसके चाचा ने उसे एक मोबाइल ला कर दिया। उसमें उसमें इंटरनेट का कनेक्शन भी लगवा लिया। एक दिन उसने सिलाई से संबंधित वीडियो देखें। उसकी सहेली ने बताया कि हम सिलाई के बारे में भी इस मोबाइल और इंटरनेट के माध्यम से जानकारी हासिल कर सकते हैं। मोबाइल से सलवार कमीज और अपने हाथ का बनाया हुआ सूट पहनकर आंटी के घर गई। श्रुति ने पूछा तुमने सूट तो बहुत बढ़िया डाला है इसका डिजाइन किसने बनाया। वह बोली आंटी मैंने खुद बनाया है। श्रुति हैरान रह गई।

मेताली के डिजाइन दार सूट देखकर लड़कियां भी उसके पास सूट देने आने लगी। दीदी आप ही हमारा सूट स्टिच करेंगे। यह देखकर श्रुति का खून खौल उठा। सारे के सारे ग्राहकों की लाइन मिताली के पास लग गई। वह उन्हें कहती मैं तो छुट्टी वाले दिन ही तुम्हारी ड्रेस सिल सकती हूं मगर वह कहती नहीं आप ही से हमने अपनी ड्रेस सिलवानी है।

श्रुति मन-ही-मन पछता रही थी। मेताली ठीक ही कहती है ज्ञान तो बांटने से बढ़ता है। मगर मैंने तो विद्या के बल पर घमंड कर डाला। धीरे-धीरे श्रुति में सुधार आने लग गया। श्रुति को समझ आ गया कि हमें अपने पास जो ज्ञान होता है जितना हम दूसरों की मदद करेंगे उससे अधिक हमारे ज्ञान में बढ़ोतरी होगी। श्रुति भी अब गरीब औरतों को मुफ्त सिलाई सिखाने लगी। उन्हें सिखा कर उसे जो खुशी हासिल हो रही थी जितनी कि जिंदगी में उसे कभी खुशी नहीं मिली थी। उसके नए-नए दोस्त भी बन गए थे। उसके मन से ईर्ष्या का गुबार हट चुका था एक बार फिर वह मिताली की सहेली बन गई थी ं।

झूठा सौदा

बग्गा एक रिक्शाचालक था। एक छोटी सी खोली में रहता था। वह रात-दिन मेहनत मजदूरी करके अपने तथा अपने बच्चों का पेट भरता था ।उसका एक बेटा था वह सोचता था कि वह अपने बच्चों को खूब पढ़ाएगा। वह तो कुछ नहीं बन सका मगर किसी ना किसी भी किसी तरह वह अपने बच्चे को अच्छी शिक्षा दिलवाएगा ।वह बहुत ही मेहनती था। सारा दिन रिक्शा चलाता था। उसको घर छोड़ना इसी से वह अपने परिवार का पालन पोषण करता था ।उसका बेटा था विक्रम ।जैसा नाम वैसा ही वह सभ्य और सुशील था ।अपने पापा के संस्कार उसमें कूट-कूट कर भरे थे ।वह हमेशा सोचा करता था कि हम एक छोटी सी खोली में रहते हैं ।यही खाना बनाते हैं ।यही सारा काम करते हैं ।मैं बड़ा होकर अपने पिता के सपनों को साकार करूंगा वह मुझे बड़ा आदमी बनाना चाहते हैं। मैं भी हमेशा कोशिश करुंगा कि मैं जल्दी से जल्दी कुछ अच्छा बनकर अपने पापा और मां को भरपूर खुशियां दूंगा ।मम्मी तो बेचारी बीमार ही रहती है सारा बोझ तो मेरे पापा के कंधे पर है ।इस तरह उनके जीवन के दिन बीत रहे थे विक्रम दसवीं कक्षा में आ चुका था ।वह सोच रहा था मैं डॉक्टर बनना चाहता हूं ।मैं डॉक्टर बन जाऊँगा तो मैं अपनी मां का ईलाज स्वयं कर सकता  हूं।

 

उसने स्कूल में मेडिकल के विषय  ले रखे थे। उसके पापा को तो इस विषय में कुछ मालूम नहीं था। वह हमेशा इसी धुन में लगा रहता था कि वह खूब मेहनत करे वह सारी सारी रात बैठ कर पढ़ा करता था। उसके पड़ोस में  एक सेठ रहते थे उनका लड़का-डॉक्टरी करना चाहता था ।वह भी उन्हीं के स्कूल में पढ़ता था। कान्वेंट स्कूल वालों ने तो उसे अपने स्कूल में दाखिला नहीं दिया था ।सिर्फ एक ही ऐसा स्कूल था जहां उसे प्रवेश मिला था ।वह हर बार फेल हो जाता था इसलिए हार कर उसके पिता ने उसे समिति के स्कूल में उसका दाखिला करवा दिया था। रिक्शा चालक का बेटा भी संयोग से उनके स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहा था ।उसको अच्छे अंकों के माध्यम से स्कूल में दाखिला मिला था   सेठ का बेटा तो हमेशा गाड़ी से स्कूल पहुंचता था ।रिक्शा चालक का बेटा तो अपने पिता के रिक्शा में या कभी-कभी पैदल ही कॉलेज आ जाया करता था ।उसने दसवीं की परीक्षा में भी प्रथम स्थान प्राप्त किया था। स्कूल वालों ने उसे  छात्रवृत्ति भी दी थी ।वह कभी-कभी सेठ करोड़ीमल के बेटे से बात करने की कोशिश करता था।  करोड़ीमल का बेटा तो उसे कभी सीधे मुंह बात नहीं करता था ।उसने अपने घर में ट्यूशन लगा रखी थी ।और इंटरनेट के माध्यम से अपने विषय की जानकारी हासिल कर लेता था। ।रिक्शा चालक का बेटा तो दिन रात मेहनत कर रहा था। वह कभी-कभी पार्ट टाइम काम करके रुपए इकट्ठे करके अपनी किताबें ले लेता था ।परीक्षा भी पास आ रही थी ऐसे में करोड़ीमल का बेटा श्याम उससे बात करने लग गया था ।वह जग्गा केबेटे से प्रश्न पूछता था। एक दिन करोड़ीमल के बेटे ने उसे अपने घर बुलाया और कहा कि चलो आज हम दोनों बैठकर पढ़ाई करते ह।बातों ही बातों में उसने आधे से ज्यादा प्रश्न श्याम को हल करवा दिए थे। वह कहने लगा अब तो मुझे गहरी नींद आ रही है। तू भी सो जा करोड़ीमल का बेटा श्याम सो चुका था ।उसने इंटरनेट के माध्यम से उसके घर पर सारे प्रश्न हल कर लिए थे ।जो कुछ उसे नहीं आता था वह भी इंटरनेट से उसने हल कर लिया था। अगले दिन वह अपने घर आ गया था परीक्षा भी पास आ गई थी ।विक्रम के सारे पेपर बहुत ही अच्छे हुए उसने अपने पिता को बताया कि पिताजी इस वर्ष तो में पीएमटी में सिलेक्ट हो जाऊंगा ।मैं डॉक्टरी का फॉर्म भर दूंगा। उसके पिता बोले बेटा यह तो अच्छा है परंतु इसके लिए रुपए कहां से आएंगे ?वह बोला कुछ मेरी छात्रवृत्ति होगी कुछ मैं कहीं पार्ट-टाईम  नौकरी कर लूंगा ।डॉक्टर तो मैं बन कर ही दम लूंगा ।परीक्षा का परिणाम आने में अभी एक हफ्ता था ।सेठ ने किसी ना किसी तरह पता कर लिया था उसका बेटा तो सेलेक्ट नहीं हुआ था परंतु उसका दोस्त  रिक्शा चालक का बेटा  पीएमटी में निकल चुका था। करोड़ीमल ने सोचा कि इस रिक्शा चालक के बेटे को डॉक्टर कौन बनाएगा क्यों ना मैं कुछ योजना बताता हूं ?।विक्रम के पेपर की जगह पर मैं अपने बेटे का रोल नंबर डाल दूंगा और अपने बेटे के पेपर विक्रम के पेपर के साथ बदल दूंगा ।अपने बेटे को सिलेक्ट करवा दूंगा और रिक्शा चालक का बेटा पीएमटी टेस्ट में नहीं निकला ऐसा चक्कर चला दूंगा। उसने अपनी योजना को अंजाम देने के लिए विक्रम के पिता को अपने पास बुलाया देखो भाई मैं आपको दिन रात मेहनत करते देखता रहता हूं आप दिन में कितना कमा पाते हो आपकी पत्नी तो हमेशा बीमार ही रहती है आपके पास तो उसे अच्छा खिलाने के लिए भी रुपया नहीं है ।तुमको मैं बहुत सारे रुपए दिलवा सकता हूं अगर तुम मेरा काम कर दो वह बोला मुझे क्या करना होगा।

 

करोड़ीमल बोला हमें पता चला है कि आपका बेटा पीएमटी की परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया है ।वह डॉक्टर बन कर क्या करेगा? अगर तुम अपने बेटे के पेपरो को मेरे बेटे के पेपर का नाम दे दो तो ठीक है तुम्हारे बेटे के पेपर की जगह मेरे बेटे का नाम होगा । मेरे बेटे के पेपर में तुम्हारे बेटे का नाम होगा।  यह बात सिर्फ  हम दोनों में ही रहनी चाहिए ।आपका बेटा तो होशियार है ।अगले साल भी पीएमटी परीक्षा में निकल जाएगा मगर मेरा बेटा तो निकल नहीं सकता। वह इतना होशियार नहीं है। इसके लिए मैं तुम्हें 50,0000 रुपए दूंगा। तुम्हारी तो जिंदगी बदल जाएगी।

 

तुम अपनी पत्नी का इलाज भी अच्छे अस्पताल में करवा सकते हो रिक्शावाला पहले तो सोचने लगा नहीं परंतु बाद में उसने सोचा 500000 रुपए तो मैं सारा जन्म ले लूंगा तो भी  जुटा नहीं  पाऊंगा ।मेरा बेटा तो अगले वर्ष परीक्षा देकर निकल जाएगा ।वह करोड़ीमल की बातों में आ गया ।उसने हां कर दी अब सबकुछ योजना के मुताबिक हुआ ।  बोर्ड परीक्षा में रिक्शा चालक के बेटे के पेपर अपने बेटे के पेपर के साथ बदलवा दिए। उसके लिए उसने घुस दी थी। उसने रिक्शा चालक को भी 50,00000रुपए दिए ।जब परीक्षा परिणाम निकला तो रिक्शा चालक का बेटा बहुत खुश था उसकी मेहनत का परिणाम आने वाला था जब परिणाम में सेठ करोड़ीमल का बेटा  पीएमटी  टैस्ट में निकल गया । रिक्शा चालक का बेटा नहीं निकला था ।उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं आया वह एकदम  गम्भीर हो गया।इतनी मेहनत करने के बावजूद भी उसका परिणाम गंदा आया था। और जो कभी किताबों को हाथ नहीं लगाता था सेठ करोड़ीमल का बेटा वह परीक्षा में सफल हो चुका था ।इसी चिंता में घुलकर वह अस्पताल में भर्ती हो गया था।

 

उसके पिता ने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा कोई बात नहीं अगले साल तैयारी करना। कोई कोई बात नहीं मैं तुम्हें  रूपये उपलब्ध करवा दूंगा ।।उनके स्कूल की एक लड़की थी जिसके पिता पुलिस इंस्पेक्टर थे ।वह अपने पिता के साथ करोड़ीमल के बेटे की पार्टी में गई हुई थी ।उसने अपने सभी दोस्तों को पार्टी पर अपने घर बुलाया था ।वह अपनी अपनी खुशी उन सब दोस्तों के साथ बांटना चाहता था। प्रेरणा भी उसकी पार्टी में गई हुई थी। करोड़ीमल के बेटे ने ज्यादा पी ली थी ।उसका दोस्त विनीत और प्रेरणा दोनों उसके साथ ही बातों-बातों में करोड़ी मल के बेटे ने श्याम को बताया कि बेचारा विक्रम उसके पेपरों की वजह से ही मैं आज  पीएमटी में निकला हूं मेरे पापा ने उसके पिता को  पांच लाख रुपए दिए और कहा कि हमें ऐसा कर लेते हैं ।तब कहीं जाकर विक्रम के पापा मान गए । सच्चाई प्रेरणा के सामने आ चुकी थी ।वह अपनी मेहनत के दम पर नहीं बल्कि उस गरीब रिक्शा चालक के बेटे के अंको के  बलबूते पर पीएमटी में निकला था ।वह चुपचाप वहां से चली गई ।वह अस्पताल में विक्रम से मिलने गई बोली ,मुझे तुम्हारे लिए दुख है तुम्हारे पापा ने यह कैसासौदा किया था ।वह  चौक कर बोला !क्या कर रही हो ?उसने सारी कहानी बग्गा को सुनाई ।किस तरह तुम्हारे पापा ने करोड़ीमल से 5,00000 रुपए लेकर तुम्हारे पेपर बदल दिए थे ।विक्रम को सारा माजरा समझ में आ चुका था ।उसे अपने पिता पर गुस्सा आ रहा था ।उन्होंने रुपयों की खातिर अपने बेटे की मेहनत के साथ खिलवाड़ किया था ।वह सोचने लगा पापा ने मां के ईलाज के लिए रुपए उपलब्ध ना होने की वजह से  हां की होगी। यह बात मेरे पापा मुझसे कह सकते थे ।उन्होंने इतना बड़ा फैसला बिना मुझसे पूछे कैसे ले लिया ?वह फूट फूट कर रोने लगा। उसको इस तरह  रोतादेखकर प्रेरणा बोली, मायूस ना हो मैं अपने पिताजी से कहकर तुम्हारी परीक्षा के  पेपर की छानबीन करवा दूंगी ।तुम पूर्ण मूल्यांकन का फॉर्म भर दो।

 

उसने पुन: मुल्यांकन के लिए प्रार्थना पत्र दे दिया था ।उसके परीक्षा पेपर के अंको की छानबीन के दौरान पाया गया सचमुच करोड़ीमल के बेटे के पेपर विक्रम के पेपरो के साथ बदल दिए थे ।सारी छानबीन के दौरान करोड़ीमल को घूस लेने के चक्कर में दो साल की कैद सुनाइ। उसे सलाखों के पीछे कैद कर दिया । श्याम के पिता ने भी गुनाह किया था उन्हें भी  दो  महीने की सजा सुना दी गई।   रिक्शा चालक कैद काट कर बाहर आ चुका था ।विक्रम की पढ़ाई का खर्चा अपने ऊपर ले लिया था ।डॉक्टर की सारी पढ़ाई का खर्चा सरकार देगी । विक्रम डॉक्टर बन चुका था। उसने सबसे पहले अपने मां के ईलाज के लिए रुपए इकट्ठे किए और स्वयं अपनी मां का ईलाज किया और एक अच्छा सा घर  ले लिया।  वह अपने माता और पिता के साथ खुशी-खुशी रहने लग गया था।

बोलते पत्थर

यह कहानी एक छोटे से बालक श्रेयान की है। श्रेयान की माता जब वह दो साल का था तब उसको सदा के लिए  छोड़ कर भगवान के पास जा चुकी थी। उसको संभालने वाला कोई नहीं था।

उसके पिता एक दुकान में काम करते थे। श्रेयान के लिए उन्हें शादी के सूत्र में बंधना ही पड़ा। उसने नई नवेली दुल्हन से पहले इस बात को मनवा  लिया था कि वहश्रेयान को उसकी असली मां जैसा प्यार देगी। जब तक उसके अपना बेटा या बेटी नहीं थी तब तक उसने श्रेयान को बहुत प्यार किया मगर जब  उस का छोटा भाई आ गया तो सारा का सारा प्यार उसने अपने बेटे को दे  डाला। वह अब उसके साथ अच्छे ढंग से पेश नहीं आती थी। श्रेयान के पिता ने कहा मेरे बेटे को कभी अपनी मां की कभी कमी महसूस नहीं होनी चाहिए। तुम्हें इसके साथ अच्छा बर्ताव करना होगा जब तक उसके  पिता घर पर होते थे तब तक वह श्रेयान को भरपूर प्यार करती थी परंतु जैसे ही श्रेयान के पापा दुकान पर चले जाते वह उसके साथ बुरा बर्ताव करती। छोटा बेटा भी स्कूल जाने लगा था। वह सोचती थी कि बड़ा होकर कहीं वह अपना हिस्सा  न मांग ले इसलिए वह उसके साथ बुरा सलूक करती थी। श्रेयान उसको कभी भी तंग नहीं करता था। उसकी मां जब कभी उसे   खाना नहीं देती तो वह चुपचाप  बिना खाना खाए ही  सो जाता। वह सोचता था कि पापा के सामने तो मां प्यार के मीठे बोल बोलती है उनके जाते ही वह उस पर बरस पड़ती थी। सारा काम उस से ही करवाती शाम का  बचा हुआ  बासी  खाना  वह उस बच्चे को देती थी।

 

श्रेयान सब समझता मगर वह कभी भी कुछ नहीं कहता था।  वह कहती जाओ जंगल से लकड़ियां काट कर ले आओ नहीं तो खाना नहीं मिलेगा। जब वह कहता कि छोटे को भी मेरे साथ भेज दो तब वह कहती कि वह तुम्हारे साथ नहीं जाएगा। वह बहुत ही छोटा है।, ऐसे तो  वह  दिल की अच्छी थी मगर गांव की औरतें उसे आकर  भड़का जाती थी। देखना यह बच्चा तुमसे सब कुछ मांगेगा। इसलिए उसे तुम कुछ भी मत दिया करो। उन औरतों की बातों में आकर वह श्रेयान से बुरा व्यवहार करती थी। एक दिन श्रेयान जंगल में गया था। साथ में वह अपनी किताबें भी लेकर गया था। क्योंकि उसको पढ़ने का समय ही नहीं मिल पा रहा था। एक पत्थर पर बैठ गया और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। उस को रोता हुआ देखकर उसके आंसू जब उस पत्थर पर पड़े जिस पर वह बैठा हुआ था  वह पत्थर जादू का था। उस  पत्थर में जादू की देवी थी। वह बोली बेटा तुम क्यों रो रहे हो।?  उसनें पत्थर की ओर देखा जिस तरफ से आवाज आ रही थी। उसनें कहा कौन बोल रहा है? उसने पत्थर में से आवाज आती देखी वह हैरान रह गया पत्थर की देवी बोली बेटा मुझसे मत डरो मैं इस पत्थर की देवी हूं । मुझे बताओ क्या बात है? यंहां पर आकर मैं महसूस कर रहा हूं कि मैं जैसे अपनी मां की गोद में बैठा हूं। मेरी मां नहीं है। मेरी सौतेली मां ने मुझे लकड़ियां लाने भेजा है। कल मेरी परीक्षा है। मुझे समय ही नहीं मिला पढ़ने का। वह बोली बेटा तुम पढ़ाई करो मैं एक  कन्या बनकर तुम्हारी लकड़ियां काट दूंगी तब तक तुम उन लकड़ियों को घर लेकर जाना। तुम अपनी पढ़ाई करो।

 

श्रेयान यह सुन कर बहुत खुश हुआ। उसने अपनी पढ़ाई कर ली।  उस दिन  पत्थर की देवी नें उस  की  सहायता कर दी। यह देख कर वह खुश हुआऔर बोला क्या मैं आपको मां बुला सकता हूं।? कोई बात नहीं तुम मुझे मां बुला सकते हो हर रोज उस पत्थर पर आकर पढ़ाई करता। वह लड़की लकड़ियां चुगने में उसकी मदद करती। इस तरह से उसने अपनी परीक्षा की तैयारी कर ली।

 

एक दिन उसकी सौतेली मां ने अपने बेटे को भी उसके साथ भेज दिया और उसे कहा कि बेटा तुम देखना वह पढ़ाई कब करता है।? दूसरे दिन उस की सौतेली मां ने अपने बेटे रेहान को उसके साथ जंगल में भेज दिया। जंगल में एक  पत्थर पर बैठ गया और उस पत्थर से बातें कर लगा। रेहान नेे देखा पत्थर में से एक सुंदर सी देवी जैसी लड़की निकली  उस पर बैठकर पढ़ाई करता रहा। छोटे से भाई को पता चल चुका था कि उसकी  मदद एक सुंदर सी लड़की  करती है। घर आ कर उसनें अपनी सौतेली मां को बताया कि एक पत्थर से देवी जैसी कन्या निकल कर भाई की मदद करती है। रिहाना छः साल का था।

 

श्रेयांन जब घर आया उसकी सौतेली मां बोली कल से तुम जंगल में नहीं जाओगे। उसकी सौतेली मां जंगल में गौंवों को लेकर चरानें के लिए चली गई। उसने जंगल में गौवों को चरानें के लिए छोड़ दिया। उस पत्थर को देखने लगी उसने दो आदमीयों को कहा कि इस पत्त्थर को यहां से हटा दें। उन्होंने बहुत जोर लगाया मगर वह पत्थर वहां से टस से मस नहीं हुआ। इस कशमकश में वह अपने बेटे को भूल ही गई कि उसका छोटा भी उसके साथ आया था। वह रिहान रिहान चिल्लाने लगी।  रेहान का  कुछ पता नहीं कहां चला गया। वह सारा दिन ढूँढते रही  रियान उसे नहीं मिला। जब रोते रोते घर आई तब श्रेयान बोला मां आप क्यों रो रही है?

मां बोली  रेहान    कहीं चला गया है पता नहीं कहां गया? जल्दी से उसे ढूंढ कर लाओ। श्रेयान  बोला मां  मैं रेहान को ढूंढ कर लाऊंगा। वह मेरा भी तो भाई है। उसके बिना मेरा जीना भी व्यर्थ है। मां मैं उसे ढूंढ कर ही लाऊंगा। आप निराश न हों।

श्रेयान के पिता भी घर आ चुके थे उनके पिता ने पूछा कि तुम उसे लेकर जंगल क्यों गई थी? लकड़ियां तो घर में बहुत सारी पड़ी थी। मुझे कहती मैं अपने आदमीयों  को भेजकर मंगवा देता। रेहान की मां पछता रही थी वह क्या बोलती? वह जंगल में क्यों गई थी?वह बोला अगर मैं रेहान को ढूंढकर नहीं ला सका तो मैं भी अपनी जान दे दूंगा। श्रेयान घर से दौड़ता दौड़ता जंगल में पहुंच गया।

 

पत्थर की देवी से बोला मां आपको प्रणाम मां मैंने आपको मां माना है। आज मेरा भाई पता नहीं कहां चला गया है?कृपया मेरे भाई को ढूंढने में मेरी मदद करो। देवी मां ने कहा कि रेहान मिल जाएगा। रेहान यहां से चलते  चलते रास्ता भटक गया है। वह पांच किलोमीटर की दूरी पर पहुंच गया है। तुम सीधे सीधे जाओ परंतु वह डर के मारे बेहोश हो गया है। तुम शीघ्र जाओ। वह तुम्हें मिल जाएगा। श्रेयान को एक घने पेड़ के नीचे रेहान मिल गया। वह बेहोश हो चुका था।

 

राहगीरों की मदद से उसको श्रेयान  ने घर पहुंचाया। रेहान की मां जब काफी समय तक रेहान घर नहीं आया तो वह बेहोश हो गई। डॉक्टरों ने श्रेयान के पिता को कहा कि  आज रेहान की मां को खून की बहुत जरूरत है। अगर उसे कोई खून देगा तो वह बच जाएगी। वह बहुत ही कमजोर है। रेहान के पिता जोर जोर से रोनें लगे। एक बच्चा तो पहले ही अनाथ हो गया था अब दूसरा बच्चा भी अनाथ हो जाएगा। श्रेयान बोला पिताजी आप घबराओ मत। मैं अपनी मां को खून दे दूंगा। श्रेयान के खून का टेस्ट लिया गया।श्रेयान का खून अपनी मां के खून के साथ मिल गया। उसनें अपनी मां की जान बचा ली। रेहान की मां को होश आ गया। वह अस्पताल के बिस्तर पर बैठी अभी भी कमजोरी  महसूस कर रही थी। वह जोर जोर से रोने लगी। रेहान ।  रेहान के पिता बोले तुम  कैसा महसूस कर रही हो। वह बोले हमारा  रेहान मिल गया है। उस का बड़ा भाई उसे ढूंढ कर लाया है। रेहान की मां को विश्वास ही नहीं हुआ। वह जाते-जाते उसे कह गया था अगर मैं रेहान को ढूंढ कर नहीं लाया तो मैं भी घर नहीं आऊंगा। वह बोली श्रेयान कहां है?उसके पिता बोले तुम्हारे श्रेयान ने रेहान को ही नहीं तुम्हें भी मौत के मुंह से निकाल लिया है। तुम्हें भी अपना खून देकर अपना बेटा होने का प्रमाण दिया है। उसने देखा श्रेयान के सामने उसके दोस्त उस से कह रहे थे तुमने अपने भाई की जान भी बचाई और अपनी मां की जान भी बचाई।

 

तुम्हारी सौतेली मां तो तुम से इतना बुरा बर्ताव करती है फिर भी तुमने उसकी जान बचाई। वह बोला तुम मेरे दोस्त हो या दुश्मन। मेरी मां मेरे साथ कभी बुरा बर्ताव नहीं करती है। वह तो मुझे समझाने के लिए मुझ से सख्ती से पेश आती थी। मेरी मां के बारे में तुमने अगर एक भी लव्स बोले तो मैं भूल जाऊंगा कि तुम सब मेरे दोस्त हो। निकल जाओ तुम सब यहां से मेरी मां जैसी भी है मेरी प्यारी मां है। यह बातें उसकी सौतेली मां भी सुन रही थी। यह सुनकर वह अवाक रह गई। वह तो उसे इतना अधिक प्यार करता है।

 

गांव की औरतों में मेरे ने मेरे मन में उसके प्रति नफरत की भावना भर दी थी। मैं अपने बेटे के साथ बहुत ही बुरा बर्ताव कर रही थी। उसने श्रेयान को आवाज लगाई बेटा इधर आओ उसने श्रेयान और रेहान को अपने पास बुलाया और उन दोनों को गले लगकर प्यार किया और बोली बेटा मुझे तुमने नई जिंदगी दी है। तुम्हें अपनी नई मां मुबारक हो बेटा। आओ जोर से मेरे गले लग जाओ। तुम दोनों तो मेरे सूरज और चंदा हो। मैं तो भूल ही गई थी एक दूसरे के बिना हमारी जिंदगी अधूरी है। आज से मैं तुम्हारा इतना ध्यान रखूंगी तुम अपनी मां को भूल ही जाओगे। आज मुझे समझ आ गया है कि बिछुड़ने का कैसा दर्द होता है। दूसरों के बहकावे में आ कर अपनें होनहार बेटे को खोनें चली थी। बेटा मुझे माफ कर दो। आज तुम दोनों का मनपसन्द  भोजन बनाती हूं।

 

रंग

छोटू घर आकर अपने पापा से बोला पापा पापा हम कब गांव जाएंगे। वहां मैं अपने चाचा जी के बेटे से मिलूंगा। छोटू के पापा बोले हम जल्दी ही गांव चलेंगे। छोटू खुशी के मारे चिल्ला रहा था। आज हम गांव जा रहे हैं घर के बाहर अपने छोटे-छोटे दोस्तों को कह रहा था मैं अपने गांव बहुत दिनों बाद जा रहा हूं। उसके दोस्त बोले तुम हमारे लिए वहां से क्या लाओगे? वह बोला हमारे गांव में एक अमरुद का पेड़ है वह उसमे सारे अमरुद लगते हैं मैं तुम सबको ढेर सारे अमरूद लाऊंगा। उन्हें गांव जाने के लिए ट्रेन मिल गई थी। छोटू हर स्टेशन को ध्यान से देख रहा था। दूसरे दिन वह अपने चाचा जी के गांव पहुंच गया। चाचा जी का बेटा दौड़ता दौड़ता है भाई आ गया भाई आ गया।

 

लखन और छोटू दोनों हम उम्र के थे। शाम को छोटू ने देखा लखन बड़ी ही सुंदर ड्राइंग बना रहा था। उसके पापा ने उसे बहुत ही रंग ला कर दिए थे। वह बड़ी सुंदर ड्राइंग कर रहा था उसको देखकर छोटू बोला मुझे भी ड्राइंग करने दो। छोटू ने उसे ड्राइंग बनाने दी। उसे बड़ा ही मजा आया। मेरा जन्मदिन कब है? उसके पापा  बोले तुम क्यों पूछ रहे हो?  आप भी मुझे मेरे जन्मदिन पर  रंग ला कर देना। मैं भी सुंदर-सुंदर ड्राइंग बनाकर  दिखाऊंगा। उसके पिता बोले ठीक है बेटा हम तुम्हें  तुम्हारे जन्मदिन पर कलर लेकर आएंगे। उन्हें अपने बेटे को दे देंगे। उसे  अभी तक कोई भी रंग लाकर नहीं दिए  उस तरह एकसाल व्यतीत हो गया। वह हर वक्त पापा को पूछता कि पापा मुझे रंग कब लाओगे? एक दिन छोटू को भी उसकी मां ने पड़ोस के बच्चों के साथ स्कूल भेज दिया। वहां पर बच्चे  ब्लैकबोर्ड परड्राइंग कर रहे थे। उनको ड्राइंग करता देख कर  वह बहुत खुश हुआ। मैं हर रोज स्कूल आया करूंगा। यहां पर आकर मैं वह अपने घर की दीवारों पर ड्राइंग बनाता। स्कूल से  चुपके से चौक उठा कर घर ले आया। गुसलखाने में जहां उसका दिल करता  करता। जब उसको ड्राइंग कॉपी नहीं मिलती तो वह घर के बाहर रास्ते में चौक से चित्र बनाता। उसको ड्राईग का बहुत ही शौक था। उसे नें एकदिन मां को कहा मुझे रंग दिला कर दो। उसकी मां बोली इस बार तुम्हारे जन्मदिन पर हमें तुम्हें रंग अवश्य खरीद कर लाएंगे। उसके पिता ने भी उससे कहा बेटा निराश ना हो। इस बार चाहे कुछ भी हो जाए हम तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करेंगे।  छोटू  यह सुन करबहुत ही खुश हो गया। कल उसका जन्मदिन आने वाला था। वह सोच रहा था कि बस केवल एक दिन और उसे इंतजार करना है। जहां इतने दिन इंतजार किया वहां एक दिन तो कुछ भी नहीं है। उसे नींद ही नहीं आ रही थी। बार-बार उठकर अपनी मां को कह रहा था मां क्या वक्त हुआ है। वह बोली बेटा आधी रात को उठकर क्या कर रहे हो? वह बोला कुछ नहीं मां मुझे नींद नहीं आ रही है। सुबह हो चुकी थी उसके पापा काम पर जाने के लिए तैयार बैठे थे। वह अपने पापा के पास आकर बोला। आपको मेरा वादा याद है। वह बोले बेटा मुझे याद है।

उसकी बुआ  उनके घर पर आई थी उसकी बुआ बहुत ही परेशान दिख रही थी। वह बोली भाई जी इस वक्त कुछ रुपए उधार दे दो। आपकी बड़ी मेहरबानी होगी। हमारे व्यापार में घाटा हुआ है। वह बोला बहन मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं है। मेरी स्थिति अच्छी नहीं है। मेरे पास थोड़े से रुपए हैं। मुझसे मेरा बेटा रंग की फरमाइश कर रहा है। वह भी उसे दिला नहीं पा रहा हूं। छोटू चुपचाप घर से बाहर चला गया। चुपचाप रास्ते से चला जा रहा था। रास्ते में उसे उसके दोस्त मिले बोले। तुम तो  गांव से बहुत सारे अमरूद लेकर आए थे। सचमुच में ही बहुत ही मीठे थे। तुम कहां जा रहे हो? उसके दोस्तों में से एक लड़का बोला छोटू कब तक घर में यूं ही पड़े रहोगे स्कूल में दाखिला ले लो। वह बोला मैं पढ़ कर क्या करूंगा?। मुझे पढ़ाई का शौक नहीं है।  मैं तो एक बहुत बड़ा चित्रकार बनना चाहता हूं। उसके दोस्त बोले जब तक तुम पढ़ाई नहीं करोगे तब तक तुम कभी भी अच्छे चित्रकार नहीं बन सकते। इसके लिए भी पढ़ना जरूरी होता है। छोटू घर आ चुका था उसे पता था कि उसके पापा इस बार भी उसे रंग नहीं दिला सके। उसने अपने पिता को कहते सुना  छोटू की ममी से बातें कह रहे थे हमारा बेटा ना जाने कब से रंग मांग रहा है। मैं उसकी इच्छा को पूरी नहीं कर सका। मैं कैसा पिता हूं? मुझे अपनी बहन को भी निराश नहीं करना। क्योंकि मेरी मां ने मरते वक्त मुझ से वचन लिया था कि मैं मेरी बेटी  कीहर हर इच्छा को पूरी करना। मेरे जाने के बाद तुम  ही इसके मां-बाप हो उसे अपनी माता के वे शब्द याद आ गए थे। छोटू की मां बोली दिल छोटा क्यों करते हो हमारा बेटा समझदार है। हम हम उसे समझा देंगे।। वह मान जाएगा।

 

छोटू को उन्होंने स्कूल में दाखिल करा दिया एक बार स्कूल छोड़ चुका था वह तीसरी कक्षा में पढ़ रहा था। स्कूल में अपने दोस्तों के साथ मस्त रहता था स्कूल में जब बच्चों के पास ड्राइंग की कॉपी और कलर देखता तो मन में सोचता क्ई बच्चों के पास तो इतने रंग दे दिए है। इतनी सारी कॉपियां है। हर चीज है परंतु मेरे पापा के पास ना तो बहुत ज्यादा रुपए हैं ना खाने के लिए बढ़िया भोजन और ना ही अच्छे-अच्छे वस्तुए। वह मासूम अपनी मां से पूछता मां हमारे पास सारी चीजें क्यों नहीं है।?  मेरे बहुत सारे दोस्तों के पास अच्छे अच्छे कपड़े हैं। अच्छे अच्छे जूते हैं। खेलने के लिए इतने सारे खिलौने हैं घूमने के लिए कार है। गाड़ी है मेरे पास तो कुछ भी नहीं है। कई बार तो एक रोटी खाकर ही गुजारा करना पड़ता है। मां दूध  वह तो मैंने कभी पिया ही नहीं। मेरा दोस्त कहता है कि आइसक्रीम दूध की बनती है मैंने जब दूध का स्वाद नहीं चखा तो आइसक्रीम तो तो दूर की बात है। उसकी मां नें कहा बेटा बड़े लोगों के पास  ही सब कुछ होता है। हम बड़े लोग नहीं हैं। छोटे लोगों के पास क्यों चीजें नहीं हो सकती।? छोटू बोला हम बड़े क्यों नहीं बन पाते? मां ने कहा भगवान ने उनको सब कुछ दिया है छोटू बोला तो आपने भगवान से अपने भगवान से कहो कि हमें भी सब कुछ दिलवाएं। वह आपकी बात क्यों नहीं सुनता। मुझे बताना मैं उससे फरमाइश करूंगा।

 

छोटू की मां कुछ नहीं बोली वह उसे क्या समझाती। वह बोली भगवान जी तुम्हें बहुत जल्दी रंग दिलाएंगे। आप दिल लगा कर पढ़ना शुरू कर दो। छोटू अपने दोस्तों के साथ स्कूल जाने लगा। एक दिन उसकी अध्यापिका बच्चों से फीस ले रही थी। उसने सारे के सारे रुपए मेज पर रख दिए। छोटू ने यह सब देख लिया वह मन में सोचने लगा कि आज तो मैं यह रुपए चुराकर उसके रंग ले आऊंगा। किसी को भी पता नहीं चलेगा। चुपचाप बैठा रहा। छोटू प्रार्थना सभा में नहीं गया। उसने कहा मेरी तबीयत ठीक नहीं है। सुबह के समय उसनें अपनी कक्षा अध्यापिका को अपना पर्स  कक्षा की मेज पर रखते देख लिया था। उसने कल ही देख लिया था कि मैडम ने ₹50 का एक अलग से नोट रखा था। वह सोच रहा था कि बस मुझे यह नोट मिल जाए तो मैं घर जाकर उसके रंग लूंगा और ड्राइंग करूंगा। मैडम ने सब बच्चों को प्रार्थना करने के लिए मैदान में बुलाया तो छोटू नें कहा कि मेरे सिर में दर्द है। झूठ-मूठ का बहाना बनाकर प्रार्थना में नहीं गया। उसने जल्दी से पर्स खोला उसने जल्दी से ₹50 का नोट निकाल लिया और अपनी जुराब के अंदर छिपा लिया। उसे डर भी बहुत लग रहा था। अगर मुझे किसी ने देख लिया तो मार पड़ेगी। उसने वह नोट अपनी जुराब में छुपा लिया। वह खुश भी था क्योंकि आज वह रंग लेकर ड्राइंग करेगा। स्कूल में मैडम पढ़ाने में व्यस्त हो गई। मैडम ने तो फीस की ओर ध्यान ही नहीं दिया। मैडम ने पर्स को देखा भी नहीं। वह बड़ा ही खुश हुआ घर आकर छोटू बहुत ही खुश था उसकी मां ने छोटू को आवाज लगाई बेटा खाना खा लो वह बोला मां मुझे भूख नहीं है। उसकी मां हैरान थी छोटू तो स्कूल से आते ही सारा घर सर पर उठा लेता था। मुझे रोटी दो। आज उसका बेटा रोटी को मना कर रहा है। शायद वह अपने पापा से नाराज है। बोली बेटा हमें तुझे जल्द ही रंग लेकर आएंगे।

 

छोटू बोला कोई बात नहीं मां आप चिंता मत करो। जब आपके पास रुपए होंगे तब ले लेना। कोई बात नहीं। वह बोला मैं खेलने जा रहा हूं। और चुपचाप घर के पास ही स्टेशनरी की दुकान थी वहां पर चला गया। उस दुकानदार को कहा भैया यह रंग का डिब्बा कितने का है।? वह बोला बेटा यह ₹35 का है और ड्राइंग का ₹15 का है दोनों ₹50 के हैं। वह बोला मेरे पास यही एक नोट है दुकानदार बोला इससे तुम्हारे दोनों चीजें आ जाएगी। वह खुश हो गया जल्दी से उसका ड्राइंग कॉपी और रंग ले कर  सीधा घर आ गया। घर आकर उसने अपने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया और अपने मनपसंद ड्राइंग की। आज तो उसे उसकी मनपसंद वस्तु मिल गई थी। उसकी मां अपने बेटे को खुश देखकर खुश थी। दूसरे दिन जब मैडम स्कूल में फीस देने जाने लगी तो फीस में ₹50 कम थे। मैडम ने छह सात बार गिने  मगर ₹50 कम थे। मैडम नें सोचा मैंने तो कल सब बच्चों से फीस इकट्ठी ले ली थी। सारे रुपये गिने थे। डायरी में भी नोट किया था। ₹50 पता नहीं कहां चले गए।

 

मैडम ने सब बच्चों को पूछा क्या तुमने मेरी मेज पर से रुपए तो नहीं उठाए। सब बच्चों ने कहा मैडम हमने चोरी नहीं की। मैडम ने कक्षा की मुखिया को कहा तुम सब बच्चों की निगरानी करना। शूची बोली मैडम मैं ध्यान रखूंगी। मैडम ने शाम के समय सब बच्चों की तलाशी ली किसी के पास भी रुपए नहीं थे। छोटू नें  चोरी करने के पश्चात  रंग घर में ही रख दिए। सूची नें मैडम को कहा मैडम जी जिस दिन आप नें फीस ली थी छोटू स्कूल में प्रार्थना  सभा में नहीं गया। उसने मुझसे कहा था कि मेरे सिर में दर्द है। वह प्रार्थना में भी नहीं गया कहीं उसी ने ही तो आपके रुपए चोरी तो नहीं कीए।  मैडम बोली बेटा हमें बिना सोचे समझे किसी  पर भी शक नहीं करना चाहिए। जब तक कोई ठोस प्रमाण ना हो। शुची बोली ठीक है। वह सोचनें लगी क्यों ना मैं छोटू से दोस्ती कर दूं? उसने छोटू से दोस्ती करना शुरु कर दिया। उस का घर छोटू के घर के पास ही था। वहअमीर परिवार की लड़की थी।

 

शुची एक दिन छोटू को अपने घर लेकर गई छोटू की आंखें फटी की फटी रह गई इतना सुंदर घर  वह किसी महल से कम नहीं था। वह बोला तुम तो राजकुमारी हो। मेरी मां कहती है जिनका घर बहुत बड़ा होता है वह घर बड़े-बड़े राजाओं का होता है। तुम भी राजकुमारी हो। शुची छोटू की बात सुनकर हंसी बोली मैं कोई राजकुमारी नहीं हूं। यह घर तो मेरे पापा ने बनाया है। जब मैं बड़ी बनकर खूब रुपया कमाऊंगी  तब मैं भी इतना सुंदर घर लूंगी। छोटू बोला मैं भी खूब बड़ा घर लूंगा। अभी तुमको मैं अपने घर पर नहीं ले जा सकता। क्योंकि   एक छोटी सी झोपड़ी में हम तीनों रहते हैं। वहीं पर हम सोते हैं। खाना बनाते हैं। छोटू की बात सुनकर शुची को उस पर दया आ गई। वह छोटू चोरी नहीं कर सकता। एक दिन छोटू ने कहा मां मुझे आज बुखार है। मैं स्कूल नहीं जाऊंगा। छोटू की  मां बोली बेटा स्कूल से छुट्टी नहीं लेनी चाहिए। वह बोला मां सचमुच आज मेरे सिर में दर्द है। वह अकेला बैठकर ड्राइंग बनाना चाहता था। शुची ने जब छोटू को स्कूल में नहीं देखा तो वह बड़ी उदास हो गई अपनी कक्षा में छोटू ही  उसे सबसे अच्छा लगता था। छोटू जब स्कूल में नहीं आया तो वह शाम को सीधा छोटू के घर पहुंच गई। शुची ने देखा छोटू नें  दरवाजा बंद किया हुआ था जैसे ही दरवाजे पर दस्तक हुई उसने सोचा मां होगी उसने जल्दी से अपने रंग पलंग के नीचे रखे और दरवाजा खोलने चला गया। शुची को अपने घर में अचानक देखकर छोटू बड़ा हैरान हुआ। वह बोली तुम आज स्कूल भी नहीं आए तो मैंने सोचा क्यों ना मैं ही चल कर देख लूं कि तुम आज स्कूल में क्यों नहीं आए? छोटू बार-बार अपने पलंग के नीचे की ओर देख रहा था कहीं अगर शुची  नें पलंग के नीचे मेरे रंग देख लिए तो मेरा भांडा फूट जाएगा। वह बोला तुम्हें प्यास लगी होगी मैं तुम्हें  पानी ले कर आता हूं। जैसे ही छोटू पानी लाने गया शुची  नें  अन्दाजा लगा लिया कुछ ना कुछ तो दाल में काला है। जो वह छुपानें की कोशिश कर रहा है। उसने दरवाजा खोलते वक्त उसे कुछ छुपाते देखा। क्या छुपाया होगा वह क्या छुपा रहा था।? उसने पलंग के नीचे देखा ड्राइंग कॉपी और कलर देखे। चौंक गई यह तो कॉपी भी न्ई है और रंग भी नये है। कहीं इसी ने तो चोरी ना की हो। उसने छोटू को कुछ नहीं कहा। जल्दी से पानी पिया बोली अच्छा मैं घर चलती हूं। मेरी मम्मी मुझे देर से आने पर गुस्सा करेगी।

 

छोटू अपने कमरे में ही बैठ गया। शुची जल्दी से अपने घर को जाने लगी। रास्ते में उसे छोटू की मम्मी मिल गई बातों ही बातों में उसने छोटू की मम्मी को बताया कि आजकल छोटू चुपचाप रहता है। वह जानना चाहती थी कि उसकी मां छोटू के बारे में क्या कहती है।? वह बोली बेटा मेरा छोटू बहुत ही भोला है वह कितने दिनों से हमसे रंग लेने की फर्माईश कर रहा था मगर हमने उसे अभी तक उसकी इच्छा पूरी नहीं की। शायद इसलिए वह चुपचाप रहता होगा और क्या कारण हो सकता है। सब कुछ साफ हो गया था।

 

शुची को पता लग गया था कि उसने जो रंग देखे वह छोटू लाया होगा। यह रंग तो उसने दो-चार दिन पहले ही लिए होंगे नहीं छोटू चोरी नहीं कर सकता। मगर उसके पास रंग कैसे आए। उसके मां पिताजी ने तो उसे ले कर नहीं दिए। हमारी मैडम कहती है कि हमें बिना सोचे समझे किसी पर भी शक नहीं करना चाहिए। जब तक मुझे कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता तब तक मैं छोटू को चोर साबित नहीं कर सकती।

 

वह बहुत ही होशियार थी उसने यह किसी न किसी दुकान से लिए होगे। छोटू के घर के पास जो स्टेशनरी की दुकान है उसकी दुकान पर चल कर पता करती हूं। वह जल्दी जल्दी स्टेशनरी की दुकान पर पहुंच गई। आपके पास ड्राइंग कॉपी है। दुकानदार बोला मेरे पास ड्राइंग कॉपी तो खत्म हो गई है। यह एक ही बची थी। वह तो दो  दिन पहले एक लड़का लेकर गया। मैं मंगवा दूंगा। वह बोली कोई बात नहीं अंकल आप से कौन कॉपी लेकर गया।? वह बोला मुझे नाम तो नहीं पता मगर यही नजदीक ही रहता है। उसे मैं जाते हुए हर रोज देखा करता हूं वह बोली अंकल क्या उसने पैंट पहन रखी थी। वह बोला तुम क्यों पूछ रही हो?? तुम तो ऐसे पूछ रही हो जैसे उसने कोई चोरी की हो। वह बोली नहीं अंकल। दूकानदार बोला उस बच्चे का नाम  तो मुझे पता नहीं पर सब लोग उसे छोटू बुलाते हैं। वह बोली अंकल धन्यवाद। वह तो आप से ड्राइंग कॉपी और रंग भी ले गया होगा। वह बोला हां हां।

 

शुची को पता चल चुका था कि चोरी छोटू ने ही की थी। उसके पास ड्राइंग बनाने के लिए रंग नहीं थे इसलिए उसने चोरी की। अगले दिन उसने मैडम को कहा कि मैडम मुझे पता चल गया है कि आपकी रुपए किसने चोरी किए मैडम बोली वह कौन है? जिसने फीस के रुपए चोरी किए। शुची ने कक्षा में सब बच्चों के सामने कहा कि छोटू ने ₹50 चोरी किए। छोटू ने कहा कि मैंने रुपए चोरी नहीं की है। मैडम ने उसे मुर्गा बनाया और कहा बेटा जब तक तुम अपनी चोरी को कबूल नहीं करोगे तब तक हम तुम्हें नहीं छोड़ेंगे। वह फिर भी कुछ नहीं बोला।

 

आज सब बच्चों के सामने उसकी बेइज्जती हुई थी। उसे शुची पर गुस्सा आ रहा था। शाम को शुची उसके घर पर आकर बोली आंटी आपके बेटे ने मैडम के ₹50 चुराया। और उससे रंग ला कर रंग किए। उसके पापा ने जब सुना कि छोटू ने चोरी की तो उन्होंने छोटू की खूब पिटाई की उसके रंग बाहर कूड़ेदान में डाल दिए। छोटू को शुची पर बेहद गुस्सा आ रहा था। उसके पापा ने उसे दो दिन तक खाना नहीं दिया। चार दिन तक छोटू स्कूल नहीं आया। शुची को बहुत ही बुरा महसूस हुआ। वह ड्राइंग ही तो करना चाहता था। उसके पापा के पास इतने रुपए नहीं थे जो उसको रंग ला देते। मेरे पापा के पास तो काफी रुपयें हैं। छोटू के पापा के पास इतने रुपए नहीं है बेचारे कहां से लाते। मेरे पापा भी अगर गरीब होते और वह मुझे रंग नहीं दिलवाते मुझे ड्राइंग करने का शौक होता तो शायद मैं भी चोरी करती।

 

हे भगवान मैंने उस छोटू को यूंही मार पड़वा दी वह जल्दी ही छोटू के घर पहुंची। छोटू ने अपने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया था। उसकी मां रो-रो कर बोल रही थी बेटा मुझे माफ कर दो इसमें तेरा कोई कसूर नहीं है तू ने ना जाने कितनी बार हमसे रंग लाने के लिए कहा मगर हमने तेरी बात को नजरअंदाज कर दिया। छोटू ने सारी रात दरवाजा नहीं खोला। उसे नींद आ गई थी। उसकी मां ने इस तरह दूसरी तरफ से जाकर दरवाजा खोला। पिछली तरफ से भी उनका दरवाजा खुल. जाता था। वहां से उसकी मम्मी ने दरवाजा खोला। शुची ने मैडम को कहा मैडम छोटू को माफ कर दो। उसने स्कूल में सब बच्चों को ड्राइंग करते देखा तो उसका भी मन ड्राइंग करने को हुआ मगर उसके पास रंग नहीं थे। इसलिए उसने आपकी फीस में से चोरी की। मैडम ने जब छोटू की ड्राइंग देखी उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। इतनी सुंदर ड्राइंग मैडम ने उसे अपने पास बुलाया और उसके सर पर प्यार से  हाथ फेरते हुए बोली बेटा तुम अगर रंग लेना ही चाहते थे तो हम से कह दे देते। हम तुम्हें रंग दिलवा देते आगे से कसम खाओ कि कभी चोरी नहीं करोगे। नन्हा सा छोटू मान गया। मैडम ने छोटू की फीस भी माफ कर दी। धीरे-धीरे छोटू ने शुची कहा कि तुमने मुझे सही रास्ता दिखाया। तुम सचमुच में ही मेरी अच्छी दोस्त हो। शुची अभी भी खुश नहीं थी। उसका का जन्मदिन आने वाला था। उसने अपने पापा को कहा कि पापा इस बार भी मैं अपना जन्मदिन कुछ अलग ही तरीके से मनाना चाहती हूं। उसने अपने माता पिता को कहा कि पापा मैं अपना जन्मदिन अपने तरीके से मनाना चाहती हूं जन्मदिन पर उसने इस बार बहुत अच्छे कलर लिए और खूब सारी ड्राइंग कॉपी ली। उसने अपने दोस्त छोटू को भी अपने जन्मदिन पर आमंत्रित किया। उसने अपने जन्मदिन पर छोटू को भी उपहार दिया। एक बहुत बड़ा डिब्बा था छोटू डिब्बा पाकर बड़ा खुश हुआ।उसमें बहुत सारे कलर थे और  चार ड्राइंग कॉपी इतने सारे रंग देखकर छोटू बहुत ही खुश हुआ। शुची नें अपने घर के पास ही गरीब बच्चों की झोपड़ियों  में जा कर उन्हें रॉ उपहार में दिए।  झोंपड़ी के बच्चे उसके इर्द-गिर्द आकर बोले दीदी तुम्हारा धन्यवाद। वह सोचने लगी वह अपने हर जन्मदिन पर कुछ अलग सा करेगी। उन लोगों के लिए जो सबसे अलग हैं। छोटू बोला तुमने मुझे इतने सारे रंग दिए। वह बोली तुम्हें देखकर मुझे लगता है कि तुम मेरे भाई हो। मेरे कोई भी भाई नहीं है। जब मैंने तुम्हारी शिकायत लगाई उसके बाद मुझे इतना पश्चाताप हुआ।

 

उसमें तुम्हारी गलती नहीं थी मैं ही समझ नहीं सकी। वह बोला इसमें तुम्हारा कोई कसूर नहीं था।  बच्चे बड़े हो चुके थे।  छोटू एक दिन इतना बड़ा चित्रकार बन चुका था। उसे सम्मान से नवाजा जाना था। उसकी पेंटिंग इतनी मशहूर हुई थी कि उसकी एक एक पेंटिंग करोड़ों रुपए की थी। आज इतना बड़ा सम्मान पाकर बहुत ही खुश था। उसने अपने मम्मी पापा को एक बड़ा बंगला लाकर दे दिया। वह अपने पुराने गांव में जब आया तो वहां शुची का मकान देखकर दंग रह गया। वहां पर जाकर दरवाजा खटखटाया अंदर से शुची के बूढ़े पिता ने दरवाजा खोला। उनका बंगला अब इतना पुराना हो चुका था उसने बातों ही बातों में पूछ लिया अंकल आपने मुझे पहचाना। वह बोले बेटा हां तुम्हें हम कैसे नहीं पहचानते?

तुम शुची के दोस्त हो। शुची ने तो तुम्हें अपना भाई बनाया था। वह शादी करके अपने घर चली ग्ई। । उसके दो छोटे प्यारे प्यारे बच्चे हैं तुम कहां हो?वह बोला मैं भी अपनी पत्नी और बच्चे के साथ रहता हूं। मैं मुंबई में रहता हूं

 

वह बोले हमारी बेटी भी मुंबई में रहती है। वह बेचारी बीमार है। वह अस्पताल में है। शुची के पिता ने  छोटू को अस्पताल का पता दे दिया। छोटू जब मुंबई वापस गया शुची को देखकर हैरान रह गया। यह तो एकदम हड्डियों का ढांचा रह गई थी। वह जल्दी से अस्पताल आया वह छोटे से बच्चे को देखकर चौका। छोटा सा बच्चा बोला अंकल आप हमारी मम्मी को देखने आए हो। मेरी मम्मी बहुत बीमार है। शुची के पति शौर्य से उसकी मुलाकात हुई शौर्य नेंे कहा कि शुची का बचना मुश्किल है उसका हार्ट का ऑपरेशन होगा। उसके ऑपरेशन के लिए 5000000 रुपए खर्च आएगा। हमारे पास इस के इलाज के लिए इतने रुपए नहीं। हमने तो आस ही छोड़ दी है अब तो भगवान का ही भरोसा है। छोटू सूची के पास जाकर बोला तुम्हारे छोटू। तुम्हारा छोटू आ गया है। तुम ही तो मेरी छोटी बहन हो। तुम्हें मैं जरूर बताऊंगा। उसने अपनी पेंटिंग बेच दी। उसकी एक एक पेंटिंग इतनी महंगी बिकी। उसने शुची के ऑपरेशन के लिए अपनी पेन्टिन्ग बेच दी।

 

शुची का ऑपरेशन सफल हो गया। वह मौत के मुंह से बाहर निकल चुकी थी। वहबोली भाई मेरे तुम ने मुझे बचा लिया नहीं तो आज मैं जिंदा नहीं बचती। शौर्य और शुची नें छोटू को अपने घर खाने पर बुलाया। शुची की तरफ हाथ बढ़ा कर बोला यह कलाई अभी भी सुनी है। जब तक मेरी बहन  मेरे हाथ पर राखी नहीं बांधेगी  तब तक मैं समझूंगा कि मेरी बहन  नें मुझे अभी तक माफ नहीं किया। आज राखी के  त्यौहार पर मैं तुम्हें एक अपने हाथों द्वारा बनाई गई पेंटिंग तुम्हें देता हूं। जैसे ही शुची   ने पेंटिंग को देखा उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। उसमें उस की बचपन की तस्वीरें थी। वह बोली भाई मेरे तुमने मेरी जिंदगी में रंग भर दिए हैं। मेरी दुनिया आबाद कर दी है। आज नहीं तो मेरे बच्चे अनाथ हो जाते। आज तुमने न्ई जिंदगी दे कर मेरी जिंदगी में रंग भर कर   इन्हें  आबाद  कर  दिया है।

पिन्कु और जादू की परियां

एक बच्चा था उसका नाम था पिंकू। वह बहुत ही होनहार लड़का था वह हर काम को बहुत होशियारी से किया करता था। एक दिन जब वह स्कूल से आ रहा था तो उसे एक जूता दिखाई दिया। वह इतना चमचम कर रहा था वैसे वह उस जूते को देखकर मोहित हो गया। उसने वह जूता उठा लिया। जूते को उठा कर घर ले आया। उसको उलट पलट कर देखने  लगा।  उसी समय उसकी मम्मी अंदर आ गई बोली बेटा तुम बार-बार अपने बैग में क्या ढूंढ रहे हो।? पिंकू बोला नहीं मां, मैं बैग में कुछ नहीं ढूंढ रहा। उसने वह जूता बैग में रख दिया। दूसरे दिन जब वह स्कूल से घर आ रहा था तो उसे तीन परियां दिखाई दी। उन्होंने उस बच्चे को आवाज लगाई पिंकू। उसने देखा कि मुझे कौन आवाज़ लगा रहा है।?  तीन परियां उसके पास आकर बोली बेटा । हमारी बात ध्यान से सुनो। हमारा जूता नीचे गिर गया था। वह तुमने उठाकर अपने बैग में रख लिया था। कृपया बेटा हमारा जूता हमें दे दो। यह जूता तुम्हारे किस काम का। हम नीचे नहीं आ सकती। अगर हम पृथ्वी पर पांव रखेंगी तो हम जलकर भस्म हो जाएंगी। एक साधू बाबा ने हमे शाप दिया था। वह बोला मुझे तुम्हारा जूता बहुत अच्छा लगा। इस में सितारे लगें हैं। मैं इस के कपड़े की गेंद बनाऊंगा।  तीनों परियां   उसके आगे हाथ जोड़कर खड़ी हो गंई और बोली बेटा वह जूता तुम्हारे किस काम का। हम तुम्हें दूसरा जादू का जूता दे देंगी। पर इस जूते को हमें दो  इसके बदले में हम तुमको एक जादू का बाजा देते हैं। यह जादू का बाजा तुम्हारे बहुत ही काम आएगा पहले तुम इस जादू के बाजे को आजमा कर देख लो। तुम्हें समझ आ जाएगी।

 

उन्होंने पिन्कु को जादू का बाजा दे  दिया। बाजा पा कर पिन्कु बहुत खुश हुआ। उसनें वह जूता छिपा कर रख दिया। जब यह बाजा मेरे काम का होगा तब मैं उन परियों का जूता वापिस कर दूंगा। वह  जादू के बाजे को बजाता बजाता घर से बाहर  निकल गया। जब वह बाजा बजाता उसके इर्दगिर्द  बहुत सारे लोग इकट्ठे  हो जाते। एक दिन पिन्कु को कुछ चोरों ने देख लिया। उसको अपहरण करके ले जा रहे थे। वे उसे एक गाड़ी में बिठाने ही लगे थे कि उसे पता चल चुका था कि वह उसका अपहरण करने आए थे। उसने जोर जोर से  बाजा बजाना शुरु कर दिया। उसके बाजे की आवाज सुन कर  बहुत सारे लोग उसके  इर्दगिर्द इकट्ठे हो गए।  पिन्कु बोला एक आदमी से बोला अंकल ये चोर मुझे अपहरण कर के ले जा रहे थे।   मुझे  इनसे  छुड़वाओ। पिंकू ने बहुत सारे आदमियों को अपनी ओर आते देखा जैसे उन अपहरणकर्ताओं ने आदमियों को उसकी ओर आते देखा वह अपनी गाड़ी को भगा ले गए। पिन्कु सुरक्षित बच गया था। वह सोचने लगा कि इन परियों ने मुझे सचमुच में ही जादू का बाजा  दिया है। वह दौड़ा दौड़ा परियों के पास गया और कहा कि वाह तुमने तो मुझे बहुत ही अच्छा जादू का  बाजा दिया है। मैं तुम्हारा जूता तुम्हें वापस करता हूं। आप सच्ची और नेक इंसान हैं। दोनों परियां बोली  बेटा आज मैं तुम्हें एक जादू की पेंसिल देती हूं। इस पैंन्सिल ं से जो कुछ भी तुम लिखोगे वह सच्ची घटना होगी। जो तुम्हें आने वाली घटनाओं को पहले ही बता देगी। बेटा हमने तुम्हारी ईमानदारी से प्रसन्न होकर तुम्हें यह दोनों वस्तुएं दी है। यह दोनों वस्तुएं सिर्फ ईमानदार लोगों का ही साथ देती है। वह जादू की पेंसिल पाकर खुश हो गया।

 

जादू का बाजा और पेंसिल  वह हमेशा अपने बैग में रखता था। वह रास्ते में बैठकर ड्राइंग  करता था।

 

वह रास्ते में बैठकर ड्राइंग बना रहा था। अचानक उसकी पैंन्सिल  नें लिखना शुरु कर दिया अभी चोर आने वाले हैं। वह तुम्हारा बाजा चुराने आ रहे हैं। परंतु कोई बात नहीं वह चोर है। वह बाजा उनके किसी काम नहीं आएगा। थोड़ी देर बाद पिंकू ने देखा कि तीन चोर जो उस  का अपहरण करके ले जा रहे थे वही उसके सामने आकर खड़े हो गए। वह बोले बेटा आज तुम हम से बच नहीं सकते। उस दिन तो तुमने बाजा बजा कर सबको इकट्ठा कर लिया था। आज तो हम तुम्हें पकड़कर ले ही जाएंगे। वह बोला यह बाजा जादू का है।  मैं तुम्हें यह बाजा दे देता हूं। वह चोर बोले हम तुम्हारा बाजा-बजाकर देखना चाहते हैं। वह बोला अगर तुम्हें यह बाजा बजा कर देखना है तो एक शर्त पर। तुम यह बाजा बजा सकते हो। अगर आसपास  कोई लोग तुम्हारा बाजा सुन कर नहीं आए तो तुम इस बाजे को मुझे वापस कर दोगे। चोरों ने कहा हमें तुम्हारी शर्त मंजूर है। पिंकू नें वह बाजा उन्हें दे दिया। तभी उसकी पेंसिल कुछ लिखने लगी। पेंसिल नें लिखा कि यह चोर अभी पकड़े जाएंगे। इन को पुलिस पकड़ कर ले जाएगी।।

 

पिंकू ने कहा जल्दी से यहां से चले जाओ वर्ना पुलिस तुम्हें पकड़ कर ले जाएगी। चोर बोले तुम्हें कैसे पता है।? पिन्कु बोला मेरे जादू की पेंसिल नें मुझे बताया है। चोरों नें   उस बाजे को बजाया कोई भी नहीं आया। उन्होंने बाजा पिंकू को वापस कर दिया। एक आदमी ने उसके सिर पर बंदूक तान कर कहा यह जादू की पेंसिल हमें दे दो नहीं तो तुम मारे जाओगे। उन चोरों ने उससे जादू की पेंसिल छीन ली। पिंकू ने बाजा  बजाया लोग इकट्ठे हो गए। उनमें से दो पुलिस अफसर भी थे। पिंकू ने कहा पुलिस बाबू इन चोरों ने मेरी पेंसिल मुझसे छीन ली है  यह पेंसिल कोई मामूली पैंन्सिल नहीं  है। जादू की पैंन्सिल है। इन चोरों से यह पेंसिल मुझे दिला दो। पुलिसवालों ने कहा कि यह कैसे अपना जादू दिखाती है? पहले हमें जादू दिखाओ। पिंकू बोला यह जादू की पेंसिल आगे आने वाली भविष्यवाणी कर देती है।

 

पुलिस इन्सपैक्टर ने चोरों को पकड़ लिया। चोंरोंं से बाजा पिंकू ने प्राप्त कर लिया था। तभी उनकी पेंसिल कुछ लिखनें लगी। पैंन्सिल ने लिखा कि इन पुलिस वालों के घर के सदस्यों की जान खतरे में है। जल्दी से घर पहुंच कर उन्हें बचा लो। उनके घर में उन चोरों के साथियों नें पुलिस इंस्पेक्टर का पता करके उन पुलिस इंस्पेक्टर के बच्चे और पत्नी को पकड़ लिया था। इसके बदले में वे अपने साथियों को छुड़ाने की मांग करेंगे। तुम दोनों  पुलिस इन्सपैक्टर अगर समय पर पहुंचकर सारी पुलिस फोर्स को  ले कर घर में सेंध  लगा दे तो वह चोर पकड़े जाएंगे नहीं तो तुम्हारी पत्नी और बेटा दोनों की जान खतरे में होगी।  पुलिस इन्सपैक्टर नें सोचा शायद यह बच्चा ठीक बोल रहा होगा।  चलो घर में  पुलिस फोर्स को भिजवा देते हैं। पुलिस इन्सपैक्टर नें जैसे ही अपनी पत्नी को कॉल लगाया वह बोली  बाहर पता नहीं कौन है जो  जोर जोर से दरवाजा खटखटा रहा है।? मैंने लैंन्स में से  झांक कर देखा  वह कोई दो  पगड़ी वाले इन्सान  थे। पुलिस इंस्पेक्टर ने अपनी पत्नी को कहा कि तुम दरवाजा मत खोलना मैं पुलिस फोर्स भेजता हूं। तिवारी ने सारी पुलिस फोर्स अपने घर में भेज दी। पुलिस वालों ने पहुंचकर उन दोनों चोरों को पकड़ लिया। बच्चे की सौ फ़ीसदी बात सच निकली।  

 

पिंकू जादू का बाजा बजाता जा रहा था बाजे को सुनने के लिए चारो तरफ लोग इकट्ठा हो चुके थे। स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रम होने वाला था। पिंकू स्कूल में जादू की पेंसिल से चित्र बनाने वाला था। वह पेंसिल चित्र ना बनाकर कुछ लिख रही थी। पैंन्सिल नें लिखा जल्दी से सारे सारे बच्चे बाहर जाकर संस्कृति कार्यक्रम मनाएं क्योंकि यहां पर आतंकवादियों ने स्कूल को चारों तरफ से घेर कर आतंकवादी ब्लास्ट करने की सोच रहे हैं। सारे स्कूल की इमारत पन्द्रह मिनट में ध्वस्त हो जाएगी। जल्दी से जल्दी यहां से भागने की कोशिश करो। वर्ना 500 विद्यार्थी बेमौत मारे जाएंगे। वह जल्दी से प्रिंसिपल के पास जाकर बोला मैडम जी जल्दी से अनाउंसमेंट कर दो स्कूल में ब्लास्ट होने वाला है। सारे बच्चे और अध्यापक यहां से बाहर निकल जाओ। प्रिंसिपल बोले तुम झूठ बोल रहे हो। पिंकू बोला मैडम आपको झूठ की पड़ी है जो कुछ करना होगा बाद में कर लेना मुझे सजा दे देना। स्कूल से निकाल देना अगर मेरी बात झूठ साबित होगी। प्लीज पहले यंहा से सारे बच्चों के साथ बाहर निकले। जब पिंकू को यह कहते सुना तो उसने अनाउंसमेंट कर दी और  कहा सारे बच्चों का कार्यक्रम यहां से तीन किलोमीटर एक पार्क में होगा। यह कहकर वह प्रिंसिपल ने यह भी कहा कि हम वहां पर पिकनिक भी करेंगे। जब प्रिंसिपल ने अनाउंसमेंट की सारे के सारे बच्चे और अध्यापक दस मिनट के अंदर ही अंदर में पार्क में चली ग्ए। पन्द्रह मिनट बाद वहां सारा का सारा स्कूल ब्लास्ट हो चुका था। आतंकवादियों ने स्कूल को अपना निशाना बनाया था। पिंकू की मदद से उन बच्चों को बचा लिया  गया।

 

मैडम ने पिंकू को उसके साहसिक कार्य की प्रशंसा की। उन्होंने पिंकू को बहुत सारा इनाम दिया। उसके बाजे और जादू की पेंसिल की खबर उस गांव के जमींदार को लगी। जंमीदार नें सोचा कि इस बच्चे से जादू का बाजा और जादू की पैंन्सिल  छुड़ा लिया जाए। अपने आदमियों को उन्होंनें पिंकू के घर में भेजा वे पिंकू को पकड़कर जमीदार के घर ले आए। पिंकू अपना बाजा और जादू की पेंसिल भी साथ ले आया था। उस जमीदार ने जादू का बाजा पिंकू से छीन लिया। जैसे ही  जमीदार ने बाजा बजाया वंहा कोई नहीं आया। जंमीदार बोला तुमने हमें नकली बाजा दिया है। पिंकू बोला यह बाजा केवल ईमानदार लोगों का ही  साथ देता है। जंमीदार नें  कहा तुम बाजा बजा कर दिखाओ।  पिंकू बोला यह बाजा केवल ईमानदार लोगों को ही का ही साथ देता है पिंकू ने जैसे ही बाजा बजाया आसपास के लोग पिंकू के इर्दगिर्द इकट्ठा होकर बोले बेटा क्या करना है।?। पिंकू बोला इस जमीदार ने मुझे बिना वजह पकड़ कर रखा है तुम मुझे इसके चुंगल से छुड़ा।

जमीदार ने एक साथ इतने सारे लोगों को सामने इकट्ठे खड़ा देखा तो वह बोला बेटा मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हारे जादू के बाजे की कहानी सुनी थी। सचमुच में यह जादू का बाजा है। पिंकू को जमीदार ने छोड़ दिया। पिंकू की पेंसिल ने लिखा था कि इन सभी आदमियों को कहो कि रुक जाए। उनसे कहो कि जंमीदार से कहो कि तुम नें जिन जिन व्यक्तियों से ज्यादा रुपए तुमने छीने हैं उन सभी के रुपए वापस कर दे नहीं तो आज जंमीदार इन सब व्यक्तियों से बच नहीं सकता। पिंकू ने जमीदार को कहा कि मेरे पास जादू की पेंसिल है। आज जमीदार जी आपकी जान खतरे में है। जिन व्यक्तियों से आपने ज्यादा रुपए छीन ली है उन सब के रुपए वापस कर दो नहीं तो आज यह सब आदमी आप की छुट्टी कर देंगे। सारे के सारे आदमियों ने जब पिंकू की बातें सुनी तो उनसे व्यक्तियों ने मिलकर कहा जमींदार बाबू आप हमें हमारे छिनें हुए   रुपए  हमें वापस करो आज हम सब से आप नहीं बचोगे। यह सब राजू की पेंसिल ने लिखा है। चलो सब मिलकर इस जमींदार की पिटाई करते हैं।

पिंकू बोला रुको। पिंकू ने परियों को याद किया  परियों नें उसे कहा था कि जब तुम हमें बुलाओगे तब हम हाजिर हो जाएंगी। पिंकू ने परियों को कहा कि आपने मुझे जादू का बाजा और जादू की पेंसिल दी थी। आज मैं इन दोनों वस्तुओं को आप को वापस करना चाहता हूं। क्योंकि हर कोई मुझ से जादू की पेंसिल और जादू का बाजा छिनना चाहता है। मुझे इन दोनों वस्तु की जरूरत नहीं है। आप मेरा एक काम करें इस जमीदार से इन व्यक्तियों के सारे छीने हुए रुपए वापस करवा दो। परियों नें जमीदार पर जल की तीन बूंदे छिड़की। जमीदार ने सभी व्यक्तियों के छिनें हुए रुपए वापस कर दिए। तीनों परियों ने पिंकू की ईमानदारी की प्रशंसा की और कहा बेटा जाओ तुम्हें हम आशीर्वाद देती है जो तुम बनना चाहते हो तुम बनकर रहोगे। भगवान तुम्हें कामयाबी दे।

पिंकू ने तीनों परियों के पैर छुए कहा अच्छा अलविदा। पिंकू बोला पहले तुम तीनों को श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए मुझे क्या करना होगा।? मुझे बताओ तीनों परियां  बोली यंहा से  तीन किलोमीटर की दूरी पर एक मोनी बाबा रहते हैं। वे अखंड तपस्या कर रहे हैं। तुम वहां जाकर उनके बगीचे की देखभाल करना। उनकी खूब सेवा करना। तुम्हारी सेवा से प्रसन्न होकर  वह तुम्हें वरदान देंगे। तब तुम उनसे हमारे लिए प्रार्थना करना। हम शाप से छूट जाएंगी तभी हम पृथ्वी पर पैर रख सकेंगे। नहीं तो हम बीच में ही लटक कर रह जाएंगी। हम बीच में ही हवा में इधर उधर घूमती रहती हैं।

 

पिंकू चलता चलता उस बाबा साधू बाबा की कुटिया में पहुंच गया। उसने दिन-रात साधु बाबा की सेवा की। साधु बाबा की जब आंखें खुली तो अपनी कुटिया की इतनी सुंदर सफाई देखकर आश्चर्यचकित रह गए। वह बोले बेटा यहां की इतनी देखरेख और यहां की हरियाली देख कर मैं हैरान रह गया। बेटा तुम बहुत ही होशियार हो। बोलो तुम क्या मांगना चाहते हो।? पिंकू बोला बाबा जी आप मना तो नहीं करोगे। साधु बाबा बोले बाबा अगर किसी को आशीर्वाद देते हैं तो पूरे मन से। बोल तू क्या मांगना चाहता है? पिंकू बोला आप इन तीनों परियों को शाप से मुक्त कर दे। यह मुझे चाहिए। साधु बाबा ने कहा ठीक है जाओ। एवमस्तु बेटा। तुम दूसरों के लिए ही कुछ मांगते हो अपने लिए भी कुछ मांगो। पिंकू बोला आप मेरे सिर पर हाथ रखकर मुझे आशीर्वाद दें। मैं हमेशा दुनिया में अच्छे काम करुं और अच्छा वैज्ञानिक बनकर देश के भविष्य को संवार  सकूं। साधु बाबा ने कहा कि तुम्हारी इच्छा पूरी हो। तीनों परियां  शाप से मुक्त हो गई। वह तीनों अपने देश वापस चली गई। पिन्कु भी एक बड़ा वैज्ञानिक बना वह भी अपनी मेहनत के दम पर।

 

देर आए दुरुस्त आए

पियूष जल्दी से घर पहुंचना चाहता था क्योंकि आज वह काफी थक चुका था। ऑफिस में बॉस से कहा सुनी हो गई घर में पत्नी से नोकझोंक इस आदत से वह बहुत ही तंग आ चुका था । कुछ दिनों से उसे बहुत ही गुस्सा आ रहा था क्योंकि घर पर उसकी पत्नी उससे हर रोज लड़ाई झगड़ा करती थी । झगड़ा हर रोज एक ही बात को लेकर होता था । उसकी पत्नी उसे हर रोज टेलीविजन की फर्माईश करती थी। टेलीविजन भी बहुत महंगे वाला क्योंकि पल्लवी अपनी सहेलियों के घर में नई-नई चीजें देखकर आती थी और अपने पति से हर रोज यही कहती थी कि मेरी सहेलियों के पास इतनी महंगी महंगी चीजें हैं,आप तो कभी भी हमारी एक भी इच्छा पूरी नहीं करते हो । तब उसका पति उसे समझाता भाग्यवान हमें दूसरों के घर से क्या लेना-देना ? उनके पास चाहे जितनी भी महंगी चीजें हैं पर तुम्हारे पास भी किस वस्तु की कमी नहीं है । तुम्हारे पास दो प्यारे-प्यारे बच्चे हैं और तुम्हारा पति सही सलामत है । सब अच्छी तरह से खा पी रहे हैं  मेरी इतनी हैसियत नहीं है कि मैं इतना महंगा  टैलीविजन ले लूं और वह भी ₹30000 का । हमें उतने ही पैर पसारने चाहिए जितनी कि हमारे में क्षमता हो ।हमें दूसरों के पास क्या-क्या है इसको देखकर ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए? मैं ईमानदारी से अपनी आजीविका चला रहा हूं।

आज तो वह चुपचाप घर आकर सो जाना चाहता था। परंतु उसकी पत्नी ने उसके सिर दर्द की परवाह कभी नहीं की और कहने लगी तुम झूठ मूठ का बहाना बना रहे हो क्योंकि तुम हमें टैलीविजन दिलाना नहीं चाहते ।मैंने आज तक तुमसे कुछ भी नहीं मांगा ।मेरी सहेलियों के बच्चे तो गाड़ी में ही स्कूल जाते आते हैं । क्या कभी मैंने गाड़ी कि फर्माइश की तब उसके पति ने कहा कि तुम अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने जाती हो तभी तो तुम तंदुरुस्त हो और अच्छी बात है तुम्हें सैर  करने का मौका भी मिल जाता है । तुम अपनी सहेली के बच्चों को ही देखो ।हर रोज उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ता है ।उन्हें ज़रा भी पैदल चलने की आदत नहीं। हो सकता है तुम्हारी सहेलियों के पति  इतनी महंगी चीजें घर लेकर आते हैं वह शायद काले धन से  कमाया  हुआ रुपया हो। या किसी से रिश्वत लेकर। जरा सोचो तो अगर मैं भी तुम्हें गाड़ी, टीवी ,फ्रिज और कूलर दिलवा दूं वह भी रिश्वत की कमाई से तो क्या तुम लेना स्वीकार करोगी?  पल्लवी कुछ नहीं बोली चुपचाप रसोई घर में चली गई। दूसरे दिन पियूष  ने अपने बॉस से अपना रुपए निकलवाने की शिफारिश की क्योंकि वह अपनी पत्नी की इच्छा को पूरी करना चाहता था। उसे मुश्किल से ₹15000 मिले वह एक   टैलीविजन की दुकान पर गया वहां पर उसने वही  टैलीविजन देखा जिसकी फर्माइश उसकी पत्नी कर रही थी ।उसकी कीमत सुनकर वह धक्क  से रह गया, क्योंकि उसकी कीमत ₹25000 थी ?उसके पास इतने अधिक रुपए नहीं थे तभी उसने सामने से आते हुए अपने दोस्त को देखा ।उसके दोस्त पंकज ने उस से हाथ मिलाया और अपने दोस्त को परेशानी की हालत  में देखते हुए बोला ,अरे यार तुम्हें क्या हुआ है ?तुम इतने परेशान क्यों हो ?मुझसे कहो शायद मैं तुम्हें तुम्हारी समस्या को हल कर दूं ।उसने अपने दोस्त को  कौफी  पेश की और कहा मैं यहां पर  टैलीविजन की दुकान पर नौकरी करता हूं ।पल्लवी के पति ने कहा तुम्हारी भाभी हर रोज मुझसे नए मॉडल के  टैलीविजन की फर्माइश करती है। मैं क्या करूं ?मेरे पास इतने रुपए नहीं है । मुझे अपने परिवार में बच्चों को भी देखना पड़ता है आजकल महंगाई के वक्त इतना रुपया एकदम जुटाना बड़ा मुश्किल है क्योंकि मैं इतना अमीर नहीं हूं । तुम्हारी भाभी इस बात को जरा भी नहीं सोचती। उसके दोस्त ने कहा कि मेरे पास इस समस्या का भी समाधान है। तुम इसी मॉडल की तरह का एक सस्ता सा  टैलीविजन लेना चाहते हो। मैं  उस टैलिविजन को इस तरह का बना दूंगा कि तुम्हारी पत्नी को पता भी नहीं चलेगा कि यह सस्ता वाला  टैलिविजन है । उसी डिजाइन का  टैलिविजन तुम्हें ₹10000 में दे दूंगा जैसा कि तुम्हारी  पत्नी की सहेलियों  के पास है।उस पर स्टीकर  भी उसी मॉडल का चिपका दूंगा तुम्हारी पत्नी को तो क्या उनकी सहेलियों को भी मालूम नहीं पड़ेगा कि यह  टैलिविजन ₹10000 का है । तुम्हारी बीवी भी खुश हो जाएगी ।

 

पियूष की खुशी का ठिकाना नहीं रहा ।उसने अपने दोस्त को धन्यवाद देते हुए कहा कि तुम जल्दी से मुझे वह  टैलिविजन पैक कर दो ।  पियूष जब घर आया तो उसने अपनी पत्नी को कहा जल्दी से चाय बना कर लाओ ,आज मैंने तुम्हारी  फर्माइश  पूरी कर दी है ।उसकी पत्नी खुश होते हुए बोली क्या तुम झूठ बोल रहे हो? उससे पहले कि वह कुछ कहती उसने एक आदमी को एक बॉक्स अपने घर पर छोड़ते हुए देख लिया था। उसने उस बक्से में से टैलिविजन निकाला और पीयूष को पूछा कहां लगाना है ?पल्लवी बार-बार टीवी को देख रही थी।  उसने अपने पति को धन्यवाद दिया और कहा तुमने मेरी इच्छा आज आखिरकार पूरी कर ही दी। कहीं तुमने भी तो रिश्वत लेकर टैलिविजन नहीं खरीदा है ?पियूष  बोला अगर तुम हर बार  फर्माइश करोगी तो मुझे भी यही करना पड़ेगा । पल्लवी  बोली नहीं मैं अब तुमसे कुछ भी नहीं मांगूंगी।

 

बच्चे भी दौड़कर बार-बार  टैलिविजन को देखकर खुश हो रहे थे अपनी सहेलियों को अगले दिन उसने चाय पर घर बुलाया ।उन्होंने भी  टैलिविजन को देख कर उस से कहा अरे वाह !यह टैलिविजन तुमने कितने का लिया अचानक  पल्लवी बोली ₹30000 का ।उसकी सहेलियों को पता ही नहीं चला कि वह  टैलिविजन बिल्कुल उसी मॉडल की तरह दिख रहा था ।इस बात को काफी दिन व्यतीत हो गए ।पल्लवी अब अपने पति से कभी फर्माईश नहीं करती थी ।एक दिन जब पल्लवी घर आई तो उसके बेटे ने टेलीविजन का शीशा तोड़ दिया ।पल्लवी  बड़ी उदास हुई ।उसने अपने पास जो रुपए इकट्ठे किए थे उससे उसने वह  टैलिविजन ठीक करवाया ।आज सोचने लगी कि मैं अपने पति पर यूं ही गुस्सा होती थी ,इतना महंगा टैलिविजन उन्होंने हमें खरीद कर दिया है और हमने एक ही झटके में ₹25000 का खून कर दिया। मेरे पति ने पता नहीं कैसे-कैसे पाई-पाई जोड़कर इतने रुपए इकट्ठा किए होंगे? दूसरे दिन जब वह अपनी सहेलियों के घर  से आई तो उसने देखा कि उसके बच्चे आपस में लड़ रहे थे ।वह आपस में कह रहे थे पहले मैं सीरियल देखूंगा।लड़की कह रही थी मैं देखूंगी। उनकी मां ने आकर  टैलिविजन  बंद कर दिया।  उन दोनों बच्चों ने तूफान मचा दिया और एक-दूसरे के बाल पकड़ कर खींचनें  लगे।

 

भाई ने अपनी बहन को इतनी जोर से धक्का दिया वह दूर जाकर गिरी। उसके माथे से खून निकल गया था ।उन दोनों को लड़ता देखकर उसके पापा भी अचानक आ गए और अपनी पत्नी को डांटते हुए बोले तुम्हारी टैलिविजन की  जिद नें  तुम्हारे बच्चों को क्या से क्या बना दिया? पहले दोनों बच्चे खूब मन लगाकर पढ़ते थे अब तो सारा दिन टैलिविजन के सामने बैठकर नाटक देखा करते हैं । उन्हें डांटों तो गुस्सा होकर घर से निकल जाते हैं। तुम्हारी इसी आदत से मैं परेशान आ गया हूं । हर रोज हर दिन एक  नई फर्माईश लेकर आ जाती हो आज तो  मैं तुम्हारे बेटे की रिपोर्ट कार्ड लेकर घर आया हूं। तुम्हारा बेटा गणित मैं फेल है वह जब दूसरी सहेली के घर गई तो वहां का नजारा तो देखने ही लायक था। पुलिस इंस्पेक्टर वहां पर खड़े थे और पूछ रहे थे कि वर्मा जी  घर पर हैं ।क्या वर्मा जी का घर यहीं पर है? वर्मा जी ने ऑफिस में कुछ गड़बड़ घोटाला करके ₹50000 का कालाधन अपने घर में छिपाकर रखा था ।उनके घर से पुलिस ने छापा   डाल कर  सब रूपये वसूल कर लिए थे। उसे हवालात में डालने के लिए आई थी। उस पर ₹50000 का जुर्माना किया गया था और  छ:महीने की जेल हुई थी ।  वह चुपचाप  वंहा से  खिसक कर सीधे घर आई और अपने पति से बोली ।आप ठीक ही कहते हो, हमें उतने ही पैर पसारने चाहिए जितनी हम में क्षमता हो  ज्यादा के लालच में हमें अपना सब कुछ गंवाना पड़ सकता है ।उसका बेटा आते ही बोला मम्मी मैं आज थक गया हूं जरा  टैलिविजन लगा दो ।मम्मी ने टीवी का रिमोट हाथ में लेकर कहा था तुम्हें  टैलिविजन तभी देखने दूंगी मगर इस शर्त पर कि तुम  एक  घंटे से ज्यादा टीवी नहीं देखोगे और दोनों एक ही वक्त पर  टैलिविजन देखोगे ।दोनों बच्चों ने अपनी मम्मी को कुछ कहा मां ,जैसा आप कहोगी हम वैसा ही करेंगे । उसके पड़ोस की आंटी आई और बोली पल्लवी आज हमारे घर चलोगी ।आज मेरे बेटे का जन्मदिन है ।  पल्लवी  बोली आज मैं नहीं आ सकती ।मैं अपने बच्चों को तुम्हारे घर पर भेज दूंगी। पल्लवी  अब कहीं ना कहीं समझ गई थी कि अपनी मेहनत से कमाया हुआ रुपया ही फलता-फूलता है ।

 

हमें कभी भी दूसरों के घरों में कभी नहीं झांकना चाहिए। जो हमारे पास है वह बहुत ही मूल्यवान है ।हमारे शरीर के सभी अंग करोड़ों रुपयों के हैं  । हमारे  इन अंगों में से एक भी खराब हो जाता है तो हमारे पास तो इनका इलाज करवाने के लिए भी इतनी कीमत नहीं है ।हम तो बेकार में ही किसी के पास कोई अच्छी सी चीज देखकर अपने मन में कल्पना करने लगते हैं कि काश मेरे पास भी यह चीज होती ,परंतु सोचो जरा ,यह सब बात पल्लवी  सोच रही थी ।अपने पति को ऑफिस से आते देखा उसने अपने पति को कहा कि आपको निराश होने की जरुरत नहीं है ।मुझे आज अच्छी तरह से समझ में आ चुका है । कल से मैं अपने बच्चों को जल्दी स्कूल छोड़ने जाया करूंगी ।आप ठीक ही कहते हैं सैर करने से थोड़ा व्यायाम भी हो जाता है । सारा दिन चेहरे पर रौनक रहती है उसका पति खुश होते हुए बोला देर से ही  सही दुरुस्त आए । वह बहुत खुश हो गया बोला यही बात  मैं तुम्हें समझाना चाहता था ।उसने अपनी पत्नी और बच्चों को कहा कहां चला जाए? आज हम सब बाहर ही खाना खाने चलते हैं । उसकी पत्नी बोली  बाहर का खाना सेहत के लिए अच्छा नहीं होता ।मैं घर में ही आज बढ़िया बढ़िया भोजन बनाती हूं थोड़ी देर हम सारे बैठकर अंताक्षरी खेलते है।बढ़िया -बढ़िया भोजन का आनंद लेते हैं। दोनों बच्चे ठहाका मारकर हंसने लगे  ।सबके चेहरों पर खुशी के आंसू थे  ।पियूष को तो आज मानो सारी खुशियां हासिल हो चुकी थी ।

सोनू और उसका नन्हा दोस्त जौनी।

छवि और सौरभ के एक बेटा था अपनी नानी के पास से वापस अपने गांव लौट रहा था। सोनू केवल पांच वर्ष का था। गाड़ी से आते हुए अपनी मम्मी से बोला मां मैं लघुशंका जाना चाहता हूं। उसके मम्मी पापा ने कार एक ओर खड़ी कर दी। उसे कहा बेटा यहां उतर कर लो। वह नीचे उतर गया। उसकी मम्मी सामने से उसे देखती जा रही थी। वह काफी देर तक यूं ही फूलों को निहार रहा था। उसकी मम्मी से रहा नहीं गया। दस मिनट से वह खड़ी इंतजार कर रही थी। इतनी देर से वह क्या कर रहा है।तब उसके मम्मी पापा नीचे उतर आए। उन्होंने देखा वहां पर एक शेर का छोटा सा बच्चा था। जिसके साथ वह खेलने लगा था। वह उसको बार-बार प्यार कर रहा था।वह दोनों ऐसे लग रहे थे मानो दोस्त हों। उसकी मां ने सामनें से आते हुए एक गाड़ी में बहुत सारे जानवरों को देखा। शायद वे चिड़ियाघर के जानवर थे। इन्हें चिड़ियाघर में ले जाया जा रहा था। उनके झुंड मे से वह शेर का बच्चा अलग हो गया था।

शेरनी बार उधर ही देख रही थी। वह ट्रक तो आंखों से आज ओझल हो गया। शायद जल्दी में वह शेरनी का बच्चा उनके झूंन्ड से अलग छूट गया था।छवि ने अपने बेटे को कहा कि बेटे घर चलो। वह बोला मां मैं इस छोटे बच्चे को घर ले चलूंगा। इसकी मम्मी शायद ट्रक में आगे चली गई है यहबेसहारा हो गया है मां।
मां आज से यह मेरा दोस्त है। मैं इसके साथ खेला करूंगा। उसकी मम्मी बोली नहीं बेटा हम इसको अपने घर में नहीं रख सकते। सौरभ ने उसे चिड़ियाघर में छोड़ने का फैसला कर लिया था। सौरभ के एक दोस्त थे जो चिड़ियाघर में मैनेजर के तौर पर कार्यरत थे। उन्होंने उन्हें फोन करके सूचित कर दिया कि एक शेरनी का बच्चा उनके झूंन्ड से अलग हो गया है। आप जल्दी से जल्दी आ कर उसे यहां से ले जाएं। सोनू नें जब यह सुना तो वह बेहोश हो गया। उसको बेहोश होते देखकर उसके माता-पिता दुखी हो गए। वे अपने बेटे को खुश देखना चाहते थे। उन्होंने किसी ना किसी तरह मैनेजर से बात करके उसे थोड़े दिन तक अपने घर में रखने की इजाजत ले ली। सोनू उस शेरनी के बच्चे से काफी मिल गया। उसका नाम रख दिया जौनी। जब भी वह अपने घर के पास में खेलने जाता तो उसे भी अपने साथ ले जाता। उसने अपने दोस्त का नाम रखा था जॉनी। जॉनी को पाकर बहुत खुश था कुछ दिनों के लिए वह अपने मम्मी पापा के साथ सात दिनों के लिए किसी रमणीय स्थल पर घूमने गए। वहां पर एक आदिवासी ने उसके जॉनी को उससे मांगा।
सोनू ने जौनी को देने से इंकार कर दिया। उस आदिवासी अंकल ने उसे जानवरों की भाषा भी सिखा दी। वह काफी हद तक जानवरों की भाषा सीख चुका था। वह जब भी अपने बाग में घूमने जाता तो जॉनी उसके साथ होता। वंहा कौवा कोयल चिड़िया शेर के बच्चे को सोनू के साथ खेलते देखते तो उसका मन भी होता वह भी खेलेंगे। वहं चुपचाप उनको खेले देखा करता। सोनू को सभी जानवरों की भाषा आ चुकी थी। चिड़िया तोता कोयल मैना हाथी बंदर सब के सब उसके चारों ओर मंडराने लगते। सोनू घर से दूर बहुत घने जंगल में चला जाता। इन सभी जानवरों को वह वहीं बुला लेता और इन सब के साथ खूब खेलता। सारे के सारे जानवर उसके साथ मस्ती करते।सोनू नें उन सभी जानवरों को कहा मैं तुम्हें गिनती सिखाता हूं। उसनें उन सभी जानवरों को गिनना शुरू किया। सभी के सभी पक्षी जानवर उसे गुरुजी कहने लगे। क्योंकि वह उन्हें खूब अच्छी अच्छी बातें सिखाता था। घर आ कर सभी पक्षी जानवर अपने माता-पिता को बताते थे कि एक इंसान का बच्चा हमारा अध्यापक है आज उसने हमें गिनती सिखाई। एक से पच्चीस तक क्योंकि उनके पास अब पच्चीस जानवर हो चुके थे । गांव के अन्य जानवर सोचने लगे कि अगर हमारे जंगल के राजा को इस बात का पता चलेगा तो वह हमें छोड़ेगा नहीं। वह हम सब से बदला लेगा। कहेगा जब मैं जंगल का राजा हूं तो तुम सबको उस इंसान के बच्चे से शिक्षा लेने की जरूरत क्यों पड़ गई? क्या जंगल में रहने वाले जानवरों के अध्यापक पढ़ाने में इतने कुशल नहीं है तब क्या होगा।?। वह इस बात को लेकर हर वक्त परेशान रहते थे कि जब हमारे राजा को इस बात का पता चलेगा तो राजा हमें भी नहीं बख्शेगा और उस इंसान के बच्चे को तो वह खा ही जाएगा।

एक दिन सभी जानवरों ने अपनी सभा बुलाई। जानवरों के मां-बाप भी सोनू के स्कूल में उपस्थित हुए। उन्होंने सोनू से कहा कि तुम हमारे बच्चों को अच्छी शिक्षा देते हो। हमारे जंगल का राजा शेर उससे हमने आज्ञा नहीं ली जब उसको इस बात का पता चलेगा तो वह तुम्हें नुकसान पहुंचाएगा। सोनू बोला तुम सब क्यों डरते हो? मेरे साथ तो तुम सब मेरी ताकत हो। तुम क्यों डरते हो? डरने वाले तो कायर होते हैं। हमें डरना नहीं चाहिए। डर तो इंसान का सबसे बड़ा शत्रु होता है। डर से हम किसी भी काम को नहीं कर सकते। सोनू बोला अभी तो ऐसी कोई बात नहीं हुई जब कुछ ऐसा होगा तो कोई ना कोई उपाय निकल आएगा। तुमको तो बिल्कुल नहीं डरना चाहिए क्योंकि तुम सब को एकजुट हो। एकता में शक्ति होती है। जब तुम सब एक हो जाओगे तो वह अकेला तो यूं ही नष्ट हो जाएगा। तुम्हें डरना नहीं चाहिए। मैंने तो अपने घर में भी कुछ नहीं बताया है। मैं पांच वर्ष का था जब से यह शेर का बच्चा मेरे पास है। और आज मैं 18 वर्ष बाद उस बच्चे के साथ हूं। यह तो मुझे बहुत ही प्यारा लगता है। तुम डरो मत तुम्हें यह कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा। वह शेर तुम्हें नुकसान पहुंचाएगा तो पहले उसे मुझ से निपटना होगा। जंगल के सारे जानवर सोनू की बात सुनकर आश्वस्त हो गए। एक दिन किसी ने जाकर शेर को सूचना दी कि अरे तुम कैसे राजा हो। तुम्हारी राजा की गदी तो सारे के सारे जानवरों ने एक मामूली से इंसान के बच्चे को दे दी है। उन्होंने तुम्हारी पीठ में छुरा घोंपा है। तुमसे तुम्हारा राजपाट छीन लिया गया है। उस बच्चे ने तो आते ही सारे जंगल के जानवरों में ऐसा जादू कर दिया। वह तो सारे के सारे उस इंसान के बच्चे को गुरु जी कहते हैं और उस से शिक्षा ग्रहण करते हैं।
शेर काखून खौल उठा बोला तभी सारे के सारे जानवरों ने यहां आना ही छोड़ दिया है। उस इंसान के बच्चे को इसकी सजा जरूर मिलेगी। शेरनी को ले कर उस उद्यान में पहुंच गया। जहां पर सोनू सभी जानवरों को सफाई का महत्व समझा रहा था। वह चुपके से दूर खड़े होकर उसे पढ़ाते देख रहा था। वह सभी बच्चों को बता रहा था कि हमें अपने आसपास साफ सफाई रखनी चाहिए। पानी गंदा नहीं पीना चाहिए। हर रोज नहाना चाहिए। अगर तुम सब चिड़ियाघर में भी चले जाओ तुम सब जानवरों को वहां गंदा पानी पीने को दे दिया जाए तो तुम सभी जानवर हड़ताल कर सकते हो। तुम भी तो हम इंसानों की तरह ही तो हो अपने हक के लिए लड़ना सीखो उसे पढ़ाते देख कर दो थोड़ी देर के लिए शेर भी खुश हो गया। सचमुच में ही वह एक अच्छा शिक्षक है। परंतु थोड़ी ही देर में वह सोचनें लगा कहीं ना कहीं यह मुझसे तेज है। तभी तो यह सारे के सारे जानवर मुझ राजा की बात को छोड़कर इस इंसान का ही साथ देंगे।

दहाड़ते हुए शेर और शेरनी सोनू के पास आकर बोले अरे एक इंसान के प्राणी बच्चे। तुझे क्या शर्म नहीं आती जो तू इंसान जाति को छोड़कर हम जानवरों के साथ रह रहा है। वह बोला राजा जी प्रणाम मैं तो सोचता था कि एक राजा की सोच तो सकारात्मक होनी चाहिए। आप तो बदले की भावना से यहां आए हैं। बदले की भावना से तो एक इंसान दूसरे इंसान का खून भी करता है। तुम अपने जानवरों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाओगे क्योंकि इन से मित्रता करने की पहल मेरी थी। मैंने सोचा कि जानवरों से दोस्ती करके देखी जाए। मैंने अपने उम्र के पड़ाव में इस बात को महसूस किया कि जानवर और पक्षी इंसानों से कहीं ज्यादा समझदार होते हैं। जो अपने किए हुए उपकार का बदला पाने के लिए एक दूसरे के साथ नुकसान नहीं पहुंचाते। बल्कि वक्त पड़ने पर एक दूसरे की मदद करते हैं। मैंने आपके जानवरों का गुरु बन कर उनका मार्गदर्शन किया है। शेर बोला तुम चिकनी चुपड़ी बातें करके मुझे बहला नहीं सकते।

जानवरों ने अपने शरीर ढके हुए थे ताकि शेर उन्हें देखकर नुकसान ना पहुंचाएं शेर बोला अगर तुम्हारे पासछब्बीस जानवर है तो सबसे आखरी वाले जानवरों को आज मैं मार दूंगा क्योंकि आज तो मेरे सिर पर बदला लेने का जुनून सवार है या तो तुम यहां से अभी अपने घर को लौट जाओ या फिर इस आखरी जानवर को मेरे हवाले कर दो। सब के सब जानवर एक पंक्ति में खड़े थे। शेरनी ने आकर गिरना शुरू किया। आखिरी जानवर पर चादर ढकी हुई थी। वह बोली इस को मारकर मैं अपनी पिपासा को शांत कर लूंगी। सोनू बोला इसका इसको तो मैं कभी तुम्हें नहीं दूंगा। इसको क्या किसी भी जानवर को मैं तुम्हें मरने नहीं दूंगा। क्योंकि तुम इस को मारना चाहते हो तो पहले मुझे खाकर अपनी भूख को शांत करो। जैसे ही शेर ने उस आखिरी जानवर के ऊपर से चादर उठाई तो वह उसे मारकर खाने ही वाली थी तो उसे देखकर कि उसकी आंखों से खुशी के आंसू आ गए क्योंकि वहां शेर का बच्चा उसका खोया हुआ बेटा था। उसको देख शेरचिल्लाया चुन्नू चुन्नू आवाज सुनकर शेर का बच्चा खुशी के मारे अपने मातापिता से लिपट गया। उन दोनों को इस प्रकार प्यार करते देखकर सभी जानवर खुशी से तालियां बजाने लगे। जंगल के राजा ने कहा कि आज तुमने अपनी वफादारी का सबूत दे दिया है। जिस दिन यह बच्चा हमसे छोटा था मैं इस ओर ही देख रही थी परंतु इतने दिनों बाद अपने चुन्नू को देखकर खुशी महसूस कर रही हूं। तुम मेरे चुन्नू को हमें लौटा दो बेटा तो मैं समझूंगा कि तुम सचमुच में ही एक शिक्षक के साथ साथ दयालु भी हो। सोनू ने कहा कि ठीक है मैं कल तुम सब जनों को चिड़ियाघर में खुद छोड़कर आऊंगा। जानवरों ने अपने शिक्षण को खुशी-खुशी विदा किया। सोनू घर आया तो उसने अपने पिता को कहा कि मैंने जॉनी को चिड़ियाघर छोड़ दिया है क्योंकि उसकी असली जिंदगी तो अपने परिवार के साथ ही रहने में है। मेरे पास तो है एक कैद में ही रहता था। कहीं ना कहीं उस जॉनी को उसके परिवार से मिला कर मैं खुशी अनुभव कर रहा हूं। मैंने उसे उसके परिवार वालों से मिलाकर उसे फिर उसकी सही जगह दिखलाई है।

परिवर्तन

यह कहानी एक छोटे से परिवार की है यह कहानी दो भाइयों की है। दोनों परिवार साथ-साथ रहते थे। रमाकांत और रविकांत। रमाकांत की शादी भी होने जा रही थी

रविकांत उसके चाचा जी का बेटा था। दोनों परिवार साथ साथ ही रहते थे इसलिए घर में शादी की खूब चहल पहल थी रमाकांत ने लड़की को देखा हुआ था। रविकांत ने भी।  

 

दोनों शादियां बहुत धूमधाम से हो रही थी। रवि कांत, उसके चाचा जी का बेटा था। दोनों परिवार साथ साथ ही रहते थे। इसलिए घर में शादी की खूब चहल पहल थी। रमाकांत ने लड़की को देखा हुआ था। रविकांत ने भी दोनों। शादियां बहुत धूमधाम से हो रही थी सभी शादी के वातावरण में व्यस्त थे। सारे घर के सदस्य खूब खुशी-खुशी बरात के आने का इंतजार कर रहे थे। रमाकांत की पत्नी अमीर परिवार से थी। रविकांत की पत्नी मध्यम वर्गीय परिवार की थी। दोनों ने अपनी पत्नियों को सोच समझकर पसंद किया था।  घर वालों ने तो उनके लिए गांव की लड़कियां देख रखी थी। अपने बच्चों की पसंद के आगे झुकना ही पड़ा। रमाकांत के पिता ने कहा बेटा अमीर घर की लड़की से रिश्ता मत रखो। वह घर को तोड़ देगी। वह घर में जो हम सब आज तक इकट्ठे रह रहे हैं शायद वह आकर हमें अलग-अलग ना कर दे। रमाकांत बोले पापा ऐसा नहीं होगा। मैंने अपनी पत्नी का चुनाव करने में कोई गलती नहीं की है। वह अपने परिवार की एक  ही लड़की है। लाड में अवश्य पली है मगर उसके व्यवहार से मैं परिचित हूं। कोई भी ऐसा काम नहीं करेगी जो हमारे परिवार में  दरार डाल दे।  आप मेरा विश्वास करें।

 

रविकांत की शादी तो मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की से होने जा रही थी। उसके बारे में घर के किसी सदस्य ने कुछ भी नहीं कहा। उन्होंने रिश्ता मंजूर कर लिया। और उनके द्वार पर खुशियां दस्तक दे रही थी। बारात आ चुकी थी दोनों  दुल्हन सज धज कर बैठी थी। घर का वातावरण खुशनुमा था। शादी समाप्त हो चुकी थी। बहुएं अपने सास-ससुर से आशीर्वाद ले चुकी थी।

 

रमाकांत और रविकांत को आए हुए हफ्ता हुआ था। सास ससुर को अपनी बहूएं अच्छी लगी। रमाकांत की पत्नी  चारु चंचल स्वभाव की थी। उसने अपने व्यवहार के कारण सबके मन को मोहित कर दिया। उसके माता पिता ने उसे खूब सारे आभूषण देकर विदा किया था। रविकांत की बहू गंभीर चुपचाप  एक मध्यम वर्गीय परिवार से थी। सभी को देख रही थी। रविकांत की पत्नी अरु नें सोचा अच्छा मौका है। अच्छा परिवार है। अभी मैंभी सबके सामने अच्छा बनने की कोशिश करती हूं। मैं अपने गुणों से अपने पति के विश्वास को जीत लूंगी। उसकी सास उसे कहती बेटा जरा यह काम कर दो।। वह कहती मैं थोड़ी देर बाद करूंगी। वह काम को टाल जाती।। वह इसलिए कहती कि उसकी सास उसे किसी काम के लिए ना कहे। उसकी सास को पता लग गया था कि अरु भोली भाली लड़की नहीं है। वह भोला बनने का नाटक कर रही थी। उसनें अपनें बेटे को कहा अपनी    पत्नी को साथ लेकर जाओ। रमाकांत की पत्नी ने अपने व्यवहार के कारण ही नहीं बल्कि अपनी प्रतिभा के कारण सबके दिलों को जीत कर अपनी अमिट छाप उन पर छोड़ दी। सब मां बाप हैरान थे जिस बहू को हम कह रहे थे कि अमीर घर की लड़की हमारे घर में दरार डाल देगी वह तो हर काम को कर रही थी। जो काम उसने कभी किया भी नहीं था उसे भी करने के लिए कह रही थी।

रमाकांत ने अपने बेटे को कहा कि तुमने अपने चुनाव में कोई गलती नहीं की। तुम तो एक हीरे को अपने घर में लाए हो। वह अपने गुणों से हमारे घर को पवित्र कर देगी।अरु थोड़ी नादान है शायद हो सकता है वह भी हमारे घर की छवि को यूंही कायम रखेगी। धीरे-धीरे समय भी पता ही नहीं चला कब पंख लगा कर उड़ गया। वे दोनों सहेलियाँ बन चुकी थी। अरु अपनी सहेली चारु से भी चिडती थीक्योंकि हर दिन वह न्ए नए कपड़े पहनती थी। अरु को तो उसकेउसके मां-बाप ने ले दे कर तीन चार सूट ही दिए थे। वह हर बारअपने पति को कहती थी कि आप मुझे सूट नहीं बनवाते। वह हर महीने अपने पति से सूट ले लेती। तरह-तरह के सेंडल और ना जाने क्या-क्या। घर को कुछ भी नहीं भिजवानें  देती थी। धीरे-धीरे उसके माता-पिता की हालत बहुत ही खस्ता हो गई। उनको सारा माजरा समझ में आ चुका था। उनका बेटा अपनी पत्नी के प्यार के चक्कर में पड़ चुका है। इसी कारण रविकांत की मां बीमार रहने लगी। रवि को मालूम हो गया था कि उसने अपनी पत्नी के चुनाव में गलती कर दी। वहचुप चाप  चुप्पी साधे कुछ नहीं कहता था। अपने मां-बाप के लिए  उसे दुख होता था।

 

रमाकांत की पत्नी ने अपनी सूझबूझ से काम लेना शुरू कर दिया था। वह तो एक अमीर परिवार में पली थी।  उसके पति ने उसे शादी वाले दिन ही समझा दिया था कि अब हम हर बात को एक दूसरे को बताया करेंगे। हर सुख दुख में हमने जीवनसाथी होने का संकल्प लिया है। आज से हम दोनों खुशियां गम एक साथ बांटेंगें। चारु को रमाकांत ने कहा कि आज के बाद तुम अपने पास माता-पिता से कुछ नहीं मांगेगी। जो कुछ मैं कमा कर लाऊंगा उसी में गुजारा करना आना चाहिए। वह मान गई। धीरे-धीरे उसने अपने खर्चों को कम करना शुरू कर दिया। शुरू शुरू में तो उसे तंगी आई मगर धीरे-धीरे वह भी अभ्यस्त हो गई। उसने अपनी चतुराई से काफी  रुपये इकट्ठे कर लिए थे। घर में भी भिजवा देती थी। और हरदम खुश नजर आती थी।

अरु उस से खफा खफा रहने लगी थी।  उससे जितनी भी नफरत करने की कोशिश करती चारु उससे उतने ही प्यार भरी नजरों से देखती। एक दिन रविकांत को ऑफिस के काम से बाहर जाना पड़ा। वह तीन-चार दिन तक  घर में अकेली ही थी। उसकी सहेली चारु नें कहा बहन तुम्हें जिस वस्तु की आवश्यकता होगी मांग लेना। उसे तो काम करने की आदत भी नहीं थी। उसने उस परिवार में आते ही काम करना छोड़ दिया था। वह सोचने लगी कि सारी उम्र भर अपने  मायके में काम किया है। अब तो मेरे राज करने के दिन है। इसी धुन में वह आलसी बन गई थी। वह कहने ही वाली  थी  किउसके पास रुपए भी नहीं बचे थे। उसकी सहेली ने कहा देखो बहन आज तुम्हें एक बात बताती हूं। हम दोनों का परिवार एक है। हम दोनों सहेलियां हैं। हम आपस में सहेलियाँ ही नंही एक दूसरे की बहनें भी बन गई हैं। मैं तुम्हें एक सलाह देती हूं। अपने घर के काम स्वयं करो। बाहर से कभी-कभी ही खाने के लिए मंगवाना चाहिए। अगर कोई अच्छी सी चीज खाने का मन कर रहा है तो घर में भी बनाई जा सकती है। उस सेे थोड़ा खर्चा भी होगा और तुम्हारे रुपए भी बच जाएंगे।

 

अपनी सहेली की बात उसे अच्छी लगी। चारू बोली जब तुम अपने हाथों से अपने पति को खिलाओगी  तो देखना तुम्हारे पति तुमसे बहुत ही खुश होंगें। धीरे-धीरे वह खुद खाना बनाने लग गई थी। रविकांत घर लौट आया था। रविकांत की पत्नी बोली चलो खाना खातेहैं।वह बोला  कौन से होटल चलना है? वह बोली होटल में नहीं। अपने हाथों से बनाया हुआ खाना मैं आपको खिलाऊंगी। वह अपनी पत्नी की ओर हैरत भरी नजरों से देखते हुए बोला मजाक कर रही होक्या? बोली नहीं। उसका पति बहुत खुश हुआ। आज उसे खाना इतना स्वादिष्ट लगा। वह शाम को अपनी पत्नी के लिए एक  गजरा लेकर आया। अरु नें तो सपने में भी ऐसी कल्पना नहीं की थी कि उसका पति सचमुच में ही उसे इतना प्यार करता है।

 

उसके पति ने कहा और आज ही मां का खत आया है। उन्होंने मुझे  घर बुलाया है और कहा कि तुम ही आना। वह बोली नहीं आपको आजकल बड़ा काम है। मैं गांव में चली जाती हूं। अपनी सास की सेवा करना मेरा फर्ज है। मैं कहीं ना कहीं गलत थी। मैंने अपने व्यवहार में परिवर्तन कर लिया है। मैं ही उनके नज़रों में गिरी हूं। मुझे एक मौका दे दीजिए ताकि मैं उनकी नजरों में अच्छी बन सकूं। मैं  कोई भी ऐसा काम नहीं करूंगी जिससे हमारे परिवार में क्लेश बने। मैंआप को आपके परिवार वालों से दूर करना चाहती थी। मेरी बहन चारु ने मुझसे में बदलाव लाकर मेरे नजरिए को बदल दिया है। मैं  अपनें घर को स्वर्ग बना कर ही छोडूंगी। मैं संकल्प लेती हूं जितना मैंने इस घर का रुपया गंवाया है उससे ज्यादा कहीं कमाऊंगी और घर को स्वर्ग बना कर ही दम लूंगी। अरु ने कहा मेरी दोस्त तुमने मुझे एक अच्छी सोच देकर मेरे व्यवहार को ही नहीं बदला मगर मेरे भाग्य को भी संवार दिया है। मैं अपने पति की नजरों में तो गिरी ही थी परंतु अब मैं अपने प्यार से सबके मन को जीत लूंगी। हम दोनों शक्तियां मिलकर अपने घर को स्वर्ग बनाएंगे। मैं आपके चरणों का स्पर्श करती हूं। अरु ने अपनी सहेली  चारुके पैर छूकर आशीर्वाद लिया और कहा मैं गांव जा रही हूं। मेरे जाने के बाद मेरे पति का ख्याल रखना। अरु अपने गांव पहुंच चुकी थी।  उसकी सास बहुत ही बीमार थी। उसको देखने वाला वहां कोई नहीं था। ससुर किसी काम से बाहर गए हुए थे। घर में कोई गाड़ी वगैरह नहीं थी जिससे उसकी सास को अस्पताल पहुंचाया जाता। अरु नें आव देखा ना ताव अपनी सास को अपने कंधे पर उठाया और 5 किलोमीटर तक कंधे पर उठाकर अस्पताल ले आई। उसके पास इतने रुपए भी नहीं थे जल्दबाजी में वह अपने पति से रुपए ले आना भूल गई थी। उसने देखा पास में ही एक दुकान थी। उसने अपने सोने की चेन उस दुकानदार को देते हुए कहा बाबा जल्दी से मुझे  इस चेन के बदले में रुपए दे दो मुझे अपनी सास को  अस्पताल लेकर जाना है। दुकानदार उसकी हिम्मत देखकर बहुत ही प्रभावित हुआ बोला बेटा बीमार व्यक्तियों की मदद करना तो हमारा फर्ज होता है। मैं अपने बेटे को गाड़ी लेकर भिजवाता हूं। यहां से एक किलोमीटर की दूरी पर एक अस्पताल है। वहां पर अपनी सास को दिखाओ। उसने उस दुकानदार के पैरों को पकड़कर कहा बाबा आपने ना जाने आज मुझ पर इतना एहसान किया है। उसने अनु की चेन उसको वापस कर दी। और कहा बेटा ऐसी बहू सबको दे। अस्पताल में रविकांत की मां बच चुकी थी। सब उसकी बहू के साहस की प्रशंसा कर रहे थे। सास को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि क्या वह वही मेरी बहू है जो पहले थी। वह खुशी के मारे झूम उठी।

घर में सभी लोग दीवाली की खुशियों में घर-घर दिवाली मनाने के लिए इकट्ठा हुए थे। घर में चारों और खुशी का माहौल था। उनके घरों में आने जाने वाले सब लोग तारीफ कर रहे थे। अरु  नेंअपनी सास के पास रुपए थमाए और कहा मैंने भी  इस बार अपने रुपए इकट्ठे किए हैं। जो भी थे आप रख लो। आज सारा परिवार एक हो गया था। रमाकांत और रविकांत के पिता ने  अपनें दोनों बेटों को कहा सचमुच में ही तुम दोनों के चुनाव में कोई खराबी नहीं थी। हमारी सोच ही हमें कहीं का नहीं रहने देती।  

उजाले की किरण

गौरव और गरिमा के परिवार में उनका बेटा अतुल। वे एक छोटे से मकान में रहते थे। उन्होंने अपने मकान की निचली मंजिल किराए पर दी थी। उनके मकान में जिन्होंने मकान किराए पर लिया था वह भी गौरव के साथ ही ऑफिस में काम करता था। गौरव एक बैंक में मैनेजर के पद पर नियुक्त था। उनका किराएदार एक क्लर्क के पद पर आसींन था उनके ऑफिस साथ साथ ही थे। उनके भी एक लड़का था। उसका नाम अखिल। अखिल और अतुल दोनों कम उम्र के थे। दोनों एक ही स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। वह दोनों दोस्त इकट्ठे स्कूल जाते। उनके माता-पिता की भी आपस में खूब बनती थी। छुट्टी वाले दिन सभी मिल जुलकर सैर करने का लुफ्त उठाते थे। अतुल को अपने मम्मी पापा से इस बात को लेकर चिढ थी कि वह सदा अपने बेटे को कहते थे पढ़ाई कर पढ़ाई कर। तुम्हारे अखिल से ज्यादा अंक आने चाहिए। इस ज्यादा अंक लेने के चक्कर में बेचारा कुछ नहीं कर पाता था। वह बहुत पढ़ाई करने की कोशिश करता अपने दोस्त जितने अंक नहीं ला पाता। उसे अपने माता-पिता दुश्मन नजर आने लगे। जब भी उसके पापा मम्मी कहते पढ़ाई करो उनके सामने किताब याद करने के लिए पकड़ लेता मगर अच्छे ढंग से पढ़ नहीं पाता।

 

अर्धवार्षिक परीक्षा में भी अखिल के 20 अंक ज्यादा आए थे। उनके माता-पिता ने कहा वह भी तो तुम्हारी तरह ही बच्चा है। उसके कैसे ज्यादा अंक आए? तुम्हारे क्यों नहीं? अतुल का मन हुआ कि अभी उठकर कहीं चला जाए मगर अंदर ही अंदर घुटन महसूस कर रहा था। तुम्हारेअंक ज्यादा नहीं आए। हम अपने रिश्तेदारों को क्या मुंह दिखाएंगे?अतुल अपने दोस्त से भी खफा खफा रहने लगा। उसका दोस्त आखिर वह तो उसे बहुत ही ज्यादा प्यार करता था। वह उसे कहता रहा क्या कारण है? मुझे बताओ कुछ दिनों से तुम बहुत परेशान लगते हो। अखिल बोला ठीक है अगर तुम मुझे नहीं बताओगे तो आज के बाद मैं तुम्हारे  घर कभी-भी खेलने नहीं आऊंगा। तुमसे कभी बात नहीं करूंगा। अतुल रोने लग पड़ा आखिर अपने दोस्त अतुल को रोता देखकर वह भी रो पड़ा बोला मुझे बताओ मैं तुम्हारा सच्चा दोस्त हूं। अतुल बोला मैं तुम्हें बताता हूं मेरे मम्मी पापा मुझे हर वक्त पढ़ाई करने के लिए कहते रहते हैं। वह मेरी तुलना तुमसे करते हैं। वह कहते हैं देखो अखिल के कितने अच्छे अंक आते हैं? तुम्हारे क्यों नहीं।? तुम्हारी तरह वह भी तो बच्चा है। तुम मुझसे ज्यादा नंबर लाया करो। मैं तो उतना ही कर पाऊंगा जितना मैं कर सकता हूं। उसका दोस्त बोला मैं तुम्हारी समस्या सुलझा सकता हूं। यह तुम मुझ पर छोड़ दो। अब तो तुम मेरे साथ खेलोगे। अतुल खुश हो गया।

 

अतुल को तो  मानों खुशी का खजाना मिल गया। उसने अपना दर्द कुछ हल्का किया। अखिल बोला मेरे मम्मी पापा तो मुझे कहते हैं कि जितनी तूने पढ़ाई करनी है उतनी ही पढ़ो। पढ़ाई करो पढ़ाई करने के साथ-साथ  तुम्हारे खेलने के दिन है। यह बचपन का समय कभी लौट कर नहीं आता। हम तुम पर पढ़ाई का दबाव नहीं डालेंगे। अखिल बिल्कुल निर्भय होकर पढ़ाई करता था। उसके माता पिता कभी परवाह भी नहीं करते थे कि उनके बेटे को कितने अंक आए हैं? एक बार उनके बेटे के गणित में सातअंक आए थे अखिल के पिता ने अखिल को बुलाया और हंस पड़े मेरे शेर बच्चे गणित में सातअंक। अचानक बोले डरो मत। जब  मैं तुम्हारी उम्र का था मेरे तो जीरो अंक आते थे। धीरे-धीरे मेहनत करने से सब कुछ हासिल हो जाता है। डरो मत अखिल की मम्मी ने कहा आज खीर बनाओ। अखिल नें सात अंक आने की वजह से अपनी मूल्यांकन पुस्तिका छिपा दी थी। उसके मम्मी पापा की नजर न पड़े। उसके मम्मी पापा ने तो उसके बस्ते में से उसकी मुल्यांकन पुस्तिका को देख कर कहा  बेटा तुम्हें  डरने  की कोई जरूरत नहीं। माता-पिता से कुछ भी छुपाने की जरूरत नहीं होती है। फेल भी तो हो जाते हैं। चाहे फेल हो या पास कोई फर्क नहीं पड़ता। मेहनत करते चलो डरो मत। यह वाक्य उसके पापा कहते अखिल बोला। अतुल, आकाश मेरे पापा ममी में भी  ये समझ होती।

परीक्षा में अखिल नें  जानबूझकर दो प्रश्न आते हुए भी छोड़ दिए थे।ताकि उसके दोस्त के उससे ज्यादा अंक आए। जब अतुल को पता चला कि अखिल ने जानबूझकर दो प्रश्न हल नहीं किए तो वह अपने दोस्त को गले लगाता हुआ बोला ऐसा दोस्त सबको दे। इस तरह दिन बीतते चले गए।

 

अखिल और अतुल भी दसवीं में पहुंच गए अखिल के पिता का स्थानांतरण दूसरे ऑफिस में हो चुका था। उन्होंने वहां से मकान भी बदल लिया। वह दूसरे शहर में चले गए। आज अतुल बहुत ही खुश था। क्योंकि उसकी दसवीं की परीक्षा का वार्षिक परिणाम आने वाला था। उसने खूब मेहनत की थी। अखबार सामनें मेज पर पड़ा था।  उसका कलेजा धक धक कर रहा था। मेज के सामनें कोई कोई नहीं था। उसने अपना रोल नंबर देखा वह 80% अंको में पास हो चुका था। दूसरे पेज पर उसके दोस्त की फोटो छपी थी। वह सारे जिले में प्रथम स्थान लाया था। उसके 98% अंक आए थे। उसे अपने दोस्त के लिए खुशी भी हुई। उसके मम्मी पापा कमरे में आए और बोले बेटा। तुम्हारा परिणाम निकल गया है। तुम्हारे 80% अंक  है। तुम्हारे दोस्त अखिल ने तो 98% अंक लेकर सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। वह फिर तुमसे बाजी मार गया। तुम कभी भी किसी विषय को गंभीरता से नहीं लेते हो। हम तुम्हें डॉक्टर बनाना चाहते हैं। वह बोला पापा मैं डॉक्टर नहीं बनना चाहता। मैं तो  पायलट औफिसर बनना चाहता हूं। उसके पिता नाराज होते हुए बोले तुम्हें डॉक्टरी की पढ़ाई करनी पड़ेगी। भले ही तुम एक बार उसमे रह जाओ। हम तो तुम्हें डॉक्टर बनते हुए ही देखना चाहते हैं। मेरे सारे ऑफिस में मेरी सभी लोग इतनी प्रशंसा करते हैं। तुम्हारी क्या हमारी नाक कटाने का इरादा है? अतुल की मम्मी बोली मेरी सहेलियों में मेरा क्या रुतबा रह जाएगा। डाक्टरी तो तुम को  करनी ही पड़ेगी।

 

अतुल का मन हुआ वहां वहां से कहीं दूर भाग जायेगा। अंदर ही अंदर घुटता जा रहा था। शाम को खाने के लिए भी नहीं आया। उसके मम्मी पापा ने सोचा कि अपने दोस्तों से मिलने गया होगा। परंतु रात के 11:00 बज चुके थे अतुल घर नहीं आया। उसके मम्मी पापा भी परेशान हो रहे थे। वह  निराश होकर एक सुनसान सड़क पर पहुंच गया। वह आगे ही आगे चला जा रहा था। उसे भी कुछ भी नहीं मालूम था वह कहां जा रहा है। काफी दूर निकल आया तो उसे वहां पर एक नदी दिखाई दी। उसने सोचा क्यों ना मैं नदी में छलांग लगा लूं।? मैं डाक्टरी कभी नहीं कर सकता। मैं पढ़ाई नहीं करूंगा। अगर कुदनें पर भी नहीं    मरा तो क्या होगा। उसने देखा सामने उसी तरह के चेहरे वाला बच्चा गिरा पड़ा था। उसने उसकी  नब्ज टटोली वह शायद मर चुका था। उसका चेहरा बुरी तरह झुलस गया था। पहचान में नहीं आ रहा था। उसने जल्दी से अपने कपड़े उस बच्चे को पहना दिए और उसके कपड़े स्वयं पहन लिए और एक पर्ची पर लिख दिया मम्मी पापा मैं सदा के लिए जा रहा हूं। मुझसे डॉक्टरी की पढ़ाई नहीं होती। मुझे तो पायलट बनना था। मेरा सपना अधूरा ही रह गया। मेरे मरने के उपरांत मेरे मम्मी पापा को मत पकड़ना। मैंने मरने का फैसला खुद लिया है। मैं एक योग्य बेटा नहीं बन पाया। अलविदा अतुल।

 

अतुल के पापा मम्मी पापा अपने बच्चे को ढूंढते-ढूंढते थक गए।  नदी के पास से  एक बच्चे की लाश सुबह के समय  पुलिस वालों ने उसके पापा को दी। कपड़ों से तो वह लग रहा था कि  वह उनका ही बेटा है। क्योंकि कपड़े तो अतुल के ही थे। और एक सोसाईड नोट वह लिखाई भी अतुल की थी। अतुल के माता-पिता रोते-रोते घर वापिस आ गए। सारे जगह खबर फैल गई इतनी होशियार बच्चे ने आत्महत्या क्यों की? अतुल के माता-पिता अंदर ही अंदर घुट रहे थे। उनको पता था कि उन्होंने जबरदस्ती अपनी इच्छा अपने बच्चे पर थोपने का प्रयत्न किया था। उनके हाथ में पछताने के सिवा कुछ नहीं लगा था। उनका बेटा तो उनके हाथ से निकल गया था। अतुल ने नदी में छलांग लगा दी थी।

 

अतुल बहता बहता एक ऐसी जगह पहुंच गया था जहां पर उसे कोई जानता तक नहीं था। वहां पर एक दंपत्ति परिवार नैनीताल घूमने के लिए आए थे। उन्होंने बहते हुए बच्चे को देखा। उन्होंने उस बच्चे को बचा लिया। उनका कोई बच्चा नहीं था। उन्होंने उस बच्चे को बचा लिया। वे दंपत्ति घूमने के लिए आए थे। उन्होंने उस बच्चे को अपने साथ ले जाने का निश्चय कर लिया। बच्चा होश में आया तो उन्होंने उससे पूछा तुम कौन हो? उसने कुछ नहीं कहा उस दंपति परिवार ने सोचा उसे कुछ भी याद नहीं है। उन्होंने उसे कहा बेटा तुम्हें हम अपना बेटा समझ कर पाल लेंगे। तुम हमें बताओ कहां के हो? उसने अपने बारे में कुछ नहीं बताया। अतुल नें उस परिवार की चुपके से बातें सुन ली थी। वह आंटी कह रही थी हमें तो लगा हमारा बेटा जिंदा होकर वापस आ गया है। हम इसे इतना प्यार देंगे जितना इसनें पढ़ाई करनी होगी हम उसे पढ़ाएंगे। उसे किसी चीज की  कमी होने नहीं देंगे। उस परिवार की बातें सुनकर अतुल ने सोचा अच्छा मौका है मैं इन्हें अपने बारे में कुछ नहीं बताऊंगा। मैं खूब पढ़ाई करूंगा। वहीं पर उनका बेटा होकर रहने लगा। धीरे-धीरे वह उनके परिवार में घुल मिल गया। आंटी को मां और अंकलको पापा कहनें लगा उसे कभी भी अपने मम्मी पापा की याद नहीं आई। कभी कभी अकेले में उन्हें याद कर लिया करता था। उन्होंने उसे पढ़ाई के लिए कभी भी तंग नहीं किया। उसने कहा पापा मैं पायलट बनना चाहता हूं। वह बोले बेटा चिंता की कोई बात नहीं जो तुम बनना चाहते हो वह बनो। तुमसे कोई जबरदस्ती नहीं करेगा। उसके पापा ने उसका नाम अमर रख दिया था। उसका नाम था अतुल। उसका कार्ड उन्होंने सम्भाल कर रख दिया था उसमें उसकी फोटो थी। मगर उसका नाम मिट गया था। नाम का पहला अक्षर ही फोटो में साफ दिखाई दे रहा था बाकि अक्षर मिट गए थे। उन्होंने अ से ही उसका नाम अमर रख दिया। अमर बड़ा हो चुका था। वह पायलट औफिसर चुका था।

 

एक दिन उसके पिता ने कहा बेटा आज मैं अपने दोस्त की बेटी आरती के साथ तुम्हारी शादी की बात पक्की कर रहा हूंह अमर ने कहा पापा पहले मुझे लड़की तो दिखाओ। उसके पिता ने कहा आज उसे हम अपने घर खाने पर बुलाएंगे। आरती 5:00 बजे वादे के मुताबिक अमर के घर पहुंच गई।। पहली ही मुलाकात में अमर और आरती दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे। आरती ने कहा मैं एक दिन आपको अपने भाई और माता-पिता से अवश्य मिलवाऊंगी। अमर नें कहा तुम्हारे भाई का क्या नाम है।? आरती ने कहा मेरे भाई का नाम अखिल है। आरती ने कहा अच्छा अलविदा कल मिलेंगे। आरती तो चली गई उसे अपना गुजरा जमाना याद आ गया। उसका दोस्त आखिर वह भी तो एक बड़ा डॉक्टर बन चुका होगा।

 

उसके दोस्त का नाम भी तो अखिल था। उसकी आंखों के सामने सारा माजरा घूमने लगा किस तरह उसने इतना भयानक कदम उठाया था। वह मरा तो नहीं था परंतु अपने माता-पिता से बिछड़ गया था। वह एक ऐसे परिवार में उनका बेटा बनकर रह रहाथा जिसे वह जानता तक नहीं था। उस परिवार ने उसे इतना प्यार दिया वह अपने असली मां बाप को भूल ही गया। आज  उसनेंअपने सपने को साकार कर दिखाया था। दूसरे दिन आरती उसे  बाजार में मिली। आरती ने कहा तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो। शादी से पहले मैं तुम्हें एक सच्चाई से अवगत कराना चाहता हूं। तुम मुझे स्वीकार करो या ना करो। परंतु अगर मैंने तुम्हें सच नहीं बताया तो मेरी अंन्तर्आत्मा मुझे कचोटती रहेगी।

 

वह बोला तुम्हारे माता पिता हमारी शादी को मान गए हैं। वह बोली परंतु  पहले मेरे माता-पिता ने शादी करने से मना कर दिया क्योंकि तुम पंडित परिवार के नहीं हो। परंतु बाद में मेरी इच्छा के सामने उन्होंने घुटने टेक दिए। वे तुमसे मेरी शादी करने के लिए मान गए। वह बोला मैं तुम्हें बताना चाहता हूं कि मैं अग्रवाल परिवार का बेटा नहीं हूं। मैं तो नदी में बहता हुआ उन्हें मिला था। मैंने आत्महत्या करने का प्रत्यन किया था। मेरे माता-पिता मुझे हरदम पढ़ाई करो पढ़ाई करो  करनें को कहते रहते थे। तुम्हारे इतने  अंक कम क्यों आए? तुम्हारे दोस्त के तुमसे ज्यादा अंक कैसे। हर वक्त टोकाटाकी। अखिल मेरा दोस्त था  वह डॉक्टर बनना चाहता था। मैं पायलट बनना चाहता था। मेरा दोस्त हमारे ही घर पर किराए के मकान में रहता था। उसके मम्मी पापा इतने अच्छे थे कि उन्होंने अपने बेटे पर पढ़ाई का कभी जबरदस्ती दखल नहीं दिया। एक दिन मेरे दोस्त के माता-पिता का तबादला दूसरे शहर को हो गया। वह दूसरे शहर में चला ग्ए।हम अपने तरीके से जिंदगी जी रहे थे।

 

एक दिन दसवीं की परीक्षा परिणाम निकला। मैं जैसे ही अखबार लेकर अपने पापा के पास गया तो मैंने सोचा वह मुझे गले से लगा कर कहेंगे तेरे 80% अंक अच्छे आए हैं। उन्होंने एक बार फिर मुझ पर प्रहार किया। दूसरे पेज पर देखो तुम्हारे दोस्त ने सारे जिले में टॉप किया है। मैं अंदर ही अंदर घुटता जा रहा था। कहां तो तसल्ली देने के बजाय वह मुझे कह रहे थे तुम किसी भी विषय को गंभीरता से नहीं लेते हो। परिवार के लोगों के सामने और मेरे ऑफिस में सहेलियों के सामने हमारी क्या इज्जत रह जाएगी। हमारे बेटे के इतने  कम अंक पाए हैं। इतना ही नहीं उन्होंने मुझे कहा तुम्हें डॉक्टरी की पढ़ाई करनी पड़ेगी। मुझे डॉक्टर की पढ़ाई में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी। मैंने कहा मैं डॉक्टर नहीं करूंगा। मेरे मम्मी पापा आकर बोले कोई बात नहीं। अगर तुम एक बार डॉक्टर की पढ़ाई में नहीं निकलोगे तो भी कोई बात नहीं दूसरी बार कोशिश करना।

 

मेरा मन डॉक्टरी की पढ़ाई में जरा भी नहीं था मैंने आव देखा ना ताव वहां से चलकर एक सुनसान सड़क पर आ गया। और पहाड़ी पर से कूदने ही वाला था नीचे नदी बहती दिखाई दी सभी मेरे पैरों के पास से कुछ टकराया वहां पर एक बच्चा मेरी ही तरह का गिरा हुआ था उसका मुंह तो जंगली जानवरों ने खा दिया था मैंने चुपचाप अपने कपड़े उस बच्चे को पहना दिएऔर उसके कपड़े पहनकर पानी में छलांग लगा दी। एक पर्ची उसकी जेब में डाल दी मम्मी पापा अलविदा मैं आपको छोड़कर सदा के लिए जा रहा हूं। आप मुझे डॉक्टर करवाना चाहते थे। मेरा डॉक्टर का पढ़ाई में जरा भी मन नहीं लगता था मैं आपका अच्छा बेटा साबित नहीं हो सका मेरे मरने के बाद मेरे मम्मी पापा को सजा मत देना। मेरा मरने का फैसला मेरा खुद का था क्योंकि मैं खुद आत्महत्या कर रहा हूं। इसके लिए मेरे मम्मी पापा का कोई कसूर नहीं है।

आरती उसकी दर्दभरी कथा सुनकर कहने लगी तुम्हारी कहानी तो बहुत ही दर्दनाक है। तुम्हारे फैसले ने तो मुझे भी रुला दिया। वह बोला अपने मम्मी पापा को कर ले कर आना  आरती नें सारी कहानी अपने मम्मी पापा को सुना दी। उसके मम्मी पापा भी उस बच्चे की कहानी सुनकर चौक ग्ए। अखिल सोचने लगा कहीं वह मेरा दोस्त अतुल तो नहीं है। उसने अपनी बहन को बताया मेरा भी एक दोस्त था। उसका घर नैनीताल में था। आरती कहने लगी कि अतुल का घर भी नैनीताल में था। जैसे ही  अतुल से मिलने आया वह अतुल को देखकर चौका। वह तो उसका बिछड़ा दोस्त था।

 

अखिल डॉक्टर बन चुका था। अतुल भी पायलट बन चुका था। दोनों दोस्त एक दूसरे के गले मिले। दोनों की आंखों से अश्रुधारा बह निकली। अतुल ने अपनी सारी कहानी आरती के माता पिता को सुना दी। अतुल के माता-पिता ने कहा बेटा तुम्हारे ही घर पर तो हम रहते थे। तुम्हारे माता-पिता तो अच्छे थे। उन्होंने तुम पर यह दबाब क्यों डाला? अतुल ने अपने माता-पिता से माफी मांग डाली और कहा कि मैंने आपकी बातें सुन ली थी। आपके कोई बेटा नहीं था। मैंने सोचा मेरे पापा तो मुझे डॉक्टर पढ़ने के लिए मजबूर किया करते थे। मैं तो पायलट बनना चाहता था। आप ने मुझे पायलट बनने का सुनहरा अवसर प्रदान किया आप ही मेरे सच्चे मम्मी पापा  हो।  मैंने आपको बता कर नहीं किया था। कहीं ना कहीं मेरे मम्मी पापा ने मेरे साथ अच्छा नहीं किया। इसलिए मैं उनके पास वापस नहीं जाना चाहता था।

 

अग्रवाल परिवार ने उसे इतना प्यार दिया वह उसको अपने परिवार का सदस्य मानने लगे थे जब अखिल के पापा ने कहा कि हम इस बच्चे के माता-पिता को जानते हैं इसके पिता बैंक में काम करते थे। मैं उन्हें जानता हूं। यह नैनीताल के है। केशव अग्रवाल रोते बोले बेटा हमें छोड़कर मत जाना। अतुल बोलामैं आपको छोड़कर नहीं जाऊंगा। आपने मेरे जीवन में उजाले की किरण जलाकर मुझे उज्जवल भविष्य बनाने का मौका दिया। मैं अपने मम्मी पापा के पास जाऊंगा तो अवश्य पर उन्हें एहसास करवा दूंगा कि मैं जो बनना चाहता था वह मैं बन ही गया।

 

अग्रवाल परिवार ने उसकी शादी आरती से कर दी। आरती के पिता ने अपने दोस्त को शादी का कार्ड भेजा। अतुल के माता-पिता आरती की शादी में  आए क्योंकि वह अखिल से भी मिलना चाहते थे। उन्हें अपने बेटे की याद आ रही थी। आरती के घर में शादी की चहल-पहल थी। अचानक गौरव और गरिमा भी उनके घर पहुंच चुके थे। आरती के पिता अपनी बेटी को विदा कर रहे थे तो उनकी नजर दूल्हे पर पड़ी उनको उसको देखकर अपना बेटा याद आ गया। आंखें छलक आई वे बोले बेटा क्या मैं तुम्हें अतुल बुला सकता हूं? तुमसे हमारे बेटे की शक्ल काफी मिलती है। वह चौका बोला पापा-मम्मी  मैं ही आपका अतुल। वह उनके कंधे लगकर रोया बोला मैं आपका ही बेटा अतुल हूं। मैं मरने जा ही रहा था कि मैं अपने सामने एक बच्चे को देखा जो मर चुका था। मैंने उसके कपड़े पहने और अपने कपड़े उसे पहना दिए आपको मेरा सुसाइड नोट मिला होगा क्योंकि आप मुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे। मैं पायलट बनना चाहता था इसलिए मैंने मरने का फैसला कर लिया था मैंने पहाड़ी पर से छलांग लगा दी थी मैं तो बच गया मुझे अग्रवाल परिवार ने अपना बेटा बना कर पाला मैंने जानते हुए भी अनजान बन कर उन्हें कुछ नहीं बताया। मैं पायलट बन चुका हूं उसके मम्मी पापा अपने सामने अपने बेटे को पाकर खुश हो गए वह बोले बेटा हमें माफ कर दो हमारी सोच बहुत ही गलत थी। हमं अपनी सोच तुम पर थोपना चाहते थे। बेटा हमें अपने किए की सजा मिल चुकी है। बेटा घर चलो। वह बोला मैं आप से मिलनें आया करुंगा।  अपनी बहु को आशीर्वाद दो। उसनें अपनें ममी पापा को माफ कर दिया।

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धरती की मूल्यवान धरोहर(2)

नंदलाल अपना परीक्षा परिणाम जानने के लिए स्कूल गया था। उसका बारहवीं कक्षा का परिणाम आने वाला था। वह मन ही मन सोच रहा था कि हे भगवान इस बार तो मुझे पास कर ही दो। यह पढ़ाई वढ़ाई मेरे बस की बात नहीं। बस इंटरव्यू देकर कहीं नौकरी कर लूंगा। उसको पढ़ने का शौक नहीं था वह अपना परिणाम जानने के लिए बड़ा आतुर था। इंटरनेट पर सूचना आ चुकी थी। उसके अध्यापकों ने कहा हमें अपना रोल नंबर दे दीजिए। हम तुम सब बच्चों का परिणाम बता देंगे।

थोड़ी देर बाद अध्यापक बच्चों के पास आए और सभी को उनके अंक बताएं। नंदलाल पास हो गया था। खुशी के मारे उसके पैर जमीन पर नहीं पड रहे थे। शाम को उसके पिता ने कहा बेटा पढ़ाई वढाई तुम्हारे बस की बात नहीं यह तो शुक्र करो पास हो गए। फॉरेस्ट ऑफिसर का पद रिक्त है तुम्हें इंटरव्यू के लिए बुलाएंगे। अगर तुम सिलेक्ट हो जाओगे तो ठीक है नंदलाल सोचनेंलगा मुझसे क्या क्या पूछेंगे। इंटरव्यू के लिए नंदलाल को बुलाया गया वह जरा भी नहीं डरा। उसने सभी प्रश्नों के उत्तर दिए। बिना सोचे समझे लिखित परीक्षा में उसने अपने दोस्त श्याम की नकल कर दी। और फॉरेस्ट गार्ड के लिए उसको लैटर आ गया। नौमहीने की ट्रेनिंग के बाद उसको चुन लिया गया। अब उसे फारेस्ट के तौर पर पहले जंगलात विभाग में गार्ड के पद पर तैनात किया गया। उसने अपने पद को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया। जंगल में कई बार लोग पेड़ों को काटने आते तो उनको कभी सजा नहीं देता था। लोग पेड़ों को बड़ी बेरहमी से काट काट देते थे। उन्हें बाहर बेच देते थे। उस काम में उसने उन सभी लोगों को कहा तुम पेड़ों को काट लो जब तक मेरी ड्यूटी इस क्षेत्र में है। तब तक तुम भरपूर आनंद उठाओ तुम इन को बाजार में बेचोगे तो उसका आधा हिस्सा मुझे भी मिलना चाहिए। लोग उसकी बात मान जाते। उसे जरा सी भी लाज नहीं आती। बस सारा दिन जंगल में ड्यूटी तो नाम मात्र को करता। वहां पर पेड़ के नीचे काफी काफी देर तक सोता रहता। उनके बॉस ने उसे क्यारियों पौधों की देखभाल का दायित्व भी सौंपा था। लोग चुपचाप फूल तोड़ कर ले जाते बागों में फल फूल सब चुरा कर ले जाते वह चुपचाप सोया रहता। उसकी पत्नी उतनी ही नेक थी। उसका स्वभाव अपने पति के बिल्कुल विपरीत था। उसने अपने घर में इतना बड़ा बगीचा लगा रखा था। उसकी देखभाल करती थी। बगीचे में तरह तरह की सब्जियां लगाई थी। उसके लिए उसनें इतने बड़े बड़े दो खेत लिए हुए थे। जिसमें दिन रात मेहनत करके सब्जियों उगाती थी। उनके सब्जियों को बाजार में बेचती। उसे काफी रुपए मिलते।

एक दिन की बात है कि वह जंगल में एक वृक्ष के नीचे सोया हुआ था। उसको सपना दिखाई दिया। उस सपने में एक औरत दिखाई दी। वह बोली तुम एक बहुत ही बेईमान इंसान हो। रुपयों के लालच में इतना गिर जाओगे। तुम्हारे पास नौकरी नहीं थी जब तुम भगवान के मंदिर में माथा टेकने जाते थे और हर रोज प्रार्थना करते थे कि हे भगवान मुझे जब नौकरी मिल जाएगी तब मैं कभी भी लालच नहीं करूंगा। ईमानदारी का जीवन जीऊंगा। तुमने तो धरती मां का अपमान किया है। तुम कभी खुश नहीं रहोगे। जिन पेड़ों से हमें जीवन दान मिलता है तुम हर रोज ना जाने कितने पेड़ों को काटते हो। कहां तुम्हें पेड़ लगाने चाहिए। और कहा अंधाधुंध पेड़ोको कटवाकर गोश्त खाते हो। तुम्हें तो इन सभी चोरी करने वालों को सलाखों के पीछे भेजना चाहिए था। कहां तुम भी इस काम में संलिप्त हो गए। देखने में भोले और अंदर से शातिर तुझे धरती की धरोहर का अपमान किया है इसके लिए तुम्हें सजा अवश्य मिलनी चाहिए अचानक उसकी नींद टूट गई। कि वह आंखें मलता उठ बैठा। यह मैंने सपने में क्या देखा। धरती मां ने मुझे सचमुच में भी मेरी सच्चाई मुझे दिखा दी। मैं भोला-भाला दिखाई देता हूं परंतु भोला नहीं हूं।

हे भगवान आज से मैं कान पकड़ता हूं अब मैं अपने आप को सुधार कर ही दम लूंगा। मैं भटक गया था मेरी मां ने मुझे रास्ता दिखाया है। जब घर पहुंचा तो उसकी पत्नी रो रही थी वह बोला भाग्यवान क्या हुआ है। वह बोली मेरे खेत को कोई उजड़ गया है। सारी सब्जियां लगाई थी। सारी नष्ट हो चुकी है। पता नहीं किसके पशु आकर हमारे खेत को तहस-नहस कर गए। अब की बार हमारे खेत में कुछ भी फसल नहीं होगी। यह कहकर वह जोर जोर से रोने लगी। अचानक उसे भी अंदर से दर्द महसूस हुआ। अब नंदलाल को लगा जब मेरे जंगल में कोई पेड़ काटने आता था तब मैं सब को कहता था हां भाई काट लो। मुझे अंदर से दर्द महसूस नहीं होता था। जब मेरे घर की हरी-भरी खेती नष्ट हुई तब मुझे जाकर यह बात समझ में आई।

उसकी पत्नी ने 2 दिन तक खाना नहीं खाया। वह भी बहुत उदास हो गया था। दूसरे दिन जंगल चला गया। अचानक बीच-बीच में उसे जंगल में नींद आ जाती थी। उसे फिर वही सपना दिखाई दिया। धरती मां ने उसे कहा बेटा अब तो तुम्हें समझ आ ही गया होगा। जब चोट अपने ऊपर ऊपर लगती है तभी इन्सान समझता है।

अच्छा आज इस जंगल के दूसरे छोर में कुछ लोगों ने जंगल में आग लगाई है। तुम्हें उन लोगों को सलाखों के पीछे पहुंचाना है। तुम समझ गए होंगे अभी भी समय है। सुधर जाओ उसनें धरती मां के पैर पकड़ लिए। उसे जाग आ गई थी। उसने सच में धरती मां के पैर छुए और कसम खाई कि मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि आज मैं नेक काम करने जा रहा हूं। मुझे आशीर्वाद दो। वह नीचे जमीन पर लेट गया। उसने देखा कि उस वाटिका में लगा हुआ फूल उसके पांव के पास गिरा। उसने उस फूल को उठाया और अपनी जेब में भर लिया।
उसनें जंगल के दूसरे छोर में जाकर उन आग लगाने वाले लोगों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया। उसने सभी अपराधियों को सजा दिलाई जो पेड़ों को काटते थे। वह समझ गया था कि धरती मां की इस मूल्यवान धरोहर को हमें बचाना होगा। अगर हम इस धरोहर को बचा नहीं पाए तब तक हम एक सच्चे अर्थों में भारत मां के सच्चे सपूत नहीं कहला सकते।

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